लम्बे सप्ताहांत पर लम्बे सफ़र की लम्बी दास्ताँ जारी रहेगी . हालाँकि अभी दो दिलचस्प किस्त बाकि हैं . लेकिन अभी लेते हैं एक छोटा सा ब्रेक . ब्रेक के बाद आपको ले चलेंगे असली जंगल में .
इस बीच खुशदीप सहगल ने एक पोस्ट में लिखा -- हिंदी ब्लागिंग में इन दिनों मुझे खालीपन और भारीपन दोनों ही महसूस हो रहा है..खालीपन इसलिए कि मेरे पसंद के कुछ ब्लागरों ने लिखना बहुत कम कर दिया है...
खुशदीप भाई, दोस्तों ने लिखना कम नहीं किया , बल्कि पाला बदल लिया है . बल्कि यूँ कहा जाए -मित्र लोग अब पहले से ज्यादा वक्त लेखन में लगा रहे हैं . सुबह से लेकर शाम तक ---शाम से लेकर सुबह तक --लेखन ही कर रहे हैं . ज़रा देखिये तो :
छोड़ लेखन अब वो , मौनबतिया रहे हैं ।
चेहरे नए नए तब, प्रोत्साहित कर रहे थे
चेहरों पर नित अब , टैग टंगिया रहे हैं ।
रोज लिखते हैं इक , लेख दुनिया दरी पर
मोह टिप्पणी का भी , छोड़ एठियाँ रहे हैं ।
शाम ढल जाये या , रात बीते सुबह हो
भोर से संध्या तक , खबर छपिया रहे हैं ।
कौन कब जागा , कब नींद आई रतीयाँ
हाल हर पल का, सब ओर जतिया रहे हैं ।
चैट करते हैं जो , फेसबुक पर घंटों तक
ब्लॉग पढने का, तज मोह खिसिया रहे हैं ।
राह में देखे जो , 'तारीफ' राही अनेकों
कोइ रोते से , कुछ रंगरसिया रहे हैं ।
क्या आपको भी लगता है -- ब्लॉगर्स में ब्लॉगिंग का मोह भंग हो चुका है ?
क्या फेसबुक ने ब्लॉगिंग की तस्वीर बदल दी है ?
फेस बुक से ब्लॉग्गिंग पर फर्क जरुर पड़ा है . फेस बुक पर पोस्ट लिखना आसान है.
ReplyDeleteजंगल में कब ले चलेंगे
ReplyDeleteबस अगली बार जंगल में ही चलेंगे .
Deleteकविता अच्छी है डा० साहब,
ReplyDeleteमगर मैं नहीं समझता कि सार्थक और गंभीर लेखन के लिए फेसबुक में कोई ख़ास स्पेस है ! बस थोड़े दिन का शौक है, उसके बाद फिर मोह भंग ! और जो सार्थक लेखन करने वाले ब्लोगर है और चाहते है कि उनके लेख अथवा कविताएं वे एक लम्बे समय के लिए संरक्षित रखे तो ज्यादा विश्वसनीय सिर्फ ब्लॉग ही है ! और जिसे ब्लॉग और फेसबुक दोनों पर रहना है वह ट्विटर का सहारा लेकर ब्लॉग पर पोस्ट डाल उसे ट्विटर और फेसबुक पर एकसाथ पोस्ट कर सकता है !
खास क्या , बिलकुल ही स्पेस नहीं है . फेसबुक पर मौज मस्ती के सिवाय कुछ खास नहीं है . लोग या तो व्यक्तिगत फोटो डालते रहते हैं या किसी सुन्दर सी लड़की की तस्वीर लगाकर टैग टैग खेलते रहते हैं .
Deleteयह दुनिया भी एक खेल है दराल साहब। कल कोशिश कर रहे हैं दिल्ली में मिलने की। पूरा विश्वास है सफल होंगे। इस पोस्ट को अवश्य देखिएगा। दिल्ली के हिंदी चिट्ठाकारों का दिल लूटने आए हैं लखनऊ से श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
Deleteफेसबुक और हिंदी ब्लॉग जगत का सम्यक् आकलन किया है आपने। फिर भी बहुत सारे लोग इसमें सिर्फ अच्छाईयों के प्रचार/प्रसार और सेवन में व्यस्त हैं।
कहने का आशय यह कि उधर भी ज्यादातर चिल-पौं मचाने वाले ही हैं !
ReplyDeleteकुछ फरक तो जरुर पड़ा है. फेसबुक में २ पंक्तियों में भी तुरंत रिस्पोंस शायद इसका कारण हो.परन्तु गंभीर लिखने-पढ़ने वाले अब भी ब्लोगिंग पर ही भरोसा करते हैं
ReplyDeleteजी हाँ , काफी पुराने मित्र जो ब्लॉग पर नज़र नहीं आते , वे अब फेसबुक पर लगे रहते हैं दिन रात . पता नहीं दो शब्दों या पंक्तियों की रिस्पोंस से क्या हासिल होता है . वहां कोई गंभीर विचार विमर्श नहीं होता . हालाँकि यह ज़रूरी नहीं की हर वक्त गंभीर बातें ही होती रहें .
Deleteवहां कोई गंभीर विचार विमर्श नहीं होता . हालाँकि यह ज़रूरी नहीं की हर वक्त गंभीर बातें ही होती रहें .
Deletemany bloggers write for jaruri baat only , for them issues are of importance and they want free discussion irrespective of the fact whether its with their friend or not
गोड़ियल जी की बातों से सहमत ... कविता सटीक कटाक्ष कर रही है ...
ReplyDeleteफ़ेसबुक? ये क्या होता है? ;)
ReplyDeleteअच्छा है यदि आप इस लत से बचे हैं । :)
Deleteचैट करते हैं जो , फेसबुक पर घंटों तक
ReplyDeleteब्लॉग पढने का, तज मोह खिसिया रहे हैं ।
राह में देखे जो , 'तारीफ' राही अनेकों
कोइ रोते से , कुछ रंगरसिया रहे हैं ।
बिलकुल सौ प्रतिशत खरी खरी सही ... आभार
पुराने ब्लॉगर फेसबुक पर चले गए हैं...तो कई नये भी आये हैं.........और अच्छा भी लिख रहे हैं......चेहरे बदल गए हो बेशक, मगर लेखन की क्वांटिटी/क्वालिटी कम नहीं हुई........
