गौमुख से निकल गंगोत्री होती हुई भागीरथी नदी देवप्रयाग आकर बद्रीनाथ से आती हुई अलकनंदा से मिलकर गंगा बनती है । यहाँ से करीब ६० किलोमीटर हृषिकेश तक का पहाड़ी सफ़र गंगा की पवित्रता को बनाये रखता है। हालाँकि शिवपुरी नामक स्थान पर राफटिंग क्लब खुलने से मनुष्य की गंगा के साथ छेड़खानी शुरू हो चुकी है । गंगा सबसे ज्यादा पवित्र हरिद्वार में ही नज़र आती है ।
हमारा चिल्ला हरिद्वार आना पिछली बार ८ साल पहले हुआ था । सबसे पहला बदलाव तो यह लगा कि अब गाड़ी पार्क करने के लिए बड़ी आरामदायक पार्किंग बन गई है सड़क के साथ । गाड़ी पार्क कर सड़क के नीचे बने अंडर पास से होकर जैसे ही हम गंगा की तरफ आए, गंगा किनारे तक का १०० मीटर लम्बा रास्ता भिखारियों से अटा पाया । ऐसा लगा जैसे हरिद्वार के सारे भिखारियों के लिए यह स्थान आरक्षित कर दिया गया हो ।
उन्हें देख कर अनायास ही मुन्ना भाई फिल्म के उस जापानी टूरिस्ट की याद आ गई , जो कह रहा था --हंगरी इंडिया , पुअर इंडिया । हरिद्वार में ऐसे स्वागत की अपेक्षा नहीं थी ।
लेकिन गंगा पर बने पुल पर आते ही , यह दृश्य देखकर मन आनंदित हो गया । हालाँकि तेज धारा में इस मोटर बोट को देख कर हैरानी हुई । यह समझ नहीं आया कि ये टूरिस्ट थे या लाइफ गार्ड ।
पुल पार कर पश्चिमी घाट पर पहुँच कर हम हरिद्वार की गलियों में घुस गए । खचाखच भरे बाज़ार में तरह तरह की दुकाने सजी थी , हालाँकि हमारा खरीदारी का कोई मन नहीं था । हमें तो जाना था मनसा देवी के मंदिर जो सामने पहाड़ की चोटी पर था । पिछली बार हमारा यहाँ आना १९८४ में हुआ था।
रास्ता पूछते हुए जब मेन रोड पर आए तो पता चला कि ट्रॉली की टिकेट्स बंद हो चुकी थी । इसलिए पैदल चलने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था । वैसे भी हमें तो पैदल चलना ही अच्छा लगता है । करीब १०० मीटर की खड़ी सीढियां चढ़कर जब सड़क नज़र आई तो बड़ा इत्मिनान हुआ । सबसे पहले हमने चाय वाले को ढूँढा ।
लेकिन उसने ऐसी चाय पिलाई की पीने के बाद पीने और पिलाने वाले दोनों को शर्म आ रही थी ।
चाय ख़त्म कर हम तो लग गए अपने पसंददीदा काम पर ।
दूर गंगा पार नज़र आ रहा है -- चंडी देवी का मंदिर ।
आगे का रास्ता समतल सड़क का था । इसलिए मस्ती में चलते और फोटो खींचते हुए चलते रहे ।
इस सूखे से पेड़ पर ये कोई मोटे मोटे फल नहीं लगे हुए , बल्कि बन्दर हैं जो पेट भरकर खेलने में व्यस्त हैं ।
यदि ट्रॉली से आते तो क्या यह फोटो खींच पाते !
