लेकिन पुरुष इन परिस्तिथियों का नाजायज़ फायदा उठाते हुए सहकर्मी स्त्रियों का यौन उत्पीड़न करने से बाज़ नहीं आते . देश में काम करने वाली ६० % महिलाओं का कहना है--कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न व्यापक तौर पर देखा गया है . इससे अक्सर कार्यस्थल पर महिलाओं में असुरक्षा की भावना बनी रहती है .
१३ अगस्त १९९७ को उच्चतम न्यायलय ने एक एतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा की कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न एक कटु सत्य है और यह न केवल मानव अधिकार का बल्कि व्यक्ति विशेष के मूल अधिकार का भी उल्लंघन है .
इसके फलस्वरूप महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए अब सभी राज्यों में राज्य शिकायत समिति का गठन करने का आह्वान किया गया है . दिल्ली में यह कार्य दिल्ली महिला आयोग के अंतर्गत किया जा रहा है जो १९९६ से कार्यरत है .
यौन उत्पीड़न क्या होता है ?
उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशिका अनुसार यौन उत्पीड़न है --अवांछित यौन निर्धारित व्यवहार . जैसे :
* शारीरिक संपर्क
* शारीरिक संबंधों की मांग
* यौन सम्बंधित वार्तालाप
* पोर्न सामग्री का प्रदर्शन
* अन्य अवांछित मौखिक या अमौखिक यौन आचार
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न :
जब यह अवांछित व्यवहार रोजगार के लिए शर्त बन जाए और उसका प्रभाव कर्मचारी के रोजगार अवसर पर पड़ने लगे
जैसे --
* पदोन्नति के लिए सेक्सुअल फेवर मांगना
* बॉस द्वारा व्यक्तिगत जीवन में हस्तप्क्षेप करना
* यौन वार्तालाप या अश्लील इशारे करना
* समूह में सेक्स जोक्स सुनाना
* किसी भी रूप में कार्यस्थल पर यौन सामग्री का सार्वजानिक प्रदर्शन करना .
कार्यस्थल किसे कहते हैं ?
कोई भी जगह जहाँ कर्मचारी और नियोक्ता का कार्यकारी सम्बन्ध होता है
जैसे --
* कार्यालय परिसर
* कार्यालय से सम्बंधित क्षेत्र जैसे पार्किंग , कैंटीन आदि
* अन्य स्थान जहाँ कार्यालय से सम्बंधित आधिकारिक रूप में जाना हो
यौन उत्पीड़न के प्रकार :
१) वर्बल --यौन सम्बंधित टीका टिप्पणी, भद्दे मजाक , वस्त्र या शारीरिक टिप्पणी , डेट या यौन सम्बन्ध की मांग , अश्लील मोबाईल सन्देश या काल , पोर्नोग्राफी आदि .
२) नॉन वर्बल -- घूरना , अश्लील हाव भाव , अभद्र इशारेबाजी .
३) विजुअल -- अश्लील सामग्री रखना जैसे पोस्टर्स , पुस्तकें , मैगजीन , नोट्स , सेक्स ओब्जेक्ट्स आदि .
४) शारीरिक संपर्क -- स्पर्श , हगिंग , किसिंग , सट कर बैठना या खड़े होना , रास्ता रोकना , पीछा करना , और बलात्कार .
यौन उत्पीड़न दो तरह से किये जाते हैं :
१) प्रलोभन देकर --पदोन्नति या सैलरी बढ़ाना , या कोई और फेवर
२) विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न कर .
यौन उत्पीड़न के महिलाओं पर प्रभाव :
* सामाजिक संबंधों में मुश्किलें
* शारीरिक प्रभाव --नींद न आना , भूख न लगना , सरदर्द , पेट दर्द , कमजोरी , डिप्रेशन और अनुपस्थित रहना .
*आर्थिक प्रभाव -- पदोन्नति न मिलने से , अवसर न मिलने से या रोजगार छूटने की नौबत आने से .
