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Wednesday, June 12, 2013

धर्मशाला में मिनी तिब्बत -- मैक्लौड़ गंज -- १८ साल बाद।


धर्मशाला में पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण मैक्लौड गंज में हैं जहाँ तिब्बत की निष्कासित सरकार का मुख्यालय है और दलाई लामा का निवास स्थान भी। यह स्थान मुख्यतय: तिब्बतियों द्वारा ही आवासित है। यहाँ सैलानी भी ९० % विदेशी ही नज़र आते हैं। लेकिन आस पास के क्षेत्रों की प्राकृतिक सुन्दरता बहुत मनमोहक है। यहाँ घूमने के लिए आपको टैक्सी करनी पड़ेगी जो आपको सभी स्थानों पर घुमा देगी।

भाग्सू नाथ मंदिर : 

चौक से करीब डेढ़ किलोमीटर पर यह बहुत भीड़ भाड़ वाला स्थल है जहाँ पहली बार हम पैदल गए थे लेकिन इस बार गाड़ियों का जमावड़ा देखा। सैलानी भी मंदिर में कम और बाहर का आनंद ज्यादा लेते नज़र आ रहे थे।      



पहाड़ों में खुला स्विमिंग पूल देखकर बड़ा अचम्भा सा लग रहा था।




लेकिन यहाँ का मुख्य आकर्षण था एक झरना जो करीब एक किलोमीटर दूर था। , हालाँकि झरने में पानी बहुत कम था लेकिन ट्रेकिंग का अपना ही मज़ा होता है ।



इसे देख कर मसूरी के कैम्पटी फाल की याद आ रही थी।




पिछली बार यहाँ तक नहीं जा पाए थे , इसलिए हमने भी खूब मस्ती की।




रास्ते में इस विश्रामालय का हमने भी भरपूर उपयोग किया।




पर्वतों की वादियों में इस सफ़ेद मूंछों वाले सारंगी वादक ने भी समां बांध रखा था।

डल लेक :

भाग्सू मंदिर के बाद नंबर आता है डल लेक का। यह शहर से करीब १० किलोमीटर बाहर ऊंचाई पर है। लेकिन यह झील जितनी डल १८ साल पहले थी , अभी भी उतनी ही डल लगी। शायद यह प्रशासन की कमजोरी ही थी जो इतने खूबसूरत स्थल पर कोई सुधार नज़र नहीं आ रहा था। ज़ाहिर था कि हम अपनी प्राकृतिक सम्पदा का कोई लाभ नहीं उठा पा रहे। यदि यहाँ पानी के बहाव को नियंत्रित कर झील में डाला जाये तो शायद यह झील भी साथ के देवदार के पेड़ों जैसी खूबसूरत दिखे।                




नाडी पॉइंट :

डल लेक से थोडा आगे एक स्पॉट था जहाँ से चारों ओर की घाटियाँ बेहद खूबसूरत नज़र आती थी। पिछली बार जब यहाँ आए तब यहाँ दो चार मकान ही बने थे। ऐसा लगा था जैसे पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो। लेकिन अब वहां पूरा शहर बस गया था। एक तरह से कंक्रीट जंगल सा लग रहा था। हमारी यादों में एक स्थान बसा था     जहाँ बारिस से बचने के लिए हमारे साथ एक बकरी भी बैठ गई थी। तब वहां बस यही एक ईंटों का बना आशियाना सा था जहाँ से प्राकृतिक द्रश्यों का आनंद लिया जा सकता था।

यादों में डूबे हुए हम उस स्थान को ढूंढते रहे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कुम्भ के मेले में किसी खोये हुए बच्चे को ढूंढ रहे हों। परन्तु हम पर भी धुन सवार थी। आखिर हमने उस स्पॉट को ढूंढ ही लिया। और याद भी आ गया कि वह वर्षाश्रालय ही था। लेकिन आज १८ साल बाद भी वैसा का वैसा।          


