बहुत से ब्लोगर बंधुओं ने पूछा कि पुरुषों के लिए सुरक्षा के क्या उपाय हैं। सवाल भी जायज़ है क्योंकि शोषण तो पुरुषों का भी हो सकता है , बल्कि यूँ कहिये होता है । अब देखा जाए तो पुरुषों का उत्पीड़न तो घर से ही शुरू हो जाता है । शायद ही कोई पुरुष हो जो पत्नी का सताया हुआ न हो ।
ऐसी ही एक दास्तान सुनाते हैं , एक हास्य कविता के माध्यम से ।
अब इसमें कहीं आपको अपना ही स्वरुप नज़र आये तो हैरान मत होइए : पांच सौ का नोट
एक बात मुझे हरदम सताती है
बीबियों की ये पुरानी आदत है
एक दिन मैंने पत्नी से कहा
पत्नी बोली, क्यों बोर करते हो
एक बात मुझे हरदम सताती है
मेरी पत्नी मुझसे ज्यादा कमाती है,
लेकिन जब भी अवसर पाती है
मेरी जेब साफ़ कर जाती है।
बीबियों की ये पुरानी आदत है
ऐसा बड़े बूढ़े बताते हैं ,
और मेरी तरह लाखों नौज़वान
रोज पत्नी के हाथों लुट जाते हैं ।
पर मैं अपनी जेब में रखता हूँ
पांच सौ का एक नोट और थोड़े छुट्टे ,
और कोशिश करता हूँ कि
सप्ताहांत तक भी ये नोट , न टूटे ।
लेकिन जब भी कोई दूध वाला
पेपर या केबल वाला , घंटी बजाता है ,
मेरा वो पांच सौ का नोट ,
बीबी की बदौलत , सौ में बदल जाता है ।
इस पर भी पत्नी मुझे समझती है
घर की मुर्गी दाल बराबर ,
और ऊपर से मुझे समझाती है
प्यार से ये बात बताकर ।
कि शाकाहारी भोजन में
दाल भी ज़रूरी है ,
क्योंकि प्रोटीन की मात्रा
तो इसी में पूरी है ।
यह सुनकर मैं अपना
सर खुजलाता हूँ ,
और दिल बहलाने के लिए
कविता लिखने बैठ जाता हूँ ।
डाइटिंग वाइटिंग छोडो , थोडा वेट बढाओ ,
वो बोली खुद की सोचो
कद्दू जैसे दिखते हो, अपना पेट घटाओ ।
मैंने कहा, सरकारी नौकर का पेट कहाँ
पेट तो नेताओं का होता है ,
धरा पर नेता ही एकमात्र प्राणी है
जो भर पेट खाता है , फिर भी भूखा होता है ।
सोने दो , मुझे नींद आ रही है ,
मैंने कहा , प्रिय सो जाओ
मुझे भी कविता याद आ रही है ।
वो चौंकी तो मैंने कहा
मैंने कविता लिखी है , ज़रा सुन लो ,
चाहो तो बदले में
तुम भी थोड़े बहुत पैसे धुन लो ।
वो झट से बोली ,
पांच सौ दोगे तो सुन लेंगे,
मैंने कहा रहने दो
हम कोई सस्ता कस्टमर ढूढ़ लेंगे ।
और देखिये आज
फ्री में आपको सुना रहा हूँ ,
और साथ ही
पूरे पांच सौ बचा रहा हूँ ।
वैसे अब मैं भी पत्नी रूप को
कुछ कुछ समझने लगा हूँ ,
और जेब में पांच सौ के बजाय
सौ सौ के ही नोट रखने लगा हूँ ।
एक जगह लिखा था
यदि पत्नी सताए तो हमें बताएं ,
हमने सोचा
चलो इन्हें भी आजमायें ।
जाकर देखा तो पत्नी पीड़ितों की
लम्बी कतार लगी थी ,
मैं ये सोचकर वापस आ गया
उस शायर ने सही बात कही थी
दुनिया में कितना ग़म है ,
और मेरा ग़म कितना कम है ।
इसीलिए कहता हूँ
हर हाल में मुस्कराते चले जाओ ,
और ग़म हर फ़िक्र को
धुएं में नहीं , हंसी में उड़ाते जाओ ।
नोट : यहाँ यह बात साफ़ करनी ज़रूरी है कि पांच सौ का नोट रखना पड़ता है गाड़ी में तेल डलवाने के लिए और छुट्टे चाय के लिए । लेकिन चाय पीने के लिए नहीं बल्कि चाय पानी के लिए ।
यह अलग बात है कि आज तक कभी खर्च करने की ज़रुरत नहीं पड़ी ।
यह अलग बात है कि आज तक कभी खर्च करने की ज़रुरत नहीं पड़ी ।
हास्य हेतु कविता उत्तम है।
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteदराल साहब वाह क्या बात है .....बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteयदि (घर की) बॉस सताए , तो किसे बताएं ? hA.AHA.HA.HA.HA.HA....एक ठंडा गिलास पानी सोने से पहले और एक उठने के बाद पिए !
