हमारे देश में लोगों की धार्मिक आस्था उनके जीवन में बड़ा महत्त्व रखती है। इसी विश्वास के सहारे सभी उम्र के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए दुर्गम स्थानों पर बने मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों की ओर सदैव अग्रसर रहते हैं। हिन्दुओं में विशेषकर चार धाम यात्रा का विशेष महत्त्व माना गया है। उत्तराखंड राज्य में स्थित यमनोत्री , गंगोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ मिलकर चार धाम कहलाते हैं।
चारों धाम करीब ११००० फुट से ज्यादा की ऊँचाई पर बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बने हैं। ये स्थान देश की दो मुख्य नदियों के उद्गम स्थल हैं। जहाँ उत्तरकाशी में यमनोत्री से यमुना का उद्गम होता है , वहीँ गंगोत्री से भागीरथी , केदारनाथ से मन्दाकिनी और बद्रीनाथ से अलकनंदा निकलती हैं जो अंतत: देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती हैं।
हर वर्ष हजारों लोग इन स्थानों की यात्रा के लिए जाते हैं। हालाँकि अधिकांश प्रौढ़ और बुजुर्ग लोग यहाँ सिर्फ श्रद्धा भावना से प्रेरित होकर तीर्थ यात्रा करने आते हैं, लेकिन युवा वर्ग अक्सर घूमने और एडवेंचर करने के लिए भी जाते हैं। ऊंचे पर्वतों पर कठिन सड़क यात्रा कर यहाँ पहुँचने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जो कभी कभी जान लेवा भी हो जाता है। फिर भी भक्तों और सैलानियों के उत्साह में कोई कमी नहीं होती क्योंकि यहाँ आकर जो अलौकिक दृश्य देखने को मिलते हैं और जिस स्वर्गिक अहसास की अनुभूति होती है , वह शब्दों में बयाँ करना असंभव सा है।
अभी हाल में हुई प्राकृतिक त्रासदी को देखकर हमें अपनी १९९० की दो धाम यात्रा याद आ गई जब हम तीन मित्र पौड़ी गढ़वाल से होकर केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा कर सकुशल आये थे। दुर्गम रास्तों से होकर यह सड़क यात्रा वास्तव में बहुत रोमांचक लेकिन साहसपूर्ण होती है। सावधानी हटी नहीं कि दुर्घटना घटी। लेकिन कभी कभी पूर्ण सावधानी के बावजूद प्रकृति अपना प्रकोप दिखा देती है और मनुष्य असहाय हो जाता है। आइये देखते हैं , उन स्थानों को जहाँ आज हजारों यात्री या तो फंसे हुए हैं या दबे पड़े हैं :
चारों धाम करीब ११००० फुट से ज्यादा की ऊँचाई पर बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बने हैं। ये स्थान देश की दो मुख्य नदियों के उद्गम स्थल हैं। जहाँ उत्तरकाशी में यमनोत्री से यमुना का उद्गम होता है , वहीँ गंगोत्री से भागीरथी , केदारनाथ से मन्दाकिनी और बद्रीनाथ से अलकनंदा निकलती हैं जो अंतत: देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती हैं।
हर वर्ष हजारों लोग इन स्थानों की यात्रा के लिए जाते हैं। हालाँकि अधिकांश प्रौढ़ और बुजुर्ग लोग यहाँ सिर्फ श्रद्धा भावना से प्रेरित होकर तीर्थ यात्रा करने आते हैं, लेकिन युवा वर्ग अक्सर घूमने और एडवेंचर करने के लिए भी जाते हैं। ऊंचे पर्वतों पर कठिन सड़क यात्रा कर यहाँ पहुँचने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जो कभी कभी जान लेवा भी हो जाता है। फिर भी भक्तों और सैलानियों के उत्साह में कोई कमी नहीं होती क्योंकि यहाँ आकर जो अलौकिक दृश्य देखने को मिलते हैं और जिस स्वर्गिक अहसास की अनुभूति होती है , वह शब्दों में बयाँ करना असंभव सा है।
