हेयर कटिंग सैलून की
आरामदेह कुर्सी पर
बैठा ,
मैं ईर्ष्या रहा था
बाजु में बैठे युवक की
लहलहाती ,
ज़ुल्फ़ों को देखकर ।
तभी
हमारा केश खज़ाना देख,
दूसरी ओर बैठे
एक हम उम्र के चेहरे पर ,
वही भाव उभर आए ।
उसका ग़म देखा तो ,
मैं अपना ग़म भूल गया ।
नोट : फोटो भाई राजेन्द्र स्वर्णकार ने संवार कर दी है .
aesaa hi hota hai jnaab lekin khuda kisi ko bhi zraa saa bhi gm nhin de bas yhi duaa hai .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteकल रात आए एक आगंतुक ने हमारा 1975 का फोटो देखा और ईर्ष्या से बेहाल हो गया।
ReplyDeleteएक बार एक धनी पिता, अपने पुत्र को गांव दिखाने की इच्छा से अपने बचपन के गरीब किसान मित्र की कुटिया पर ले गया। दो दिन वहां रह कर लौटने के बाद उसने अपने पुत्र से पूछा ..बेटा तु्म्हें गांव कैसा लगा? पुत्र ने जवाब दिया...हमारे पास तो सिर्फ एक स्वीमिंग पुल है उसके पास तो अविरल बहती निर्मल नदी की कल कल धारा, हमारा घर तो एक चहारदिवारी में कैद है उसके पास तो दूर क्षितिज तक फैली लम्बी चौड़ी हिरयाली, हमारे पास तो बल्ब की रौशनी है उसके पास तो चाँद सितारों की चगमगाहट, पापा वो किसान तो हमसे बहुत धनी है जिसे आप गरीब कहते हैं।
ReplyDeleteवैसे डॉ साहब आपके केश तो अत्यंत घनेरे हैं। किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है।
ReplyDeleteकहा भी है -
ReplyDeleteमनुष्य अपने दुख से इतना दुखी नहीं होता …
जितना औरों के सुख को देख कर दुखी होता है !
मज़ेदार पोस्ट ! नये अंदाज़ में संतों की वाणी … … …
मेरे पूज्य बाबूजी कहते थे -
अपने से अधिक समर्थ-साधन-संपन्न को देखोगे तो कभी चैन और शांति नहीं पा सकोगे …
अपने से कमतर को देखते ही संतुष्टि मिल जाएगी कि इससे तो मेरी स्थिति ठीक है !
ReplyDeleteवाकई भाई जी गंजे का दर्द, गंजा ही जान सकता है ! मैंने इसीलिए बरसों से विग लगा रखी है ...
आज दर्द उमड़ आया ....
साथ में प्यार भी आपके लिए....
शुभकामनायें !
सैलून के आइने में दिखने वाले अपने केश के प्रति भी कम मोह नहीं होता.
ReplyDeleteसही समय पर बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति दी हैं आपने।
ReplyDeleteआज चाँद निकलेगा, कल ईद मनाई जाएगी।
आपको ईद की बहुत-बहुत मुबारकवाद।
सर के बाद नंबर आता है शरीर के दूसरे छोर का...
ReplyDeleteनंगे पाँव / वो एक जोड़ी जूते पाने को तरस रहा था //
एक रेल दुर्घटना में दोनों टांगें खोये व्यक्ति को देखा जब /
अस्पताल में उन्हें तकिये के स्थान पर उपयोग करते देख /
धन्यवाद दिया उसने प्रभु को /
कि उसकी दोनों टांगें तो कम से कम सलामत थीं!
जोगी ने कहा शरीर तो नश्वर है /
परमात्मा कि कृपा है कि आत्मा तो अनंत है /
और वो ही ड्रामे अथवा कृष्णलीला में सत्य है /
बिग बी समान रोल के बाद रोल करती चली जाती है :)
बयाँ करने का क्या खूब अन्दाज़ है………वाह्।
ReplyDeleteगम भी बयाँ किया ऐसे कि गम भी हंस दिया।
क्या करें डा० साहब , आपका नवीनतम चित्र देख मुझे भी इर्ष्या हो रही है, और हाथ खुदही सर की तरफ उठ रहा है ! खैर, बर्फीली पहाड़ियों और रेगिस्तानी इलाकों में घास ज्यादा दिन उगी नहीं रह सकती ! :) :)
ReplyDeleteक्या बात है डाक्टर साहब? आजकल ये कविता? ये जुल्फ़ें संवारना? सब खैरियत तो है ना?:)
ReplyDeleteरामराम.
