रविवार का दिन था । श्रीमती जी कहने लगी --जी बहुत दिन हो गए , फूलों को देखे हुए । चलिए कहीं चलते हैं । मैंने कहा भाग्यश्री, ऱोज तो रोज को देखती हो , फिर कहती हो , फूल नहीं देखे । बोली , नहीं जी वो वाला नहीं ,वो वाले । हम समझ गए कि मेडम को पार्क घुमा कर लाना पड़ेगा ।
गाड़ी निकाली और पहुँच गए घर के सबसे पास वाले पार्क --मिलेनियम पार्क में । लेकिन डेढ़ किलोमीटर लम्बे पार्क में पार्किंग के लिए डेढ़ सौ गज ज़मीन भी नहीं थी । जाने क्या सोचा था होर्टीकल्चर डिपार्टमेंट ने । या शायद सोचा ही नहीं ।
खैर , हमने सोचा चलो पुराना किला चलकर बोटिंग करते हैं । यहाँ पार्किंग चिड़िया घर के सामने ही मिलती है । गेट पर पहुंचे तो पार्किंग अटेंडेंट ने पूछा --कहाँ जाना है । हमने कहा -- बोट क्लब । बोला ज़नाब --सब बंद हो चुके हैं --ज़ू भी , पुराना किला भी और बोट क्लब भी । सब साढ़े पांच बजे बंद हो जाते हैं । अज़ीब लगा लेकिन फिर सोचा --चलो चिल्ड्रन्स पार्क चलते हैं इण्डिया गेट पर । वैसे भी वहां बहुत हरियाली होती है ।
रास्ते में ये फूल नज़र आए तो हमने श्रीमती जी को दिखाकर अपना वायदा पूरा किया ।
लेकिन चिल्ड्रन्स पार्क के गेट पर पहुंचे तो गेट बंद पाया । हमने सामने बैठे चौकीदार से पूछा तो पता चला यह भी साढ़े पांच बजे बंद हो जाता है । खीजकर हमने उसी पर सारा गुस्सा निकाल दिया । फिर सोचा , चलो बाहर से ही कुछ फोटो लिए जाएँ अपने मोबाईल से ।
प्ले एरिया ।
मुख्य प्रवेश द्वार से एक नज़ारा ।
यह भी । दूर से ही देख , हम निकल पड़े इण्डिया गेट की ओर । शाम का धुंधलका हो चुका था ।
पश्चिम में सूरज डूब रहा था ।
डूबते सूरज की चमक , इण्डिया गेट की प्रष्ठ भूमि में ।
एक पेड़ के साथ भी ।
इण्डिया गेट पर भी एक बोट क्लब है । हालाँकि फव्वारा बंद था ।
श्रीमती जी की बड़ी तमन्ना थी कि बोटिंग की जाए , लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि कई घंटे का इंतजार करना पड़ता ।
इसलिए विचार त्याग दिया । इस बीच मेडम चना जोर गर्म ले आई । हमने श्रीमती जी से कहा --क्यों न चने खाते हुए एक फोटो हो जाए । लेकिन हमारी गाय्नेकोलोजिस्ट पत्नी के हाथ भले ही महिलाओं के पेट काटते हुए कभी नहीं कांपते , परन्तु हमारी फोटो खेंचते हुए ऐसे कांपे कि फोटो में हमारी जगह हमारा भूत नज़र आ रहा था ।
अब तक लाइट्स जल चुकी थी । सामने यह ठूंठ देखकर बड़ा अचरज़ हुआ ।
एक फोटो पीछे से लेकर हम निकल पड़े घर की ओर । लेकिन मेडम की पसंद की आलू कचालू चाट , और आईस क्रीम खाने के बाद ।
नोट : ऐसा लगता है , सुरक्षा की दृष्टि से सभी पब्लिक एरिया जल्दी बंद कर दिए जाते हैं । हालाँकि गर्मियों में घर से शाम को ही निकला जा सकता है ।
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फिर छिड़ी रात बात फूलों की …
आदरणीय डॉ.दराल भाईजी
आभार मानते हैं भाभीजी का !
… इतनी ख़ूबसूरत तफ़रीह् हो गई हमारी भी … :)
आपके हृदयों की सुंदरता शामिल हो गई है इस ख़ूबसूरत पोस्ट में
आभार !
*महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सिद्धहस्त हैं आप फोटोग्राफी के.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत और फिर आपका अंदाज़े बयाँ .. क्या कहने
मैडम को अंग्रेजी का फूल नहीं हिंदी वाला देखना था........
ReplyDeleteऔर आप केक्टस ही दिखा पाए!!!!!
your fotography is excellent...........
specially light effects.....
thanks for the lovely post.
regards.
राजेन्द्र जी , वर्मा जी , अनु जी -- जैसा कि जे सी जी ने कहा , खूबसूरती देखने वाले की आँखों में होती है । लेकिन लगता है कि कैमरा मनुष्य की अपेक्षा सौन्दर्य को बेहतर समझता और उजागर करता है ।
Deleteवाह!बहुत शानदार सैर करा दी जी आपने.
ReplyDeleteखूबसूरत फोटो दिल लुभा रहे हैं.
महावीर जयंती व् हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कहीं चाँदी, कही सोना, कहीं अंधेरे में सूरज। वाह ! क्या खूब तश्वीरें हैं!
ReplyDeleteAakhir foolo ke darshan ho hi gae ...
ReplyDeleteबढ़िया दिल्ली दर्शन ...बढ़िया चित्र |आखिरी वाला सबसे अच्छा है ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ..!
जी , आखिरी दो में रंगों में स्वाभाविक अंतर दिखाई दे रहा है ।
Deleteपांच बजे का बंद करने का टाइम तो वाकई जल्दी है.पर फिर भी इंडिया गेट की तस्वीरें गज़ब ढा रही हैं.
ReplyDeleteचित्र बड़े अच्छे लगे। सरकार कितनी महान है कि सुरक्षा की हालत इतनी खराब होने के बावजूद पाँच बजे के बाद भी जनता को सड़क पे निकलने दे रही है। :)
ReplyDelete:):)
Deleteडॉक्टर तारीफ सिंह जी, काबिले तारीफ है आपका कैमरा और आपका दृष्टिकोण... एक कलाकार कीं नज़रें हैं आप की... और कहावत भी है कि सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती हैं... और आपने 'पिछला रविवार' कह सीधे अप्रैल फूल दिवस नहीं कहा - और संयोगवश आप फूल देखने निकल पड़े...
ReplyDeleteहा हा हा ! जे सी जी , दरअसल यह २५ मार्च वाला रविवार था । फ़ूल्स डे पर भला फूल देखकर क्या करते ! :)
DeleteJCApr 5, 2012 06:55 PM
ReplyDeleteडॉक्टर तारीफ सिंह जी, काबिले तारीफ है आपका कैमरा और आपका दृष्टिकोण... एक कलाकार कीं नज़रें हैं आप की... और कहावत भी है कि सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती हैं... और आपने 'पिछला रविवार' कह सीधे अप्रैल फूल दिवस नहीं कहा - और संयोगवश आप फूल देखने निकल पड़े...
sunder aalekh. jo kisi ka man moh le wo sunder photo ... badhai ho...
ReplyDeleteतो मैडम ..आदरणीय भाभी जी स्त्री रोग विशेषग्य हैं -यह परिचय तो आज मिला !
ReplyDeleteकितने राज छुपाये हैं आपने हमसे ...
अरे हाँ ,फूल के बहाने नायाब चित्रकारी भी देख ली हमने !
आपने बरसों पुरानी याद दिला दी जब बच्चों का दिल बहलाने चिल्ड्रेन पार्क तथा इंडिया गेट जाते थे ! फोटोग्राफी के लिए साथ फोटोग्राफर ले जाया करो इसके लिए बन्दा हाज़िर रहेगा ! :-)
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
अरविन्द जी , जिंदगी खुद सबसे बड़ा राज़ है ।
Deleteसतीश जी , अब बड़ों का दिल बहलाने जाया करिए ।
जब बंदी का साथ हो तो बंदा कहाँ याद आता है । :)
डॉक्टर साहिब, हमें तो मालूम था क्यूंकि हम एक बारी टिप्पणी कर देते हैं तो दिन में कई बार आते हैं किसी एक ब्लॉग पर - यह देखने के लिए कि कहीं किसी ने कोई प्रश्न आदि न पूछा हो... यह भी मालूम है कि उन्होंने स्वयं केवल एक लायक बेटा और एक बेटी को ही जन्म दिया, किन्तु संभवतः हजारों माताओं की सहायता की होगी भारत माता के परिवार, जनसंख्या, की वृद्धि में... भारत में/ अस्पतालों में भी, नवजात बच्चों की क्या दुर्गति/ लडाइयां हो रहीं हैं वो टीवी देखने वालों से छिपा नहीं है...