अभी हाल में हुई प्राकृतिक त्रासदी को देखकर हमें अपनी १९९० की दो धाम यात्रा याद आ गई जब हम तीन मित्र पौड़ी गढ़वाल से होकर केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा कर सकुशल आये थे। दुर्गम रास्तों से होकर यह सड़क यात्रा वास्तव में बहुत रोमांचक लेकिन साहसपूर्ण होती है। सावधानी हटी नहीं कि दुर्घटना घटी। लेकिन कभी कभी पूर्ण सावधानी के बावजूद प्रकृति अपना प्रकोप दिखा देती है और मनुष्य असहाय हो जाता है। आइये देखते हैं , उन स्थानों को जहाँ आज हजारों यात्री या तो फंसे हुए हैं या दबे पड़े हैं :
देव प्रयाग :
यात्रा आरम्भ होती है हृषिकेश में मुनि की रेती से जहाँ से आपको यात्रा के लिए बस , टैक्सी या वैन किराये पर मिल जाती है। यहाँ से एक सड़क नरेन्द्र नगर की ओर जाती है जो अंतत : चंबा नामक शहर को जाती है जहाँ टिहरी डैम बना है। दायीं ओर की सड़क गंगा के साथ साथ ऊपर की ओर जाती है। करीब ६० किलोमीटर की दूरी पर है देव प्रयाग जहाँ गंगोत्री से आने वाली भागीरथी ( चित्र में बायीं ओर ) और अलकनंदा मिलकर गंगा बनती हैं। दोनों नदियों के संगम पर खड़े होकर देखें तो पानी का रंग और बहाव बिल्कुल अलग नज़र आता है।
देव प्रयाग के बाद सड़क अलकनंदा के साथ साथ चलती है। अधिकांश रूट पर सड़क पहाड़ को काट कर बनाई गई है और नदी सैकड़ों फुट नीचे बहती हुई बड़ी खतरनाक लगती है। इस रूट पर शाम ७ बजे के बाद गाड़ियों का आना जाना मना है। रास्ते में श्रीनगर नाम का क़स्बा आता है जो एक घाटी में बसा है। लेकिन इसके बाद फिर सड़क बेहद खतरनाक रास्तों से होकर रूद्रप्रयाग पहुंचती है जहाँ केदारनाथ से आने वाली मन्दाकिनी और अलकनंदा का संगम है। यहाँ से मन्दाकिनी के साथ आप पहुँच जायेंगे गौरीकुंड जो केदार के लिए अंतिम मोटरेबल रोड है। यहाँ से १४ किलोमीटर की ट्रेकिंग कर आप पहुंचेगे केदार नाथ मंदिर।
रास्ता यूँ तो काफी चौड़ा था लेकिन पथरीला और ऊबड़ खाबड़ था। बहुत से लोग घोड़े और खच्चर किराये पर लेकर सफ़र करते हैं जो सुविधाजनक कम और कष्टदायक ज्यादा होता है लेकिन पैदल चलने से बचाता है।
रास्ते में उस समय एक ही दुकान मिली थी जहाँ चाय और कुछ खाने का सामान मिला था।
और यह है केदार नाथ मंदिर जो ६ फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है जिसकी वज़ह से मंदिर बाढ़ से बच पाया। मंदिर के दायें और बाएं अनेकों धर्मशालाएं बनी थी जो अपने अपने राज्यों या समर्थकों को बुलाकर रहने के लिए जगह देती थी । किराया कोई नहीं था लेकिन दान के लिए मनाही नहीं थी।
एक दिलचस्प बात यह थी कि चित्र में दायीं ओर एक १५ फुट ऊंचा बोर्ड लगा था जिस पर पूजा की विभिन्न किस्में और उनके रेट लिखे थे। सबसे नीचे साधारण पूजा मात्र ५ रूपये की , सबसे ऊपर महाराजा डीलक्स पूजा की थाली का रेट ५०००० रूपये था। बीच में ५ से लेकर ५०००० तक के बीसियों रेट। हमने ५ वाली थाली हाथ में पकड़ी थी।
यह है मंदिर की पिछवाड़े का द्रश्य जो मन्दाकिनी का उद्गम स्थल भी है। चित्र में आप देख सकते हैं कैसे छोटी छोटी धाराओं से मिलकर पूरी नदी बनती है।
देखने में यह पहाड़ ज्यादा ऊंचा नहीं लग रहा। हमें लगा था कि भाग कर चढ़ जाएँ और देखें कि क्या है उस पार। लेकिन इतना आसान नहीं था जितना लग रहा है। शायद इसी के पीछे है वह ताल जिसमे बाढ़ आई होगी, वो बाढ़ जिसने हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया होगा। मंदिर के पीछे का पहाड़ एक कटोरे नुमा सा है। यानि तीन ओर पहाड़ और सामने नीचे उतरती घाटी।