ReplyDelete:-)
कटीली कविता बहुत रास आई.
शुक्रिया.
यह बात तो सही है अनु जी । लेकिन इस आने जाने में स्थायित्त्व ख़त्म हो जाता है ।
Deletein the initial stages of hindi bloging many people used this platform to make it social network for them . they called it hindi blog parivaar etc etc . there were groups to trash a individual who wanted to wirte on issues .
ReplyDeleteslowly people realised that bloging is not for them as its a medium to express freely and not a medium to creat a social network . those are the people who have moved out of hindi bloging to social networking sites
i dont think bloging has been affected in any way there are still many , and more focussed who use blog as a diary to express them selfs and allow others to read their diary and give comments and initiate healthy discussions
i am happy that those who needed a social network have moved out or are slowly moving out of hindi blog writing
The irony in blogging is that here everybody is an expert writer . So sometimes it creates problems . Otherwise blogging is much more meaningful than Facebook . It is not necessary to be typed . You may write on a variety of topics including mauj masti .
Deleteथोड़ा थोड़ा असर कई चीज़ों का पड़ा है ब्लॉगिंग पर.
ReplyDeleteसुबह से लेकर शाम तक ---शाम से लेकर सुबह तक --लेखन ही कर रहे हैं . ज़रा देखिये तो :
http://blogkikhabren.blogspot.in/
सर , पहली बात तो ये कि खुशदीप भाई की पोस्ट का लिंक शायद गलत लग गया है http दो बार आ गया है शायद इसलिए ही । अब बात दूसरी , हां बिल्कुल सही कहा आपने कि ऐसा महसूस जरूर हो रहा है कि अंतर्जाल और हिंदी अंतर्जाल से जुडे साथी भी इन दिनों फ़ेसबुक पर ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं बनस्पत ब्लॉगिंग के लेकिन इसका कारण ब्लॉगिंग से मोहभंग या फ़ेसबुक अकेला कारण नहीं है , अन्य बहुत से कारण भी हैं , लेकिन मुझे यकीन है कि रेस में ब्लॉगिंग पीछे नहीं पडेगी
ReplyDeleteलिंक में तकनीकि गड़बड़ हो गई है । इसलिए ठीक भी नहीं हो पा रहा । खैर खुशदीप की लिखी पंक्तियाँ तो आ ही गई हैं ।
Deleteबेशक अजय भाई आजकल फास्ट / इंस्टेंट फ़ूड का ज़माना है । :)
ब्लॉग पर अब सिर्फ लिखने के लिए(for the sake of writing smthing ) लोग नहीं लिखते...इसके लिए फेसबुक ने उन्हें स्पेस दे दिया है...
ReplyDeleteजैसा कि मालूम है... मैंने अभी एक फेसबुक पर पोस्ट डाली थी ... कि
ReplyDeleteआज से तंज देना(conditions apply), ताने मारना(conditions apply) और गालियाँ देना (conditions apply) बंद...
कुछ ब्लौगर्ज़ , फेसबुकियों और unrecognized बिना मतलब के साहित्यकारों और साहित्यिक चोरी करने वालों को एक मेरी ब्लॉगर मित्र को धन्यवाद देना चाहिए... कि उनकी जान मुझसे छूटी...(conditions apply)...
तो मैंने कभी फेसबुक पर लेखन किया ही नहीं.. मैं तो सुबह दस मिनट के लिए आता था.. जब जिम से लौट कर नाश्ता करना होता है... और रात में सोने से पहले दस मिनट... मुझे तो फेसबुक पर ऊपर लिखी हुई चीजें करने में मज़ा आता है.. लेखन तो मैं सिर्फ काग़ज़ पर ही करता हूँ... ब्लॉग पर भी कभी कभार.. फेसबुक पर मैंने कभी भी किसी सीरियस इन्सान को लेखन करते नहीं देखा है... मैं तो वैसे वहां ताने मारने ...ज़लील करने ही जाता हूँ... उसी में मज़ा आता है..और वैसे भी नेट पर ज़्यादा टाइम अब पहले जैसा नहीं दे पाता हूँ... ले दे कर शिखा.... रश्मि रविजा.... आप , खुशदीप भइया, प्रवीण/ज्ञानदत्त पाण्डेय जी....समीर लाल जी...ललित शरमा (Not in regular way).. बस इन्ही लोगों को पढ़ कर ख़ुद को धन्य समझ लेता हूँ.. बाक़ी फेसबुक सोशल कॉन्टेक्ट्स के लिए सही है.. और यह देख कर अजीब लगता है कि कितना फ़ालतू टाइम है लोगों के पास कि दिन भर फेसबुक और ब्लॉग पर ही बैठे रहते हैं... वैसे आजकल ब्लॉग और फेसबुक से लोग कमाने भी लगे हैं... दूसरों को टोपियाँ पहना कर.. कि भाई पैसे दे दे हम संकलन निकाल रहे हैं;....वो संकलन बराक ओबामा विमोचन करेगा... और सिर्फ बेवकूफों को फंसाते हैं.. जो कहीं छपने लायक नहीं होते हैं.. उन्हें पोदीने के खेत में ले जाकर चराते हैं... फ़िर जेब से पैसे निकलवा कर टाटा बाय बाय कर देते हैं ...और चल देते हैं नया मुर्गा तलाशने.. मुर्गों की कमी थोड़े ही है.. अब एक सौ सत्तर रुपये किलो हो गया है.. संकलन का बाज़ार बहुत गरम है.. अभी एक कोई संकलन मुझे दे गया था.. नाम नहीं बताऊंगा... उस संकलन का.. पढने के बाद मेरे घर में मातम छा गया था.. मेरे पडोसी मुझे सांत्वना देने आये थे.. मेरे सारे कुत्ते अजीब सी मनहूस आवाजें निकाल रहे थे.. सारा गोमती नगर परेशान हो गया था ... गिरिजेश राव तक मेरे घर आ गए थे.. सब सोचे कि कुत्ते रो रहे हैं.. ना जाने कौन सी घटना होने वाली है गोमती नगर में .. बाद में मेरे कुत्तों ने ही सबको बताया कि मैंने कोई ब्लौगरों और फेस्बुकर्स का संकलन पढ़ लिया है.. मैंने अबी अखिलेश यादव से कहा है कि एक कोई सांत्वना मंत्रालय खोलने के लिए.. जिससे कभी कोई भी मंत्री वगैरह मरेगा तो पांडित्य पाठ कराने से अच्छा है कि ब्लौगरों और फेबुकर्स के संकलनों का पाठ करा दे.. वैसे मैंने कसम खा ली है अपनी उस ब्लॉगर मित्र कहने पर कि कभी कोई तंज नहीं मारूंगा..
