आज मूढ़ लाईट करने के लिए थोडा कुछ हल्का फुल्का हो जाए --
डॉक्टर मानसिक रोगी से : तुम पागल कैसे हुए ?
रोगी : मैंने एक विधवा से शादी कर ली ---- उसकी ज़वान बेटी से मेरे बाप ने शादी कर ली ----तो मेरी वो बेटी मेरी मां बन गई ---- उनके घर बेटी हुई तो वो मेरी बहन हुई ----मगर मैं उसकी नानी का शौहर था , इसलिए वो मेरी नवासी भी हुई ----इसी तरह मेरा बेटा अपनी दादी का भाई बन गया और मैं अपने बेटे का भांजा और मेरा बाप मेरा दामाद बन गया और मेरा बेटा अपने दादा का साला बन गया और ----और ----
डॉक्टर : करदे साले मुझे भी पागल करदे ।
नोट : कृपया इसे बस हास्य के रूप में ही लें । चिकित्सा क्षेत्र में आजकल इस शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता ।
Saturday, August 27, 2011
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हा ..हा...हा..
ReplyDeleteडॉक्टर का क्या हुआ फिर ?
मेरे ब्लॉग से क्यूँ मुहँ फेरे हैं,डॉक्टर साहब.
हा हा हा ... हम तो अभी भी घूम रहे हैं इस चक्र में ....
ReplyDeleteलो हो गया मूड लाइट, हा हा हा .......
ReplyDeleteउदासी भरे मन को हल्का करने में आपकी इस पोस्ट ने बहुत मदद की है। सुन्दर हास्य। इस joke में mathematical calculalation जबरदस्त है।
ReplyDeleteउलझे हुये रिश्ते भी सुलझ गये यहां तो.:)
ReplyDeleteरामराम
वाह।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
हमने भी जीवन के साठ बसन्त पार कर लिए हैं।
पके पान हैं न जाने कब मुरझा जाएँ।
हा हा हा ... बहुत बढ़िया.
ReplyDeletejust mind boggling!:)
ReplyDeleteडाक्टर कौन है?
ReplyDeleteकहाँ हैं वह केंडल पत्रकार "कुलदीप नैयर "इस विधाई पल में जबकि कोलकता के युवक युवतियां जश्न पर्व पर अन्ना जी के ,जन मन के जश्न पर ,केंडल मार्च निकाल रहें हैं .,वही कुलदीप जी ,जो रस्मी तौर पर १४ अगस्त की रात को ही "वाघा चौकी "पर केंडल मार्च में शरीक होतें हैं .आई एस आई का पैसा डकारतें हैं और इस देश की समरसता को भंग करते हैं ,मुख्या धारा से मुसलामानों को अलगाने में ये हजरात तमाम सेक्युलर पुत्र गत ६० सालों से मुब्तिला है .भारत माता की जय बोलने पर ये कहतें हैं यह एक वर्ग की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है .इस्लाम की मूल अवधारणाओं के खिलाफ है ,ये केंडल मार्च जन मार्च है ,जन बल है .यही वह विधाई पल है जब मेडिकल कंडीशन को चुनौती देते हुए अन्ना जी ने जन लोक पाल प्रस्ताव की संसद द्वारा स्वीकृति पर सिंह नाद करते हुए ,हुंकारते हुए कहा-ये जनता की जीत है .निरवीर्य ,निर -तेज़ पड़ी संसद में थोड़ी आंच लौटी है अन्ना जी की मार्फ़त वगरना संसद तो एक चहार -दीवारी बनके रह गईं थी .और सांसद वोट का सिर
ReplyDeleteये भाई साहब जन मन की जीत है ,देश की मेधा की जीत है ,सभी अन्नाओं की जीत है ,उस देश दुलारे अन्ना की जीत है जो मेडिकल कंडीशन को चुनौती देता हुआ इस पल में राष्ट्रीय जोश और अतिरिक्त उल्लास से भरा है .यही बल है धनात्मक सोच का ,जो मेडिकल कंडीशन का अतिक्रमण करता है .
रोगी की रोगी और डॉ की डॉ जाने इस विधाई पल में हम तो ख़ुशी से पगलाए हैं .
:):) गज़ब की रिश्तेदारी है
ReplyDeleteवीरुभाई , अंत भला सो सब भला । अंत में सच्चाई की जीत हुई , हमें तो इसी का फक्र है ।
ReplyDeleteइसलिए पहले ही जश्न मनाने की तैयारी कर ली थी ।
अब आप भी गुस्सा छोडिये और थोडा हंस लीजिये ।
सचमुच ही हंसी छूट गई।
ReplyDelete.
ReplyDeleteहऽऽ हा ऽऽऽ हाआआआआ
हूऽऽ… हो……… हः…
डॉक्टर साहब कुछ पढ़ते हुए बहुत दिन बाद ऑरीजनल हंसी आई है … शुक्रिया !
…और , आपका परिचय देते हुए बच्चों को भी सुनाया … मेरे पूरे परिवार की ओर से शुक्रिया ! धन्यवाद !!
हा ..हा...हा..
ReplyDeleteहा ..हा...हा..
