दिल्ली से बाहर निकल पहाड़ों की ओर रुख पहली बार मेडिकल कॉलेज के तृतीय बर्ष की छुट्टियों में हुआ था। पहली ही नज़र में जैसे पहाड़ों से प्यार सा हो गया था। शादी के बाद तो गर्मियों में यह नियम सा ही बन गया। दिल्ली जैसे बड़े शहर में बढती जनसँख्या का प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ता है। इसलिए कुछ दिनों के लिए स्वच्छ वातावरण में साँस लेना और भी आवश्यक हो जाता है।
इस वर्ष कार्यक्रम बना हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला का , जहाँ पहली और आखिरी बार १८ साल पहले जाना हुआ था। तब एक मित्र की नई नई शादी के बाद हम भी बच्चों समेत यहाँ पधारे थे। उस वर्ष पैदा हुए बच्चे अब व्यस्क होकर और वोट का अधिकार पाकर देश के भाग्य विधाता बनने लायक हो गए हैं। इसी तरह इस बीच धर्मशाला में भी कितना कुछ बदल गया है , इस बारे में अगली पोस्ट में बात करेंगे। फ़िलहाल तो आइये देखते हैं , पहाड़ों की खूबसूरती जो बरबस किसी का भी मन मोह सकती है और मन मयूर नाचने लगता है।
दिल्ली से धर्मशाला जाने के लिए सर्वोत्तम साधन है , वॉल्वो बस यात्रा। शाम ७ बजे चलकर सुबह ६ बजे पहुँच जाती है , हालंकि देर से चलना जैसे इनका नियम सा है। बाहर से अत्यंत सुन्दर दिखने वाली वॉल्वो बस अन्दर से भी उतनी ही सुन्दर और आरामदेह हो , यह कतई आवश्यक नहीं। फिर भी , यह हवाई यात्रा का बढ़िया विकल्प है। यह अलग बात है कि सुबह ६- ७ बजे पहुँच कर होटल में चेक-इन की समस्या हो सकती है।
धर्मशाला शहर की समुद्र तल से ऊँचाई मात्र १२५० मीटर होने से यहाँ आपको गर्मी मिल सकती है लेकिन इतनी नहीं जितनी दिल्ली में। वैसे भी पर्यटकों के लिए यहाँ विशेष कुछ नहीं है। यहाँ का असली आकर्षण है मैक्लौड गंज जो धर्मशाला से करीब १० किलोमीटर दूर १९०० मीटर की ऊँचाई पर होने से अपेक्षाकृत ठंडा महसूस होता है। साथ ही यहीं के आस पास कई खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं जो मन को सकूं प्रदान करते हैं।
ठहरने के लिए हमारा आशियाना था स्टर्लिंग रिजॉर्ट जो धर्मशाला से करीब १ किलोमीटर दूर पालम पुर जाने वाली सड़क से बाएं मुड़कर एक नदी किनारे बहुत ही खूबसूरत वादी के बीच बना है। ढाई किलोमीटर लम्बी सड़क के साथ साथ बहती नदी अंत में एक पहाड़ की तलहटी पर पहुँच कर अपना रुख मोड़ लेती है और सड़क नदी को पार कर दूसरी ओर से वापस मुड़ लेती है। इस तरह नदी के दोनों ओर सड़क के साथ साथ कई गाँव बसे हैं जो अब शहरीकृत हो चुके हैं। अब यहाँ सेवा निवृत लोगों ने सुन्दर बंगले और कॉटेज बना रखे हैं। देखा जाये तो यह स्थान शांतिपूर्ण सेवा निवृत जीवन व्यतीत करने के लिए सर्वोत्तम प्रतीत होता है।
स्टर्लिंग रिजॉर्ट की पार्किंग और अधिकारिक निवास अवम कार्यालय। प्रष्ठभूमि में धौलाधार रेंजिज जो कभी बर्फ से ढकी होती थी लेकिन अब बर्फ नाममात्र को दिखाई दे रही थी। दायीं ओर रिजॉर्ट बना है जिसके बाद नदी है।
यह रिजॉर्ट एक होटल के रूप में है लेकिन रिजॉर्ट की सभी सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं। एक तरफ कमरों से धौलाधार चोटियाँ नज़र आती हैं जबकि पीछे की ओर बने कमरों से नदी का शानदार नज़ारा। पहले दिन नदी में पानी ज्यादा नहीं था लेकिन अगले दिन हुई बारिस की वज़ह से अचानक नदी में बहुत सारा पानी एक साथ आ गया। यहाँ पानी में जल क्रीड़ा कर रहे कई पर्यटकों को जान बचाकर भागना पड़ा क्योंकि पानी का बहाव एकदम तेज हो गया था और पानी भी गदला हो गया था।
