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Friday, January 6, 2012

पर्यावरण--बदमाश मनुष्य ही नहीं , पेड़ भी होते हैं ।

घर के पास एक छोटा सा पार्क है जहाँ हम अक्सर शाम को सैर के लिए जाते हैंपिछले वर्ष हमने पगडण्डी पर जमे इस पेड़ को ब्लॉग पर प्रस्तुत किया थाज़ाहिर है , यह सैर करने वाले लोगों को लिए एक खतरा था जिस पर टक्कर खाकर कोई भी गिर सकता थावैसे भी पार्क में सैर को आने वाले बुजुर्ग लोग ज्यादा होते हैं जिनके गिरने पर सबसे ज्यादा खतरा कूल्हे की हड्डी टूटने का होता हैयूँ समझिये की गिरते ही सबसे पहले यही हड्डी टूटती है । हालाँकि अक्सर बाथरूम में गिरने से ये दुर्घटनाएं ज्यादा होती है



बुढ़ापे में कूल्हे की हड्डी टूटने का मतलब है --या तो महीनों बिस्तर में पड़े रहें । या फिर ऑपेरेशन कराएँ ।
अक्सर ज्वाइंट बदलने की नौबत भी आ जाती है ।

अब ऐसा होने की सम्भावना तो कम ही लगती है कि नगर निगम के किसी अधिकारी ने हमारी पोस्ट पढ़ ली हो और तुरंत बात समझ में गई हो

लेकिन यह सच है कि कुछ ही महीनों बाद उस जगह का नज़ारा कुछ ऐसा था :


ज़ाहिर है , अब टकराकर गिरने की सम्भावना न के बराबर है । हाँ , कोई जान बूझ कर ही टक्कर मारे तो कोई क्या कर सकता है ।

यह तो हुई न वही बात कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ।
लेकिन यदि गौर से देखा जाए तो पता चलेगा कि पेड़ के तने के चारों ओर खाली जगह बहुत कम है । यानि पेड़ के विकास का भविष्य अभी भी खतरे में हैं ।

उच्च न्यायालय के आदेश अनुसार एक बड़े पेड़ के चारों ओर कम से कम १.२ मीटर जगह छोडनी चाहिए , उसके फैलने के लिए ।

लेकिन चलिए हम इस पेड़ को छोटा पेड़ मान सकते हैं जिस पर यह नियम लागु नहीं होता ।

अब ज़रा इस चित्र को देखिये :


दिल्ली के पोस्टल कोड नंबर १ में स्थित यह पेड़ फुटपाथ के किनारे उगा है । फुटपाथ को भी डबल कर करीब २० फुट चौड़ा कर दिया गया है । तने के चारों ओर खाली जगह भी छोड़ी गई है ।

लेकिन :

इस पेड़ की बदमाशी देखिये , २० में से १८ फुट जगह को ऐसे घेर लिया है जैसे दिल्ली में लोगों ने डी डी की ज़मीन पर अनाधिकृत कब्ज़ा कर रखा है
शायद इसी वज़ह से मुख्यमंत्री साहिबा ने डी डी पर अविश्वास व्यक्त किया है

अब सवाल यह उठता है कि जहाँ मानव जाति को बचाने के लिए पर्यावरण की रक्षा की जाती है , वहीँ पर्यावरण का प्रतिनिधि यह पेड़ , जो स्वयं मानव जाति के लिए खतरा बना हुआ है , क्या यूँ ही ऊंची पहुँच वाले लोगों की तरह मज़े उड़ाता रहेगा।

ज़ाहिर है --बदमाश मनुष्य ही नहीं , पेड़ भी होते हैं

अब इनके साथ क्या व्यवहार किया जाए ?



47 comments:

  1. बहुत खूब, डा० साहब, इस पेड़ में मुझे तो अपने देश के नेतावों के बहुत से गुण और लक्षण नजर आ रहे है ! जगह तो इसने ऐसे घेर रखी है मानो सरकारी प्लाट इसके बाप की प्रोपर्टी हो :)

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  2. are ped manushya si harkaten kar raha hai ...hahaha

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  3. पेड़ के साथ अभी जो चाहे व्यवहार कर लिया जाये पर अंतिम व्यवहार उसे ही करना है !