करीब आधा किलोमीटर पैदल चल कर हम पहुँच गए मंदिर में । किसी भी मंदिर में हमारा आना करीब १५ साल बाद हुआ था । वैसे भी हमें तो मंदिर से ज्यादा आस पास की खूबूरती ज्यादा आकर्षित करती है । लेकिन यहाँ आकर आअश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई यह देख कर कि सब इंतज़ाम बहुत बढ़िया थे । मंदिर भी साफ था । बिना किसी हील हुज्ज़त के हमने मंदिर का चक्कर लगाया । कदम कदम पर पंडित बैठे थे लेकिन कोई लूट मार नहीं थी। सब श्रद्धानुसार दान पात्र में १०-२० रूपये डाल रहे थे ।
मुख्य गर्भकक्ष के आगे बहुत भीड़ थी । लोग प्रसाद चढ़ा रहे थे । लेकिन हम कुछ लेकर नहीं गए थे । हमने श्रीमती जी से कहा --चिंता नहीं , १०१ रूपये दान कर दो । पंडित जी ने भी ख़ुशी ख़ुशी फटाफट रसीद काट दी । फिर एक छोटे से आधे कटे नारियल में कुछ गुलाब के फूल प्रसाद के रूप में दिया जिसे पाकर श्रीमती जी तो कृतार्थ हो गई ।
हम खड़े खड़े देख रहे थे उस नौकर को जो सर पर नारियल से भरा ५० किलो का बोरा रखकर बाहर निकला ।
रास्ते में सैंकड़ों सेल्समेन को नारियल वाला प्रसाद बेचते देखकर जो लग रहा था कि इतने नारियल कहाँ से आते होंगे , वह राज़ अब खुल रहा था ।
लेकिन वर्षों बाद खुशबू वाले गुलाब देखने को यहीं मिले ।
मंदिर से वापसी के लिए हमने चुना दूसरा रास्ता जिससे उत्तर दिशा का नज़ारा दिख रहा था ।
चित्र में गंगा घाट और शाम की आरती के लिए एकत्त्रित हुए हजारों श्रद्धालु । दूर नज़र आ रहा है बैरेज जिससे गंगा की दिशा बदलकर मोड़ दिया गया है घाट की ओर । गंगा पार जो घना जंगल नज़र आ रहा है उसके बायीं ओर है चिल्ला रेस्ट हाउस ।
दक्षिण दिशा में सारा हरिद्वार शहर । सूखे पेड़ों के बीच सुन्दर लाल रंग के फूल मानो सन्देश दे रहे हैं कि जिंदगी में सुख दुःख , धूप छाँव सब एक साथ मिलते हैं ।
सैंकड़ों सीढियां उतरकर हम पहुँच गए घाट पर जहाँ शाम की आरती की तैयारियां चल रही थी । इस बीच कुछ लोग गंगा में डुबकी लगाने की कोशिश करते नज़र आए । श्रीमती जी भी मचलने लगी पानी में कूदने के लिए । लेकिन बहुत तेज हवा चल रही थी और पानी का बहाव भी बहुत तेज था । बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाया कि बस छूकर निकल लें ।
आरती दर्शन के लिए एकत्त्रित विशाल जन समूह । भीड़ में अक्सर हम तो किनारे हो जाते हैं । लेकिन श्रीमती जी ने वीरांगना का रोल प्ले करते हुए दोनों के लिए जगह बना ही ली ।
गंगा मैया की आरती रोज शाम को सूरज छिपने के बाद की जाती है । यह वास्तव में एक बहुत खूबसूरत नज़ारा होता है। सारा जहाँ जैसे गंगा मैया की भक्ति में डूब सा जाता है ।
आरती के बाद हम चल पड़े वापस पार्किंग की ओर । लेकिन इस बीच श्रीमती जी को याद आया कि उन्होंने गंगा मैया की पूजा तो की ही नहीं । हमने भी तय कर रखा था कि आज उनकी कोई भी तमन्ना अधूरी नहीं रहने देंगे । सामने ही एक फूल वाली दिखी तो फूलों का डोंगा खरीद लिया । आनन फानन में जाने कहाँ से एक पंडित बिन बुलाये मेहमान की तरह आ टपका और शुरू हो गया मन्त्र बोलने । अब तक हम भी समझ गए थे कि ऊँट पहाड़ के नीचे आ चुका है । लेकिन कोई ग़म नहीं था । हमने भी खुले दिल से पंडित जी को १०१ रूपये देकर अपना पति धर्म निभाया ।
और इस तरह पूरा हुआ हमारा हर की पौड़ी पर गंगा दर्शन ।
अब आप भी घर बैठे आनंद लीजिये गंगा मैया की आरती का ।
...खूब कराये दर्शन माँ के !
ReplyDeleteहरिद्वार की यात्रा सचमुच ताजगी भरी रही सिवाय उस 'चाय' के !
एक बात पूछना चाहूँगा;
हर की पैड़ी स्थान है या हर की पौड़ी ?
चित्र बिलकुल बोलते-से हैं !