धर्मशाला में साधारण लेकिन आराम का सारा प्रबंध था। कडकडाती ठण्ड में गर्मागर्म चाय का मिलना एक स्वर्गिक अहसास था।
२ ० १ ३ :
चित्र नेट से
लेकिन अभी अचानक आई बाढ़ ने सब तहस नहस कर दिया। कितने ही मुस्कराते चेहरे सदा के लिए पहाड़ों के मलबे में दफ़न हो गए। पलक झपकते ही यह देवभूमि शमशान में परिवर्तित हो गई। मंदिर के पीछे यही वो जगह है जहाँ हम खड़े थे लेकिन अब वहां बड़े बड़े पत्थर पड़े हैं। हालाँकि इन पत्थरों ने मंदिर को क्षतिग्रस्त होने से बचा लिया लेकिन पानी का बहाव दोनों ओर मुड़ने से सारी धर्मशालाएं ध्वस्त हो गई। चित्र में दायीं ओर की किसी धर्मशाला में हम ठहरे थे।
यात्रा :
इस खूबसूरत लेकिन खतरनाक यात्रा में सब भगवान भरोसे ही चलता है। कब कोई पत्थर आ गिरे, यह कोई नहीं जानता। बरसात के दिनों में विशेषकर ऐसी घटनाएँ बहुत आम हैं। जहाँ पेड़ पौधे कम होते हैं , वहां बारिस के बाद मिट्टी और पत्थर की पकड़ कम हो जाती है। ऐसे में भूस्खलन होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। भूस्खलन से सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
लेकिन सबसे भयंकर है बादल का फटना , यानि बहुत ही कम समय में मूसलाधार बारिस से पहाड़ों में बाढ़ का आ जाना। ऐसे में बचने के लिए समय ही नहीं मिल पाता। साथ ही पानी का बहाव इतना तेज होता है कि वह अपने साथ हर चीज को बहा ले जाता है। ऐसे में यदि कोई आपको बचाता है तो वह है आपकी किस्मत। इसीलिए यहाँ सब बस भगवान भरोसे ही चलता है।
नोट : इस प्राकृतिक विपदा में अभी भी हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री व स्थानीय लोग फंसे पड़े हैं। हम सब से जो भी बन पड़े , हमें अवश्य करना चाहिए।
ऐसी विपदाओं से बचने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा आवश्यक है। अपने पर्वतीय भ्रमण के अनुभव के आधार पर हमारे सुझाव हैं :
ReplyDelete* पर्वतों पर वाहनों के प्रवेश पर नियंत्रण।
* दुर्गम स्थानों पर जाने वाले बाहरी लोगों पर भी नियंत्रण।
* दुर्गम धार्मिक स्थानों पर बच्चों पर प्रतिबन्ध और बड़ों के लिए एक निश्चित आयु सीमा तय होना चाहिए।
* अमरनाथ , कैलाश और हज़ यात्रा की तरह इन स्थलों के लिए भी मेडिकल प्रमाण पत्र अनिवार्य होना चाहिए।
* प्रत्येक दुर्गम स्थान जहाँ हजारों लोगों का आना अपेक्षित है , वहां लाइफ़ गार्ड्स होने चाहिए जो किसी उपयुक्त स्थान पर ऑल वेदर संसाधनों से लैस हों।
* पहाड़ों में मकान नदी से एक निश्चित दूरी पर ही होने चाहिए।
*पर्यावरण सम्बंधित निअमोन का सख्ती से पालन होना अनिवार्य है।
यह काम सरकार द्वारा ही किये जा सकते हैं। हम नागरिकों का काम है, नियमों का पालन करना।
उपयोगी लेख डा० साहब , प्रकृति दुनिया को वही लौटाती है जो दुनिया उसे देती है! आप प्रकृति का विनाश करो प्रकृति आपका विनाश कर के संतुलन बना देगी! विज्ञान का थर्ड लॉ ऑफ न्यूटन भी कहता है "A force is a push or a pull upon an object that results from its interaction with another object. Forces result from interactions. For every action, there is an equal and opposite reaction."