हा ..हा...हा..
:)
ऐसे ही एक प्राचीन 'पागलखाना' था, एक नदी के किनारे और दूसरे किनारे पर शहर था जिसे एक पुल जोड़ता था...
ReplyDeleteएक शाम चार डोक्टरों को शहर में पार्टी का न्योता था किन्तु उनकी एम्बुलेंस दूसरी ओर ऊँचाई के कारण नहीं जा पायी क्यूंकि उसमें पहले एक फुटबाल के गोल समान एक बाधा थी :(
बहुत सोच एक को याद आया कि एक बीमार पहले मोटर मैकेनिक होता था सो उसको बुला लिया गया...
उसने चारों पहिये से थोड़ी थोड़ी हवा निकाल उनको विघ्नहर्ता के समान बाधा से पार करा दिया :)
डोक्टरों ने समवेत स्वर में कहा "वाह भाई! हम तो समझे थे तुम पागल हो"!
उसने कहा मैं पागल अवश्य हूँ, किन्तु बुद्धू नहीं हूँ :)
समवेत = समन्वित (?)
ReplyDeleteदराल साहब , वो डाक्टर कहा है .... निर्मल हास्य परोशा है बधाई
ReplyDeleteहा हा हा ! राजेन्द्र जी , पढ़कर तो हम भी पहली बार ही हँसे थे ।
ReplyDeleteलेकिन ये दीपक बाबा न जाने क्यों हंसकर भी मुस्करा रहे हैं । :)
उसने कहा मैं पागल अवश्य हूँ, किन्तु बुद्धू नहीं हूँ :)
जे सी जी , उसने मान लिया इसका मतलब वो पागल था ही नहीं ।
और............. से भी आगे बता दो,
ReplyDeleteजब और तक इतना दिलचस्प है तो आगे तो पूरा बवंडर मच जायेगा।
संदीप जी , सारी समीकरण तो हमने बता दी । अब आगे का हिसाब आप खुद लगा लो । :)
ReplyDeleteदराल साहब,
ReplyDeleteअगर मैं इस हिसाब को लगाने बैठ गया तो,
आपके पडोस के अस्पताल में मेरे लिये भी एक खटिया बुक करनी पडेगी,
इसलिये मैं तो इस हिसाब को दूर से ही राम-राम करता हूँ।
डॉक्टर साहिब, अधिकतर हम सभी केवल एक-दो विषय में सिद्ध (एक्सपर्ट) हैं किन्तु 'सिद्ध पुरुष' (ऑल राउंडर) नहीं हैं, इस लिए मार खा जाते हैं, ठगे जाते हैं,,, जैसे अनपढ़ / थोडा पढ़े लिखे किन्तु चतुर लोग करोड़ों भारतीय जनता को मूर्ख बना लाखों करोड़ों रुपैया विदेश में जमा करा गए,,, और ६४ वर्ष बाद एक बाबा / 'अन्ना' (युधिस्ठिर समान 'बड़ा भाई') ने विष के प्रभाव से बेहोश १२० करोड़ भारतीय को 'सत्य' से अवगत करा जागृत करने का प्रयास किया है :)
ReplyDeleteजे सी जी , जो एक करोड़ बच गए , क्या ये वे लोग हैं जिनका पैसा स्विस बैंकों में जमा है ? :)
ReplyDeleteवेचारा साइकियैट्रिस्ट, अभी तक इसी ग़लत फ़हमी में जीता चला आ रहा था कि वहीं समझदार है :)
ReplyDeleteहा हा हा ...
ReplyDelete# JC जी !
ReplyDeleteलतीफ़ा तो आपका भी कम नहीं … हालांकि डॉक्टर दराल साहब जैसा लोंग लाफ्टर देने वाला नहीं :)
आप मेरे यहां तो ख़ैर कभी नहीं आए … लेकिन आपकी प्रोफाइल खोल कर मैंने कई बार आपका ब्लॉग लिंक अवश्य तलाशा है , लेकिन नज़र नहीं आया :(
… अगर आपका ब्लॉग हो तो कृपया लिंक देने की कृपा करें
इन में वो भी आते हैं जो जागृत तो हैं, किन्तु लाचार हैं - अभिमन्यु समान हैं - जो वर्तमान महारथीयों द्वारा रचित चक्रव्यूह, शब्द-जाल, को तोडना नहीं जानते (यह भी शायद जानते हैं कि विष्णु ने एक शब्द ॐ से ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड बनाया था) ... केवल अपना क्रोध वोट न दे घर में बैठ, अथवा ब्लॉग में लिख, जताते हैं, जिससे एक मक्खी भी नहीं मरती! आदि, आदि...
