इत्तेफ़ाक से ईद के दिन हम पहुंचे मुंबई, जहाँ हमारा जाना पूरे १२ वर्ष बाद हुआ. इन बारह वर्षों में हमने पहली बार रेल यात्रा भी की. किसी भी राजधानी ट्रेन में यह हमारी पहली यात्रा थी. अवसर था हमारी बेटी का मुंबई आई आई टी में एम् बी ऐ का दीक्षांत समारोह जो १० अगस्त को होना था। बस या ट्रेन का सफ़र हमें हमेशा ही लुभाता रहा है. खिड़की के पास बैठकर बाहर का नज़ारा देखते हुए हम घंटों बिता सकते हैं. इस सफ़र में भी दिल्ली से निकलते ही बहुत खूबसूरत नज़ारे देखने को मिले क्योंकि बरसात के मौसम में सारी पृथ्वी हरी भरी नज़र आ रही थी. जब तक अँधेरा नहीं हो गया , हम हरियाली का आनंद लेते रहे.
ईद के दिन १० बजे तक हम घर पहुँच गए थे. छुट्टी का दिन था , इसलिए मुंबई घूमने के लिए सबसे उपयुक्त दिन था. घुमाने की जिम्मेदारी भी बिटिया की ही थी , इसलिए उसके कहे अनुसार हम ऑटो / टैक्सी पकड़ते रहे और एक ही दिन में लगभग सारी मुंबई घूम ली.
सबसे पहले पहुंचे आर्थर रोड जहाँ समुद्र किनारे घूमने का अच्छा इंतज़ाम था लेकिन सफ़ाई कुछ ख़ास नहीं थी. एक पार्क था -- जोगर्स पार्क -- जो दोपहर को बंद था. इसलिए ऑटो पकड़ हम वहां से बांद्रा पहुँच गए, जहाँ सड़क पर एक जगह ऐसे भीड़ लगी थी जैसे कोई तमाशा हो रहा हो. सैंकड़ों लोग और दसियों ओ बी वैन खड़ी थी किसी सीधे प्रसारण के लिए.
ऑटो से उतरने के बाद हमने जानना चाहा कि क्या माज़रा है !
लेकिन सभी देखने में ही इतने व्यस्त थे कि खुद ही मशक्कत करनी पड़ी यह पता लगाने के लिए कि चक्कर क्या है !
अंत में हमारे कैमरे ने ही पकड़ लिया कि अरे यह तो मन्नत है -- शाहरुख़ खान का बंगला। हालाँकि बाहर से देखकर हमें तो निराशा ही हुई. सारे बंगले को सफ़ेद और हरी चद्दरों से ढक दिया गया था. आगे के हिस्से पर टिन शेड लगे थे. बाहर से सिर्फ गेट ही दिख रहा था. लेकिन एक बार टी वी पर देखा था , अन्दर से बेहद खूबसूरत है किंग खान का बंगला। यहाँ लोग ईद के अवसर पर शाहरुख़ और अन्य मेहमानों के दीदार की उम्मीद में खड़े थे.
भीड़ से बचकर हम तो शाहरुख़ की गली के आगे समुद्र में उतर गए , पेंट ऊपर चढ़ाकर और भुट्टे खाकर। वैसे इतने स्वादिष्ट भुट्टे हमने पहले कभी नहीं खाए थे.
यहाँ से सी लिंक रोड से होते हुए हमें जाना था चौपाटी।
रास्ते में दिखा एंटिला -- बहुत भीड़ भाड़ वाला क्षेत्र लेकिन महंगा -- सड़क से हटकर बना है. इसके आगे अन्य भवन होने से सड़क से छुपा रहता है. जाने क्या ख़ास बात है !
बहुत पहले जब चौपाटी आए थे तब यह जोहड़ का किनारा सा लगा था. लेकिन अब पहले से काफ़ी बेहतर है. ईद होने के कारण खूब भीड़ थी. ज्यादातर मुस्लिम लोग ही पिकनिक मना रहे थे. सही मायने में आम आदमी , जिनकी बहुतायत थी. लेकिन उम्र और ओहदे के तहत अब ऐसी भीड़ में हम स्वयं को अज़नबी सा ही महसूस करते हैं. जाने क्यों , थोड़ा दुःख सा भी होता है. हालाँकि छोटी छोटी बातों से लोगों को खुश होते देखकर मन को सुकून सा भी मिलता है.
