पिछली पोस्ट से आगे ---
जीवन में पहली बार राजधानी ट्रेन की यात्रा कर हम ईद के दिन मुंबई पहुंचे और दिन भर मुंबई की सैर करते हुए ईद का दिन वस्तुत: मुंबई की आम जनता के बीच बिताया। अगले दिन आई आई टी में दीक्षांत समारोह में सम्मिलित होना था. हमारे लिए तो यह भी प्रथम अवसर ही था जब हम किसी दीक्षांत समारोह में शामिल होने जा रहे थे. हमें तो अपनी डिग्री अपने कॉलेज के छोटे बाबु ( क्लर्क ) से ही मिली थी.
सभा कक्ष में छात्रों के लिए आयोजन किया गया था और सभी अभिभावकों को चार लेक्चर थियेटर्स में बैठाया गया था. लेक्चर हॉल भी बहुत आधुनिक साज सज्जा से लैस और आरामदायक थे. तीन बड़े स्क्रीन्स पर सारी कार्यवाही दिखाई जा रही थी. एक बजे सभी के लिए लंच का आयोजन था. लंच के समय हजारों लोगों का एक साथ लंच करना भी एक आश्चर्यजनक दृश्य था. आरम्भ में थोड़ा असमंजस्य की स्थिति लगी लेकिन जल्दी ही स्थिति को संभाल लिया गया और सभी ने आराम से लंच किया।
लंच के बाद कैम्पस घूमने का समय मिल गया. कैम्पस इतना हरा भरा है कि पेड़ों के झुरमुट में भवन भी दिखाई नहीं देते। एक तरफ पवाई लेक और उसके पार हीरनन्दानी आवासीय कॉम्प्लेक्स और दूसरी ओर पहाड़ , बहुत मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे.
घर पहुँचते पहुंचते शाम हो गई थी. लेकिन बेटी की सहेलियां जो अलग अलग शहरों से आई हुई थी, सबने मिलकर मॉल जाने का प्रोग्राम बना लिया। हमें भी उनके पीछे पीछे जाना ही पड़ा. आखिर डिनर पार्टी भी हमारी तरफ से हुई. बदले में बस उन्हें हमारी दो चार कवितायेँ सुननी पड़ी. लेकिन रात के खाने के बाद पता चला बिटिया ने केक का ऑर्डर दिया हुआ था. एक बार फिर पहली बार हमने रात के बारह बजे जन्मदिन का केक काटा।
अगले दिन हमारा कार्यक्रम था लोनावला और खंडाला की सैर. सुबह ८ बजे टैक्सी वाला पहुँच गया और हम चल दिए खंडाला की ओर -- एक बार फिर जीवन में पहली बार.
मुंबई में तीनों दिन रह रह कर बारिश हो रही थी. मुंबई पूना हाइवे पर रास्ते भर बारिश होती रही. पहाड़ शुरू होने के बाद सड़क पानी में धुलकर शीशे की तरह चमक रही थी.
थोड़ी और चढ़ाई आने पर सड़क पर इतना गहरा कोहरा छा गया था कि दस फुट आगे भी मुश्किल से ही दिख रहा था. हमारा पहला पड़ाव था -- टाइगर हिल.
यह लोनावला का शायद सबसे ऊंचा स्थान रहा होगा। वैसे यहाँ की ऊंचाई ज्यादा नहीं है , करीब ६०० मीटर। लेकिन बरसात के दिनों में यहाँ धुंध ऐसे छाई रहती है जैसी कभी मसूरी में देखने को मिलती थी. इस स्पॉट पर मेला सा लगा था. गहरी धुंध में लोग पिकनिक मना रहे थे. चाय , भुट्टे , और अन्य स्नैक्स के अलावा युवाओं के झुण्ड मौज मस्ती का सारा सामान साथ लेकर आए थे. इस स्थान से नीचे घाटी दिखाई देती होगी जो एकदम ढलान वाली जगह है. लेकिन उस वक्त तो बस सफ़ेद चादर ही दिख रही थी.