ReplyDeleteगणित तो आपका अच्छा लग रहा है... जैसे मुझे कोई कहता है वो फलां फलां के भतीजे का चाचा है तो दिमाग घूम जाता है!,,, मुझे तो यह ही नहीं पता कि 'मैं' कैसे शिव हो सकता हूँ?! जब पढता हूँ "शिवोहम / तत त्वम् असी"! :)
क्या मैं भोला नाथ शिव का कलियुगी प्रतिबिम्ब हो सकता हूँ - भोला राम ?????? :)
हंसी छूट ही नहीं रही अब तो ,कसके पकड़ लिया है मुझको हा हा हा
ReplyDeleteराजेन्द्र स्वर्णकार जी, मैंने ब्लॉगजगत में एक फ़कीर समान फरवरी २००५ से हूँ, लगातार लिख रहा हूँ भले ही में नयी दिल्ली में रहूँ अथवा मुंबई में (यदि दामाद/ बेटी/ उनके बेटे का लैप टॉप खाली मिल जाए!)... मैंने टिप्पणीकार का ही रोल करने की ठानी, जब सर्व प्रथम एक अंग्रेजी के ब्लॉग में मेरे मन में उभरने वाले विचार लिखना आरंभ किया...
ReplyDeleteविज्ञान/ इंजीनियरिंग का छात्र होने के कारण हिंदी लिखने का अभ्यास वर्षों से छूट गया था , सो रवीश जी की 'नई सड़क' पर भी जाने लगा एनं डी टीवी में उन्हें देख कर,,, एवं अन्य कई अंग्रेजी और हिंदी के ब्लॉग पर भी...
जहां तक मेरे ख्याल है मैं आपके बहुत उंदर ब्लॉग पर एक दो बार (होली के अवसर पर?) आ चुका हूँ...
धन्यवाद!
# आदरणीय JC जी !
ReplyDeleteप्रणाम है आपकी स्मृति को …
हां , आप दो बार मेरे यहां पधार चुके हैं ( अभी देखा तो आपकी बात सही निकली :)… )
एक बार नवसंवत्सर के अवसर पर और एक बार होली की पोस्ट पर …
आवश्यक हुआ तो आपसे आइंदा मेल माध्यम से संवाद होगा … शुभकामनाएं !
दराल साहब के यहां आपसे संवाद का सुअवसर मिला , उनके प्रति भी आभार !
ha ha LOL
ReplyDeletewhat's this LOL?
ReplyDeleteरिश्तों की ये उलझी हुई फांक (चुटकले में वर्णित )अभी तक समझ न आई ,आज दोबारा पढ़ा अभी १०%बूझना बाकी है .आपके स्नेहाशीष से भरी "ब्लोगिया दस्तक से हम वैसे ही प्रसन्न अहिं जैसे आज अन्ना जी आप हमारा जन गण मन हैं .बधाई ,अर्थ पूर्ण व्यंग्यात्मक चुटकले केलिए ..
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Saturday, August 27, 2011
अन्ना हजारे ने समय को शीर्षासन करवा दिया है ,समय परास्त हुआ जन मन अन्ना विजयी .
LOL = BSP (?) Bahut Sara Pyar!? (Bahujan Samaj Party naheen, shaayad Bahujan Hitay (Party)! :)
ReplyDeletebhai ji, pranaam ..... lateefe ka itna shaandar prayog kam hi dekhne ko milta hai.... mazaa aa gaya....
ReplyDeleteor haan 18 v 22 v shayad 23 ko bhi dilli rahunga.. aapse milne ka man hai..... miloonga...
कोई डिस्केल्मर की ज़रूरत नहीं... हम जानते है चिकित्सा क्षेत्र कैसा है:)
ReplyDeleteएक मछली बेचने वाले की दूकान पर 'यहाँ ताज़ा मछली बिकती है' पढ़, एक ग्राहक ने टोका कि 'यहाँ' शब्द की आवश्यकता नहीं है! यहीं तो बेचने बैठे हो!
ReplyDelete'ताज़ा मछली बिकती है' अब लिखा गया, तो एक अन्य ग्राहक ने कहा 'ताज़ा'! व्यर्थ है जब मरी मछली बेचते हो!
अब लिखा गया 'मछली बिकती है' तो एक ग्राहक ने अब टोका, "बदबू से दूरसे पता चल जाता है की मछली बिकती है!
अब केवल 'बिकती है' रह गया तो एक ग्राहक बोला, "बाज़ार में बैठे हो तो कुछ न कुछ बेचोगे ही"
और उसका बोर्ड ही हट गया!
बहुत ही बढ़िया और मज़ेदार लगा ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बड़ा भारी पेंच है यह दो...पागल करके ही मानेगा.
ReplyDeleteयोगेन्द्र जी , आपसे मुलाकात अवश्य करेंगे ।
ReplyDeleteहा हा हा ! ये भी बढ़िया रहा जे सी जी ।
समीर जी, आइरीन आ कर चली गयी सही सलामत?
ReplyDeleteसचमुच संसार इतना छोटा हो गया है कि पहले चिंता केवल 'भारत' की होती थी, किन्तु अब भारतीयों के, और जैसा डॉक्टर दराल ने भी फ़ॉर्मूला बताया, 'रिश्तेदारों' के भी सब जगह होने से चिंता का क्षेत्र भी बढ़ गया है.... कहीं सुनामी आ रही है तो कहीं चक्र-वात,,, और कई दिनों से टीवी ने भी अन्ना को ले कर दिमाग खराब किया हुआ है... कोई 'पागल' न होए तो क्या होगा???
mazedaar........ comments bhee lacchedar......
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