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Thursday, January 19, 2012

नए साल का कवि सम्मेलन --जब श्रोताओं को नानी याद आ गई --


नए
साल का कवि
सम्मेलन चल रहा था
श्रोताओं की तालियों से मंच हिल रहा था

एक बुजुर्ग कवि सुर में कविता गुनगुना रहे थे
आँख में था मोतिया, पर प्रेम गीत सुना रहे थे

जैसे जैसे पंडाल में जाड़ा बढ़ने लगा
वैसे वैसे मंच का भी पारा चढ़ने लगा

एक कवि बीमार सा नज़र रहा था
पर वीर रस की कविता सुना रहा था

जैसे ही जोश में उसने उंगली उठाई
उसकी सिगरेट जैसी टाँगें चरमराई

और यदि पास बैठा हास्य कवि हाथ लगाता
तो वो वीर रस का कवि , वहीँ पे ढेर हो जाता

वीर रस के कवि मंच पर खूब दम भरते हैं
लेकिन घर जाकर घरवाली से बहुत डरते हैं

एक भारी भरकम कवि ने मां पर कविता सुनाई
श्रोताओं ने फिर जोर जोर से तालियाँ बजाई

मां तू बस एक बार वापस जा
मुझे फिर अपनी गोद में बिठा जा

मंच से एक कवि बोला,भला ऐसी मां कहाँ से आएगी
जो इस हाथी के बच्चे को गोद में बिठा पाएगी

लेकिन मां पर कविता हिट हो गई
कवियों के कवि मन में फिट हो गई

एक के बाद एक कवि मां पर कविता सुनाते रहे
श्रोता जोश में आकर तालियाँ बजाते रहे

सच मानिये उस दिन मां की कवितायेँ मंच पर छा गई
लेकिन सुनते सुनते, श्रोताओं को नानी याद गई

इत्तेफाक़न हास्य कवि का नंबर सबसे बाद में आया
लेकिन श्रोताओं को सबसे ज्यादा उसी ने रुलाया .



53 comments:

  1. एक कवि बीमार सा नज़र आ रहा था
    पर वीर रस की कविता सुना रहा था ।



    जैसे ही जोश में उसने उंगली उठाई
    उसकी सिगरेट जैसी टाँगें चरमराई ।

    :) बहुत सुन्दर डा० साहब, वीररस के कवि महाशय को पहले अपना शरीररस ठीक करना चाहिए !

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  2. vaah kya khoob haasya rang me rangi kavita likhi hai daral saahab maja aa gaya padhkar.

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  3. एक कवि सम्‍मेलन में एक हकला कवि था लेकिन जैसे ही उसे कविता सुनाने को खडा किया, बेधड़क उसने कविता सुनाई। बढिया रही आपकी भी कविता।

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  4. 'एक बुजुर्ग कवि सुर में कविता गुनगुना रहे थे
    आँख में था मोतिया, पर प्रेम गीत सुना रहे थे ।'
    - काश, यह संदेश बुज़ुर्ग रसिकों की समझ में आ जाये !

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    1. चलता है प्रतिभा जी । कवियों की जिन्दादिली भी जिंदगी का सार्थक सन्देश देती है ।

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  5. वन्स मोर वन्स मोर

    बढिया
    मजा आ गया

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    1. अरे क्या बोल रिये हो अंतर सोहिल जी । वंस मोर बोलकर अंडे पड़वाओगे क्या ।
      बढ़िया लगी तो वन मोर बोलिए । :)

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  6. चार बच्चों के नाना को भी नानी याद आगई हँसते हँसते:)

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    1. जे सी जी , आँखों देखी , कानों सुनी सुनाई है । :)

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  7. वाह क्या दृश्य खींचा है.:):) मजा आ गया.

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  8. बहुत सुन्दर....
    :-)

    आज रात सिरहाने चाक़ू रख कर सोइयेगा....ख्वाब में कवि आकर सताने वाले हैं..

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  9. बेहतरीन हास्य प्रस्तुत किया है दराल जी, खूब खिचाई भी कवियों की . एक ये भी सुन लीजिये
    " इतना दम है मेरी सूखी हुयी कलाई में,
    आज्ञा दे तो आग लगा दू फ़ौरन दियासलाई में"

    ऐसे ही खुश रहे और खुशियाँ बाटें

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  10. डॉ.साहब , बधाई ...
    कवि सम्मेलन हिट है !