* करियर में रुकावट
* मानसिक आघात
यौन उत्पीड़न को कैसे रोका जाए ?
यदि आप यौन उत्पीड़न के शिकार हैं तो सबसे पहले :
१) बॉस को ना कहना सीखें .
बॉस को बता दो की जो कुछ वो कर रहे हैं , सही नहीं है और आपको इससे आपत्ति है .
अपनी बात को बॉस को लिखित में देकर अपना विरोध प्रकट करें . एक कॉपी अपने पास रखें और कोई साक्षी भी साथ रखें .
किसी साथी को भी बता सकते हैं ताकि वह बॉस से बात कर सके .
२) अपनी शिकायत , और पूरी घटना का ब्यौरा लिखकर दस्तावेज़ के रूप में तैयार रखें .
३) अपने किसी साथी को जिसपर आप विश्वास करते हों , बता दें और उसका समर्थन प्राप्त करें .
४) अपने द्वारा किये गए कार्यों का ब्यौरा रखें ताकि आप पर कामचोरी का इलज़ाम ना लगाया जा सके .
५) ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश करें जो आप की तरह पीड़ित हो . इसे आप के केस को बल मिलेगा .
६) अपने कार्यालय की शिकायत समिति में शिकायत दर्ज कराएँ .
विभागीय शिकायत समिति :
न्यायालय के आदेश पर अब सभी कार्यालयों में एक विभागीय समिति का गठन करना अनिवार्य है जो इस तरह की शिकायतों पर सुनवाई कर उचित निर्णय ले सकते हैं .
समिति की अध्यक्ष का महिला होना अनिवार्य है और समिति में कम से कम ५० % मेम्बर्स का महिला होना ज़रूरी है . साथ ही एक एन जी ओ मेम्बर भी लाज़मी है .
समिति पूरी सुनवाई करने के बाद ३० दिन के अन्दर अपनी रिपोर्ट विभाग अध्यक्ष को सौंप देगी जो समिति द्वारा सुझाए गए निर्णय और दंड पर विचार कर यथोचित कार्यवाही करेंगे .
अभियुक्त पर विभागीय कार्यवाही के साथ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत भी कार्यवाही की जा सकती है .
पीड़ित या अभियुक्त --दोनों को हक़ है की निर्णय से असहमत होने पर राज्य समिति में जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं . राज्य समिति का फैसला मान्य न होने पर उच्च न्यायालय में जाया जा सकता है .
नोट : आम तौर पर अभियुक्त जितना वरिष्ठ अफसर होगा , दोषी पाए जाने पर सजा भी उतनी ही ज्यादा होगी . इस प्रक्रिया के अंतर्गत पहला केस एक कंपनी के चेयरमेन का था जिसे यौन उत्पीड़न का दोषी पाए जाने पर सर्विस से डिसमिस कर दिया गया था . केस सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन वहां भी निर्णय बरक़रार रहा और दोषी को सर्विस से हाथ धोना पड़ा .
आशा है इसे पढ़कर कार्यरत महिलाओं को कुछ सबल मिलेगा .
यौन उत्पीड़न को कैसे रोका जाए ?
यदि आप यौन उत्पीड़न के शिकार हैं तो सबसे पहले :
१) बॉस को ना कहना सीखें .
बॉस को बता दो की जो कुछ वो कर रहे हैं , सही नहीं है और आपको इससे आपत्ति है .
अपनी बात को बॉस को लिखित में देकर अपना विरोध प्रकट करें . एक कॉपी अपने पास रखें और कोई साक्षी भी साथ रखें .
किसी साथी को भी बता सकते हैं ताकि वह बॉस से बात कर सके .
२) अपनी शिकायत , और पूरी घटना का ब्यौरा लिखकर दस्तावेज़ के रूप में तैयार रखें .
३) अपने किसी साथी को जिसपर आप विश्वास करते हों , बता दें और उसका समर्थन प्राप्त करें .