बहुत सुंदर चित्रमयी झांकी..... गंगामैया को नमन
ReplyDeleteबहुत कुछ सिखाती है गंगा
ReplyDeleteसीखने वाला चाहिए.
गंगा को देखना भी एक सुखद अहसास है.
ब्लॉगर्स मीट वीकली 40 में आपका स्वागत है.
अच्छे फ़ोटो अच्छी पोस्ट.
@संतोष भाई,
ReplyDeleteये हर की पैड़ी ही है लेकिन वहां सीढ़ियां काफ़ी होने की वजह से हर की पौड़ी प्रचलित हो गया है...
@दराल सर,
हर की पैड़ी पर गंदगी और भीड़ से ही डर लगता है...आपने हरिद्वार तो देख लिया, अब कभी अलौकिक आनंद की अनुभूति करनी हो तो मेरे साथ कभी ऋषिकेश में एक जगह चलिएगा...
जय हिंद..
ऋषिकेश भी बहुत खूबसूरत है.... भैया... बस बंदरों से बच कर रहना पड़ता है..
Deleteखुशदीप भाई , हरिद्वार में भिखारियों को छोड़ और कहीं गंदगी नज़र नहीं आई . लगता है काफी सुधार हुआ है पिछले कुछ वर्षों में . लेकिन हृषिकेश में एक बार बहुत गंदगी देखी थी हालाँकि वह कई साल पहले की बात है .
Deleteजहाँ तक अलौकिक आनंद की बात है , हमें तो कहीं भी घूम कर ही आ जाता है :)
हरिद्वार तो मेरा अक्सर ही आना जाना होता है.... मैं तीन साल पहले की बात बता रहा हूँ... मैं टहलते हुए आरती के वक़्त पहुँच गया था.... सोचा कि आरती देख लूं... आरती ख़त्म हुई... जो पंडित जी.. आरती करा रहे थे... वो आरती लेकर मेरे पास भी आये... पंडित जी बड़े इंटेलेक्चुयल थे.... पी. एच.डी. थे... पंडित जी कुमाओं यूनिवर्सिटी के फोर्मेर डीन और रिटार्यड एच.ओ.डी. थे... और पिछले कई सालों से गंगा आरती करवा रहे थे... वो जब मेरे पास आये तो मुझे भी सरप्राइज़ हुआ और उन्हें भी... उन्होंने मुझे बैठाया... और बड़ी इज्ज़त दी... उन्होंने कहा कि पहले कभी कोई मुस्लिम नहीं आया... यहाँ... उन्होंने मुझे सारे ट्रस्टीज़ से मिलवाया...और आज जब भी जाता हूँ... तो सबसे मिलता ज़रूर हूँ... हरिद्वार मेरा एक फेवरिट शहर है... जब भी जाता हूँ....गंगा आरती देखता हूँ... अब तो वो पंडित जी नहीं रहे... उनका नाम पंडित गंगा धर प्रसाद द्विवेदी था... उनसे मेरी मुलाक़ात एक नैशनल कौन्फेरेंस के दौरान 2003 में हुई थी... हालांकि वो 1993 में ही रिटार्यड हो गए थे...लेकिन ऐज़ अ एमिरीटस फेलो वो यूनिवर्सिटी आते थे.. अभी भी जब भी जाता हूँ... तो मेरे लिए भीड़ में से रास्ता बनाया जाता है.. ताकि मैं बिलकुल आगे रहूँ... अच्छा लगता है...
ReplyDeleteमुझे ऐसा लगता है कि जब इंसान पढ़ लिख लेता है...उसका दिमाग बढ़ जाता है... तो वो रेलीजीयन से ऊपर हो जाता है... जाहिल इंसान एक दूसरे के रेलीजीयन को गालियाँ देता है... और खामियां निकालता है... रेलीजीयन एक ऐसा मैटर है जो घर के टोइलेट में अच्छा लगता है... वैसे पौलिटीकलि मैं रेलीजीयन को यूज़ करने के लिए सही समझता हूँ... क्यूंकि जाहिल हमेशा रेलीजीयन से ही गवर्न होता है.. और इन्ही की तादाद बहुत ज्यादा है...(निर्मल बाबा'ज़ समागम फॉर एक्ज़ैम्पल) .... कुल मिलाकर बहुत शानदार पोस्ट... वैरी पेनसिव.... विद वैरी गुड क्वालिटी फोटोग्रैफ्ज़... अब आगे का इंतज़ार है... फिलहाल चलता हूँ... नाश्ता कर लूँ अब.... नाश्ता करते हुए यह कमेन्ट लिखा.... :) यू मेड माय डे... कभी कभी यूँ ही ऐसे ही कुछ लिख देने का मूड होता है... हमारी जमती है...क्यूंकि लिओ और स्कौर्पियोज़ .... एक ही सिक्के के दो पहलू हैं...