ReplyDeleteजे सी जी , हमारे देश में बच्चे जितने मर्ज़ी हो जाएँ , जच्चा की उम्र २० से ज्यादा नहीं लिखाई जाती । :)
Deleteक्या बात है ...बहुत खूबसूरत बहुत बढ़िया फोटोग्राफी....जवाब नहीं आपका दराल साहब
ReplyDelete...फोटुओं में कहीं ज़्यादा समाया हुआ है,खासकर सूर्यास्त के समय इंडिया गेट वाली !
ReplyDeleteआप घूमते भी बहुत हैं......
सैर के वर्णन के बहाने सुरक्षा पहलू को भी बड़ी बारीकी से छू लिया है। वह विशेष विचारणीय बात है।
ReplyDeleteमाथुर जी , यह देख कर हमें भी बड़ी हैरानी हुई थी ।
Deleteफूल सुबह खिलते हैं और इन्हें सुबह ही देखा जाना चाहिए। अब आप निकले शाम को तो फिर कपाट तो बन्द मिलेंगे ही ना। वैसे प्रकृति को और समाज को भी दुनिया डॉक्टरों के हिसाब से चलानी चाहिए।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत, बधाई.
ReplyDeleteसुरक्षा की दृष्टि से सारे दर्शनीय स्थल बंद कर दिये जाएँगे तो कौन देख पाएगा ... चित्र बहुत मनमोहक हैं ....
ReplyDeleteस्कूल के दिनों में पढ़ा था, एक कवि ने प्रश्न चिन्ह लगाया था, कि रेगिस्तान में फूल क्यूँ खिलते हैं, जहां उन की सुन्दरता को देखने और उनकी खुशबु का आनंद उठाने वाला कोई आदमी नहीं होता??? (शायद प्रश्न उठाते कि क्या प्रकृति आदमी के लिए ही बनी है???)
ReplyDeleteछोटा बच्चा रंगीन तितलियों के पीछे दौड़ता है, उन्हें पकड़ता भी है, और बड़ा हो शायद उन्हें देखना भी छोड़ देता है, यद्यपि संभव है दीवार पर किसी चीनी मिटटी की तस्तरी पर उसे चिपका के सजाता हो... कई पेड़-पौधों में, अथवा गुलदान / कोट में लगे, फूलों के तो आँखों के माध्यम से दिल को आनंद पहुंचाने के अतिरिक्त भी कई लाभ हैं - जैसे सूंघ कर आनंद उठाने हेतु इत्र बनानेमें ; खा कर पेट को लाभ पहुँचाने के लिए गुलकंद, आदि, अदि, में उपयोग कर; और कई मखमली फूल स्पर्श के द्वारा.... इत्यादि, इत्यादि... ...
जे सी जी , ओशो ने कहा था --क्या कभी फूलों को देखा ? कभी ध्यान से देखिये , यह भी एक मेडिटेशन होता है । रंग बिरंगे फूल ही तो हैं जो नीरस जिंदगी में रस घोल देते हैं । हालाँकि --
Deleteविकास की जो इन्तहा हो गई
खो गई खुशबू गुलाबों की ।
सेना के कूच का डर रहता है नै दिल्ली को . आपकी आँख और मन केमरे की जुबां से बोलता है बढ़िया छवि अंकन दिल्ली का .
ReplyDeleteJCApr 5, 2012 11:31 PM
Deleteमृत्यु का भय हर प्राणी / आदमी को विभिन्न रूपों में उम्र भर सताता है, और प्रकृति में अनंत स्रोत हैं भय के, जिन्हें शायद गिनाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए... मच्छर भी डर से पूरा पेट भरे ही उड़ जाता है, ऐसा मैंने जाना जब मैंने उसे टंकी फुल करने की अनुमति दे दी थी सन '८० में गुवाहाटी में, और मैं बोर हो गया जब कई मिनट गुजर गए और वो छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था...:) और आठवीं कक्षा के (एक देश के बंटवारे के बाद दिल्ली आये) एक सिख टीचर (गुरु) ने सिखाया था कि हर ओब्सर्वेशन के बाद 'कन्कुलूइयन' आवश्यक है...:)
nice pics...
