top hindi blogs

Monday, January 16, 2012

टीम इंडिया की शर्मनाक हार-- क्यों इतना सेंटी होते हो यार !

ऑस्ट्रेलिया में भारत एक और टेस्ट मैच पारी से हार गयाविदेशी भूमि पर लगातार सातवीं हार और वर्तमान सीरिज में लगातार दूसरा मैच पारी से हारने के बाद , किसी भी क्रिकेट प्रेमी को सोचने पर मजबूर होना पड़ सकता है कि अब इसके बाद क्या

हमने क्रिकेट में दिलचस्पी लेनी शुरू की थी १९६९ में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरे पर आई थी, बिल लौरी की कप्तानी में । उन दिनों बस छोटे छोटे ट्रांजिस्टर होते थे , कमेंट्री सुनने के लिए । ट्रांजिस्टर भी किसी किसी के पास ही होता था । लेकिन जहाँ भी मौका मिलता , हम कान लगाकर खड़े हो जाते । लोगों में भी इतना उत्साह होता था कि हमारे स्कूल के बाहर एक चाय की दुकान वाला ब्लैक बोर्ड लगाकर पूरा स्कोर बॉल टू बॉल लिखता रहता था । हमें भी अचानक इतनी दिलचस्पी हुई कि कमेंट्री सुनते सुनते हमें ऑस्ट्रेलिया टीम के सारे सदस्यों के नाम रट से गए ।

लौरी, स्टैकपॉल, चैपल, सीहन, वाल्टर्स, रेडपाथ, कोनाली, मेकेंजी, टेबर , ग्लिसन , फ्रीमन , मेलेट
इस सीरिज के बाद , ऑस्ट्रेलिया को भारत में सीरिज जीतने में पूरे ३५ साल लग गए ।


उस समय भारतीय क्रिकेट में स्पिनर्स का बोलबाला था । बेदी , प्रसन्ना , चन्द्रशेखर और वेंकटराघवन की चौकड़ी विश्व भर में मशहूर थी । मीडियम पेसर के नाम पर होते थे बस आबिद अली और सोलकर जो बस दो चार ओवर फेंकते थे ।

फिर १९७१ में गावस्कर की एंट्री हुई गावस्कर और विश्वनाथ , जो बाद में साला जीजा बने , हमारी टीम के विश्वसनीय बल्लेबाज़ होते थे । गावस्कर की ठुक ठुक कभी कभी बोर भी करती थी, लेकिन उनकी जमकर खेलने की कला से उन्हें कई विश्व रिकोर्ड बनाने का अवसर मिला । सबसे ज्यादा शतक और रन का कीर्तिमान कभी उन्ही के नाम होता था ।

१९७९ में पाकिस्तान के विरुद्ध खेलते हुए कपिल देव का आगमन हुआ । कपिल पा जी एक ऑल राउंडर के रूप में छा गए । उनकी बल्लेबाज़ी देखने में बड़ा मज़ा आता था । उस समय के चार ऑल राउंडर थे --इमरान खान , इयान बॉथम , रिचर्ड हेडली और कपिल देव

१९८३ में विश्व कप जीतने के बाद १९८५ तक भारत की धाक जमी रही । सारजाह में चैम्पियन ऑफ़ चैम्पियंस ट्रॉफी जीतकर रवि शास्त्री मेन ऑफ़ द सीरिज बने थे जिन्हें गिफ्ट में एक औडी कार मिली थी ।

१९८९ में वंडर बॉय सचिन तेंदुलकर का क्रिकेट जगत में प्रवेश हुआ । तब से अब तक लगातार २२ साल से क्रिकेट खेलते हुए सचिन ने लगभग हर संभव रिकोर्ड तोड़ा या बनाया ।

१९९५-९६ में सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ ने भारित टीम में अपने पैर जमाये । तदपश्चात् करीब दस साल तक सौरव , सचिन , राहुल और लक्ष्मण की बल्लेबाज चौकड़ी ने टीम इंडिया को शिखर पर पहुँचाने में बहुत योगदान दिया । सौरव की कप्तानी में पहली बार विदेश में भी मैच जीतने लगे ।

इस बीच अनिल कुंबले ने एक मंजे हुए स्पिनर का रोल प्ले करते हुए , भारत के क्रिकेट इतिहास में पहली और आखिरी बार एक पारी में दस विकेट लेकर इतिहास रचा ।

कुंबले के बाद क्रिकेट कप्तान बने धोनी ने पहले अपनी बल्लेबाजी , फिर कप्तानी से टीम इंडिया को शिखर पर पहुंचा दिया ।

पहले प्रथम टी २० विश्व कप जिताया । फिर २०११ में वन डे विश्व कप जितायाइस बीच दो साल तक टेस्ट मैच में भी भारत की टीम नंबर एक बनी रही
देखा जाए तो यह समय भारतीय क्रिकेट के इतिहास में गोल्डन पीरियड कहा जायेगा । इस सफलता में धुरंधर बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग का रोल भी अहम रहा । सहवाग भारत के अकेले बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट मैच में दो बार तिहरा शतक लगाया है । साथ ही सहवाग वन डे मैचिज में एक पारी में सबसे अधिक रन बनाकर दोहरा शतक बनाने वाले सचिन के बाद दूसरे क्रिकेटर हैं ।

लेकिन वर्ल्ड कप की जीत के बाद टीम इंडिया के सितारे गर्दिश में आ गए । पहले इंग्लेंड में चार ज़ीरो से हारे । अब ऑस्ट्रेलिया में भी चार ज़ीरो से हारने का पूरा खतरा है ।

अब सवाल यह उठता है कि क्या सीनियर प्लेयर्स को रिटायर हो जाना चाहिए ?

लक्ष्मण : अब लैक्स मेन ( ढीला आदमी ) बन चुका है
राहुल द्रविड़ : को एक दो सीरिज खेल कर टॉप फॉर्म में सेवा निवृत हो जाना चाहिए
सचिन : के लिए बी सी सी को सोचना चाहिए और ज़िम्बाब्वे या बंगला देश को जल्दी से जल्दी भारत में टेस्ट मैच खेलने के लिए बुलाना चाहिए ताकि वह अपना सौवां शतक लगाये और देश की १२२ करोड़ जनता चैन की साँस ले सके
धोनी : को कप्तानी और टेस्ट खेलना छोड़ देना चाहिएआखिर किसी और विकेट कीपर को भी लाइफ बनाने का अवसर मिल जायेगाबेचारा पार्थिव पटेल जाने कब से इंतजार कर रहा हैपता नहीं १२ वीं पास भी कर पाया या नहीं

लेकिन अब सवाल यह पैदा होता है कि टेस्ट टीम की कप्तानी किसे सौंपी जाएगी । सहवाग और गौतम गंभीर दोनों आउट ऑफ़ फॉर्म चल रहे हैं । ऐसे में कप्तानी का भार डालना क्या सही रहेगा ।

तो क्या फिर से एक बार राहुल या सचिन को यह भार संभालना पड़ेगा ?

लेकिन हम और आप यह चिंता क्यों करेंपांच पांच सेलेक्टर्स हैं ना जो इस काम के लिए मोटी मोटी तनख्वाह पाते हैं

42 comments:

  1. यह भी गजब रही .....!

    ReplyDelete
  2. we need to rethink why all this noise over a game
    rahul dravid is highest run getter of last year
    sachin is highest century maker
    Dhoni is the captain all teams in the world want , gave india world cup
    and still we are dissatisfied ???
    sometimes i feel we behave like those parents who crib when their children get 90 % marks because the other child got 92%
    its good to expect 100% but it would be better if we treat our players with more respect and also as human beings who have family and who need space and time to be on their own

    players of Dhonis age and era dont play as if its the only option they play because that is a "job" they have chosen . they earn from various sources and dont bother much because they have secured their retirement plans

    world cup was national prestige and the team stood up so now let them play every time it cant be a prestige issue

    ReplyDelete
    Replies
    1. Rachna ji , we can't bask in the past glory. We have great players in the team , yet we are defeated again and again .All good things have come to an end .

      Prestige of a nation is greater than prestige of individuals .

      Delete
    2. "What goes up must come down"! and, "Everyone rises to his level of incompetence"!

      [Model, a water fountain, natural or man-made/ (cricket-match-like) repetitive Water Cycle for multiple use in 'Nature', including the animal world: Every drop of water goes up in different streams in all directions/ To fall down in the reservoir, ie, its origin... just as all rivers eventually meet their origin - the various seas/ oceans)... and so on...as the basis of the so-called Grand Design???!!!

      Delete
  3. बहुत बढ़िया :-)

    ReplyDelete
  4. Replies
    1. FOR THE SAKE OF THE PRESTIGE OF THE NATION !

