सप्ताह भर से फेसबुक पर टमाटर पुराण पढ़ते पढ़ते टमाटर फोबिया इतना बढ़ गया था कि जब श्रीमती जी ने बताया कि घर में सब्जियां बिल्कुल ख़त्म हो गई हैं और आज तो लानी ही पड़ेंगी, तो डरते डरते हमने थैला उठाया और चल दिए मदर डेयरी के बूथ की ओर। मुख्य द्वार पर बड़े से साइन बोर्ड पर लिखा था -- शुद्ध वेज सब्जियां। पढ़कर संतोष हुआ कि चलिए कम से कम इनमे कीड़े तो नहीं होंगे। साथ ही रेट लिस्ट पढ़कर तो जैसे बांछें ही खिल गई -- सब्जियों के भाव ५ रूपये से लेकर २ ० रूपये किलो तक लिखे थे। अब तो हमें अपने फेसबुक मित्रों पर बड़ा गुस्सा आया कि खामख्वाह हमें सप्ताह भर से डरा रखा था।
लेकिन अन्दर जाकर देखा कि सारी सब्जियां ६० से ८० रूपये किलो के भाव मिल रही थी। श्रीमती जी तो यह कहती हुई बाहर निकलने लगी कि सब्जियां अच्छी नहीं हैं लेकिन हमने बूथ वाले से रेट लिस्ट में लिखी सब्जियां देने को कहा तो थैले में डालने लायक कुछ तो मिला। हमने भी दिल समझाया कि जब बरसात में भी सूखा पड़ जाये तो कोई क्या करे।
वापसी में श्रीमती जी एक के बाद फरमाइश करती रही और हम पूरी करते रहे। अब तक थैला पूरा भर चुका था और खुले पैसे भी ख़त्म हो चुके थे। तभी हमें केले नज़र आ गए। हमारी पसंद का ध्यान रखते हुए श्रीमती जी ने ऑफर किया कि चलिए आपके लिए केले खरीदते हैं। हमने कहा कि खुले पैसे सारे ख़त्म हो चुके लेकिन ढूँढा तो एक दस का नोट मिल ही गया। आखिर ४० रूपये दर्ज़न के हिसाब से १० रूपये में तीन केले लेकर अपनी शॉपिंग पूरी हो गई। जिंदगी में पहली बार बस तीन केले खरीदे।
लेकिन अब एक समस्या सामने आ खड़ी हुई। श्रीमती जी ने कहा कि केले तीन और हम दो , बंटवारा कैसे हो ! हमें भी तभी चाचा छक्कन याद आ गए तो हमने कहा कि ऐसे करेंगे कि पहले एक केला हम खा लेंगे फिर केले भी दो और खाने वाले भी दो। अभी हम अपने गणित के ज्ञान पर अभिमान कर ही रहे थे कि किसी के पुकारने की आवाज़ आई। हमने मुड़कर देखा तो पाया कि एक चार फुट का ज़वान अपनी उतने ही साइज़ की बीबी और एक छोटे से बच्चे को गोद में लिए हमारे सन्मुख खड़े थे। देखने में बिहारी से लग रहे थे लेकिन भिखारी नहीं। हमने जब उसे घूरकर देखा तो वह हमारी मनोस्थिति को समझते हुए फ़ौरन बोला -- नहीं नहीं , हम पैसे नहीं मांगेंगे , हम तो बस -- लेकिन उसकी तीक्षण बुद्धि और तत्परता ने अब तक हमारी सिक्स्थ सेन्स को जगा दिया था।
वह कुछ समझा रहा था लेकिन हमें बस यही समझ आ रहा था कि वह भीख मांगने का कोई नया तरीका अपना रहा था। उसने जो लघु कथा सुनाई उसे यही समझ आया कि शायद वह कुछ खाने की बात कर रहा था। दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए अब तक इतना अनुभव तो हो ही गया है कि यूँ किसी के बहकावे में न आयें। उन्हें देखकर यह नहीं लग रहा था कि वे वास्तव में भूखे थे। आखिर उससे पीछा छुड़ाने के लिए हमने कहा कि भैया देख हमारे पास पैसे तो सारे ख़त्म हो गए हैं लेकिन ये केले हैं , इन्हें ले लो। यह कह कर हमने थैले से केले निकाले और उसे सौंप कर चल दिए। चलते चलते हमने श्रीमती जी की ओर देखा और उन्होंने हमारी ओर और दोनों केलों के हिसाब पर ठहाका मार कर हंस पड़े।
अब केलों का हिसाब पूर्ण हुआ तो हमने श्रीमती जी पूछा कि वह कह क्या रहा था। उन्होंने बताया कि वह कह रहा था -- हमें अपने घर ले चलिए और खाना खिला दीजिये और उनके पास ठहरने की जगह भी नहीं थी । अब यह तो आँखें खोलने वाली बात थी कि उसे पैसे नहीं चाहिए थे लेकिन रात के समय घर जाकर खाना खाना चाहता था और आश्रय भी। आखिर , कौन होगा जो एक अजनबी की इस बात पर विश्वास करेगा !
