फोटोग्राफी का शौक तो हमें भी बहुत है । कई बार ऐसे ऐसे काम भी किये हैं जिन्हें याद कर आज भी हंसी भी आती है और हैरानी भी होती है । लेकिन किसी को फोटोग्राफी का शौक इस हद तक दीवाना बना सकता है , यह एक इ- मेल देखकर ही पता चला जो हमें एक मित्र ने भेजी थी ।
यहाँ एक फोटोग्राफर ने दूसरे फोटोग्राफर की फोटो खींचते हुए फोटो खींचीं हैं ।
यह अन्जान फोटोग्राफर अमेरिका के एरिजोना राज्य में स्थित ग्रांड केन्यन में एक चट्टान पर खड़ा है जहाँ से यह कैमरे को ट्राई पोड पर लगाकर सनसेट की फोटो खींच रहा है ।
इस बन्दे ने सैडल पहने हुए हैं । इस पॉइंट पर केन्यन की गहराई ९०० मीटर है । साथ वाली चट्टान बिल्कुल सुरक्षित है । फिर भी इसने इसी अकेली चट्टान को चुना ।
इसे यहाँ आते हुए किसी ने नहीं देखा था । इसलिए हैरानी थी कि वह यहाँ पहुंचा कैसे होगा ।
लेकिन अब सवाल था कि वह वापस कैसे आएगा !
सनसेट के बाद उसने अपना ट्राई पोड और कैमरा बाएं हाथ में पकड़ा और वापसी के लिए तैयार हो गया ।
साथ वाली चट्टान पर खड़े सभी सैलानी हैरान थे कि अब यह क्या करेगा ।
लेकिन इसने ग़ज़ब के साहस का परिचय देते हुए छलांग लगा दी ।
एक हाथ में कैमरा और ट्राई पोड और दूसरे हाथ से उसने चट्टान को पकड़ा और एक पैर चट्टान पर रखा । लेकिन हाथ और पैर खिसकने लगे ।
सभी साँस रोके खड़े यह तमाशा देख रहे थे ।
लेकिन उसने अपना बदन चट्टान के साथ चिपका लिया । फिर कुछ सेकंड्स रूककर सारा सामान ऊपर फेंका और चट्टान पर चढ़ गया ।
फिर वह अपने रास्ते चलता बना ।
लेकिन फोटो खींचने वाले फोटोग्राफर को बाथरूम जाना पड़ा , अपनी गीली हो गई पेंट को बदलने के लिए ।
अब यहाँ सवाल यह उठता है कि :
* क्या ये फोटो असली हैं ? या मोर्फ्ड किये गए हैं ?
* यदि असली हैं तो क्या कोई इतना सनकी भी हो सकता है ?
* वह ये फोटो साथ वाली सुरक्षित चट्टान से भी खींच सकता था। इसके लिए उसने इतना बड़ा जान का जोख़िम क्यों लिया ?
शायद इन सवालों के ज़वाब कभी नहीं मिलेंगे । लेकिन यही कह सकते हैं कि मनुष्य का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है । इसे यूँ जोख़िम में न डालें ।
लेकिन एडवेंचर के दीवाने भला कहाँ सुनते हैं !
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WWF कुश्ती दिखाने के लिए धन्यवाद :)
ReplyDeleteप्रस्तुति रोचक, रोमांचक और जिम्मेदार भी.
ReplyDeleteरोमांचक बेहद रोमांचक तस्वीर प्रस्तुत की है.सही मान कर चलते है क्योंकी सनकीपन से भरी है ये दुनियां.
ReplyDeleteउसकी पैंट का रंग अलग क्यों लग रहा है मुझे ?
ReplyDeleteye to sach hai...
ReplyDeleteदुनियां में पागलों की कोई कमी थोड़ी है :-)
ReplyDeleteपर हां हमें ईश्वर के दिये इस जीवन को प्यार करना चाहिए..
पहले चित्र के बाद पैंट का रंग बदला हुआ है. बैकग्राउंड से ये पेंटिंग मालूम पड़ती है.
ReplyDeleteआजके कुछ चित्रकार भी एडवेंचर वाले तस्वीरें बनाते हैं. सचाई जो भी हो. पर आपकी और उस फोटोग्राफर की प्रस्तुति रोमांचक है
दुनियां में पागलों की कोई कमी थोड़ी है :-)
ReplyDeleteदुनिया में दीवानों की कमी नहीं है. एक ढूंढो हजार मिलते हैं.
ReplyDeleteदीवानगी इसी को कहते हैं। रोमांचित कर देने वाले दृश्य।
ReplyDeleteहा हा हा ! काजल जी , अली भाई ने भी कुछ पकड़ा है ।
ReplyDeleteलेकिन इसे पागल न कहो दोस्तों
न जाने किस मोड़ पर हम भी यूँ ही दिख जाएँ ।
कभी कभी भीड़ में फोटो खींचते हुए हम भी महसूस करते हैं कि कहीं कोई हमें दीवाना तो नहीं समझ रहा ।
लेकिन दीवाने कहाँ किसी की परवाह करते हैं ।
@>> शिखा जी से सहमत हूँ
ReplyDeleteदुनिया में दीवानों की कमी नहीं है !
हिम्मतवाला लगता है।
ReplyDeleteआज ही एक समाचार पढ़ा थाकि एक महिला बंगिग करते हुए रस्सी टूटने से ३६५ फ़ीट की ऊंचाई से पानी में गिरी और कुछ चोटों के साथ जीवित भी रही।
ReplyDeleteसाँसें थम गयीं.. सही कहा आपने दुर्लभ मानुस जनम है!!
ReplyDeleteप्रस्तुति रोचक!
ReplyDeleteआश्चर्यचकित करती प्रस्तुति ....हमें भी सच ही लग रहा है ...ताज्जुब भी हो रहा है ...कैसे कोई अपनी जान के साथ इस तरह खेलता है ....!!
ReplyDeleteयदि यह फोटोग्राफ सही हैं तो वाकई रोमांचक हैं ..
ReplyDeleteखतरों से खेलना भी एक शौक है ओबसेशन है भाई साहब आजकल कुछ ज्यादा ही क्रेज़ है इन चीज़ों की .जिधर देखो उधर अज़ब गज़ब .और शौक की उन्माद की कोई इन्तहा नहीं होती .
ReplyDeleteखतरों से खेलना भी एक शौक है ओबसेशन है भाई साहब आजकल कुछ ज्यादा ही क्रेज़ है इन चीज़ों की .जिधर देखो उधर अज़ब गज़ब .और शौक की उन्माद की कोई इन्तहा नहीं होती .
ReplyDeleteखतरों से खेलना भी एक शौक है ओबसेशन है भाई साहब आजकल कुछ ज्यादा ही क्रेज़ है इन चीज़ों की .जिधर देखो उधर अज़ब गज़ब .और शौक की उन्माद की कोई इन्तहा नहीं होती .
ReplyDeleteखतरों के खिलाडी
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, यदि सोचें तो हम सभी खतरे के खिलाड़ी कम नहीं हैं!
ReplyDeleteकल के ही समाचार पत्र में पढ़ा कैसे एम्स में एडमिशन के लिए परीक्षा में उपलब्ध आधुनिक तकनीक का उपयोग हो रहा था और कुछेक डॉक्टर आदि पकडे गए, और झोला छाप डॉक्टर तो वैसे भी हैं!
और दूसरी खबर थी कि भारत में ७०% दूध में साबुन, यूरिया, पानी आदि मिला होता है! और आप भी दूध पीने को कह रहे हो, और आदमी का शरीर ७०% पानी से तो वैसे भी बना है... प्रत्येक सुबह समाचार पत्रों में पर्यावरण प्रदूषण के बारे में समाचार पढ़ तो लगता है कि इतना (शिव समान ही!) विषपान कर हम जीवित कैसे हैं (या कि 'यह जीना भी कोई जीना है, लल्लू' :)
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ReplyDeleteहम तो डर ही गए डॉ. साहिब ....ठंडी में भी गर्मी का एहसास !
ReplyDeleteये चित्र भी फोटोग्राफी का ही कमाल है डा० साहब :)
ReplyDeleteमुझे तो असली ही लग रहा है .... शाबाश ...बिना खात्रेके कोई रोमांच नहीं दुनिया में
ReplyDeleteअगर ये वाकई मूल फोटो है तो कहने वाले भले इसे पागलपन कहें पर अपने शौक के प्रति ऐसी दीवानगी काबिले तारीफ है । काश हर किसी में अपने काम,अधिकार और जिम्मेदारी के प्रति ऐसी ही दीवानगी आ जाए ।
ReplyDeleteमेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
सन्नाटे में तो हम भी आ गए डाक्टर साहब ... ये सच है या जूनून ... पर जो ही हो फोटो तो कमाल का है ...
ReplyDeleteअविश्वसनीय है ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
दीवानगी हद रोमांचक सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन चित्र,....
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
'अमेरिका' पश्चिम में है, शनि, अथवा शैतान के नियंत्रण में... नक़्शे/ मानचित्र में देखो तो 'भारत' के पिछाड़ी, अर्थात यहाँ उजाला है तो वहाँ अँधेरा, इधर भौतिक ज्ञान तो उधर अज्ञान, जैसा वैदिक काल में रहा होगा...
ReplyDeleteइतिहासकार कहते हैं, जब यूरोप में जंगली, गुफा मानव, रहता था तब भारत में जोगी लोग धरा से ऊपर हवा में खड़े होते थे, पानी पर चलते थे, यहाँ से अंतर्ध्यान हुए तो पलक झपकते ही दूर कहीं भी पहुच जाते थे :)
सपना ही लगता है न ??? सपने की बात करें तो पशु को निद्रा में सपने कैसे आते हैं ???....
सपने ही नहीं बैठे- बैठे विचार कहाँ से आते हैं??? जबकि मैं तो कम से कम बहुत प्रयास करने पर भी शून्य विचार स्थिति में नहीं पहुँच पाया हूँ (उसी प्रकार जैसे मैं कोई मन पसंद प्रोग्राम न दिखाई देने पर टीवी को बटन दबा बंद कर देता हूँ)??? क्या यह इशारा तो नहीं किसी अदृश्य प्राणी का - भूत का या भूतनाथ के हाथ होने का???
कृष्ण भी कह गए वो सबके भीतर '(योग)माया' से दीखते हैं, यानि मामला जोड़-घटाने का है, जैसे विष्णु के पहला अवतार वो खतरनाक पशु 'मगर' अथवा 'ग्राह' है, और उस की पकड़ से केवल विष्णु छुड़ा सकते हैं...
और उसी से न छूटे तो अष्टम अवतार कृष्ण तक कैसे पहुँच पायेंगे, और बीच बीच में २ से ७ तक, छह और भी बड़े- बड़े अवतार बैठे हुए हैं पकड़ने के लिए!
इसी लिए विघ्नहर्ता और संकटमोचन, अर्थात गणेश और हनुमान को मस्का लगाना पड़ता है मंगल हेतु - मंगल वार को ??? :)
और यह 'माया' कौन है जो भटका रही है द्वैतवाद/ अनंत वाद में - सच-झूट; मीठा/ कडुवा; अच्छा-बुरा, शक्तिशाली-कमजोर; आदि, आदि, दिखाने के पीछे जिसका हाथ है??? और क्यूँ???
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ReplyDeleteसब इंसान की सोच और हिम्मत होती है .....जिसका परिणाम हम देख ही रहे हैं ......! अगर इंसान डरता रहता तो आज इतना कुछ हमारे सामने नहीं होता ....!
