सरकारी नौकरी में सेवा निवृति की आयु ६० वर्ष की है। हालाँकि कई बार लगा जैसे यह बढ़कर ६२ हो जाएगी लेकिन अभी दिल्ली दूर नज़र आ रही है। बहरहाल , ६० की आयु में सेवा निवृत होना ऐसा लगता है जैसे भरी ज़वानी में घर बिठा दिया गया हो। आखिर अब तो लाइफ़ एक्स्पेकटेंसी भी ७० के करीब है। अक्सर जब कोई हमारे यहाँ रिटायर होता है तो हम बड़ी धूम धाम से उसका फेयरवेल करते हैं। हमारे रहते फेयरवेल जैसे संजीदा माहौल में भी हास्य का पुट होना स्वाभाविक सा लगता है। प्रस्तुत है , इसी विषय पर पहली बार लिखी गई एक हास्य कविता :
१)
एक बात हमको, बिल्कुल भी नहीं भाती है,
कि साठ की उम्र, इतनी जल्दी आ जाती है।
कहते हैं लोग सब साठ में सठियाने लगते हैं ,
पर पाण्डेय जी तो अभी तक ज़वान लगते हैं।
सरकार ने वफादारी का ये कैसा सिला दिया है ,
भरी ज़वानी में जो परमानेंट तबादला किया है।
जीवन भर तो करते रहे सरकार की नौकरी ,
अब करनी पड़ेगी घरेलु सरकार की चाकरी।
जो रौब दफ्तर में अक्सर मारते थे सब पर ,
अब देखते हैं किस का हुक्म चलेगा घर पर।
एक दिन पाण्डेय साब की पी ऐ जब ज्यादा लेट आई,
साहब ने सबके सामने उसको जमकर डांट लगाईं।
हमने कहा ज़नाब , क्यों बेचारी महिला को डांट लगाते हैं ,
वो बोले ये दफ्तर की बात है, घर में तो डांट हम खुद ही खाते हैं।
सेवा निवृति के बाद साब खुद को डांट से बचा पायें ,
इसीलिए हम देते हैं सेवा निवृति पर शुभकामनायें।
२)
इस सरकार ने रोजी दी ,
उस सरकार ने रोटी दी।
इस रोजी ने घर गाँव छुड़ाया ,
उस रोजी ने घर बार बसाया।
अब पाण्डेय जी को अपना फ़र्ज़ निभाना है ,
अब जीवन भर की रोटी का क़र्ज़ चुकाना है।
पूर्ण हुई पाण्डेय जी की सरकारी जिम्मेदारी,
अब घर परिवार और समाज की है बारी।
आखिर जीवन के सब उपवन जब मुरझा जाते हैं ,
तब पति पत्नि ही इक दूजे का साथ निभाते हैं।
नोट : पाण्डेय भी कोई भी हो सकते हैं लेकिन ये हालात सभी पर लागु होते हैं।
धीरे धीरे बहत्तर हो जायेगी, पाण्डेयजी तब भी काम में लगे रहेंगे।
ReplyDelete६२ का शगूफा सरकार थोड़े थोड़े दिनों में छोड़ती रहती है हालांकि यह चुनावी वर्ष है तरह तरह की चीज़ें ट्राई की जाएँगी. हो सकता है कुछ दिन /साल बोनस में मिल जाएँ.
ReplyDeleteहम भी कब से आस लगाये बैठे हैं।
Deleteसाठ साल में कर्मचारियों के लिए ,नेता तो ९० में नौजवान होते है.
ReplyDeletelatest post मंत्री बनू मैं
LATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी।
Deleteजीवन भर तो करते रहे सरकार की नौकरी ,
ReplyDeleteअब करनी पड़ेगी घरेलु सरकार की चाकरी।
अब असली के लठ्ठ पडने का समय आगया लगता है.:)
रामराम.