ReplyDeleteरहिमन निजमन की व्यथा मन ही राख्यो गोय,
सुनी अठीलिए लोग सब , बाटे लगे न कोय
bahut majedaar kavita likhi hai.subah se sabhi serious padhte padhte ab manoranjan hua.achcha vyang hai pati ke dilon ke raaj khul rahe hain.
ReplyDeleteआपने तो पाँच सौ बचा लिए :):)
ReplyDeleteबढ़िया हास्य ..
Zabardast!
ReplyDeleteमजेदार -आपने हमारी सामूहिक पीड़ा को अभिव्यक्त किया -हम आपके चिर कृतग्य हुए !
ReplyDeleteआज की कवितामय पोस्ट से तो मजा ही आ गया है, वो भी एकदम निराला अंदाज लिये हुए।
ReplyDeleteसब कुछ कह दिया, कुछ नहीं छोडा,
अब देखो कौन कहता है, "पत्नी सताये तो हमें बताये",
ये दिल्ली में रहने वालों ने बहुत जगह पढा होगा।
हा हा हा हा, बहुत बढिया।
ReplyDelete@@शायद ही कोई पुरुष हो जो पत्नी का सताया हुआ न हो ।..
ReplyDelete--क्या खूब कहा आपनें,आभार.
अच्छा है
ReplyDeleteहम तो रोज ही बचाते हैं
पति के पैसे जो उड़ाते हैं
एक दिन पांच सौ बचा के
आप इतने में ही खुश हुए जाते हैं
आपकी इस कविता से हमें सख्त ऐतराज है, आपने इस कविता के जरिये अपनी नही बल्कि ताऊ की पोल खोली है और इसके लिये आपको मानहानि के मुकदमें से भी रूबरू करवाया जा सकता है. अत: आप आज जो पांच सौ का नोट जेब में डाले हुये हैं उसे फ़ौरन से पेश्तर ताऊ के हवाले करदें.:)
ReplyDeleteरामराम.
ब्लोग्स पर ज्ञान की बातें बहुत हो रही हैं ।
ReplyDeleteउधर अन्ना हजारे सारे देश के लोगों के लिए अनशन करने जा रहे हैं ।
हमने सोचा , चलिए देश के सभी पतियों की व्यथा को ही उजागर किया जाये ।
क्या आपने भी कभी अपनी जेब खाली पाई है ?
दुनिया में कितने ग़म है ,
ReplyDeleteये ग़म तो कितना कम है ।
ह ह ह ह !!
अब बेचारे एक नोट के पीछे पत्नी के साथ साथ ताऊ भी पीछे पड़ गया !
ReplyDeleteछुट्टे नहीं चलेंगे ताऊ ? अरे भाई चाय पानी ! !