यहाँ मेरीन ड्राइव पर सड़क और समुद्र के बीच बने चौड़े फुटपाथ पर सैर करते लोग और चबूतरे पर बैठकर समुद्र से आती ठंडी हवा का आनंद लेते हुए घंटों बिताना यहाँ के लोगों का खास शौक लगता है. यहाँ की एक विशेषता यह है कि यहाँ हर वर्ग के लोग वॉकिंग या जॉगिंग के लिए आते है. मुंबई में आर्थिक भेद भाव कम ही नज़र आता है. लेकिन रेत में पड़ी गन्दगी को देखकर स्वदेश में होने का अहसास सदा याद दिलाता रहता है, कि हम अभी भी विकासशील ही हैं.
टैक्सी पकड़ी और आ गया -- गेटवे ऑफ़ इंडिया ! सारे दिन सफ़ेद लिबास का बोलबाला रहा. ईद के दिन बच्चे और युवाओं समेत बड़े बूढ़े, सभी सफ़ेद कपड़ों में नज़र आ रहे थे। लगभग सभी के पास मोबाईल कैमरे जिनसे तरह तरह के पोज मारकर फोटो खिंचवाते लोगों को देखकर हंसी भी आती और आनंद भी. एक ज़माना था जब हम रील ख़त्म होने के डर से फोटो लेने में बड़ी अहतियात बरतते थे. लेकिन अब ज़ाहिर है , न रील ख़त्म होने का डर , न रील धुलवाने का इंतज़ार। इसलिए अब लोग फ़ोटो खींचते हैं और सबसे पहला काम करते हैं देखने का. सचमुच ज़माना बदल गया है.
यहाँ सर घुमाते ही नज़र आता है -- होटल ताज़महल। वही ताज़महल जहाँ क़रीब ५ साल पहले २६/११ को धांय धांय की आवाज़ के बीच इतिहास में आतंकवाद का सबसे भयंकर रूप देखने को मिला था. हमारे पीछे होटल का जो कोना दिखाई दे रहा है , वह तब धू धू कर जल रहा था. पास से देखने पर मरम्मत के निशान साफ दिखाई देते हैं जो शायद सदा याद दिलाते रहेंगे कि इस ईमारत ने इन्सान के हाथों कितनी मार खाई है.
मुंबई में मौसम दिल्ली की अपेक्षा ज्यादा सुहाना लगा. थोड़ी थोड़ी देर में बारिश आकर उमस को ख़त्म कर देती है. सारे समय छाये बादलों ने सूरज की गर्मी से हमें बचाए रखा. हालाँकि , हर समय गीलेपन का अहसास भी होता रहा जो हमें बुरा नहीं लगा.
मुंबई में आवागमन के लिए ऑटो और टैक्सी की सुविधा भी बहुत सुविधाजनक है. बिना हील हुज्ज़त किये मीटर डाउन कर चल देते हैं , मंजिल की ओर. साथ ही , लोकल ट्रेन्स तो जैसे मुंबई की जान हैं. खचाखच भरी लोकल में यात्रा करने की आदत सी पड़ जाती है. हालाँकि हमारे जैसे तो बेचारे फस्ट क्लास में ही ट्रेवेल कर सकते हैं. सेकण्ड क्लास में ट्रेवेल करने पर और लोग ही हमारी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे उन्हें हम पर दया आ रही हो कि बेचारे कहाँ फंस गए. लेकिन हमने भी यह अनुभव करने की ठान रखी थी.
यहाँ की सबसे अच्छी बात यह लगी कि यहाँ रात भी रात नहीं लगती। लगता है , मुम्बईकर कम ही सोते हैं.
नोट : मुंबई में तीन रहे लेकिन किसी से भी संपर्क करना संभव नहीं था. ऐसे में कुछ मित्रों को शिकायत भी हो सकती है. या शायद न भी हो !
मुंबई में मौसम दिल्ली की अपेक्षा ज्यादा सुहाना लगा. थोड़ी थोड़ी देर में बारिश आकर उमस को ख़त्म कर देती है. सारे समय छाये बादलों ने सूरज की गर्मी से हमें बचाए रखा. हालाँकि , हर समय गीलेपन का अहसास भी होता रहा जो हमें बुरा नहीं लगा.
मुंबई में आवागमन के लिए ऑटो और टैक्सी की सुविधा भी बहुत सुविधाजनक है. बिना हील हुज्ज़त किये मीटर डाउन कर चल देते हैं , मंजिल की ओर. साथ ही , लोकल ट्रेन्स तो जैसे मुंबई की जान हैं. खचाखच भरी लोकल में यात्रा करने की आदत सी पड़ जाती है. हालाँकि हमारे जैसे तो बेचारे फस्ट क्लास में ही ट्रेवेल कर सकते हैं. सेकण्ड क्लास में ट्रेवेल करने पर और लोग ही हमारी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे उन्हें हम पर दया आ रही हो कि बेचारे कहाँ फंस गए. लेकिन हमने भी यह अनुभव करने की ठान रखी थी.
