अभी ब्लॉग पर अरविन्द मिश्र जी का लेख पढ़कर फिर वही मुद्दा मन में मचलने लगा कि क्यों ब्लॉगर्स ब्लॉगिंग छोड़कर फेसबुक आदि की ओर जा रहे हैं। लेकिन यह चर्चा यहीं जारी रहे। हमें तो कुछ दिन से फेसबुक पर सक्रियता से जो देखने को मिला , वह प्रस्तुत है इस हास्य व्यंग रचना के माध्यम से जिसमे हास्य कम, व्यंग ज्यादा नज़र आएगा लेकिन हालात पर खरा उतरेगा।
१)
वो
सुबह सवेरे , मूंह अँधेरे
उठती है ,
चाय नाश्ता बनाकर
बच्चों को नहला धुलाकर,
टिफिन लगाती है,
बच्चों के साथ
बच्चों के पिता का।
फिर बिठा आती है, बच्चों को
स्कूल बस में ,
अच्छे नागरिक बनाने की चाह में।
फिर करती है
पति को बाय बाय
और बैठ जाती है खुद
सजने संवरने, नहा धोकर।
आखिर उसे भी तो काम पर लगना है।
९ से ५ तक का
क्या हुआ ग़र काम घर पर है ,
यही तो है कॉर्पोरेट कल्चर !
पढ़ती है, लिखती है, टिपियाती है
आँख बंद कर सैकड़ों
चटके लगाती है,
आखिर यह फेसबुकियाना भी
बड़ा चाटू काम है।
दिन भर के काम के बाद
चलो अब आराम किया जाये !
द्वार पर घंटी बजी है ,
अरे पति देव के आने का समय हो गया !
हे राम , अगले जन्म में पत्नि न बनाना
काम ही काम , एक मिनट का नहीं आराम !
२)
वो
सूट बूट पहन कर
फ्रेंच परफ्यूम लगाकर
बालों में करके तीन बार कंघी ,
बैठ जाता है सरकारी कुर्सी पर।
फ़ाइल से पहले खोलता है प्रोफाइल
फेसबुक पर ,
आखिर , स्टेटस अपडेट को
एक घंटा जो बीत गया है।
जाने कितने अपडेट, न्यूज, व्यूज
मिस हो गए होंगे।
ये मुआ दफ्तर भी इतना दूर क्यों है !
आजकल काम भी बहुत बढ़ गया है।
पी एम किसे बनाना है
कैसे चलेगा देश, दिन रात
सताती है यह चिंता।
अभी तो एक घंटा भी हुआ नहीं
कि बड़े साहब का आ गया बुलावा,
लगता है इन्हें देश की कोई चिंता नहीं।
अभी तो बीस लाइक और
चिपकाई हैं चालीस स्माइली,
कमेन्ट न दिए तो आयेंगे कहाँ से।
आखिर, एक हाथ ले, एक हाथ दे, का सिद्धांत
यहाँ से बेहतर कहाँ लागु होता है।
लेकिन यह सिद्धांत साहब को
जाने क्यों समझ नहीं आता है।
देश भक्तों की राहों में
हमेशा आई है रुकावटें ,
चलो फिर लग जाएँ फेसबुक पर
इस छोटे से मीटिंग ब्रेक के बाद।
सरकारी दफ्तर में, काम का आउट पुट
कहाँ निकल पाता है।
सुबह से लगा पायें हैं बस
बारह अपडेट्स।
उफ़ ये मीटिंग्स, लगता है
देश का विकास नहीं होने देंगी।
अब तो उठने में ही भलाई है ,
सरकार भी कहाँ देती है ओवर टाइम !
पत्नि जाने क्यों द्वार खोलने में
लगा रही है देर,
नादान ये भी नहीं जानती कि
पतिदेव थके हारे घर लौटे हैं।
चलो दफ्तर न सही, घर में ही
निपटाते हैं, काम !
आखिर , कॉपोरेट कल्चर अब
सरकारी काम में भी आ गया है।
नोट : यह पोस्ट किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं है। कृपया व्यक्तिगत रूप में न लिया जाये।
ये भाई ..ई ..ई
ReplyDeleteमेरे ३ लाइक आप पर उधार हैं ...
और एक ..एक ..दो..दो..
ReplyDeleteइसके साथ हुए तीन
पूरे तीन कमेन्ट भी !
सारा हिसाब आज ही करना है ! :)
Deleteआज नकद कल उधार.:)
Deleteरामराम.
जय हो :)
ReplyDeleteफ़ेसबुक की कविता ब्लॉग पर! क्या बात है!
ReplyDeleteisai kahte hain matbal ki baat nikal lena........
Deletepranam.
