आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है ।
आइये देखते हैं क्या है आज महिलाओं का स्टेटस हमारे समाज में ।
सैक्स रेशो : पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या काफी कम । दिल्ली में अभी भी १००० पुरुषों पर सिर्फ करीब ८५० महिलाएं ।
शिक्षा : २००१ की जनगणना के अनुसार देश में ७५ % पुरुष और ५३.७ % महिलाएं शिक्षित हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या मात्र ४६ % है ।
व्यवसाय : ५१.७ % पुरुष और २५.६ % महिलाएं रोजगार में हैं ।
ज़ाहिर है , अधिकांश महिलाएं आज भी हर क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले पीछे हैं ।
महिलाओं के विरुद्ध अपराध :
११८ करोड़ आबादी वाले देश में जहाँ ७१ % लोग गावों में रहते हैं , ३८ % गरीबी रेखा से नीचे और बड़ी संख्या में अशिक्षित लोग हैं , वहां महिलाओं के साथ अत्याचार भी दिन पर दिन बढ़ रहे हैं ।
बलात्कार , अपहरण , छेड़खानी , दहेज़ उत्पीड़न और अत्याचार जैसे जघन्य अपराध समाज में फैले हैं ।
लेकिन एक और अपराध जिसे अकसर नज़रअंदाज़ किया जाता है , वह है महिलाओं के प्रति घरेलु हिंसा ।
घरेलु हिंसा यानि पति या घर के किसी अन्य सदस्य द्वारा महिला का उत्पीड़न ।
ऐसा नहीं है कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा सिर्फ कम पढ़े लिखे या गरीब परिवारों में ही देखने को मिलती है । घरेलु हिंसा हर वर्ग , समुदाय और धर्म के लोगों में बराबर व्याप्त है ।
क्यों होती है घरेलु हिंसा ?
इसके लिए जिम्मेदार है हमारी सोच ।
पुरुष प्रधान समाज में अभी भी महिलाओं का दर्ज़ा पुरुषों से नीचे ही समझा जाता है ।
पति के लिए पत्नी उसकी एक प्रोपर्टी है , जिसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकता है ।
पति गृह मालिक है , दाता है , बलशाली है, वह मर्द है ।
पति के लिए पत्नी को पीटना अपना आधिपत्य स्थापित करने का साधन समझा जाता है ।
घरेलु हिंसा के प्रकार :
१) शारीरिक
२) मानसिक
३) यौन शोषण
४) भावनात्मक शोषण
५) आर्थिक अत्याचार
इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च , जयपुर और स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, दिल्ली द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में बताया गया कि डोमेस्टिक वायलेंस ( घरेलु हिंसा ) की शिकार महिलाओं के लिए भारत सरकार ने एक अधिनियम लागु किया है --प्रिवेंशन ऑफ़ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट २००५ --जिसके अंतर्गत निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करने का प्रायोजन है :
* राज्य के हर जिले में एक प्रोटेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति , जो पीड़ित महिला को कानूनी सहायता लेने में सहायता करेगा ।
* पीड़ित महिला , या उसका कोई भी प्रतिनिधि या प्रोटेक्शन ऑफिसर कोर्ट से महिला के लिए कानूनी सहायता मांग सकता है ।
* मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला के लिए एक सर्विस प्रोवाईडर नियुक्त कर सकता है ।
* कोर्ट शोषण करने वाले पति या अन्य व्यक्ति को अवरुद्ध और पीड़ित महिला को आर्थिक राहत प्रदान कर सकता है ।
घरेलु हिंसा से पीड़ित महिलाओं के उपचार में डॉक्टर्स की भी अहम् भूमिका है । क्योंकि इनके साथ अतिरिक्त सहानुभूति , संयम और संवेदना की ज़रुरत होती है ।
साथ ही अस्पताल में भी उन्हें सभी कानूनी जानकारी प्रदान करने के लिए जोर दिया गया है ।
ऐसी महिलाओं को सही मार्गदर्शन की ज़रुरत होती है , क्योंकि यहाँ प्रताड़ित करने वाला स्वयं उसका पति होता है । इसलिए बहुत संभल कर कदम उठाने की ज़रुरत होती है ।
लेकिन सबसे ज्यादा ज़रुरत है अपने अधिकारों के बारे में जानना ।
इसलिए जितना हो सके इस विषय पर बहस और विचार विमर्श की ज़रुरत है ताकि समाज में फैले इस अमानवीय कृत्य को समाप्त किया जा सके ।
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बेहतरीन सामयिक पोस्ट के लिए बधाई !नराधम हैं वे और अपने को पुरुष कहते हैं
ReplyDelete....
हम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्में कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में
यह शक्ति तुम्ही से पाई है
हम अब भी आंसू भरे तुझे, टकटकी लगाए बैठे हैं !