समतल स्थान के आगे तारों की बाड़ लगाई गई थी ताकि लोग इससे आगे न जाएँ। फिर भी कुछ युवा युगल एडवेंचर लव मेकिंग से बाज नहीं आ रहे थे. हालाँकि इस बोर्ड को पढ़कर कोई भी घबरा जाये। यहाँ लिखा था -- अब तक छप्पन ---
उधर सड़क पर कुछ युवाओं का दल ढोल मंजीरे बजाते हुए मस्ती कर रहा था. कुल मिलाकर बरसात के मौसम में धुंध का आनंद अपने आप में एक अद्भुत अनुभव था.
यहाँ से वापसी में रास्ते में एक जगह आती है जहाँ घाटी में बहते दर्ज़नों झरनों से बहते पानी को इक्कट्ठा कर बांध बनाकर एक झील के रूप में परिवर्तित किया गया है. यह स्थल एक खूबसूरत पिकनिक स्थान बन गया है. बहते पानी से होकर बांध तक पहुंचना पड़ता है जहाँ लोग पानी में ढलान पर लुत्फ़ उठाते हैं.
इस स्थान पर सैंकड़ों लोग पानी में भीगते हुए जिंदगी के मज़े ले रहे थे.
लेक को पार कर आप पहुँच जाते हैं घाटी में जहाँ जगह जगह अनेक खूबसूरत झरने दिखाई देते हैं. ये झरने सिर्फ मॉनसून में ही बहते हैं. इसलिए यहाँ आने का सर्वोत्तम समय बरसात के दिनों में ही है. दूर तक फैली घाटी में हरियाली और पानी के झरने देखकर स्वत: ही तन और मन में साहस और रोमांच का अहसास प्रवाहित होने लगता है.
लोनावला से करीब १२ किलोमीटर आगे पूना हाइवे पर एक और दर्शनीय स्थल है जहाँ एक पहाड़ी पर एक मंदिर है और पहाड़ को काटकर बनाई गई गुफाएं हैं. रास्ते से यहाँ की हरियाली बड़ी मनभावन लग रही थी.
पहाड़ की चोटी पर बनी ये गुफाएं और उनके ऊपर से बहते झरने बड़े रहस्यमय लग रहे थे.
अंतत: लोनावला से वापस मुंबई को जाते हुए रास्ते में खंडाला आता है जहाँ इस मौसम में बादल पर्वतों के साथ आँख मिचौली खेलते रहते हैं. थोड़ी थोड़ी देर में दृश्य बदलता रहता है. साथ ही बीच बीच में होती बारिश वातावरण को खुशगवार बनाये रखती है.
लोनावला / खंडाला में भुने हुए भुट्टे और उबली हुई साबुत मूंगफली बड़ी स्वादिष्ट मिलती हैं. लेकिन यहाँ की एक विशेष मिठाई भी है -- चिक्की -- जिसे यहाँ हम मूंगफली की पट्टी कहते हैं. लेकिन विभिन्न स्वादों और मेवों से बनी चिक्की का स्वाद वास्तव में अनूठा होता है.
लोनावला / खंडाला मुंबई वालों के लिए ठीक वैसा है जैसे दिल्ली वालों के लिए मसूरी या शिमला। इसकी ऊँचाई ज्यादा नहीं है , इसलिए बरसात के मौसम को छोड़कर बाकि समय यहाँ कुछ विशेष आकर्षण नहीं है. इसलिए मुंबई वाले इन ३ - ४ महीनों में यहाँ पिकनिक मनाकर पूरे साल का लुत्फ़ एक साथ उठा लेते हैं.
लेकिन पर्यावरण के प्रति यहाँ भी लोगों का रवैया वैसा ही है जैसा बाकि भारत में. यदि समय रहते सचेत नहीं हुए तो मुंबई वालों को भी तरसना पड़ जायेगा, बरसात के मौसम में बारिश और हरियाली के लिए.
सुहाना सफर और ये मौसम हसीं .....
ReplyDeleteजुलाई के महिने में मजा तो बहुत आता है यहां लेकिन बस एक दिन में ही जी भर जाता है।
ReplyDeleteप्रणाम
मुंबई से डे ट्रिप ही काफी है.
