लेकिन इस वर्ष हमारी वैवाहिक वर्षगांठ पर ये सिलसिला शुरू हुआ और फिर लगभग हर पोस्ट पर डॉ साहब की दिलचस्प और हैरतंगेज़ टिप्पणियां पढ़कर हम आनंदविभोर होते रहे . तभी हमने जाना -डॉ अमर डॉक्टर होने के साथ साथ कितने प्रतीभाशाली व्यक्ति थे .
उनकी आखिरी टिप्पणी १९-७-२०११ की इस पोस्ट पर मिली --
मैं आपसे फिल्म के टिकेट पर खर्च किये गए पैसे में से २५ % के रिफंड की मांग करता हूँ --मिस्टर आमिर खान
( फिल्म डेल्ही बेली की समीक्षा )केवल 25% ?
आप बड़े रहमदिल हैं, डॉ दराल !
ताज़्ज़ुब तो यह है कि, पिंक चड्डी वाले श्रीराम सेना का खून इस पर नहीं उबला... शिवसेना भी चुप रह गयी... क्या सँस्कृति के ठेकेदार भी बिकाऊ हैं ? अभिनेता के तौर पर आमिर मुझे अच्छा लगता है.. पर निर्माता के रूप में मैं उसे स्वीकार नहीं कर पाता, वह बड़ी सफाई से अपनी पत्नी किरन राव के योगदान को डकार जाता है ।
खैर मैंनें इसे डाउनलोड करके निर्विकार भाव से देखा, लुत्फ़ न आया और अपने बेटे को कहा कि जा तू भी देख आ.. ताकि यह पता रहे भाषा की सैंक्टिटी ( Sanctity ) बनाये रखने में कौन से स्लैंग नहीं बोलने चाहिये ।
और हाँ, आपकी पिछली पोस्ट बहुत ही अच्छी थी,
टिप्पणी देने से चूक गया.. लेकिन दूँगा ज़रूर !
अफ़सोस , उसके बाद डॉ साहब गंभीर रूप से बीमार हो गए और यह वादा अधूरा ही रह गया .
नेशनल डॉक्टर्स डे पर डॉक्टर्स को मिला सम्मान -
भाई डॉ. दराल साहब,
हम तो आपको उसी दिन बधाई दे चुके हैं,
आप भी हमको विश किये थे, आज फिर अपनी बधाई दोहरा रहा हूँ.. ताकि लोग यह न समझें कि डॉक्टर अमर कुमार इस पोस्ट पर अनुपस्थित हैं, और ’समझो लाल’ लोग अपनी समझ इसी में खपा डालेंगे । तो.... इस प्रकार हमलोग किसी तरह डॉक्टर्स डे मना लिये ।
मुला ई पब्लिकिया इस दिन का ध्यान ही कब रखती है ? मैं पहले हर वर्ष डॉक्टर्स डे पर एक पोस्ट लिखा करता था, बाद में बन्द कर दिया... कारण ? मुझे यह बोध होने लगा कि मैं क्यों हर वर्ष क्यों याद दिलाऊँ.. कि देवियों और सज्जनों आज हमारा भी दिन आया है... आओ, आओ हमें बधाई दो ! जो सज्जन 9 दिन बाद पोस्ट लिखे जाने का उलाहना दे रहें हैं, वह कृपया नोट कर लें ।
हम तो आपको उसी दिन बधाई दे चुके हैं,
आप भी हमको विश किये थे, आज फिर अपनी बधाई दोहरा रहा हूँ.. ताकि लोग यह न समझें कि डॉक्टर अमर कुमार इस पोस्ट पर अनुपस्थित हैं, और ’समझो लाल’ लोग अपनी समझ इसी में खपा डालेंगे । तो.... इस प्रकार हमलोग किसी तरह डॉक्टर्स डे मना लिये ।
मुला ई पब्लिकिया इस दिन का ध्यान ही कब रखती है ? मैं पहले हर वर्ष डॉक्टर्स डे पर एक पोस्ट लिखा करता था, बाद में बन्द कर दिया... कारण ? मुझे यह बोध होने लगा कि मैं क्यों हर वर्ष क्यों याद दिलाऊँ.. कि देवियों और सज्जनों आज हमारा भी दिन आया है... आओ, आओ हमें बधाई दो ! जो सज्जन 9 दिन बाद पोस्ट लिखे जाने का उलाहना दे रहें हैं, वह कृपया नोट कर लें ।
आखिरी पंक्ति से लगता है वे कितने ध्यान से सबकी टिप्पणियां भी पढ़ते थे .