४) अपने द्वारा किये गए कार्यों का ब्यौरा रखें ताकि आप पर कामचोरी का इलज़ाम ना लगाया जा सके .
५) ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश करें जो आप की तरह पीड़ित हो . इसे आप के केस को बल मिलेगा .
६) अपने कार्यालय की शिकायत समिति में शिकायत दर्ज कराएँ .
विभागीय शिकायत समिति :
न्यायालय के आदेश पर अब सभी कार्यालयों में एक विभागीय समिति का गठन करना अनिवार्य है जो इस तरह की शिकायतों पर सुनवाई कर उचित निर्णय ले सकते हैं .
समिति की अध्यक्ष का महिला होना अनिवार्य है और समिति में कम से कम ५० % मेम्बर्स का महिला होना ज़रूरी है . साथ ही एक एन जी ओ मेम्बर भी लाज़मी है .
समिति पूरी सुनवाई करने के बाद ३० दिन के अन्दर अपनी रिपोर्ट विभाग अध्यक्ष को सौंप देगी जो समिति द्वारा सुझाए गए निर्णय और दंड पर विचार कर यथोचित कार्यवाही करेंगे .
अभियुक्त पर विभागीय कार्यवाही के साथ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत भी कार्यवाही की जा सकती है .
पीड़ित या अभियुक्त --दोनों को हक़ है की निर्णय से असहमत होने पर राज्य समिति में जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं . राज्य समिति का फैसला मान्य न होने पर उच्च न्यायालय में जाया जा सकता है .
नोट : आम तौर पर अभियुक्त जितना वरिष्ठ अफसर होगा , दोषी पाए जाने पर सजा भी उतनी ही ज्यादा होगी . इस प्रक्रिया के अंतर्गत पहला केस एक कंपनी के चेयरमेन का था जिसे यौन उत्पीड़न का दोषी पाए जाने पर सर्विस से डिसमिस कर दिया गया था . केस सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन वहां भी निर्णय बरक़रार रहा और दोषी को सर्विस से हाथ धोना पड़ा .
आशा है इसे पढ़कर कार्यरत महिलाओं को कुछ सबल मिलेगा .
bhai ji ram-ram....
ReplyDeletejo mahilaen khud ko seedi banati hon yane swechcha se shoshan kariti ho un par bhi kuchh prakash daliyega...or haan anyatha n len to
ise pad kar ek anurodh...bhi ki
apna ek accont Facebook par bhi banaen or vahan susre samlaingi jis swachhanda se besharmi ki dhoom machaye hai un par bhi ek vichar0ttejak aalekh taiyaar karen.....
sadhuwaad
योगेन्द्र जी , यहाँ बात दफ्तरों में काम करने वाली लाखों महिलाओं की हो रही है जिनको यौन उत्पीडन से बचाने के लिए सरकार ने योजना बनाई है ।
ReplyDeleteफेसबुक खाता मैंने बंद कर दिया है । वज़ह आप स्वयं ही बता चुके हैं ।
लेकिन इस लिंक पर पढ़िए -http://tsdaral.blogspot.com/2011/07/blog-post_06.html
वैसे डा० साहब, अगर आप गौर करें तो बौस उत्पीडन से सम्बंधित घटनाओं में पिछले कुछ सालों में काफी कमी आई है क्योंकि दोनों की सोच में मेच्योरिटी आई है ! और जो कुछ घटाने होती भी है उनमे से कुछ को छोड़ कर दोनों पक्षों की
ReplyDeleteगलती से ही अधिक होती है ! मेरा मानना है कि बौस नामक प्राणी अपने सगे बाप का भी नहीं होता , इसलिए उससे कोई भावनात्मक सम्बन्ध रखना, यानि बेवकूफी ! अपना काम इमानदारी से करो और छूट्टी, यही एक पढीलिखी युवती/ महिला की समझदारी कही जायेगी !
