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Monday, January 23, 2012

दिल्ली की सर्दी और शादियों का सीजन--टोटल कन्फ्यूजन...

देश की १२२ करोड़ जनता में से करीब पौने दो करोड़ लोग दिल्ली में रहते हैं । हम जैसे हर औसत दर्जे के व्यक्ति की कम से कम १२२ लोगों से तो दोस्ती होती ही होगी । फिर रिश्तेदार , कार्यस्थल पर सहकर्मी और तत्कालिक सहयोगी भी मिलकर १२२ और हो जाते होंगे । इन सब को मिलाकर हर वर्ष शादियों के सीजन में १०-१२ परिवारों में शादी अवश्य होती होगी । यानि हर सर्दियों में कम से कम १०-१२ शादियों के निमंत्रण

गुजरे ज़माने में हरियाणा में शादियाँ गर्मियों में ही होती थी । इसकी वज़ह रही होगी -- अप्रैल तक रबी की फसल तैयार होकर आमदन का होना । एक बार पैसा हाथ में आ जाए तो किसान को तीन ही काम सूझते थे --एक लड़की की शादी करना --दूसरा घर बनाना --और तीसरा लड़ाई झगडा कर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना ।

लेकिन शादियों के लिए तपतपाती गर्मी में मई जून के महीने ही होते थे

पहले सगाई , फिर लगन और आखिर में शादी का दिन --यानि दावत का दिन । सारे गाँव को न्यौता दिया जाता । आस पड़ोस और करीबी घरों में चूल्हा न्यौत ( घर के सब सदस्य) निमंत्रण दिया जाता ।

लड़के की शादी में एक दिन पहले दावत का इंतजाम होता । दावत में लड्डू , साथ में पूरी और सीताफल की सब्जी होती । घर के दालान में सफाई कर , फर्श पर टाट बिछाकर पंगत लगाई जाती । ठीक वैसे जैसे गुरूद्वारे में पंगत में बैठकर खाना खाते हैं । लोगों में लड्डू खाने की होड़ लगी होती ।

लड़की की शादी में खाने में मिठाइयों में लड्डुओं के साथ जलेबी भी बनाई जाती । जिसका काम थोडा अच्छा होता वह सात तरह की मिठाइयाँ बनवाता जिसे तस्तरी कहा जाता था । रंग बिरंगी मिठाइयाँ बड़े चाव से खाई जाती ।

कुल मिलाकर गाँव में शादियाँ पूरे गाँववासियों के लिए एक जश्न का माहौल पैदा कर देती थी

धीरे धीरे गाँव में शहर का असर आने लगा । फिर वहां भी टेबल पर बफ़े सजाकर खड़े होकर खाने की रिवाज़ शुरू हो गई जिसे आरम्भ में बड़े बूढों ने बहुत बिसराया । लेकिन अंतत : वक्त के आगे सभी को झुकना पड़ा ।

अब शादियों के मामले में शहर और गाँव में कोई फर्क नहीं रह गया

इधर शहर में भी अब शादियों का स्वरुप बहुत बदल गया है ।
अब लगभग सभी लोग विद फैमिली निमंत्रण देते हैं । लेकीन बहुत कम लोग निमंत्रण देने के लिए घर पर आते हैं । या तो कार्ड ऑफिस में पकड़ा दिया जाता है या फिर कुरियर से घर भेज दिया जाता है ।

उस पर अक्सर दिल्ली की शादियाँ किसी पेज थ्री पार्टी से कम नहीं होती जहाँ मौजूद होना भी एक स्टेटस सिम्बल माना जाता है

लेकीन सबसे ज्यादा असमंजस्य की स्थित तब आती है जब कार्ड तो मिल जाता है लेकिन बुलाने वाला खुद कार्ड देने आता है , फोन करता है बस कार्ड भिजवाकर अपने घर में शादी की सूचना दे देता है


ऐसे में अब सवाल यह पैदा होता है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए
क्या उस शादी में जाना चाहिए जिसमे आपको बस कार्ड भिजवा दिया गया है ?
या ऐसी शादी में नहीं जाना चाहिए ?
इस बारे में आपके क्या विचार हैं , कृपया अवश्य बताईयेगा

50 comments:

  1. पहले की शादियाँ - वो लड्डू सेव निमकी .... उसका मज़ा ही अलग था ! जो खुद ना कहे , कार्ड किसी और से भेज दे , वह खानापूर्ति करते हैं तो नहीं जाना बेहतर है .

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  2. शादियां पहले गर्मियों में ही होती थी पर जब से पानी और बिजली की किल्लत होने लगी, सर्दियों ने शादियों को जकड़ लिया:)

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  3. डॉक्टर साहब, रुक्खा मिल गया तो समझो कि निमंत्रण मिल गया, अब यह फ़ार्मेलिटी का ज़माना तो है नहीं कि मीलों जाकर एक-एक को निजी तौर पर निमंत्रण दें। हम तो ऐसे निमंत्रण पर भी चले जाते हैं जो पोस्ट से आये। यह और बात है कि अब अपनी मजबूरियों के कारण अधिक नहीं जा पाते हैं:(

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    1. प्रसाद जी , कार्ड जैसे भी मिले , सवाल यह है कि कार्ड भेजने वाला यदि कार्ड भेजकर फोन भी नहीं करता , तो क्या जाना चाहिए ।

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  4. डा० साहब, कुछ ख़ास वजहों को छोड़ अगर एक ही शहर में आप भी हों और कार्ड पोस्ट अथवा कुरियर से भेजने वाला भी, तो मेरा यह मानना है की हरगिज नहीं जाना चाहिए ! हाँ, भेजने वाले का शहर अथवा गाँव दूरी पर हों तो उसकी भी कुछ मजबूरियों का ध्यान रखा जा सकता है ! बाकी जहाँ तक सगन देने की बात है, रिश्ता अथवा जन-पहचान बहुत क्लोज हो तो पहले वाले केश में मनीआर्डर अथवा कुरियर से चेक अवश्य भेजकर यह भी जतलाना चाहिए की टिट फॉर टैट !

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    1. गोदियाल जी , आजकल लोग भी बड़े ढीढ हो गए हैं । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।

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  5. Card koi kaise bhej raha hai, iski jagah yeh dekhna chahiye ki invite karne wala kitna kareebi hai... Waqt aur Qurbat ki calculation ke baad hi faisla lena chahiye ki jana sahi hai athva nahi...

    Qurbat hai to courier to kya phone par invitation bhi chalega...

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    1. शाहनवाज़ जी , ज्यादा करीबी लोगों से ज्यादा उम्मीद होती है कि वो कम से कम फोन तो कर दे । व्यक्तिगत रूप से आने के लिए आजकल बड़ी दिक्कतें हैं ।

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  6. बिना बुलाए ऐसे ही शादी में चले जाने का कोई मतलब ही नहीं बनता ....

    बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    मान न मान, मै फिर भी तेरा मेहमान!
    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!

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  8. यदि मैं ठीक-ठीक स्मरण कर रहा हूं,तो दशद्वार से सोपान तक में एक प्रसंग आता है कि अमिताभ की शादी पर हरिवंश राय बच्चन ने बहुत करीबियों को भी निमंत्रण नहीं दिया। बाद में,सबको पत्र से सूचित कर निवेदन किया गया कि वे जहां हों,वहीं से वर-वधू के लिए आशीर्वाद दें।

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  9. वाह डॉ साहब क्या बात है!!!पूरी पोस्ट ही बहुत बढ़िया है मगर मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि फसल आते ही किसान के पास तीन ही काम होते है एक लड़की कि शादी ,दूजा घर बनाना और तीजा लड़ झगड़ कर कोर्ट कचहेरी के चक्कर काटना हा हा !!! एक दम सटीक बात कही है आपने मज़ा आया पढ़कर हर बार कि तरह यह पोस्ट भी बहुत बढ़िया रही :) शुभकामनायें

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  10. card agar khud dene nahi aate to aur bhi bahut madhyam hain nimantran dene ke jaise phone,internet aadi khali kard bhej kar fir koi batcheet na karen to main to yesi shadi me nahi jaaungi.maine bhi do bachchon ke shadi ki hai double double nyota diya hai arthat card bhi diya phone bhi kiya.

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  11. पता नहीं डॉ साहब ! हमारे यहाँ तो ई कार्ड आता है :(. अब बताइए क्या किया जाये ? जाया जाये या छोड़ दिया जाये.

