लगता है , ब्लॉग जगत में होली का खुमार अभी उतरा नहीं है । इसी कड़ी में छोटा सा योगदान अपना भी ।
आज बस यूँ ही , कुछ शे'र लिखने की कोशिश की है ।
इक शोर सा उठा है मयख़ाने में
फिर कोई दीवाना होश खो बैठा ।
या खुदा ये कैसा आलम है
या हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है ।
करें क्या उनसे हम शिकवा
ख़ता कोई हमीं से हुई होगी ।
दोस्ती का दम यहाँ भरते हैं सभी
आखिरी कदम कोई साथ नहीं चलता ।
ग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
बस आज इतना ही , अगली पोस्ट में एक और प्रयोग ।
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लगता है हकीकत को काव्य में बदल दिया है;एकदम सही कथन है.
ReplyDeleteआज इतनी भी मय नहीं मयख़ाने में,
ReplyDeleteजितनी छोड़ दिया करते थे हम पैमाने में...
जय हिंद...
nice
ReplyDeleteदोस्ती का दम यहाँ भरते हैं सभी
ReplyDeleteआखिरी कदम कोई साथ नहीं चलता
बहुत खूब कहा है.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हर शेर बेहतरीन ....
ReplyDeleteग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ReplyDeleteग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
क्याब्बात है डॉक्टसाब!!!
या खुदा ये कैसा आलम है
ReplyDeleteया हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है ।
अजी उन्हे चढी होगी....
बहुत मस्त मस्ती जी आज की पोस्ट मे
हमे तो बिना पिये चढ गई.
धन्यवाद
ठीक ठाक ही लिख लेते हो आप....कब आ रही है आपकी पहली काव्य बुक....!बहुत खूब !!!
ReplyDeleteशेर मत कहो ना!
ReplyDeleteantim sher wah kya baat hai..........aur pahile sher se muttalik............
ReplyDeletedeewane to vo hee kahlate hai jee jo hosh kho baithe hai..........:)
vaise aap ka prayog kamyab raha.....
aap to harfanmoula ban gaye......
badhaee
ग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ReplyDeleteग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
मत पूछना....अच्छा किया वर्ना घर में जंग छिड़ जाती :)
अपनी खिड़की से हम झांके अपनी खिड़की से वे झांके
ReplyDeleteलगा दो आग खिड़की में न हम झांकें न तुम झांको !
वाह जी बल्ले बल्ले
ReplyDeleteग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
ReplyDeleteबहुत खूब ...होली के आफ्टर इफेक्ट्स बढ़िया हैं ..
सच पूछिए तो दराल सर, कभी कभी आपसे ऐसी पोस्टों की उम्मीद करता हूँ, और आप दिल की बात सुनते भी हैं, तभी तो अपने पाठकों को आप कभी निराश नहीं होने देते.
ReplyDeleteलेकिन आज आपके शेर में आपका दर्द भी दिख रहा है. चलिए अब मुस्कराए आप :)
हा हा हा ! माथुर जी , सुलभ --ऐसा भी नहीं है । आज पहली बार कवि की कल्पना का सहारा लिया है ।
ReplyDeleteरजनीश जी , बस पता चलते ही कि बुक लिखी कैसे जाती है ।
अजित जी --सॉरी !
bahut sundar
ReplyDeletesare sher achche hai
ये अनुभव के आफ्टर-इफेक्ट्स हैं।
ReplyDeleteदोस्ती का दम यहाँ भरते हैं सभी
ReplyDeleteआखिरी कदम कोई साथ नहीं चलता ।
सच्चाई को अभिव्यक्त किया है आपने ..इस दुनिया में यही होता है
ग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ReplyDeleteग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
खुमार उतरना भी नहीं चाहिए. सारा साल ही ये माहौल रहे तो क्या बात हो. शेर भी उम्दा माहौल के अनुकूल.
बढ़िया हैं ये साईड इफेक्ट !
ReplyDeleteहद है इतना बड़ा मेहमानखाना होते हुए भी खुदा से रोना ०अभी भी भांग चढी हुयी है !
ReplyDelete.
ReplyDelete@-ग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ..
शायर साहब ,
मेहमानखाना हो न हो , हमने तो डेरा डाल रखा है वहाँ ..
.
इक शोर सा उठा है मयख़ाने में
ReplyDeleteफिर कोई दीवाना होश खो बैठा ।
या खुदा ये कैसा आलम है
या हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है ।
जबरदस्त सर जबरदस्त ! मजा आ गया !
"...फिर कोई दीवाना होश खो बैठा..."
ReplyDeleteहोश खोने की बात चली तो वो बोले
भाई पीया तो शिव जी ने था
मानव जीवन के हित में कालकूट, हलाहल
और झेल उसे लीन हो गए घोर साधना में
अर्धांगिनी पार्वती पर छोड़ दुनिया का झमेला...