ज़रूरतमंद की मदद करना तो अच्छी बात है लेकिन कोई वास्तव में ज़रूरतमंद है , यह निर्णय लेना वास्तव में बड़ा कठिन है। आजकल जहाँ आम तौर पर अपनों का विश्वास नहीं रहा वहां क्या किसी अजनबी पर विश्वास किया जा सकता है ? कितनी ही गृहणियां ऐसे अजनबियों पर विश्वास कर लुट जाती हैं। दिल्ली जैसे शहर में रास्ते चलते यदि कोई किसी मज़बूरी का बहाना बनाकर आपसे मदद की गुहार करे तो मदद करने से पहले अच्छी तरह सोच विचार लें , वर्ना यह न हो कि कुछ समय बाद स्वयं आपको सहायता की आवश्यकता पड़ जाये।
रोचक!
ReplyDeleteखासकर'शुद्ध वेज सब्जियाँ!
बात बिहारी दंपत्ति की तो बात केलों पर खतम हो गयी वर्ना आज के समय में शहरों में अजनबी लोगों पर विश्वास करना वाकई बड़ा कठिन है.
.सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने .रोचक प्रस्तुति आभार आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .आप भी पूछें कैसे करेंगे अनुच्छेद 370 को रद्द ज़रा ये भी बता दें शाहनवाज़ हुसैन .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
ReplyDeleteसच है मुझे तो यह जानकर ही आश्चर्य हो रहा है कि उसने खाना खिलने की बात कि वरना आजकल के भिखारी तो खाना लेने से साफ माना कर देते हैं यहाँ तक के वह तो आट्टा चावल तक नहीं लेते सिर्फ पैसों से मतलब होता है उन्हें...
ReplyDeleteअरे क्या इत्तेफाक है. ऐसा ही एक भूखा भिखारी कल यहाँ हमारे घर भी आ पहुँचा, एक गेस बॉयलर चेक करने वाले के भेष में.वो तो वक्त पर हमारा दिमाग काम कर गया और हमने तुरंत ही उसे रफा दफा कर दिया, वरना... वाकई किसी अजनबी पर विश्वास करना मुश्किल है आजकल - लन्दन हो या दिल्ली.
ReplyDeleteशिखा जी , सही बात है।
Deleteआज पहली बार ऐसा हुआ कि पहली चार टिप्पणियां चार महिलाओं की आई और वो भी चार अलग देशों से ! :)
कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं मियां ...
Deleteनहीं , पर यह महिलाओं के काम की पोस्ट है । पुरुष भी फायदा उठायें तो बढ़िया है। :)
Deleteचचा छक्कन का फ़ार्मुला काम में लेने की नौबत ही नही आई.:)
ReplyDeleteरामराम.
उसके लिए तो १२ केले चाहिए थे। :)
Deleteहा हा हा...हम भी यही सोच रहे थे कि 3 केलों में चचा छक्कन का फ़ार्मुला कहां फ़िट बैठेगा?:)
Deleteरामराम.
अनजान लोगों को घर लाने की तो बात छोडिये आजकल जान पहिचान वाले भी मौका मिलते ही चोट कर जाते हैं.