न जाने किस भेष में नारायण मिल जाये---
(समलैंगिक संबंधों पर एक पोस्ट )निश्चय ही यह एक मनोविकृति है,
पश्चिम में लीक से अलग दिखने के लिये लोग कुछ भी अपना लेते हैं ।
भारत में इसे असमय ही मान्यता दे दी है...स्वतँत्रता के अधिकार का बहुत गलत तरीके से पैरोकारी की जा रही है ।
जैसा कि होता आया है.. कि भारतीय युवा तर्कहीन अँधानुकरण में माहिर हैं, चाहे वह घिसी जीन्स हो या लिव-इन के चोंचले... उनके लिये यह सभी हैपेनिंग थिंग और इट्स हॉट जैसे ज़ुमलों से परिभाषित हो लेते हैं ।
सच कहा आपने.. कोई ताज़्ज़ुब नहीं कि एक दिन मेरा ही लड़का किसी चिकणे को सामने खड़ा करके आशीर्वाद का तलबगार हो !
पश्चिम में लीक से अलग दिखने के लिये लोग कुछ भी अपना लेते हैं ।
भारत में इसे असमय ही मान्यता दे दी है...स्वतँत्रता के अधिकार का बहुत गलत तरीके से पैरोकारी की जा रही है ।
जैसा कि होता आया है.. कि भारतीय युवा तर्कहीन अँधानुकरण में माहिर हैं, चाहे वह घिसी जीन्स हो या लिव-इन के चोंचले... उनके लिये यह सभी हैपेनिंग थिंग और इट्स हॉट जैसे ज़ुमलों से परिभाषित हो लेते हैं ।
सच कहा आपने.. कोई ताज़्ज़ुब नहीं कि एक दिन मेरा ही लड़का किसी चिकणे को सामने खड़ा करके आशीर्वाद का तलबगार हो !
आखिरी पंक्ति क्या कोई और लिख सकता था ?
डॉक्टर साहब , गैस सर में चढ़ जाती है --
( चिकित्सीय भ्रांतियों पर लेख )सर जी,
पिछले 25 वर्षों से अपनी प्रैक्टिस में मैंने इन भ्रान्तियों को इन मूढ़ों के दिमाग से झाड़-पोंछने का बीड़ा उठा रखा है.... इसके लिये मुझे उनसे जिरह करनी पड़ती है.... और वह टूट जाते हैं । फिर भी कुछ मुझे झक्की समझ कर वाक-आउट कर जाते थे और जो कन्विन्स हो गये.. वह आज तक मुरीद हैं । सवाल यह है कि.. ग्रामीण परिवेश और अर्धशिक्षित / अशिक्षित जनता के मनोमष्तिष्क में यह बातें कैसे इतने गहरे पैठीं.. जिसे क्वैक अपनी मर्ज़ीनुसार पोस रहे हैं ?
पिछले 25 वर्षों से अपनी प्रैक्टिस में मैंने इन भ्रान्तियों को इन मूढ़ों के दिमाग से झाड़-पोंछने का बीड़ा उठा रखा है.... इसके लिये मुझे उनसे जिरह करनी पड़ती है.... और वह टूट जाते हैं । फिर भी कुछ मुझे झक्की समझ कर वाक-आउट कर जाते थे और जो कन्विन्स हो गये.. वह आज तक मुरीद हैं । सवाल यह है कि.. ग्रामीण परिवेश और अर्धशिक्षित / अशिक्षित जनता के मनोमष्तिष्क में यह बातें कैसे इतने गहरे पैठीं.. जिसे क्वैक अपनी मर्ज़ीनुसार पोस रहे हैं ?