पहाड़ी नदियों में नहाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि बारिस के समय नदी से दूर रहें। ऐसे में कब अचानक पानी का बहाव तेज हो जाये , पता ही नहीं चलेगा और दुर्घटना हो सकती है।
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नदी के उत्तर की ओर का नज़ारा। बारिस के बाद मौसम साफ होने पर पहली बार बर्फीली चोटियाँ नज़र आई।
रिजॉर्ट के आगे से जाने वाली सड़क करीब १ किलोमीटर तक जाती है जिस के साथ बने हैं अनेकों मकान। फोटो में जो बिल्डिंग नज़र आ रही है वह सरकारी लॉ कॉलेज है जो अभी चालू नहीं हुआ है लेकिन द्रश्य को भव्यता प्रदान कर रहा है।
आगे जाकर ऊँचाई से दक्षिण की ओर देखने पर यह नज़ारा मन मोह लेता है।
इसे देख कर हमें कनाडा के क्यूबेक शहर की याद आ गई।
यह सड़क ऊपर की ओर गावों में जाती है। अक्सर शाम को यहाँ गावों के लोग पिकनिक मनाते हुए नज़र आते हैं। कहीं कोई युवक गिटार पर धुन बजाता हुआ, कहीं अबोध बालाएं मासूमियत से खीं खीं करती हुई। प्रोढ़ महिलाएं बोतलों और जरिकेन में नदी से पीने का पानी लाती हुई। कुल मिलाकर यहाँ शाम का समय अद्भुत होता है ।
शाम ढलने को है। सूरज की अंतिम किरणें अब बस चोटियों को चूम रही हैं।
सूर्यास्त का एक नज़ारा। फिर सब चल पड़ते हैं अपने अपने घरों की ओर और हम अपने होटल की ओर।
इस जगह पर आकर जो शांति और मन को सकून मिला वह बड़े शहरों के आलिशान होटलों और भव्य भवनों में कभी नहीं मिलता। बारिस के बाद तो मन जैसे स्वत: गाने लगा फिल्म -- मन की आँखें -- का धर्मेन्द्र पर फिल्माया और लक्ष्मी कान्त प्यारे लाल का संगीतबध किया यह सुन्दर गीत जिसके बोल किस गीतकार ने लिखे हैं , यह जान नहीं पाया। लेकिन रह रह कर यह याद आता रहा और हमने भी कोशिश की इस माहौल पर एक कविता लिखने की। लेकिन हम कोई साहित्यकार नहीं , इसलिए लफ़्ज़ों की खूबसूरती को बस तलाशते ही रह गए। आइये सुनते और देखते हैं यह सुरीला तराना , मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में :
नोट : अगली पोस्ट में धर्मशाला के कुछ सुन्दर स्थलों की सैर करना न भूलें।
बढ़िया.....
ReplyDeleteसैरसपाटे से बेहतर रेजुविनेटिंग कुछ नहीं....
nice clicks too ..
सादर
अनु
कुछ दिन का अवकाश और वो भी पहाडॊं पर हो तो एक नई स्फ़ुर्ति आ जाती है. चित्र बहुत मनमोहक हैं. आभार.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर प्रकृति का नज़ारा
ReplyDeletelatest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
गाना तो बडा मस्त है पर गाने वाली ख्वाहिश पूरी नही हो सकती, हफ़्ते दस दिन की बात अलग है, बाकी तो जहाज के पंछी को लौटकर जहाज पर ही आना पडता है.:)
ReplyDeleteरामराम.
Deleteज़हाज़ से निवृत होने के बाद देखते हैं। :)
बढ़िया
ReplyDeleteथोडा हमें भी अपना सहयोग दें ब्लॉग्गिंग के लिए धन्यवाद
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बहुत सुन्दर यात्रा वर्णन | बढ़िया |
ReplyDeleteजिंदगी में शांति सुकून सभी चाहते है प्रकृति के नजदीक जाकर हमे ऐसे ही एहसास होते है ....
ReplyDeleteलेकिन यह तभी संभव है जब हम स्वयं भी प्रकृति का ख्याल रखें।
Deleteसुन्दर यात्रा वर्णन
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत तस्वीरें...शब्दों की भी और कैमरे की भी.