ReplyDeleteरामराम.
:(
Deleteबल्कि जान पहचान वाले और रिश्तेदार ही ज्यादा लूटते हैं किसिम किसिम के बहनों से , और यदि आपने सहायता के लिए विवेक का प्रयोग किया तो कंजूस की पदवी स्वीकारने के लिए तैयार रहें !
Deleteवाणी जी , फिर भी ऐसे मामलों में विवेक का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
Deleteलेकिन हमने बूथ वाले से रेट लिस्ट में लिखी सब्जियां देने को कहा तो थैले में डालने लायक कुछ तो मिला।
ReplyDeleteइन शुद्ध वेज सबजियों में, 5 से 20 रूपये में आपको कौन सी सब्जी मिली? यह नही बताया.
रामराम.
ये सब्जियां सिर्फ सिफारिश से मिलती हैं। :)
Deleteयानि कि इन्हें "शुद्ध वेज सिफ़ारिशी सब्जियां" नाम देना चाहिये.:)
Deleteरामराम.
ये सिर्फ युवाओं को मिलती हैं। :)
Deleteरोचक सब्जी पुराण !!
ReplyDeleteअबकि बार केले अधिक लेना, चाहे पाँच सौ की पत्ती क्यों न तुड़वानी पड़े।
ReplyDeleteखुद के लिए भी कुछ बचना चाहिए न :)
रोचक .... आज कल अजनबी पर तो बिलकुल ही भरोसा नहीं करना चाहिए वैसे जान पहचान वाले भी कुछ कम नहीं होते नुकसान पहुंचाने में
ReplyDeleteमांगने वालों की बात उठी तो याद आया यहाँ एक ट्रेंड है कि बाहर "नायर" (keralite)name plate देख कर कोई बंदा बाकायदा डोर बेल बजा कर मलयालम में बात करता है और केरला तक जाने के पैसे मांगता है......same बंदा महीनों के अंतराल में हमें अपने दरवाज़े और पापा के घर के बाहर भी दिखा तब समझे....
ReplyDeleteबदमाश भी बड़े क्रियेटिव हो रक्खे हैं आज कल.
:-)
अनु
जी सही कहा। ये लोग बड़े इन्नोवेटिव होते हैं और नए नए तरीके निकाल लेते हैं। इसलिए होशियार रहना ज़रूरी है।
Deleteस्थानीय दगाबाज़ों को भी मलयालम सीखनी पड़ती है, ... बहूत नाइंसाफी है ...
Deleteलूटने वालों ने विश्वास ही लूट डाला
ReplyDeleteज़रूरतमंद की मदद करना तो अच्छी बात है लेकिन कोई वास्तव में ज़रूरतमंद है, यह निर्णय लेना वास्तव में बड़ा कठिन है।.......और ऐसे में जरुरतमंद की मदद होने से रह जाती है और मदद कर सकनेवाले के हाथ से भी मदद का अवसर छूट जाता है। बड़ी ही 'क्या करें क्या न करें' वाली स्थिति है। लेकिन चलिए आपने उनको कुछ तो खाने को दे दिया। बहुत अच्छा किया।
ReplyDelete४० रूपए दर्जन ....? यहाँ तो ८० से १०० के बीच है ......
ReplyDeleteजी, आजकल यहाँ फल थोड़े सस्ते हैं।
Deleteज़रूरतमंद की मदद करना चाहिए,लेकिन क्या वह वास्तव में ज़रूरतमंद है ,
ReplyDeletetamaatar puraan or kele kaa ganit to jordaar rahaa.
ReplyDeletekele bhi 3 thae or wae log bhi 3 hi thae.
hisaab to sahi sahi ho gayaa.
waise, delhi kuch jyada hi daraawani hain.
aapke post ki aakhiri line ne bhi is baat ko majbooti di hain.
thanks.
CHANDER KUMAR SONI
WWW.CHANDERKSONI.COM
सस्ते छूटे! मजे की बात तो यह है कि इतनी भीड़ भाड़ में ये अपना लक्ष्य दानिशमंद तलाश ही लेते हैं! हम भी इनके टारगेट बनते आये हैं अब चंट हो चले हैं ..ब्लागिंग के चंद साला अनुभव ने बहुत कुछ सिखा दिया है! वह भी धोखिया गया ! एक ब्लॉगर से प गया!
