घर में पहली बार ट्रांजिस्टर उस समय आया था जब भारत पाकिस्तान युद्ध चल रहा था -- शायद १९७१ वाले युद्ध के समय . ताऊ जी आर्मी में थे , इसलिए रोज ध्यान से युद्ध के समाचार सुने जाते . बाद में शांति स्थापना होने के बाद रोज शाम को कृषि दर्शन कार्यक्रम सुना जाता . हर वीरवार को ग्रामीण भाईयों के लिए फरमाईशी कार्यक्रम होता. उन दिनों एक हरियाणवी युग्ल गीत बहुत मशहूर हुआ था जो परिवार नियोजन पर आधारित था .
कुछ समय पहले दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र में रेबीज पर एक इन्टरव्यु देने के लिए गया तो पुरानी यादें ताज़ा हो गई . कार्यक्रम के संचालक महोदय से उस गीत का जिक्र किया तो उन्हें भी याद आ गया . उनसे उस गीत की एक रिकोर्डिंग देने की फ़रमाइश की, लेकिन अभी तक प्राप्त नहीं हुई है . फिर ऐसे ही हमने सोच कर याद करने की कोशिश की तो जो याद आया , वह प्रस्तुत है .
इस गीत में पत्नी मेला जाने की जिद कर रही है और पति उसे जाने के लिए मना कर रहा है . दोनों के तर्क वितर्क पर आधारित यह युग्ल गीत कुछ इस प्रकार था :
पिया मैं जांगी मेले में
मने करणे सें चारों धाम
बीत गी उम्र तमाम
ओ पिया जाण दे ----
गोरी तू मत जा मेले में
गोरी तू मत जा मेले में
उड़े जां सें मूरख लोग
फ़ैल ज्या रोग
रै गोरी राहण दे ----
अगड़ पड़ोसन सारी जा ली
मन्ने भी दे जाण पिया
पहर तागड़ी झुमके कंठी
सुणना लहरा बीन का
तीरथ धाम करे बिन पिया
माणस ना किसे दीन का ।
कितके सुणे बीन के लहरे
सहम चोट खा बैठेगी
-----------------
-----------------
हो ज्या लीरम लीर चीर
कंठी नै भी तुडवा बैठेगी ।
घणे बालकां नै तंग कर दी
गंगा न्हा कै आउंगी
काली कम्बली आले बाबा
कै मैं भेंट चढ़ाऊँगी
और औलाद नहीं चाहिए बस
इब तै पिंड छुड़ाउंगी ।
या तै बात घणी मामूली
तडके कैम्प में चालांगे
जिंदगी सुखी बनावन खातिर
ओपरेशन करवा ल्यांगे
दब कै बाहवें रज कै खावें
आनंद मौज उड़ा ल्यांगे ।
गोरी तू मत जा मेले में ----
पिया मैं ना जां मेले में ---
गोरी मज़ा ना मेले में --
पिया मैं ना जां मेले में ----।
यह गीत आधा ही है . बाकि याद नहीं आ रहा . कुछ पंक्तियाँ भी छूट गई हैं . गीत को पूरा करने वाले के लिए एक ईनाम निश्चित है .
नोट : फ़िलहाल हम श्रीमती जी के साथ इस ऊहापोह में लगे है कि आज उन्हें कौन सा मेला दिखाने ले जाएँ । भई आज हमारी २८ वीं वैवाहिक वर्षगांठ जो है ।
अरे वाह! बहुत बहुत बधाईयाँ ,शुभकामनाएं -उन्हें साथ लेकर जहां भी मेला लगा हो जरुर घुमा लायें -और कविता की आख़िरी पंक्तियों के आमोद प्रमोद को भी चरितार्थ कर डाक्टर द्वय !:)
ReplyDeleteयही किया मिश्र जी । :)
Deleteगीत , रेडियो , स्मृतियाँ , वैवाहिक वर्षगाँठ सब कुछ समां दिया आपने इस पोस्ट में .....हार्दिक शुभकामनाएं ...!
ReplyDeleteवाह वाह दराल साहब गजब का गीत ढूँढ कर निकला है मुझे भी यह पहले सुना हुआ लगा ...आपकी शादी की वर्षगाँठ पर ढेरो बधाईयाँ बस आज तो मिसेज को मॉल में घुमा लायें मेला तो ढूंढे से भी नहीं मिलेगा |और हाँ पाकेट भरी होनी चाहिए |
ReplyDeleteढेरों शुभकामनाये डाक्टर दम्पति को इस सुअवसर पर !
ReplyDeleteबधाई जी बधाई!
ReplyDeleteशुभ विवाह की वर्षगांठ पर दोनों को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteवाह जी!सोणा गीत सुणाया। ब्याह की 28 वीं सालगिरह की दोनुआं नै घणी घणी बधाई।
ReplyDeleteसबसे पहले वैवाहिक वर्षगाँठ की आप दोनों को बधाई. रही मेले की बात तो वह उन्हीं से पूछ लीजिए.. सिंपल :).