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  4. डॉक्टर साहब क्या खूब लिखा है आपने और साथ ही पेड़ का ज़बरदस्त चित्र लगाया है आपने! इस पेड़ ने तो पूरा रास्ता ही घेर लिया मानो उसीका जायदाद हो! अद्भुत तरह से फैलाये हुए अपनी शाखाएं जो सबके लिए मुसीबत बन गया है!

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  5. इसे माफ कर दिया जाये, क्‍योंकि यह फिर भी मानवों से कम शैतान है।

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  6. JC said...
    गीता में बताया गया है कि आदमी एक उल्टा पेड़ है.- अर्थात जैसा सब जानते हैं, पेड़ की जड़ 'धरती' में हैं और कई वृक्ष मानव समान अस्थायी तो है किन्तु, उन में से कई, हजारों वर्ष पृथ्वी पर ही परोपकारी जीव समान व्यतीत करते हैं (झगड़े उन में भी होते हैं, डार्विन ने भी जैसा समस्त प्राणीयों के विषय में पाया),,, जबकि मानव की जडें 'आकाश' में (अंतरिक्ष के शून्य में नाचते नौ ग्रहों के सार से बना होने के कारण) ... प्रसिद्द वैज्ञानिक (स्व.) कार्ल सेगान ने भी टीवी सीरियल कॉसमॉस में बताया था कि कैसे पेड़ और आदमी चचेरे भाई समान हैं, दो एक से क्रोमोसोम के विभिन्न मार्ग में उत्पत्ति कर भिन्न भिन्न रूप धारण कर, पशु यदि ऑक्सीजन को कार्बन डाई ऑक्साइड बना रहा है तो पेड़ उसको ग्रहण कर कार्बोन को खा, हमारे लिए ऑक्सीजन फिर से वातावरण में छोड़ दे रहा है...इस प्रकार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं...
    और धरा पर पहले वृक्ष का जंगलों में एकछत्र राज था... अतिक्रमण तो मानव ने किया क्यूंकि सब विभिन्न जीवों के बाद में ही वो इस धरा पर, उत्पत्ति के पश्चात, अवतरित हुआ - कभी शिव, तो फिर राम, और फिर कृष्ण, और अब संहार कर्ता काली के रूप में, (क्यूंकि योगियों ने जाना कि काल-चक्र उल्टा चल रहा है - सतयुग से कलियुग की ओर (यद्यपि उत्पत्ति विषैले कलियुग से चार चरणों में सतयुग पर पहुँच कर ही देवताओं को अमृत प्राप्त होना संभव हुआ, और सर्वगुण-संपन्न होना भी, और फिल्म समान अपना भूत देख पाना भी..:)

    January 6, 2012 7:21 PM

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  7. एक बड़ी दुखद घटना याद आ गयी...मुंबई में , मॉर्निंग वाक के लिए आए एक युवा के सर पर पेड़ की शाखा गिर गयी...और उसकी मौत हो गयी...इस तरह के खतरे का ध्यान कर...पेड़ की काँट-छाँट जरूरी है.

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  8. Survival of the fittest- पेड भी यह जानते हैं इसलिए वे ज़मीन के भीतर से अपना उदर-पोषण कर लेते हैं।

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  9. अब जबरदस्ती पैड के रास्ते .... रोड बनाएंगे तो यही हाल होगा न.

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  10. इस पेड़ की बदमाशी देखिये , २० में से १८ फुट जगह को ऐसे घेर लिया है जैसे दिल्ली में लोगों ने डी डी ऐ की ज़मीन पर अनाधिकृत कब्ज़ा कर रखा है।
    पेड़ को रास्ता नहीं दोगे ,वह भी रास्ता काटेगा .उसकी जड़ों को तो आपने हवा से महरूम रखके कोंक्रीत से घेर लिया रीयल्टर की तरह .