सही कहा गोदियाल जी ।
ReplyDeleteलेकिन कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन बॉस द्वारा ही नहीं , अपितु किसी भी कर्मचारी या व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है । इसलिए महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है ।
काफ़ी कुछ नया जानने को मिला है इस लेख से
ReplyDeleteएक जरुरी पोस्ट के लिए आभार ....
ReplyDeleteबहुत लोग आ जायेंगे इस पोस्ट की ज़द में भाई जी !
ReplyDeleteइस एक्ट के बारे में जागरूक नहीं हैं लोग , अधिकतर जगह द्विअर्थी बातें मज़ाक के नाम पर जायज़ बना दी जाती हैं और लड़कियां लिहाज़ से विरोध नहीं करतीं !
बढ़िया जानकारी के लिए आभार आपका !
जरूरी जानकारी ,लेकिन लोंगो को अकल आये तब न, क़ानून बनाने मात्र से कहाँ यह समस्या हल होने वाली है -सोच में बदलाव की जरूरत है.
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक और सटीक जानकारी आपने विस्तार पूर्वक दी, आशा है इससे लोग कुछ सबक अवश्य लेंगे.
ReplyDeleteरामराम
यौन उत्पीड़न के लिए उपाय तो सही बताए हैं। पर सामाजिक मूल्यों को बदलने के लिए क्या किया जा रहा है? उस ओर क्या किया जाना चाहिए?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी प्रदान करती पोस्ट. यह जागरूकता भी जरूरी है. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी युक्त पोस्ट ..
ReplyDeleteबहुत काम की पोस्ट है
ReplyDelete@अपने द्वारा किये गए कार्यों का ब्यौरा रखें ताकि आप पर कामचोरी का इलज़ाम ना लगाया जा सके .
ये ख़ास तौर पर ध्यान में रखी जाने वाली बात लगी ..बहुत अच्छे सुझाव हैं
डॉ साहब -इस विषय पर पूरी जानकारी दी है आपने ....
ReplyDeleteमगर एक सवाल जेहन में घूम रहा है ..
क्या देश में ऐसा भी कोई क़ानून है जो महिला द्वारा पुरुष का कार्यस्थल -यौन शोषण से सम्बन्धित हो!
यह तो जेंडर बायस है ! क्या महिलाओं द्वारा पुरुष शोषण नहीं होता ?
काश उपयोगी हो और बेजा इस्तेमाल न हो.
ReplyDeleteजन-चेतना की यह पोस्ट भी बेहद उपयोगी है।
ReplyDeleteइस प्रकार की बातों पर अंकुश लगाने के लिए अपने प्राचीन मूल्यों की पुनर्स्थापना करनी होगी। क़ानूनों का उल्लंघन करना तो कानून विशेषज्ञ ही अपराधियों को सिखाते हैं। इसलिए नेक लोगों को कानून का लाभ नहीं मिल पाता है।
मिश्र जी के प्रश्न के उत्तर का इन्तजार है
ReplyDeleteसावधानी में ही समझदारी है...
ReplyDeleteलेकिन डॉक्टर साहब सिक्के के दो पहलुओं की तरह इसकी भी दूसरी साइड हो सकती है...पंद्रह साल पहले मेरठ में रिपोर्टिंग करते एक वाकया मेरे सामने आया था...वहां यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर को फंसाने के लिए उनके राइवल कैंप ने एक लड़की को उन पर शोषण का आरोप लगाने के लिए तैयार कर लिया...मेरे पास भी वो लड़की दो-तीन लोगों के साथ आई..उनमें एक छात्र नेता भी था...मकसद यही था मैं अखबार में रिपोर्ट लगाऊं...मैं नया नया था, अगर वो स्टोरी करता तो रातों-रात रिपोर्टिंग में चमक जाता...लेकिन मेरे सिक्स्थ सेंस ने इसकी इजाज़त नहीं दी...मैं जिस प्रोफेसर पर आरोप लगा था, सीधे उनके घर गया...प्रोफेसर घर पर नहीं थे...मेरी उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चों से बात हुई...उनके घर के प्यार भरे माहौल से ही काफी समझ आ गया...मैंने पड़ताल की तो पता चला कि उन प्रोफेसर का प्रमोशन हेड ऑफ द डिपार्टमेंट के लिए ड्यू था...उन्हें रास्ते से हटाने के लिए ही सारा प्रपंच रचा जा रहा था...ऐसे में अगर कोई गलत आरोप लगा दे तो दूसरे का जीवन भी बर्बाद हो सकता है...