फेसबुक ने ब्लॉगिंग की तस्वीर नहीं बदली... नेट ने बदल डाली... अब तो हिंदुस्तान के हर घर का तीसरा मेंबर कवि और साहित्यकार है..
जैसा कि मालूम है... मैंने अभी एक फेसबुक पर पोस्ट डाली थी ... कि
ReplyDeleteआज से तंज देना(conditions apply), ताने मारना(conditions apply) और गालियाँ देना (conditions apply) बंद...
कुछ ब्लौगर्ज़ , फेसबुकियों और unrecognized बिना मतलब के साहित्यकारों और साहित्यिक चोरी करने वालों को एक मेरी ब्लॉगर मित्र को धन्यवाद देना चाहिए... कि उनकी जान मुझसे छूटी...(conditions apply)...
तो मैंने कभी फेसबुक पर लेखन किया ही नहीं.. मैं तो सुबह दस मिनट के लिए आता था.. जब जिम से लौट कर नाश्ता करना होता है... और रात में सोने से पहले दस मिनट... मुझे तो फेसबुक पर ऊपर लिखी हुई चीजें करने में मज़ा आता है.. लेखन तो मैं सिर्फ काग़ज़ पर ही करता हूँ... ब्लॉग पर भी कभी कभार.. फेसबुक पर मैंने कभी भी किसी सीरियस इन्सान को लेखन करते नहीं देखा है... मैं तो वैसे वहां ताने मारने ...ज़लील करने ही जाता हूँ... उसी में मज़ा आता है..और वैसे भी नेट पर ज़्यादा टाइम अब पहले जैसा नहीं दे पाता हूँ... ले दे कर शिखा.... रश्मि रविजा.... आप , खुशदीप भइया, प्रवीण/ज्ञानदत्त पाण्डेय जी....समीर लाल जी...ललित शरमा (Not in regular way).. बस इन्ही लोगों को पढ़ कर ख़ुद को धन्य समझ लेता हूँ.. बाक़ी फेसबुक सोशल कॉन्टेक्ट्स के लिए सही है.. और यह देख कर अजीब लगता है कि कितना फ़ालतू टाइम है लोगों के पास कि दिन भर फेसबुक और ब्लॉग पर ही बैठे रहते हैं... वैसे आजकल ब्लॉग और फेसबुक से लोग कमाने भी लगे हैं... दूसरों को टोपियाँ पहना कर.. कि भाई पैसे दे दे हम संकलन निकाल रहे हैं;....वो संकलन बराक ओबामा विमोचन करेगा... और सिर्फ बेवकूफों को फंसाते हैं.. जो कहीं छपने लायक नहीं होते हैं.. उन्हें पोदीने के खेत में ले जाकर चराते हैं... फ़िर जेब से पैसे निकलवा कर टाटा बाय बाय कर देते हैं ...और चल देते हैं नया मुर्गा तलाशने.. मुर्गों की कमी थोड़े ही है.. अब एक सौ सत्तर रुपये किलो हो गया है.. संकलन का बाज़ार बहुत गरम है.. अभी एक कोई संकलन मुझे दे गया था.. नाम नहीं बताऊंगा... उस संकलन का.. पढने के बाद मेरे घर में मातम छा गया था.. मेरे पडोसी मुझे सांत्वना देने आये थे.. मेरे सारे कुत्ते अजीब सी मनहूस आवाजें निकाल रहे थे.. सारा गोमती नगर परेशान हो गया था ... गिरिजेश राव तक मेरे घर आ गए थे.. सब सोचे कि कुत्ते रो रहे हैं.. ना जाने कौन सी घटना होने वाली है गोमती नगर में .. बाद में मेरे कुत्तों ने ही सबको बताया कि मैंने कोई ब्लौगरों और फेस्बुकर्स का संकलन पढ़ लिया है.. मैंने अबी अखिलेश यादव से कहा है कि एक कोई सांत्वना मंत्रालय खोलने के लिए.. जिससे कभी कोई भी मंत्री वगैरह मरेगा तो पांडित्य पाठ कराने से अच्छा है कि ब्लौगरों और फेबुकर्स के संकलनों का पाठ करा दे.. वैसे मैंने कसम खा ली है अपनी उस ब्लॉगर मित्र कहने पर कि कभी कोई तंज नहीं मारूंगा..
फेसबुक ने ब्लॉगिंग की तस्वीर नहीं बदली... नेट ने बदल डाली... अब तो हिंदुस्तान के हर घर का तीसरा मेंबर कवि और साहित्यकार है..
भैया , फेसबुक पर ७ से लेकर ७० साल तक के सब नौज़वान काम धाम छोड़कर टैगिंग और चैटिंग करने में लगे रहते हैं । यह निश्चित ही पेथोलोजिकल है ।
Deleteमौज मस्ती के लिए एक आध घंटा बहुत है । :)
महफूज भाई ... कमेन्ट करने मे बहुत मेहनत करते हो यार मान गए ... जितनी बड़ी हमारी पोस्ट होती है ... उतना ही बड़ा आपका कमेन्ट है ... बस गनीमत है यहाँ पलट कर हम कुछ बोल सकते है ... आपकी पोस्ट पर बोलती बंद ही रखनी पड़ती है !
Deleteशिवम् यार... यह डॉ. दराल साहब की पोस्ट है... नौलेजेबल, क्वालिटी पर्सन हैं...इनके पास सब्जेक्ट डेप्थ है.... आखिर ... जिस पर हम कमेन्ट दे रहे हैं... उनका भी तो कोई लेवल होना चाहिए.. इसीलिए कमेन्ट लम्बा है... और मेरा कमेन्ट बॉक्स बंद है... क्यूंकि मैं नहीं चाहता कि कुछ बिलों स्टैण्डर्ड लोग... मेरे ब्लॉग पर आयें और मुझे कमेन्ट दें... और जो अच्छे लोग हैं... उनसे मैं फोन / मेल पर ही कमेन्ट ले लेता हूँ ... मैं कमेन्ट से बहुत ऊपर हूँ... हाँ! तुम्हे कुछ कहना होता है तो ...तो तुम तो मेरे घर के हो... रात के तीन बजे भी जगा कर कुछ भी कह देते हो.. :) और करते भी हो... :)
Deleteयार! लेवल वाले बड़े मुश्किल से मिलते हैं...
