ल्ली जैसे शहर के व्यस्त जीवन की आपा धापी में अक्सर लोग तनाव ग्रस्त रहते हैं . ऐसे में शॉर्ट ब्रेक लेकर घर से बाहर निकल किसी शांत जगह जाकर कुछ समय बिताना एक स्ट्रेस बस्टर का काम करता है . यूँ तो दिल्ली के पास बहुत से ऐसे स्थान हैं जहाँ वीकेंड पर जाया जा सकता है . लेकिन एक ऐसी जगह है जो न सिर्फ धार्मिक पवित्र स्थल माना जाता है बल्कि वहां जाकर एक परम शांति का अहसास होता है. साथ ही रोमांस और रोमांच की अद्भुत कॉकटेल आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाएगी जिस की आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी .
दिल्ली से मात्र २०० किलोमीटर और ४ घंटे के सफ़र की दूरी पर है हरिद्वार . यहीं पर है चिल्ला वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी जो राजा जी नेशनल पार्क का एक हिस्सा है . दिल्ली से हरिद्वार पहुंचते ही बायीं ओर हैं गंगा घाट यानि हर की पौड़ी . ठीक इसके विपरीत दायीं ओर , गंगा पार फैला है चिल्ला फोरेस्ट . हर की पौड़ी से करीब ८-९ किलोमीटर दूर जंगल के बीच बना है --चिल्ला रेस्टहाउस -- जिसे गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा १९८१ में बनाया गया था . नदी पर पुल पार करते ही एक सडक बायीं जाती है जो जंगल से होती हुई आपको ले जाएगी इस आरामदायक रेस्ट हाउस में .
यहाँ एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्लांट है जिसमे बिजली पैदा की जाती है . इसके लिए हृषिकेश से एक केनाल बनाई गई है जिसमे गंगा का पानी बहता है .
इसी केनाल के किनारे पावर प्लांट के सामने बना है चिल्ला रेस्ट हाउस .
यहाँ रहने के लिए ऐ सी कमरा ( १९०० रूपये प्रतिदिन ) , नौंन ऐ सी कमरा ( १५०० ), हट्स (१२००) और डोरमेट्री २०० रूपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलती हैं .
रेस्ट हॉउस के गेट के सामने एक छोटा सा लेकिन बहुत खूबसूरत बगीचा है जहाँ टेबल चेयर पर बैठकर आप शाम की चाय या खाने का लुत्फ़ उठा सकते हैं .
मून ने हनी का फोटू उतारा तो बन गया हनीमून .
यहाँ ६ हट्स बनी हैं जिनमे सारी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं .
हट्स के सामने एक बड़ा पार्क है जहाँ खुले में या झोंपड़ी के नीचे बैठकर चाय पकोड़े खाने में बड़ा मज़ा आएगा .
खाने के लिए एक रेस्ट्रां है जहाँ विनोद रावत जी आपको घर जैसा स्वादिष्ट खाना अपने हाथों से बना कर खिलाएंगे .
रेस्ट्रां की बड़ी बड़ी खिडकियों से बाहर का नज़ारा बेहद खूबसूरत नज़र आता है . हरा भरा पार्क , बाहर सड़क औरउसके बाद नदी . नदी के पार का घना जंगल आप यहाँ बैठे बैठे ही देख सकते हैं .
खाने के बाद झूले पर बैठकर आप कुछ पल शांति के साथ बैठ परम आनंद की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं .
रेस्ट हाउस के कॉम्प्लेक्स के बाहर सड़क है जो केनाल पार कर हृषिकेश की ओर जाती है .
रेस्ट हाउस के सामने केनाल के साथ साथ रात में डिनर के बाद टहलते हुए एक दिव्य आनंद की अनुभूति होती है . बिल्कुल शांत और सुनसान लेकिन पूरी तरह से रौशन जंगल के बीच चहलकदमी करते हुए आप भूल जायेंगे दीन दुनिया को .