Deleteसमय का पूरा सदुपयोग ----सही समय था खंडाला और लोनावला घूमने का
ReplyDeleteबहुत सुन्दर डा० साहब , सिर्फ लोनावाला-खंडाला के मध्य वहाँ की फोटो खींचना शायद आप मिस कर गए , जहां कुछ बड़े बड़े मह्राथियों के बंगले है !
ReplyDeleteजी , उन्ही में से एक स्टर्लिंग रिजोर्ट भी था लेकिन बुकिंग नहीं मिली।
Deleteबेहतरीन सैर करवा दी आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
अहा, बारिश में तो यह सौन्दर्य और भी उभर आता है।
ReplyDeleteसमतल स्थान के आगे तारों की बाड़ लगाई गई थी ताकि लोग इससे आगे न जाएँ। फिर भी कुछ युवा युगल एडवेंचर लव मेकिंग से बाज नहीं आ रहे थे. हालाँकि इस बोर्ड को पढ़कर कोई भी घबरा जाये। यहाँ लिखा था -- अब तक छप्पन ---
ReplyDeleteबस इतने ही...
आप अपनी यात्रा के ज़रिए पूरे ब्लॉग जगत को ऐसे रमणीक स्थानों से रू-ब-रू करा रहे हैं...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर डॉ साहब! हम तो इन जगह जगह पर प्राय जाते रहते है .पर आज आपके केमेरा की आंखसे देखा तो ज्यादा सुन्दर लगा
ReplyDeletelatest post नेताजी फ़िक्र ना करो!
latest post नेता उवाच !!!
Chalo ji achha hua, ab aapne Khandala bhi ghuma diya
ReplyDeleteअरे वाह!!! बहुत ही मनोरम दृश्य, मुझे तो फोटो देखकर ही मज़ा आगया। वैसे सही कह रहे हैं आप, हमारे यहाँ भी प्रकृतिक सुंदरता और इतिहासिक जगह की कमी नहीं है मगर लोगों की असभ्यता और पर्यावरण के प्रति रवैये के कारण सिर झुक जाता है।
ReplyDeleteबड़े प्यारे फोटो हैं बधाई भाई !
ReplyDeleteअगली बार लोनावाला जाना जरूर है !
बरसात के दिनों में ही जाइएगा।
Deleteवाह....खंडाला लोनावाला पर सुन्दर सचित्र लेख..पहली बार पढ़ा :-)
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत रोचक रंगीन विवरण =लोनावाला और खंडाला दोनों ही खूबसूरत जगहें हैं !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (23-08-2013) को "ईश्वर तू ऐसा क्यों करता है" (शुक्रवारीय चर्चामंचःअंक-1346) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुहाना सफ़र और ये मौसम हसी ……… लोनावाला का सैर काफी खुबसूरत
ReplyDeleteवाह सर कमाल बेमिसाल पोस्ट । फ़ोटो के साथ पोस्ट का आनंद ही दूना हो जाता है । मज़ा आ गया
ReplyDeleteचित्रो सहित रोचक यात्रा वृत्तांत : ?
ReplyDeleteखूबसूरत तस्वीरें ….
ReplyDeleteरोचक वर्णन !
वाह, लगता है खूब मज़े किये हैं :-)
ReplyDeleteआदरणीय डॉ साहेब
ReplyDeleteसादर अभिवादन |
अत्यन्त रोचक वर्णन ,शब्दों से और चित्रों से मन जुड़ गया |
“जीवन हैं अनमोल रतन !"
खूबसूरत नज़ारे .....वाह
ReplyDeleteसुहाना सफर और मौसम हसीं. क्या करे जा के खंडाला? और आपने तो सौ बहाने बता दिए खंडाला और लोनावाला जाने के. हम तो उधर से गुजरे जरुर मुंबई पूना जाने पर लेकिन रुक कभी ना पाए वहाँ.
ReplyDeleteसुंदर संदशों और चित्रों से सजा यात्रा वर्णन.
,,,,,,, सैर करवा दी आपने आदरणीय डॉ साहेब
ReplyDeleteइन चित्रों के माध्यम से पता लग रहा है की आपने भरपूर मजे लिए हैं इस प्रवास के ...
ReplyDeleteओर लेने भी चाहियें ...