Deleteउपयोगी टिप्स ...काश प्रशासन और जनता इन पर अमल कर सकें !
Deleteजहाँ इतने लोग जाते हैं यात्रा करने, कोई और देश होता तो बिना प्रकृति से छेड़छाड़ किये इसे और सुरक्षित, सुन्दर और सुविधामयी बना देता।
ReplyDeleteबेशक बड़े दुःख की घड़ी है. ऐसे तो पहाड़ों पर प्राकृतिक आपदाएं आती ही रहती है, लेकिन यह कितनी बड़ी थी इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. अनेकों मकान जो इस विपदा में अदृश्य हो गए अनेकों गाडियां पानी के गर्त में समां गयी फिर आदमियों की क्या गिनती. सब कुछ हृदयविदारक है. जो जिससे बन पड़े वह सहायता अवश्य करनी चाहिए इस संकट में.
ReplyDeleteसरकारों को अब भी चेत जाना चाहिए और पहाड़ों पर अनावश्यक छेड़छाड़ से बचना चाहिए और नियम ऐसे बनाए जाने चाहिए जिसके कारण संतुलन बना रहे !!
ReplyDeleteडॉ साहब असली चार धाम जो आदि शंकराचार्य घोषित थे वे रामेश्वरम ,बद्रीनाथ, पुरी और द्वारका थे -यमनोत्री , गंगोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ छोटे चार धाम है !
ReplyDeleteमगर मैं तो कहता हूँ कि जब भगवान् कण कण में हैं तो काहें इन जगहों पर गर्दी मचती है ! इन यात्राओं को हतोत्साहित किया जाना चाहिए !
अरविन्द जी , दरअसल तीर्थ धाम पांच माने गए हैं -- केदारनाथ , बद्रीनाथ , जगन्नाथ पुरी, द्वारका और रामेश्वरम। लेकिन यात्रा के नाम पर उत्तरांचल में इन्ही चार को माना जाता है। इन्हें धार्मिक स्थल कहना विश्वास और श्रद्धा की बात है। वर्ना दर्शनीय स्थल तो निश्चित ही हैं।
Deleteवस्तुतः शंकराचार्य से पहले से भी यही चार. यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ...आदि धाम हैं क्योंकि ये पृथ्वी के आदि-स्थल हैं ....बाद में शंकराचार्य द्वारा आश्रम स्थापना से ये अन्य धाम चारधाम कहलाये जाने लगे ..वैसे सभी धाम सदा से ही विश्व प्रसिद्द तीर्थ-धाम हैं..
Deleteअगर इंसान प्रकृति से खिलवाड़ करेगा तो यही हाल होगा !
ReplyDeleteकभी यात्रा करने सिर्फ बुगुर्ज लोग जाया करते थे, आजकल बाया हैलिकौप्टर हनीमून मनाने केदारनाथ जाने लगे थे लोग! आखिर भोले के सब्र का बाँध तो टूटना ही था ! धार्मिक स्थलों को पिकनिक स्पॉट ब्ना दिया है!