जय हिंद...
Very useful and informative post . Such awareness is a must among all.
ReplyDeletebahut jankari deti hui post mahilaon ko sambal milega.bahut chote padon par kaam karne vaali bahut si mahilaayen to yah bhi nahi jaanti ki is tarah ka koi kanoon hai.
ReplyDeleteयदि थोड़े से शब्दों में कहने का प्रयास करें तो कह सकते हैं "प्रभू की माया अपरमपार है"!
ReplyDeleteकहते हैं, "ताला तोड़ने वाला ताला बनाने वाले से हमेशा एक कदम आगे रहता है",,,
वैसे ही कितने भी कानून बनालो कोई भी स्थायी हल नहीं निकल पाता...
फिर भी कुछ समय तक तो नए कानून कुछेक को तो लाभ पहुंचाते ही हैं...
बहुत उपयोगी जानकारी !
ReplyDeleteसतीश जी , अब सरकार भी जागरूकता पर ध्यान दे रही है । इसीलिए समितियों का गठन किया जा रहा है ।
ReplyDeleteडॉ मिश्र जी , कानून लागु होगा तो सोच भी बदलनी ही पड़ेगी , वर्ना अंजाम भयंकर भी हो सकता है , पुरुषों के लिए ।
द्विवेदी जी , सामाजिक मूल्यों को बदलने का काम आप और हम जैसे नागरिकों का है । सब काम सरकार नहीं कर सकती ।
यह तो जेंडर बायस है ! क्या महिलाओं द्वारा पुरुष शोषण नहीं होता ?--
ReplyDeleteअरविंद जी , यही सवाल हमने भी किया था कार्यशाला में ।
बेशक ऐसा कोई कानून नहीं बना है अभी जो पुरुषों को महिलाओं से बचाए ।
लेकिन इसके पीछे जो कारण है वह यह है कि सदियों से पुरुष प्रधान समाज में नारी का शोषण होता आया है --घर , ऑफिस यहाँ तक कि राह चलते भी । दूसरे पुरुषों के शोषण की घटनाएँ आम नहीं बल्कि अवसाद हैं । इसलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया गया है ।
वैसे भी रोज अख़बार में महिलाओं पर अत्याचार की ही आ रही हैं न कि पुरुषों की ।
अब एक काम की बात --कानून की दृष्टि में यदि पति adultry करता है तो गुनहगार है , लेकिन पत्नी नहीं ।
अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है ।
Global Agrawal-- आप के सवाल का भी ज़वाब यही है ।
खुशदीप --इस बात पर भी विचार हुआ था । यही माना गया कि कोई भी गैरतमंद स्त्री बिना वज़ह ऐसा इलज़ाम नहीं लगाएगी ।
ReplyDeleteज़रा गौर फरमाएं कि किसी भी रेप केस की सुनवाई में विक्टिम के लिए यह अनुभव रेप से भी ज्यादा कष्टदायक होता है ।
फिर भी जाँच समिति का काम ही यही है कि बात की तह तक पहुंचे और दोषी को सजा दिलाये ।
राजस्थान में भंवरी सामूहिक बलात्कार केस और चंडीगढ़ में एक आई पी एस अफसर द्वारा एक आई ए एस महिला ऑफिसर के साथ छेड़खानी का केस इस मामले में एक मील का पत्थर साबित हुआ है ।
जहाँ भंवरी केस अभी तक चल रहा है , वहीँ चंडीगढ़ केस में दोषी को सजा भी हुई और जुर्माना भी ।
बहुत उपयोगी जानकारी !
