हर छै महीने में दो सप्ताह का अर्जित अवकाश । यह सबसे बड़ा फायदा है निस्वार्थ भावना से सरकारी नौकरी करने का ।
हालाँकि स्वार्थी और भ्रष्ट सरकारी नौकरों को भी यह सुविधा उतनी ही उपलब्ध है ।
रोजमर्रा के काम से ब्रेक लेना भी उतना ही आवश्यक है जितना टी वी पर कमर्शियल ब्रेक । फर्क बस इतना है कि इस ब्रेक से वो अपना खाता रीचार्ज करते हैं और हम अपनी ऊर्जा ।
साथ ही हर चार साल में मिलती है एल टी सी --जिस के दम पर हम भी घूम आते हैं दूर दराज़ की ज़गहों पर हवाई ज़हाज़ में बैठकर ।
वरना अपना तो वो हाल है कि ख्याल का वो शे 'र याद आता है --
मुफ्त दो घूँट पिला दे तेरे सदके वाली
हम गरीबों से कहीं दाम दिए जाते हैं ।
लेकिन यहाँ साकी भी उदारतापूर्ण दो घूँट नहीं बल्कि पूरा पैमाना भर के देता है । यानि एल टी सी के साथ १० दिन की तनख्वाह मुफ्त ।
बस एक ही शर्त है कि टिकेट एयर इण्डिया की लेनी पड़ेगी , भले ही दाम दुगने देने पड़ें ।
यानि --एक हाथ ले , एक हाथ दे --कहावत का पूर्णतया चरित्रण ।
वैसे एयर इण्डिया से सफ़र करना उतना बुरा भी नहीं ।
एक तो खाना मुफ्त में मिलता है । और हर स्टॉप के बाद मिलता है । फिर हैरानी की बात यह कि खाने की क्वालिटी भी ठीक ठाक लगी । ऊपर से थोडा बहुत मनोरंजन भी हो जाता है ।
एक फ्लाईट में एयर होस्टेस ने खाना सर्व करते हुए एक यात्री से पूछा --वेज या नॉन वेज ?
यात्री ने कहा --नॉन वेज ।
एयर होस्टेस --सर , नॉन वेज तो ख़त्म हो गया है ।
दूसरे , यहाँ आपको एयर होस्टेस भी हर उम्र और रंग रूप की देखने को मिल जाएँगी । ऐसी वैराइटी भला और कहाँ मिलेगी ।
लेकिन सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह कि सारी फ्लाइट्स पूर्णतया टाइम पर ।
परिस्थितिवश पिछले वर्ष कहीं जाना न हो सका । इसलिए जीवन की नीरसता से नी और ता हटाने के लिए हमने भी दोनों सुविधाओं को ग्रहण करते हुए कार्यक्रम बना लिया --ऊटी घूमने का ।
इसीलिए ब्लोगिंग से भी १० दिन का ब्रेक हो गया । हालाँकि इस आभासी दुनिया में लोग एक दुसरे को बड़ी जल्दी भूल जाते हैं ।
शायद अदम ने भी इन्ही हालातों पर यह शे 'र लिखा होगा --
शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हो आप
महफ़िल में इस ख्याल से फिर आ गया हूँ ।
इसलिए हमने भी १० दिन का ब्रेक लिया और अब सन्मुख हैं आपके , एक नई और अलग सी पोस्ट लेकर ।
इस बीच देश की हालत को लेकर ब्लोगिंग में बहुत गहमा गहमी नज़र आई । काफी संख्या में ब्लोगर बंधु निराश नज़र आए ।
लेकिन किसी ने कहा है --लाइफ हैज टू गो ओन ।
ऊटी :
तमिलनाडु के नीलगिरी पर्वत श्रंखला में २२५० मीटर की ऊँचाई पर स्थित ऊटी को पर्वतों की रानी ( क्वीन ऑफ़ हिल्स ) कहा जाता है । हालाँकि यह ख़िताब मसूरी के हिस्से भी आता है । लेकिन उत्तर भारत में स्थित मसूरी जहाँ अपनी चमक धमक और मॉल रोड के लिए मशहूर है , वहीँ ऊटी अपनी हरियाली , जंगल , चाय के बगान और खूबसूरत वादियों के लिए प्रसिद्द है ।
लेकिन ऊटी का गुणगान अगली पोस्ट में ।
अभी तो आपको दिखाते हैं --स्टर्लिंग रिजोर्ट जहाँ एक सप्ताह का वास ऎसी तरो ताज़गी देता है जैसा स्पा में एक घंटा बॉडी मेसाज देता है ।
स्टर्लिंग रिजोर्ट --फर्न हिल ऊटी
पोर्टिको और प्रवेश द्वार
अपार्टमेंट्स का लेआउट ।
रिजोर्ट का ड्राइव वे ।
रिजोर्ट से घाटी का द्रश्य ।