एक चिकित्सक की व्यथा को सही उजागर किया है .
@ जानकारीपरक लेख,
लगे हाथ स्व-चिकित्सा ( Self Medication ) और दर्द-निवारक गोलियों के दुष्प्रभावों के प्रति आगाह कर देते, तो लेख अपने पूरे रूप में आ जाता !
बाई दॅ वे.. मुझे तो बुढ़ापे की परिभाषा में इतना ही पता था कि जब व्यक्ति का दिमाग घुटनों में उतर आये.. तो समझो गया काम से ...
सतीश जी..
आशा करते रहने से अच्छा तो यह कि कम से कम घर बैठे मानसिक मॉर्निंग वाक कर ही लिया करें... वैसे असली मार्निंग वाक में भी एक से एक ( वास्तविक ) आशायें मिलती हैं :) घर से तो निकलिये !
लगे हाथ स्व-चिकित्सा ( Self Medication ) और दर्द-निवारक गोलियों के दुष्प्रभावों के प्रति आगाह कर देते, तो लेख अपने पूरे रूप में आ जाता !
बाई दॅ वे.. मुझे तो बुढ़ापे की परिभाषा में इतना ही पता था कि जब व्यक्ति का दिमाग घुटनों में उतर आये.. तो समझो गया काम से ...
सतीश जी..
आशा करते रहने से अच्छा तो यह कि कम से कम घर बैठे मानसिक मॉर्निंग वाक कर ही लिया करें... वैसे असली मार्निंग वाक में भी एक से एक ( वास्तविक ) आशायें मिलती हैं :) घर से तो निकलिये !
सतीश जी को यह सलाह अवश्य पसंद आई होगी .
मुफ्त दो घूँट पिला दे तेरे सदके वाली---
( ऊटी हवाई यात्रा पर एक हास्य -व्यंग लेख )इस तरियों पब्लक को ललचा रैये हो, डाकटर !
वो क्या कहवें हैं, होसटेस.. इनकी वैराइटी केह तरिंयो चेक की तैने.. जरा मन्नें बी बता दे.. तेरे को गुरु मानूँगा !
आपने याद दिलाया तो याद आया कि ... ऊटी पहले हो आया !
यह भी याद आया कि एक बार दुबारा भी जाना है ।
वैसे कोडाईकैनाल मुझे अधिक हनीमूनिंग एहसास देता है ।
शान्त तो खैर है ही । एक बार मेरी गारँटी पर हो आइये ।
वो क्या कहवें हैं, होसटेस.. इनकी वैराइटी केह तरिंयो चेक की तैने.. जरा मन्नें बी बता दे.. तेरे को गुरु मानूँगा !
आपने याद दिलाया तो याद आया कि ... ऊटी पहले हो आया !
यह भी याद आया कि एक बार दुबारा भी जाना है ।
वैसे कोडाईकैनाल मुझे अधिक हनीमूनिंग एहसास देता है ।
शान्त तो खैर है ही । एक बार मेरी गारँटी पर हो आइये ।
अलग अलग भाषाओँ में मजाक करना उनकी एक खूबसूरत विशेषता थी .
अहाहा हा.... बाज़ार गरम है..
