कभी कभी सोचता हूँ , जिंदगी भी कितनी अज़ीब चीज़ है । मनुष्य अभावों में रहकर जिंदगी गुजार देता है, अच्छे भविष्य की आस में । अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते करते आदमी की जिंदगी पूरी हो जाती है । अभावों से छुटकारा मिलता है तो जिंदगी का भाव ख़त्म हो जाता है । उधर एक तरफ इच्छाएं बढती जाती हैं , दूसरी तरफ मन में जीने की लालसा भी बढती जाती है ।
प्रस्तुत है , जिंदगी की ऐसी ही एक कशमकश :
I)
डिस्पेंसरी के डॉक्टर से
बोला बीमार
सरकार ,
मुझे बचा लो
मैं अभी मरना नहीं चाहता ।
अभी करनी है बहन की शादी
घर में दादा दादी ,
और मात पिता का भार है ,
अभी जी भर के देखना संसार है ।
छोटे छोटे हैं बच्चे
उम्र में कच्चे ,
रोज चॉकलेट मांगते हैं ।
नादां नहीं जानते हैं
कितनी महंगाई है ,
फिर मैंने भी तो नई नई नौकरी पाई है ।
उस पर ये बीमारी
वर्ना नहीं कराहता
डॉक्टर मुझे बचालो
मैं अभी मरना नहीं चाहता ।
II)
डॉक्टर अब नर्सिंग होम में बैठा था
टेबल पर लेटा था ,
वही मरीज़ , कह रहा था
डॉक्टर मुझे बचा लो
मैं अभी मरना नहीं चाहता ।
बेटे के कॉलिज की फीस भरनी है
शादी भी करनी है ,
बेटी स्यानी हो गई है ।
ताउम्र
किराये पर रहकर ,
पत्नी भी दीवानी हो गई है ।
डी डी ए पर आँख लगाए बैठी है ,
एल टी सी लेकर
चार धाम यात्रा की आस लगाए बैठी है ।
पर लाचारी है
ये कैसी बीमारी है
मैं नहीं जानता ,
डॉक्टर मुझे बचा लो
मैं मरना नहीं चाहता ।
III)
डॉक्टर का नर्सिंग होम
अब बन गया है कॉर्पोरेट अस्पताल ,
दिल का हाल
प्राइवेट रूम में लेटा इस बार ,
सुना रहा है वही बीमार ।
इस दिल को संभालो ।
मैं अभी मरना नहीं चाहता
डॉक्टर मुझे बचा लो ।
बंगला नया बनाया है ,
अभी उद्घाटन भी नहीं कराया है ।
लगाया है ,
स्टॉक्स में कुछ पैसा
खरीदे कुछ गहने हैं ।
प्लॉट के रेट भी तो अभी बढ़ने हैं ।
बस दिल में एक स्टेंट डलवा लूँ ,
घुटने दोनों बदलवा लूँ ।
कटवा लूँ
टिकेट यू एस की ,
बेटे ने बुलावा भेजा है ।
देखना है पोते का चेहरा
दिल मेरा ,
बहुत करता है जाने का ।
अभी तो रंग देखना है जमाने का ।
दिल करता है लेने का
चैन की सांस ,
आस पास की तरक्की का अहसास ,
अब होने लगा है ।
दुनिया की रंगीनियों में अब
मन खोने लगा है ।
क्रूज , केसिनो , क्लब, रेस्तरां, एस्केलेटर
मेट्रो , मॉल , मोबाइल , टी थ्री ट्रेवेलेटर
हर कोई कितना नहीं सराहता ।
डॉक्टर मुझे बचा लो
मैं अभी मरना नहीं चाहता ।
नोट : बीता कल गुजर गया । भविष्य का किसी को पता नहीं । जो आज है , वही सच है । आज के एक एक क्षण को ख़ुशी से जीया जाए । बस यही फ़लसफ़ा है जिंदगी का ।
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बेहतरीन पंक्तियां और प्रेरक भी
ReplyDeleteकविता बहुत पसन्द आयी जी
प्रणाम
ek umda rachna.......