डाक्टर साब, चाय पानी वाले छुट्टों को तो पत्नी भी हाथ नही लगाती.:) कम से कम ताऊ जैसे डकैत के स्टेंडर्ड का ख्याल करके प्रस्ताव रखिये, अब मांग पांच सौ से बढकर लाल वाले यानि एक हजार वाले नोट की रखता हूं, मंजूर हो तो बोलिये वर्ना फ़िर कोर्ट में मिलेंगे.:)
ReplyDeleteरामराम
ताऊ को हज़ार देने से बेहतर है किसी वकील को पांच सौ देकर कोर्ट में ही देख लेंगे ।
ReplyDeleteतो अब मुलाकात कोर्ट में ही होगी । :)
दराल साहब क्या बेहतरीन कविता कही है , बात भी कह दी और रुपये भी बचा लिए, nuskhe to doctor hi दे सकता है प्रमाडित. आप ऐसे ही लिखते रहे और ब्लॉग में पढ़ाते रहे स्वान्तः सुखाय. सादर
ReplyDeleteअब आप ना मानें तो आपकी मर्जी, हमारा क्या है, अबकी बार कोर्ट ही लगा लेंगे, जज भी हम ही होंगे, और वकील भी हम ही.:) कुल जमा जुर्माना बढता ही जायेगा.
ReplyDeleteरामराम
Dral sir apke 100 rupte me bcha lunga, bas 400 me cash jita dunga....
ReplyDeleteHa ha ha
bahut hi achi kavita....
Jai hind jai bharatDral sir apke 100 rupte me bcha lunga, bas 400 me cash jita dunga....
Ha ha ha
bahut hi achi kavita....
Jai hind jai bharat
@ डा. साहब ! आपकी कविता जानदार है लेकिन मर्दों की चाल भी ख़ूब है कि औरत पर ज़ुल्म ढाने के बाद उसकी छवि मज़लूम की न बन जाये इसलिए उसके सिर चोरी आदि के सत्तर इल्ज़ाम रख दिये। जिसने अपना घर-बार छोड़ दिया और सारे आसन बिना किसी बाबा से सीखे ही करके दिखाए। उसके बाद पांच सौ के नोट का ठिकाने लगा भी दिया तो क्या ???
ReplyDeleteपांच सौ रूपये लेकर तो आजकल आदमी किसी ढंग के होटल में घुस तक नहीं सकता।
अगर आप हर week शनिवार तक अपनी किसी पोस्ट का लिंक भेज दिया करें तो हम उसे अपने पाठकों के सामने रख दिया करेंगे जिससे लोगों के बीच की अजनबियत की दीवार गिरेगी और फ़ासले ख़त्म होंगे।
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
बेहतर है कि ब्लॉगर्स मीट ब्लॉग पर आयोजित हुआ करे ताकि सारी दुनिया के कोने कोने से ब्लॉगर्स एक मंच पर जमा हो सकें और विश्व को सही दिशा देने के लिए अपने विचार आपस में साझा कर सकें। इसमें बिना किसी भेदभाव के हरेक आय और हरेक आयु के ब्लॉगर्स सम्मानपूर्वक शामिल हो सकते हैं। ब्लॉग पर आयोजित होने वाली मीट में वे ब्लॉगर्स भी आ सकती हैं / आ सकते हैं जो कि किसी वजह से अजनबियों से रू ब रू नहीं होना चाहते।
हर रोज एक नई कविता सुनाइये और रोज पांच सौ बचाइये एक दिन यही ब्लोगर कहेंगे की डाक्टर साहब बड़े पैसे बचा लिया एक ब्लोगर मिट तो अब करनी ही पड़ेगी |
ReplyDeleteबहुत अच्छी व्यंग्य रचना!
ReplyDeleteहम है सस्ते कस्टमर :) मजेदार व्यंग्य ......
ReplyDeleteइस मर्ज से भला कौन बचा है।
ReplyDelete------
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
यह अंदाज़ आपका नया है .....ताऊ से भी सावधान रहें !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
सुनील कुमार जी , अब बीबी से महंगा तो कोई नहीं हो सकता ना । :)
ReplyDeleteये चीज़ें ही दाम्पत्य जीवन में रस घोले हुए है। वरना,पैसों से कोई कब खरीद पाया है यह नोंक-झोंक!
ReplyDeleteहा हा हा....
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बढ़िया हास्य है ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें.
पति...सुनो, मेरी ज़ेब में हज़ार का नोट था, मिल नहीं रहा...