बहुत खूब महफूज़ मियां .
Deleteबेशक हरिद्वार जैसे धार्मिक स्थलों पर धर्म का कोई बंधन नहीं होता . होना भी नहीं चाहिए . गंगा मैया सब के लिए है .
एक बार मैं भी दिल्ली के ज़ामा मस्जिद गया तो बड़ा अच्छा अनुभव हुआ था .
ईश्वर तो एक ही है . यह तो इंसान ने नाम अलग अलग दे रखे हैं .
वाह! खुबसूरत फोटो ग्राफ्स....
ReplyDeleteहरिद्वार ऐसा स्थान है जहाँ प्राकृतिक और अध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है ... मुझे गर्मी के दिनों में हरिद्वार बेहद भाता है ..फोटो सहित बढ़िया प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteहर हर गंगे...
ReplyDeleteहमारे वहा जाने की एक-एक याद को चित्रवत कर दिया आपने...सब कुछ आँखों के सामने उपस्थित होता सा महसूस हुआ!बस आरती में हब अब तक शामिल नहीं हुए थे,लेकिन आज लगा जैसे आरती में भी टी यही-कहीं खड़े थे...
आभार!
कुँवर जी,
बहुत सुंदर चित्रमय झांकी ... गंगा माँ के सुंदर दर्शन कराये
ReplyDeleteमन रुपी मानसरोवर में स्वर्गीय आनंद की अनुभूति हुई सचित्र वर्णन और आरती के वीडिओ से!!!
ReplyDeleteऔर, क्यूंकि आप दोनों डॉक्टर/ चिकित्सक हो, आपकी और अन्य धर्म के मानने वालों की भी सूचना हेतु - चाहे वो हिन्दू हो अथवा इसाई, अथवा मुस्लिम, किसी भी 'धर्म' का मानने वाला हो - 'भारत' की माटी में प्राचीन योगी/ सिद्धों आदि ने जाना कि मानव शरीर अनंत और अजन्मे ब्रह्माण्ड का मॉडल है!!!
और यह भी कि यह 'नवग्रहों' - अर्थात सौर-मंडल के नौ सदस्य सूर्य से शनि तक - के सार से बना है...
जिसमें, मूलाधार (सीट) में मंगल ग्रह का सार है, मस्तक में चंद्रमा का, अन्य छः ग्रहों का सार इन दोनों के बीच स्पाइनल कॉलम, अर्थात मेरुदंड पर विभिन्न स्तर पर अवस्थित...
जबकि शनि ग्रह का सार, नर्वस सिस्टम के रूप में, सारे शरीर में जाल समान फैला है - जिसमें 'सुसुम्ना नाड़ी' ही (सेंट्रल नर्वस सिस्टम ही) गंगा का सार है!!! और नाड़ियाँ मस्तक/ मस्तिष्क को मूलाधार से जोडती है, अर्थात गंगा, जमुना, ब्रह्मपुत्र आदि मुख्य नदियों (नाड़ियों) को, जो मानसरोवर (मन-रुपी) झील से निकल (सागर के प्रतिरूप) मंगल के सार (ब्लैडरआदि) तक... आदि, आदि... ...
मानवीय शारीरिक रचना का बढ़िया आध्यात्मिक विश्लेषण किया है जे सी जी . आभार .
Deleteइस शोध कार्य में भी माँ गायत्री/ काली-गौरी (ॐ) का ही हाथ है...:)
Deleteमेरी इस जन्म की माँ का निधन ८ दिसंबर '७८ में दिल्ली में हुआ था और मैं तब भूटान से आ उनकी अन्त्येस्ठी के लिए एक सुबह दिल्ली पहुँच, कुछ ही घंटों बाद, अपने पिताजी और अन्य परिवार के सदस्यों के साथ हरिद्वार चला गया था...