पिकनिक स्पॉट के भी कायदे कानून होते हैं जिनका पालन करना ज़रूरी होता है। लेकिन हम तो यहाँ भी डांडी मार जाते हैं।
Deleteसच कहा है गोदियाल जी ..... धार्मिक श्रृद्धा की बजाय हम पिकनिक के भाव से इन स्थानों पर जा रहे हैं....सारी सुविधाएं भी चाहिए ...आखिर कहाँ तक प्रकृति छेड़-छाड़ सहेगी....
Delete---पिकनिक स्थल छोटे एवं मानव निर्मित होते हैं अतः आसानी से मनेजेबल होते हैं ...
सटीक लेखन |
ReplyDeleteऐसा लगता है प्रकृति पर संयमहीन मनुष्य का अत्याचार निरंतर बढ़ता देख शंकर ने रौद्र रूप धारण कर लिया !
ReplyDeleteडॉ साहेब, मैं अरविन्द मिश्र जी से बिलकुल सहमत हूँ .इससे आगे कहना चाहूँगा की पहाड़ों की दोहन बंद होना चाहिए और वहां का पर्यटन भी वन्द होना चाहिए
ReplyDeleteदोहन व पर्यटन बंद होना चाहिए ...तीर्थ यात्रा नहीं ....दोनों में अंतर है...
Deleteपर्यटन को बंद करने के बजाय इसे नियंत्रित कर रेवेन्यु का लाभ उठाया जा सकता है जिसे सुविधाएँ जुटाने और पर्यावरण की सुरक्षा हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है।
Deleteधार्मिक स्थलों पर, भीड़ की सुरक्षा के लिए, बद इन्तजामी की एक नमूना है यह घटना ... काश वहां बाढ़ और भूस्खलन से बचाव के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण हुआ होता !
ReplyDeleteपर्यटन के बढ़ावा देने के नाम पर खर्च किया गया अधिकांश पैसा लोगों की जेबों में गया है ! आज भी कुम्भ मेला एअव्म अन्य आस्था केंद्र , पूरी तरह असुरक्षित हैं ! जब भी कोई दुर्घटना होती है सारे नेताओं को भ्रमण हेतु मौका मिल जता है और ,राजनेताओं के चिंतित टी वी स्टेटमेंट और जांच कमेटियां हमारे आगे परोसी जाती हैं ! बाकी काम हमारी शीघ्र भूल जाने की आदत कर देती है !
फिलहाल आप टीवी चैनलों की, लाशों पर खड़े होकर, आंसुओं को धन में, भुनाने की विद्या का मज़ा लीजिये..
सतीश जी , टी वी चैनल्स तो मंदिर के बचने को भी चमत्कार बताकर सनसनी फैला रहे हैं। जबकि हकीकत तो यह है कि मंदिर का निर्माण बहुत बढ़िया ढंग से किया गया है जिसमे पत्थर की मज़बूत बड़ी सिल्लियों को लोहे से जोड़ा गया है। इसलिए बड़े बड़े पत्थर भी उसे तोड़ नहीं सके। दूसरी ओर साधारण मकान और धर्मशालाएं पानी में बह गए जो स्वाभाविक था।
Deleteअच्छी लगी पोस्ट।
Deleteयहाँ तो कभी नहीं जा पाया लेकिन एक बार जब मनाली से रोहतांग दर्रा गया था तो वहाँ बर्फिले पहाड़ों में गाड़ियों के धुएँ से जमी काली छाया देखकर मौत की कल्पना की थी। प्रकृति से छेड़छाड़ घातक है।
इन्फ्रा स्ट्रक्चर का निर्माण ही तो विनाश का कारण है ..... कुछ भी निर्माण नहीं होना चाहिए....