रेस्ट हाउस और केनाल के बीच एक सड़क है जो लगभग आधा किलोमीटर दूर तक केनाल के साथ जाती है . इसके बायीं ओर एक बरसाती नदी है जिसका पाट काफी चौड़ा है ।
इसके आखिरी छोर पर दोनों नदियाँ मिल जाती हैं . यह स्थान बेहद खूबसूरत अहसास देता है . दायीं तरफ कल कल बहती नदी , बायीं तरफ सूखी नदी , सामने समतल मैदान में मिलती दोनों नदियाँ और चारों ओर घना जंगल . कुल मिलकर एक स्वर्गिक आनंदमयी अहसास .
भला पृथ्वी पर कोई और ऐसी जगह है शहर के इतने करीब ।
इंसान के दिल में चार कक्ष ( चैंबर ) होते हैं . एक में बुजुर्गी अनुभव रहता है , दूसरे में ज़वान धड़कनें बस्ती हैं और तीसरे में हमेशा एक बच्चा रहता है ।
बच्चे बन कर हमने भी नदी में कंकड़ फेंके .
एक अर्से के बाद ऐसा करने का अवसर मिला .
चौथा कक्ष मेहमानखाना होता है . हमारे इस कक्ष में रहता है एक कवि .
कवि जो अपनी कल्पना को हकीकत का ज़ामा पहना कर रचना का निर्माण करता है जिसे दुनिया वाले कविता कहते हैं और हम रेखा .
रेखा --हमारी मर्यादा की रेखा .
जैसे कोई पहाड़ी लड़की किसे के इंतज़ार में बैठी हो .
नदिया के पार --दूसरे किनारे पर भी ऐसी ही सड़क है . लेकिन सड़क के पार है घना जंगल . यह प्रतिबंधित क्षेत्र है लेकिन पैदल घूम सकते हैं . हालाँकि एक तरफ नदी , दूसरी तरफ घने जंगल के बीच सड़क पर घूमने के लिए बहुत बड़ा ज़िगर चाहिए . हम तो १०० मीटर जाकर ही फोटो खींच कर वापस हो लिए-- यह सोचते हुए की -- हम तुम इक जंगल से गुजरें , और शेर आ जाए -- तो शेर से क्या कहेंगे ? इस धर्म संकट से बचने के लिए वापस मुड़ना ही बेहतर समझा .
कुल मिलाकर यहाँ बिताये तीन दिन और दो रातें अपने आप में एक ऐसा अनुभव है जिसे महसूस करने के लिए आप को स्वयं जाना पड़ेगा .
लेकिन यह सुखद अहसास तभी संभव है जब --
मन में उमंग हो
तन में तरंग हो .
दिल में खुमार हो
आपस में प्यार हो .
वर्ना बीबी से यही सुनना पड़ सकता है -- अज़ी बोर कर दिया . कहाँ जंगल में ला कर पटक दिया .
---क्रमश:
---क्रमश:
जब आपसे सुन लिया और देख भी लिया,फिर हमें पर्यटन विभाग से और कुछ नहीं पूछना।
ReplyDeleteयह एक जीवंत यात्रा-संस्मरण है जिसमें प्रकृति की सुषमा और अनंत के प्रति मानव-मन की जिज्ञासा- दोनों का समावेश है।
पत्थर से टकराकर निकलती छप-छप की ध्वनि से न जाने कितने लोग दर्शन की गहराईयों तक पहुंचे हैं। फिर उसके इर्द-गिर्द की सुरम्य वादियों को भी मानो किसी सहृदय का ही इन्तज़ार रहता है।
सुन्दर काव्यमयी टिप्पणी ।
Deleteदराल साहब खूब कोशिश करने पर भी गंगा नहर के आर-पार पत्थर नहीं फ़ैंक पाये होंगे।
ReplyDeleteयार कुछ बातों पर तो पर्दा पड़ा रहने दो भाई । :)
Deleteवैसे केनाल की चौड़ाई १०० मीटर से कम नहीं होगी ।
सो आपने अपना हनीमून भी पब्लिक को बता दिया ....
ReplyDeleteमुबारक हो इस जवानी में भी इतनी गर्मजोशी रखते हो...
आपसे जलन हो रही है भाई जी !
चिल्ला जरूर जायेंगे , नहर के पास पत्थर फेंकेंगे , फोटू खींचेंगे !
शुभकामनायें आपको !
खुले दिल से जाना भाई । ज़रूर एन्जॉय करेंगे ।
Deleteवाह!'रोमांस और रोमांच की अद्भुत कॉकटेल'!
Deleteपश्चिमी भाषा में 'मून' का वर्तमान में अर्थ चन्द्रमा होता है, किन्तु यूरोपीय भाषा में, प्राचीन काल में, इसका अर्थ है एक 'माह' अर्थात एक महीना***... और 'हनी' अर्थात शहद से बनी एक शराब का एक माह का कोटा नव विवाहित जोड़े को दे दिया जाता था...:)
...
***(चंद्रमा के चक्र के अनुसार लगभग २९+ दिन (?), जो १२ माह एक एक वर्ष के अनुसार लगभग ३५४ दिन का होता है जबकि सूर्य के अनुसार ३६५+ दिन, अर्थात एक वर्ष में ११ दिन का अंतर, जिस कारण जैसे इसे सुधार हेतु हर चौथा वर्ष ३६६ दिन का माना जाता है, भारत में पंचांगों में एक 'अधिक मास' द्वारा सही कर लिया जाता है... और चंद्रमा को शिव के मस्तक पर भी दिखाया जाता है संकेत करते इसे मानव 'मन-रुपी-मानसरोवर' से और माँ गंगा से सम्बंधित होने का)...
वाह जे सी जी ! हम भी सोच रहे थे की अभी तक किसी ने हनिमून का सही शाब्दिक अर्थ नहीं बताया . आभार इस ज्ञानवर्धन के लिए . सुन्दर व्याख्या .
Deleteक्या बात है ...जगह लेखन के लिए एकदम परफेक्ट लग रही है और आपकी रचनात्मकता दिख भी रही है..:) (@कवि जो अपनी कल्पना को हकीकत का ज़ामा पहना कर रचना का निर्माण करता है जिसे दुनिया वाले कविता कहते हैं और हम रेखा .).
ReplyDeleteये हट्स भी शानदार लगीं.
शहर के समीप इतना एकांत मिलना वास्तव में बहुत दुर्लभ होता है शिखा जी ।
Deleteबहुत खूबसूरत यात्रा संस्मरण्।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत....
ReplyDelete-एक तो जगह..
-दूसरी प्रस्तुति
-तीसरी फोटोस
-चौथी पहाड़ी "लड़की"(a woman is really lucky if her husband calls her a "ladki"after 23 years of marriage....)
-पांचवा गेस्ट हाउस
-और last but not the least....
your love and enthusiasm.....
may god bless the lovely couple.
:-)
anu
Thanks Anu ji . इतनी बढ़िया टिप्पणी को गूगल भी अपने अंक में छुपा लेता है । :)
Deleteअरे हमारा कमेंट चोरी चला गया...............
ReplyDelete:-(
वाह यह कहते हैं रुमान का उफान -और उफान भी ऐसा कि पाठक भी सम्मोहित हो जायं ...
ReplyDeleteएक बेहतरीन यादगार पोस्ट -हम भी चिल्ला रेस्टोरेंट के मुन्तज़िर हो गए .....
एक सूखी नदी का जिक्र है -मगर चलिए फिर कभी -अभी तो मन बिलकुल रोमांटिक है ..हम भी किसी के साथ आपके दिखाये लोकेशन पर कल्पना विहार कर रहे हैं .....
जी नहीं अरविंद जी , सूखी नदी नहीं , बरसाती नदी है जो समय आने पर लबालब भर जाती है ।
Deleteजल्दी ही कल्पना को साकार कीजिये । शुभकामनायें ।
अच्छा किया जो 100 मीटर जा कर वापस लौट आए। शेर आ जाता तो आप तो क्या कहते जो कहता वो शेर ही कहता।
ReplyDeleteआप की रूमानियत भा गई जी। काश हमें भी ऐसा कोई अवसर मिले।
द्विवेदी जी , ज्यादा सोचना नहीं होता । बस निकल पड़िये ।
Deleteआन्नद आ गया आपके इस सफर में हम भी घूम लिए डॉ. साहेब ....धन्यवाद !
