इस के ठीक नीचे है राजीव चौक मेट्रो स्टेशन जहाँ रोज लाखों लोग मेट्रो से इधर उधर होते हैं ।
पालिका पार्किंग में गाड़ी पार्क कर बाहर आते ही भीड़ का एक मेला सा नज़र आता है ।
पार्क में एंट्री के लिए भी लाइन लगानी पड़ती है और सुरक्षा जाँच के उपरांत ही प्रवेश कर पाते हैं ।
ओपन एयर थियेटर ।
दूर नज़र आ रही है सिविक सेंटर की बिल्डिंग --दिल्ली की सबसे ऊंची बिल्डिंग ।
ओपन एयर थियेटर के चारों ओर यह लेक नहीं बल्कि फव्वारे हैं जो उस समय बंद थे ।
प्रष्ठभूमि में बाराखंबा रोड की बिल्डिंग्स।
सर्दियों की सुहानी धूप का मज़ा लेते हुए लोग घास पर ही लेट लगा रहे हैं । लेट कर भी पेट भरपेट नज़र आ रहा है ।
यहाँ हरियाली भी बहुत है ।
कनॉट प्लेस का इन्नर सर्कल । गाड़ियों और नर नारियों की भरमार ।
अंग्रेजों के ज़माने में बनाये गए भवनों का हाल ही में नवीनीकरण किया गया है ।
सब उल्टा पुल्टा । कुछ समझ आया ?
इस्कॉन ग्रुप के ये भक्त गर्दन में माइक लगाये गाते और बजाते हुए जनता का मनोरंजन कर रहे थे । थोड़ी देर में जो मज़मा लगा तो पुलिस को आकर इन्हें हटाना पड़ा ।
ये गुब्बारे वाला भी भीड़ का मज़ा ले रहा था ।
यहीं पर हमें एक जीते जागते गाँधी जी के दर्शन हुए । लाठी धोती समेत यह बुजुर्ग बड़े शौक से मुस्कराते हुए फोटो खिंचवा रहे थे ।
विंडो शॉपिंग के लिए सजावट ।
शाम होने लगी तो हम भी चल पड़े पार्किंग की ओर ।
शाम के धुंधलके में एल आई सी की बिल्डिंग --एक अनोखा इंजीनियरिंग मार्वेल ।
राष्ट्रमंडल खेलों के चक्कर में कनॉट प्लेस की अच्छी तरह से मरम्मत की गई है । बेशक अब यहाँ की कायापलट ही हो गई है । रिनोवेशन के बाद पहली बार यहाँ जाना हुआ । सी पी का बदला हुआ स्वरुप बहुत मनभावन लगा ।
लेकिन एक और रियलाइजेशन जो हुआ वो था यहाँ का बदला हुआ वातावरण देख कर । पहले जहाँ सी पी के सेन्ट्रल पार्क में आवारा , चरसी , सट्टेबाज़ और असामाजिक तत्त्वों का बोलबाला रहता था वहीँ अब यहाँ नई पीढ़ी का साम्राज्य नज़र आया ।
हमारी उम्र के लोग तो इक्का दुक्का ही नज़र आये । अधिकतर युवा लड़के लड़कियां खुले आम इश्क फरमाते नज़र आ रहे थे ।
७०-८० के दशक में दिल्ली में छेड़खानी की वारदातें बहुत कॉमन थी । इसलिए इस तरह खुला प्रेम प्रदर्शन कोई सोच भी नहीं सकता था । लेकिन अब पब्लिक पार्कों में भी जिस तरह युवा मौज मस्ती करते नज़र आते हैं, और लोग बेपरवाह अपनी धुन में मस्त रहते हैं ,उससे तो यही प्रतीत होता है कि सचमुच ज़माना बदल गया है ।
नोट : सर्दियों के मौसम में नर्म सुहानी धूप का मज़ा लेते हुए सी पी की सेल का फायदा उठाते हुए यहाँ शॉपिंग करने का अपना ही मज़ा है .
शानदार फोटो! दिल्ली देखकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteदिल्ली दर्शन चालू आहे ..वाह !