उसके पहले मैं बाल्यकाल में माताजी और पिताजी के साथ हरिद्वार बचपन में आया था, और फिर शायद '६१ में हथनीकुंड बैराज, और नहर आदि कोलेज टूर में देखा था...
मान्यता के अनुसार उनका श्राद्ध बड़े भाई दिल्ली में ह करते थे, माँ के तीसरे वार्षिक श्राद्ध के दिन, ८ दिसंबर '८१ को, किन्तु गुवाहाटी असम में मेरी तब १०+ वर्षीय तीसरी बेटी ने मुझे चौंका दिया था, यह पूछ कि क्या मेरी इम्फाल की फ्लाईट कैंसल हो गयी है??? और एयर पोर्ट पहुँच वो सत्य निकला तो माथा ठनका था, जैसे माँ जगदम्बा मुझे उसे ढूंढ निकालने के संकेत कर रही थी!!!...
बढ़िया पोस्ट नयना भिराम दृश्य पठ्य सामग्री लिए .हरद्वार में डोंगे नावें हमने अभी नहीं देखी हैं .हम इससे पहले के दौर में जाते रहें हैं .चचाजान रहते थे हमारे .
ReplyDeleteवाह सर, हर बार की तरह आज भी आपकी यह पोस्ट पढ़कर और खूबसूरत तस्वीरें देखकर मज़ा आगया। यूं तो हम लोग भी दिल्ली पाँच साल रहे मगर कभी हरिद्वार जाने का मौका नहीं मिला आज आपकी इस पोस्ट ने घर बैठे ही हरिद्वार और गंगा मैया दोनों के ही दर्शन करवा दिये। जय हो ....आभार
ReplyDeleteबढिया यात्रा चल रही है भाई साहब……… हरद्वार की मौज ले रहे हैं :)
ReplyDeleteहर की पौड़ी , गंगा की आरती सब बहुत देखा है ..वाकई मनोहारी दृश्य होता है बस गंदगी से मन दुखी होता है.आपने यादें ताज़ा कर दीं. चित्र भी खूबसूरत हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रमय सचित्र वर्णन
ReplyDeleteहर हर गंगे!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteपेड़ पर फले बन्दर भले लगे........
:-)
आनंददायी पोस्ट..............
सादर.
अनु
सिंपली वाह
ReplyDeleteगंगा तव दर्शनात मुक्तिः
ReplyDeleteडॉ साहब आपके चित्रों से मन तृप्त हो गया ० नयनाभिराम और तृप्तिदायक !
jai gange.........
Deletebhai sahab filhaal sirf cheers....
shesh agli mulakaat pat par.....
आप फोटोग्राफी के भी माहिर हैं
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चित्र .. और बयान का अंदाज़
behad khoobsurat chitra aur ganga ji ki aarti ki video dekh kar bahut achcha laga esa laga jaise aapke saath humne bhi yeh teerth yaatra kar li.
ReplyDeleteवाह!!!!बहुत सुंदर चित्र मय प्रभावी प्रस्तुति,..दराल साहब,
ReplyDeleteचित्र बहुत ही खुबशुरत लगे,..डा० के साथ आप एक अच्छे फोटो ग्राफर भी है,...बधाई
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
अब आपने शोर्टकट लगाना शुरू कर दिया. आप चिल्ला से कब चले और हरिद्वार कैसे पहुंचे ये बताया नहीं.
ReplyDeleteहरिद्वार और गगा आरती की चित्रमयी प्रस्तुति बहुत सुंदर है.
रचना जी , चिल्ला हर की पौड़ी के सामने गंगा पार ही है . १३ अप्रैल को चिल्ला रेस्ट हाउस पहुंचे , थोडा आराम किया और शाम को पहुँच गए घाट पर गाड़ी लेकर . पांचवें फोटो को देखिये, उसके बारे में वहीँ लिखा है .
Deleteयही तो मज़ेदार बात है एक एक तरफ हर की पौड़ी का धार्मिक वातावरण और उसी के सामने जंगल का मंगल .