यहाँ की सबसे अच्छी बात यह लगी कि यहाँ रात भी रात नहीं लगती। लगता है , मुम्बईकर कम ही सोते हैं.
नोट : मुंबई में तीन रहे लेकिन किसी से भी संपर्क करना संभव नहीं था. ऐसे में कुछ मित्रों को शिकायत भी हो सकती है. या शायद न भी हो !
bahut hi sundar yatra vratant .....is bahane hum bhi ghum liye mumbai nagariya ...
ReplyDeleteघूम लिए पूरा आप -और हमें भी घुमा दिए मुबई- थोडा नोस्टालजिक भी हुए हम
ReplyDeleteआपके यात्रा वृत्तांत नें हमें भी आपनें मुंबई घुमा दिया !!
ReplyDeleteमुंबई यात्रा का सुखद वृतान्त साझा करने के लिए आभार,,,
ReplyDeleteRECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
बढ़िया मुंबई चित्रण, साल में एक-आदा बार ऑफिसियल टूर लग जाता है, और दिल्ली से उठकर मुंबई पहुंचकर हमें बस यही अलग अहसास होता है कि मुम्बईकर दिल्ली वालों से बेहतर डिसिप्लिन हैं ! पहले वहाँ की भीड़ भी एक अलग अहसास होता था, किन्तु अब दिल्ली भी वैसी ही लगती है !
ReplyDeleteवैसे बेटी के कैरियर का एक ख़ास मुकाम हासिल करने पर आपको और आपकी बेटी को हार्दिक शुभकामनाएं और वधाई !
Deleteशुक्रिया गोदियाल जी.
Deleteबढ़िया। ...हमे भी मुंबई घूमना है।
ReplyDeleteइस शहर का एक अलग ही रंग है.... बढ़िया चित्र और वृतांत
ReplyDeleteयही है मुम्बई डाक्टर साहब.
ReplyDeleteरामराम.
मुंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सल्लम करो
ReplyDeleteबाकी, रात को खाने पीने की बात अलग से कर लेंगे अपन!
बड़ा मस्त शहर है मुंबई ..शुक्रिया आपका !
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा वृतांत ... आपकी पोस्ट के साथ हम भी मुंबई घूम लिए… फोटो बढ़िया लगे… आभार
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा वृतांत और चित्र बेटी को हार्दिक शुभकामनाएं,
ReplyDeleteवाह आज मुबई आपकी नज़र से देखा. बिटिया के लिए मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteबड़े ख़ूबसूरत चित्र हैं ...मुम्बई वाले कोई शिकायत नहीं करेंगे ,इस शाहर में इतना कुछ देखने को है कि वक़्त कम पड़ जाता है .
ReplyDeleteबिटिया को असीम शुभकामनाएं !!
bahut badhiyaa ji.
ReplyDeletemumbai kaa achchhaa view diyaa hain aapne.
didi (abhi umar hi meri 25 hain, bitiya nahi keh saktaa) ko badhaai.
thanks ji.
CHANDER KUMAR SONI,
WWW.CHANDERKSONI.COM
शानदार यात्रा वृतांत बम्बई यात्रा को आपने उकसा दिया
ReplyDeleteजो बात...ये है बॉम्बे मेरी जान में थी...
ReplyDeleteवो आज की...ई है मुंबई नगरिया , तू देख बबुआ में नहीं..
बेटी की गौरवपूर्ण उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई...
जय हिंद...
मुंबई की खूबसूरती ओर रेल पेल को बाखूबी उतारा है केमरे से ... भारत का हर महानगर एक्सा ही लगता है पर सुना है मुंबई की बात अलग है ... बिटिया को बधाई ...
ReplyDeleteसुन्दर और संक्षिप्त वृत्तांत परोसा है आपने स्वप्न नगरी का रोज़ दिन में ११ बजे अमिताभ बच्चन भी दर्शन देते हैं अपनी कोठी के गेट पे आके नमस्ते करते हैं। ॐ शान्ति।
ReplyDeleteमुंबई ये मुंबई नगरी बडी बांका ।
ReplyDeleteचलो जी हमने भी शाहरुख़ खान का बंगला देख लिया ......:))
ReplyDeleteबहुत हो खूबसूरत तसवीरें .... !!
मुबारक जी.
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