तबसे आदमी गटक रहा है और भटक रहा है
पूछे तो किससे कि कोई पीता ही क्यूँ है ?
मेरी तो और भी देर से उतरी है इसीलिये आपके इन साईड इफेक्ट्स का अवलोकन बहुत बाद में हो पा रहा है । शायरी की भाषा में होली के आफ्टर इफेक्ट्स अच्छा असर कर रहे हैं ।
ReplyDeleteइक शोर सा उठा है मयख़ाने में
ReplyDeleteफिर कोई दीवाना होश खो बैठा ।
हूँ...हूँ.....कौन थी वो ....?
या खुदा ये कैसा आलम है
या हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है ।
बधाई ...इस आलम की ......
करें क्या उनसे हम शिकवा
ख़ता कोई हमीं से हुई होगी ।
अब मयखाने में यूँ दीवाने बनेंगे तो मैडम जी नाराज़ तो होंगी ही न ......):
दोस्ती का दम यहाँ भरते हैं सभी
आखिरी कदम कोई साथ नहीं चलता ।
अभी देखा पिछली यात्रा में तो साथ ही थीं अपनी पसंद का फूल दिखातीं ....
लाजवाब ...होली के आफ्टर इफेक्ट्स....!!
दोस्ती का दम यहाँ भरते हैं सभी
ReplyDeleteआखिरी कदम कोई साथ नहीं चलता ।
सारे शेर अच्छे हैं मगर इस शेर ने दिल को छू लिया !
आभार!
हा हा हा ! नहीं राधारमण जी , ऐसा अनुभव नहीं हुआ है ।
ReplyDeleteरचना जी , क्या करें रोज होली दिवाली होती नहीं ।
बहुत खूब दिव्या जी ।
शुक्रिया गोदियाल जी , कोई तो मयखाने का कद्रदान निकला ।
हरकीरत जी , क्या बात है ! आपने तो अलग अलग शेर को पिरोकर बढ़िया कहानी बना डाली ।
धन्यवाद ज्ञानचंद जी ।
बहुत सुन्दर है सारे शे'र डॉ. साहेब ! एक मेरी तरफ से :-
ReplyDeleteहम अपने दर्द की तोहिंन कर गए होते !
अगर शराब न होती तो मर गए होते !
या खुदा ये कैसा आलम है
ReplyDeleteया हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है ।
सुबह का भूला शाम तक घर आ गया होता
क्या करे पर रास्ते में एक ठेका है.
उम्दा साइड एफ्फेक्ट्स.
ReplyDeleteदायें से भी बढ़िया,बायें से भी बढ़िया.
ग़र मिला कभी तो पूछूंगा ऱब से, क्या बिगड़ जाता
ReplyDeleteग़र बनाया होता दिल के मकाँ में इक मेहमानखाना ।
जबरदस्त साइड इफेक्ट्स
डा ० साहेब आपकी कविता और आपके प्रयोग लाजवाब होते हैं ! ताल कटोरा के चित्र बहुत ही अच्छे लगे !
ReplyDeleteआदरणीय डॉक्टर साहब
ReplyDeleteप्रणाम है …
इतने ग़ज़्ज़्ज़ब शे'र !
हुज़ूर , इनकी दहाड़ हमारी हालत ख़राब कर रही है … :)
विलंब से आया हूं … लेकिन, विश्वस्त सूत्रों से सूचना मिली थी कि ---होली के आफ्टर इफेक्ट्स -- के बहाने हम जैसे कवि-शायर कहलाने वालों की छुट्टी की तैयारी है … पता नहीं था कि हम आपके निशाने पर हैं … :)
या खुदा ये कैसा आलम है
या हम नशे में हैं या उन्हें चढ़ी है
क्या बात है जनाब ! हमारे मन की बात आपकी ज़ुबानी ! व्व्वाऽऽह !
करें क्या उनसे हम शिकवा
ख़ता कोई हमीं से हुई होगी
आहऽऽहाऽऽहाऽह ! महबूब की बेवफ़ाई पर भी शिकायत की जगह बिना कसूर इल्ज़ाम अपने सर लेने को यूं तैयार रहना …
पत्थर को भी पिघलना पड़ जाएगा… :)
बहुत बहुत मुबारकबाद !
अरे ! ये क्या ? इन्हीं शे'रों को हीरजी भी कोट करके गईं हैं … ! उनके कोट किए तीसरे शे'र को अपने साथ ले'कर जा रहा हूं फिर …
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हा हा हा ! राजेन्द्र जी , देर आयद दूरस्त आयद !
ReplyDeleteलेकिन आखिरी शे'र पर तो आप ने भी टिपण्णी नहीं की ज़नाब । :)