ReplyDeleteचलिए ब्लॉगिंग से कुछ तो फायदा हुआ। :)
Delete*पाला पड़ गया
ReplyDeleteन सिर्फ रोचक आलेख अपितु एक समसामयिक मुदा भी उठाया है आपने डा० साहब, मुझे अखबार पढने की ज्यादा फुर्सत तो नहीं रहती किन्तु आज सुबह की चाय पर श्रीमती जी ने गाजियाबाद की एक ऐसी घटना का जिक्र उठाया जो कहल के कुछ अखबारों में भी आया था। अभी कुछ समय पूर्व एक पिक्चर आई थी, नकली सीबीआई के रेड से सम्बंधित। ठीक उसी तर्ज पर कल गाजियाबाद में चार युवकों ने खुद को सीबीआई वाला बताकर घर के जेवरातों और नगदी को लूट लिया। तो आशय यह कि आज के जमाने में भरोसा किसे का नहीं रहा
ReplyDeleteगोदियाल जी , यहाँ बाहर से ज्यादा घर में खतरा रहता है। कोई भी किसी भी बहाने से घर में घुस कर वारदात कर सकता है। इनमे फोन , गैस , पाइप , या कोई और उपकरण चैक करने वाले या फिर दूध , अख़बार या केबल के पैसे लेने वाले भी हो सकते हैं। घर में काम करने वाले नौकर या बाई से भी सावधान रहना ज़रूरी है। इनके सामने कभी भी पैसे या कीमती सामान प्रदर्षित नहीं होना चाहिए। लेकिन सबसे ज्यादा खतरा रहता है अंजान लोगों से जो लालच देकर आपको बेवक़ूफ़ बनाकर चूना लगा जाते हैं। अफ़सोस तो यह देखकर होता है कि महिलाएं इन ठगों के जाल में फंस भी जाती हैं। इसी तरह सफ़र में भी किसी अन्जान से खाने पीने की चीज़ नहीं लेनी चाहिए।
Deleteमुबई में तो सरकार ने सौ केंद्र खोले ही सस्ती सब्जियों का, पर मिलती कुछ नहीं है, इतनी बड़ी लाइन देख कर ही आप भाग जायेंगे और लगा गए तो जब तक आप का नंबर आयेगा कभी सब्जिय ख़त्म हो जाती है, तो कभी सडी गली और नानवेज सब्जिया ही बची रहती है ।
ReplyDeleteक़ानून कहता है कि 100 दोषी बेशक बच जाएं लेकिन एक भी निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिेए...कोई वाकई ज़रूरतमंद है या नहीं. इसे परखा जा सकता है, लेकिन इसके लिए वक्त की ज़रूरत होती है...दुर्भाग्य से आज हम सबके पास ही वक्त की कमी है...इसलिए खामख्वाह के टंटे में फंसने से बचना ही समझदारी है...कुछ धूर्त किस्म के लोग ज़रूरतमंद होने का ढोंग रच कर लोगों से पैसे एंठने को आदत बना लेते हैं...इन कामचोरों की वजह से ही वाकई परेशानी में फंसा इनसान भी हमें चालबाज़ नज़र आने लगता है...वाकई स्थिति बड़ी विकट है...
ReplyDeleteजय हिंद...
सच कहा है ... आज कल भरोसा करना किसी अजनबी पे बहुत ही दुष्कर कार्य है ...
ReplyDeleteपर मतलब की बात ये की पहली बार टीम केले खरीदे और वो भी खाने से महरूम रह गए ...
ReplyDeleteमान न मान मैं तेरा मेहमान .कद्रदान मेहरबान ,ना हक़ न हो परेशान .अजनबी का न कर सम्मान बना सकता है घर को शमशान .
सरकार सरकार रोटी की तरह एक रैन बसेरा बिल भी लाओ .
ReplyDeleteबेचारे केलों को बंटने का कष्ट नहीं उठाना पड़ा। वर्तमान युग में किसी अजनबी पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)
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