आखिर जीवन के सब उपवन जब मुरझा जाते हैं ,
ReplyDeleteतब पति पत्नि ही इक दूजे का साथ निभाते हैं।
ये जोरदार कही, आखिर उसके लठ्ठ में प्यार जो छुपा है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सेवा निवृति के बाद लट्ठम लट्ठा ही होते रहेंगे। :)
Deleteबहुत सुंदर रचना,पर ये रिटायरमेंट की बात नेताओं पर लागू क्यों नही होती,,अगर नेता जीवित रहने तक चुनाव लड़ सकते है,तो कर्मचारियों को भी ६० के बाद इक्छानुसार नौकरी करने की छूट मिलनी चाहिए
ReplyDeleterecent post : ऐसी गजल गाता नही,
नेता जन सेवक होते हैं। :)
Deleteवाकई यही लगता है कि उम्र को क्या हो गया !!! कल नौकरी शुरू हुई थी आज ख़त्म भी हो गयी ..
ReplyDeleteयही तो प्यारे जीवन है ..
जब नेता रिटायर नहीं होते है , हमारा भी मन नहीं करता कि नौकरी से हमे सरकार रिटायर करे हमे भी नेताओ कि तरह मृत्यु पर्यंत काम करने का अधिकार चाहते है ताकि आपसी जुगल बंदी बनी रहे
ReplyDeleteनौकरी कहाँ ख़तम होती है ...कुछ न कुछ काम चलता ही रहता है
ReplyDeleteशानदार कहा है .
यहाँ कई प्रकार के पाण्डेय जी पाये जाते हैं। आप कविता लिखते हैं या कविता की आड़ में तीर चलाते हैं..! हम तो भरी ज़वानी में...हर्ट हुए जाते हैं। :)
ReplyDeleteपाण्डेय जी , आप तो अभी २५ + ही हैं। :)
Delete:)
Delete58 साल भी थी कभी रिटायरमेंट की उम्र ..... दोनों कवितायें अच्छी लगीं
ReplyDeleteविचारणीय सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..आभार . धरती माँ की चेतावनी पर्यावरण दिवस पर
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
वाह, रिटायरमेंट के संजीदा मौके पर भी हंसी बिखेरना आसान काम नहीं है। हमने तो ट्रांसफर पर भी लोगों को आँसू बहाते देखा है।
ReplyDeleteअनुराग जी, हमने इस ट्रेंड को चेंज किया है।
Deleteहम रिटायरमेंट मुक्त हैं।
ReplyDeleteसर ये खबर तो हमने भी पढी थी कल और अब तो लगता है कि ये उम्र सीमा और बढाई जाएगी । ब्लॉगिरी का मज़ा तो रिटायरी के साथ दुगुना होता जाएगा सर ....बढिया है दोनों ही :)
ReplyDeleteये सही है , रिटायर्मेंट के बाद फुल टाइम ब्लॉगिंग ! :)
Deleteरिटायरमेंट की बात नेताओं पर लागू क्यों नही होती
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
'घर में तो डांट हम खुद ही खाते हैं'
ReplyDelete- सच तो यह है कि जो घर में डाँट खाते हैं वे सबके सामने कबूलने की हिम्मत कर ही नहीं पाते !
जी , कवियों को छोड़कर। :)
Deleteसेवानिवृत्ति होगी तभी तो नयी पीढी को अवसर मिलेगा।
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
ReplyDelete
ReplyDeleteआखिर जीवन के सब उपवन जब मुरझा जाते हैं ,
तब पति पत्नि ही इक दूजे का साथ निभाते हैं।------
जीवन का सच यही है------
गहन अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है
गुलमोहर------
दूसरी रोजी की संभावनाएं क्या नज़र नहीं आती हैं ? :p
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसठियाने की उम्र से हम भी दूर नहीं हैं
लेकिन वर्मा जी आजकल आप कहाँ रहते हैं ?
Deleteबहुत बढ़िया :-)
ReplyDeleteवैसे govt.डॉक्टर्स की रिटायर्मेंट age हमारे यहाँ तो 65 है :-)
सादर
अनु
अनु जी , ६५ सिर्फ प्रोफेसर्स की ही होती है। हमारी तो ६० ही है।
Deleteये अंतर्संबंधों की कथा अंतर्मन से सरकारी नौकरी और घरु चाकरी को खुलकर बतलाती है आपका समुद्र मंथन सदैव धरावासियों को जीवन का संबल देती है प्रभु का प्रसाद आप बाँटते रहिये और माँ सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे ...
ReplyDeleteपांडे ज तो अभी भी लगे हुए हैं ... अप क्यों सत्तर की चिंता लार रहे हैं ...
ReplyDeleteमजा आया जी इस निर्मल हास्य में ...