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  11. हा हा हा..यह भी खूब रही. आदमी अब पेड़ को ही बदमाश कहने लगे! गोया आदमी पहले आया था और बाद में पेड़!! एक कृपा तो की आदमी ने फुटपाथ बनाया मगर पेड़ के काटा नहीं। ताकि ब्लॉगर उसे देखें और कहें..बदमाश:)

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  12. वीरुभाई जी , यदि गौर से देखें तो इस पेड़ महोदय को कानून और नियम अनुसार पूरी जगह मिली है , अपनी जड़ें फ़ैलाने के लिए । लेकिन ये तो उंगली पकड़कर पोहंचा पकड़ रहा है । जड़ों के साथ साथ तना , टहनी और पत्तियां तक फैला रहा है ।
    मनुष्य का रास्ता तो ऐसे रोक रहा है जैसे पुरानी फिल्मों में रंजीत हिरोइन का रास्ता रोकता था ।
    अब समझे देवेन्द्र जी , काहे बदमाश कह रहे हैं । :)

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  13. आपकी पोस्ट पढकर क्या पता कोई इसका रास्ता भी निकाल ले और कुछ महीनो में यह समस्या भी हल हो जाये.

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  14. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.

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  15. अच्छी रचना |जानकारी बहुत अच्छी लगी धन्यवाद |
    आशा

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  16. इस संसार में बहुत कुछ अनजाना है...
    जम्मू-श्रीनगर मार्ग में कहते हैं एक 'ख़ूनी नाला' है, जहां किसी लापरवाह ट्रक चालक ने एक रात एक ट्रैफिक पुलिस (मार्ग-दर्शक अथवा गुरु) को टक्कर मार त्रीशंकू समान अंतरिक्ष में लटका दिया हो!... उसके पश्चात कहते हैं, कई ट्रक चालकों को उस स्थान पर एक पुलिस वाला दिखाई पड़ता था जो उन्हें सही मार्ग के स्थान पर नाले की ओर संकेत कर, उस में गिरा देता था! कई दुर्घटनाएं हुई उस स्थान पर!...

    यह पेड़ भी कोई पुराना ट्रैफिक पुलिस वाला (या कोई अन्य भटकी हुई आत्मा) हो सकता है!
    फिल्मों में जैसे यहाँ खुदाई करें तो शायाद उस की हड्डी / कंकाल मिले, जिसका विधि-विधान से अन्त्येस्ठी कर मुक्त किया जा सके... फिल्म / (ज़ी?) टीवी के लिए एक अच्छा स्क्रिप्ट तो बन ही सकता है :p)

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  17. JC said...
    इस संसार में बहुत कुछ अनजाना है...
    जम्मू-श्रीनगर मार्ग में कहते हैं एक 'ख़ूनी नाला' है, जहां किसी लापरवाह ट्रक चालक ने एक रात एक ट्रैफिक पुलिस (मार्ग-दर्शक अथवा गुरु) को टक्कर मार त्रीशंकू समान अंतरिक्ष में लटका दिया हो!... उसके पश्चात कहते हैं, कई ट्रक चालकों को उस स्थान पर एक पुलिस वाला दिखाई पड़ता था जो उन्हें सही मार्ग के स्थान पर नाले की ओर संकेत कर, उस में गिरा देता था! कई दुर्घटनाएं हुई उस स्थान पर!...

    यह पेड़ भी कोई पुराना ट्रैफिक पुलिस वाला (या कोई अन्य भटकी हुई आत्मा) हो सकता है!
    फिल्मों में जैसे यहाँ खुदाई करें तो शायाद उस की हड्डी / कंकाल मिले, जिसका विधि-विधान से अन्त्येस्ठी कर मुक्त किया जा सके... फिल्म / (ज़ी?) टीवी के लिए एक अच्छा स्क्रिप्ट तो बन ही सकता है :p)

    January 7, 2012 7:08 AM

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  18. Nice post.

    http://aryabhojan.blogspot.com/

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  19. पेड़ के नक्‍शे-कदम.

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  20. मनुष्य अपनी सुविधा के लिए पेड़-पौधों को भी सीधा कर सकता है !

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  21. कहीं कहीं बिना वजह पेड़ काटें जा रहे है और कहीं एक पेड़ जो की सही रूप में जनता की परेशानी का सबब है ..उसे हटाया नहीं जा रहा ..
    बस मनमानी चलती है हमारे देश में..
    kalamdaan.blogspot.com

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  22. खूबसूरत और सटीक तस्वीरों से सजे पोस्ट ने मन मोह लिए और उसपर आपके शब्द वाह क्या बात है दराल साहब आपकी तो बात ही निराली है.

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  23. मुझे तो लगता है कि पेड अपनी प्रॉपर्टी को वापिस पाने की कोशिश कर रहा है, जिसपर मानवों ने कब्जा कर लिया है।

    प्रणाम

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  24. itne time se insaano ke sath rahe hain kuch to seekhenge hi

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  25. ये पेड़ तो सचमुच ही....संगती का असर ....
    सुन्दर चित्र... बढ़िया पोस्ट.
    सादर.

