गत सप्ताह गोवा में मेडिकल नेग्लिजेंस पर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फेरेन्स में शामिल होने का अवसर मिला ।
प्रस्तुत है इसकी एक छायाकृत रिपोर्ट :
दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल ३ के अंतर्राजीय प्रस्थान टर्मिनल में प्रवेश करते ही एक नज़ारा ।
डिपारचर लाउंज में सजावट की एक झलक ।
प्रस्थान द्वार की जाते हुए --
प्रस्थान के लिए विभिन्न द्वार बनाये गए हैं । इलेक्ट्रोनिक साईनेजिज से बहुत सहूलियत रही।
इस दौड़ती हुई पट्टी को क्या कहते हैं ? भारत में पहली बार सिर्फ यहाँ पर ही दिखेगी ।
गोवा एयरपोर्ट पर उतरने से पहले ।
सड़कें भी बड़ी सुन्दर दिखाई दीं ।
होटल रिविरा --जहाँ कॉन्फेरेन्स रखी गई थी ।
कॉन्फेरेन्स हॉल में देश विदेश से आए डॉक्टर्स अपना अपना अनुभव --आदान प्रदान करते हुए ।
होटल के पीछे लॉन में रात के समापन भोज़ की तैयारी ।
अंत में लॉन में डी जे की धुनों पर थिरकते देशी विदेशी मेहमानों ने खाने पीने का लुत्फ़ उठाते हुए कॉन्फेरेन्स के समापन होने का जश्न मनाया ।
और इस तरह यह द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा सम्मेलन सम्पूर्ण हुआ ।
नोट : सभी चित्र मोबाईल कैमरे से । अगली पोस्ट में आपको ले चलेंगे --गोवा की सैर पर, सचित्र वर्णन के साथ ।
Thursday, March 3, 2011
गोवा में द्वि-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा सम्मेलन --एक रिपोर्ट....
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अद्भुत नजारा -आप तो एक कुशल चितेरें हैं हीं -ब्लागजगत के फोटोग्राफी विशारद -टर्मिनल तीन के क्या कहने -हमतो पहले ही किस्सा बयाँ कर चुके हैं -चलती सड़क के शुरू और अंत में लिखा तो है -ट्रेवेलेटर ..
ReplyDeleteहाँ गोवा के चित्र सेंसर नहीं होने चाहियें
खूबसूरत और चित्रमय रिपोर्ट के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteचित्रमयी प्रस्तुति.
ReplyDeleteडिपारचर लाउंज की सजावट पर यूपी का तो असर नहीं.
ReplyDeleteवाह! थिरकते लोग, मतलब फ़ुल इनज्वाय।
ReplyDeleteआभार
अच्छे फोटो हैं, देखकर लगता है सम्मलेन बढ़िया रहा होगा... और वोह हाथी महाराज वाली फोटो देखकर तो हम परेशान हो गए थे... :-) लगा बेचारे को करंट लग रहा है... :-)
ReplyDeleteवाह भाई जी वाह...
ReplyDeleteघर बैठे गोवा घुमा दिया....
चित्र भी चलचित्र जैसे हैं...
आप जैसा मोबाईल मुझे भी लेना पड़ेगा....
हा..हा..हा..
साधुवाद
अच्छा लगा तस्वीरों से जान कर...
ReplyDeleteसभी चित्र सम्मलेन के प्रति उत्साह और उसकी सफलता की जानकारी देते हैं.
ReplyDeleteतस्वीरें देख कर आनन्द आ गया। धन्यवाद।
ReplyDeleteLovely pics !
ReplyDeleteबढ़िया चित्र! 'मूविंग वॉक वे' कहते हैं उन पट्टियों को...
ReplyDeleteफोटो फीचर से सजी रपट बहुत बढ़िया रही!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
WoW,बहुत प्यारा चित्रण , वैसे आपने भी हवाई उद्घोषक की बात नहीं मानी और विमान के उतरते हुए अपना कैमरा खुला रखा :) वैसे गोवा एअरपोर्ट (रनवे ) बहुत छोटा सा लगता है दिल्ली के मुकाबले ! खैर जगह की कमी है इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते !
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्र अब अगली रिपोर्टिंग की प्रतिक्षा है.
ReplyDeleteरामराम.
तस्वीरें देख कर मन में आया - " आ अब लौट चलें "
ReplyDeleteआभार इतनी सुन्दर तस्वीरों का.
ek safal sammelan par badhaai sir.. sundar pics.
ReplyDeleteअच्छी तस्वीरें !