फिर छिड़ी यार…बात ऽ ऽ मूँछों की ..ऽ …ऽ
भाई डॉ.दराल साहब मूँछों का ही तो ज़माल है.. इसे मँदी में कहाँ लपेट लिया ।
अपने यहाँ मूँछों के दम पर ही तो अपने देश में मँदी उतना नहीं फैल पायी । नेताओं को क्या फ़र्क पड़ता है.. उनकी मूँछ ज़रूरत के हिसाब पार्टी बदला करती है ।
फिर छिड़ी यार…बात ऽ ऽ मूँछों की ..ऽ …ऽ
भाई डॉ.दराल साहब मूँछों का ही तो ज़माल है.. इसे मँदी में कहाँ लपेट लिया ।
अपने यहाँ मूँछों के दम पर ही तो अपने देश में मँदी उतना नहीं फैल पायी । नेताओं को क्या फ़र्क पड़ता है.. उनकी मूँछ ज़रूरत के हिसाब पार्टी बदला करती है ।
इस विषय पर उन्होंने भी लिखा था .
आदमी को कुत्ता कमीना कहना यानि कुत्ते को गाली देना --क्या सही है ?
( कुत्तों पर एक हास्य कविता )एक पौराणिक आख्यान भले ही कोरी गप्प हो, पर वार्तालाप का सार कुत्ते की महत्ता को सादर स्वीकार करता है ।
यदि किसी को स्मरण हो तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ एक श्वान को ही सशरीर स्वर्ग जाने की आज्ञा मिली ।
धरमिन्दर पाजी को बाइज़्ज़त बरी किया जाता है, उनके द्वारा खून पिये जाने के साक्ष्य उपल्ब्ध नहीं हैं ।
वैसे भी उन्होंने इन्सान का खून पीने की बजाय कुत्तों का शुद्ध पवित्र रक्त पीना चाहा, क्या हर्ज़ है ?
कारण चाहे जो भी हो, मैं स्वयँ मनुष्यों से अधिक कुत्तों के बीच अधिक सहज रह पाता हूँ ।
कुत्तों के प्रति समर्पित इस आलेख के लिये डॉ. दराल धन्यवाद के पात्र हैं ।
मैं तो उनके सात्विक सहिष्णु गुणों के कारण गधों का भी अनन्य भक्त हूँ
यदि किसी को स्मरण हो तो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ एक श्वान को ही सशरीर स्वर्ग जाने की आज्ञा मिली ।
धरमिन्दर पाजी को बाइज़्ज़त बरी किया जाता है, उनके द्वारा खून पिये जाने के साक्ष्य उपल्ब्ध नहीं हैं ।
वैसे भी उन्होंने इन्सान का खून पीने की बजाय कुत्तों का शुद्ध पवित्र रक्त पीना चाहा, क्या हर्ज़ है ?
कारण चाहे जो भी हो, मैं स्वयँ मनुष्यों से अधिक कुत्तों के बीच अधिक सहज रह पाता हूँ ।
कुत्तों के प्रति समर्पित इस आलेख के लिये डॉ. दराल धन्यवाद के पात्र हैं ।
मैं तो उनके सात्विक सहिष्णु गुणों के कारण गधों का भी अनन्य भक्त हूँ
ज़ाहिर है उन्हें कुत्तों से बहुत प्यार था . सही रूप में एनीमल लवर थे .
बातों बातों में सटीक सँदेश !
मैं स्वयँ ही बाबा और रजनी के परवान चढ़ते प्यार के साइड एफ़ेक्ट में आकर आधा जबड़ा कुर्बान कर आया । :-(
एक पहलू और भी... आपकी पोस्ट के बहकावे में आकर लोगों ने कहीं तम्बाकू से तौबा कर ली.. तो घटते राजस्व का क्या होगा... नशा-उन्मूलन के विज्ञापनों पर होने वाले व्यय में घपले कैसे होंगे... इतने बड़े एक्साइज़ अमले का क्या होगा.. जिन्हें अतिकतम वसूली का टारगेट दिया जाता है । क्या इन सब हानियों से राजकोष में लगने वले सेंध की पूर्ति सदाचार माफ़िया करेगा ? :-)
मैं स्वयँ ही बाबा और रजनी के परवान चढ़ते प्यार के साइड एफ़ेक्ट में आकर आधा जबड़ा कुर्बान कर आया । :-(
एक पहलू और भी... आपकी पोस्ट के बहकावे में आकर लोगों ने कहीं तम्बाकू से तौबा कर ली.. तो घटते राजस्व का क्या होगा... नशा-उन्मूलन के विज्ञापनों पर होने वाले व्यय में घपले कैसे होंगे... इतने बड़े एक्साइज़ अमले का क्या होगा.. जिन्हें अतिकतम वसूली का टारगेट दिया जाता है । क्या इन सब हानियों से राजकोष में लगने वले सेंध की पूर्ति सदाचार माफ़िया करेगा ? :-)
अपनी गलती को स्वीकार करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए . हालाँकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी .
पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा ?
( बढती आबादी पर एक हास्य व्यंग कविता )ज़वाब नहीं आपका,
बातों में फँसा कर परिवार नियोजन का सँदेश पकड़ा दिया !
यहाँ ब्लॉगर पर 65% बुढ़वों का आना जाना है, जो अपने बच्चों से नाती पोते की उम्मीद पाले बैठे हैं ।
बातों में फँसा कर परिवार नियोजन का सँदेश पकड़ा दिया !
यहाँ ब्लॉगर पर 65% बुढ़वों का आना जाना है, जो अपने बच्चों से नाती पोते की उम्मीद पाले बैठे हैं ।
यहाँ उनके विनोदी स्वाभाव की साफ झलक मिलती है .
मुन्घेरीलाल का हसीन सपना ---ब्लोगर्स कॉकटेल ---
( ब्लोगर्स पर एक हास्य कविता )आईला.... फालतू पोस्ट पर 30 टिप्पणी !
मैं कहता न था कि शराफ़त का ज़माना न रहा ।
ज़माना भौकालियों का है, जो बोले सो निढाल... जय श्री भौकाल !
मैं कहता न था कि शराफ़त का ज़माना न रहा ।
ज़माना भौकालियों का है, जो बोले सो निढाल... जय श्री भौकाल !
टिप्पणियों में उनकी बेबाकी हमेशा झलकती थी . बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात कह जाते थे .
अरे डॉक्टर साहेब.. किसने आपको उल्टी अँग्रेज़ी पढ़ा दी,
मैन इज़ ए सोशल एनिमल ! असलियत में... मैन इज़ असोशल एनिमल ।
Man is asocial animal ( :not social: as a: rejecting or lacking the capacity for social interaction सौजन्य: मेरियम ऑक्सफ़ोर्ड कॉलेज़ियेट डिक्शनरी 11वाँ सँस्करण )
मैन इज़ ए सोशल एनिमल ! असलियत में... मैन इज़ असोशल एनिमल ।
Man is asocial animal ( :not social: as a: rejecting or lacking the capacity for social interaction सौजन्य: मेरियम ऑक्सफ़ोर्ड कॉलेज़ियेट डिक्शनरी 11वाँ सँस्करण )
ज़ाहिर है , उनके पास ज्ञान का विशाल भण्डार था .
क्या दोहरी मानसिकता की शिकार है आधुनिक सोच ?
( गंभीर विषय पर हास्य लेख )दोहरी मानसिकता पर आपकी बात सही है,
यह सँस्कारों का सँक्रमण काल है ऎसे Transit Phase में सब कुछ गड्ड-मड्ड होना स्वाभाविक है, क्योंकि हम स्वयँ ही सही तरीके से अपने सँस्कार नहीं सँजो पा रहे हैं । चाहते हैं कि बच्चा ( लड़का या लड़की ) आधुनिक बने, अँकल को गुड मॉर्निंग बोले, व ताऊ के पैर छुये । बर्थ-डे पर केक कटवायेंगे, ब्याह में परँपरागत चोंगा व नकली मुकुट पहने... बाहर अँग्रेज़ी बोले ( आँटी को ऎपॅल दे दो ) और घर में कुकीज़ को गुलगुला बोले । स्वयँ तो सँयोगिता या रुक्मिणी हरण की कथायें सुना कर झूमें.. और ऎसे सम्बन्धों को मान्यता भी न दें । बड़ा लोचा है भाई दराल, किससे शिकायत करें । यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... शाँति इसी में है । भाभी वाला किस्सा आपकी हाज़िरज़वाबी का नमूना है.. मैं मुरीद हुआ !