ReplyDeleteसही कहा शिखा जी । और उनसे पूछकर जो हाल हुआ , वो अगली पोस्ट में पढना मत बूलियेगा ।
Deleteबधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteभाभी तू मत जा मेले में
ReplyDeleteउड़े जां सें मूरख लोग
फ़ैल ज्या रोग...
भाई समझा भाभी नू....
:-)
शुभकामनायें भाई भाभी को
सतीश जी , दोनों ने एक दूसरे को समझाया और चल दिए मेले में । :)
Deleteशादी की सालगिरह आप दोनों को बहुत-बहुत मुबारक हो।
ReplyDelete..मेला देखन जाऊँगी...जैसा हमने भी छुटपन में सुना था,जिसमें प्रेमिका या पत्नी जलेबी खाने की जिद करती है.लोकगीतों में जो स्वाभाविक रस था,अब कहाँ ?
ReplyDeleteजोड़ी को शुभाशीष और मंगलकामनाएं !
आश्चर्य है कि यह गीत आकाशवाणी से बजता था जबकि इसके सात साल बाद रिलीज आई एस जौहर की फिल्म "नसबन्दी" को सरकार ने प्रतिबंधित किया था।
ReplyDeleteराधारमण जी , नसबंदी का नाम बदनाम हो गया था । और आज तक उसका असर दिखाई देता है ।
Deleteविवाह की वर्षगाँठ पर बधाई एवं बहुत-बहुत शुभ-कामनाएँ!
ReplyDeletemany many congratulations to both of you.................happy anniversary.
ReplyDeleteमेला-ठेला छोडिये................कोई पाँच सितारा जाईये.....don't take risk today :-)
regards.
anu
शादी की सालगिरह आप दोनों को बधाई !!!
ReplyDeleteगांवों में आज भी सामाजिक बुराइयों के लिए लोकगीतों का निर्माण होता रहता है। आपको बधाई। आप अवश्य मेले में लेकर जाना।
ReplyDeleteशादी की २८ वीं सालगिरह मुबारक.
ReplyDeleteगोरी तू मत जा मेले में ----
पिया मैं ना जां मेले में ---
गोरी मज़ा ना मेले में --
पिया मैं ना जां मेले में ----
आप इस गुहार का ध्यान न रखते हुए मेले में अपनी प्रिया के साथ अवश्य गए होंगे क्योंकि दिल्ली में मेलों की कहाँ कमी है.
गीत तो अपन को नहीं पता, पर यह जरूर पता है कि बधाई और शुभकामनाएं तो देनी ही पड़ेगी। सो स्वीकार करें। और आजकल तो मेला नहीं मॉल जाने का चलन है।
ReplyDeleteपिया मैं जांगी मेले में...
ReplyDelete
नोस्टेलजिया की ही रह गई बातें...अब तो...हट जा ताऊ पाछे...का ज़माना है...कई जगह इस गाने के चक्कर में झगड़े हो चुके हैं...
वैसे भाभी जी के साथ बाहर जाने का एक अच्छा आप्शन मेरठ जाकर डल्लू की दुकान पर चाय पीना भी होता...
जय हिंद...
मेला , मॉल , फाइव स्टार होटल और ढल्लू का ढाबा !बहुत खूब !
ReplyDeleteआप सब मित्रों का शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए ।
अभी अभी लौटा हूँ दो दिन बाद , श्रीमती जी को मेला घुमाकर । ज़रा सोचिये , ऐसा मेला कहाँ होगा जो दो दिन चले । जानने के लिए इंतजार करना पड़ेगा अगली पोस्ट का । :)
डॉ .साहब !गांठ वर्ष मुबारक .यह गीत डॉ विनय कमल ,प्रोफ़ेसर ऑफ़ पैथालाजी ,मौलाना आज़ाद मेडिकल कोलिज नै दिल्ली पूरा कर सकतें हैं .
ReplyDeleteमेरे पूर्व छात्र रहें हैं यूनिवर्सिटी कोलिज रोहतक में .
पुरानी स्मृतियों के साथ विवाह की वर्षगाँठ की ढेरों शुभकामनायें !
ReplyDeleteसबसे पहले वैवाहिक वर्षगाँठ की आप दोनों को बधाई.रही बात घुमाने कि तो या तो उनसे ही पूछ लीजिये या फिर कहीं भी घूम आइये ऐसे मौकों पर साथ घूमने का मज़ा ही अलग है फिर जगह चाहे कोई भी हो :)ऐसा मेरा मानना है :-)
ReplyDeleteजी , बिलकुल सही कहा । हमने भी यही किया ।
Deleteबधाई .... कुछ देरी से ही सही पर कोई बात नहीं ...
ReplyDeleteपुरानी यादों को पुरानी यादों के साथ ही ताजा कर रहे हैं आप ... ऐसे कई साल आप आनंद में रहें ... बहुत बहुत शुभकामनायें ....
बहुत बहुत बधाई ..... देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
ReplyDeleteबधाई जी बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDelete