गत सप्ताह सीमा पर हुई एक नापाक दुर्घटना ने हमें यह कविता लिखने को प्रेरित किया :
जो छुपकर पीठ पर वार करें, वो कायर कहलाते हैं,
ऐसे शैतानों को हम क्यों , सर आँखों पर बिठलाते हैं.
वो तीर विषैले चला रहे , हम दर्द से भी नहीं कराहते ,
सर जवानों का काट रहे , हम सर तक नहीं हिलाते।
क्यों दूध पिलाते हैं , आस्तीन के ज़हरीले साँपों को,
क्यों हाथ दिखाते हैं, दोस्ती का इन लातों के भूतों को.
छोडो अब मेहमाननवाज़ी, अफज़ल और कसाबों की ,
बातें करना छोड़ो अब, शैतानों से हसीन ख्वाबों की.
थप्पड़ खाकर एक गाल पर, चलो अब तो संभल जाएँ,
एक के बदले दो गालों पर , अब जमकर घूंसे चार लगायें।
बदतमीज़ों की बदतमीज़ी को , अब नहीं सह पायेंगे ,
ज़ालिमों को ज़ुल्मो सितम का , सबक ज़रूर सिखाएंगे।
हम शांति के सदा पुजारी , पर गीता का पाठ पढ़ाते हैं ,
दुष्ट पापी को सज़ा दिलाकर, अपना फ़र्ज़ निभाते हैं.
जागो देश के नौज़वानों, सरहद तुम्हें पुकार रही ,
भारत माँ की पावन माटी, उधार दूध का मांग रही.
उठो देश के अर्जुन वीरो, अब मिलकर गांडीव उठाओ ,
देश के दुश्मन दुस्सासन को , द्वार नर्क का दिखलाओ।
मीठी मीठी बातें छोडो , अब आँख से आँख मिलाओ ,
जिसकी शह पर कूद रहे , उस मामा को भी धूल चटाओ।
राणा प्रताप और वीर शिवाजी की, धरती ने फिर पुकारा है ,
नापाक कदम ना सह पायेंगे , हमें वतन जान से प्यारा है.
राणा प्रताप और वीर शिवाजी की, धरती ने फिर पुकारा है ,
ReplyDeleteनापाक कदम ना सह पायेंगे , हमें वतन जान से प्यारा है.
बहुत बढ़िया रचना अभिव्यक्ति… आभार
यह कवि स्वर लोगों में ओज भरे और हमारा आत्मबल बढे! सचमुच यह तो हद है !
ReplyDeleteक्या बात है ..
ReplyDeleteबधाई !
सार्थक पुकार और सन्देश .
ReplyDeleteकब तक शांत रहेंगे ,हुंकार भरने का समय आने में देर नहीं है!
जागो देश के नौज़वानों, सरहद तुम्हें पुकार रही है,
ReplyDeleteभारत माँ की पावन माटी, उधार दूध का मांग रही है.
बहुत ही सटीक और समसामयिक.
रामराम.
हमारा राजनैतिक नेतृत्व पंगु है, इनके सामने तो शायद सरदार पटेल भी फ़ेल हो जाते.
ReplyDeleteरामराम.
लग रहा है ओज के कवियों का साथ हो गया है। हास्य कवियों ने कट्टी हो गई का!
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Deleteहाँ शायद पिछले रविवार की काव्य गोष्ठी का असर है ! :)
राणा प्रताप और वीर शिवाजी की, धरती ने फिर पुकारा है ,
ReplyDeleteनापाक कदम ना सह पायेंगे ,हमें वतन जान से प्यारा है.
बहुत सुंदर सटीक समसामयिक रचना ,,,
RECENT POST : जिन्दगी.
आप ने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 16-08-2013 की http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस हलचल में शामिल रचनाओं पर भी अपनी टिप्पणी दें...
ReplyDeleteऔर आप के अनुमोल सुझावों का स्वागत है...
कुलदीप ठाकुर [मन का मंथन]
कविता मंच... हम सब का मंच...
इन गीतों की , भावों की , प्रेरणा और प्रेरकों की सख्त जरुरत है इस देश को !
ReplyDeleteबहुत आभार !
ओजपूर्ण रचना ....
ReplyDeleteहास्य से वीर रस में तबादला
ReplyDeleteआपकी हास्य कविताओं की तरह औज भी शानदार है
प्रणाम स्वीकार करें
ध्वस्त होंगे सारे षड़यन्त्र..
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ReplyDeleteहम शांति के सदा पुजारी , पर गीता का पाठ पढ़ाते हैं ,
दुष्ट पापी को सज़ा दिलाकर, अपना फ़र्ज़ निभाते हैं.
बहुत सुन्दर है विषाद ग्रस्त है सरकार अर्जुन की तरह।
उठो देश के अर्जुन वीरो, अब मिलकर गांडीव उठाओ ,
ReplyDeleteदेश के दुश्मन दुस्सासन को , द्वार नर्क का दिखलाओ।
मीठी मीठी बातें छोडो , अब आँख से आँख मिलाओ ,
जिसकी शह पर कूद रहे , उस मामा को भी धूल चटाओ।
..सोओं को अब जगाना जरुरी हैं ...
काश की जल्दी सबकी समझ में आजादी के मायने समझ आ जाते .
बहुत बढ़िया प्रेरक समसामयिक प्रस्तुति
जागो देश के नौज़वानों, सरहद तुम्हें पुकार रही ,
ReplyDeleteभारत माँ की पावन माटी, उधार दूध का मांग रही...
आज ऐसे भाव जगाने की जरूरत है ... देश की माटी का कर्ज चुकाने की जरूरत है ...
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ...
उठो देश के अर्जुन वीरो, अब मिलकर गांडीव उठाओ ,
ReplyDeleteदेश के दुश्मन दुस्सासन को , द्वार नर्क का दिखलाओ।
गर्जना के साथ शंखनाद रणभेरी बजा दी आपने
♥ वंदे मातरम् ! ♥
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सुंदर सामयिक रचना के लिए बधाई !
हार्दिक शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह जी क्या बात है सार्थक भाव लिए सशक्त रचना। बस अब तो यही दुआ है कि ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान...
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