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, 'यहीं तो हिन्दुस्तान मार खा गया'!
ReplyDeleteयोगियों/ सिद्धों आदि ने, गहराई में जा, जाना कि आरम्भ में पृथ्वी अग्नि का गोला थी - जो 'सत्य' आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी जाना है, किन्तु इसी सत्य को उन्होंने घुमा कर, 'जिनके ह्रदय में माँ काली का निवास है', शिव का रौद्र रूप कहा, क्यूंकि उन्होंने हमारे सौर-मंडल (महाशिव) के मुख्य सदस्य धरा/ पृथ्वी के उत्पत्ति के पश्चात, अमृत ग्रहण कर, अमृत रूप को 'गंगाधर' शिव कहा, जिन्होंने आरम्भ में 'सागर मंथन' द्वारा जनित हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया, और नीलकंठ कहलाये, जिसे आज शुक्र ग्रह समझा जा सकता है, क्यूंकि उस के वातावरण में विषैले पदार्थ आज भी देखे जा सकते हैं...
आपकी फ़ोटोग्राफ़ी और दास्ताँ-ए-सफ़र गज़ब की है।
ReplyDeleteachhi sair hui ...
ReplyDeleteउनकी पसंद का एक भी कम नहीं किया आखिर आपने :)...
ReplyDeleteतस्वीरें अच्छी लगी !
वाणी जी , सारे काम उनकी पसंद के ही थे । विशेष कर आखिरी पंक्तियाँ देखिये । :)
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ छठवें नम्बर का फोटो ,
Deleteइस वक़्त सूरज कितना मजबूर नज़र आ रहा है ! बिल्कुल आंसू के एक कतरे जैसा ! अंधेरे में समाने से पहले उसने अंधेरे के उस तिकोने से गर्त में घुसने लायक शेप बना लिया है , खुद का ! सुबह के बचपने से लेकर दोपहर जवां होने के बाद तक , ढलते दिन की उम्र वाले सूरज की मजबूरी को कैमरे में क़ैद करने का हुनर आपके सिवा किसमें हो सकता है भला !
इस 'वक़्त' पर जे.सी.जी की खामोशी हैरान कर रही है ! दुनिया को अपनी रोशनी से जीवन देने वाले सूर्य देव अगली सुबह के नवजीवन से पहले अन्धकार की आगोश में खामोश / मजबूर / लगभग सिसकते हुए एक वृद्ध जैसे , जिसे उसके ही बच्चों से कोई उम्मीद ना रही हो गोया ! टूटा टूटा थका हरा सा मुसाफिर समर्पण को तैयार ! उसे क्या पता था कि उसकी रौशनी से जीवन पाये फूलों को देखने की ख्वाहिश लेकर निकला एक चिकित्सक युगल उसके अंत का फोटो तुरंत उतार लेगा और उसे सारे जग में रुसवा कर देगा !
अभी गौर कर रहा था कि सूरज के बीचो बीच एक सफेद रंग का न्यूक्लियस उसके बाकी रंग से अलग , निचुड कर नीचे टपकने को तैयार सा लगता है , ठीक ऐसे ही हम भी बिलख पड़ते होंगे अपनी मजबूरियों और दर्द के आलम में !
सूरज ने अपनी आख़िरी घड़ियों से पहले सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इंसान उसकी जगाई और बनाई हुई दुनिया में कार पार्क करने की जगह ढूंढेगा ! पानी का रंग बद से बदतर हरा होने पर भी उसे फ़िक्र नहीं होगी और वो , बोटिंग करने , अधिकारियों को छोड़ गरीब चौकीदारों को डांटने और खुशदिल अहलिया को , सड़क पर के फूलों ,एक नग कौवे और ऑटो दिखा कर बहलाने की, कोशिश करेगा !