ReplyDelete:) हम बोलेगा तो बोलेंगे के ...
ReplyDeleteकुछ तो कहो , कुछ भी कहो ! :)
DeleteJCJan 11, 2012 11:53 PM
ReplyDeleteकमाल तो गूगल अंकल का है! मैंने १२ की सुबह टिप्पणी लिखी और वो पहले से ही ११ की शाम को ही छपी पड़ी थी :)
एच जी वेल्स की टाइम ट्रेवल मशीन की याद आ गई :)
पर अभी तक मेरी टिप्पणी पहले स्पैम में ही जाती है, और दूसरी किन्तु छप जाती है...
जे सी जी , जाने कैसे कमेंट्स का फोर्मेट बदल गया है . समय भी गलत आ रहा है . आपकी टिप्पणियां भी दो जगह दिखाई दे रही हैं . अब क्या करें ?
Deleteउसका उत्तर भी गीता में ही है! दुःख में सुख में, विपरीत परिस्थितियों में दृष्टा भाव से स्थितप्रज्ञ रहिये, क्यूंकि वास्तविक कर्ता वो हैं, बहुरूपिया, सबके अन्दर उपस्थित... एक होते हुए भी अनेक एक्टर और दर्शक, और निर्देशक भी - थ्री इन वन प्रतीत होते पर्दे पर देखी जाती फिल्म समान जिसे देख कर, आनंद ले कर, आप फिर भूल जाते हैं एक सुखद अथवा दुखद स्वप्न समान :)
Deleteडॉ.साहब ....ये फोटो का ही कमाल है ...बाकि अपनी समझ से बाहर है ...पर अच्छा कमाल है |
ReplyDeleteअगर तस्वीरें असली हैं...तब तो सचमुच दीवानगी के इस आलम को क्या कहें
ReplyDeleteदीवानों की अपनी दुनिया है। उन पर बाकी जहां के नियम लागू नहीं होते। विडम्बना यह है कि इतने सब के बावजूद एक भी फोटोग्राफर ऐसा नहीं मिलेगा जो कहे कि वह ठीक वैसी ही तस्वीर कभी खींच पाया,जैसी उसने चाही थी!
ReplyDeleteजान हथेली पे लेके निकलने वालों का ज़वाब नहीं .आजकल एक ढूँढोगे हज़ार मिलेंगें .नया करना चाहता है है कोई .माइक्रोग्राम कर दिया गया है .डॉ दराल साहब आपका शुक्रिया सदैव ही आपका प्रोत्साहन मिलता रहे यह ज़रूरी है सम्पादन आप ही कीजिएगा .
ReplyDeleteJCJan 12, 2012 05:42 PM
Deleteजान हथेल्ली में लिए हुए कौन नहीं है आज, जब 'भारत' की जन संख्या बढ़ती ही जा रही है और उपलब्ध जमीन घटती जा रही है??? दिल्ली में घर के अन्दर बैठा हुआ भी इमारत के ढह जाने की आशंका - प्राकृतिक (सिक्किम जैसे भूमिकम्पन) अथवा मानवीय अज्ञान, भ्रष्ट आचरण आदि के कारण,,, सड़क में गाडी में भी छोटी सी बात पर भी गोलियां चलते पढ़ते आते हैं,,, मैं मुंबई में ही था जब आतंकवादी घटना घटी वर्ष '०८ में, और (स्वार्थी होने के कारण) टीवी देखता चिंता करता रहा जब तक बेटी घर वापिस न आगई - किन्तु इसे कृष्णलीला कहें अथवा भाग्य, कई भाग्यशाली नहीं थे जो चपेट में आगये, और आज सभी सोच रहे हैं कि कसब (कसाई?) कैसे सुरक्षित है???,,, आदि, आदि, और फिर वही यक्ष प्रश्न?... ...
दीवाने तो बस दीवाने हैं
ReplyDeleteकुछ दिवाने आम तो कुछ दिवाने ख़ास :)
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