top hindi blogs

Sunday, June 30, 2013

मनुष्य कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले, भगवान से ज्यादा बलवान कभी नहीं हो सकता। हर की दून -- ट्रेकिंग, एक संस्मरण।


उत्तराखंड से सभी तीर्थयात्री प्राकृतिक त्रासदी से बचकर अभी लौटे भी नहीं कि अमरनाथ की यात्रा आरम्भ हो गई। ज़ाहिर है कि धार्मिक विश्वास की जड़ें हमारी जनता में बहुत गहराई तक फैली हैं। लेकिन केवल श्रद्धा भावना के बल बूते पर हज़ारों फीट ऊंचे दुर्गम पर्वतीय स्थलों पर यूँ जाना दुस्साहस सा ही लगता है। बच्चे, बूढ़े, शारीरक रूप से असक्षम लोग कठिन रास्तों पर न सिर्फ स्वयं के लिए मुसीबत मोल लेते हैं , बल्कि प्रशासन के लिए भी सर दर्द बन जाते हैं। बेहतर तो यही है कि पहाड़ों के सफ़र से पहले हमें अपनी शारीरिक क्षमता को मांप लेना चाहिए और यदि संभव हो तो पूर्णतया सक्षम होने पर ही यात्रा करनी चाहिए।

बचपन में शहर से बाहर जाने का अवसर कभी मिला ही नहीं। लेकिन ज़वान होने के बाद पहाड़ों से जैसे लगाव सा हो गया। धीरे धीरे पहाड़ों को पैदल नापने का शौक भी पनपने लगा। तभी हमें पता चला कि कुछ संस्थाएं गर्मियों में पहाड़ों में ट्रेकिंग का आयोजन करती हैं। एक दिन अस्पताल में लगे एक पोस्टर ने मन में ट्रेकिंग पर जाने की प्रबल इच्छा जाग्रत कर दी। हमने अपने कई साथियों से जिक्र किया लेकिन कोई चलने को तैयार नहीं हुआ। दो तीन साल तक यह सिलसिला चलता रहा। लेकिन अक्सर लोग जीवन व्यापन में इस कद्र व्यस्त रहते हैं कि इस तरह के शौक दूर दूर तक भी नहीं फटकते। डॉक्टर्स भी पेशे से ज्यादा अतिरिक्त धन कमाने  के लालच में दिन रात लगे रहते हैं।

आखिर जब कोई साथी न मिला तो हमें वह गाना याद आया -- चल अकेला , चल अकेला , चल अकेला। और हमने फैसला कर लिया कि कोई साथ दे या न दे , इस बार ट्रेकिंग पर अवश्य जाना है। सौभाग्य से ट्रेकिंग का आयोजन करने वाली संस्था -- ऐ ऐ पी -- कुशल ट्रेकर्स द्वारा चलाई जा रही थी जो प्रतिदिन एक बस भरकर पहाड़ों में लगाये गए सुनियोजित कैम्पस में ले जाते थे जहाँ से ट्रेकिंग आरम्भ होती थी।

निश्चित दिन रात के दस बजे पहाड़ गंज से बस रवाना हुई उत्तरकाशी क्षेत्र में -- हर की दून घाटी में ट्रेकिंग के लिए। बस में बैठने के एक घंटे के अन्दर ही कई लोगों से परिचय हो गया। शायद यहाँ हमें डॉक्टर होने का बहुत लाभ हुआ। इत्तेफाक से इस यात्रा में शायद हम ही उम्र में सबसे बड़े थे। अधिकतर कॉलेज के लड़के लड़कियां ही थे।

बेस कैम्प : 

बस ने हमें पुरुला से आगे आखिरी गाँव संकरी में उतार दिया जहाँ हमारा बेस कैम्प लगा था। यहाँ से हमें करीब ३६ किलोमीटर पैदल चलकर तीन दिन में हर की दून पहुँचना था।


                           

तैयार हैं ट्रेकिंग शुरू करने के लिए। युवाओं का साथ हो तो चुस्ती स्फूर्ति अपने आप आ जाती है।




मुस्कानें बता रही हैं कि अभी कोई भी नहीं थका है।




सारा ट्रेक टोंक नदी के साथ साथ है। लेकिन यहाँ एक बार नदी को पार करना पड़ता है। ज़रा सोचिये , यदि बाढ़ आ जाये तो कैसे फंस सकते हैं।
  