यह सँस्कारों का सँक्रमण काल है ऎसे Transit Phase में सब कुछ गड्ड-मड्ड होना स्वाभाविक है, क्योंकि हम स्वयँ ही सही तरीके से अपने सँस्कार नहीं सँजो पा रहे हैं । चाहते हैं कि बच्चा ( लड़का या लड़की ) आधुनिक बने, अँकल को गुड मॉर्निंग बोले, व ताऊ के पैर छुये । बर्थ-डे पर केक कटवायेंगे, ब्याह में परँपरागत चोंगा व नकली मुकुट पहने... बाहर अँग्रेज़ी बोले ( आँटी को ऎपॅल दे दो ) और घर में कुकीज़ को गुलगुला बोले । स्वयँ तो सँयोगिता या रुक्मिणी हरण की कथायें सुना कर झूमें.. और ऎसे सम्बन्धों को मान्यता भी न दें । बड़ा लोचा है भाई दराल, किससे शिकायत करें । यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... शाँति इसी में है । भाभी वाला किस्सा आपकी हाज़िरज़वाबी का नमूना है.. मैं मुरीद हुआ !
इस लेख पर अपनी सहमती जताकर डॉ साहब ने हमें भी पास कर दिया .
फुलगेंदवा न मारो...
लागत करेज़वा में चोट
डाक्टर साहेब जनाब, अपना तो हाल यह है कि,
किबला इस मतले पर गौर फ़रमायें...
पायी हुई दुनिया तो सँभाली नहीं जाती
खोयी हुई दुनिया के निशाँ ढूँढ़ रहे हैं
लागत करेज़वा में चोट
डाक्टर साहेब जनाब, अपना तो हाल यह है कि,
किबला इस मतले पर गौर फ़रमायें...
पायी हुई दुनिया तो सँभाली नहीं जाती
खोयी हुई दुनिया के निशाँ ढूँढ़ रहे हैं
हम ज़रा रोमांटिक हुए तो डॉ अमर ने भी फुलझड़ी छोड़ दी .
जाटों की सरलता निष्कपटता और यारबाजी का मैं कायल हूँ ताऊ लोगों के बहुत से असली किस्से हैं, मेरे पास ( सहेज़ रखा है कि कभी पोस्ट लिखूँगा )... खैर आज तो एक चुटकुला साझा करना चाहूँगा !
एक बर एक कैदी नै फांसी की सजा मिली !
उसनै इक सिपाही लेकै फाँसी को जाण लागरया था ।
उस दिन मौसम बी घणा ख़राब होरया था.. गरमी भाई गरमी ।
रास्ते मै कैदी सिपाही तै बोल्या ; देख भाई भगवान की करणी , .... मनै आज के दिन बी कितणी तकलीफ दे रया से
सुरजा बोल्या ; अ मेरे यार तू तो जमा ऐ माडा मन कर रया से ,( बेकार में मन खराब कर रहा है )
.. मनै देख इसे ऐ खराब मौसम मै मनै उल्टा बी आणा से ( मुझे देख मुझे इसी गरमी में वापस भी आना है )
एक बर एक कैदी नै फांसी की सजा मिली !