ReplyDeleteवाह! हमको तो देख कर और पढ़कर ही इतना आनंद आ गया कि पूछिये मत। बेहतरीन पोस्ट। शानदार ब्लॉगिंग का नमूना। हमे अपनी खुशियाँ मित्रों से ऐसे ही बांटनी चाहिए। पिछली पोस्ट में केवल आपकी फोटू थी तो लग रहा था आप खींच नहीं पाये। लेकिन आज मालूम हुआ कि हम गलत थे। वाह ! क्या खींचे हैं ! :)
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा-संस्मरण,सही आप ने अपने साथ साथ हम पाठकों को भी घूमा दिया
ReplyDeleteमून और हनी दोनों के अलग अलग दर्शन हो गए वर्ना हनी तो मून को साथ लिये ही घूमती रहती है. सारे चित्र और आपका विवरण अब चिल्ला में भीड़ बढ़ाने के लिये पर्याप्त है. रहने की इतनी सुंदर व्यवस्था है यह जानकर हमने भी तय कर लिया कि जल्द ही हम भी विनोद जी के खाने का स्वाद लेंगे.
ReplyDeleteअगला अंक भी जल्द पेश कीजिये. देखते है क्या और नयी बातें निकल के आती है.
बधाई और शुक्रिया.
जी ज़रूर । नई भी मिलेंगी और ओल्ड वाइन इन न्यू बोटल भी ।
Deleteबहुत शानदार पोस्ट ... आपने इतना सुंदर चित्रण ( शाब्दिक ) किया है कि इस जगह घूमने का मन हो आया है ... चित्र भी बहुत बढ़िया ... वैसे तो हम बचपन से ही ऐसी ही शांत जगहों पर रहे हैं .... शहर ( दिल्ली ) में तो अब आ कर बस गए हैं ... रेखा जी से परिचय अच्छा रहा ... पहाड़ी लड़की ... नाम देना आपकी भावनाओं को कहता है ...
ReplyDeleteसुंदर जगह ...बढ़िया विवरण ....अच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteशुभकामनायें .
अपने दिल के चारों कक्षों का हाल बयान कर दिया आपने , तस्वीरें और वर्णन निहायत खूबसूरत है !
ReplyDeleteअभी क्रमशः और है ,मतलब कविता अभी बाकी है !
...और हनी ने मून का फोटो उतारा तो कोई बात नहीं....
ReplyDeleteचाँद धरती पे उतर आया,चाँदनी के साथ !
चित्रात्मक-विवरण गज़ब का है,डॉ.साहब ! जो पढ़ा-लिखा न हो,वह भी सब-कुछ समझ जाए !
सोच रहा हूं पीछे मध्यम-मध्यम ये गीत बज रहा होता तो..
ReplyDelete
पर्बतों के पेड़ो पर शाम का बसेरा है,
सुरमई उजाला है, चम्पई अंधेरा है,
ठहरे ठहरे पानी में गीत सरसराते हैं,
भीगे-भीगे झोंकों में खुशबुओं का डेरा है...
पर्बतों के पेड़ों पर...
जय हिंद...
खुशदीप भाई , मध्यम मध्यम संगीत की मधुर धुन तो सुनाई दे रही थी . लेकिन बाहर से नहीं , अन्दर से आ रही थी . कई बार सोचा अपने ब्लेकबेरी पर कोई रोमांटिक गाना लगाकर बैठें . लेकिन नदी की कल कल , हवा की सायं सायं और नदी के पार बैठे एक मोर की अपनी मोरनी को देती मोहनी आवाज़ को सुनकर कुछ और सुनने की ज़रुरत ही नहीं रही . :)
DeleteJCApr 19, 2012 11:32 PM
ReplyDeleteजंगल में मंगल मनाने का बढ़िया सचित्र वर्णन, डॉक्टर साहिब!