ReplyDeleteपोस्ट पर आपका स्वागत है
दोस्ती - एक प्रतियोगिता हैं
डॉक्टर साहब ,
ReplyDeleteसमाज में सफेदपोश पुरुष ही नहीं महिलाएं भी होती हैं
सुनते आए हैं अभिजात्य वर्ग की धनाढ़य महिलाओं से महानगरों में वाकायदा किशोर वय के 'पुरुष वेश्या' अच्छी ख़ासी कमाई करते हैं …
… बहरहाल बहुत जानकारीवर्द्धक पोस्ट के लिए आभार !
अरे वाह आप तो बहुत अनुभवी हैं इन बातों के भी!
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट है जी!
कानून किसी भी पक्ष के संरक्षण के लिए बने, उसका दुरुपयोग तो होता ही है, जिस तरह दहेज कानून में अधिकतर शिकायतों में ननद और जंवाई का नाम लिख ही दिया जाता। जबकि कइयों का विवाद से संबंध ही नहीं होता उन्हे भी घसीट लिया जाता है।
ReplyDeleteअगर निष्पक्ष विवेचन हो तो कानून भी प्रभावी ढंग से काम करता है। परन्तु ऐसा संभव नही होता।
अच्छी जानकारी के लिए आभार
achchhee jaankaaree. Lekin aajkal to Ladies bhee itnaa khul kar baat kartee hain ki---khair purushon ko bhee saawadhaan rahne kee jaroorat hai ,kyon ki boss agar----huaa to ???
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी के लिए आभार
ReplyDeletekya ye baaten mardo pe bhi lagu hoti hai??
ReplyDeleteविस्तारित रूप से आपने बहुत बढ़िया, उपयोगी, महत्वपूर्ण और सटीक जानकारी दिया है ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
राजेन्द्र जी , स्वेच्छा से कोई कुछ करे तो क्या किया जा सकता है ।
ReplyDeleteशास्त्री जी , सम्बंधित समिति के सदस्य के रूप में अनुभव तो होगा ही ।
ललित जी , अभी तो उपयोग ही नहीं हुआ , दुरूपयोग तो बाद की बात है ।
अजय कुमार जी , लेडिज का खुल कर बात करने का मतलब यह नहीं होता कि वो खिलौना होती हैं । यह तो बदलते समय का प्रभाव है । इसीलिए और भी ज़रूरी है कि बराबर का समझा जाये ।
सिन्हा जी , मर्दों पर अभी लागु नहीं होती ।
achi jaankari mili..... kash purush warg bhi kuch samjhen....
ReplyDeleteaap ke blog par aakar achha laga,,,,
jai hind jai bharat
बहुत ही जानकारीपूर्ण पोस्ट है..पर अक्सर शिकायत करनेवाली महिलओं को न्याय नहीं मिलता है....कई प्रकरणों के बारे में पढ़ चुकी हूँ...बहुत ही क्षोभनीय है यह सब.
ReplyDeleteरश्मि जी , अब हर कार्यालय में एक विभागीय शिकायत समिति का गठन किया जायेगा । इसकी अध्यक्ष एक महिला होगी और कम से कम ५० % सदस्य भी महिलाएं ही होंगी । एक सदस्य महिला किसी एन जी ओ की तरफ से होगी जिसका उपस्थित होना अनिवार्य होगा ।
ReplyDeleteइस तरह जहाँ तक संभव होगा पीड़ित महिला के साथ न्याय किया जायेगा ।
अपने अस्पताल में मैं भी इस समिति का सदस्य रहूँगा ।
आपकी ये पोस्ट पढ़ी...और उसके बाद ये खबर..