डॉक्टर साहिब, क्यूंकि सम्बह्तः ब्रह्मा की रात निकट ही हो, कुछ शब्द सिव और माँ गंगा के लिए जिसने आपको बुला भेजा:
ReplyDeleteवो ही एकमात्र 'हिन्दू' था, या कहिये है, वो अकेला अजन्मा और अनंत, अमृत, जिसके माथे में 'प्राचीन हिन्दू', उसके ही प्रतिरुपों ने रहस्मय इंदु, अर्थात चंद्रमा, और गंगा मैय्या के शीतल जल को अनादि काल से दर्शाया (क्यूंकि उनके रौद्र रूप से भस्मासुर ही नहीं अपितु कामदेव भी भस्म हो सकते हैं, अर्थात रोध नरक का एक द्वार है :)...
और उसे सहस्त्र नामों में से गंगाधर/ सोमदेव अथवा चंद्रशेखर आदि कह संकेत किया कि वो अमृत जीव स्वयं हमारी पृथ्वी ही है!!! जिसके ह्रदय में माँ काली का निवास स्थान है, अर्थात जिसके केंद्र में संचित गुरुत्वाकर्षण शक्ति (काशी निवासी अर्धनारीश्वर की अर्धांगिनी 'सती') है...:)
!!! ॐ नमः शिवाय !!! जय त्रिपुरारी, त्रिनेत्रधारी, आदि, आदि... ब्रह्मा-विष्णु-महेश, शिवलिंग के माध्यम से 'हिन्दुओं' द्वारा पूजित ध्वनि ऊर्जा ॐ के साकार रूप!!!
शिव जी के अनेक नाम जानकर अच्छा लगा जे सी जी .
Deleteवाह सर , दिल्ली दर्शन के बाद ..हरिद्वार दर्शन । जय हो , आपने तो मेरी इच्छा को हवा दे दी है , बहुत दिनों से पेंडिंग पडा हुआ है वहां जाने का कार्यक्रम लगता है हमें भी जल्दी ही मोबाइल को मांज कर तैयार करना होगा धांसू फ़ांसू फ़ोटो के लिए । बढिया सर बढिया
ReplyDeleteआपकी फोटोग्राफी कमाल की है। चित्र के लिए स्थान का चुनाव लाज़वाब। आनंद आ गया देखकर।
ReplyDeleteहरिद्वार तो कई बार गया .. पर इतना सुन्दर नहीं उतार पाया जितना आपकी नज़रों ने उतारा कैमरे के जरिया ...
ReplyDeleteमनोरम दृश्य खड़ा कर दिया आपने तो ... लाजवाब ...
हरिद्वार जाना नहीं हुआ है अभी तक ... अब ज़रूर जाउंगी ... धन्यवाद ...
ReplyDeleteबड़ा सजीव वर्णन किया है और चित्र तो देखते ही बनाते है |वर्णन शैली भी कमाल की |
ReplyDeleteआशा
बहुत अच्छा विवरण और बेहद खूबसूरत तसवीरें...
ReplyDeleteइसमें क्या शक़, हरिद्वार हिन्दुस्तान और हिंदुत्व की पहचान है ..मैं भी गई हूँ, लेकिन मुझे ऋषिकेश ज्यादा पसंद है..
कभी हम जैसों को भी क़ाबा, मक्का, जाने की इजाज़त दी जाए, कम से कम हम भी दर्शन कर पाएँ...
आपका बहुत-बहुत आभार..
अदा जी , फ़िलहाल तो आपने दर्शन देकर कृतार्थ किया । आभार ।
Deletevery very nice photographs and beautiful journey .
ReplyDeleteवर्णन शैली भी कमाल की |
ReplyDeleteनयनाभिराम चित्रों के साथ दिलकश अंदाज में खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteहरिद्वार बहुत बार आया गया.१९७५ से १९७७ तक भेल में रहा.
लगभग हर हफ्ते दो हफ्ते में मनसा देवी/हर की पौड़ी/चंडी देवी
के दर्शन हो जाते थे.आपके चित्रों ने यादें ताजा कर दी हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
हरिद्वार में पंडों ने नहीं सताया , जानना सुखद रहा , वरना किसी भी तीर्थ स्थल पर सबसे बड़ी परेशानी यही लगती है ...
ReplyDeleteगंगा आरती का दृश्य किसी नास्तिक को भी लुभाता है ...
सुन्दर चित्र और वर्णन!
आभार !
वाणी जी , इस बार कुछ हमने दिल खुला रखा , कुछ पण्डे संभल गए हैं .
Deleteगज़ब के चित्र. आभार डॉ. साहब!
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