स्टर्लिंग रिजोर्ट्स --एक होलीडे टाइम शेयर कंपनी है जो देश भर में १४ रिजोर्ट्स चला रही है ।
ऊटी में इसके दो रिजोर्ट्स हैं --फर्न हिल और एल्क हिल । दोनों आमने सामने की पर्वतीय चोटी पर बने हैं , जिनसे चारों ओर की घाटी का ३६० डिग्री व्यू नज़र आता है ।
स्टर्लिंग रिजोर्ट्स एक घर की तरह आरामदायक अस्थायी निवास प्रदान करता है । यानि आप यहाँ अपने घर की तरह रह सकते हैं ।
चाहें तो घर में ही , जिसमे ड्राइंग डाइनिंग , बेडरूम और किचन --सभी होते हैं , आप घर का बना खाना खा सकते हैं । हालाँकि ९० % लोगों की घरवाली सहयोग करने से मना कर देती हैं ।
आखिर छुट्टियों पर आए हैं , यहाँ भी खाना क्यों बनायें । लेकिन ज़रा सोचिये , घर से हज़ार मील दूर खूबसूरत वादियों के बीच आपको गर्मागर्म चाय और पकौड़े आपकी ही श्रीमती जी बनाकर खिलाएं तो कितना मज़ा आएगा ।
लेकिन घरवाली सहयोग न भी दे तो चिंता नहीं । क्योंकि यहाँ रिजोर्ट में ही फ़ूड मस्ती के नाम से जो बफ़े परोसा जाता है उसे देखकर किस का मन करेगा खाना बनाने का ।
बफ़े में पचासों आइटम देखकर बस एक ही प्रोब्लम सामने आती है कि कितना खाया जाये । अब यह तो आप पर ही निर्भर करता है । कम से कम भी खा सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा भी ।
हमने तो यही देखा है कि एला कार्टा में लोग खाने से पहले सोचते है , बफ़े में खाने के बाद ।
नोट : अगली पोस्ट में ऊटी के मनोरम द्रश्य देखना मत भूलियेगा ।
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व्यंग्य के साथ ऊटी, अंदाज बहुत अच्छा लगा,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इस तरियों पब्लक को ललचा रैये हो, डाकटर !
ReplyDeleteवो क्या कहवें हैं, होसटेस.. इनकी वैराइटी केह तरिंयो चेक की तैने.. जरा मन्नें बी बता दे.. तेरे को गुरु मानूँगा !
आपने याद दिलाया तो याद आया कि ... ऊटी पहले हो आया !
यह भी याद आया कि एक बार दुबारा भी जाना है ।
वैसे कोडाईकैनाल मुझे अधिक हनीमूनिंग एहसास देता है ।
शान्त तो खैर है ही । एक बार मेरी गारँटी पर हो आइये ।
शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हो आप,
ReplyDeleteमहफ़िल में इस ख्याल से फिर आ गया हूँ...
दराल सर, महफ़िल में आप जैसे लोगों का बने रहना बहुत ज़रूरी है...क्योंकि न्यूक्लियर रिएक्टर्स को ठंडा करते रहने के लिए जैसे कूलिंग प्लांट्स बहुत अहम होते हैं, वैसे ही ब्लॉगवुड को ठंडा रखने के लिए आप की आज जैसी पोस्ट शॉक-एब्सार्वर की तरह काम करती हैं...
ऊटी के दिलचस्प वाकयों का इंतज़ार रहेगा...
जय हिंद...
ऊटी मस्त जगह है, अभी मेरा एक मित्र उटी में था और मेरी चैट पर आ गया, मैने पूछा कहां हो- उसने कहा oty, मैने सोचा आपरेशन थियेटर से कैसे चैट पर है। अरे क्या हुआ तुझे, बोला कुछ नहीं हुआ oty में हूँ। थोड़ी देर में मेरी समझ आया की ऊटी में है, मैने कहा कि - अरे अंग्रेजी भी ठीक से लिख लिए करो uuti लिखता तो मेरी समझ में आ जाता, फ़ालतु दिमाग पे जोर डालना पड़ा- हा हा हा
ReplyDeleteअगली किश्त का इंतजार है।
वाह सर जी वाह ... क्या सैर करवाई है ... अभी तो पूरे नज़ारे भी नहीं देखे पर ऊटी जाने की तमन्ना अभी से जरुर जाग रही है दिल में !
ReplyDeleteक्या बात है...ऊटी का नजारा दिखाने के पहले ही रिसार्ट ने मन लुभा लिया. इन्तजार है आगे.