ReplyDeleteउल्ल्हासनगर की 'संगीता लहाने' ने जो उल्लासनगर म्युनिसिपल कारपोरेशन के 'शिक्षा विभाग' में कार्यरत है..अपने विभाग के एक अफसर 'एस.बी. गायकवाड'के विरुद्ध 'यौन उत्पीडन की कई बार शिकायत की...जिसकी कोई सुनवाई नहीं हुई ...बल्कि स्थानीय नेता का साथ लेकर 'गायकवाड' ने उन्हें ही धमकाया...अंततः कोई कार्यवाई ना होती देख तंग आकर विरोधस्वरूप उसके भाई 'प्रशांत लहाने' ने UMC ऑफिस के सामने २ अगस्त की दोपहर आत्मदाह कर लिया
ये खबर यहाँ देखी जा सकती है
ये खबर यहाँ देखी जा सकती है
ये है आज का सच
जन चेतना के लिए ज़रूरी और उपयोगी पोस्ट।
ReplyDeleteरश्मि जी , बेशक सब तरह के हथकंडे अपनाये जा सकते हैं । लेकिन लड़ना तो पड़ता ही है । जैसा कि मैंने बताया चंडीगढ़ की आई ए एस ऑफिसर ने हिम्मत से लड़ाई लड़ी और दोषी आई पी एस ऑफिसर को तीन महीने की कैद और ढाई लाख रूपये जुर्माना करवाया ।
ReplyDeleteभले ही ये आज का सच हो , लेकिन इस शुरुआत का स्वागत करना चाहिए ।
स्त्रियाँ बहुत ज्यादा भुगत रही हैं ..लेकिन अपेक्षा किससे करें ?
ReplyDeleteउपाय आपने इस सामाजिक रोग से मुक्ति के अच्छे सुझाएँ हैं .समाज में नागर भाव ,सिविलिती का अभाव इसकी मूल वजह बना हुआ है .औरत को जिन्स मानने वाली सोच इसके पीछे है ,भट्टा मजूरिन क्या करे ?पुरुष को अपनी सोच बदलनी होगी ,महाविद्यालयों में भी हमने साथिन औरत के अंगों का दुर्मुखी वर्रण करते लोगों को सुना देखा है यह यौन चर्वण ,यौन बतरस जुगाली आम है पुरुषों में कार्य स्थलों पर ..अच्छी पोस्ट ..कृपया यहाँ भी - http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
ReplyDeleteऔर यहाँ भी -http://veerubhai1947.blogspot.com/और यहाँ भी -http://sb.samwaad.com
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteकृपया एक अगस्त की "दिल्लीके साथ दिल्लगी "राम राम भाई पर ज़रूर पढ़ें -http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteमहिलाओं का शोषण एक वास्तविकता है। लिहाज़ा,क़ानून ज़रूरी था। मगर,ऐसे कानूनों का दुरुपयोग करने के किस्से भी आम हो चले हैं। सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पर चिंता व्यक्त की है। कोई ऐसा प्रसंग ध्यान नहीं आता जब आरोप से पलटने वाली महिला को कोर्ट ने कोई सख़्त सज़ा सुनाई हो। "रासलीला" और "कैरेक्टर ढीला" का फर्क समझने की कोशिश होनी चाहिए।
ReplyDeleteडॉ साहब नुक्कड़ नाटक बहुत तेज़ी से सन्देश प्रसारित का र सकतें हैं इस दिशा में गैर सरकारी सरकारी तमाम संगठानों की पहल ज़रूरी है .बहुत सीअविवाहित युवतियां , महिलाएं गरीबी ,भाई बहनों के पोषण का सोच के चुप रह जातीं हैं और बहुत सी खुद को ही दोषी मान बैठतीं हैं सामाजिक ताना बाना हमारा बड़ा क्लिष्ट है .तुरता टिपण्णी की आपने आकर हम इसी स्नेह की तो बात करतें हैं" दिल्ली के साथ दिल्लगी" में (वीरुभाई १९४७.ब्लागस्पाट.कोम )एक अगस्त पोस्ट में ..
