जब पहली बार हमने गाड़ी चलानी सीखी, तब लगता था कि क्या कभी हम भी गाड़ी चला पाएंगे। लेकिन सिखाने वाले ने बहुत अच्छे तरीके से हमें सिखाया और हमें भी सीखने में मज़ा आया. लेकिन आज सोचते हैं कि क्या हमारे बच्चे दिल्ली की सड़कों पर गाड़ी चला पाएंगे। जिस तरह सड़कों पर वाहनों का अनुशासनहीन यातायात देखने को मिलता है , उससे तो यही लगता है कि सिर्फ विदेश में रहने वाले भारतीय ही नहीं बल्कि भारत में भी रहने वाले भावी भारतीयों के लिए गाड़ी चलाना अत्यंत कठिन होगा।
दिल्ली में ७० लाख से ज्यादा पंजीकृत वाहन हैं. साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी लाखों वाहन प्रतिदिन दिल्ली में प्रवेश करते हैं. भले ही सरकार सड़कों को चौड़ा करने और फ़्लाइओवर बनाकर यातायात को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास कर रही है, लेकिन चालकों की अनुशासनहीनता और डेविल मे केयर रवैये से सडकों पर वाहनों की सुरक्षा उतनी ही कम दिखती है जितनी दिल्ली में महिलाओं की. नियमों का पालन करते हुए , अनुशासित रूप में गाड़ी चलाना असंभव सा लगने लग गया है.
इसका मुख्य कारण है, चालकों को यातायात के नियमों का ज्ञान न होना। यह सर्वविदित है कि यहाँ विदेशों की तरह लाइसेंस मिलने में कोई कठिन टेस्ट पास नहीं करने पड़ते। इसलिए लाइसेंस पाना बच्चों के खेल जैसा है. हालाँकि औपचारिक और अधिकारिक तौर पर यहाँ भी सभी तरह के सख्त नियम बनाये गए हैं, लेकिन सभी कागज़ी शेर बन कर ही रह गए हैं. यहाँ भी भ्रष्टाचार का उतना ही बोलबाला है जितना अन्य क्षेत्रों में. बिना सम्पूर्ण ज्ञान के प्राप्त लाइसेंस गाड़ी चलाने का कम, नियम तोड़ने के ज्यादा काम आते हैं.
कमर्शियल वाहन :
दिल्ली में एक बहुत बड़ी संख्या कमर्सियल वाहनों की है जिनके ड्राईवर अक्सर आठवीं फेल गावों के युवा होते हैं. उन्हें बस गाड़ी को दौड़ाना आता है और उन्हें नियमों से कुछ लेना देना नहीं होता। यही वे लोग हैं जो सडकों पर आतंक फैलाये रखते हैं. न इन्हें लेन में चलना होता है , न कानून का डर होता है. ओवरस्पीडिंग , रेड लाईट जम्पिंग , होंकिंग आदि इनका शौक होता है. चौराहे पर लाईट हरी होते ही ये हॉर्न बजाना शुरू कर देते हैं और अक्सर हॉर्न पर हाथ रखकर ही चलते हैं जबकि नियम अनुसार चौराहे के १०० मीटर दूर तक हॉर्न बजाना अपराध है.
१८ से कम आयु के बच्चे :
दिल्ली वालों को बच्चों के हाथ में बाइक या गाड़ी देने का भी शौक होता है. १८ वर्ष से कम आयु के लोगों को न लाइसेंस मिलता है , न ड्राईव करने की अनुमति होती है. लेकिन अमीर बाप के बिगड़े बच्चों के लिए यह भी एक खेल है. अभी हाल में हुई एक दुर्घटना इसका एक जीता जागता उदाहरण है जिसमे रात के समय सडकों पर बाइक सवार युवक दिल्ली की सडकों पर स्टंट करते पाए गए थे. देखा जाये तो इसके लिए सारा दोष अभिभावकों को ही जाना चाहिये। बच्चों को अनाधिकृत रूप से वाहन सौंपना भी एक अपराध है जिसके लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
धनाढ्य लोग :
दिल्ली जैसे शहरों में धनाढ्य लोगों में रात देर तक पार्टी करना एक स्टेटस सिम्बल माना जाता है. अक्सर इन पार्टियों में पेज थ्री ग्रुप के लोग होते हैं जिन्हें सोशलाईट कहा जाता है. ये लोग शराब के नशे धुत होकर जब घर के लिए निकलते हैं तब सुबह के ३ या ४ बजे होते हैं. ऐसे में दुर्घटना होना स्वाभाविक है. जाने कितने ही केस इस तरह दिल्ली की सडकों पर होते रहते हैं.
हमसे बढ़कर कौन :
दिल्ली वालों में एक बुरी आदत यह होती है कि वे अपने सामने किसी दूसरे को कुछ नहीं समझते, बल्कि तुच्छ समझते हैं । इसलिए दिल्ली की सडकों पर पढ़े लिखे गंवारों की कोई कमी नहीं होती। हालाँकि ऐसे लोग पढ़े लिखे कम और पढ़े लिखे दिखने वाले ज्यादा होते हैं. इसका कारण है दिल्ली में पैसे वाले लोगों का बहुतायत में पाया जाना। पैसा होने के बाद अनपढ़ भी शक्ल से सभ्य लगने लगता है जबकि अक्ल से वह अत्यंत असभ्य ही होता है.
पैदल जनता :
गाड़ी वाले तो गाड़ी वाले , यहाँ पैदल चलने वाले लोग भी कम नहीं होते। सड़क पर हर चौराहे पर ज़ेबरा क्रॉसिंग बने होते हैं लेकिन उसे छोड़कर बाकि सब जगह से सड़क पार करना अपना परमोधर्म समझते हैं. सरकार चाहे जितने ओवरब्रिज बना ले , लेकिन सड़क पार रेलिंग को कूदकर ही करेंगे। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे के सामने सौ मीटर की दूरी पर दो ओवरब्रिज बने हैं और डिवाईडर पर ६ फुट ऊंची रेलिंग लगाईं गई है ताकि कोई कूद कर न जा सके. फिर भी रोज दो चार बहादुर भैया बन्दर की तरह कूदते फांदते हुए रेलिंग पार करते हुए मिल जायेंगे, मानो यह साबित करना चाहते हों कि हमारे पूर्वजों के जींस के अवशेष अभी तक हमारे शरीर में बचे हैं.
ट्रैफिक पुलिस :
पौने दो करोड़ की आबादी वाले शहर में पुलिस वालों की संख्या अत्यधिक कम होने से सडकों पर अराजकता होना स्वाभाविक सा लग सकता है. लेकिन हमने दुबई में एक भी पुलिस वाला सडकों पर नहीं देखा था । फिर भी कोई भी कानून नहीं तोड़ रहा था, जबकि वहां के ड्राइवर सारे या तो भारतीय थे या पाकिस्तानी। उधर कनाडा के एल्गोंक्विन जंगल के बीचों बीच एक अकेली लड़की ओवरस्पीडिंग करने वालों के चलान काट रही थी. ज़ाहिर है , कानून व्यवस्था में सुधार भी बहुत आवश्यक है. अभी तो हमारे पुलिस वाले चौराहे पर यातायात नियंत्रण करने के बजाय चलान काटने में ज्यादा व्यस्त नज़र आते हैं, जैसे उल्लंघन करने का इंतजार कर रहे हों.
नोट : अगली पोस्ट में यातायात के नियम और उन्हें तोड़ने के तरीकों पर दिल्ली वालों की आदत के बारे में.
आपका कथन और चिंता बिल्कुल सही है, मेरा सिर्फ़ यही कहना है कि आप अकेले बेचारी दिल्ली को क्यों दोष दे रहे हैं?
ReplyDeleteआपने जो हाल बयान किया है वही हाल भारत के हर शहर का हो चला है.
रामराम.
क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और इससे बाकि शहरों को भी प्रेरणा मिल सकती है.
Deleteलायसेंस मिलने की आपने अच्छी कही, ताऊ सर्विस घर बैठे लायसेंस उपलब्ध करवा देती है, सिर्फ़ जेब जरा सी हल्की करनी पडती है.:)
ReplyDeleteरामराम.
आपने किसी से गाडी चलाना सीखा? मुझे तो ताज्जुब है आप भारत में रहते हैं या कहीं यूरोप वगैरह में?
ReplyDeleteहमने तो बचपन में एक दिन ट्रेक्टर पर बैठ कर चाबी घुमाके गियर मार दिया और वो चल पडा. बस उस दिन के बाद ट्रक या कार फ़र्राटे से दौडाते आ रहे हैं.:)
रामराम.
:)
Deleteहम तो कभी जोहड़ में भी नहीं कूदे , इसलिए तैरना भी नहीं सीख पाए. :)
Deleteऔर अब एक नई बीमारी दिख रही है ... टायर उठाकर मोटरसाइकिल के स्टंट करना वह भी समूहों में - प्रशासन की ज़रूरत पूरे देश को है, लेकिन दिल्ली शहर को तो खासकर एक "सरकार" मिलनी ही चाहिए।
ReplyDeleteडॉ साहब आपने आइना दिखा दिया कोई माने या न माने
ReplyDeleteबेहद आवश्यक और गौर करने लायक लेख है ..
ReplyDeleteआभार आपका !
अब तो सच में देश का हर शहर ऐसा ही हो चला है.... पर दिल्ली में सड़क पर भी 'ओये जानता नहीं मैं कौन हूँ ? ' 'वाली फीलिंग बड़ी दिखती है .....
ReplyDeleteट्रैफिक तोड़ने वालों और ऊपर से हेकड़ी दिखाने वालों का एक पैट डॉयल़ॉग भी होता है...
ReplyDeleteतू जानता नहीं, मैं कौन हूं...
जय हिंद...
bhopal-traffic.sh
ReplyDeletefind "दिल्ली"
replace "भोपाल"
done
:)
भारत की सड़को और ट्रेफिक का हाल बुरा है ,मैं तो वहां चला ही नहीं सकती.
ReplyDeleteएमिरात में सड़कों पर जगह- जगह कैमरे लगे हैं, मोबाइल कैमरे भी ..इसलिए भी लोग ध्यान से चलाते हैं.
कानून बहुत कड़े हैं ...ट्रेफिक सिग्नल तोड़ने पर सीधा १० ब्लेक पॉइंट हैं !
स्पीड लिमिट क्रोस करने पर भारी फाईन है.
जी , इसीलिए यहाँ के ड्राइवर वहां जाकर अनुशासित हो जाते हैं.
Deleteडाक्टर साहब , दिल्ली का ही नहीं कम और ज्यादा सभी शहरों का यही हाल है .ट्राफिक किसी को समझ में नहीं आता .न नियम न उनको पालन करना बस रक्त प्रेशर बढ़ेगा और दवाओं से सामान्य का भ्रम पालना होगा. ऐसे ही जागते रहें .
ReplyDeleteलगता है दिल्ली में हर चीज़ की अति है,
ReplyDeleteन अपराध कम है न यह ट्रेफिक समस्या
वैसे आजकल इस मामले में शायद सभी जगह यही हाल है। विचारणीय पोस्ट।
इसीलिए तो बोलते हैं ये हिन्दुस्तान है।
ReplyDeleteवो तो हम भी देख चुके हैं -इन दिनों बाईकर्स का कहर है !
ReplyDeleteऐसी दिल्ली तो हम भी बार बार देखते है जी
ReplyDeleteपर इतना जरुर है कि ...जिंदगी एक बार मिलती है ज़रा संभल के
जिसने भारत में गाड़ी चला ली, वो कहीं नहीं चला सकता और जिसने अहमदाबाद में गाड़ी चला ली वो भारत में कहीं भी चला सकता है.
ReplyDeleteआप की चिन्ता वाजिब है ,,एक दम सही ...पर इसके लिए दोषी तो हम सब भी हैं ..
ReplyDeleteकहीं न कहीं...?
हम्म!! चिन्ताजनक बात तो है ही/..
ReplyDeleteबंगलोर में अनुशासन है पर कुछ बीमारी आयातित हो रही है।
ReplyDeleteदिल्ली को तो बेचारा बना दिया गया है ... दिल्ली वासियों ने ...
ReplyDeleteवाजिब चिंतन है ... पर नतीजा नहीं निकल रहा ...
ReplyDeleteभाई साहब यहाँ सब सेकुलर प्रबंध है। विदेश विदेश है भारत भारत है। यहाँ हर नियम टूटने के लिए ही बनता है। सड़क भी असुरक्षित है महिलाओं से बहुत खूब कहा है आपने मुंह खोलके। यही हमारी सिविलिटी नागर बोध का स्तर है बड़े जहीन लोग हैं हम रोड रेजिये।
डॉ दराल साहब जन्मदिन की शुभकामना स्वीकारें
ReplyDeleteचिंतन करने योग्य पोस्ट ।
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