कई दिनों से लग रहा था कि कई महीनों से श्रीमती जी मायके क्यों नहीं जा रही। आखिर साल में दो चार दिन तो पतिदेव के भी होने ही चाहिए आज़ादी के। लेकिन अब समझ में आ रहा है कि महिलाओं की मायके जाने की टाइमिंग बड़ी ज़बर्ज़स्त होती है। उनका मायके जाने का अपना ही हिसाब होता है जो हम मर्दों को समझ नहीं आ सकता।
इस सप्ताहं जब पत्नि का प्रोग्राम बन ही गया तो अपनी तो बांछें खिल गई। सोचा एक अरसे बाद होम अलोन का आनंद आएगा। आया भी लेकिन दो दिन तक। उसके बाद घर में ही होम सिकनेस सी होने लगी। लेकिन हमने बड़ी बहादुरी के साथ पत्नि को विश्वास दिलाया था कि हम घर और खुद को भली भांति संभाल लेंगे। फिर भी श्रीमती जी ने ऑफर दिया था कि फ्रिज तो खाने के सामान से भरा पड़ा है , बस रोटियों की ज़रुरत पड़ेगी जो वो भिजवा सकती हैं। लेकिन यह तो हमारे पौरुष को चुनौती थी इसलिए हमने भी बड़ी शान से कहा कि अज़ी हमने अपनी तीन पीढ़ियों को खाना बनाकर खिलाया है। आखिर पूर्णतय: गृह कार्य में दक्ष होने का दम यूँ ही नहीं भरते हैं। फिर रोटियां बनाना कौन मुश्किल काम है।
फिर भी श्रीमती जी ने हिदायत देते हुए समझाया कि आटा गूंधने के लिए मिक्सी में कितना आटा डालना है और कितना पानी। अच्छी तरह से समझकर हमने उन्हें विश्वास दिलाया कि हमें कोई परेशानी नहीं होने वाली , वो बेफिक्र रहें। शाम को उनके बताये मार्ग पर चलते हुए जब हमने कार्यवाही आरंभ की तो कुछ देर चलने के बाद मिक्सी बेकाबू सी होने लगी। कभी तेज होती , कभी सुस्त। हमने सोचा , यह तो श्रीमती जी के सामने भी ऐसे ही व्यवहार करती थी , इसलिए थोड़ी देर में चुप हो जाएगी। लेकिन वो ऐसे चुप हुई कि फिर चलने का नाम ही नहीं लिया। खोलकर देखा तो आटा भी ऐसी हालत में था कि अच्छे से अच्छा कुक या शैफ़ भी उसे काबू में न कर पाए। अब तो हम भी समझ चुके थे कि आज तकनीक के आगे हमारी हार हुई है। क्योंकि हमने आटा गूंधने के लिए मिक्सी में गलत अटेचमेंट लगा दिया था जिससे न सिर्फ काम नहीं हुआ बल्कि मिक्सी की मोटर भी जल गई।
अंतत: हमें अपने पुराने तरीके से ही काम चलाना पड़ा, आटा गूंधने के लिए। हालाँकि रोटियां बनाने में तो हमारा कोई ज़वाब नहीं लेकिन आधुनिकता के सामने पारम्परिकता की तो हार ही हुई। अब इंतजार है श्रीमती जी के आने का और यह बुरी खबर सुनाने का।
लेकिन रविवार को जब मौसम ने अंगडाई ली और जमकर बारिश होने लगी तब होम अलोन ने नया मोड़ लिया। घर की बालकनी में बैठ , गोद में लैप टॉप रख जो जम कर अकेले पिकनिक मनाई तो आनंद आ गया।आइये इस अवसर पर एक पैरोड़ी जो बनी , उसका मज़ा लेते हैं :
लगी आज बारिश की फिर वो झड़ी है ,
वही चाह पीने की फिर जल पड़ी है।
वही चाह पीने की फिर जल पड़ी है।
बिन पकौडों के चाय स्वादिष्ट नहीं है,
कभी ऐसे दिन थे के हाथों से अपने
बना के पिलाई थी गर्म चाय तुमने।
वहीं तो है डब्बा मगर नहीं पत्ती ,
कटोरी भी चीनी की खाली पड़ी है !
पता आज चला जब ढूँढा जो हमने
कोई चीज़ घर में कहाँ पर पड़ी है।
बिन पकौडों के चाय स्वादिष्ट नहीं है,
कोई काश आकर बना दे पकोड़े
खा ले भले ही खुद भी वो थोड़े।
मगर ये हैं मुश्किल बड़ी हालातें,
हम तड़पे यहाँ ये किसको पड़ी है।
बिन घरवाली मालिक बना कामवाला
आज बाई भी बारिश में फंस के खड़ी है।
बिन घरवाली मालिक बना कामवाला
आज बाई भी बारिश में फंस के खड़ी है।
बिन पकौडे बिन चाय, जीवन नहीं है,
क्या करें आज बीबी जो घर पर नहीं है।
लगी आज बारिश की फिर वो झड़ी है ,
वही चाह पीने की फिर जल पड़ी है। -------
वही चाह पीने की फिर जल पड़ी है। -------
नोट : जैसे बिन बारिश के सावन नहीं , वैसे ही बिन बीबी के घर घर नहीं होता।
इस समय हमारी घरैतिन भी नहीं हैं सो पकोड़े और चाय खूब छन रही है।
ReplyDeleteकौन बना रही है। :)
Deleteहा हा हा हा हा ...तो याद आ ही गई गरीब बीबी की ....
ReplyDelete"पर जब वो पकोड़े खिलाती थी तो याद पड़ोस वाली आती थी ...
जब भी वो चाय पिलाती थी तो कालेज की केंटिन याद आती थी ...
पर आज इस दुःख की घडी में न पड़ोसन है न केंटिन है ..
हाय ,क्यों आज लगी ये सावन की झड़ी है ,
हमें याद आ रही उसकी चाय और पकोड़ी है ... "
जैसे बिन बारिस के सावन नहीं , वैसे ही बिन बीबी के घर घर नहीं होता
ReplyDeleteसच है जी
प्रणाम
@कोई काश आकर बना दे पकोड़े ..
ReplyDeleteकहाँ से उम्मीद लगाए हो ..?
यु मीन -- आशा की किरण !
Deleteहा हा।।। एक बार किसी ज्ञानी सज्जन से पुछा गया कि निंदक क्या होता है ? तो उन महाशय का जबाब था:
ReplyDeleteएक आदमी जो कीमत(price) तो हर चीज की जानता है लेकिन मुल्य(value) किसी भी चीज का नहीं जानता, उसे निंदक कहते है। चलो अच्छा हुआ आपको भी भेल्यु पता चल गई ! :)
अब पकोड़े बनाना तो अपने बस का नहीं ! :)
Deleteबेहतरीन,लेकिन ऐसी स्थित में पकौड़े बनाने की उम्मीद किससे लगा रखी है,,,
ReplyDeleteबहुत उम्दा हास्य रचना,,,
RECENT POST : तड़प,
बस ४८ घंटे ही अच्छे लगते हैं।
ReplyDeleteहा हा हा...सही है पैरोडी तो बड़ी गजब की बनायी है आपने, लेकिन बात भी सही है।
ReplyDeleteजब श्रीमति जी घर में नहीं होती ना, तभी श्रीमान जी को समझ आता है कि उनकी वैल्यू क्या है :-)
वरना तो हमेशा सभी को "घर की मुर्गी दाल बराबर ही लगती है" ;-)
जी, गड़बड़ तो बारिस ने कर दी।
Deleteहा हा हा .... उफ़ ये मौसम और पकोड़ों की नामौजूदगी :)
ReplyDeleteग़जब....
ReplyDeleteगत रविवार को ही ले आये थे जी हम तो घर की वाली को!ये बच्चो की छुट्टियों का मौसम बहुत कुछ दिखता है!
कुँवर जी,
अब आपकी खैर नही है, मिक्सी जला दी, खैर लानी आपको ही है, पर इसके लिये जली कटी सुनने को तैयार रहिये.:)
ReplyDeleteरामराम.
एक सवाल पक्का होगा और वो आपको मुश्किल में डालेगा कि पकौडे बनाने वाली कौन थी जिसे याद कर कर के कविताएं लिखी जा रही थी.
ReplyDeleteभगवान आपको बचाये.:)
रामराम.
अब तक तो आदत पड़ गई होगी।
Deleteअब समझे दराल साब... बिन घराली घर भूत का डेरा
ReplyDeleteबीबी हमारी मइके गयी, खटिया हमरी खड़ी कर गयी...
ReplyDeleteअब उनके आने तक मिक्सी लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखिये.
आख़री के "नोट-" के सिवा कहीं किसी बात से ये नहीं लगा कि आप दुखी हैं मैडम के जाने से.....(परेशान बेशक होंगें...)
ReplyDeleteऔर ये अच्छी बात नहीं है :-)
सादर
अनु
आज़ादी मिलने पर दुखी कौन होता है जी ! :)
Deleteआशा आटापुराण की भेंट चढ़ी मिक्सी बाद में चुगली नही करेगी :)
ReplyDeleteपकौड़े न बीबी ,ये सावन की कैसी मुसीबत नै है ............शानदार .
ReplyDeleteसाला ऐसयीच ही होता है और कोई बात बने इसके पहले आफत आ धमकती है -मैंने इसलिए ही हैरानी जतायी थी कि रोटी कैसे बन रही है !
ReplyDeleteअब समझ में आया ना :)))
ReplyDeleteजिसका काम उसी को साजे ..... मिक्सी ठीक करा कर रखिए .... बरसात के मौसम में चाय पकौड़ों के बहाने याद किया जा रहा है .... जनता सब जानती है :):)
ReplyDelete:)
Deleteआपने तो मस्त पैरोडी बना दी ... पर फिर दर्द भरे जज्बात टपक रहे हैं ... अब बुला भी लें उन्हें ...
ReplyDeleteहां कुछ टूटा तो नहीं ... खैर नहीं उनके आने पर ...
पैरोडी तो बढ़िया बन गयी...
ReplyDeleteपर वो आटा जो गूँधा था वो जार साफ़ किया या नहीं??..उसे साफ़ करने में क्या मशक्कत हुई...ये भी लिखना था :)
Deleteअज़ी बस पूछिए मत कि क्या हुआ ! :)
आप आप की टिप्पणियों का आभार ,आभार .
ReplyDeleteआप आप की टिप्पणियों का आभार ,आभार . patnee kendrit post paarivaarik sparsh lie hai .
ReplyDeletepatni bin aataa geelaa .rahiman patnee raakhiye ,bin patnee sab soon ,
patnee binaa n ubre moti maanoosh choon .jaise barsaat me pakaudon ke binaa chaay aise hi ptnee binaa jivan ....
डॉ साहब आप ही ऐसा साहस कर सकते हैं
ReplyDelete