      Delete
    2. JCJan 16, 2012 04:02 PM
      "What goes up must come down"! and, "Everyone rises to his level of incompetence"!

      [Model, a water fountain, natural or man-made/ (cricket-match-like) repetitive Water Cycle for multiple use in 'Nature', including the animal world: Every drop of water goes up in different streams in all directions/ To fall down in the reservoir, ie, its origin... just as all rivers eventually meet their origin - the various seas/ oceans)... and so on...as the basis of the so-called Grand Design???!!!

      Delete
  5. अच्छा, फिर कोई क्रिकेट मैच था क्या? (जस्ट किडिंग)

    ReplyDelete
    Replies
    1. शर्मा जी , यहाँ तो १०० करोड़ से ज्यादा लोग खाते , पीते और सोते जागते भी क्रिकेट के सपने देखते हैं . :)

      Delete
  6. "लेकिन वर्ल्ड कप की जीत के बाद टीम इंडिया के सितारे गर्दिश में आ गए । पहले इंग्लेंड में चार ज़ीरो से हारे । अब ऑस्ट्रेलिया में भी चार ज़ीरो से हारने का पूरा खतरा है ।"

    दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह भी नहीं जीत पाते अगर टूर्नामेंट देश से बाहर हुआ होता !
    मैं तो कहूंगा कि अब भारत सरकार को चाहिए कि इनसभी को फटा-फट भारत रत्न दे ही डाले !

    ReplyDelete
  7. जब कोई उंचाई को छू लेता है तो उसे नीचे भी उतरना पड़ता है... कोई चिंता नहीं.. टीम फिर एक बार फ़ोनिक्स की तरह उभरेगी। एक समय हम हाकी के शहन्शाह थे, और आज!

    ReplyDelete
  8. मैंने तो कब से मोहब्बत छोड़ दी,क्रिकेट अब सेंटियाने नहीं सोंटियाने का गेम हो गया है !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाय ! हम तो अभी भी क्रिकेट के दीवाने हैं .

      Delete
  9. मुझे तो कोच के ग्रह-नक्षत्र ठीक नहीं लग रहे। उसके आते ही यह बंटाधार शुरू हुआ है। ग्रेग चैपल एक बड़ा नाम था,तो लोगों ने चिल्लपों मचा दी। इस बेचारे की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा!

    ReplyDelete
  10. जी ग्रेग चैपल ने तो टीम का बंटाधार कर दिया था . उसके जाने का कोई ग़म नहीं हुआ था .
    लेकिन फ्लेचर भी एवाइन निकला .

    ReplyDelete
  11. सचिन : के लिए बी सी सी ई को सोचना चाहिए और ज़िम्बाब्वे या बंगला देश को जल्दी से जल्दी भारत में टेस्ट मैच खेलने के लिए बुलाना चाहिए ताकि वह अपना सौवां शतक लगाये और देश की १२२ करोड़ जनता चैन की साँस ले सके
    एकदम सही कहा हा हा हा .
    रही बात कप्तानी की, तो एक टेलेंट हंट इसका भी कर लिया जाये ..भारत में टेलेंट की कमी नहीं.

    ReplyDelete
  12. bahut achchi jankari di hai aapne cricket ke prati aapki deevangi spasht jhalak rahi hai.sachin ke liye aapka mashvara ek dum durust hai...hahaha...shatak ban jaaye to sabhi chain ki saans le.par main samajhti hoon ki dhoni ko aur mauka dena chahiye.

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजेश जी , सुना है धोनी ने खुद ही कहा है कि वो २०१५ का वर्ल्ड कप खेलना चाहता है इसलिए टेस्ट मैच खेलना छोड़ सकता है ।
      लेकिन एक बात तो है कि उसकी कप्तानी में एग्रेशन नहीं है जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के साथ रक्षात्मक खेल नहीं चलेगा ।
      दूसरे कप्तानी से उसकी बैटिंग पर भी असर पड़ रहा है ।
      आगे तो सेलेक्टर्स जाने ।

      Delete
  13. जब बाहर जीत नहीं सकते तो वहां खेलने जाते ही क्यों हैं.... अपना देश कोई छोटा है क्या... अरे भई यहीं इधर-उधर देश में ही घूम घूम कर क्यों नहीं खेल लेते ये

    ReplyDelete
  14. शायद क्रिकेट भी एक लत है ! आपको तो उनका अहसानमंद होना चाहिये कि उन्होंने अच्छे अच्छों की लत छुड़ा दी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. छुड़ा कहाँ दी अली जी .
      और लगा दी जैसे आई पी एल .

      Delete
  15. १९४७ से पहले, पिछली कुछेक सदियों में आधे संसार में जिन्होंने कौलोनी बना राज्य किया, और कहावत प्रसिद्द हो गयी कि अंग्रेजों के राज्य में सूरज डूबता ही नहीं है, उनके द्वारा सर्दी की ठण्ड से बचने के लिए जाड़ों में, खुले आसमान के नीचे खेला जाने वाला खेल, क्रिकेट एक ऐसा मनोरंजक खेल है जिसने भारतीयों को, अंग्रेजों से भी अधिक प्रभावित किया है - विशेषकर स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात... जैसे आपने भी इसका संक्षिप्त इतिहास लिखा, इसमें शक नहीं है कि सारे खेलों में इसे, अमीर भारत में कम से कम, आज सबसे लोकप्रियता के आधार पर सर्वोच्च स्थान दिया जाता है...
    यद्यपि कभी, स्वतंत्रता पूर्व, 'निर्धन भारत देश' में हॉकी / फुटबौल को यह स्थान दिया जाता था, जिसे खेलने के लिए केवल एक सफ़ेद गेंद और एक एक स्टिक/ रबर की गेंद की ही आवश्यकता होती थी - खेलने के लिए एक हरे मैदान के अतिरिक्त - जो लगभग सभी मैदानी खेलों में मुख्य भाग होता है, भले ही खेल को विश्व में कहीं भी खेला जाए...

    जिस कारण जब खिलाड़ियों को भी 'भारत रत्न' देने पर वर्तमान में विचार किया जाने लगा है तो सचिन का ही नाम सबके मानस-पटल पर पहले आया.:) और तभी उसके बाद ध्यान चंद के नाम पर भी ध्यान आ, उस पर प्रकाश डाला जाने लगा है, क्यूंकि किसी भी सोच पर मानव समाज सदैव कम से कम दो भाग में बंट जाता है (द्वैतवाद?)... और जैसे- जैसे संख्या बड़ी होती जाती है, एक तीस्क़रा भाग भी संभव हो जाता है, जो न तो इधर के होते हैं न उधर के, यानि जो 'निर्गुण' मध्य मार्गी होते हैं ('सान्नू की फर्क पैंदा है', यह हो या वो हो, हमको तो नहीं मिलना है न :) और यही ढर्रा गणतंत्र में नेता चुनने में भी दिखाई देता है... इतिहास भी दर्शाता है कि कैसे कैसे राजा / मंत्री/ प्रधान मंत्री / बॉस आदि देखने को मिलते रहे हैं पिछले कई शतक/ दशक में ही... जितने भूत में जाना मानव के लिए संभव हो पाया है... और भूतनाथ तक पहुंचना क्या वर्तमान में लिसी व्यक्ति के लिए संभव हो सकता है, योगियों को भी नहीं शायद, वर्तमान में (काल के प्रभाव के कारण??? जैसा हमारे पूर्वजों ने कहा???)...

    ReplyDelete
  16. गत कई दशकों का आँखों देखा हाल सुना दिया आपने .धोनी शिखर छू चुकें हैं टेस्ट किरकेट को अलबिदा कहने का मन भी बना चुकें हैं .कूल हैं कूल ही रहेंगे .सचिन को हम सचिन क्यों नहीं रहने देना चाहतें ?आखिर रण तो बना रहें हैं वह अभी भी ,उन्हें खेलने दिया जाए जब तक वह सहज रहतें हैं खेल के साथ खेलने दिया जाए .

    ReplyDelete
    Replies
    1. खेल तो अच्छा रहे हैं , पर किस्मत साथ नहीं दे रही .

      Delete
  17. आप को इत्ते सारे नाम याद हैं!
    अंत में सभी खिलाड़ियों के रनो का विवरण छपा होगा जिसमें सचिन ही सबसे ऊपर नज़र आयेगा।

    ReplyDelete
  18. सर हम तो कहते हैं कि कुछ दिन तक ई लोग को क्रिकेट छोड के फ़ुटबाल खिलाया जाए ...का पता कुछ नया कर दिखाए लईका सब , टलेंटेड त हईये है । आ बांगलादेश न तैयार हो तो बरमुडवा को बुला के बीस टेस्ट मैच का सीरीज़ खिलवाया जाए ..सब रिकार्ड न टूट जाए तो कहिएगा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ठीक कह रहे हो भैया . हम तो बस अपनी गली के शेर बन कर रह गए हैं .