बस फर्क था तो यह कि अब उसके आस पास कई दुकाने खुल गई थी। लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं था। ठीक वैसे लगा जैसे किसी गाँव के झुम्मन चाचा के ज़र्ज़र चेहरे को वर्षों बाद देखकर लगता है । लेकिन इस जगह आकर बहुत सुकून मिला।




हालाँकि, दूर पहाड़ों की हरियाली और खूबसूरती अभी भी देखने लायक थी।

मैक्लौड़ गंज : 

अंत में इस छोटे से कसबे से होकर वापस आने का एक तरफ़ा रास्ता है। यहाँ बाज़ार में लगभग सारी दुकाने  तिब्बतियों की हैं। यह देख कर हैरानी हो रही थी कि १८ साल पहले भी इन दुकानों पर १८ वर्षीया तिब्बती बालाएं बैठी होती थी और आज भी वहां वही १८ वर्ष की कन्यायें ही दिख रही थी। लगा जैसे वक्त ठहर सा गया हो।  
   



बाज़ार में तिब्बती म्यूजियम / गोम्पा।

तिब्बती मंदिर : 

पिछली बार हम इसके अन्दर नहीं गए थे। लेकिन इस बार मंदिर के दर्शन कर आए। यहाँ दलाई लामा का प्रवचन चल रहा था लेकिन हमारे जाने तक ख़त्म हो चुका था। इसलिए बस देखकर ही संतोष करना पड़ा।




कहते हैं , इन चरखियों को एक बार घुमाने से एक लाख मन्त्रों का फल मिलता है। इसलिए सभी बौद्ध भिक्षु  इन्हें घुमाते हुए नज़र आते हैं। कुछ भी हो , लेकिन एक ही तरह की पोशाक पहने  युवा भिक्षुओं को देखकर थोडा अज़ीब सा लगता है। धर्म हमें जीने का सही रास्ता दिखाता है, लेकिन धर्म ही जीवन है, ऐसा तो नहीं।

नोट:  अगली पोस्ट में ट्रेकिंग का मज़ा आएगा।       




30 comments:

  1. वाह... लग रहा है आपने भी खूब मस्ती की...

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  2. वाह.
    लेकि‍न आपने सही लि‍खा है कि यहां की सरकारें पर्यटन पर ध्‍यान नहीं देतीं. इन्‍हें हरि‍याणा से सीख लेनी चाहि‍ए जहां की सरकारों ने जोहड़ तक को कितनी सलीके से विकसि‍त कर पि‍कनि‍क स्‍पॉट बना दि‍या है पर हि‍माचल में घर की मुर्गी दाल बराबर है. धर्मशाला हमारे घर से 2 घंटे की दूरी पर है.

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    1. काजल जी , जब पिछली बार यहाँ आए थे तब धौलाधार पर्वत चोटियाँ बर्फ से ढकी हुई रस्ते में दूर से नज़र आती थी। धर्मशाला में ऐसा लगता था जैसे आगे बढ़कर हाथ से छू लें। लेकिन अब बस सफ़ेद सा पहाड़ रह गया है , बर्फ का नामो निशान नहीं था। यह है ग्लोबल वार्मिंग का असर या कहिये विकास की कीमत।

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  3. पूल, पहाड़, झरने मंदिर ... और आपके मस्त पोज़ ...
    कैमरे के साथ साथ बाखूबी शब्दों में भी उतार रहे हैं ये यादगार पल आप तो ... हाँ पूल देख के हमें भी अचम्भा हो रहा है ...

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    1. सचमुच मस्त समां होता है पहाड़ों में ।

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  4. आपने तो घर बैठे इतने सुंदर चित्रों के साथ धर्मशाला घुमा दी कि लगता है जैसे स्वयं ही वहां पहूंचे हों. बहुत आभार इतने खूबसूरत यात्रा वृतांत के लिये.

    रामराम.

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  5. यह देख कर हैरानी हो रही थी कि १८ साल पहले भी इन दुकानों पर १८ वर्षीया तिब्बती बालाएं बैठी होती थी और आज भी वहां वही १८ वर्ष की कन्यायें ही दिख रही थी।

    यह सब "ताऊ चिंताहरण वटी" के सेवन की बदौलत संभव हो सकता है, अब तो आपको व सतीश जी को यकीन आगया होगा?:)

    रामराम.