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  11. चलो इसी बहाने आपको कविताई आ गई !

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    1. आ गई ?

      शुक्रिया भाई जी . :)

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  12. आप भी जम गए भाई जी ...
    शुभकामनायें आपको !

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  13. लेकिन सुनते सुनते, श्रोताओं को नानी याद आ गई.
    और कवियों पर सड़े टमाटरों की बौछार छा गयी...

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  14. डाक्टर साहब अपने मरीजों को यह कविता सुनाइये..जल्दी ठीक हो जायेंगे।

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  15. अच्छा हास्य विनोद .अलग बिंदास अंदाज़ आपके ,कवि सब हुए कायल आपके .

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  16. वाह जी, मज़ा आ गया।

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  17. कवि लोग तो यूं भी अच्छों अच्छों को भी नानी याद करवा ही देते हैं

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  18. मां तू बस एक बार वापस आ जा
    मुझे फिर अपनी गोद में बिठा जा ।

    क्या माँ को निकल फैका था जनाब ने जो वापस बुला रहे थे ......हा हा हा हा ....बहुत खूब डॉ. साहेब ..आपकी कविता के तो हम वैसे ही कायल हैं ही ..आज तो आपने भी हमें नानी याद दिला जी ...

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    1. दर्शी जी , कवि महोदय मां को स्वर्ग से बुला रहे थे .
      ऐसा भी कवि ही कर सकते हैं .:)

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  19. यह कवियों की ज़िंदादिल बिरादरी ही है जो खुद पर भी व्यंग्य का साहस रखती है।

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  20. एक अलग ही रंग देखा आज आपके ब्लॉग पर आकर बहुत ही बढ़िया हास्य कविता एक अलग ही दृश्य खींचा है आज अपने अपने लेखन में बहुत खूब शुभकामनायें ....

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  21. यह भी खूब रही जी.
    कवियों की क्या खूब जमी जी.
    उनको याद आई माँ
    और दर्शको को नानी.

    क्यूंकि नानी भी तो माँ की माँ ही है न.
    पर डॉ साहिब 'नानी याद आने' का आखिर इतिहास क्या है?
    दादी भी तो याद आ सकती है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  22. वल्लाह! क्या कविता सुनाई
    सुनकर हमने ताली बजाई :)

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  23. Replies
    1. अरविन्द जी , नानी क्यों --नाना क्यों नहीं --यह भी बताइये ना :)

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  24. (जो मैंने एक डॉक्टर से ही सीखा कि बच्चे को न कहने के स्थान पर उसका ध्यान बंटाना चाहिए), बच्चा हर वस्तु को छू, और पकड़, कर उसके बारे में अपना ज्ञान वर्धन करता है... किन्तु, सब वयस्क, माता-पिता आदि, छूते ही उस को एक दम से 'ना! ना!' कहते हैं ,क्यूंकि डर रहता है उनकी कीमती वस्तु टूट न जाए, इत्यादि...इस प्रकार, वो सीख जाता है कि बड़ों ने तो उस को सीखने नहीं देना है, 'ना' ही कहना है, वो टूटने वाली वस्तु को भी जान के गिरा के तोड़ देता है (शायद वर्तमान के 'कोलावेरी डी' का मुख्य कारण :)...
    इस लिए 'नाना' के नाम से तो भय हो सकता है, क्यूंकि उसे शायद थप्पड़ भी पड़ा हो किसी से! किन्तु 'नानी' शायद याद आ सकती है माँ से भी अधिक वात्सल्य की प्रतिमुर्ती!
    जय - सभी माताओं की माता - माँ दुर्गा की !

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  25. वास्तव में कवि जो जीवन में नहीं कर पाते उसे कलम के सहारे कविता में कर आनंदित हो लेते हैं .....

    मोतिया वाले भाई साहब और सिग्रेटी टांगों वाले महाशय कुछ ऐसे ही कवि रहे होंगे .....

    आपने क्या सुनाया .....?

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    1. सही कहा जी .
      आनंदित होने का हक़ तो कवियों को भी है . :)
      हमारी सुनाने की बारी ही नहीं आई .

