सब की तरह हमें भी इन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता रहा है । लेकिन पिछले कुछ सालों से अपनी बढती गतिविधियों ( एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर एक्टिविटीज ) की वज़ह से हमें तो और भी परीक्षाएं देनी पड़ जाती हैं ।
जी हाँ , जब आप कोई नया काम करने का जिम्मा लेते हैं तो वह एक परीक्षा ही होता है । क्योंकि आप पर दबाव होता है , अपेक्षाओं का । परफोर्मेंस एंजाईटी भी होती है ।
अब अपने लिए तो यह एक रोजमर्रा की बात बन गई है । यानि रोज कोई एक नया काम ।
पिछले दिनों अपने क्षेत्र के लॉयंस क्लब के एक पदाधिकारी का फोन आया --सर हम आपको ओनर करना चाहते हैं । मैंने पूछा --किस बात के लिए । उन्होंने बताया कि हम अपने क्षेत्र के चुनिन्दा कवियों को सम्मानित करना चाहते हैं । साथ ही हम आपकी कवितायेँ भी सुनना चाहेंगे ।
अब हमने सोचा कि ये महाशय शायद हमें साहित्यिक डॉक्टर समझ रहे हैं । वैसे भी हम वहां किसी को जानते भी नहीं थे । फिर लगा चलो इसी बहाने कुछ सुनने सुनाने का अवसर तो मिलेगा ।
वर्ना हम जैसे कवियों को तो जेब से खर्च करके भी श्रोता जुटाने मुश्किल होते हैं ।
निमंत्रण तो स्वीकार कर लिया लेकिन घबराहट भी होने लगी । पहले सम्मान फिर कविता सुनाना । कहीं वापस ही न करना पड़ जाए । वैसे भी यह निमंत्रण अप्रत्यासित था । भई हम कहाँ कवि , कैसे कवि !
खैर दिल कड़ा करके चले गए । और पहली बार हमारा एक वरिष्ठ कवि के रूप में परिचय कराया गया ।
अंतत : शुक्र रहा कि इज्ज़त बच गई । और हम सही सलामत ससम्मान लौट कर आ पाए।
चलिए अब हम भी मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय कवि तो बन ही गए ।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कवि तो हम तभी बन गए थे जब हमने विदेश का विस्तृत दौरा करते हुए टोरंटो , स्कार्बरा , एजेक्स , एल्गोन्क़ुइन , मोंटमोरेंसी और क्यूबेक जैसे देशों में कविता पाठ किया था । ( कनाडा वासियों से अनुरोध है कि कृपया इस विषय पर चुप्पी साधे रखें ) ।
अब यह अलग बात है कि सभी कवि सम्मेलनों में श्रोता हमारे मेज़बान मित्र और उनके बच्चे ही थे ।
लेकिन क्या हुआ , अंतर्राष्ट्रीय कवि तो बन ही गए ।
वैसे भी आजकल जब तक यह लेबल न लगा हो , कवि की छवि ही नहीं बनती ।
कविता पाठ करते हुए
आईये विदेश के दौरे में अर्जित ज्ञान पर कुछ प्रकाश डाला जाए :
अपनों के बसे हज़ार घर
घर भी दिखे अति सुन्दर।
पर पति पत्नी में कब बात बिगड़ जाए
हर घर में बसा बस यही डर ।
फिर मात पिता से होते अंजान
देसी विचार और विदेशी व्यवहार में फंसकर
नादाँ अपनी खो जाते पहचान .
अमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है।
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिंदुस्तान है ।
नोट : भले ही आधुनिकता की छाप यहाँ भी नज़र आने लगी हो , लेकिन हमें गर्व है कि अभी भी हमारा पारिवारिक ढांचा बहुत मज़बूत है ।
नोट : भले ही आधुनिकता की छाप यहाँ भी नज़र आने लगी हो , लेकिन हमें गर्व है कि अभी भी हमारा पारिवारिक ढांचा बहुत मज़बूत है ।
डॉक्टर कवि दराल जी, बधाई!
ReplyDeleteभारत महान है! इसमें शक नहीं!
यहाँ भगवान् स्वयं जन्म लेते हैं, और पश्चिम में केवल उनके प्रतिनिधि, बेटे आदि!
इस अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ कवि को हमारा नमन :)
ReplyDeleteबधाई डॉक्टर साहब, किसी रोज़ डाक्टरी धोखा दे गई तो वरिष्ट इंटरनेशनल कवि का ताम्रपत्र काम आएगा।
ReplyDeleteहमारा नमन भी स्वीकारें कविराज :-)
ReplyDeleteपार्टी होनी चाहिए !
डॉ वरिष्ठ,अन्तराष्ट्रीय कवि को हमारा प्रणाम .