उसनै इक सिपाही लेकै फाँसी को जाण लागरया था ।
उस दिन मौसम बी घणा ख़राब होरया था.. गरमी भाई गरमी ।
रास्ते मै कैदी सिपाही तै बोल्या ; देख भाई भगवान की करणी , .... मनै आज के दिन बी कितणी तकलीफ दे रया से
सुरजा बोल्या ; अ मेरे यार तू तो जमा ऐ माडा मन कर रया से ,( बेकार में मन खराब कर रहा है )
.. मनै देख इसे ऐ खराब मौसम मै मनै उल्टा बी आणा से ( मुझे देख मुझे इसी गरमी में वापस भी आना है )
हास्य में भी उनकी हाज़िर ज़वाबी कमाल की थी .
चल एक चटाई और लगा भाई के लिए ---
( हमारी वैवाहिक वर्षगांठ पर लिख एक हास्य लेख )आईईऽऽऽऽ७ सच्ची !
आज डॉक्टर साहेबाइन ने डाक्टेर साहब का बैंड बजवा दिया था ?
बधाईयाँ.. लेयो जी । थोड़ा मिट्ठा सिट्ठा बी हो जाता तो...
निर्मला जी ये न सुनना पड़ता कि डाक्टर वैसे बडे कंजूस होते हैं।
आज डॉक्टर साहेबाइन ने डाक्टेर साहब का बैंड बजवा दिया था ?
बधाईयाँ.. लेयो जी । थोड़ा मिट्ठा सिट्ठा बी हो जाता तो...
निर्मला जी ये न सुनना पड़ता कि डाक्टर वैसे बडे कंजूस होते हैं।
अवसर की गरिमा को बनाये हुए भी हास्य का ज़वाब हास्य से देकर उन्होंने अपनी हास्य प्रतिभा का परिचय दिया .
सुंदर, निर्मल, चंचल, कोमल ---मेरी दिल्ली।--
पहली टिप्पणी ।
दिल वालों की हुआ करती थी,दिल्ली
दिलजलों को जलाया करती थी दिल्ली
अब नेताओं का सपना है, चलो दिल्ली
वाकई दिल्ली अब बहुत बेगाना लगता है !
दिलजलों को जलाया करती थी दिल्ली
अब नेताओं का सपना है, चलो दिल्ली
वाकई दिल्ली अब बहुत बेगाना लगता है !
डॉ अमर कुमार के यूँ अकस्मात चले जाने से ब्लॉगजगत सूना सूना सा हो गया है । उनकी बेबाक टिप्पणियां , जिनमे सच का बोल बाला होता था , कटाक्ष भी होता था , लेकिन बात दिल तक असर करती थी । हर विषय पर उनका ज्ञान , गहरी सोच , भाषा की विविधता , हास्य का पुट , और जहाँ मौका मिला वहां आइना दिखाती उनकी दिलचस्प टिप्पणियां ब्लोगर्स को विस्मित कर देती थी ।
हिंदी ब्लोगिंग अब पहले जैसी नहीं रह पायेगी । क्या कोई उन जैसे विद्वान की कमी पूरी कर सकता है ?
डॉ अमर को शत शत नमन ।
नोट : पोस्ट लम्बी ज़रूर है । लेकिन मेरी लिए यह एक संग्रहणीय धरोहर है ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteडॉ.दराल जी।
ReplyDeleteआपने स्व.डॉ.अमर कुमार जी को उनकी पोस्ट प्रकाशित करके सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
मैं भी स्व.डॉ.अमर कुमार जी को भाव-भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
डॉ अमर की परिपक्व सोच ,विपुल ज्ञान ,संस्कृति और भाषाई पकड़ -इन सभी टिप्पणियों में मुखरित है -
ReplyDeleteआपने इसे साझा कर हमे अपने प्रिय ब्लागर की अहमियत का पुरजोर अहसास करा दिया है -आभार!