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  26. मंच से एक कवि बोला,भला ऐसी मां कहाँ से आएगी
    जो इस हाथी के बच्चे
    को गोद में बिठा पाएगी ।
    bahut khoob .

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    1. एक माँ है जिसने हाथी के बच्चे ही नहीं असंख्य हाथियों, गैन्डों, आदि, आदि, और न जाने क्या क्या, वजनी बेटे बेटियों को अपनी गोद में बिठाया हुआ है! किन्तु बच्चे ही अंततोगत्वा मामा के घर चले जाते हैं!
      माँ को धरती माता कहा जाता है, और सर्व प्रिय मामा चंदा मामा हैं :p)...

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  27. नये साल मंच पे पुरनिया कवियों का तूफ़ान था
    तुकी बेतुकी सुन हर श्रोता हैरान-ओ-परेशान था :)

    बुजुर्गवार कवि का प्रणय निवेदन अब तक जवान था
    उसकी आँखों में घना अन्धेरा पर लबों पे तूफ़ान था :)

    दराल के जी में वीर रस के कवि को पीटने का अरमान था
    लेकिन दिन में जो चढाई थी उसके उतारे से वो परेशान था :)

    कवि ने जो मां पे कह दी उसपे बहिन की जोड़ना आसान था
    मगर गुस्सा वो जब्त कर गया क्योंकि प्रायोजक पहलवान था :)

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    1. हा हा हा !
      वीर कवि की पिटाई करना तो आसान था ,
      पर अंडे न टमाटर , न कोई और सामान था ।

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  28. बहुत मजेदार प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  29. आपकी प्रस्तुति को सुनीता जी की हलचल में देखकर अच्छा लगा.
    अली जी क्या कह रहे हैं 'दराल के जी में वीर रस के कवि को पीटने का अरमान था'
    क्या सच में?

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    1. राकेश जी , अली सा की बातें इतनी आसानी से समझ नहीं आती । :)

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    2. इससे पहले कि राकेश जी किसी और लाइन को कोट करें मैं खुद ही सफाई दे लेता हूं ... :)

      तीसरे शेर की दूसरी पंक्ति 'शक्तिवर्धक पेय' को संबोधित है ! इसी तरह से चौथे शेर की पहली पंक्ति का ताल्लुक सिर्फ मां बहिन पे कविता लिखने से है इसे दूसरे किसी अर्थ में ना पढ़ा जाये :)

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    3. अली सा यह शक्तिवर्धक पेय लेकर ही अक्सर कवि वीर रस की कविता सुना पाते हैं । :)

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  30. गुदगुदा गयी आपकी कविता ..
    kalamdaan.blogspot.com

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  31. आज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  32. बेहद खूबसूरती से पेश किया गया ....कविसम्मेलन

    मज़ा आ गया पढ़ कर ...बहुत खूब

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  33. bahut mazedar ....
    badhai is rachna ke liye ....!!

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  34. वाह ... गज़ब का हास्य है .. मज़ा आ गया डाक्टर साहब इस हास्य कवि सम्मलेन रचना में ...
    कवियों का खाका खींच दिया आपने तो ...

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    1. नासवा जी , कवियों की ही तरह , आधी सच्ची , आधी---मनगढ़ंत हैं । :)

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  35. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  36. बहुत खूब...बढ़िया दृश्य खींचा है कवि-सम्मलेन का.

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  37. ज़ोरदार कवि सम्मेलन...सम्मलेन में हास्य कवि की कविता ने श्रोताओं को ज़ार-ज़ार रुलाया होगा...व्यस्तता ज़्यादा है, पिछली अनुपस्थितियों के लिए माफ़ी चाहता हूं...​
    ​​
    ​जय हिंद...

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    1. खुशदीप जी , ये लो आप की ओर से भी :

      इत्तेफाक़न हास्य कवि का नंबर सबसे बाद में आया
      लेकिन श्रोताओं को सबसे ज्यादा उसी ने रुलाया .

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  38. जीवंत कवि सम्मलेन. हास्य रस से भरपूर

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  39. कवी सम्मलेन में कवियों का ही खाका खींच दिया .. बढ़िया हास्य

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