जिम कोर्बेट (जेसी!) को कुमाऊं के आदमखोर बाघों ने प्रसिद्द क़र दिया...:)
सड़क मार्ग से - पहले बस से और बाद में कार से - मुरादाबाद, जिम कॉर्बेट पार्क, आदि होते हुए नैनीताल- अल्मोड़ा हम बचपन से छुट्टियों में कभी कभी जाते रहे हैं... और समय के साथ बदलते हुए नजारों का जायका भी लेते रहे हैं - विशेषकर सरसों के खेतों के हरे-पीले रंग मन भावन लगते थे... किन्तु तब हमारा ध्यान दिल्ली की गर्मी से बचने और पहाड़ की प्राकृतिक ठंडी हवा लेने पर ही अधिक होता था (और लौटने पर दिल्ली की गर्मी और अधिक भीषण प्रतीत होती थी)...
जी सही कहा . एक बार हम भी गए थे नैनीताल से जिम कॉर्बेट पार्क . लेकिन कुछ भी दिखाई नहीं दिया . अब सोचते हैं शेर देखने के लिए गुजरात के गिर या रणथम्भोर में टाइगर देखे जाएँ .
Deletejangal me mangal na manaya jaye to jaana bekaar...
ReplyDeleteऐसे ही खुशियाँ मनाते रहें और बांटते रहें ....
ReplyDeleteबाँटने से दुगनी हो जाती है न ..?
खुश रहें !
शुभकामनाएँ!
इस पोस्ट में तो बिलकुल निहाल कर दिया डॉ साहब आपने .आपका एनर्जी लेविल देखते ही बनता है .और कैमरे की आँख हमें भी सौन्दर्य प्रेमी बनाके छोड़ेगी .
ReplyDeleteवो चांदनी का बदन ,खुशबुओं का साया है ,
बहुत अज़ीज़ हमें हैं मगर पराया है .
जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटीज़ इन एडल्ट्स
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
वाह मुझे तो आजतक यही लगता था कि हरिद्वार में केवल भीड़-भाड़ ही होती है. चित्र भी एक से एक
ReplyDeleteचिल्ला पार्क और रेस्ट हाउस की सैर करा दी आपने उसके सारे भेद खोल दिए .लोकलुभाऊ लगती है यह जगह जाना पड़गी बुकिंग कराके कभी .हाँ डॉ साहब आवशयक कारवाई कर दी गई है सुज्ञ जी का ई मेल भी प्राप्त हुआ था .शुक्रिया आपके अतिरिक्त स्नेह का .
ReplyDeleteआज तो बहुत ही शायराना और काव्यमय प्रवाह है ... जानकारी के साथ साथ चिल्ला पार्क के मनोरम द्रश्य कों भी आपने बाखूबी उतारा है कैमरे में ... मज़ा आ गया ...
ReplyDeleteडाक्टर साहब ,
ReplyDeleteअनुपस्थिति बेवज़ह नहीं थी , सो देर आयद को दुरुस्त आयद मानियेगा :)
फोटो एक से बढ़कर एक पर आपके एक ज़िक्र की फ़िक्र में हूं कि ..."इंसान के दिल में चार कक्ष ( चैंबर ) होते हैं"
मुझे लगता है "चैंबर" की बातें बड़ी रिस्की हो गई खास कर जबसे कि एक बड़े वकील साहब ने चैंबर में... :)
अली सा, पता चल गया था की आप बाहर जा रहे हैं .
ReplyDeleteचैंबर की बातें रिस्की तो होती हैं . :)
आखिर दिल के मामले भी तो कम रिस्की नहीं होते .
अगर कोई साथ न हो तो सिर्फ़ "मैं" और उनकी यादों के सहारे काम चल जाता है :))
ReplyDeleteमजा आ गया, हरिद्वार के पास भी ऐसी कोई जगह हैं..अगली बार जब हरिद्वार जाऊंगा, तब जरूर जाऊंगा.........
ReplyDeleteBehad hi shaandar chitra
ReplyDeleteपोस्ट बहुत देर से पढ़ी गयी है तो अब टिप्पणी करने का आनन्द ही समाप्त हो गया है। लेकिन यहाँ जाने का मन हो आया है।
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