:)
Delete:-)
ReplyDeleteहम तो पक्के फेस्बुकिये है डॉ साहेब ....अब आपकी पोस्ट पर हम इसी के द्वारा आये है ....हा हा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteजी , सो तो है ! :)
Deleterochak
ReplyDeleteयह भी खूब रही ,अपडेट और कमेंट में ही दिन बीत जाता है
ReplyDeletelatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
पढ़ती है, लिखती है, टिपियाती है
ReplyDeleteआँख बंद कर सैकड़ों
चटके लगाती है,
आखिर यह फेसबुकियाना भी
बड़ा चाटू काम है।
हा हा हा.....!
अरे पति देव के आने का समय हो गया
ReplyDeleteहे राम , अगले जन्म में पत्नि न बनाना ,
सूट बूट पहन कर
फ्रेंच परफ्यूम लगाकर
बालों में करके तीन बार कंघी ,
बैठ जाता है सरकारी कुर्सी पर।
फ़ाइल से पहले खोलता है प्रोफाइल
फेसबुक पर ,
बिलकुल सही है कहीं कोई कमी नहीं है … आनंद आ गया . आभार
सत्यम शिवम सुन्दरम
ReplyDeleteआपकी पहली कविता पढकर सारे मोहल्ले की ताईयां आपको लठ्ठ लेकर ढूंढने निकल पडी हैं, सावधान हमको दोष मत दीजियेगा.:)
ReplyDeleteरामराम.
और दूसरी रचना को पढ़कर सारे ताऊ ! :)यानि अब खैर नहीं।
Deleteहा हा हा.....कुछ रिश्वत पानी का इंतजाम करायें तो आपके छिपने का ठीकाना गुप्त रखा जा सकता है.:)
Deleteरामराम.
आजकल सारी दुनिया पानी से परेशान है और एक आप है कि पानी की गुहार लगा रहे हैं ! :)
Deleteये सादा पानी नही, वो नोट वाला पानी है.:)
Deleteरामराम.
इस में हम भी शामिल है वरना पता बता देंगे डाक्टर साहब का
Deleteडिस्क्लेमर से कोई फ़र्क नही पडता, दुसरी रचना आपने ताऊ को टार्गेट करके लिखी है.:)
ReplyDeleteरामराम.
अब देखते हैं और कितने स्वीकारते हैं ! :)
Deleteस्वीकारने नही स्वीकारने से हकीकत तो बदलने वाली नही है.
Deleteआपने बिल्कुल पास की चीज को दूर की कौडी के रूप में पेश किया है.:)
रामराम.
हमाम में और जन्म के समय सभी एक जैसे ही होते हैं। :)
Deleteकविता आपकी जोरदार, मजेदार है :)..परन्तु ...आजकल बड़े बड़े अख़बारों के लेख फेस बुक पर बड़े बड़े लोगों के स्टेटस पर बहस का विषय बनते हैं और इन स्टेटस पर आये कमेंट्स बड़े अखवारों में लेख के तौर पर छपते हैं. फेसबुक इतना भी हल्का नहीं रहा डॉ साब :):)
ReplyDeleteजी सही कहा। अख़बारों के चर्चे भी पढने में आ रहे हैं। :)
Deleteडॉ साहब का knife आपरेशन करके रोगी ठीक करता है और डाकू का knife स्वस्थ का जीवन समाप्त करता है। इसमें दोष knife का है या उसके प्रयोग करने वाले का? ब्लाग/फेसबुक विवाद व्यर्थ है। Blogg & Face-book are complimentary & supplementary to each-other.शिखा वार्श्नेय जी का ध्यानकर्षण सरहनीय है।
Deleteडॉ साहब के कवि साथी ने लिखा है-
Deleteजयेन्द्र पाण्डेय लल्ला:
"नेट पैक ख़त्म हो गया
मेरा तो ...चैन खोगया..
रिचार्ज हो तैयार मिला है
फिर से संसार मिला है..
फेसबुक ने एक बड़ा काम किया है
व्यक्तित्व को नया आयाम दिया है...
सोचने के तरीके को फर्क किया है
मित्रों का.. अद्भुत संपर्क... दिया है..."
बेशक !
Deleteलेकिन माथुर जी , यहाँ फेसबुक और ब्लॉगिंग में तुलना नहीं की गई है। सिर्फ यही कहा है कि कुछ लोग सारे दिन बस यही काम करते रहते हैं , अपना काम छोड़कर। ऐसी लत सही नहीं।
aapne to bhai arvind ji kidukhati rag par haath rakhate rakhate pata nahi kaha kaha tak haath rakh diya. ab ise padh kar ve aur avasaadgrast ho jaayege na
ReplyDeleteअरविन्द जी तो बेलेंस बनाये हुए हैं। बात उनकी है जिनका बेलेंस बिगड़ गया।
Deleteसारा सच बता दिया :)
ReplyDeleteएक ही झटके में हाले-दिल बयाँ कर दिया
ReplyDeleteशुक्रिया करें फेसबुक का ,काम आसाँ कर दिया .....:-))
बहुत बढ़िया,मजेदार प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent post: एक हमसफर चाहिए.
behtreen post.
ReplyDeletereallity yahi hai fb. ki
mnoranjk !
फसबूकिया हो ब्लोगरी लेकिन कवितायेँ मजेदार हैं.
ReplyDeletebadhiya hai .aabhar
ReplyDeleteरोचक :):)
ReplyDeleteहम भी विचार कर रहे थे लोग केदारनाथ यात्रा पर तो नहीं न गए हैं पर क्या मालुम था कि मामला फेसबुक का हैं आभार
ReplyDeleteहे भगवान इतनी लंबी कविता ... ज़रा सांस ले लूं...
ReplyDeleteसुबह -सुबह इतना काम करने के बाद थोडा पढने / लिखने /टिपियाने का काम कर ले, दोस्तों के हाल चाल पूछ लें , मन में उठ रहे सवालों और जवाबों को साझा कर ले तो वह भी बर्दाश्त नहीं हुआ आपको . अगर इससे आपको संतुष्टि प्रदान हुई तो रोचक कविता है !! (कविता के प्रथम भाग पर )
ReplyDeleteथोडा पढने / लिखने /टिपियाने का काम कर ले --पूरा हक़ है जी। :)
DeleteDr. Saheb, facebook bhi to Micro-Blogging hi hai. Bat Blog aur facebook ki nahin hai, bat abhivyakti ki hai ki log kya likhte hain. Achha lekhan jahan bhi hoga, padha jayega...Par apki kavitayen badi lajvab hain..Badhai !!
ReplyDeleteसही कहा यादव जी -- बात फेसबुक या ब्लॉगिंग की नहीं है , बल्कि सिर्फ फेसबुक पर सारे दिन बैठे रहने की है । इस लत के शिकार कई ब्लॉगर्स हो गए हैं।
Deleteकविता पढ़कर कहीं न कहीं सच्चाई भी सब को महसूस हो रही होगी। :)
हम तो बच गए है.....न तो फोन पर फेसबुक चालू कर रखा है न ही जब ब्लागिंग करते हैं तब चालू रखते हैं...हम तो अब भी ब्लॉगिंक की पोस्ट से निकले छोटे छोटे विचार फेसबुक की दीवार पर टांग आते हैं....
ReplyDeleteफेसबुक का अपना ही नशा है ... अभी तक तो अपने आप को बचा रक्खा है आगे पता नहीं ...
ReplyDeleteआपकी लाजवाब हास्य रचना गुदगुदा गई डाक्टर साहब ... वैसे ये घर घर की कहानी बन गई है आज ...
रोहित जी , नास्वा जी , बचे ही रहें तो अच्छा है। टाइम खोटी करने में भला क्या रखा है !
Deleteफेस बुक नशेडी बनते जा रहे है लोग और लोगों में भी हूँ, फेश्बुकियो के मन की बात लिखी है...कोई ५० को लाइक करो तो रेटून में १० आते है वैसे घाटे का सौदा ही है..
ReplyDeleteआप कहीं भी लिखिये यदि आप सर्वकालिक लिखेंगे तब ही आप को बार बार पढ़ा जायेगा चाहे वो फेसबुक हो या ट्वीटर या हो ब्लॉग या फिर छाप डालें पुस्तक और ध्यान रहे गुलरी जी शायद ज्यादा नहीं लिख पाए किन्तु किसी से कहें तेरी कुड़माई हो गई तो सीधा जवाब आएगा देखता ...........गुलेरी जी ... बाकि तो सब समझदार हैं @@@@@@@@
ReplyDeleteडॉ साहब टिपण्णी अरविन्द जी के लेख सहित आपको समर्पित आपने सदैव विचारोत्तेजक विचार दिए हैं प्रणाम
मुख चिठ्ठे को बक्षी है आपने अतिरिक्त रौनक .मुख पत्रा बांचने वालों की बराबरी चिठ्ठा और चिठ्ठाकार क्या खाके करेगा ,मुख पत्रा आगे आगे बढेगा ...ॐ शान्ति बढ़िया बिम्ब प्रतिबिम्ब मुख पत्रे बोले तो फेस बुक और फेस्बुकियों को वैसे ये शब्द बुकि अब किर्केटीय हो गया है .
ReplyDeleteजोरदार मजेदार कविता
ReplyDeleteजय हो, दमदार..
ReplyDeleteअब मोहल्ले में चुगलियां नही होती .फेस बुक पर होती हैं सारी गॉसिप , आज माँ को पता हो न हो .फेसबुक पर सबको पता होता हैं के आज फलां फलां जगह गये . अब घरेलू महिलाओ के लिय तो सबसे अच्चा टाइम पास हैं फेस बुक ........ क्युकी न अब कोई सिलाई करनी होती है न कोई बुनाई , :)) फिर भी फेस बुक कई मायने में काम की चीज हैं :))
ReplyDelete
ReplyDeleteजी सही कहा। जब कोई काम न हो तो फेसबुक बड़े काम की चीज़ है। :)