आखिर आप भी धोखा खा ही गए अली जी । छठे फोटो में सूरज उतना ही है जितना सातवें में । जो बड़ा दिख रहा है वह सूरज की चमक है जो सिर्फ कैमरे से ही दिखाई दे रही है , प्रत्यक्ष रूप में आँखों से नहीं । और सूरज कभी डूबता या छिपता नहीं , बस दूसरी जगह चला जाता है , वहां की दुनिया को रौशन करने । सूरज की ड्यूटी तो २४ घंटे रहती है ।
Deleteसुबह की शिफ्ट में नर्म गर्माइश , दोपहर की शिफ्ट में तपिश और ऊर्जा और शाम की शिफ्ट में पृथ्वी को रंगों से सरोबार कर दुनिया में खुशियाँ फैलाता है ।
सूरज वहां रोज इसी रूप में दिखता होगा । हजारों सेनानी उसे अपनी आँखों में भर लेते होंगे । कुछ हमारे जैसे कैमरे में कैद कर उसकी छटा को और भी सुन्दर बनाते होंगे । उसे किसी से कोई शिकायत हो ही नहीं सकती ।
और हाँ , आखिरी फोटो में चाँद को देखना भूल गए मियां ! : )
अली जी, याद करने के लिए शुक्रिया (शुक्र ग्रह का संकेत, जिस का सार मानव कंठ में, शब्द ॐ अर्थात साकार ब्रह्माण्ड के बीज मन्त्र का स्रोत, जाना/ माना गया है, और जो भौतिक संसार का राजा भी है ('भारत' में इश्वर के पुत्र, अथवा पैगम्बर/ शिव पुत्र, छः मुखी मोर वाहक कार्तिकेय / दक्षिण में मुरगन अथवा शनमुघम...:)... और विषैले शुक्र ग्रह को सांकेतिक भाषा में शिव-पार्वती के दबंग अंग-रक्षकों के, 'राक्षसों' के, गुरु शुक्राचार्य भी कहा जाता है... किन्तु सिद्धों के शब्दों में इस स्थान को विशुद्धि चक्र (सोने को अग्नि द्वारा कुंदन में परिवर्तित करने समान) कहा जाता है... और योगियों ने मानव शरीर में आठ चक्रों में बंटी कुल शक्ति को मस्तक तक उठाने को ही मानव का एक जीवन में उद्देश्य जाना/ माना... जिस कार्य में गले पर स्थित 'विशुद्धि चक्र' को एक 'चैक-पोस्ट' समान कार्य करते देखा, जिस से कुल शक्ति मस्तक तक आसानी से न उठ पाए हर 'आम आदमी' में जिसकी संख्या कलियुग में सबसे अधिक मानी गयी है और जो किसी भी 'गणतंत्र' कहलाने वाले राज्य में 'मेजोरिटी' के कारण राज करता है... और सिद्ध आदि की परिक्षा अधिम होती है...:)... और यह उसी किसी बिरले में ही संभव है जब पृथ्वी, साकार शिव, त्रिनेत्रधारी, का सार, जो 'अजना चक्र' में स्थित है, उस से आज्ञा न मिल जाए..:)...
Deleteडाक्टर साहब ,
Deleteसूरज के लगातार होने से कौन इंकार कर सकता है भला पर ...कुछ बातें प्रतीकात्मक तौर पर कही जाती हैं जैसे उसका डूबना ,उसका उगना यानि उसकी मृत्यु और पुनर्जन्म :)
जीवन के हर क्षण में हम वैज्ञानिक सोच ( मन ) लेकर नहीं जीते इसलिए प्रतीकों को प्रतीकों के रूप में ही एन्जॉय किया जाये बस ! मसलन मोहब्बत के खास पलों में हार्मोन्स के बारे में कौन सोचता है :) उस वक़्त हम अपने पार्टनर को जो भी कहते हैं उसकी वैज्ञानिक शल्यक्रिया करने का वक़्त किसके पास होता है :)
आप छठवें फोटो में सूरज के साउथ पोल को गौर से देखियेगा ! आपको नहीं लगता कि कैमरे ने एक बूँद सी टपकती हुई रिकार्ड की है :) फिर उसे पूरे फोटो के साथ मिलकर देखिये !
पहली टिप्पणी इतनी लंबी हो गई थी कि दूसरे फोटोग्राफ्स पर टिपियाने का हौसला नहीं किया :)
This comment has been removed by the author.
Deleteअली जी, सही कहा! प्रकृति कहो अथवा भगवान्/ खुदा, आदि आदि (अपनी अपनी मान्यतानुसार), मानव जीवन तो प्रतीकात्मक ही है... मैंने पहले भी कहीं लिखा था कैसे हर दिन सूरज रोज सुबह उगता है (मुर्गा बांग देता है, पक्षी चहचहाना आरम्भ कर देते हैं), शिखर पर पहुंचता है (दिन के बारह बजे), और फिर धीरे धीरे पश्चिम की ओर (जिसका राजा शनि ग्रह है) बढ़ते हुए 'डूब' जाता है, सुनहरे और अंत में लाल रंग लिए, जैसा वो सुबह सुबह भी दिखता है... ऐसे ही नदियों के उद्गम से (भारत की मुख्य नदियों, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र के उत्तर दिशा में स्थित मानसरोवर से दक्षिण में स्थित) सागर तक की यात्रा भी मानव जीवन के विभिन्न पहलू सी दर्शाती हैं, और इसे कवि भी विभिन्न शब्दों में दर्शाते आये हैं...
Deleteऔर जैसे एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के स्वभाव में अंतर प्रतीत होतां है, वैसे ही भले वो एक ही ब्रांड की क्यूँ न हों, मशीनों में भी अंतर दिखता है/ और विभिन्न ब्रांड की विशेषता को बताया भी जाता है माल बेचने वालों द्वारा... जो कारण बनता है इस सोच कि 'इसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद कैसे है?' और यूँ चूहा दौड़ का आनंद उठाते हैं सभी, यह भूल की शायद यह हमें भटका रहा हो अपने वास्तविक गंतव्य से...:)...फकीर की भी उपस्थिति ही केवल कुछेक को किसी स्टेज पर जीवन का अर्थ सोचने के लिए मजबूर करे...:)
मानव जीवन प्रतीकात्मक है, लाइन के बीच पढने का प्रयास करें तो, डॉक्टर साहिब ने भी लिखा, " श्रीमती जी की बड़ी तमन्ना थी कि बोटिंग की जाए...", और 'संयोगवश' प्राचीन मान्यतानुसार धर्मपत्नी, अर्धांगिनी, नाव का काम करती है भवसागर पार कराने में!!! हिन्दुओं ने कहा 'राम ने केवल कुछेक राक्षसों को ही तारा, जबकि उन के नाम ने असंख्य लोगों को', और सिख "नानक नाम जहाज है" कहते हैं... आदि, आदि...
Deleteसोचता हूँ इस पोस्ट का शीर्षक 'कर्ता की तालाश में भटकते रहे हम मंदिर-मंस्जिद' भी पढ़ा जा सकता है (?)...
वो कहते हैं ना ...फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं /तेरे आने के ज़माने आये .........बस मुझे क्या सब को फूलों से प्यार होता है ....आपकी पोस्ट बहुत मनमोहक लगी फूलों की तरह ...
ReplyDeleteit is so irritating to go out and end up finding all places closed :P
ReplyDeletelovely captures !!
When 'I" was young, 'I' used to read about achievements of ancient Hindus to the extent that Siddhas could walk on water! and so on... And, used to hear 'my' generation irritatingly blame the 'oldies' who had believably died without passing on the knowledge to the future generations, us, while we watched the US to prosper materially, but still haven't been able to do what our ancestors reportedly did and they are now looking towards 'India' for inspiration!...
DeleteP,S, Maybe one should like to also have the knowledge of 'The Dark side of Progress'. Vide link:
Deletehttp://dawn.com/2012/03/18/capitalism-a-ghost-story-2/
आँखों देखा मजेदार वर्णन .....
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरे और वर्णन!!
ReplyDeleteफूल प्रतीक हैं उत्सव के,लालित्य के। उनके बीच बिताया पल एक प्रसाद है। जीवन में जिसे यह उपलब्ध हो जाए,उसे और क्या रह जाता है शेष पाने को!
ReplyDeleteसही कहा! "सच्चाई छुप नहीं सकती कभीं बनावट के असूलों से/ कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से"!!!
Deleteआदमी अद्भुत है! किन्तु सरल शब्दों में कहें तो है तो 'माटी का पुतला' ही!!!