फिलहाल मैंने तंज मारना बंद कर दिया है... कुछ ब्लौगर्ज़ , फेसबुकियों और unrecognized बिना मतलब के साहित्यकारों और साहित्यिक चोरी करने वालों को एक मेरी ब्लॉगर मित्र को धन्यवाद देना चाहिए... कि उनकी जान मुझसे छूटी...(conditions apply)...
तंज मारना बंद कर दिया है...
Deleteसही किया महफूज़ भाई .
शांति से लिखने में बहुत आनंद आता है .
खुश रहो .
.ताजगी भरी पोस्ट अभिनव विषय पर पढ़ी .बढ़िया अनुभूति हुई .
ReplyDeleteडॉ साहब कविता लाज़वाब है आंचलिक शब्द प्रयोग देखते ही बनता है .
अभिव्यक्ति की दोनों अलग अलग इंटर -नेटीय विधाएं हैं फेसबुक और ब्लॉग .फेसबुक एक प्लेटफोर्म है विस्तारित अखिलभारतीय कोंग्रेस सा वैसा ही बिखरा बिखरा उखडा उखडा .बस यहाँ कोई नियामक नियंता हाई कमान नहीं है .यहाँ कौन किसके घर में है कुछ पता नहीं .अलबत्ता आदमी ज़िंदा है या मृत इसकी खबर सबको रहती है अपनों को भी परायों को भी .यहाँ मित्र शत्रु सब दिख जाते हैं भूले बिसरों का मिलाप आकस्मिक तौर पर हो जाता है .भानुमती का कुनबा है फेसबुक .दुनिया में यारवासी बढ़ रही है .हर कोई हर कोई का मित्र है एवरी टॉम एंड हेरी .माम न मान मैं तेरा मेहमान /तू मेरा मेहमान .फेस्बुकियों की शान .
ब्लॉग जगत में सबकी अपनी अपनी ढपली ढप और राग हैं .ब्लॉग समूह है,ब्लॉग बुलेतिनें हैं ,ब्लॉग चर्चाएँ हैं ,पुरानी नै हलचलें हैं . यहाँ आप एक दूसरे के मुंह पे थूक सकतें हैं .अपनी शेव बनाके साबुन दूसरे के मुंह पे फैंक सकतें हैं .यहाँ आप अनामी ,बे -नामी कुछ भी हो सकतें हैं .
यहाँ छद्म नामी कई मुनियाँ हैं .मुन्नियां हैं .जिनके रूपाकार रोज़ बदल जातें हैं .कभी चुडेल कभी दुर्गावतार बन जातीं हैं ये मुन्नियां .ये नज़ारा फेसबुक पर मिलना दुर्लभ है
यहाँ उच्च कोटि का स्तरीय साहित्य भी है पनबतियाँ भी हैं .
परिवार जैसा अपनापा भी है .आलोचना भी है समालोचना भी और कीचड फैन्किया लाऊ ब्रांड होली भी है .
(ज़ारी...)
वीरुभाई जी , अति हर बात की ख़राब होती है , फेसबुक हो या ब्लोगिंग ।
Deleteदोनों में सभी तरह के लोग हैं । लेकिन फेसबुक पर सिवाय फालतू बैटन के और कुछ नहीं मिलता । वैसे भी किसे दिलचस्पी है यह जानने की कि आप कब सोये , कब जगे , कब ब्रश किया आदि ।
हम जला दूकान बैठे ,हाट की बातें न कर ,
ReplyDeleteफेस्बुकियों ब्लोगियों की ,घात की बातें न कर .
बहार सूरत कुछ लोग दिन रात निष्काम भाव से लिख रहें हैं कोई आये ,कोई जाए ,आये ,न आये
कृपया यहाँ भी पधारें -
रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहाँ, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
हम तो यही बात कब का कह रहे हैं -यहाँ जो टिप्पणी व्रत लिए हैं वहां धुंआधार टिपिया रहे हैं !
ReplyDeleteनहीं ... ब्लौगिंग अपनी जगह पर उसी तेवर में है ...
ReplyDeleteशाम ढल जाये या , रात बीते सुबह हो
भोर से संध्या तक , खबर छपिया रहे हैं ।
कौन कब जागा , कब नींद आई रतीयाँ
हाल हर पल का, सब ओर जतिया रहे हैं ।
चैट करते हैं जो , फेसबुक पर घंटों तक
ब्लॉग पढने का, तज मोह खिसिया रहे हैं ।... यह भी अपनी जगह उफान पे है
हमने इस मसले पर लिखा था http://hindini.com/fursatiya/archives/2460 हम ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर तीनों का उपयोग करते हैं। समय कम होता है तो फ़ेसबुक/ट्विटर का उपयोग करते हैं लेकिन जब भी मौका मिलता है दऊड़ के अपने ब्लॉग पर आते हैं पोस्ट लिखने के लिय- जैसे आज आये! :)
ReplyDeleteइतना वक्त/ इतनी फुर्सत कैसे निकाल लेते हैं अनूप जी ! :)
Deleteफ़ुरसतिया जो ठहरे! :)
Deleteआपने सही विश्लेषण किया है .
Deleteब्लोगिंग में कमी मूलत : तभी महसूस होती है जब आपके परिचित जाने माने मित्र लिखना कम कर देते हैं . उन्हें पढने या टिप्पणी प्राप्त करने की आदत सी पड़ी होती है . इसलिए न आने पर कुछ मिसिंग लगता है .
फेसबुक पर जो सामग्री मिलती है वह अक्सर वाहियात और मीनिंगलेस होती है .
हमें तो यही लगता है की ब्लोगिंग आपकी एक पहचान बनाती है . जबकि फ़ेसबुक पर आप भीड़ में बस एक और चेहरा हैं .
उत्पत्ति! ऊर्जा से साकार संसार की - कलियुग से सतयुग तक, विष से अमृत तक की शक्ति रूपा की यात्रा की! किन्तु, 'योगमाया' के कारण अनंत काल-चक्र की उलटी चाल के कारण दिसती भ्रम के कारण अन सुलझी पहेली...:)
ReplyDelete"दृष्टि-भ्रम"
ReplyDelete:)
ReplyDeleteहम तो भैया अपने ब्लॉग में आये ब्लॉगरों तक ही नहीं पहुँच पाते फेसबुक की दौड़ के लिए समय कहाँ से लायें? अंगूर खट्टे हैं।
फ़ेसबुक ही लत हिन्दी वालों के लिए नई है.