ReplyDeleteयह सच है कि महिलाएं शिकायत करने के लिए सामने नहीं आना चाहती । मजबूरियां भी होती हैं । लेकिन सबसे ज्यादा ज़रूरी है विश्वास --न्याय मिलने का । अब इसी ओर प्रयास जारी है ।
ReplyDeleteसार्थक एवं आवश्यक पोस्ट...उत्तम जानकारी.
ReplyDeletevistrit upyukt jaankari
ReplyDeleteVery useful post ...........
ReplyDeleteलिबास और ऊपरी खोल नहीं अन्दर से जड़ समाज बदले तो कुछ हो ........http://sb.samwaad.com/
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
sarthak aur jagrat kartee post .
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण जानकारी।
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
दराल साहब आपने उन तक खबर पहुंचा ही दी ....
ReplyDelete:))
अब हम दोबारा आये तो देखा ऊपर वाली पोस्ट तो रह ही गई .....
आपने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़नके सुरक्षा की बात उठाई ...
पर देख रही हूँ अधिकतर टिप्पणियाँ विरोध में ही आई .....
यह सही है किसी भी महिला के कार्यालय में परिवेश करते ही काम के बहाने उसका उत्पीडन शुरू हो जाता है ...
अगर वह कठोरता दिखाती है तो उसके काम में खामियां निकाली जाती हैं ,जरा सी गलती पर कार्यालय में ही डांट फटकार शुरू हो जाती है ....नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है ....ऐसे में महिलाएं विरोध कर ही नहीं पातीं और सहर्ष ही ऐसे रिश्तों को स्वीकारने को मजबूर हो जातीं हैं ...
ऐसा सिर्फ दफ्तरों में ही नहीं साहित्यिक क्षेत्र में भी है ....
शायद ....अभी बहुत वक़्त लगेगा बदलाव आने में ....
खैर आपने अच्छी जानकारी दी ....
पोस्ट पर बहुत मेहनत करते हैं आप .....
कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के कारण और समाधान् बहुत सटीक अंदाज़ मे दी ...सार्थक पोस्ट...धन्यवाद...
ReplyDeleteयह भी समाज की सच्चाई है
ReplyDeleteहरकीरत जी , बेशक महिलाएं परिस्थितियों की शिकार रहती है जिस कारण चाहते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाती ।
ReplyDeleteइन्ही मज़बूर हालातों को ख़त्म करने के लिए सरकार ने ये समितियां बनाने के ऑर्डर किये हैं । अब पूरा विश्वास है कि बदलाव आएगा ।
और हाँ , फूल की खुशबू तो अपने आप पहुँच जाती है ।
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ,आँचल में है दूध और आँखों में पानी ,आज भी परिदृश्य यही है -ढोल गंवार शुद्र पशु नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी ,तुलसी बाबा क्या लिख गये दूसरी तरफ कहतें हैं सिया राम में सब जग जानी ,......... कृपया यहाँ भी पधारें .Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_07.html
ताउम्र एक्टिव लाइफ के लिए बलसंवर्धक चुकंदर .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
Erectile dysfunction? Try losing weight Health
बढ़िया जानकारी के लिए आभार आपका....दराल साहब
ReplyDeleteकुल मिलाकर सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन की आवश्यकता है । अच्छी जानकारी है डॉक्टर साहब ।
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeletesarthak post...
ReplyDeleteमेरे विचार से यह पोस्ट कामकाजी महिला/ पुरुषों को संगृहीत कर रख लेना चाहिए . इसमें बताये गए तथ्य सरकार द्वारा आयोजित की गई संगोष्ठी से लिए गए हैं .
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने क्योंगी अधिकाँश पता नहीं चलता की यौन उत्पीडन के पीछे क्या क़ानून है ... वैसे इस समस्या के समाधान के लिए हर ऑफिस में समय समय पर गोष्ठियां होनी जरूरी हैं ...
ReplyDelete