ReplyDeleteपत्नी...मेरी अंगूठी भी सुबह से गायब है...
पति...तुम्हारी अंगूठी तो मिल गयी है मेरी ज़ेब से...
जय हिंद...
इस समस्या के समाधान के लिए एक ग्रुप बने अंतर -मंत्रालय ,अंतर -निगम ....जंतर मंतर पर प्रदर्शन करे .आभार आपकी सुप्रिय दस्तक प्रोत्साहन और पुनर्बलित करती है . ..कृपया यहाँ भी आयें - http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_09.html
ReplyDeleteTuesday, August 9, 2011
माहवारी से सम्बंधित आम समस्याएं और समाधान ...(.कृपया यहाँ भी पधारें -).
Interesting appeal ! Loving it.
ReplyDeleteदाराल साहेब ,
ReplyDeleteआपका ये लेख सिर्फ आपका ही नहीं , हम सभी पतियों का ही है .. हा हा .. बहुत गज़ब का लिखा है सर .. बधाई स्वीकार करिये ..
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
हा...हा...बहुत बढिया..:)
ReplyDeleteइस निरंतर परिवर्तनशील प्रकृति में समय समय पर पैसे की कीमत घटती चली आई है... जब हम बच्चे थे तो जेब-खर्च के लिए एक आना मिलता था हर दिन, और तब भी काम चल जाता था :)...
ReplyDeleteजन्म दिन पर चार आने मिल जाते थे तो मन आसमान को छू जाता था (और चवन्नी अर्थात पच्चीस पैसे के सिक्के की हाल ही में मृत्यु हो गयी)... और, हमारे पिताजी अपने भूत में चले जाते थे कि कैसे उनके समय स्कूल में तीन आने की कॉपी में लिखते थे और हमें क्यूँ आठ आने की गत्ते चढ़ी कॉपी चाहिए थी! कहावत है कि 'जूता पहनने वाले को ही पता होता है कि वो कहाँ काट रहा है'...
आप की कविता पढ़ आनंद तो आया, किन्तु पांच सौ रुपये ने हिला के रख दिया है जब पता चला कि पाकिस्तान में जाली नोट छप के भारत के बाज़ार में असली नोटों के साथ मिल गए हैं!,,, सुनने में आया कि जिन लोगों के नोट जाली नोट पाया जाएगा उसे हवालात की सैर करनी पड़ सकती है! और सुना कि ए टी एम् से भी जाली नोट मिल रहे थे! जिस कारण जब भी किसी दूकान में नोट दिया तो यदि वो रख लेता था तो ऐसा लगता था कि अपना जाली नोट चल गया :) किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब उतना दबाव बहीं है आम आदमी पर...
"चिंगारी कोइ भड़के / तो सावन उसे बुझाए // सावन जो अगन लगाए / उसे कौन बुझाए?"
हम तो छुट्टे भी नहीं छोड़ते ...
ReplyDeleteहल्का फुल्का हास्य अच्छा लगा !
यदि (घर की) बॉस सताए , तो किसे बताएं --स्टिंग ओपरेशन करें ,आवाज़ रिकार्ड करलें ,मोबाइल से -सर आपका एक फोटो ले लूं ?
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Wednesday, August 10, 2011
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :एक विहंगावलोकन .
व्हाट आर दी सिम्टम्स ऑफ़ "पोली -सिस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम" ?
उत्तम हास्य कविता ..हँसने का बहाना दिया ...धन्यवाद..
ReplyDeleteवो झट से बोली ,
ReplyDeleteपांच सौ दोगे तो सुन लेंगे,
मैंने कहा रहने दो
हम कोई सस्ता कस्टमर ढूढ़ लेंगे ।.... maza aa gaya , to bhai, gam pe dhul daalo , kahkaha laga lo
free comments dikha hi dijiye dr sahab
डॉ साहब आपकी टिपण्णी मेरे लिए बहुमूल्य है .आभार .
ReplyDeleteआशा है ये कविता केवल निर्मल हास्य के लिए ही है ... हा हा ... पर मज़ा आ गया डाक्टर साहब ...
ReplyDeletebahut achhi kavita hai
ReplyDelete