ReplyDeleteकवि महाराज की जय हो,
ReplyDeleteकिसी कवि सम्मेलन में अगर हम जैसे श्रोता आ जाये तो पहचान लेना, भूल मत जाना।
hasya vyangya pradhan kavita mein aapne apne desh ka chitran badhiya dhang se kiya hai. achhi rachna
ReplyDeleteडॉक्टर साहब पइसा तैयार है क्या.....एक श्रोता तो मैं ही हूं...हां बाकी का इंतजाम रुपयों (रुपया बहुवचन में है) में ही करना पड़ेगा.....जब रपयों से वोट खरीदा जा सकता है तो श्रोता क्यों नहीं ....हां नहीं तो....
ReplyDeleteहमारा पारिवारिक ढांचा बहुत मजबूत है विभिन्न अंतर्विरोधों के बावजूद !
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय सम्मान की लिए बहुत बधाई ...
जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
ReplyDeleteवह केवल अपना हिंदुस्तान है ।
बेशक ,मगर वह वाली भी सुनाईये जो वहां सुनायी थी ...
बधाई !
कविता में ठीक-ठाक तुकबंदी भले न हो पर भाव तो उम्दा हैं. फिर आप डॉक्टर ठहरे,कविता की थोड़ी सर्जरी भी स्वीकार्य है !
ReplyDeleteबधाई हो, कभी मौका मिले तो पिट्सबर्ग में भी काव्यपाठ का रंग बिखेर दीजिये।
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय कवि , अंतर्राष्ट्रीय छवि, लेवल ही केवल .....शुभकामनायें
ReplyDeleteकविवर डाक्टर दाराल जी को नमन, आपके विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर प्रगतिके लिए शुभकामनाये.
ReplyDeleteमाना कि टेक्नोलोजी का अधिकारी जापान है
ReplyDeleteअमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है।
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिंदुस्तान है ।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान की लिए बहुत बधाई
"जब तक अंतर्राष्ट्रीय लेबल न 'लगो' हो , कवि की छवि ही नहीं बनती",
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब यह 'लगो' मैंने अभी पढ़ा, या पहले भी ऐसा ही लिखा था?
राष्ट्रीय कवि तो आप पहले ही थे !अब अंतर्राष्ट्रीय बनने पर बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !
कविता और उसके भाव भी अच्छे हैं और सबसे अच्छा है आपके कवित्व का सम्मान होना।
ReplyDeleteहा हा हा ! रोहित भाई , लोग पैसे लेकर भी बिना सुने खिसक लिए तो !
ReplyDeleteअरविन्द जी , वह वाली तो यूँ मुफ्त में नहीं ना सुनाई जा सकती है ।
संतोष त्रिवेदी जी , अरे भाई यह कविता है ही नहीं । इन्हें तो मुक्तक कहते हैं । और इन्हें पढने के बजाय सुनने में ज्यादा आनंद आता है । सच , सीरियसली । :)
अनुराग जी , बस एक टिकेट भिजवा दीजिये । और रहने खाने पीने का सारा इंतजाम तो करवा ही देंगे आप । इसके अलावा कवियों की तरह हमारी कोई और डिमांड नहीं है ।
ReplyDeleteवंदना जी , आपने कहाँ पहुंचा दिया हमें ! अज़ी हंसी मजाक की बात है ।
जे सी जी , शायद आपसे चूक हो गई । :)
@@माना कि टेक्नोलोजी का अधिकारी जापान है
ReplyDeleteअमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है।
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिंदुस्तान है ।..
बहुत खूबसूरत डॉ साहब,बधाई.
मजाक मजाक में एक संदेश दे गये ,बधाई
ReplyDeleteअन्तरराष्ट्रीय कवि बनने पर बधाई।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनायें ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
देसी विचार और विदेशी व्यवहार में फंसकर
ReplyDeleteनादाँ अपनी खो जाते पहचान .
इन पक्तियों ने मन झकझोर दिया. बहुत बढ़िया डॉक्टर साहब.
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.इंतज़ार रहेगा.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
पहचान के मानदंड तो हिंदुस्तान में भी बदलने लगे हैं...
ReplyDeleteअहिंसा के इस देश में अब हिंसा करने वालों को भी हीरो माना जाने लगा है...
जय हिंद...
वाह ! कविराज जी ! पदवी तो सही जगह पहुंची हैं --हम तो धन्य हुए --एक नए कवि को पाकर ..बधाई हो जी
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय कवि बनने पर बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteकविताएँ आपकी सहज..सरल...आम जीवन के करीब तो होती ही हैं.
अरे वाह! बड़ी रंग-बिरंगी पोस्ट है।
ReplyDeleteराष्ट्रीय से अंतर्राष्ट्रीय बन गये ! पास से कहीं दूर तो नहीं हो गये!!
..बधाई सुंदर पोस्ट के लिये।
बधाईयाँ...