ReplyDelete10-12 साल पहले यही हाल चैट का था अब वहां लोग कहां जाते हैं.
ये भी लौट आएंगे.
ब्लॉग सार्थक लेखन का क्षेत्र है और फेसबुक मस्ती का ..
ReplyDeleteमान गए डाक्टर साहब आपको ... क्या बढ़िया कविता सुनाई आपने भाई वाह ... जय हो महाराज जय हो !
ReplyDelete'जैसे उडी जहाज को पंछी उडी जहाज पे आवे '
ReplyDeleteजी हाँ कुछ लोगों ने अपने घर में ब्लॉग स्टेशन बना लिए हैं एस्कोर्ट्स अस्पताल के हार्ट स्टेशन की तरह .सोना उठना खाना सब यहीं होता है .जैसे शंकर जयकिशन की जोड़ी हारमोनियम का ही सिरहाना लगाके सो जाती थी वैसे ही ये ब्लोगिये लैप टॉप का सिरहाना बनाके सो जातें हैं .और ज़नाब ब्लोगिये भी किस्म किस्म के आगये हैं कोई यह बता रहा है कि बहादुर गढ़ के पकौड़े तेल क्यों नहीं पकड़ते तो कोई रेवाड़ी (हरयाना )की बर्फी की शेल्फ लाइफ लम्बी होने के राज बतला रहा है .
एक साहब मरदाना ताकत और दूसरे साहब वशीकरण मन्त्र आन लाइन बेच रहें हैं बा -रास्ता ब्लॉग .पाक कला की माहिरा भी हैं यहाँ .
आंचलिक ग़ज़ल ,गीत लिखने संजोने वाले भी .
यदि ब्लॉग व्यक्ति का जीवन है तो उसपे आई टिपण्णी संजीवनी है लम्बी उम्र का राज है .टिपण्णी का नशा कोकेन से कम नहीं है और ब्लॉग ने निकोटिन को बहुत पीछे छोड़ दिया है लती कारक होने के मामले में .
फेस बुक और ब्लॉग में यहीं समानता है .दोनों का नशा सर चढ़के बोलता है .
राह में देखे जो , 'तारीफ' राही अनेकों
कोइ रोते से , कुछ रंगरसिया रहे हैं ।
(ज़ारी ...) वीरुभाई सी ४ ,अनुराधा ,कोलाबा , नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया (नोफ्रा ) नेवी नगर, मुंबई-४००-००५
कृपया यहाँ भी पधारें -
रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
आपकी लिखी एक एक बात सही है वीरुभाई .
Deleteइसीलिए ब्लोगिंग जानकारी और ज्ञान का खज़ाना है .
लेकिन फेसबुक ???
ड्यूटी खत्म होने के बाद घर आकर इस पोस्ट को देख सका...
ReplyDeleteजहां तक मेरी पोस्ट का सवाल है तो खालीपन इसलिए क्योंकि मेरी पसंद के कुछ ब्लॉगरों जैसे कि गुरुदेव समीर जी, निर्मला कपिला जी, अजय कुमार झा, शैफ़ाली पांडेय, दीपक मशाल, राजीव तनेजा, विवेक सिंह, अनुराग आर्य ने लिखना बहुत कम कर दिया है...डॉ अमर कुमार का पिछले साल हम सबसे हमेशा के लिए बिछड़ जाना ऐसी क्षति है जिसकी कभी पूर्ति नहीं हो सकती..
भारीपन इसलिए कि मज़हब को लेकर तकरार की पोस्टों की तादाद फिर बढ़ने लगी है...ब्लॉगरों के नाम ले ले कर पोस्टों में टांग-खिंचाई से फौरी तौर पर पाठकों की संख्या बढ़ाई जा सकती है लेकिन इससे अंतत उन्हीं का नुकसान होगा जो ये कर रहे हैं...
अब आइए फेसबुक पर..
मक्खन ढक्कन से...मेरे पास फेसबुक है, ट्विटर है, गूगल प्लस है, ब्लॉगर है, तुम्हारे पास क्या है....हैं..इ...इ...इ..
ढक्कन...भैये मेरे पास काम-धंधा है...
जय हिंद....
ढ्क्कन का क्या जबाब! :)
Deleteहा हा हा ! सही कहा .
Deleteलेकिन पाबला जी को भूल गए .
फेसबुक ब्लॉगिंग से जोड़ने का काम जरुर करता है , ब्लॉगिंग जैसी गंभीरता एवं रचनात्मकता वहां नहीं है ! जिनके पास समय की कमी है , उनके लिए ठीक है !
ReplyDeleteमानव में - दृष्टि आदि इन्द्रियों द्वारा जनित प्रतीत होते भ्रम के कारण - किसी भी काल में मति-भ्रम होने/ करने के लिए तो मूलरूप से एक ही कारण है, और वो है पृथ्वी के केंद्र में संचित गुरुत्वाकर्षण शक्ति (विष्णु) का साकार मोहिनी रूप 'चंद्रमा' (रसों में रस, सोमरस, और पागलों में पागल ल्युनेटिक का मूल ला ल्यून...:)...
ReplyDeleteमेरा एक सहकर्मी मित्र, अमेरिका में पढ़ा, मुझे एक दिन - हम कुछेक मित्रों की नव वर्ष की पार्टी में - बताया कि वहाँ वो पार्टी आदि में स्वयं एक पैग का ही होश में रह आनंद लेता था, और शेष समय आनंद लेता था अन्य अतिथियों में सोमरस के विभिन्न प्रभाव को देख...:)...
ऐसे ही मैं भी भाग्यवश तकनिकी में प्रगति और इस कारण कंप्यूटर आदि उपलब्ध होने के कारण आज ब्लॉग (सात वर्षों से ), फेसबुक (हाल में), आदि, आदि (उसके पहले से, समाचार पत्र, रेडिओ, टीवी, आदि माध्यमों के अतिरिक्त) विभिन्न माध्यम का आनंद लेता आ रहा हूँ - क्यूंकि आदमी को भगवान्, स्वयं सद्चिदानंद, अनंत ने सीमित काल के लिए बूँद बूँद शहद चखने समान धरा पर भेजा है - न कि अज्ञानी जज समान निर्णय करने कौन 'अच्छा' है और कौन 'बुरा' (गुरु नानक के माध्यम से भी भी संकेत छोड़ गए, "एक नूर तों सब जग उपज्या..."...:)
जे सी जी , इस उम्र में तो आनंद ही आनंद होना भी चाहिए . पर उनका क्या जो पूरी बोतल निगल जाते हैं . :)
Deleteट्रिनिडैड से आये एक सहपाठी ने बताया कि कैसे जब ब्रिटेन की रानी दिल्ली (साठ के दशम में कभी) आई तो इस खुश्ही में उस के सभी दोस्त पार्टी में एक शाम आमंत्रित थे... और मुफ्त की मिली शैम्पेन, मछली समान पी, उसके डीयू के अन्य मित्रों को पार्टी के बाद टैक्सीयों में किसी प्रकार बिठा, उनको हॉस्टल पहुंचाने का काम उसे ही करना पडा था...:)...
Deleteदेर सबेर सब ठीक ठाक हो जायेगा...लोग जाग जायेंगे और हम आप भी.
ReplyDeleteजो ब्लॉगर सोच विचार कर लिखता है और उसे टिप्पणियां उसे न मिलें लोग उसे शुक्रिया तक न कहें और दूसरी तरफ़ बेवज़्न शायरी, नोक झोंक और छेड़छाड़ पर टिप्पणियों की बरसात हो जाए।
ReplyDeleteयह सब ब्लॉगर का दिल ब्लॉगिंग से उचाट करने के लिए काफ़ी है।
जिन्होंने टिप्पणियों की हक़ीक़त समझ ली है वे टिके हुए हैं और जिन्होंने अपने वक्त की क़ीमत पहचान ली है वे उसका ज़्यादा सही इस्तेमाल करने के लिए इधर उधर हो लिए।
टिप्पणियों की अहमियत तो है अहमद जी . लेकिन यह एक दोतरफा ट्रैफिक है . जहाँ तक हो सके विवादास्पद विषय से बच कर लिखना ही बेहतर है . यहाँ किसी के पास समय नहीं है विवादों में पड़ने के लिए .
Deleteब्लॉग में स्पैम है, टिप्पणी डालो तो खायी जाती है, और फेसबुक में अभी तक तो नहीं है, भले ही टिप्पणी कम मिलें - केवल उनसे जो आपके मन पसंद मित्र हों... यद्यपि कुछेक 'मित्र' रोंदू ही निकलते हों...:( बचपन में एक अपनी अच्छी फोटो नहीं निकली तो फोटोग्राफर ने कहा, "जैसी शकल है वैसी ही तो फोटो आयेगी"...:)
ReplyDeletebadhiya post chote tau(bare tau to balam ke kakri kahne me vyast)....achhe
ReplyDeleteachhe ko doraya aapne is 'vimarsh' me..........
bakiya bhi kikhte rahenge aap logon ke soujanya se....
ghani pranam.
नेट पर हिन्दी में लिखने वाले लोगों में अधिकतर लोग लेखन ने लिए नहीं बल्कि रेस्पांस पाने के लिए ही लिखते हैं। ब्लोग से अधिक रेस्पांस फेसबुक में मिलता है इस कारण से वे ब्लोग से अधिक फेसबुक को पसंद करने लगे हैं।
ReplyDeleteजिन्हें आदतन लेखन का कीड़ा खाया हुआ है वे ब्लागिंग नहीं छोड़ सकते। लेकिन जो लेखन क्षेत्र में नहीं हैं वे फेसबुक पर चले गए हैं।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब, दरअसल फेसबुक और ट्विटर आज के दौर मे जैसे STATUS SYMBOL हो गया है, नए ज़माने की लोगो को लगता है, कि यदि आप के पास ये अकाउंट नहीं है, और आप रेस्पोंस नहीं करते है, तो आप Backward कहलाते है । और ऐसा करने पर ये फेसबुकिया अपने आप को facebook के Celebrity member के समकक्ष पाते है। वैसे हकीकत यह भी कुछ विकृत मानसिकता के लोग फेसबुक पर अपनी अतृप्त इच्छाओ की पूर्ति के लिए भी आते है । मेरे ख्याल से "Social Networking" का एक घिनोना रूप भी है ।
ReplyDeleteवैसे भी जाने वालो को कौन रोक सका है, जाये अपनी बला से ..........
सही आंकलन किया है भाई .
Deleteनई पीढ़ी के लिए फैशन तो समझ आता है . कुछ कवि भी अपना प्रचार करने के लिए इसका व्यवसायिक इस्तेमाल कर रहे हैं . लेकिन परिपक्व सुधिजन जब समय जाया करते दिखते हैं तो उनके परिवार वालों के लिए अफ़सोस होता है .
अपनी अपनी पसन्द और क्षमता पर निर्भर करता है वैसे हम तो दोनो जगह बराबर सक्रिय हैं ………और दोनो का ही अपना महत्त्व है।
ReplyDeletefacebook aur blogging sabhi ki apni khubiya aur apni kamiyan bhi...mujhe dono pasand hai :)
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद -A post for all bloggers
फ़ेसबुक की वजह से हम जैसे कुछ ब्लागिंग में आए भी हैं.
ReplyDeleteसमय का पहिया चलता जाए
ReplyDeleteकभी फेस बुक तो कभी ब्लॉग्गिंग हो जाए.
तप, यज्ञ,दान हो तो सभी सार्थक है.
ब्लोगिंग एक प्रकार का सम्मोहन है वासना है .वेंटिलेशन है .एक्नोलिज्मेंट है खुद के होने की पावदी(रसीद )है .
ReplyDeleteखुद के होने का वो एहसास करा देतें है ,
जब कोई पोस्ट अपनी वो ज़माने को पढ़ा देते हैं .
फेस बुक देखने की चीज़ है ,नाभि दर्शना साडी और वक्ष दिखाऊ टॉप सी .ब्लॉग मंथन की चीज़ है .बौद्धिक चारा है .ग्रे मेटर है .एल्ज़ाइमर्स से बचाव का ज़रिया है .खुद का विस्तार है सृष्टि के फैलाव सा ,असीम अकूत बस आदमी में दम हो ,मेहनत का माद्दा हो रविकर दिनकर सा ,अगाध प्रेम हो दराल साहब सा .और बिंदास अंदाज़ हो अरविन्द भाई मिश्रा सा .शिष्य भाव हो वीरुभाई सा .ब्लोगिये और भी हैं समर्पित ब्लॉग कर्म को .....
आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012
ईश्वर खो गया है...!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
हर माध्यम की अपनी विशेषताएं हैं - समझदार वही हैं जो सिलाई के लिए सुई और सब्जी के लिए चाकू इस्तेमाल करें न की जब जो हाथ आ जाए. कविता धाँसू है - पसंद आई.
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, आप का और हमारा अपनी अपनी रुझान पर कोई नियंत्रण नहीं है - यही मानव मस्तिष्क की विशेषता है...
ReplyDeleteतभी तो प्रकृति में विविधता है, और कहावत भी है, "हरी अनंत/ हरी कथा अनंता// कहहि सुनहि बहु विधि सब संता"...
यह परिवर्तन भी सदैव रहनेवाला नहीं. फेसबूक से ब्लॉग को डरने का कोई विशेष औचित्य नहीं है.
ReplyDeleteफेसबुक और ब्लॉगिंग बिलकुल अलग जहनियत रखते हैं.जिन्हें लिखना आता है वे फेसबुक में भी सार्थक लेखन कर रहे हैं और जो अपना किचन-बागान,अपनी पहलवानी दिखाना चाहते हैं,वे फेसबुक और ब्लॉगिंग दोनों जगह कर रहे हैं.यह आपके ऊपर निर्भर है कि आपका 'टेस्ट' क्या है ?
ReplyDeleteबात छोटी हो,गंभीर हो तो फेसबुक में खूब जमती है,ब्लॉगिंग में ज़रा लेखन गंभीर हो जाता है.ऐसा नहीं है कि फेसबुक में गंभीर-विमर्श नहीं होता,असल में शुरुआत होती यहीं से है.
...दोनों जिंदाबाद !
सटीक बात कहती रचना सर...कौन कहता है लोग लिख नहीं रहे हैं सहमत हूँ आपकी इस पोस्ट से आभार :)
ReplyDeleteमोहभंग फिर होगा ..
ReplyDeleteलौट के फिर वही आयेंगे
डॉ साहब व्यंग्य के लिहाज से आपकी कविता तो ठीक है लेकिन उस पर आई कई टिप्पणिया बेहद दुखद हैं। वस्तुतः व्यक्ति को अपने विचार देते जाना चाहिए कोई उस पर टिप्पणी दे या न दे उससे निराश होने की क्या वजह है?ब्लाग जगत मे भी कुछ लोग कुराफाती हैं और फेसबुक पर भी। फेसबुक पर कई विद्वान प्रोफेसर किसी विषय विशेष पर गंभीर विचार प्रस्तुत करते हुये मिल जाएँगे। प्रश्न यह है कि किसकी फ्रेंड लिस्ट मे कैसे लोग हैं। मै गाली-गलौज करने वाले RSS संस्कृति के लोगों,कारपोरेट भक्तों-अन्ना/रामदेव के अनुयायियों को हटा देता हूँ ।
ReplyDelete19-04-2012 को ब्लाग मे 'रेखा' के राजनीति मे आने की संभावना पर ज्योतिषीय विश्लेषण दिया और उसे फेसबुक पर दिग्विजय सिंह जी एवं राहुल गांधी साहब की वाल पर पेस्ट कर दिया और 26-04-2012 को राष्ट्रपति महोदया ने 'रेखा' को भी मनोनीत कर दिया। फेसबुक का सहारा न होता तो वे महाशय मेरा ब्लाग पढ़ने तो न आते। दोनों का अपना-अपना,अलग-अलग महत्व है। गंदे लोग जहां पहुंचेंगे-गंदगी ही फैलाएँगे।
माथुर जी , दिक्कत यह है कि फेसबुक पर गंभीर लेखन करने वाले आप जैसे लोग बहुत कम हैं । अधिकतर मौज मस्ती में ही लगे रहते हैं । इसलिए गंभीर लेखन पर टिप्पणी भी बहुत कम लोग करते हैं । लेकिन ब्लॉग पर सभी तरह के लेखों या रचनाओं को पढ़ा जाता है । हालाँकि टिप्पणियों का आदान प्रदान एक लेन देन ही होता है ।
Deleteवैसे मेरा मानना है कि यदि गंभीर बात को भी मनोरंजक अंदाज़ में पेश किया जाए तो पाठक ज्यादा एन्जॉय करते हैं ।
फेसबुक चित्रहार हैतो ब्लॉग वृत्त चित्र है .फेस बुक टाइम्स का थर्ड पेज है तो ब्लॉग 'हिन्दू 'और 'इन्डियन एक्सप्रेस 'है . kripyaa yahaan bhi padhaaren - रविवार, 29 अप्रैल 2012
ReplyDeleteपरीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलबhttp://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
फेसबुक में गाम्भीर्य होता तो साहित्य का माध्यम बन सकता था वह।
ReplyDeleteयही तो मैं भी कहता हूँ...
Deleteडॉ साहब आपका कहना सही है ,साथ-साथ यह भी सही है कि व्यक्ति-विशेष की मानसिकता पर निर्भर है हल्का या गंभीर लेखन। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार आप चिकित्सक लोग नाईफ का प्रयोग रोगी को स्वस्थ करने हेतु आपरेशन मे करते हैं वहीं लुटेरे नाईफ का प्रयोग आहत करके लूटने मे करते हैं। दोषी नाईफ नहीं वह व्यक्ति है। गलत-सलत लिखने और कमेन्ट करने वाले ब्लाग जगत मे भी है और वह ज्यादा गंभीर बात है क्योंकि ब्लागर्स खुद को बेस्ट भी डिक्लेयर करते हैं। रही बात टिप्पणियों की तो उनसे क्या फर्क पड़ता है?सही बात का समर्थन करने वाले टार्च लेकर ढूँढने पर भी नहीं मिलेंगे और गलत बात के समर्थन मे ढेरों ब्लागर्स दिखाई देते हैं। आप खुद अपवाद हैं लेकिन दूसरे तमाम ब्लागर्स अहंकार मे डूबे हुये हैं।
ReplyDeleteमाथुर जी , दुनिया में सभी तरह के लोग होते हैं . फिर भी , रहना तो इसी दुनिया में है . इसलिए किसी से विचार न मिलने पर भी सौम्यता और शालीनता बनाये रखना बेहद ज़रूरी है .
Deleteअक्सर पढ़ते थे -- भारत और अमेरिका की संयुक्त टिप्पणी -- वी एग्री दैट वी डिसएग्री .
ब्लोगिंग में भी यही रवैया रखना पड़ेगा .
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteक्षमा किजिये गलत पोष्ट पर प्रश्न पूछ रहा हूं! यह लिंक देखीये http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/12922889.cms
यह कह रहे है कि बार बार खाने की बजाये एक बार मे खायें। जबकि मैने सुना है कि थोड़ा थोड़ा बार बार खायें। आप की राय जानना चाहता हूं!
श्रीवास्तव जी , जिस लेख का लिंक आपने दिया है , उसे किसी डॉक्टर ने नहीं लिखा है . हमारे देश की यही विडंबना है की यहाँ पचासों किस्म की चिकित्सा पद्धति में विश्वास करने वाले विभिन्न लोग मिल जाते हैं .
ReplyDeleteस्टोमेक एमप्टिंग टाइम २-३ घंटे होता है . यानि खाने के इतने समय बाद आमाशय खाली हो जाता है . रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक समान स्तर पर बनाये रखने के लिए खाने की अवधि भी निश्चित होनी चाहिए . इसीलिए कम से कम ३ बार खाने की सलाह दी जाती है . लेकिन जो लोग डायबिटिक हैं , उनके लिए और भी ज़रूरी है --small frequent meals . इसलिए उनको ४-६ बार खाने की सलाह दी जाती है . एक बार में ज्यादा खाने से ब्लड ग्लूकोज एक दम बढ़ जाता है . लेकिन थोडा थोडा कई बार खाने से एक स्तर बना रहता है .
केल्रिज इंटेक उतना ही होना चाहिए , जितने की आवश्यकता है . ज्यादा खाने से मोटापा ही बढ़ता है .
फेसबुक पर गति विधियों का एक उदाहरण ---इसे क्या कहेंगे ?
ReplyDeleteSharma Rakesh thanks Kulvinder Grewal, Deepika Aggarwal
22 hours ago · Like · 1
Sharma Rakesh thanks Anita Punjabi, Amit GauRAV,
22 hours ago · Like
Navjot Bhathal only thing, that keep us moving..........
22 hours ago · Like
Sharma Rakesh thanks Gillian, Moon, Bhathal G
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Sharma Rakesh Thanks Saam, Uttam
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Sharma Rakesh Thanks Alok Tiwari
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Sharma Rakesh Thanks March, Karmbir
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Sharma Rakesh thanks Evelyn
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Sharma Rakesh thanks Khush, Shushant
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Lalahoume Larzala Chrifa romantique
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Sharma Rakesh THANKS PARAG, SEHGAL G
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Habib Anis Ahmed 'never dies'
20 hours ago · Like · 2
Corinne Dagos As long as we are alive, hope remains ... Thank you Sharma, hope we will stay friends ***
20 hours ago · Like · 1
Suresh Kapoor Awesum
20 hours ago · Like · 1
Sunny Katyal Nice... :)
19 hours ago · Like · 1
Alam Khursheed ___________
Nice!
18 hours ago · Like · 1
Nick D. Crowley Thank you Sharma, Here's hoping for a brighter future
13 hours ago · Like · 2
Sharma Rakesh THANKS HABIB, ALAM,SUNNY, NICK, CORINNE
13 hours ago · Like · 1
Mihajlovic Vesna hope never dies...
12 hours ago · Like · 1
Lucie Vachon Yes hope is everything
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Alison Leon Marcia Lewis long time hun x x x
11 hours ago · Like · 1
Marcia Lewis too long alison...hope all's well with u hun xx
10 hours ago · Like
Marie Claire Faure Arigato gozaimasu dear ^-^
3 hours ago · Like
यहीं हिन्दुस्तान मार खा गया, डॉक्टर साहिब! वो ज़माने हवा हो गए जब नवाब साहिब फ़ाकते उड़ाया करते थे! भारत में कभी दूध की नदियाँ बहतीं थीं, और दूध की एक बूँद काफी होती है सारे दूध में कितना क्रीम है जानने के लिए - वो अदृश्य उबालने से मलाई बन ऊपर आ जाता है, और अलग से देखा जा सकता है... किन्तु गंदे पानी की एक बूँद से सारे तालाब को नहीं परखा जा सकता, ऊपर केवल काई ही आती है...:(
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteफेसबुक पर सिर्फ सरसरी तौर पर नजर डाली जाती है जबकि ब्लॉग पढ़ा जाता है .एक विहंगावलोकन ,दूसरा सिंह आवलोकन है .कृपया यहाँ भी पधारें
ReplyDeleteसोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
सावधान !आगे ख़तरा है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
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शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
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ब्लोगिग ज्ञान का खजाना है,.फेसबुक टाइम पास करने का बहाना है
ReplyDeletefacebook mein fuhadta jyada hai.........
ReplyDeleteek hi ghisa pita swala karte hai ..kahan se ho... kye karte ho... facebook baut dekha ab to blog padhka achha lagta hai ....
achhi post hai... achha blog hai.
सही कह रहे हैं । ब्लॉग ही सार्थक माध्यम है ।
Deleteआपका स्वागत है । पढ़ते रहिये और लिखिए भी ।
बहुत ही मार्मिक एवं सारगर्भित प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपके एक-एक शब्द मेरा मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ नई उर्जा भी प्रदान करते हैं । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteJCMay 4, 2012 08:39 AM
ReplyDeleteजब सब देख- बोल लिया गया तो, ज्ञानी-ध्यानी बोल गए, "शिवोहम/ तत त्वम् असी"! अर्थात हम सभी बास्तव में अमर आत्माएं हैं!!! कुछ हमें हमारे उद्देह्य से भटका रही हैं, और कुछ जो हमें हमारे गंतव्य की ओर संकेत जकर राजे हैं, बोल कर, अथवा मौन रह कर... 'बाबू समझो इशारे/ हौरन पुकारे...' :)
कुछ तो हिस्सा लिया है फेसबुक ने ब्लोगिंग का ... पर ये तो सदा ही होता रहता है ... कुछ नया पुराना अपना हिस्सा खोता लेता रहता है ... मज़ा आ रहा है ये बाहस पढके ...
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