top hindi blogs

Saturday, September 18, 2010

बीमारी का शर्तिया इलाज़ ---बीमार ही न पड़ें ---

यह पूरा सप्ताह अस्पताल में ही गुजरा लेकिन एक डॉक्टर के रूप में नहीं , बल्कि अटेंडेंट के रूप में । पिताजी को गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । हालाँकि अब अस्पताल के बिस्तर से मुक्ति प्राप्त कर घर आ चुके हैं , लेकिन रोगमुक्ति के लिए संघर्ष जारी है ।

पिछली पोस्ट में लिखी नज़्म , मैंने अस्पताल में अटेंडेंट के सोफा कम बेड पर बैठकर लिखी थी

सारे माहौल का जायज़ा लेने के बाद एक सवाल ज़ेहन में उठता है ।

सवाल : यदि आप बीमार पड़ जाएँ तो क्या करेंगे ?
ज़वाब : आप भला क्या करेंगेजो भी करेंगे , डॉक्टर्स ही करेंगे
आप को तो बस डॉक्टर के पास जाना है ।

बस इतना जान लें कि डॉक्टर के पास जाना आपके हाथ में है , लेकिन वहां से आपका निकलना सिर्फ डॉक्टर के हाथ में ।
अब इलाज़ के जितने ऑप्शंस हमारे देश में हैं , उतने शायद ही किसी और देश में उपलब्ध हों ।

आपके ऑप्शंस :

१) घर में दादी नानी के नुश्खे ।
२) गली के नुक्कड़ पर बंगाली डॉक्टर की दुकान ।
३) वैध , हकीम या आर एम् पी ।
४) वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली के चिकित्सक जैसे आयुर्वेदिक , होमिओपेथिक , यूनानी आदि ।
५) एलोपेथिक डॉक्टर --फैमिली फिजिशियन । या फिर स्पेशलिस्ट्स , सुपर स्पेशलिस्ट्स और सुपर सुपर स्पेशलिस्ट्स ।

लेकिन यदि आपको अस्पताल में भर्ती करने की नौबत जाये तो क्या विकल्प हैं ?

सरकारी अस्पताल :

जहाँ आपको मिलेंगी हर जगह लम्बी लम्बी कतारें , भीड़ भाड़ , गंदगी का साम्राज्य , वार्ड्स में एक बिस्तर पर दो दो तीन तीन मरीज़ , पूरे वार्ड में बस एक या दो नर्सें , मुश्किल से ढूंढें से मिलते डॉक्टर जो बात बात पर डांट लगायें, टेस्ट्स की रिपोर्ट के लिए लम्बा इंतजार , मिल जाये तो गनीमत । ए सी की छोडिये , यदि आपके सर पर पंखा चल रहा हो तो बड़ी बात है । हर कोने में पान की पीक जैसे सारे पान चबाने वाले यहीं पैदा होते हैं ।

यहाँ इलाज़ कराना , सच में सबके बस की बात नहींबहुत बड़ा ज़िगर चाहिए , इसके लिए

प्राइवेट अस्पताल :

छोटे नर्सिंग होम से लेकर फाइव स्टार कॉर्पोरेट अस्पताल --ज़ाहिर है जितना गुड डालो , उतना ही मीठा होता है
यहाँ देखेंगे चमचमाते फर्श और दीवारें , कोई भीड़ नहीं , सेन्ट्रल ए सी , प्राइवेट रूम में सभी आधुनिक सुविधाएँ , एक बेड के लिए एक नर्स , आनन फानन में सब काम हो जाएँ । अदब से बात करते डॉक्टर्स ।

लेकिन बस यहीं तक ठीक है । एक बार आप भर्ती हो जाएँ , फिर देखिये क्या क्या होता है ।

* सबसे पहले जाते ही सारे टेस्ट्स --भले ही आपने दो दिन पहले कराए हों ।
* एक बार रेजिडेंट डॉक्टर द्वारा देख लेने और हिस्ट्री शीट भरने के बाद शुरू होता है , एक से बड़े एक स्पेशलिस्ट का आवागमन :

कार्डियोलौजिस्ट : वह आपकी ई सी जी से लेकर ईको तक सब जांच कर बताएगा कि आपका हार्ट ठीक है ।

डाईबीटोलौजिस्ट : शुगर के लिए ढेर सारे टैस्ट्स करा देगा ।

नेफ्रोलौजिस्ट : डायबिटीज है तो किडनी डिसीज तो होगी ही । एक और लिस्ट , टैस्ट्स की ।

यूरोलौजिस्ट : यूरिनरी सिस्टम में कहीं रूकावट है तो यूरोलौजिस्ट ही बताएगा ना । अब थोड़े टैस्ट और अल्ट्रा साउंड , सी टी स्केन आदि करेंगे तभी तो पता चलेगा , कहाँ रोग की जड़ है ।

न्यूरोलौजिस्ट : शुगर हो और नर्वस सिस्टम ठीक हो , ऐसा तो हो नहीं सकता । इसलिए एक बार पूरा नर्वस सिस्टम जांच करना पड़ेगा ।

गैस्ट्रोएंट्रोलौजिस्ट : पेट में खराबी है , बार बार दस्त आ रहे हैं , कोई बात नहीं ये डॉक्टर आकर अपनी एक्सपर्ट राय दे जायेगा । बस ५ -७ जाँच वो भी लिख जायेगा ।

हालाँकि इसके बाद और भी लौजिस्ट्स बचे हैं , जो आपकी किस्मत पर निर्भर करता है या आपके हालातों पर ।

इन सब ऐशो आराम के बीच बस एक ही चीज़ सताती है । और वो है --हर दो दिन बाद एक भारी राशी का एस्टीमेट जमा कराने के लिए ।

पैसे जमा करते करते एक दिन ऐसा आता है जब आप अपनी बीमारी के बारे में भूलकर बस यही सोचने लगते हैं कि ये डॉक्टर कब छोड़ेगा

ज़रा सोचिये --यदि आप करोडपति हैं जो लाखों हर महीने कमा रहे हैं या फिर ऐसी नौकरी करते हैं जहाँ आपका सारा खर्च दफ्तर उठाने को तैयार है , तब तो ठीक है । वर्ना एक आम आदमी के लिए ऐसा इलाज कराना क्या संभव है ?

इससे बचने के लिए तो एक ही रास्ता है कि आप बीमार ही पड़ें
लेकिन क्या यह संभव है ?

शायद नहीं , लेकिन ऊपर वाले से कम से कम प्रार्थना तो कर ही सकते हैं

38 comments:

  1. दवा से फ़ायदा होगा या होगा या होगा ज़हरे कातिल से
    मरज़ की क्या दवा है ये कोई बीमार क्या जाने :)

    ReplyDelete
  2. vaah vhaayi vaah bhut khub mzaa aa gyaa , ishvr pitaa shri ko jldi svsth kre or un shit sbhi ko svsth rkhe . akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete
  3. काश ये हमारे हाथ में होता तो कभी बीमार नही पड़ते...पर बीमार पड़ने के बाद तो सब कुछ डाक्टर साहब के ही हाथ में होता है.....

    ReplyDelete
  4. डा० साहब, सर्वप्रथम पिताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना !
    आपने भी अपने ही पेशे की बखिया उधेड़ दी :) , रही बात स्वस्थ रहने की तो अगर ऊपर वाले ने इनायत के तौर पर हमारे अन्दर एंटी-वायरस ही पाइरेटेड डाल रखा हो तो क्या कर सकते है, भला ?

    ReplyDelete
  5. सच है दराल जी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हादसा देखा ....जानते हुए भी की मरीज़ नहीं बचने वाला ...दोनों किडनियां जवाब दे चुकी हैं ..पैरालाइज़ हो चूका है ....फिर भी बच्चे पिता को बचाने में अपना घर बार सब बेच चुके हैं ....बाप बिलखता है छोड़ दो मुझे मरने दो ....ओह ....ये ज़िन्दगी पल में ही सब तहस नहस कर देती है ....कई बार कभी दिल्ली ..कभी चंडीगढ़ ...कभी कलकत्ते ...बच्चे हैं की मानते ही नहीं ......
    आप डॉ होकर भी वही वही सोचते हैं .......

    ReplyDelete
  6. बीमार पड़ने के बाद तो सब कुछ डाक्टर साहब के ही हाथ में होता है.....

    ReplyDelete
  7. अभी मैं आपसे बता रहा हूँ.... आपको याद होगा की मैं बाहर था और मुझे प्रॉब्लम हो गयी थी... तो आपने ही एक सस्ती और कॉमन दवाई बताई थी... जिसे मैंने खा लिया था और मुझे आराम मिल गया था... (इसके लिए एक बार फिर से आपको बहुत बहुत थैंक्स) .... थोड़े दिन के बाद फिर वही प्रॉब्लम हुई... तो एक फिज़िशियन को दिखाया... तो उसने दवा दी.... और तीन दिन की दवा सात सौ रुपय्रे की थी... खैर! दवा कहे ... थोडा सा आराम मिला.... आपने जो दवा बताई थी... वो तीन रुपये की थी... और यह सात सौ की... लेकिन बार बार हो रहा था तो सोचा कि डॉक्टर को दिखला दूं.... और दिखाया तो कहता हा कि और्काइटीस है...सर्जरी करना पड सकता है... तीन दिन बाद फिर गया तो बताया की प्रॉब्लम ठीक नहीं हुई... तो कहता है कि युरोलौजिस्ट के पास जाओ... युरोलौजिस्ट के पास गया तो कलर डॉप्लर अल्ट्रा-साउंड कहा करने को.... रिपोर्ट आई तो सब कुछ नोर्मल... सिर्फ डॉक्टर ने कहा कि एपिडीडाईमिटिस हो गया है.... सिर्फ वही दवा कहा खाने को जो आपने बताई थी... तीन रुपये वाली.... और कहा कि बस सपोर्टर पहनो... सब ठीक हो जायेगा.... और वाकई में सब तीन दिन में ठीक हो गया.... आपने सही कहा कि बेहतर है कि बीमार ही ना पड़ें...

    ReplyDelete
  8. पिताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ...

    ReplyDelete
  9. खुशवंत सिंह ने भी एक लेख में लिखा था कि हर बीमारी का इलाज़ तो है किसी न किसी पद्दति के माध्यम से, किन्तु आपको वो मिले या नहीं मिले इसकी कोई गारंटी नहीं,,, इस लिए आज आवश्यकता है ऐसी एक पद्दति की जिसमें १००% शर्तिया इलाज मिले...

    ReplyDelete
  10. आपके पिताजी के शीघ्र और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए परमपिता से प्रार्थना करूँगा......

    मैं भी इन हालात से अभी अभी मुक्त हुआ हूँ, जानता हूँ कितना मुश्किल होता है ये सब झेलना.........

    मेरी हार्दिक मंगल कामनाएं

    ReplyDelete
  11. सही बात है. भगवान किसी को यूं बीमार न करे. एक बार कोई प्राइवेट अस्पताल में गया तो बाहर आना बड़ा मुश्किल लगता है वहीं दूसरी तरफ सरकारी अस्पताल में भर्ती होना ही बड़ा मुश्किल होता है गर हो भी गए तो वहां टिके रहना उससे भी मुश्किल होता है.