रास्ते में उस क्षेत्र का आखिरी गाँव पड़ता है --ओस्ला। यहाँ रहने वाले लोग खुद को कौरवों के वंसज मानते हैं। यहाँ अभी तक पौलीएंड्री ( एक से ज्यादा पति )की रिवाज़ है। ट्रेक गेहूं के खेत से होता हुआ।    




अब तक हम काफी ऊँचाई पर पहुँच चुके थे। दूर नदी का सफ़र साफ़ दिखाई दे रहा है।




रास्ते में नदी पार बहुत घना जंगल था। इस झरने तक पहुंचना लगभग असंभव था।
 



बर्फ से ढकी चोटियाँ दिखने का अर्थ था कि अब हम हर की दून घाटी में पहुँचने ही वाले थे।




ये हैं घाटी के चारों ओर बर्फीले पहाड़। सामने जो रास्ता दिखाई दे रहा है वह घाटी को पार कर हिमाचल के किन्नौर क्षेत्र में जाता है।




बर्फ में फिसलने के लिए एक पौलीथीन लेकर बैठ जाना होता है और यही आपकी स्लेज बन जाती है। लेकिन यह थोडा रिस्की भी है। एक साथी के घुटने में ट्विस्ट होने से चोट आ गई। सोचिये , बेचारा कैसे वापस आया होगा।  




बर्फीली चोटियाँ देखकर स्वर्ग जैसा अहसास हो रहा था।




तभी पता चला कि एक लाइन में जो पांच चोटियाँ दिखाई दे रही थीं, कहते हैं , यहीं से होकर पांडव सशरीर स्वर्ग को गए थे। इसलिए इन चोटियों को स्वर्ग रोहिणी भी कहते हैं।
 




अंतिम पड़ाव हर की दून घाटी में टोंक नदी के किनारे लगाया गया था। यह जगह बहुत खूबसूरत थी। बिल्कुल नदी किनारे लगाये गए टेंटों में सोने का इंतजाम था। रात भर नदी का कल कल शोर शायद सोने नहीं देता , लेकिन सब इतने थके होते हैं कि लेटते ही नींद आ जाती है।

लेकिन एक बात निश्चित है कि जैसा सैलाब अभी उत्तराखंड में आया है , वैसा यदि कभी वहां आ जाता तो निश्चित ही एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचता। ज़ाहिर है , ऐसे में सब भगवान भरोसे ही होता है। आखिर मनुष्य कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले, भगवान से ज्यादा बलवान कभी नहीं हो सकता।

बेशक प्रकृति हमें जीवन देती है , अपार खुशियाँ देती है, लेकिन यदि हम पर्यावरण का ध्यान नहीं रखेंगे तो प्रकृति भी रुष्ट होकर अपनी ताकत का प्रदर्शन करती हुई मनुष्य को उसके किये की सज़ा अवश्य देती है। इसलिए प्रकृति की गोद में जाकर प्रकृति का सम्मान करना हम सब के लिए अति आवश्यक है।         


25 comments:

  1. प्रकृति के साथ साथ चलना हम भी सीख लें..आगे कौन निकल पाया है।

    ReplyDelete
  2. सच है हम कितनी भी तरक्की कर लें लेकिन भगवान से बलवान नहीं हो सकते और इसका अहसास समय समय पर करवाया भी जाता है लेकिन इंसान है की कुछ भी याद रखना ही नहीं चाहता है !!

    ReplyDelete
  3. फोटुओं में आपको बहुत ढूँढा मगर दिखे नहीं

    ReplyDelete
    Replies
    1. अरविन्द जी, चार फोटोस में तो हम ही हम हैं। :)
      यह अलग बात है कि बात में १९९४ का दम है।

      Delete
  4. हम कहाँ ..वे कहाँ ..

    ReplyDelete
  5. मूंछ दमदार थीं ..
    दुबारा ले आओ ब्लोगिंग में :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. रंगने का खर्च बढ़ जायेगा। जितनी देर में रंगेंगे , उतनी देर में एक पोस्ट और ठेली जा सकती है। :)

      Delete
  6. बहुत सुन्दर यात्रा चित्रण। आपकी यह बात भी गौर लायक है डा० साहब कि सिर्फ दुनियादारी और पेशे के जरिये धन उपार्जन तक ही इंसान को खुद को सीमित नहीं रखना चाहिए। सब यही छूट जाता है, उत्तराखंड त्रासदी इसका जीता जागता उदहारण है। हर लम्हा अपनी ख्वाइशों के मुताविक जीने की कोशीश करनी चाहिए।

    ReplyDelete
  7. प्रकृति को हराने की दौड़ से जितना बचा जायेगा उतना ही सब के लिये सुरक्षित होगा.

    सुंदर चित्रमयी संस्मरण.

    ReplyDelete
  8. प्रकृति का सम्मान करना ज़रूरी है ... रोचक रिपोर्ट और सुंदर चित्र

    ReplyDelete
  9. बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप, पहाड़ों पर अपनी सेहत को ध्यान में रखकर ही जाना उचित है।
    वरना रिस्क लें आप और सज़ा भुगते आपका अपना परिवार और प्रशासन
    और फिर बाद में यदि आपदा आजाए तो गालियां भी खाये प्रशासन... :)

    ReplyDelete
  10. भगवान=भ(भूमि)+ग(गगन-आकाश)+व(वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)। प्रकृति के पाँच मूल तत्व ही सम्मिलित रूप से भगवान हैं क्योंकि ये खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है इसलिए यही 'खुदा' हैं और इंनका कार्य =G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)है अतः ये ही GOD हैं। एक लंबे अरसे से इस पर ज़ोर देता आ रहा हूँ आप सरीखे वैज्ञानिक लोग ही इसे रद्द कर देते हैं और केवल पत्थर के एक टुकड़े को भगवान मान लेते हैं। कबीर की वाणी नहीं मानते-"दुनिया ऐसी बावरी कि,पत्थर पूजन जाये। घर की चकिया कोई न पूजे जेही का पीसा खाये। । कंकर-पत्थर ज़ोर कर लई मस्जिद बनाए। ता परि चढ़ कर मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय। । "
    प्रकृति पर हमला करने वाले प्रकृति द्वारा दंडित किए गए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. माथुर जी, कबीर वाणी का हम भी समर्थन करते हैं।

      Delete
  11. बहुत सुंदर आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर यात्रा चित्रण। सुंदर आलेख,

    RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर और मनोरंजक सचित्र यात्रा वृत्तान्त ,मनुष्य भूल जाता है पर प्रकृति कभी नहीं भूलती, बताना की वह मनुष्य से ज़्यादा बलवान है

    ReplyDelete
  14. बहुत ही सुन्दर, रोचक, मजेदार, अतुलनीय, शानदार जानकारी दी हे आपने ! आपका दिल से धन्यवाद और आभार !!!!!!
    इन्टरनेट और कंप्यूटर दुनिया की रोचक जानकारियाँ, टिप्स और ट्रिक्स, वेबसाइट, ब्लॉग, मोबाइल ट्रिक्स, सॉफ्टवेयर, सफलता के मंत्र, काम के नुस्खे, अजीबो-गरीब जानकारियाँ और अच्छी बाते पडने के लिए मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हे ! अगर मेरा ब्लॉग अच्छा लगे तो अपने विचार दे और इस ब्लॉग से जुड़े ! अगर मेरे ब्लॉग में किसी भी प्रकार की कमी हो तो मुझे जरुर बताये !
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए निचे क्लिक करे !
    internet and pc releted tips

    ReplyDelete
  15. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  16. प्रकृति से पंगा लेने पर नतीजा भुगतना पड़ेगा .बहुत अच्छा आलेख
    latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )

    ReplyDelete
  17. क्या बात है... ट्रेकिंग का मजा हमने भी लिया आपकी पोस्ट से.
    वैसे हाल में आई फिल्म"जवानी दीवानी" देख कर आपको अपनी ट्रेकिंग यात्रा याद आई या नहीं ?:).

    ReplyDelete
    Replies
    1. शिखा जी, यह यात्रा इतनी सुहानी थी कि इसे याद करने के लिए किसी फिल्म की ज़रुरत नहीं पड़ती। :)
      बस हम उस समय शादीशुदा थे।

      Delete
  18. वाह जी
    ए होई ना गल्ल

    ReplyDelete
  19. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  20. वाह डॉ साहब क्या बात है आपने ट्रेकिंग के बहाने यात्रा को सारगर्भित तरीके से समझ दिया और आपदा के कारन और बचाव को भी समझा दिया

    ReplyDelete