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    1. यह वटी कहीं वहां के पानी में तो नहीं मिली हुई ताऊ ! :)

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    2. पानी में तो नही घुली हुई है पर इस वटी का मूल तत्व वहां के एक पौधे में पाया जाता है, जिसका सेवन वहां के वाशिंदे अनायास ही करते रहते हैं.

      हम भी "ताऊ चिंताहरण वटी" बनाने के लिये इस पौधे का अर्क वहीं से मंगवाते हैं. बिजनेस सीक्रेट की वजह से आपको नाम नही बता सकते.:)

      रामराम.

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    3. नाम तो हमें पता है। आखिर आपकी फर्म के एम् आर वहां बहुत मिलते हैं , वटी बेचते हुए। :)

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  6. कितना कुछ है भारत में ...पर सच है वहां की सरकार बहुत लापरवाही बरतती हैं.

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  7. अरे यह क्या डॉ साहब के हाथ में cock की बोतल.....अच्छी नहीं लग रही है। ;-)काश हमारे यहाँ भी इन सुंदर प्रकृतिक स्थलों की उतनी ही देख भाल की जाती जितनी विदेशों में की जाती है, तो यह नज़ारे और भी कई गुना खूबसूरत हो सकते थे। खासकर डल लेक। बढ़िया प्रस्तुति ...

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  8. डाईट कोक भी तो हो सकती है जी। वैसे पहाड़ों में ऊर्जा और पानी की ज़रुरत होती है। :)

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  9. mazaa aa gayaa khoobsurat nazaare dekhkar.
    waise sarkaar or jantaa dono hi laaparwaah hain.
    thanks.
    CHANDER KUMAR SONI
    WWW.CHANDERKSONI.COM

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  10. धर्मशाला की सुंदर सैर ....

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  11. SUNDAR CHITRON SE SAZI SUNDAR YATRA VRITANT .आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  12. अरे वाह सुंदर चित्रों से सजा यात्रा वृत्तांत. हम लोगों को भी धर्मशाला गए लगभग २० साल हो गए. उस समय सम्पूर्ण हिमाचल भ्रमण किया गया था वह भी गुजरात से. अब दिल्ली में हैं तो शिमला मनाली से आगे कहीं जा ही नहीं पाते. शुक्रिया सारी यादें ताज़ा हो गयीं.

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  13. यादें ताजा हो गयीं, सारी की सारी..

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  14. तन स्वस्थ और मन खुश ...

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  15. आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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  16. डॉ दराल साहब गजब की घुमक्कड़ी भाग्सू नाथ मंदिर , खुला स्विमिंग पुल, प्राकृतिक झरना, पत्थरों से चुनी बैठका , और सारंगी का सुर लिए डल लेक, संग में नाडी पाइंट, तिब्बती म्यूजियम,/ गोम्पा, तिब्बती मंदिर के साथ चरखियां मन को मोह जाती है

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  17. निष्कासित सरकार का मुख्यालय का पर्यवेक्षण आपकी नज़रों से अच्छा लगा ! हर व्यक्ति को जीवन अपने ढंग से जीने का पूरा अधिकार है /होना चाहिए

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  18. खूब सुन्दर वर्णन और चित्र हैं ........

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  19. दो महीने पहले ही यहां जाना हुआ था.
    बहुत कुछ यादें ताजा हो गईं..

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  20. Bahut hi sundar prastuti hai, lagta ha ki jaldi hi jana padega.

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  21. डॉक्टर साहब.
    यहां भी नाक, कान, गला अस्पताल की वॉल पेंटिंग के आगे कुर्सी डाल ली...

    जय हिंद...

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    1. इस स्थान को ढूँढने के लिए बहुत प्रयास किया था। इसलिए आराम तो बनता है ।

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  22. आपके साथ हमने भी सैर कर ली ...इस पोस्ट को पढ़कर मौसम फिल्म के संजीव कुमार की याद आ गयी जो पुराने दिनों को याद करता है.

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