पूर्वजों के शब्दों में, यह 'माया' तो निराकार भगवान्, हरि विष्णु, की है! जो खुद तो शेष शैय्या पर लेटा- लेटा अपनी 'तीसरी आँख ' में अपनी ही, अनंत रूपों में, भूत में की गयी मूर्खता का आनंद बार-बार उठाये जा रहा है अनंत काल से अनंत काल तक...:)
(एक पात्र, खुशवंत सिंह, ने भी कहा कि आज हम खुद अपने ऊपर, पहले समान, हंस सकने में असमर्थ हैं...:)...
"हरि अनंत / हरी कथा अनंता...", भी कह गए ज्ञानी -ध्यानी!
इसलिए प्रश्न है अपने मन को साधने का कि जो दिख रहा है वो सत्य नहीं है / जो सत्य है वो दिख नहीं सकता क्यूंकि वो निराकार है - वो सद्चिदानंद है, जैसे फूल के रंग, खुशबू आदि महसूस कर हमारा दिल बाग़-बाग़ हो जाता है क्षण भर के लिए ही सही...और वो भी शून्य काल से ही जुदा है...:)
JCApr 8, 2012 06:05 PM
Deleteपुनश्च - वैसे तो 'माया' के कारण एक दम उलट प्रतीत होते हैं, कृपया जुदा = जुड़ा पढ़ें...:)
'धनुर्धर', त्रेता में राम, और द्वापर में अर्जुन, दर्शाते हैं कि वे प्रतीक हैं सूर्य के...
Deleteऔर हिन्दू मान्यता "योगेश्वर विष्णु की नाभि से उत्पन्न 'कमल के फूल' (प्रथम पुष्प) पर विराजमान - (प्रथम अज्ञानी फूल, ब्रह्मा" को, जो अज्ञानतावश भयग्रसित हो बैठा विष्णु के कान से उत्पन्न होते राक्षसों को देख?!) - द्वारा 'हम', सृष्टि के आरम्भ मैं पृथ्वी के केंद्र में संचित शक्ति को विष्णु और दिन में आकाश में सूर्य को ब्रह्मा - और रात में साकार पृथ्वी को योगेश्वर शिव और वीणा वादिनी सरस्वती को चंद्रमा के प्रतीक समझ सकते हैं...:)
क्या आप अभी भी 'पश्चिम' से आशा लगाए बैठे हैं आपको 'परम सत्य', निराकार परमेश्वर - तक पहुंचाने में???...:)
इस वर्ष, २०१२, पहली अप्रैल को राम नवमी भी थी, और 'माया संस्कृति' ने यह तिथि २१/१२/२०११२ दर्शाई थी ...:)
आप अक्सर कैमरे से कई खूबसूरत लम्हे पकड़ते रहते हैं ... ये भी चित्र उसी सिलसिले की अगली कड़ी हैं ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया बहुत ही ...
हमारे दिल्ली प्रवास की यादें ताज़ा कर दीं डॉ साहब आपने .जहां हम इसी चिल्ड्रन पार्क के सामने जोधपुर ऑफिसर्स होस्तिल में rahte थे .,जिसकी एक दीवार पंडारा रोड पर है .
ReplyDeleteकेमरे में संजोया हर एक लम्हा लाजवाब लगा
ReplyDeleteआपकी हौसला अफजाई से सेहत के मामलों को प्रामाणिकता मिल जाती है .फूल खिल जातें हैं' राम राम भाई' पर .शुक्रिया डॉ. साहब .
ReplyDeleteडॉ साहब सात्विक भोजन में आईस क्रीम और चाट शामिल नहीं ......:))
ReplyDeleteis jindadili ko slam.....!!
जी कभी कभी हम भी रोमांची खा जाते हैं :)
Deleteअच्छा जी आज कल इंडिया में भी 5 बजे ही सब बंद होने लगा?? अजीब लगा जानकर खैर सभी तस्वीरें बहुत अच्छी हैं। आपकी ऐसे दिल्ली भ्रमण वाली छोटी-छोटी पोस्ट्स मेरे दिल्ली की सभी यादों को एक दम से ताज़ा कर जाती है।
ReplyDeleteउम्र का फ़ासला बहुत है,अन्यथा क्या बताएं कि हम क्या कहना चाहते थे!
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