      Delete
  19. मुझे तो पहले से ही पता था की भारत कभी जीत नहीं सकेगा ऑस्ट्रेलिया के साथ और वो भी ऑस्ट्रेलिया में आकर और मेरा सोचना बिल्कुल सही हुआ! पर्थ में आखरी टेस्ट हुआ था और मेरे काफी दोस्त देखने गए थे और बाद में पछताने लगे की पैसा बर्बाद हुआ जाकर!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आज हमारे जीवन में पैसा इतना हावी हो गया है कि जो युवक देश के लिए क्रिकेट खेल रहे होते हैं, वो आज करोड़ों रुपये कमा तो रहे हैं ही, सट्टा लगाने वाले और मैच फिक्स कराने वाले भी करोड़ों कमा रहे हैं! जिस कारण यह खेल अब 'जेंटल मैन' के लिए नहीं रह गया - राजनीति के खेल की भांति!... आरंभिक काल में एक समय था जब खिलाड़ी बीमार पड़ते थे तो उनके इलाज के लिए पैसेm उन के लिए बैनेफिसियरी मैच खेल, एकत्रित किये जाते थे :(

      Delete
  20. अपने विचार रखने का सब को अधिकार है ....मनोरंजक वाद-विवाद :-)

    ReplyDelete
  21. तो चिन्‍ता सलेक्‍टरस को ही करने दो ना, काहे को ज्‍यादा सोचना। खेल है कभी हार तो कभी जीत।

    ReplyDelete
  22. अच्छा! तो आप अपने सुझाव भी दे गए और हमें गच्चा दे गए कि हम क्यों टेंशन लें?? सही है सर.. :)
    खैर जो हो, हो.. अब तो दिल उठ रहा है इतना क्रिकेट देख-देख कर.. अच्छा है कुछ शोर तो कम होगा..

    आभार
    प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें..

    ReplyDelete
  23. JCJan 17, 2012 06:31 AM
    वर्तमान में आर्थिक विकास की चर्चा हो तो, मान चित्र में उत्तरी अमेरिका को देखें तो विष्णु के गरुड़ की याद आ सकती है, जो दिन में नीला प्रतीत होता है, 'आकाश' ( नीलकंठ शिव? अथवा पंचभूतों में से एक भूत/ तत्व) पर राज करता दर्शाया जाता आ रह है, अनादि काल से... और अमेरिका आकाश ही नहीं वरन अंतरिक्ष की रेस में एक नंबर पर है...
    और इसे संयोग कहें कि डिजाइन, कि दक्षिणी गोलार्ध में अवस्थित गौर से ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप को देखें तो यह एक बैल (नंदी?) का सर समान दीखता है! अर्थात शिव का वाहन? वो 'शराबी', सोमरस पान करने वाला भूतनाथ??? पर्थ की पिच पर भी खेल से पहली रात को बीयर पीने वाले उसके भूत ही रहे होंगे :)

    ReplyDelete
  24. 'सत्य' तो यह है कि प्रकृति सांकेतिक भाषा में बोलती है... वो नहीं कहती जाड़ा, या गर्मी,, या बरसात, या पतझड़ का मौसम आगया... आपसे कहलाती है, एक माँ के अपने बच्चे समान, स्वेटर पहनो अथवा उतारो, बरसाती से ढांको, आदि, आदि - विभिन्न नाम देने को, प्रकृति की विभिन्न अवस्थाओं, व्यक्ति आदि, आदि, विभिन्न कलाकृतियों को विभिन्न नाम से पुकारने को...

    क्रिकेट के खेल को सांकेतिक भाषा में (... !!! ...) से दर्शाया जा सकता है (अर्थात तीन डंडे-बिन्दू से)...

    और यह तो सभी खेल-प्रेमी, जो भले ही केवल टीवी पर ही देखते हैं, जानते हैं कि बरसात में तो पैसे बढ़ने के साथ साथ तकनिकी में भी वृद्धि होने के कारण मैदान को भी अब ढंका जाने लगा है,,, पिच तो पहले भी ढंकी जाती थी...