बहुत अच्छी जानकारी है। मगर मर्ज बढता ही गया ज्यों ज्यों दवा की। जब तक पुरुशः अपनी सोच नही बदलेगा तब तक कानून का भी कोई फायदा नही। सार्थक पोस्ट के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषणात्म चिन्तन!
ReplyDeleteएक ज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteठोस और ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने डा० साहब, मगर दिक्कत वही कि इस पुरुष प्रधान समाज ने अपने अस-पास ताना ऐसा बुन के रख छोड़ा है कि महिला ही महिला की दुश्मन बन जाती है !
ReplyDeleteडेढ़ सो पुरुष अविवाहित रह गए डॉ. साहेब --इस महिला दिवस पर और क्या उपहार चाहिए पुरुष -वर्ग को ---
ReplyDelete(१००० पुरुष ८५० महिलाए)
जिस घर-समाज में महिलाओं का सम्मान न हो,उन्हें अपने हिसाब से जीने का अधिकार न हो, वो इनसानों नहीं भूतों का डेरा होता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
अच्छा विश्लेषण है--कानून भी आवश्यक है..परन्तु सिर्फ़ कानून से कोई सामाजिक समस्या हल नहीं होती, सोच को ही बदलना आवश्यक है और स्त्री पुरुष दोनों को ही कदम उठाने होंगे...
ReplyDelete---मूल समस्या मानवीय-अनाचरण की ही है, उसे ही सोचना होगा...
---नवीनतम शोध के अनुसार पुरुष क्रोमोसोम (वाई) /जीन में पुरुष-शिशु उत्पन्न करने की क्षमता क्रमश: कम होती जारही है अत: यह समस्या बढेगी ही....
यह समस्या उतना सहज सरल नहीं है जितना ऊपर से दिखती है -कई अपरोक्ष सामाजिक जैवीय कारण भी हैं -जिनका निराकरण एक गहरी समझ से ही किया जा सकता है -शायद पुरुष भी उतना दोषी नहीं है !
ReplyDeletesir kya mahilao ke liye hi sare kanon hai.
Deleteager kisi ki patni dahej ya ye bole ki mera pati mujhe mansic rup se pareshan karta hai
lakin aadmi ki koi galti nahi hai
sir please help me. me bahut pareshan hu apni patni ko leker wo muje dahej ke juthe iljam me fasana cahti hai
From
Amit Gaur (Ghaziabab)
9971046275
अमित जी , इस मामले में आपकी सहायता श्री दिनेश राय द्विवेदी जी कर सकते हैं जो एक वकील हैं . उनका कानूनी सलाह से सम्बंधित बलॉग है --- www.teesrakhamba .com
Deleteअधिकतर लोग केवल आशा में ही जीते हैं कि पुरुष की, संसार की, सोच बदलेगी, किन्तु कहावत है "जिसकी लाठी उसकी भैंस",,,जिसे देख शायद नारी को ही लाठी ढूंढनी होगी...जहां तक कानून का प्रश्न है कागजों में लिखे को व्यवहार में लाने में बहुत समय लगता है यदि सख्ती साथ साथ न अपनाई जाए...
ReplyDeleteसार्थक विश्लेषण ...समस्या का समाधान स्वयं की सोच को सुधारने में है
ReplyDeleteस्त्रियों ने इतना कुछ दिया है मगर प्रतिदान में यही सब मिला है उन्हें। कोफ्त होती है।
ReplyDeleteएक सुन्दर प्रस्तुति हैं आपकी. लेकिन सिर्फ क्या लेख लिखने से या बधाई दे देने से काम चल जायेगा. जरुरत हैं हम पुरुष वर्ग को कि खुद में सुधार लाये और घर कि महिलावो को शिक्षा जैसे मुलभुत अधिकारों से अवगत कराये. साथ ही पुरुष समाज कि सोच बदलने पर भी जोर दिया जाना चाहिए कि महिलाएं सिर्फ यौन सम्बन्धी या सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए नहीं. बल्कि वो हमारी माँ के रूप में बहेन के रूप पत्नी के रूप और बेटी के रूप में हम पुरुष वर्ग को प्यार करती हैं. हर दुःख- सुख में पुरे परिवार का साथ देती हैं.
ReplyDeleteभारत जैसे देश में महिलावो को देवी तुल्य दर्जा प्राप्त हैं मगर अफ़सोस कि उस देवी कि इज्जत आज का पुरुष वर्ग करने से कतराता हैं
thanks for the post dr
ReplyDeleteलेकिन सबसे ज्यादा ज़रुरत है अपने अधिकारों के बारे में जानना ।
ReplyDeleteऔर उसका समुचित उपयोग करना....
बहुत ही सार्थक और सामयिक पोस्ट
आँकड़ों से सुसज्जित बहुत बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने!
ReplyDeleteमहिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
आपने सार्थक एवं तथ्यपरक सूचनाएँ उपलब्ध कराई हैं.अब बाकी लोगों का कर्तव्य है कथनी और करनी में उन्हें उतारें.
ReplyDeleteलिखने-पढने से ही वैचारिक क्रांति आती है.आपका प्रयास सराहनीय है.
घरेलू हिंसा पर बढ़िया सामयिक पोस्ट... आभार
ReplyDeletejankariparak, sarthak evam vicharniy lekh.
ReplyDeleteसमस्या सामने है किन्तु ठोस व सार्थक समाधान कहाँ है ?
ReplyDelete36 गढ में 1000 पुरुषों पे 989 महिलाएं है जी। मतलब यहाँ का रेशो लगभग ठीक ही चल रहा है।
ReplyDeleteजब तक समाज में सोच नहीं बदलेगी तब तक इस समस्या का निदान होना कठिन है।
आभार
आद. डा. दराल जी,
ReplyDeleteआपकी आज की पोस्ट ने सोचने पर मजबूर कर दिया !
हम तो ढोल पीट पीट कर इस बात का एलान करते रहते हैं कि महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है मगर वस्तुस्थिति एकदम अलग है !
काश, समाज अब भी अपनी आँखें खोल पाता और उन्हें उनके हिस्से का सम्मान और ख़ुशी सौंप देता !
महिला दिवस पर सामयिक और सार्थक पोस्ट के लिए आभार !
घरेलु हिंसा एक ऐसा विषय है , जो समाज में व्याप्त है लेकिन इसके बारे में जागरूकता नहीं है । किसी भी समस्या का समाधान निकलने केलिए आवश्यक है कि उसके बारे में बात की जाए । अक्सर हम पहले तो मानने से ही मना करते हैं कि ऐसी कोई समस्या है भी । there is a phase of denial । इससे बाहर आने के बाद समाधान ढूंढते हैं ।
ReplyDeleteबेशक हमें महिलाओं के प्रति अपना रवैया बदलना पड़ेगा । विकसित समाज में तो बदल रहा है । लेकिन अभी भी एक बहुत बड़ा समाज है जहाँ इसे स्वीकार करने में समय लगेगा ।
अच्छा विश्लेषण,आभार.
ReplyDeleteइस आलेख में आपने बेहद सटीक , सामयिक और सशक्त विश्लेषण किया है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सटीक विश्लेषण।
ReplyDeleteबालिकाओं की शिक्षा पर अधिक जोर देना ही समाधान है।
सेक्स रेशियो से तो पता चलता है कि महाभारत के समय से लेकर अब तक तो महिला रेशियो काफ़ी इम्प्रूव कर गया... तब तो पंच पांडव के बीच एक द्रौपदी :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर विश्लेषण है, लेकिन कानून से ज्यादा हमे अपने को बदलने की जरुरत हे, क्योकि कानून का सिर्फ़ चलाक लोग इस्तेमाल करते हे शरीफ़ ओर आम आदमी घर मे शांति चाहता हे, ओर कानून का सहारा तो मिल जाता हे लेकिन घर बिखर जाता हे, इस लिये हमे अपनी सोच को बदलना चाहिये...पति के लिए पत्नी उसकी एक प्रोपर्टी है पता नही केसे मर्द होंगे यह? हम तो घर मे नोकर हे जी बीबी के ड्राईवर, मुंडु, घर के चोकी दार, ओर कमाऊ जो सब कुछ बीबी पर नोछबर कर दे.... ओर मरने के बाद भी बीबी के लिये फ़िक्र करने वाले, कि मेरे बाद इसे कोई दिक्कत ना हो इस के लिये इतना छोड जाये कि इसे नोकरी ना करनी पडे, फ़िर इतना सब करने के बाद भी....... बेचारा मर्द... जालिम ही कहलाता हे, या जोरू का गुलाम, अच्छा कभी नही कहलाता,
ReplyDeleteभाटिया जी , अपना भी हाल आपके जैसा है ।
ReplyDeleteलेकिन आप और हम जैसे लोग मिलते कहाँ हैं आजकल ।
कानून का डर मनुष्य को इंसान बनाये रखता है ।
विदेश में हमने तो यही देखा है ।
चिंतन का विषय है. अधिकारों के प्रति जागरूकता भी जरूरी है न्यायप्रक्रिया में सुधार से भी कुछ हद तक सफलता पाई जा सकती है. जिस हृदयपरिवर्तन कि बात सोच रहे हैं वह अपने आप तो होने वाला नहीं.
ReplyDeleteबेहतरीन सामयिक पोस्ट के लिए बधाई| धन्यवाद|
ReplyDeleteचिन्तनीय विषय …………सोचने को मजबूर करती है और इस दिशा मे सार्थक कदम उठाये जाने चाहियें।
ReplyDeleteबेहतरीन विश्लेषण ।
ReplyDeleteआभार ।