दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में बना मुग़ल गार्डन १५ फरवरी से १५ मार्च तक जनता के लिए खुला रहता है । एक रविवार को हमने प्रोग्राम बनाया देखने का लेकिन वहां जाकर पता चला कि फोटोग्राफी तो कर ही नहीं सकते । यहाँ तक कि मोबाईल भी लेकर नहीं जा सकते ।
खैर किसी तरह दिल को समझाया और पार्किंग ढूँढने लगे । लेकिन एक किलोमीटर जाकर भी जब पार्किंग नहीं मिली तो मूढ़ बदल गया और हम वापस चल दिए । तभी हम पहुँच गए तालकटोरा गार्डन के पास और सोचा क्यों न यहीं मंगल मनाया जाए ।
आखिर यहाँ आए हुए भी कई साल हो चुके थे । बस गाड़ी पार्क की और ये लो ---
प्रवेश द्वार --
गेट से घुसते ही , पार्क का दृश्य --
फूलों की बहार यहाँ भी कम नहीं थी ।
यह क्या मुग़ल गार्डन से कम है ?
फव्वारा फ़िलहाल सूखा था ।
लेकिन घास खूब हरी थी ।
एक पेड़ भी था जो अपनी जिंदगी जी चुका था ।
रंग बिरंगे फूलों की निराली छटा । कुछ और भी दिख रहा है ?
श्रीमती जी की पसंद का फूल ।
इस बेगन बेलिया की क्या बात है !
एक छोर पर एक ऊंचा चबूतरा बना है जहाँ से सारा पार्क नज़र आता है ।
यहाँ ये पुराने खँडहर भी हैं ।
यहाँ तक आने के लिए ये घुमावदार रास्ता बड़ा दिलचस्प लगा ।
यह पेड़ ऐसा लगा जैसे पार्क का सबसे पहला पेड़ हो ।
इसे कहते हैं मजबूरी का नाम --तालकटोरा । लेकिन बड़ा प्यारा ।
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आपने सही निर्णय लिया.....वहां जाकर भी क्या करते ?आप जैसे घुमक्कड़ पर्यावरण प्रेमी को ऐसी बंदिशे कहाँ पसंद आएगी ,अब देखिये न इस बहाने आपने कितनी बढ़िया सैर करवाई है....!धन्यवाद जी...
ReplyDeleteबढ़िया सैर करवाई है......दराल जी
ReplyDeleteसभी तस्वीरे एक से बढ़कर एक है
ReplyDeleteविहंगम और मनमोहक चित्र डा० साहब , होली के बाद से अत्यधिक व्यस्तता और थकान की वजह से ब्लॉग जगत पर विचरण फिलहाल स्थगित है !
ReplyDeleteअरे घुमक्कड को चाहिए बस एक नजर घूमने के लिए.खूबसूरत चित्र हैं.बेगन बलिया तो जबर्दस्त्त है.
ReplyDeleteतालकटोरा के इतने सुन्दर दर्शन कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार.दिल्ली बहुत बार जाते आते रहें,लेकिन तालकटोरा के बारे में इतना कभी न जाना.यदि हो सके तो इसका इतिहास भी बताएं.
ReplyDeleteताल कटोरा गार्डन कभी देखा नही था आज आपने सैर करा दी डॉ साहेब !
ReplyDeleteऊँचा चबूतरा से गार्डन ऐसा लगता है मानो कश्मीर के शालीमार गार्डन में खड़े हो--धन्यवाद सुंदर तस्वीरो के लिए
अच्छा निर्णय किया। आप देख भी आते तो हमें चित्र देखने को थोड़े ही मिलते।
ReplyDeleteताल कटोरा गार्डनकी सैर मनोरम रही.
ReplyDeleteगज़ब की फोटोग्राफी की है आपने इस अनुपम उद्यान की ! सादर
ReplyDeleteमें रोज यहाँ सुबह भागने आता हू मुझे अंदाज़ा भी नहीं था की कभी कोई इस पर भी लिखेगा वो भी इतना अच्छा बहुत हैरानी सी हो रही हैं
ReplyDeleteइसी के पास बिरला मंदिर भी हैं और सुबह यहाँ का महाल बेहद खुश नुमा होता हैं बेहद
धन्यवाद लेखक साहब हमारे पार्क को इतना खास बनाने के लिए
डॉ साहिब, आपके चर्चे तो बहुत सुने थे, पर आज ही आपके ब्लॉग के रूबरू हुआ हूँ, आशा है आता रहूँगा.....
ReplyDeleteबेहतरीन फोटू के लिए शुभकामनाएं...
यहां हैदराबाद के राष्ट्रपति निलयम में भी १५ दिन के लिए जनता के लिए खुला रहा। बाहर के फ़ोटो लेने में कोई दिक्कत नहीं थी। आपके सुंदर लुभावने चित्रों को देख कर दिल बाग बाग हो गया॥
ReplyDeleteसभी तस्वीरे एक से बढ़कर एक है डाक्टर साहेब कैमरा कौन सा है यह बताइए ?
ReplyDeleteदेव , दीपक बाबा --आपका स्वागत है । आशा करता हूँ कि आगे भी आप निराश नहीं होंगे ।
ReplyDeleteमनोरम चित्रावली तालकटोरा गार्डन की...
ReplyDeleteसुनील कुमार जी , तस्वीरें मोबाईल कैमरे से ली गई हैं । ब्लैकबेरी ८५२० ।
ReplyDeleteतालकटोरा बचपन मे देखा था, ओर आज आप ने दिखा दिया, बहुत सुंदर चित्र,इस पार्क को देख कर मन खुश होगया, धन्यवाद
ReplyDeleteतालकटोरा इतना सुन्दर है, कभी सोचा न था. आभार तस्वीरें दिखाने का.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र!
ReplyDeleteItna Sundar katora hai Dilli ka Tal katora , pahli bar dekha hai,
ReplyDeleteThanks
डॉक्टर साहब बड़ी नाइंसाफ़ी है...
ReplyDeleteसबकी फोटू ली, लेकिन ताल और कटोरे को कहां छोड़ दिया...
जय हिंद...
अच्छा हुआ कि पार्किंग के चलते आप भेड़चाल का शिकार होने से बच गए:)
ReplyDeleteएक बार मैं भी गया था.
मुग़ल गार्डन देखने जाना कुछ इसी तरह है जैसे कोई चार चांटे लगा कर कहे -'हंसे नहीं तो देख लेना'. वहां लगातार हिदायतें दी जाती रहती हैं कि ये न करें वो न करें..बस भी़ड़ के पीछे नाक की सीध में बिना रूके चलते रहें..ठीक वैसे ही जैसे दक्षिण भारत के मंदिरों में वहां के पंडे करते हैं... वो दिन और आज का दिन, क्या मजाल कि कभी उधर का रुख दोबारा किया हो तो, मैंते तो तौबा कर ली.
धन्यवाद इसके परिवर्तित रूप के दर्शन कराने के लिए!
ReplyDelete'ताल कटोरा' नाम ही दर्शाता है कि कभी इस स्थान पर पेयजल भण्डारण हेतु एक कटोरे के आकार का ताल रहा होगा...
बंग भंग के पश्चात ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता से नई दिल्ली करने का निर्णय लिया गया (जिसके लिए तत्कालीन पंजाब और उत्तर प्रदेश के राजाओं ने जमीन उपलब्ध करा दी) ,,,जिस कारण दिल्ली का स्वरुप ही बदल गया,,,
हमें भी सरकारी मकानों में तालकटोरा के निकट रहते यहाँ सुबह शाम खेलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,,, और जमुना का पेयजल घर घर में पहुंचते देखा,,,,
भारत देश का बटवारा होने पर तो व्यवस्था पर भार अत्यधिक बढ़ गया है...