ReplyDeleteकल और आज का बेहतरीन चित्रण किया है…………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजीवन का सत्य हमारे सामने होता है लेकिन हम फिर भी उसे नजरंदाज करते हैं ...आपका आभार
ReplyDeleteमनुष्य के विकास की गाथा इस जिजीविषा का ही परिणाम हैं।
ReplyDeleteमरीज की सोच का चित्रण तो आपने कर दिया । अब मरीज के परिजनों की सोच भी देखिये-
ReplyDeleteडाक्टर के द्वारा मरीज की नाजुक हालत के बारे में जानकर जो परिजन डाक्टर को आंख दिखाते दिखते हैं "आपने समझ क्या रखा है हम अपना सब कुछ बेच देंगे किन्तु हमारे ............... को कुछ नहीं होने देंगे ।"
और फिर दो-चार माह बाद कई डाक्टर व अस्पताल बदलकर भी उसी मरीज की स्थिति में कुछ सुधार नहीं दिखने पर "हे भगवान अब तो जैसे भी हो बस इनको अपने पास बुला लो ।"
टिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.
जीने की लालसा कभी ख़त्म नहीं होती...
ReplyDeleteसच के करीब पंक्तियाँ...
मार्मिक काव्य -चित्रण द्वारा आपने बहुत सारी बातें सहज ढंग से अभिव्यक्त कर दी हैं.
ReplyDeleteमरना कोई नहीं चाहता और जीना आता नहीं...यही तो आश्चर्य है।
ReplyDeleteकहाँ खतम होती हैं लालसाएँ...उम्दा चित्रण..
ReplyDelete@बीता कल गुजर गया । भविष्य का किसी को पता नहीं । जो आज है,वही सच है । आज के एक एक क्षण को ख़ुशी से जीया जाए । बस यही फ़लसफ़ा है जिंदगी का ।
ReplyDeleteआपसे सहमत हूं जी, इसलिए आज को ही जीता हूँ।
बहुत मार्मिक:)
ReplyDeleteजीने की लालसा खत्म नहीं होती ...यदि खत्म हो जाए तो एक एक पल भारी हो जाए जीना ...
ReplyDeleteतीनों उदाहरण बढ़िया रहे ..वर्तमान में ही जीना चाहिए ...
"ज के एक एक क्षण को ख़ुशी से जीया जाए । बस यही फ़लसफ़ा है जिंदगी का।"
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण कविता और निचोड़ भी -कवितायेँ आप बहुत अच्छी लिख लेते हैं डाक्टर !मगर कैसे ?
@@बीता कल गुजर गया । भविष्य का किसी को पता नहीं । जो आज है , वही सच है । आज के एक एक क्षण को ख़ुशी से जीया जाए । बस यही फ़लसफ़ा है जिंदगी का ।..
ReplyDeleteबहुत यथार्थ परक ,सही कह रहे है सर जी.
डिस्पेंसरी के डॉक्टर से
ReplyDeleteबोला बीमार
सरकार ,
मुझे बचा लो
मैं अभी मरना नहीं चाहता ।
अभी करनी है बहन की शादी
घर में दादा दादी ,
और मात पिता का भार है ,
अभी जी भर के देखना संसार है ।
peedayen jyon ki tyon rahti hain. paatr badal jate hain.gyaan aur vivek ke saath jeena padta hai. rachna bahut achchhi lagi .Badhai!!!
मरना कोई नहीं चाहता आज को ख़ुशी से जीया जाए, उम्दा चित्रण...,
ReplyDeleteहकीकत है यह... बेहद भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteजब पता हे कि एक दिन मरना हे, ओर जिस दिन मोत आयेगी तो कोई नही बचा सकता? तो भी पता नहि लोग क्यो डरते हे इस मोत से?
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद
देवेन्द्र पाण्डेय said...
ReplyDeleteमरना कोई नहीं चाहता और जीना आता नहीं।
देवेन्द्र जी , जिंदगी की यही तो विडंबना है ।
अरविन्द जी --कैसे --यह तो सवाल भी मुश्किल है और ज़वाब भी ।
डिस्पेंसरी वाले डाक्टर की किस्मत में कार्पोरेट हास्पीटल के मरीज के डायलाग्ज़ कहां.... कान तरस जाते होंगे यूं सुनने को :)
ReplyDeletewaah sir, bahut, bahut, bahut khoob.. holi par sangat me sunane laayak vyangya kavita hai..
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
हर पर यहाँ जी भर जीओ ...
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता !
बहुत ही अच्छी पोस्ट अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteक्या विकास यात्रा है...
ReplyDeleteडिस्पेंसरी से कॉरपोरेट अस्पताल तक...
मरीज की भी और डॉक्टर की भी...
जय हिंद...
प्रेरक पोस्ट....
ReplyDeleteसच कहा है डाक्टर साहब ... इच्छाएँ कभी ख़त्म नही होती ... इंसान के हाथ में हो तो वो १००० साल बाद भी जीने की आस रखेगा ... शायद इसलिए ये काम ऊपर वाले ने अपने हाथ में रखा है ... बहुत ही सुलझे तरीके से रचना के माध्यम से समझाया है ...
ReplyDeleteहा-हा... बहुत सुन्दर डा ० साहब ! आपने बड़ी कुशलता से यह भी बता दिया कि सिर्फ डॉक्टर ने ही प्रगति नहीं की अपितु मरीज ने भी की है :)
ReplyDeleteऐसे ही यक्ष प्रश्नों के उत्तर पाने की चाह और खोज ने तो प्राचीन 'भारत रत्नों', योगी और फकीरों को शून्य की प्राप्ति कर जग प्रसिद्धि दिलाई!
ReplyDeleteकोई भी मरना नही चाहता लेकिन फिर भी लोग मर जाते हैं। अच्छा लगा व्यंग । होली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeletewaah doctor saheb , kya khoob chitran kiya hai aapne doctor aur marij ke rishte ka .. vyangya padhate samay apne aaspaas ke hospitals hi yaad aa rahe the .
ReplyDeletebadhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteसही कहा काजल जी , डॉक्टरों के भी अलग अलग स्टेंडर्ड होते हैं ।
ReplyDeleteबहुत खूब दीपक । होली के लिए मसाला अभी तैयार हो रहा है ।
सही कहा गोदियाल जी । तरक्की तो मरीज़ ही ज्यादा करते हैं । डिस्पेंसरी से कॉर्पोरेट अस्पताल तो बस एक कल्पना ही है ।
विजय कुमार जी , यहाँ समय काल को तीन भागों में बांटकर मनुष्य की राजसी प्रवृति को दर्शाने का प्रयास किया है । यदि मनुष्य की इच्छाएं पूरी हो जाएँ , या यूँ कहिये इच्छाओं पर काबू पा लिया जाए तो मनुष्य सात्विक हो सकता है ।
सही है हर हालात मे मरना तो कोई नही चाहता है
ReplyDeleteक्यूँकि काम अभी बाकी है .....
डॉक्टर साहिब, (क्यूंकि शरीर तो अस्थायी है ही, प्रश्न 'आत्म-शुद्धि' का है) गीता में ज्ञानी कह गए कि काल चक्र में प्रवेश के पश्चात आत्मा के लिए तीनों प्रकार के कर्म करना अनिवार्य है, किसी को भी इनसे छुटकारा नहीं है ...किन्तु ज्ञानी वो है जो किसी कर्म से लिप्त नहीं रहता ("कर्म कर/ फल की इच्छा मत कर",,,अथवा जैसा सरल भाषा में भी कहा गया, "नेकी कर कुँवें में डाल")...किन्तु यह भी कहा गया कि हर गलती का कारण ज्ञान की कमी है, जिस कारण ज्ञानोपार्जन पर, 'सिद्धि' प्राप्त करने पर, जोर दिया गया है - जिसके लिए कृष्ण पर आत्म-समर्पण आवश्यक जाना गया !...
ReplyDelete.
ReplyDeleteबदलते हालात और बढती लालसा जीने की । बेहतरीन चित्रण । मानता तो तय-शुदा है , फिर हाहाकार क्यूँ ?
संसार की हर शय का , बस इतना ही फ़साना है ....
एक धुंध से आना है , एक धुंध में जाना है ....
.
मरना तो तयशुदा है ...We lesser mortals cannot fight death. It is destined.
ReplyDeleteमरना तो तयशुदा है ..
ReplyDeleteदिव्या जी , लेकिन उससे पहले दुनिया देख ली जाये तो क्या हर्ज़ है ।
Yes Dr Daral , I fully agree with you here .
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