Deleteऔर जो सामान्य से सामान्य जनता ...नेताओं..अफसरों के पिछलग्गू, नाते-रिश्तेदार भ्रमण हेतु अपने पैर पसारते हैं सो क्या....सब दोषी हैं ..परन्तु ...बात वही है कि तू दोषी है ...
Deleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था,नदियों को बांधते, मानव
केदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !
उसने जो दिया है उसका खौफ न कर ,
Deleteदुआ कर तो ये उम्र वेखौफ़ गुजर जायेगी |
अपनी करनी की ही समझ भरनी इसको,
होगा नहीं खौफ यदि करनी सुधर जायेगी |
उतरांचल में , बनो पर्वतो की स्वायत्ता से खिलवाड़ ,पावर प्रोजेक्टों में बारूदी विस्फोट कर सड़कों का निर्माड, पर्यटन को स्टार होटल ..प्रकर्ति कब तक शांत बैठेगी ... सटीक लेखन डाक्टर साहब
ReplyDeleteजो हुआ वो मानवता के लिये बहुत बुरा हुआ. ये सभी जगह बहुत ही मनोरम और शांतिदायिनी थी. जहां आवागमन के साधन पैदल या खच्चर हुआ करते थे, उनकी जगह आज कारब्न उगलती गाडियां हैं
ReplyDeleteआज विकास के नाम पर वहां बेतरतीब सडके, बांध और पत्थरों के लिये पहाडों का खनन जारी है. जंगल सतत कम हो रहे हैं. प्रयावरण संतुलन हम खुद बिगाड रहे हैं तो यह विनाशलीला भी भुगतनी ही पडेगी.
जो शिकार होगये वो और उनके परिजन नही जानते हैं कि इस विनाश लीला के लिये कुछ स्वार्थी नेता और और उनके व्यवसायी चमचे जिम्मेदार हैं जिन्होने अपने कारोबारी स्वार्थ के लिये पर्यावरण की ऐसी तैसी करके यह स्थिति पैदा कर दी है.
रामराम.
सही कहा, कहीं तो रोक लगानी पड़ेगी।
Deleteदुर्गम यात्रा महादुर्गम ही बनी रहती तो मृत्यु इतनी सुगमता से इतने लोगों तक न पहुँचती.
Deleteविनाश लीला के लिये कुछ स्वार्थी नेता और और उनके व्यवसायी चमचे जिम्मेदार हैं...
Delete---.नहीं ताऊजी ...
चुपचाप सहने वाले भी तो ज़िम्मेदार हैं,
चुपचाप रहने वाले भी तो जिम्मेदार हैं|
सुख-भोग भोग रहे हैं आप भी तो श्याम,
वे सब भी आप ही हैं जिनपे थोप रहे हैं |
अब ताऊ लोगों के हवाई दौरे शुरू होंगे जो 15 हजार फ़ीट ऊपर से उडकर आजायेंगे क्या उनको वास्तविक कष्ट की अनुभुति हो सकेगी?
ReplyDeleteरामराम.
ताऊ टीवी फ़ोडके चैनलों के संवाददाता वहां पहुंचकर लाईव टेलिकास्ट करके माल कूटने की कोशीश करेंगे, उनके लिये तो यह क्रिकेट का सीजन हो गया. ये हम कहां और किस तरफ़ जा रहे हैं?
ReplyDeleteरामराम.
टी वी वाले भी बहादुर हो गए हैं --- पैसे कमाने के लिए !
Deleteक्या बात है....सच्ची ..
Deleteअपने बहुत ही उपयोगी सुझाव दिए ...और पहले क यात्रा और आज में भी अन्तर कर दिया ...केदारनाथ की यात्रा करने की लिए प्रचीन समय में तीर्थयात्री अपने घरो से श्राध करके निकलते थे ..
ReplyDeleteसरहनीय सुझाव .... सरकार को सच ही कुछ नियम बनाने चाहिए ....
ReplyDeleteस्वागत योग्य हैं आपके सुझाव ... और सरकार जानती भी है ... लोग भी जानते हैं ... पर फिर भी पता नहीं क्यों हम सब बहुत केजुअल हो गए हैं ... अगर इतने सुन्दर स्थान और प्राकृति की इतनी देन दूसरे देशों के पास होती तो सच में वो इसे प्राकृति के अनुकूल ही डेवलप कर देते ... ये एक चेतावनी है जागने की सेध वासियों को ...
ReplyDeleteकोइ नयी बात नहीं ....सदियों से सभी जानते हैं पर मानते नहीं हैं ...तभी तो हम इंसान हैं...
Deleteइस तरह की जगहों पर आने-जाने के लिए सरकारें आमतौर से कुछ नहीं करतीं जिसके दो कारण हैं. सरकार संसाथनों का रोना रो कर पल्ला झाड़ लेती हैं दूसरे, स्थानीय कारण, जो नितांत आर्थिक और राजनैतिक होते हैं.
ReplyDeleteराजनेता, इलाक़े के लोगों को नाराज़ न करने की गर्ज़ से कुछ नहीं होने देते. जिन लोगों का काम धंधा चल रहा होता है, वे आंदोलन और अर्जियां लेकर तो पहुंचते ही हैं, नोटों की थैलियां भी थमा देते हैं और वोट देने की गारंटी भी देते हैं अलग से. बदले में जान हज़ारों लोगों को देनी पड़ती है. दिल्ली का ही मामला लीजिए, द्वारका और राव तुला राम मार्ग के फ्लाइओवर , लोकल लोगों ने राजनैतिक हस्तक्षेप करवा कर चौड़े नहीं बनने दिए, नतीज़ा, आज भी यहां जाम लगा ही रहता है. यही स्थिति पूरे देश में है. हमें जगमोहन जैसे कर्तव्यनिष्ठ राजनीतिज्ञों की आवश्यकता है जो धुन के पक्के हों और वह कर गुजरें जिसकी ज़रूरत हो...
बहुत सही फ़रमाया।
Deleteश्याम गुप्ता जी , इस गंभीर विषय पर आपके विचारों से हम भी सहमत हैं।
ReplyDeleteअभी बहुत कुछ सोचना और समझना ज़रूरी है। सरकार और जनता दोनों का योगदान ज़रूरी है।
आभार आपका।
इस मामले में किसी के सर सारा दोष मढ़ना शायद गलत होगा। इस आपदा के लिए कहीं न कहीं हम खुद भी जिम्मेदार हैं। तो कहीं सरकार की बदइंतेजामी भी, तो अब भगवान को भी गुस्सा आ ही जाएगा ना...कोई कब तक सहे और चुप बैठे। बोले नाथ को भोला समझकर बहुत फायदा उठाने लगे थे लोग, नतीजा सबके सामने है। :-)बढ़िया जानकारी पूर्ण एवं विचारणीय आलेख...
ReplyDeleteप्राचीन स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना जो आपदा रोधी है और किस्मत का भी खेल बहुत सुन्दर जानकारी भरी लेख के लिए भोले नाथ सहित आपको प्रणाम
ReplyDeleteये तो भाई साहब झांकी है ,विनाश अभी बाकी है .ये विकारी दुनिया अब गई के तब गई विनाश कई तरह से होगा नव निर्माण भी हो रहा है .कुछ लोग सही रास्ते पर हैं विज्ञान भी शीर्ष पर है .यह एक चक्र है पहले सम्पूर्ण पवित्रता फिर अपवित्रता ,फिर चक्र का पुनरावर्तन .ॐ शान्ति .ये यात्रा शरीर की थी मन की नहीं थी .कर्म काण्ड से हासिल कुछ नहीं होना है असल यात्रा मन की होती है .अशरीरी बनके .ज्योति (आत्मा )का परम ज्योति से पलक झपकते ही संवाद बोले तो राज योग ध्यान ,मेडिटेशन .जहां मन एक स्विच हो लेकिन पहले विकारों से मुक्त होने की और पहला कदम तो रखें .ॐ शान्ति .
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