मैं तो सीधे पोस्ट में से आदरणीय अमर जी की टिप्पणियाँ पढने में व्यस्त हो चला था , कमेन्ट करने के बाद में आपकी लिखी बात पढ़ी , मैं स्तब्ध हूँ ,मुझे आपकी पोस्ट से ये दुखद जानकारी मिली
ReplyDeleteकोई भी विद्वान कभी भी आदरणीय अमर कुमार जी की कमी पूरी नहीं कर पायेगा
ReplyDeleteडाक्टर अमर जी की पहली बेबाक टिप्पणी दाराल साहब आपके ब्लॉग पर ही पढी थी और उनकी शैली का कायल हुआ था, मै डाक्टर साहब की बेबाकी से वंचित रहा था मगर उन्हें पढ़ना मजेदार था मेरी भावभीनी श्रद्दांजलि
ReplyDeleteश्रद्धांजलि,
ReplyDeleteअब से आपको/सबको एक "विशेष कमेंट" से भी महरुम रहना पडॆगा।
कोई शब्द नहीं...मेरे लिए यह एक परिवारिक क्षति है..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. विनम्र श्रृद्धांजलि!!
ReplyDeleteउनका हर कमेन्ट सार्थक होता था ...
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट उनकी याद हमेशा दिलाएगी ! आपने उनकी इन टिप्पड़ियों को कलम बद्ध करके उनकी कुछ यादों को अमर कर दिया ! मुझे नहीं लगता कि इतना कष्ट हिंदी ब्लॉग जगत को कभी भी हुआ होगा !
इस पोस्ट के लिए आभार आपका !
वाकई विलक्षण प्रतिभा थी उनमें..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. विनम्र श्रृद्धांजलि!!
ReplyDeleteबस, यही यादें रह जाती हैं॥
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteटिप्पणियों के माध्यम से आपने उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी है ... उनकी आत्मा की शांति के लिए मैं प्रार्थना करती हूँ ..
ReplyDeleteडॉक्टर अमर कुमार की मजेदार टिप्पणियाँ मैंने आपके ही ब्लॉग में देखीं, और दिव्या जी के ब्लॉग में भी... और आपने उन्हें प्रस्तुत कर उनको दोहराया है उनकी याद ताज़ा कर दी... मैंने केवल उनके ब्लॉग पर जा गधे के ऊपर लिखी पोस्ट पढ़ी और अपनी भी एक छोटी से टिप्पणी दी थी... दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteडा. अमर कुमार का जाना हम सबके लिये अपूरणीय क्षति है। उनकी याद को नमन!
ReplyDeleteअफसोस...
ReplyDeleteकल शनिवार २७-०८-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुराणी हलचल पर है ...कृपया अवश्य पधारें और अपने सुझाव भी दें |आभार.
ReplyDeleteसंग्रहणीय!
ReplyDeleteयही है सच्ची श्रद्धांजलि !
यह पोस्ट सच्ची श्रद्धांजलि है उनके प्रति।...आभार।
ReplyDeleteडॉ अमर कुमार के यूँ अकस्मात चले जाने से ब्लॉगजगत सूना सूना सा हो गया है । उनकी बेबाक टिप्पणियां , जिनमे सच का बोल बाला होता था , कटाक्ष भी होता था , लेकिन बात दिल तक असर करती थी । हर विषय पर उनका ज्ञान , गहरी सोच , भाषा की विविधता , हास्य का पुट , और जहाँ मौका मिला वहां आइना दिखाती उनकी दिलचस्प टिप्पणियां ब्लोगर्स को विस्मित कर देती थी । .......सिर्फ यादें ही शेष हैं अब।
ReplyDeleteडाक्टर साहब का जाना, बहुत बडा सदमा है, क्या कहूं? पोस्ट के सभी कमेंट पहले से पढे हुये हैं, पर उनकी धार, पैनापन और नवीनता आज भी यूं की यूं है. अफ़्सोस अब उनके नये कमेंट नही पढने को मिलेंगे. विनम्र नमन.
ReplyDeleteरामराम.
अब बस ये यादें ही शेष हैं....उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो पाएगी
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteडाक्टर अमर कुमार जी के निधन के विषय में जानकर बहुत दुःख हुआ. उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDelete