विकास और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के कारण अब हमारे देश में भी मनुष्यों की औसत आयु ७० वर्ष से ज्यादा हो गई है. हमारे मित्रों और निकट सम्बन्धियों में ही चार पांच ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति हैं जिनकी उम्र ८० से ज्यादा है. ज़ाहिर है , देश में ६० वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों की संख्या निरंतर बढती जा रही है. ऐसे में परिवारों , समाज और देश की नैतिक जिम्मेदारी बढ़ जाती है, ताकि देश के बुजुर्गों का यथोचित ख्याल रखा जा सके.
हमारे जीवन में बड़े बूढों का बहुत महत्त्व होता है. ये वर्तमान के बुजुर्ग ही हैं जिन्होंने हमारे वर्तमान को सुनहरा बनाने के लिए भूतकाल में अपना वर्तमान न्यौछावर किया था. आज जब हम समर्थ हैं और वे असमर्थ होने लगे हैं , तब उनका सहारा बनकर यह क़र्ज़ चुकाना हमारा फ़र्ज़ है.
कहते हैं , जितनी आवश्यक विधालय और कॉलेज में ग्रहण की गई शिक्षा है , उतनी ही आवश्यक घर में बड़े बूढों से ली गई अनौपचारिक शिक्षा है. जहाँ औपचारिक शिक्षा हमें भौतिक विकास और प्रगति की राह पर ले जाती है , वहीँ अनौपचारिक शिक्षा नई पीढ़ी में संस्कारों का संचार करती है, जिससे हमारा नैतिक विकास होता है. हम भाग्यशाली हैं कि हमारे देश में अभी भी हमारे संस्कार जीवित हैं. इसीलिए यहाँ अभी भी पारिवारों में पारस्परिक प्रेम और सौहार्द नज़र आता है.
माना कि विश्व का तकनीकि अधिकारी जापान है ,
और अमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है.
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है ,
वह केवल अपना हिंदुस्तान है.
लेकिन देखने में आता है कि बढ़ते शहरीकरण के साथ अब संयुक्त परिवार समाप्त होते जा रहे हैं. शहरों में एकल ( न्यूक्लियर फैमिली ) परिवार भी तभी तक रहते हैं , जब तक बच्चे विधालय में पढ़ते हैं. एक बार कॉलेज में आने के बाद अक्सर दाखिला किसी दूर दराज़ शहर के कॉलेज में हो गया तो बच्चा सदा के लिए दूर हो जाता है. और घर में रह जाते हैं बस पति पत्नि। ये भी तभी तक साथ होते हैं जब तक दोनों जिन्दा हैं. लेकिन बुढ़ापे के साथ कई तरह की शारीरिक, मानसिक , सामाजिक और आर्थिक समस्याएं भी आने लगती हैं. ऐसे में उनका बच्चों पर आश्रित होना स्वाभाविक सा है.
बुढ़ापे में सबसे बड़ी समस्या है , एकाकीपन। संयुक्त परिवारों में भी देखने में आता है कि बुजुर्गों से बात करने वाला कोई नहीं होता। जहाँ कामकाजी पति पत्नि अपने अपने काम में व्यस्त रहते हैं , वहीँ बच्चों को बुजुर्गों की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं होती। ऐसे में बुजुर्गों में सबसे ज्यादा सम्भावना अवसाद पैदा होने की रहती है. अवसाद से अनेकों शारीरिक और मानसिक विकार पैदा होने लगते हैं. वैसे भी इस उम्र में आकर ब्लड प्रेशर , मधुमेह , हृदय रोग , जोड़ों का दर्द , शारीरिक और मानसिक कमजोरी आदि ऐसे रोग हैं जो स्वत ; ही मनुष्य को घेर लेते हैं.
ज़ाहिर है , बुजुर्गों को अपनी संतान के सहारे की बहुत आवश्यकता होती है. जिन्होंने अपनी उंगली पकड़ाकर आपको चलना सिखाया , बुढ़ापे में उन्ही को आपके सहारे की आवश्यकता होती है. विकसित देशों में लोग वर्ष में एक बार मदर्स डे / फादर्स डे आदि मनाकर अपना कर्तव्य पूर्ण समझ लेते हैं. लेकिन इस मानसिकता का प्रभाव हमारे समाज पर न पड़े , इसके लिए हमें अपनी संस्कृति को याद रखते हुए सचेत रहना पड़ेगा . याद रहे कि आज के युवा कल के बुजुर्ग हैं और आज के बच्चे कल के युवा। यह जीवन चक्र यूँ ही चलता रहता है.
नोट : एक अरसे से भाषण देने का अवसर नहीं मिला था. सोचा काव्य अभिव्यक्ति की तरह क्यों न ब्लॉग पर ही भाषण दे दिया जाये !
भाषण सही पर बहुत उपयुक्त है और नौजवानों के लिए मार्गदर्शक है
ReplyDeletelatest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
बहुत बढ़िया और विचारणीय उपयोगी आलेख डाक्टर साहब...
ReplyDelete....
ते शहरीकरण के साथ अब संयुक्त परिवार समाप्त होते जा रहे हैं...बिलकुल सही कहा आपने दराल जी उपयोगी आलेख
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!
बार मदर्स डे / फादर्स डे की क्या आवश्यकता है यदि हम मां बाप को भी अपना ही हिस्सा मानें?
ReplyDeleteपता नही आजकल लोगों को यह क्या होता जा रहा है? यह हमारी भारतीय संस्कृति ही थी जिसमे वानप्रस्थ आश्रम जोडा गया था, यानि एक पैर घर में और दूसरा स्वाध्याय (जंगल) में. यानि परिवार पुत्र पौत्रादि को सिर्फ़ मार्ग दर्शन देना, लेकिन अब तो मां बाप सीधे वृद्धाश्रम पहुंचाये जाने लगे हैं.
सटीक आलेख.
बहुत सुंदर नवयुवको को मार्गदर्शन देता आलेख,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
समाज का सच है, अच्छा लगा पढ़ कर।
ReplyDeleteचंद पोस्टों तक जाती एक गली , जिसमें हमने आपका एक ठिकाना भी सहेज़ लिया है , और उसके साथ एक मुस्कुराहट के लिए चंद शब्द जोड दिए हैं , आइए मिलिए उनसे और दोस्तों के अन्य पोस्टों से , आज की ब्लॉग बुलेटिन पर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद।
बढ़िया और आनंद दायक भाषण के लिए आभार आपका :)
ReplyDeleteजो लोग माता पिता का ख्याल रखते हैं उनको भाषण की ज़रूरत नहीं और जो नहीं रखते उनको भाषण देने से कोई लाभ नहीं ... अभी तक बच्चों की ज़िम्मेदारी माता पिता की ही है भारत में इसी लिए माता पिता की ज़िम्मेदारी का भार भी बच्चों पर है इसे कोई नैतिक ज़िम्मेदारी मानता है तो कोई बोझ ... बुजुर्गों की देख भाल के लिए सही विकल्प होना ज़रूरी है ।
ReplyDeleteमाता पिता अगर बच्चों को जिम्मेदारी से पालते हैं तो बच्चों की भी जिम्मेदारी हैं माता पिता, और जब उन्हें जरूरत हो बच्चों को ये जिम्मेदारी निभानी आनी चाहिए .. अर्थपूर्ण आलेख डाक्टर साहब ..
ReplyDeleteआज के समय में ऐसे लेख बहुत महत्व रखते हैं जो अनौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता और महत्व को समझाए.
ReplyDeleteसाथ युवा यह समझें कि बुजुर्गों की क्या-क्या कठिनाईयाँ होती हैं जिसके कारण उन्हें बच्चों से अपेक्षा होती है कि वे उनको सहारा देंगे.
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है ,
ReplyDeleteवह केवल अपना हिंदुस्तान है.
हो सकता है कहीं कहीं हम भी चुक जाएँ अपनी संस्कारों के निर्वहन की बातें किन्तु आपकी बातों का पूर्ण समर्थन करता हूँ भारत अग्रगण्य है और रहेगा
अच्छा आलेख है। लेकिन ऐसा नहीं है कि विकसित देशों में लोग वर्ष में एक बार मदर्स डे / फादर्स डे आदि मनाकर अपना कर्तव्य पूर्ण समझ लेते हैं। यहाँ भी परिवार के प्रति समर्पण की कमी नहीं है और भारत में भी बुज़ुर्गों की खूब दुर्गति होती है। विकसित देशों में परिवार के साथ समाज भी सुदृढ़ है इसलिए अधिकांश लोग किसी पर आश्रित होने के बजाय जीवनपर्यंत स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वहाँ पारिवारिक मूल्य या आपसी प्रेम में कमी है।
ReplyDeleteबहुत- बहुत शानदार आलेख किसी एक युवा की आँखें खोल दे तो भी लिखना सार्थक बहुत जरूरी हैं आज कल ऐसे भाषण ,हार्दिक बधाई आपको
ReplyDeleteभाषण है तो क्या - अच्छा रहा छोटा, और तत्वपूर्ण !
ReplyDeleteअच्छा विषय लिया और निर्वाह भी अच्छा किया
ReplyDeleteआपके आब्जर्वेशन सटीक हैं!
मगर किया क्या जाए ?
इस प्रेम को बनाए रखने मे भी बुजुर्गों का ही हाथ रहता है, इसलिए वे अपनी भूमिका को कभी भी कम नहीं आंके। भाषण सुनते तो शायद ज्यादा प्रभावी होता।
ReplyDeleteभावना आपकी अच्छी है यथार्थ कड़वा है यहाँ अमरीका जैसे विकसित राष्ट्रों में (मैं अमरीका के बारे में ज्यादा जानता हूँ साल में चार -पांच महीने यहाँ रहना हो जाता है )बड़ों के लिए एकल सीनियर सिटिज़न होम्स हैं जहां नर्सिंग खुद चलके आपके द्वारे आती है। न्यूनतम ६०० डालर की राशि सबको मिलती है हैसियत के हिसाब से इससे कहीं ज्यादा भी मिलती है। 24 x 7 देखभाल मिलती है। खाना पका पकाया। भारत में एक जगह बतला दो ऐसी। ख़ुशी होगी मुझे बहुत ज्यादा। गलत फहमी भी दूर हो जायेगी। न्यूक्लीयर फेमिलीज़ आर दी मोस्ट अन -क्लीयर फेमिलीज़।
ReplyDeleteइसकी मिटटी उठे तो एक कमरा खाली हो यही भाव मिलेगा ज्यादा त र जगहों पर। उम्र दराज़ लोगों के प्रति मेरे भारत में।
डॉ साहब ,
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
बहुत सार्थक लेखन |
बहुत बढ़िया प्रस्तुति जन्माष्टमी के मौके पर आनंद वर्षंन हैगो भैया।
ReplyDeleteआज तो सारा आलम सारी कायनात ही कृष्ण मय हो रई भैया । उसकी लीला ही अपरम्पार हैं स्वाद लेबे को भागवत कथा सुनबे। झूठ् ना कहूँ तोसे। मजो आ गया ओ ,नन्द आनंद कारज होवे और मजा न आवे। नन्द का मतलब होवे आनंद।
मैया मोहे दाऊ भोत खिजायो ,
मोते कहत मोल को लीन्हों तू जसुमत कब जायो,
गोर नन्द जसोदा गोरी तू कत श्याम शरीर
जन्माष्टमी की बधाई क्या बधाया सब ब्लागियन कु।
ॐ शान्ति
भैया जसोदा का मतलब ही होवे है जो यश दिलवावे। सगरे बिग्रे काज संभारे।
श्रीकृष्णचन्द्र देवकीनन्दन माँ जशुमति के बाल गोपाल ।
रुक्मणीनाथ राधिकावल्लभ मीरा के प्रभु नटवरलाल ।।
मुरलीधर बसुदेवतनय बलरामानुज कालिय दहन ।
पाण्डवहित सुदामामीत भक्तन के दुःख दोष दलन ।।
मंगलमूरति श्यामलसूरति कंसन्तक गोवर्धनधारी ।
त्रैलोकउजागर कृपासागर गोपिनके बनवारि मुरारी ।।
कुब्जापावन दारिददावन भक्तवत्सल सुदर्शनधारी ।
दीनदयाल शरनागतपाल संतोष शरन अघ अवगुनहारी ।।
श्री कृष्ण स्तुती
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी ॥
बधाई जन्मोत्सव कृष्ण कृष्ण बोले तो जो अन्धकार को दूर करे।
संसद वारे कोब्रान ने कौन गिनेगा भैया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति जन्माष्टमी के मौके पर आनंद वर्षंन हैगो भैया।
आज तो सारा आलम सारी कायनात ही कृष्ण मय हो रई भैया । उसकी लीला ही अपरम्पार हैं स्वाद लेबे को भागवत कथा सुनबे। झूठ् ना कहूँ तोसे। मजो आ गया ओ ,नन्द आनंद कारज होवे और मजा न आवे। नन्द का मतलब होवे आनंद।
मैया मोहे दाऊ भोत खिजायो ,
मोते कहत मोल को लीन्हों तू जसुमत कब जायो,
गोर नन्द जसोदा गोरी तू कत श्याम शरीर
जन्माष्टमी की बधाई क्या बधाया सब ब्लागियन कु।
ॐ शान्ति
भैया जसोदा का मतलब ही होवे है जो यश दिलवावे। सगरे बिग्रे काज संभारे।
श्रीकृष्णचन्द्र देवकीनन्दन माँ जशुमति के बाल गोपाल ।
रुक्मणीनाथ राधिकावल्लभ मीरा के प्रभु नटवरलाल ।।
मुरलीधर बसुदेवतनय बलरामानुज कालिय दहन ।
पाण्डवहित सुदामामीत भक्तन के दुःख दोष दलन ।।
मंगलमूरति श्यामलसूरति कंसन्तक गोवर्धनधारी ।
त्रैलोकउजागर कृपासागर गोपिनके बनवारि मुरारी ।।
कुब्जापावन दारिददावन भक्तवत्सल सुदर्शनधारी ।
दीनदयाल शरनागतपाल संतोष शरन अघ अवगुनहारी ।।
श्री कृष्ण स्तुती
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी ॥
बधाई जन्मोत्सव कृष्ण कृष्ण बोले तो जो अन्धकार को दूर करे।
माँ बदल देती है खुशियों में उन्हें
हादसे जो राह में मिलते रहे
संसद वारे कोब्रान ने कौन गिनेगा भैया
अब तो बिल भी पास है गयो। कोबरा ही अगला प्रधान मंत्री होवेगो सही कह रियो भैया।
भाषण ही सही पर आपने सही विषय को छुआ है ... आज कल का माहोल कुछ ऐसा ही है की हर कोई तेज़ी में बुजुर्गों को देखना ही नहीं चाहता ... भाल बैठे हैं की वो भी कभी बुजुर्ग होने वाले हैं ...
ReplyDelete☆★☆★☆
वाऽहऽऽ…!
आदरणीय डॉ.दराल सा'ब
यह भाषण म्म्मेऽरा... मतलब आलेख पढ़ने के बाद यही कहूंगा कि भाषण देने का अवसर निकालते रहा करें!
बहुत उपयोगी और प्रेरणा देने वाला है...
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया डॉ साहब आपकी टिप्पणियों का। आपकी टिपण्णी हमारा ज्ञान कोष हैं।
ReplyDeleteसच ही लिखा है आपने (कहा है), पर अब तो पैसे के पाछे भागती इस दुनिया में (भारत भी अपवाद नही) बुजुर्गों को देखने का उनसे दोबात करने का समय कहां है । बुजुर्गों को भी चाहिये कि अगर वे बच्चों के साथ हैं तो ुनके काम में यथाशक्ति हाथ बटायें इससे समय भी अच्छा बीतेगा और कुछ करपाने का समाधान भी मिलेगा ।
ReplyDelete