ReplyDelete@ 'जैसा सपा में एक घंटा बॉडी मेसाज' यह सपा, समाजवादी पार्टी है या स्पॉ.
ReplyDeleteउटी के नज़ारे दिखाकर मन प्रसन्न कर दिया. अगली कड़ी का इन्तेज़ार रहेगा.
ReplyDeleteएलटीसी मिलते ही सबसे दूर का टिकट कटा लिया। सभी साउथ में ही जाते हैं। अगली एलटीसी मिजोरम की लेना। वो भी मस्त जगह है। केरल के बाद सबसे ज्यादा पढे-लिखे लोग मिजोरम में ही रहते हैं। मैं तो अपनी पहली एलटीसी मिजोरम की ही लूंगा।
ReplyDeleteअगले भाग का इंतजार
डॉ अमर , राज़ की बात को पब्लिकली क्यों उगलवाना चाहते हो भाई । हा हा हा !
ReplyDeleteकोडाई भी होकर आ चुके हैं । लेकिन सच में , मुझे तो ऊटी ज्यादा अच्छा लगा ।
कोडाई में दिसंबर में भी ठण्ड नहीं थी । यहाँ जून में भी कंपकपी आ रही थी ।
अब खुद ही सोचिये --हनी मूनिंग का मज़ा कहाँ ज्यादा आएगा ।
सही कहा खुशदीप भाई ।
ReplyDeleteब्लोग्स पर भी वैराइटी रहे तो अच्छा है । :)
हा हा हा ! ललित भाई , अंग्रेजी पढने से ज्यादा कन्फ्यूजन सुनने में हो सकता है । विशेषकर दक्षिण भारतियों की ।
राहुल जी , हिंदी और इंग्लिश में यही फर्क होता है । दोनों अपनी जगह सही हैं ।
नीरज , नॉर्थ ईस्ट के लिए होम टाउन एक्सचेंज था लेकिन अवेल नहीं कर पे ।
अब सुना है कश्मीर और लेह में भी ले सकते हैं । लेकिन अपुन तो दिल्ली का मूल निवासी है । इसलिए पहले तो इसे बदलवाना पड़ेगा ।
वैसे लोंगेस्ट एल टी सी पोर्ट ब्लेयर का है जो हम ले चुके हैं ।
ऊँटी बढिया जगह है, वैसे दक्षिण में सारे ही स्थान बहुत बढिया हैं। आगे पढ़ते हैं कि आपने और क्या किया वहाँ।
ReplyDeleteऊटी वाकई बहुत खूबसूरत पर्वतीय स्थल है ...
ReplyDeleteचित्रों का इन्तजार रहेगा !
बहुत सुंदर प्रस्तुति , अगली पोस्ट का इंतजार है ,और हां सर इस रिसार्ट का कोई नं. वगैरा मिल जाता तो बहुत से लोगों को सहायता मिल सकती है ।
ReplyDeleteचलिये हमे भी बिना छुट्टी लिये सैर करवा दी। आपका पोस्ट लिखने का अन्दाज़ अच्छा लगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteइतना मिर्च-मसाला लगा लगा कर सरकारी नौकरी की बातें न लिखा करें] लोग पहले ही माने बैठे हैं कि सरकारी नौकरी में तो बस कामचोरी का ही पैसा मिलता है और वो भी बोरे भर-भर कर ... :)
ReplyDeleteनिम्न लिंक पढ़ने लायक है :)
पे कमीशन से पाँचों घी में.
एल टी सी का आंनद ले रहे है शहर शहर घूम रहे है | अच्छा वृतांत , चित्र भी सुंदर
ReplyDeleteसच्ची-मुच्ची, मैं तो पलके बिछाए बैठा था,आप के आने की इंतज़ार में
ReplyDeleteस्वागत है,.. आप का !
सैर से प्राप्त उर्जा मुबारक हो ..
मज़ा आ गया दाराल साहब, ऊटी की वादियों की यादें ताज़ा हो गयीं . चार साल पहले गया था कोदायीकैनाल भी मगर ऊटी की बात ही कुछ और है अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteवाह आप तो एल टी सी का मज़ा ले आए .. प्राइवेट नोकरी वाले ये मज़ा नही ले पाते .... डाक्टर साहं आपके फोटो देख कर लगता है रिसोर्ट वालों ने दो दिन एक रात मुफ़्त में दी हैं :) ... हा हा आपकी अगली पोस्ट का इंतेज़ार रहेगा ... मुझे आपकी फोटोग्राफी का अंदाज़ा है ...