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  26. पेड़ तो बेचारे एक दो ही हैं जो बदमाशी पर उतरे हैं और आपकी नज़र से बच भी नहीं पाए ..

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  27. shayad ye ped logon ke jyada kareeb aa jaate hain... varna kahan se seekhte badmashi..
    bahut badiya rochak prastuti hetu abhar..

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  28. इसका भी रास्ता इंसान काट कर निकाल लेगें,बहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति, ......
    WELCOME to--जिन्दगीं--

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  29. त्रिवेदी जी , यहाँ तो उल्टा हो रहा है । मनुष्यों को सीधा होकर निकलना पड़ता है ।
    सही कहा दिलीप जी , संगत का असर लगता है ।
    ये बात भी सही है संगीता जी । लाखों की भीड़ में इंसानों की करतूतों का तो पता ही नहीं चलता ।

    जे सी जी , यह तो पता नहीं कि पुलिस वाला है या कोई प्रेत आत्मा । लेकिन खतरनाक तो है ।

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  30. प्रकृति भी आज मनुष्यों के व्यवहार से बहुत कुछ सीख चुकी है..

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  31. अपनी शिकायतों के निराकरण के लिये ,जब कोई सुनवाई नहीं तो बेचारा पेड़ और क्या करे -वहीं धरना दिये है !

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  32. :-)
    मनुष्यों के बीच अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए बेचारे पेड़ को भी बदमाशी सीखनी पड़ी...क्या किया जाये.
    सादर.

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  33. @ " ...लेकिन खतरनाक तो है ।"
    जैसे शायर ने कहा, " साकी शराब पीने दे मस्जिद में बैठके / या फिर वो जगह बता दे जहां पर खुदा न हो...",,, ऐसे ही, पूछ सकते हैं कि खतरा कहाँ नहीं है???

    खतरा तो सभी जगह है...
    मूल तमिल भाषा, और अंग्रेजी भाषा के कॉकटेल का "कोलावरी डी" तभी तो आज सबकी जुबान / मन मस्तिष्क पर छा गया है, स्वदेश में ही नहीं, विदेश में भी :)

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  34. मन्ना दा ने भी पहले ही गाया था, "ए भाई! जरा देख के चलो! आगे ही नहीं, पीछे भी / दांये ही नहीं, बांये भी / ऊपर ही नहीं, नीचे भी"!... किन्तु, "हाय रे इंसान की मजबूरियाँ / पास रह कर भी कितनी दूरियां...", और, "गोकि खुशबु की तरह फैला था मेरे सामने/// सामने बैठा था मेरे/ और वो मेरा न था..."! आदि, आदि, मानव जीवन के सत्य को दर्शाता है (???)...
    आदमी सर्वोच्च कलाकृति तो है - पशु जगत में भोजन श्रंखला के शीर्ष पर भी, किन्तु अस्थायी है :(
    जैसे एक तब 'उभरते शायर' ने कभी कहा था, "हर फन में हूँ उस्ताद / मुझे क्या नहीं आता // सिर्फ टांग है लंगड़ी, दौड़ा नहीं जाता"!...

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  35. अनश्न पर पेड़- मुद्दे की सुनवाई किजिये या तकलीफ उठाईये. :)

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  36. बदमाश भले हों अमित्र नहीं होतें हैं पेड़ पर्यावरण के नेताओं के मानिंद .

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  37. हाहाहाहा क्या जबरद्स्त खोज है बदमाश पेड़ों की....पर जब आपने दुबारा लिख दिया है तो जरुर ही इसका इंतजाम भी किया जाएगा.....इसकी बदमाशी कहिए या अपने अधिकार की मांग..वैसे आसान तरीका है जो अभी शायद इस विभाग को याद नहीं आया....
    कई बार पेड़ों को उनकी जड़ों समेत उखाड़ कर सही जगह पर दोबारा लागा जा चुका है..अब देखने की बात ये है कि पेड़ की कातर पुकार,...या इसके बहाने आम आदमी कि तकलीफ का अहसास.... सरकारी बाबुओं को होगा या नहीं...या फिर आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद तत्काल असर हो और इस पेड़ को भी उचित जगह पर दोबारा जड़ समेत जगह प्रदान कर दी जाए....

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  38. आपको नववर्ष की शुभकामनाएं......देर के लिए क्षमाप्रार्थी हूं.....वैसे मैं देर करता नहीं...आप तो जानते ही हैं....

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  39. बहुत खूब
    ये बदमाश पेड़ नहीं शायद मजबूर पेड़ हैं

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  40. इन पेड़ों की बदमाशी तो सरेआम नजर आ रही है , मनुष्य का किया धरा तो खुली आँख से जल्दी से नजर नहीं आता ...
    नाले की जमीन पर कई मंजिला इमारतें बनती है , कई महीनों तक और कभी- कभी तो एक- दो वर्षों तक के निर्माण के समय उनपर किसी की नजर नहीं जाती, रंग रोगन के बाद बिक जाती है , तब दिखती हैं ...अब ये निकट दृष्टि दोष है या दूर दृष्टि दोष , आप चिकित्सक है ,शायद जानते होंगे !

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  41. काल के प्रभाव को दर्शाते कथनानुसार, "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है", दर्शाता है कि दोष अंतर्दृष्टि, अर्थात अधिकतर बंद आम आदमी की 'तीसरी आंख' का है!...
    वैसे ही जैसे सेब के ही नहीं किसी भी पेड़ से फल तो हर आदमी ने कभी न कभी देखे ही होंगे, किन्तु एक अंग्रेज वैज्ञानिक ही पेड़ से गिरते सेब से गुरुत्वाकर्षण शक्ति का सम्बन्ध निकाल पाया...
    और क्रिस्तान मान्यतानुसार आदम की बुद्धि भी शैतान के अर्धांगिनी ईव के माध्यम से मिले प्रतिबंधित फल को उसके द्वारा खाये जाने को ही माना जाता है, और जिसकी याद दिलाने के लिए मानव गले में एडम्स एप्पल भी प्राकृतिक रूप से विद्यमान है, आप भले ही 'हिन्दू' अथवा 'मुस्लिम' ही क्यूँ न हों... ..
    एक कहावत भी है, "हरेक दिन एक सेब खाना चिकित्सक को दूर रखने में सक्षम है" :).... .

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  42. रोहित जी , आपकी बात तो सही है । लेकिन हमने देखा है कि ऐसे में पेड़ को जला दिया जाता है , केमिकल से । सारा झंझट ही ख़त्म ।
    वाणी जी ने सही कहा कि बदमाशी तो मनुष्य करते हैं जो नज़र भी नहीं आता ।

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  43. सत्य तो यह है कि वर्तमान में कोई भी मानव व्यवस्था अभी तक सही नहीं बन पायी है, जबकि पृथ्वी और पर्यावरण, अथवा परिवर्तनशील प्रकृति, कम से कम साढ़े चार अरब वर्षों से तो अंतरिक्ष के शून्य में विद्यमान है (हिन्दुओं के अनुसार वो अजन्मी और अनंत है, और मानव ब्रह्माण्ड का मॉडल है, रचियता नहीं, जो कि निराकार है, अदृश्य और अनजाना शक्ति रुपी,,, यद्यपि उस के साकार रूप भी है, स्थायी परम शक्ति, अनंत आत्मा, और शक्ति के ही परिवर्तित अस्थायी भौतिक शरीर के योग से बने, भले ही वो खगोलीय पिंड के अथवा उनके सार से बने पशु जगत के प्राणी ही क्यूँ न हों - बदमाश अथवा नटखट :)...

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  44. 1. बेचारे ने मांगा था, ज़रा सा सहारा ...
    2. बच्चों ने शुरू से ही इस पर लटक-लटक कर इस पेड़ को टेढा कर दिया ... वर्ना ये भी आदमी था काम का.

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  45. ये तस्वीरें अदम्य जिजीविषा से भरी हैं। बस,इन पेड़ों की तुलना किसी कम सुविधा प्राप्त अथवा विकलांग व्यक्ति की जीवन-शैली अथवा उपलब्धि से करके देखने भर की देर है।

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  46. साले को कुछ ज्यादा ही तफरीह सूझ रही है :)

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    Replies
    1. अरविन्द जी , शायद टिप्पणी दूसरी पोस्ट पर लगा दी है .

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