    और न जाने क्या क्या सुविधा हो गयी है जिस से संभव हो सके कि खेल और मनोरंजन चलता रहे, अनंत काल तक :)

    किन्तु जैसा 'हिन्दू' कह गए, जैसे हमारे जीवन में दिन रात, औसतन १२-१२ घंटे के, तो रोज २४ घंटे के एक दिन में आते ही रहते हैं, वैसे ही 'ब्रह्मा' की रात भी निश्चित है उस के लगभग साढ़े चार अरब के दिन गुजर जाने के बाद...

    और इसे प्रकृति की मजबूरी कहें कि 'आधुनिक वैज्ञानिक', खगोलशास्त्री, कहते हैं कि पृथ्वी / सौर-मंडल की वर्तमान आयु लगभग साढ़े चार अरब वर्ष हो चली है :( ... ...और इस कारण शायद सभी 'मैच' 'फिक्स्ड' हैं, भले ही 'मिसमैच' हों...:)...

    इस लिए शायद सेंटी हो रहे हैं 'हम' जो बोर तो हो चले हैं किन्तु आदत से मज्क्बूर है सद्चिदानंद की तालाश में :)

    ReplyDelete
  25. डॉ दराल शीर्ष पर पहुंचना उतना मुश्किल नहीं होता जितना वहां टिका रहना .लेकिन लोग मर्द की तरह जल्दी खारिज हो जातें हैं एक्सपोनेंशियल राइज़ एंड एक्सपोनेंशियल फाल ,पठार पर दीर्घावधि टिकना असली करतब है .ज़रुरत है वहां औरत की तरह बने रहना ,कायम रहना शिखर पर .क्रिकेट से लेकर बोलीवुड तक सब जगह परिदृश्य यकसां है .

    ReplyDelete
  26. JCJan 18, 2012 06:19 PM
    प्रकृति के संकेत पर ही, जब मैं नई दिल्ली में बिरला मंदिर के साथ लगे स्कूल का विद्यार्थी था ('४५ से '५५ सन), तो स्कूल में ही लगे विज्ञान मेले में एक फव्वारा दर्शाया गया था - जिस में केंद्र में ऊपर उठती धाराओं पर एक टेबल टेनिस की हल्की गेंद रखी हुई थी जो वहाँ पर टिकी हुई थी, जल के दबाव के घटते अथवा बढ़ते साथ, हर अवस्था में धारा के बीच में ही, जबकि किनारे की ओर की धाराओं में रखने पर वो तुरंत नीचे आ गिरती थी...

    अब में उस मॉडल को ध्यान में रख सोच सकता हूँ क्यूँ महात्मा बुद्ध ने 'मध्य मार्ग' सुझाया... अथवा कैसे एक फकीर (कम भार वाला, एक संतोषी व्यक्ति ?:) मन को ऊंचे स्तर पर रख स्थित्प्रग्य रह सकता है, जैसे गीता में कृष्ण ने भी सुझाव दिया है...

    और बिरला (लक्ष्मी-नारायण) मंदिर में एक कृष्ण-जन्माष्टमी के दिन (भीड़ में दब, हवा में लटके त्रिशंकु समान :) मैं सीढियां बिना जमीन को छुवे ऊपर पहुँच गया (यद्यपि उस समय एक दम अन्धकार और सांस लेने में कठिनाई के कारण मैंने तब सोचा था कि मैं मर गया हूँ :)... मैं अस्सी के दशक में 'ब्लैक होल' (हिन्दुओं के 'कृष्ण') के बारे में पढ़, विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण, जान पाया कि कैसे 'कृष्ण' हरेक के भीतर विद्यमान हो सकते हैं :)... ...
    अपने सौर-मंडल और गैलेक्सी के विषय में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अब में क्रिकेट के खेल को उनका मॉडल देख सकता हूँ :)

    ReplyDelete
  27. .


    हैं और भी बहुत ग़म क्रिकेट के सिवा…

    मस्त रहें जी मस्ती में…

    ReplyDelete
    Replies
    1. दुःख तो है , जिसका अभी पता चला ।

      Delete
  28. आपकी क्रिकेट की जानकारी बहुत अच्छी लगी.
    अब क्रिकेट उबाऊ लगती है जी.
    टीम के हारने पर तो टी वी सेट ही आफ रखते हैं.

    ReplyDelete
  29. पहले जब भारतीय टीम हारती या जीतती थी तो एक उमंग बनी रहती थी .. अब उत्साह की कमी हो गयी है , देखने वाले इतना ज्यादा क्रिकेट देख कर बोर हो चुके हैं .. कोई भी कप्तान बने क्या फर्क पड़ेगा ..

    ReplyDelete