ReplyDeleteऊटी सचमुच बहुत अच्छी जगह है.अब मनोहारी चित्रों का इंतज़ार है.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी और तस्वीरों ने तो मन मोह लिया।
ReplyDelete--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
दस दिनों की मनोरंजक यात्रा के लिए मुबारकवाद.धन्यवाद विवरण देकर मुफ्त टूर कराने के लिए.
ReplyDeletesochte sochte aaj ghum hi aaye
ReplyDeleteहा हा हा ! ऐसा भी ज्यादा कुछ नहीं है काजल जी सरकारी लोगों के पास । छै महीने में एक डी ए ही तो मिलता है । तब तक पेट्रोल के दाम छै बार और सब चीज़ों के दाम छै गुना हो चुके होते हैं ।
ReplyDeleteलिंक पढ़ लिया है । मिडिया वालों को तो बात बनाने की आदत होती है ।
चित्र देखे आलेख पढा। जब नानवेज खत्म हो गया था तो पूछा क्यो ? सर यह हमारी डयूटी है पूछना पडता है।
ReplyDeleteशायद मुझे निकाल कर कुछ ---खा ---रहे हो आप
शुक्रिया अशोक जी ।
ReplyDeleteनासवा जी , स्टर्लिंग का ऊटी रिजोर्ट सबसे खूबसूरत लगा और सस्ता भी । बस इसीलिए ।
सही कहा कुश्वंश जी , कोडाई से ऊटी हमें भी ज्यादा अच्छी लगी ।
वाह क्या नयनाभिराम ...!
ReplyDelete"यहाँ आपको एयर होस्टेस भी हर उम्र और रंग रूप की देखने को मिल जाएँगी। "
मैं मर्म समझ गया इस बात का ... :)
वेलकम बैक
कहां तो मयस्सर है कायनाथ स्वार्थी और भ्रष्ट बंदे को
ReplyDeleteयहाँ ईमानदार को दो घूंट भी मयस्सर नहीं :)
बहुत सुंदर प्रस्तुति|
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से ही लग रहा है काफी उर्जा समेट लाये हैं ... चित्र बहुत सुन्दर हैं ... सरकारी सेवा में रहते हुए हम भी ऊटी घूम चुके हैं ..
ReplyDeleteये सारे पुरुषों को एयर इण्डिया की एयर होस्टेस से बड़ी शिकायत होती है...:)
ReplyDeleteख़ूबसूरत विवरण
मेरे एक रिश्तेदार रेलवे में काम करते बिहार में पोस्टेड थे... नयी दिल्ली आते थे खुश हो जाते थे यहाँ की साफ़ सफाई देख... अति प्रसन्न हुए जब भाग्यवश एयर इण्डिया से 'सरकारी जंवाई' किसी ट्रेनिंग के लिए अमेरिका गए... और वहाँ से फिर यूरोप आदि कई हवाई जहाजों से घूमे... जब लौटे तो एयर इंडिया, नयी दिल्ली आदि सभी घटिया लगे :)
ReplyDeleteअरविन्द जी , समझ तो जाओगे ही । आखिर हमउम्र जो हो ।
ReplyDeleteसंगीता जी , ३-४ पोस्ट का मसाला तो मिल ही गया है ।
रश्मि जी , हमें तो बिल्कुल भी नहीं है । :)
जे सी जी , मजबूरी का लुत्फ़ --एयर इण्डिया ।
पर्यटन और छायांकन दोनों का ही शौक है। अफसोस,कि घूमना ज़्यादा नहीं हो पाया है। आपकी श्रृंखला ऊटी की प्यास जगा सकती है।
ReplyDeleteमैं चार बार ऊटी घूमने गयी हूँ और मुझे बहुत पसंद है पहाड़ी जगह! बहुत सुन्दर तस्वीरें हैं ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
दो घूंट की चर्चायहाँ पर भी है।
ReplyDeleteआजकल आप घूमने का खूब आनंद ले रहे हैं । आप के साथ हम भी आनंद ले लेते हैं यात्रा का पोस्ट के माध्यम से। सुन्दर चित्रों के लिए आभार।
ReplyDeleteदिव्या जी , घूमने का शौक बहुत पहले से है । अभी तो यूँ कहिये की मुश्किल से समय मिल पाया है ।
ReplyDeletebhai ji, mujhe to bhookh lag gai......kambakht time bhi aisa hai....aap saubhagyshali hain ki ghoom lete hain. hum to ghoom kar bhi nahi ghoom pate... har shahar me bus kavita padi or nikal liye.... is mahine kuchh achhr tour hain..koshish karunga. baharhaal post badiya....aanadam..aanandam
ReplyDeleteदिल्ली, शिमला, मसूरी हो या ऊटी
ReplyDeleteहर वो जगह अच्छी जहाँ शाम को हमने लगा ली घूटी
खूबसूरत फोटो......
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