ReplyDeleteबढिया दिल्ली घुमाई आपने। संक्रांति की शुभकामनाएं
ReplyDeleteसभी फोटो दर्शनीय हैं,केवल पाँचवां फोटो डराता है. बड़ी बिल्डिंग भी कहीं पीछे छुप गई है,आपके सामने कहाँ ठहरेगी ?बाकी अली साब बताएँगे !
ReplyDelete@अधिकतर युवा लड़के लड़कियां खुले आम इश्क फरमाते नज़र आ रहे थे ।
...और अधिकतर बूढ़े उन्हें देखकर मन मसोस रहे थे !
त्रिवेदी जी , यानि सी पी जाना छोड़ना पड़ेगा :)
Deleteलेकिन वहां जाकर बूढा तो कोई रह्ता ही नहीं .
बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है अपनी दिल्ली !
शुभकामनायें आपको !
'CP',,, सन '५३ से आरम्भ कर शायद कई वर्ष तक हर शाम इस का चक्कर न लगालें खाना नहीं पचता था! अभी पिछले रविवार को ही छोटे भाई और उसकी पत्नी के साथ 'सीपी' का चक्कर लगा कर आये...
ReplyDelete"सब उल्टा पुल्टा । कुछ समझ आया ?" पढ़ समझ आया कि सारा चक्कर UP का और उसके इलेक्शन का है राजीव चोव्क वाले के बेटे का है :)
जे सी जी , पहले पता होता तो हम भी वहां पहुँच जाते .
Deleteउल्टा पुल्टा तो है कुछ . लेकिन क्या ?
कई साल कनॉट प्लेस में बिताने के बाद भी आज आपकी नज़र से देखने पर कहीं अच्छा लगा
ReplyDeleteबदल तो बहुत गया है काजल जी . जी करता है फिर कॉलेज वाले दिनों में पहुँच जाएँ .
Deleteएक दम सही :)
Deleteइंडियल आयल बिल्डिंग में पीछे की तरफ एक दुकान थी चायनीज़ खाने की. बस इसी का खाना हम अफ़ोर्ड कर पाते थे वर्ना कनॉट प्लेस के बाक़ी रेस्टोरेंट इतने महंगे थे कि उन्हें हम केवल देखने भर की जगह मानते थे :)
सिंधिया हाउस के पीछे गली में भी तो छोले भठूरे और कुलचे छोले वाला --शायद अभी भी बैठता है । क्या भीड़ रहती है वहां !
Deleteदिल्ली तो दिल वालों की है आपका भी दिल जवान है चलेगा कोई बात नहीं ....
ReplyDeleteडॉ.साहब ! बचपन याद दिला दिया आपने ....
ReplyDeleteमैं तो इन्ही पार्को में खेल कर जवां हुआ हूँ | हम पहाड गंज के रहने वाले हैं .....
"वो गल्लियाँ अभी तक हसीनों -जवां हैं ,
जहां मैंने अपनी जवानी लुटा दी .....!
आभार |
सलूजा जी , लुटाई नहीं , कमाई होगी . जल्दी ही वहां भी पहुंचेंगे .
DeleteWaah mazaa aagaya... Aaj emergency mein office jana pad raha hai... India Gate se guzarte huve CP ki photographs dekhne mein anand aagaya... Bahut din ho gaye hain CP gaye huve, lagta hai ab jana hi padega...
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteदांये हाथ में लिया कैमरा, कार के शीशे पर पड़ती परछाइयों में, बांये हाथ में लिया लग रहा है : बढ़िया इल्ल्युज़न, अर्थात 'माया' ?:)
ReplyDeleteक्या ये फोटो पिछले रविवार को ही लीं??? हमने भी कार भूमिगत पालिका पार्किंग में ही रखी थी... (छोटे भाई का नाम भी CP यानि 'चन्द्र प्रकाश' है, और उस को CP इसलिए अधिक आकर्षित करता है! और क्यूंकि केवल रविवार को ही आंध्र भवन में बढ़िया चिकन बिरयानी मिलती है, हम कभी कभी या तो वहाँ खा लेते हैं, किन्तु उस दिन पैक करवा लिया था...