अब तो आहे भरने को जी चाहता हैं डॉ साहेब .....वो भी क्या दिन थे जब हम आईने में अपनी सुरत देखकर ही खुश हो जाया करते थे ? आज तो डर लगता हैं ...निगोड़ी अपनी दो पूछो को देखकर ....हा हा हा हा !
ReplyDeleteहा हा१! ऐसे ही गम हल्का होता रहे.... :)
ReplyDeleteवाह द्विवेदी जी , क्या बात है । ३६ साल पुरानी फसल !
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कहानी पाण्डे जी ।
अरे कहाँ दिव्या जी , उड़ रहे हैं , मगर धीरे धीरे ।
आपके बाबूजी सही कहते थे राजेन्द्र जी ।
सतीश जी , क्या ---कह ---रिये हो ! ! !
ReplyDeleteअमां अगर ये बात सच है तो अमिताभ बच्चन को आपसे ईर्ष्या होने लगेगी । क्योंकि उनकी विग तो साफ पता चलती है ।
जे सी जी , सच तो यही है ।
हा हा हा ! गोदियाल जी । एक बार हमने अपने dermatology डिपार्टमेंट के विभाग अध्यक्ष से सलाह लेनी चाही । लेकिन उनके सफाचट मैदान को देखकर मैं वापस आ गया । :)
ताऊ रामपुरिया , बस कल का ही अनुभव सुना रहे हैं ।
ReplyDeleteदर्शन जी , अब पूछों को देखकर खुश रहना चाहिए जी ।
दराल साहब .. आप उन सब को चिढा रहे है जो सीसे में ढूंढते है कहाँ गया .. कल तो था .. हे राम . अब तो पुनर जन्म में ही टक्कर ले पाएंगे तब तक के लिए आप जीते हम हारे..
ReplyDeleteसब समय समय की बात है.
ReplyDeleteआपके फोटो को तो स्वर्णकार जी ने चार चाँद लगा दियें है.
ईर्ष्या करना अच्छी बात नहीं डॉ. साहब.
हा हा...बहुत खूब!!
ReplyDeleteA nice read..
ReplyDeleteDifferent ppl, different sides :)
खुलकर हंस भी नहीं सकता ,कल मेरा भी नम्बर आयेगा
ReplyDeleteईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन हास्य !
ReplyDeleteकारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे ,
बुधवार, ३१ अगस्त २०११
जब पड़ी फटकार ,करने लगे अन्ना अन्ना पुकार ....
ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई
@मैं अपना ग़म भूल गया ..
ReplyDeleteफिक्र नहीं सर जी ऐसा तो होता ही रहता है???
हाय! कहां गए वो दिन जब हम अपने बालों को देवानंद और दिलीप कुमार इश्टाइल में संवारा करते थे :(
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, सत्य तो यह है की हर कोई अपने सर पर चाँद लिए घूम रहा है - किसी के सर पर काले बादल और किसी के सफ़ेद बादल उसके सामने छाये होते हैं,, जो पूरी तरह छंट जायें तो पूर्ण चन्द्रमा के दर्शन हो पाते हैं :)
ReplyDeleteबच्चों से जोक सुना और उनके साथ आनंद लिया, दोहरा रहा हूँ...
"दूर से देखा तो लगा अंडे उबल रहे हैं / पास इ देखा तो अगंजे उछल रहे थे" :)
हा हा..
ReplyDeleteदराल साहब अन्ना जी इस दौर में सामाजिक समरसता और हम सब को सहभावी बनाने में कामयाब रहें हैं ,कौन नहीं है अन्ना आज ,चंद पंचान्गियों (असंविधानिक )शख्शियतों को छोड़कर .शुक्रिया बोल्गिया दस्तक के लिए .
ReplyDeleteदराल साहब अन्ना जी इस दौर में सामाजिक समरसता और हम सब को सहभावी बनाने में कामयाब रहें हैं ,कौन नहीं है अन्ना आज ,चंद पंचान्गियों (असंविधानिक )शख्शियतों को छोड़कर .शुक्रियाब्लोगिया दस्तक के लिए .
ReplyDeleteशुक्रिया दराल साहब !
ReplyDeleteबुधवार, ३१ अगस्त २०११
मुद्दा अस्पताल नहीं है ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
डॉ. साहब!
ReplyDeleteआप का गम मैंने ले लिया ! अब तो खुश हो जाइये ....हा हा हा
खुश रहें और स्वस्थ रहें !
(आजकल तो ये गम भी नोटों से दूर हो जाता है }
वो हमारा ज़माना गया ....???
अशोक जी , पता चला है कि एक बाल की कीमत ७५०/= है । अब अगर दो बाल भी कंघी में दिख जाएँ तो पत्नी कहती है --लो सुबह सुबह कर दिया १५०० रूपये का नुकसान । :)
ReplyDeleteडॉ साहब !इस देश की यही तो विडंबना रही है ,जै न्यार (पशु चारा ) के संग मवेशियों को लाल चनों के संग घोड़ों को खिलाते हमने बचपन में देखा है उनके पालकों को .
ReplyDeleteआलू यहाँ के अंकल चिप्स वहां के .एक दस रूपये किलो दूजा २५० यूपए किलो .
और भी गम हैं सजनी ज़माने ,में जुल्फों के सिवाय ,
ReplyDeleteसजनी मुझसे वो पहले सी जुल्फें न मांग .
"दिल अगर टूटा तो फिर बेकार है ,
ज़ुल्फ़ बिगड़ेगी ,बना ली जायेगी ..
'भारत' एक विचित्र और महान देश है... थिरुमला में जो विधवा भी नहीं होती परंपरागत तौर पर केश दान करती हैं, गंजी हो जाती हैं... लिंक देखिएगा -
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=QcnLU39YaAw
बड़ा रूमानी फोटो लग रहा है
ReplyDeleteघायल की गति घायल जाने और न जाने कोय.
ReplyDeletedil ka dard our uska andazebya dono ho mashaallh bhut khoob .
ReplyDeleteराजेन्द्र जी ने जुल्फें कैसे सवार दीं .....?
ReplyDeleteहरकीरत जी , राजेन्द्र जी ने जुल्फें नहीं , फोटो संवारी है ।
ReplyDeleteवो स्वर्णकार हैं , चाहें तो लोहे को भी सोना बना सकते हैं । :)
हा हा…
ReplyDeleteडॉक्टर भाईसाहब , हम तो कविता भी पढ़ गए , कमेंट भी कर गए …
आपका फोटो और इसे संवारने में हमारा नाम दोनों ही चीजें तब नज़र नहीं आई :( … … … कसम से !
लगता है चश्मे का नंबर बदल गया है … :)
हीर जी की बात ब्लॉग पर दुबारा आया तो समझ आई …
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आपमें तो है ही ऐसा चुंबक … हर कोई खिंचा चला आता है
आपका प्यार ही है , जो आप मेरी तारीफ़ करते हैं
क्योंकि सुना है कि तारीफ़ करने वाला स्वयं तारीफ़ के काबिल होता है , और आपकी तो तारीफ़ ही तारीफ़ है , क्योंकि आप साक्षात् तारीफ़ हैं !!
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… और हीर जी की पिछली पोस्ट पर मेरे लिखे शब्द
ReplyDeleteऐंद्रजालिक का अर्थ और मतलब यहां स्पष्ट करदूं …
आपको याद ही होगा - हीर जी ने कहा था -
शायद अगली बार कुछ तस्वीरें पेश करूँ ,
आप-हमको बहला दिया , हमें भ्रम में डाल दिया , सम्मोहित कर दिया , हम पर ज़ादू-इंद्रजाल कर दिया ,
… और इनकी नई पोस्ट में आपको तस्वीरें नज़र आईं ?
और इतने सारे - सौभाग्य से दिल ख़ुश करने के बहाने दे दिए कि किसी को पिछली पोस्ट में ख़ुद इनके अपनेआप किए वादे के बारे में पूछना तक याद नहीं रहा … :))
हीर जी ने उलझा दिया न सबको इंद्रजाल में !!
चलते हैं इनके यहां पार्टी भोज दावत के लिए …
तैयार रहिएगा हीर जी
हा हा हा ! राजेन्द्र जी , न कसम खाने की ज़रुरत है , न ही चश्मे का नंबर बदला है ॥ आपका ऐन्द्रजालिक प्रभाव हम पर भी पड़ गया । फोटो इसीलिए नज़र नहीं आई ।
ReplyDeleteपार्टी भोज दावत के लिए तो हम भी तैयार हैं ॥
दूसरो का दुख देख अपना दुख कम होता है......
ReplyDeleteha ha ha !
ReplyDeletehasy vyang sabhee raso me mahir hai aap jee .
चलिए किसी दूसरे के गम देख कर भी अपना गम कम हो जाये तो अच्छी बात है.
ReplyDeleteअभी तो आपके पास भरपूर खजाना है डाक्टर साहब ... काहे की चिंता करते हो ...
ReplyDeleteहा हा हा ! नासवा जी , दूसरे की थाली में हमेशा ज्यादा दिखता है ।
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