    ReplyDelete
  12. गोदियाल जी , नोबल प्रोफेशन कहलाया जाने वाला चिकित्सा जगत भी अब प्रलोभन से बचा नहीं रहा है । मैं तो अक्सर सोचता हूँ जब हम डॉक्टर्स को ही इतनी दिक्कत झेलनी पड़ती हैं तो आम जनता का क्या हाल होता होगा ।

    हरकीरत जी , जब तक साँस है , तब तक आस है । बस यही होता है । वो भी खुशकिस्मत होते हैं जिनके पास सँभालने वाले बच्चे होते हैं ।

    महफूज़ भाई , आजकल डॉक्टर्स ओवर ट्रीट करने लगे हैं । इसलिए इस तरह की प्रोब्लम्स आती हैं । शुक्र है अब आप ठीक हैं ।

    अलबेला जी , उम्मीद है कि आप के भाई साहब अब ठीक होंगे ।

    काजल कुमार जी , सही कह रहे हैं आप । आजकल तो डेंगू और स्वाइन फ्लू के चलते अस्पतालों में जगह भी नहीं है ।
    इसीलिए कहता हूँ कि भगवान बीमार पड़ने से ही बचाए ।

    ReplyDelete
  13. घायल की हालत ...घायल ही जाने..

    ReplyDelete
  14. दराल सर आपके पिताजी के स्वास्थ्य की कामना करता हूं। मैं भी इस समस्या से जूझ रहा हूं। हालांकि अब तक सरकारी अस्पताल का तजुर्बा ज्यादा खराब नहीं रहा। मेहरबानी रही जानपहचान के सीनियर डॉक्टर्स की। पर अब हालात जरा जुदा है। अभी नर्सिंग होम में रखा था। पूरे खर्च का 75 फीसदी रुम चार्ज और टेस्ट का था। एक डॉक्टर ने ये जानकर की मीडियावाला है बताया कि आधे टेस्ट गैरजरुरी थे। मतलब कि अगर डॉक्टर घर में ही देख लेते तो इतना खर्चा नहीं होता। पर क्या करें घर जाना भी तो डॉक्टर्स को तौहिन लगती है जब तक की मोटी फीस न ले लें। अस्पताल में 300 तो घर आने के 500 से कम में किसी ने नहीं बताया। फिलहाल पिताजी बेड पर ही हैं। अपनी आमदनी हजारों में नहीं है सो क्या करें।

    ReplyDelete
  15. दराल जी,
    ऐसा कौन होगा जो ईश्वर से प्रार्थना नहीं करता होगा.???
    सभी प्रार्थना करते हैं, लेकिन भगवान् सबकी थोड़ी ना सुनता हैं और अगर सुनता हैं तो कब तक सुनेगा???, कभी तो सुनना बंद करेगा यानी कभी तो बीमार करेगा???

    बीमार कभी ना कभी तो हर कोई होता हैं बस अंतर ये रहता हैं कि-कोई कम बार बीमार पड़ता हैं तो कोई ज्यादा बार (बारम्बार) बीमार पड़ता हैं. दूसरा, कोई हल्काफुल्का बीमार होता तो कोई गंभीर बीमार."
    बीमार तो हर कोई, कभी ना कभी होता हैं.

    सबसे बढ़िया तो यही हैं, दुआ करते रहो भगवान् से कि-"कभी बीमार ना करे." दूसरा, कभी बीमार पड़ भी जाए तो आप जैसा नेक, समझदार, ईमानदार और अच्छा डॉक्टर मिले जो ना तो फ़ालतू के, बेमतलब के टेस्ट्स करवाए, ना महेंगी-महेंगी कमीशन वाली दवाएं लिखें, ना पैसा बनाने के लिए जबरन भर्ती रखें, और सबसे बड़ी बात जल्द से जल्द घर भी भेज देवे."
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

    ReplyDelete
  16. रोहित जी , जब से मेडिकल प्रोफेशन भी सी पी ए (CPA) के घेरे में आया है , तब से प्राइवेट डॉक्टर्स का रवैया ही बदल गया है । हालाँकि इसके लिए दूसरे भी जिम्मेदार हैं । लेकिन भुगतना पड़ता है , मरीजों को ।

    चन्द्र सोनी , सही कह रहे हो । लेकिन ऐसे डॉक्टर अब कम ही मिलते हैं । पैसा बड़ा बलवान है ।

    ReplyDelete
  17. दादा के लिए बेटे,पोते-पोतियों को खुशहाल देखने से बड़ा सुख कुछ नहीं होता। अस्पताल तो बहाना है,असली बात यह लगती है कि ईश्वर ने आप सबको अग्रज की सेवा-सुश्रुषा का सुअवसर दिया है।

    ReplyDelete
  18. इसी लिये हम तो पहले दादी नानी के नुस्खे आजमाते हैं। अगर न ठीक हों तो फिर कोई दूसरा विकल्प। बहुत अच्छी पोस्ट है धन्यवाद।

    ReplyDelete
  19. Daral saheb,
    aapne sahi kaha hai "beemar hi na paden" ."prevention is better than cure" This is not one day business.This is continuous process to maintain health till last breath.aapki post sajag karti hai . Bahut sari jaankariyan dene ke liye Dil se badhai!!!

    ReplyDelete
  20. डॉक्टर साहब,
    सबसे पहले सीनियर दराल सर के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना....

    घर में किसी के बीमार होने पर क्या स्थिति होती है, अच्छी तरह समझ सकता हूं...और तीमारदार डॉक्टर हो, फिर तो और भी डबल प्रेशर...सब समझते हैं कि आप तो खुद डॉक्टर है, इसलिए आपको कैसी चिंता...

    हमारे देश में प्राइवेट चिकित्सा का जो सिस्टम है, वो जब जेब काटता है तो ये नहीं देखता कि जिसकी जेब कट रही है, वो डॉक्टर है या कोई और...बिना किसी भेदभाव...

    रही गरीब के बीमार होने की बात, उसे तो ये हक ही नहीं है...वो तो जन्मजात गरीबी की बीमारी का शिकार है...ऐेसे में वो किसी और बीमारी की लिबर्टी कैसे ले सकता है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  21. सर , आपने तो धज्जी उड़ा दी ।
    पिता जी के शीघ्र स्वस्थ होने की मंगलकामना है ।

    ReplyDelete
  22. सच कहा डाक्टर साहब .... आप तो डाक्टर हैं तभी भी आपका अनुभव ऐसा है ... एक आम आदमी का क्या होगा ..... बस प्रार्थना ही कर सकते हैं प्रभु से .... पिता जी के शीघ्र स्वस्थ होने की मंगलकामना ...

    ReplyDelete
  23. इस लेख को पढने से विश्वास नहीं होगा कि यह व्यथा, हॉस्पिटल व्यवस्था से परेशान एक भुक्तभोगी डॉ की है ! ऐसा लेख सिर्फ डॉ दराल ही लिख सकते हैं ! भगवान् का शुक्र है कि मुझे होमिओपैथी के कारण पिछले २६ साल से अपने परिवार के साथ किसी डॉ कि शरण में नहीं जाना पड़ा !
    पिताजी को स्वस्थ होने के लिए हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  24. अस्पताल के नाम से भी डर लगता है लेकिन मजबूरी आदमी को वहाँ ले ही जाती है।
    ...सत्य अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  25. सबसे पहले तो पिताजी के शीघ्र स्वस्थ लाभ की कमाना करती हूँ. आश्चर्य होता है की डाक्टर हो कर भी आपकी वही सोच है जा हमार्रे जैसे हर आम आदमी की. आपने सही कहा कि बेहतर है कि बीमार ही ना पड़ें.

    ReplyDelete
  26. डा साहिब, जो पैदा होगा वो बीमार तो पड़ेगा ही, एक नहीं कई बार, कुछ दिन के लिए या बहुत दिनों के लिए और कष्ट भी पायेगा थोडा या अधिक (और देगा भी अपने रिश्तेदारों आदि को भी),,,, शायद इसी कारण प्राचीन ज्ञानी जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाने की प्रार्थना करते थे और उपाय ढूंढते थे...

    ReplyDelete
  27. सत्य वचन , जे सी जी ।

    ReplyDelete
  28. wishing your dad speedy recovery .
    aaj ye hee haal har shahar me hai.
    Bangalore me Dr visit nahee karate kisee bhee keemat par .
    Medical insurance bhee ek jaal failae baitha hai aur hospital se underhand dealing rahtee hai.................
    Take care .
    papajee ko koi takleef naa bhugatanee pade isee prarthana ke sath .

    ReplyDelete
  29. बीमारी से बचना ही सबसे बड़ा इलाज है...आज आपकी पोस्ट से ज़रा भी नही लगा कि डॉ. साहब बोल रहे है....वैसे बात आपकी सौ आने सही है...धन्यवाद जी..

    ReplyDelete
  30. "लेकिन ऊपर वाले से कम से कम प्रार्थना तो कर ही सकते हैं"
    सही कहा आपने

    ReplyDelete
  31. आपकी अंतिम सलाह ही सबसे ठीक है ,, कोशिश तो हम यही करते है ।

    ReplyDelete
  32. " Prevention is better than cure "-- Indeed.

    ReplyDelete
  33. सही कहा आपने आज के दौर में बीमार पड़ना लग्ज़री है जिसे आम आदमी अफोर्ड नहीं कर सकता...

    नीरज

    ReplyDelete
  34. डा. साहिब, हमारी मानसिक अवस्था पर निर्भर करता है कि हम किसी भी अवस्था में, शायद अनुभव पर निर्भर कर, स्वभावतः 'दुखी' अथवा 'सुखी' महसूस करें... कोई 'छोटी-छोटी' बातों में भी परेशान दिखाई पड़ते हैं जबकि कई 'बड़े-बड़े' दुःख भी आसानी से झेलते नज़र आते हैं ('आनंद' फिल्म जैसे)... गीता में इसी कारण योगियों ने सुझाया कि मनुष्य दुःख में, सुख में, गर्मी में, सर्दी में, इत्यादि, एक सा ही (स्तिथप्रज्ञं) रहे यह जान कर कि हम (अमर) आत्मा हैं, शरीर नहीं जो 'माया' के कारण दिखाई पड़ता है, क्यूँकि आत्मा न कट सकती है, न घुल सकती है और ना हीं सूख सकती है...किन्तु अपने मन को इस स्तर पर ले आना सरल नहीं है आम आदमी के लिए जो समय और स्थान पर निर्भर ताकतों द्वारा प्रभावित होता है, और समाज द्वारा निर्धारित कर्म-कांडों से मानसिक तौर पर जुड़ा होता है...

    ReplyDelete
  35. भाई साहब आपने सही कहा है............
    बीमार न पड़ना ही सबसे बड़ा ईलाज है.......

    ReplyDelete
  36. आपने आज कि चिकित्सा ?के सारे मुद्दों को बहुत सहजता से निष्पक्ष होकर रखा है |
    ये तो बीमारी हरी कि बात है किन्तु आज गर्भवती महिला जिस पर भी ये सब अस्पतालों के स्तर लागू होते है |हर हफ्ते या हर महीने सोनो ग्राफी (गर्भवती महिला कि )कहाँ तक उचित है ऑर गर्भ में ही बच्चो के सारे टेस्ट जैसे उनकी लम्बाई ,स्ट्रेस टेस्ट ,मानसिक सन्तुल न आदि आदि ?

    ReplyDelete
  37. Kya Dr sahab kuch to batate ki beemar kaise na paden. Fortis Apollo aadi Hospitals me aam adami kahan ilaj kara sakta hai.

    ReplyDelete
  38. आशा जी , आजकल सरकारी अस्पतालों में सिर्फ वही लोग आते हैं जो वास्तव में गरीब होते हैं । या रिटायर्ड लोग ।
    बीमार न पड़ने के लिए संतुलित आहार और आचार व्यवहार की ज़रुरत होती है जो आजकल कम ही मिलती है ।

    ReplyDelete