ReplyDeleteसुना है वहां मोमोज बहुत अच्छे मिलते हैं :)
शिखा जी , मोमोज तो आजकल हर जगह मिलने लगे हैं। हमारे घर के पास भी। :)
Deleteवाह इतने खूबसूरत नजारे और ये खूबसूरत गीत ...हमें तो लगा आप ही गा रहे हैं ....:))
ReplyDeleteजी , साड्डे धर्मेन्द्र दा ज़वाब नहीं। :)
Deleteताऊ ,
ReplyDeleteधर्मशाला घूम रहे हो गर्मी में ...बधाई भाई जी !
मगर उधर मैदान साफ़ पाकर, आपको ताऊ बनाने के चक्कर में है !
इसमे बनाने वाली कौन सी बात है, जो है सो है यानि ताऊ कौन है इसका फ़ैसला हो चुका है.:)
Deleteरामराम.
अब ये भी सवाल उठ खड़ा हुआ कि ताऊ कौन है ! :)
Deleteआपके छुपाने से क्या होता है? खूशबू तो दूर तलक जाती है.:)
Deleteरामराम.
तभी इतना रोमांटिक मूड बना था :-) आपकी नज़रों से मैंने भी देखी धर्मशाला -कवितामय हो रहा हूँ !
ReplyDeleteशुक्रिया भाई जी।
Deleteअब किस-किस की तारीफ़ करूँ जी ??चारो ओर खूबसूरती बखेर दी आपने तारीफ जी :-))))
ReplyDeleteतन और मन दोनों स्वस्थ !
आभार !
वहां कैसे बसा जा सकता है कभी इसका भी ज़िक्र कीजियेगा !
ReplyDeleteअभी तो हम भी मन में ही बसाये हैं।
Deleteवाह बहुत ही खूबसूरत तस्वीरें खासकर जिसमें आसमान साफ होने के बाद बर्फीली चोटियाँ नज़र आरही है वो तो बेहद खूबसूरत नज़ारा है मज़ा आगया...
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
ReplyDeleteसैर सपाटे के लिए बेहतरीन जगह किन्तु असुरक्षित स्थल भले ही खूबसूरती से भरी है जिंदगी को जोखिम में डालने पर .
ReplyDeleteनहीं रमाकांत जी -- आपको ऐसा क्यों लग रहा है ?
Deletebahut badhiyaa pics hain.
ReplyDeletemain bhi gayaa thaa 6 saal pehle.
ab aapne fir se yaad dilaa diyaa hain,
dekho, bhagwaan kab jaane ki ijaajat detaa hain.
thanks ji.
CHANDER KUMAR SONI
WWW.CHANDERKSONI.COM
धर्मशाला की खूबसूरती को कैद किया है आपने ... हर फोटो कमाल की है ... रोमांस झलक रहा है ...
ReplyDeleteअगर दिल्ली वाली महिला टक्कर न मारती तो शायद हम भी आपको धर्मशाला में मिल लिए रहते। उसकी टक्कर ने मेरा यात्रा मार्ग ही बदल दिया :)
ReplyDeleteदिल्ली की महिलाओं से -- बचकर चलो भैया। :)
Deleteभाई ललित, बीरबानियां धौरै के लेढकी लेण गयो सो?
Deleteरामराम.
दिल्ली वाली देखकर खुस हो रह्यो थो। :)
Deleteडाक्टर साहब, भाई ललित न घर तैं लिकडन तैं पहले घणा समझाया था कि देख दिल्ली जारया सै...उत जाकै बीरबानियां न मन्ना देखिये, पर भाई नै मेरी एक बात ना मानी और नतीजा थारै सामनै सै.:)
Deleteरामराम.
Fatal attraction ! :)
Deleteइब त मन्नै पक्का बेरा पाटग्या कि भाई कितै ना कितै किसी क धौरै उलझ लिया?:)
Deleteरामराम
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteअगली बार पोखरा-नेपाल घूम आइये। आपको आनंद आयेगा।
बड़ा सुरम्य स्थान है , सौभाग्य से मैं यहाँ जा चुका हूँ !
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय की बात मन लीजियेगा मगर अगले साल नहीं इसी साल , फायदा जरूर होगा !
हाँ , नेपाल जाना कभी नहीं हुआ। देखते हैं , कब प्रोग्राम बनता है।
Deleteहा हा हा ! बस कर ताऊ , बच्चे की जान लेगा के ! :)
ReplyDeleteहा हा हा...कोई बात नही, अब तो अगली पोस्ट भी आगई, वहां पहुंचते हैं.:)
Deleteरामराम.
वाह !! पहाड़ों पर छुट्टियाँ
ReplyDeleteप्रकृति के सुन्दर नज़ारे
1000 मी पर तो बंगलोर ही है, मैक्लॉयडगंज में असली आनन्द आया था।
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