ReplyDeleteहम तो चुप ही हैं..:)
पहले सम्मान फिर कविता सुनाना । कहीं वापस ही न करना पड़ जाए ।
हा हा!! यह डर भी सामान्य है...न जाने कितनी बार गुजरे इससे...:)
हा हा हा ! सही कहा समीर जी । एक कवि की व्यथा को एक कवि ही समझ सकता है । :)
ReplyDeleteमान्यता प्राप्त क्षेत्रीय कवि तो बनने पर हार्दिक बधाई
ReplyDeleteलेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिंदुस्तान है ।
यह परस्पर प्यार बरकरार रहे .
बधाई डाक्टर साहब ... जब कवि हो गए तो क्षत्रिय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय ... क्या फर्क पढता है ...
ReplyDeleteWednesday, October 12, 2011
ReplyDeleteजब तक अंतर्राष्ट्रीय लेबल न लगो हो , कवि की छवि ही नहीं बनती ---
मेडिकल प्रोफेशन में एक विशेष बात यह है कि एक डॉक्टर को जिंदगी भर पढ़ते रहना पड़ता है । वैसे भी चिकित्सा शिक्षा में सबसे ज्यादा समय और मेहनत लगती है । इसलिए एक डॉक्टर को अनेकों परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है ।
सब की तरह हमें भी इन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता रहा है । लेकिन पिछले कुछ सालों से अपनी बढती गतिविधियों ( एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर एक्टिविटीज ) की वज़ह से हमें तो और भी परीक्षाएं देनी पड़ जाती हैं ।
जी हाँ , जब आप कोई नया काम करने का जिम्मा लेते हैं तो वह एक परीक्षा ही होता है । क्योंकि आप पर दबाव होता है , अपेक्षाओं का । परफोर्मेंस एंजाईटी भी होती है ।
अब अपने लिए तो यह एक रोजमर्रा की बात बन गई है । यानि रोज कोई एक नया काम ।
पिछले दिनों अपने क्षेत्र के लॉयंस क्लब के एक पदाधिकारी का फोन आया --सर हम आपको ओनर करना चाहते हैं । मैंने पूछा --किस बात के लिए । उन्होंने बताया कि हम अपने क्षेत्र के चुनिन्दा कवियों को सम्मानित करना चाहते हैं । साथ ही हम आपकी कवितायेँ भी सुनना चाहेंगे ।
अब हमने सोचा कि ये महाशय शायद हमें साहित्यिक डॉक्टर समझ रहे हैं । वैसे भी हम वहां किसी को जानते भी नहीं थे । फिर लगा चलो इसी बहाने कुछ सुनने सुनाने का अवसर तो मिलेगा ।
वर्ना हम जैसे कवियों को तो जेब से खर्च करके भी श्रोता जुटाने मुश्किल होते हैं ।
निमंत्रण तो स्वीकार कर लिया लेकिन घबराहट भी होने लगी । पहले सम्मान फिर कविता सुनाना । कहीं वापस ही न करना पड़ जाए । वैसे भी यह निमंत्रण अप्रत्यासित था । भई हम कहाँ कवि , कैसे कवि !
खैर दिल कड़ा करके चले गए । और पहली बार हमारा एक वरिष्ठ कवि के रूप में परिचय कराया गया ।
अंतत : शुक्र रहा कि इज्ज़त बच गई । और हम सही सलामत ससम्मान लौट कर आ पाए।
चलिए अब हम भी मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय कवि तो बन ही गए ।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कवि तो हम तभी बन गए थे जब हमने विदेश का विस्तृत दौरा करते हुए टोरंटो , स्कार्बरा , एजेक्स , एल्गोन्क़ुइन , मोंटमोरेंसी और क्यूबेक जैसे देशों में कविता पाठ किया था । ( कनाडा वासियों से अनुरोध है कि कृपया इस विषय पर चुप्पी साधे रखें ) ।
अब यह अलग बात है कि सभी कवि सम्मेलनों में श्रोता हमारे मेज़बान मित्र और उनके बच्चे ही थे ।
लेकिन क्या हुआ , अंतर्राष्ट्रीय कवि तो बन ही गए ।
वैसे भी आजकल जब तक यह लेबल न लगा हो , कवि की छवि ही नहीं बनती ।
कविता पाठ करते हुए
आईये विदेश के दौरे में अर्जित ज्ञान पर कुछ प्रकाश डाला जाए :
अपनों के बसे हज़ार घर
घर भी दिखे अति सुन्दर।
पर पति पत्नी में कब बात बिगड़ जाए
हर घर में बसा बस यही डर ।
अठारह पर बच्चे होते ज़वान
फिर मात पिता से होते अंजान
देसी विचार और विदेशी व्यवहार में फंसकर
नादाँ अपनी खो जाते पहचान .
माना कि टेक्नोलोजी का अधिकारी जापान है
अमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है।
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिंदुस्तान है ।
बधाई !बधाई !बधाया !बहुत सुन्दर प्रस्तुति .