बहुत ही सुंदर चित्र, आप तो मंजे हुये फ़ोटोग्राफ़र निकले, मैं भी आ रहा हूं फ़ोटो खिंचवाने.:)
ReplyDeleteरामराम
malum nahin tha ki taalkatora garden itna achcha hai....achcha kiye ghuma diye.
ReplyDeleteGarden sachmuch bahut sundar laga. aapka parishram sarahneey hai.
ReplyDeleteबहुत अच्छे चित्र है आभार।
ReplyDeleteखुशदीप ताल अब तरण ताल और कटोरा स्टेडियम बन चुका है ।
ReplyDeleteकाजल जी , फिर भी गाड़ियों की लाइन लगी थी ।
ताऊ सबके फोटू तो उतार दिए आपने , अब आप ही बचे हैं ।
बड़ी मनमोहक तस्वीरें हैं...एकदम रिफ्रेशिंग
ReplyDeletemanmohak tasveer.....waise mughal garden bhi aapko jana chahiye tha..:)
ReplyDeleteडा साहिब, हमने पैविलिअन पहली बार शायद प्रथम यूथ फैस्टिवल के समय देखा (पचास के दशक के आरम्भ में) और तरण ताल भी सायद साठ के दशक के अंत में बनते देखा...और याद आता है कि नब्बे के दशक के आरम्भ में अन्दर बने रेस्तोरां में एक मित्र की बेटी के विवाह के सिलसिले में पार्टी में भी भाग लिया था...
ReplyDeleteडाक्टर साहेब / हर हसीं चीज का मै तलबगार हूं कि मानिन्द जव वहंा जगह न मिली तो ताल कटोरा ही सही । सभी चित्र सुन्दर लगे । चित्र नम्बर आठ में क्या झुरमुट में आप ही है या ? चित्र नम्बर 9 के पुष्प् का नाम नहीं दिया कही यह डहलिया तो नहीं । अन्तिम चित्र पेड सबसे पहला और सबसे शायद बडा भी । सौंदर्य दर्शन कराने के लिये धन्यबाद
ReplyDeleteजे सी जी , अब पार्क का हिस्सा काफी छोटा हो गया है । रेस्तरां में शादियाँ / पार्टियाँ भी होती हैं ।
ReplyDeleteबृजमोहन जी , चित्र नंबर आठ में हम नहीं , हमारी छाया है । पुष्प का नाम कहीं नहीं लिखा था ।
यह पेड़ शायद जिन्दा पेड़ों में सबसे पुराना रहा होगा ।
बचपन मे देखा था तालकटोरा ..... आज फिर से आप ने दिखा दिया!
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र..... एक से बढ़कर एक !
धन्यवाद !
बढ़िया घुमाया आपने तालकटोरा । उम्दा तस्वीरों का तो जवाब नहीं ! आनंददायी ।
ReplyDeleteलो जी हमने भी घर बैठे ताल कटोरा देख लिया,
ReplyDeleteआपका धन्यवाद हमे फ्री मे ताल कटोरा दिखाने के लिए
आप यु ही दिल्ली के तमाम दर्शनीय स्थलों की सैर कराते रहिये. हम तो सोचते ही रह जाते हैं. सुंदर चित्र, सुंदर विवरण और कैप्सन.
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र। मैं तो समझ रहा था कि यहाँ कोई कटोरेनुमा ताल होगा। हो सकता है कभी रहा हो।
ReplyDelete@ एक पेड़ भी था जो अपनी जिंदगी जी चुका था ।
ReplyDeleteपूरी एक नज़्म का इस पेड़ में ....
अभी अभी मैंने पढ़ी .....
@ रंग बिरंगे फूलों की निराली छटा । कुछ और भी दिख रहा है ?
कुछ दिखा ...शायद आपकी छाया ....?
सही है हरकीरत जी ।
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