ReplyDeleteतस्वीरें बहुत सुन्दर आई हैं...अब आपकी नज़रों से गोवा देखने का इंतज़ार
ReplyDeleteहा हा हा !आपकी बात याद रखेंगे ।
ReplyDeleteवैसे आपकी गूढ़ हिंदी तो कभी कभी हमें भी समझ नहीं आती ।
हाथी की फोटो का औचित्य तो हमें भी समझ नहीं आया ।
पूरा गोवा देख लिया ! आभार सर!!
ReplyDeleteगोदियाल जी , विमान में सवार यात्रियों का रवैया वैसा ही होता है जैसा फेरे लेते समय ज्यादातर वर वधु का । पंडित क्या बोल रहा है , कोई सुनता ही नहीं । :)
ReplyDeleteवैसे फोन से रेडियंस निकलने की वज़ह से दखलअंदाजी हो सकती है , कैमरे से नहीं ।
अरे सतीश जी , अभी तो शुरुआत भी नहीं हुई ।
ReplyDeleteअब फास्ट फॉरवर्ड में दिखायेंगे ।
बहुत सुंदर चित्र, ओर बहुत बढिया विवरण अब जल्दी से गोवा घुमा दे, साथ मे यह भी बताये कि दिल्ली से गोवा का किराया कितना लगा हवाई जहाज से ओर कितना समय लगा,ओर दिस्मबर मे वहां का मोसम केसा होता हे, बस अगली बार गोवा या राजस्थान ही घुमना हे,
ReplyDeleteधन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
तस्वीरें बोलती हैं... प्रमाण मिला :)
ReplyDeleteवाह! वाह ! डॉ. साहेब,आखिर आप भी फोटू ग्राफर बन ही गए --क्या लाजबाब चित्र लाए हे --
ReplyDeleteगोवा इतने पास होने के बावजूद भी कभी जा न सकी--अब आपके साथ ही सैर करेगे...
खोजने से पता चलता है कि 'जम्बो' नाम था एक बड़े अफ़्रीकी ऐतिहासिक हाथी का,, जिसके नाम पर बोईंग ७४७ हवाई जहाज को यह नाम दिया गया...
ReplyDeleteभव्य नजारा। सुंदर तश्वीर।...वाह!
ReplyDeleteभाटिया जी , गोवा घूमने के लिए सर्दियों का मौसम सबसे बढ़िया है । यहाँ सर्दी नहीं पड़ती । दिल्ली से रिटर्न एयर फेयर ८००० -१०,००० रूपये है । फ्लाईट मुंबई होकर जाती है ।
ReplyDeleteदर्शन जी , अभी तो और भी हैं । बस देखते रहिये ।
जे सी जी , एक हाथी का नाम मैमथ भी था ।
वो तो केवल एअरपोर्ट में हाथी की उपस्थिति और हवाई जहाज पर एक तुक्का था ! साबुन के चूरे के साथ एक स्टील की चम्मच मुफ्त जैसा !
ReplyDeleteएक पायलट से पूछा तो उसने कहा कि शायद बैंगकॉक के मोडल पर विदेशी पर्यटकों के सूचनार्थ डिपार्चर लुंज को ऐसे सजाया गया है कि उनको एक झलक मिले भारत में क्या क्या देखने को मिलेगा !
दौड़ती पट्टी का नाम ट्रैवलेटर है शायद...
ReplyDeleteहाथी को भारत की पहचान माना जाता है...लेकिन ये ज़ज़ीरों में क्यों जकड़ा है...क्या सिम्बोलिक फोटो है...भारत की हालत भी इस हाथी जैसी ही है...
जय हिंद...
पहले एलीवेटर , फिर एस्केलेटर , अब ट्रेवेलेटर --यकीनन भारत तरक्की पर है ।
ReplyDeleteप्राचीन भारत में तो कहते हैं कि पहुंचे हुए जोगी एक जगह से दूसरी जगह, भले ही वो कितनी दूर क्यूँ न हो, (ब्रह्माण्ड में कहीं भी?), पलक झपकते ही पहुँच जाते थे!!! कम से कम सोच कर ही हम आज आनंद उठा सकते हैं अपने पूर्वजों की पहुँच का !
ReplyDeleteजहाँ तक हाथी के जंजीर में जैसे जकडे होने का प्रश्न है, शायद यह इशारा हो जोगियों के अनुसार शरीर में ही उपलब्ध सम्पूर्ण सूचना के एक बड़े भाग के मूलाधार में बंद रहने का जैसे मगरमच्छ के मुंह में पकडे हाथी की टांग को !