जी नहीं , दिसंबर की है . बच्चों की छुट्टियों में गए थे .
ReplyDeleteजे सी जी , फोटो में सब कुछ उल्टा नज़र आ रहा है , पीछे लिखा हुआ भी .
त्रुटी माफ़! परछाइयां नहीं, प्रतिबिम्ब लिखना चाहिए था!
ReplyDeleteसुंदर तश्वीरें..
ReplyDeleteएक दिन ऐसा आयेगा जब हम सब घर बैठे दुनियाँ के बहुत से शहरों के बारे में लोगों को खट-खट बताने लायक हो जायेंगे भले से वहां कभी न गये हों। लोग पूछेंगे आपको कैसे पता? तो गर्व से कहेंगे..ब्लॉगर है भई! कोई ये वो नहीं हैं हम।
..ब्लॉगिंग जिंदाबाद।
आहा ....मजेदार .....!
ReplyDeleteज़रा सा हैरान हूं आज कि अशोक सलूजा साहब को आपकी भरपूर जवानी वाले फोटोग्राफ्स देख कर अपना बचपन क्यों याद आया :)
ReplyDeleteहमेशा की तरह सारे के सारे फोटोग्राफ्स बेहद खूबसूरत पर ...फोटो नंबर पांच गोया ग्रेगरी पैक और फिर दसवें फोटोग्राफ के हुस्न-ओ-जमाल पे तो इस्कान वाले ( फोटो नंबर ग्यारह ) भी थिरक पड़े :)
क्योंकि वो अभी भी ज़वानों से क्या कम हैं ! :)
Deleteबाकि तो आपकी नज़र पारखी है , क्या कहिये !
वाह क्या दिल्ली है.
ReplyDeleteये है दिल्ली...दिल वालों की ...
ReplyDeleteआपकी नज़र से बहुत अच्छी लगी..
शुक्रिया.
वाह मजेदार रही कनाट प्लेश की यात्रा का सचित्र वर्णन
ReplyDeleteफ़ोटो संख्या तीन में दिखाई दे रही इमारत के ऊपर से देखने पर इस जगह का नजारा ही अलग होता है।
ReplyDeleteचलिए बहुत दिन बाद कनात प्लेस का एक चक्कर हम भी लगायेंगें .दिल्ली को आपकी नजर से देखना पड़ेगा .खूबसूरत लगती है आपकी तरह शोख और हसीं भी .बेहतरीन छवियाँ प्रस्तुत की हैं आपने सी सी की .
ReplyDeleteहम तो पता नहीं किधर-किधर घूमते रहे सीपी में आज तक!
ReplyDeleteसुंदर चित्र... पर डर है कि इसका नाम भी न बदला जाय :)
ReplyDeleteसेंट्रल पार्क (CP) के स्थान पर राजीव (चौक) के साथ तो प्रियंका अथवा राहुल (वाटिका / बाग़ / बगीचा) संभव है???...:)
Deleteबहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति...
ReplyDeleteकनाट प्लेस की चित्रों की प्रस्तुति बहुत ही मनभावन है. रेनोवैसन के पश्चात कनाट प्लेस भी जवान हो गया है और इसकी खूबसूरती और निखर आई है.
ReplyDeleteबहुत समय हो गया फुर्सत में कनात प्लेस घूमे ... आपके चित्रों में आज वो आस भी पूरी हो गई ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया डाक्टर साहब ... मकर संक्रांति की शुभकामनायें ...
कैमरा धरने के बाद तो कोई आप सा शिकारी नहीं जे बात हम खूब समझ गए हैं । बढिया है सर एकदम धांसू आइडिया है , बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeleteपसंद करने के लिए शुक्रिया अजय झा जी :)
Deletenice photos, nice post
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
दिल्ली के प्रदूषण के बारे में पढ़ सुन कर हुई उकताहट को इन तस्वीरों ने दूर किया!
ReplyDeleteवाणी जी , दिल्ली में अब इतना प्रदुषण नहीं है .
Deleteबल्कि दिल्ली हमें तो सबसे सुन्दर लगती है .
सी०पी दर्शन ..फोटो बहुत बढ़िया हैं ..
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