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    1. शिखा जी , कार्ड इ-मेल से आए या पोस्ट ऑफिस की मेल से या फिर कुरियर से , बात तो एक ही है । लेकिन कार्ड भेजने वाला यदि आपको फोन नहीं करता, तो इसका क्या अर्थ है , यही समझने की बात है ।

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  12. बफैलो सिस्टम ने शादी का मजा तो किरकिरा कर ही दिया है। औपचारिकता रह गई है। कार्ड मिला..न्यौता लिखवाया..भोजन किया..चलते बने।

    हम तो इस शादी के मामले में लिंग भेद करते हैं। लड़की की शादी का न्योता चाहे जैसे मिले पहुँच जाते हैं। मित्र खास है, किसी से पता चला कि उसकी लड़की की शादी है तो बिन बुलाये भी पहुँच जाते हैं। यह मानकर कि व्यस्तता में बुला नहीं पाया होगा या कार्ड भेजा ही होगा मुझे किसी कारण से नहीं मिल पाया। यह हो ही नहीं सकता कि उसकी बेटी की शादी हो और मुझे ना बुलाया हो। दिल का मामला है..यह तो संबंधों पर निर्भर करता है कोई क्या बताये कि कहां जाना चाहिए कहां नहीं।

    लड़के की शादी में तब जाना पसंद करते हैं जब वह मुझे तीनो बार बुलाये..तिलक में..बारात में ले चले..तब प्रीति भोज में। यह नहीं कि मेरे पुत्र की शादी है ..प्रीति भोज फलाने तारीख को है..जरूर आना। बहाना मार देते हैं..अरे यार! बहुत व्यस्त थे..क्या करें? अपवाद यहां भी है..बुला कौन रहा है..! यहां भी दिल का मामला है..कोई बताये क्या!

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  13. कार्ड भेजना या बाँटना भी बहुत मुश्किल कार्य हो जाता है आजकल और सब जगह पहुचना संभव नहीं हो पाता, इसलिए कार्ड देने वाले को खुद कार्ड ना पहुचाने के लिये माफ कर देना चाहिये.

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  14. गुरदास मान के समान सुझावानुसार, शादी-ब्याह "दिल दा मामला है"! और जब टेलेफोन भी न आये, तो समझो, "मामला गड़बड़ है"???!!! - सिक्का उछाल के फैसला ले लेना चाहिए :)

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    1. जब मामला ही गड़बड़ हो तो सिक्का उछालने का भी क्या फायदा !

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    2. जीवन एक पहेली है... हर छोटे से छोटे मसले में भी आदमी दुविधा में ही रहता है - करूं न करूं? जाऊं न जाऊं? आदि, आदि,,, अर्थात सिक्के के दो पहलु समान (क्रिकेट का खेल भी सिक्का उछाल निर्णय लिया जाया है कि कौन पहले बल्ले बाजी करेगा), अथवा हिमालय के कैलाश पर्वत के निकट साथ साथ मानसरोवर ताल और रावण ताल की उपस्थिति के कारण एक ओर तो उसी जीवनदायी जल का स्रोत सिन्धु नदी (कृष्ण समान) और उसकी पंजाब की पांच सहायक नदियाँ (पंचतत्व/ पांडव बंधू) हैं, तो दूसरी ओर गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र (ब्रह्मा-विष्णु-महेश)... और पहले आर्य सिन्धु-घाटी पर आ कर बसे... अब प्रश्न यह हो सकता है कि मानव के लिए नदी जल हो अथवा भूमिगत, "जल ही जीवन है"... फिर भी गंगाजल मिल जाए तो श्रद्धा भाव आ जाता है, और मानसरोवर को हिन्दू अधिक मान्यता देते आये हैं, सिक्के के 'सर' समान शिव के माथे में चंद्रमा को दर्शा के!...

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  15. कन्‍फ्यूजन का टोटल क्‍लीयर फंडा.

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  16. देवेन्द्र पाण्डेय जी के फालोवर हैं हम भाई जी ....
    शुभकामनायें !

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  17. अगर किसी बढ़िया होटल में है शादी तो चले जाएँ...500/-Rs देकर बढ़िया पाँच सितारा का खाना क्या बुरा है :-)
    be practical :-))

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    1. बिलकुल सही । बस यह सोचना पड़ता है कि ५०० कम तो नहीं ।

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  18. यदि फोन भी न आये तो न जाना ही बेहतर है .. बाकी अपने संबंधों पर निर्भर करता है ..

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  19. "लेकीन सबसे ज्यादा असमंजस्य की स्थित तब आती है जब कार्ड तो मिलजाता है लेकिन बुलाने वाला न खुद कार्ड देने आता है , न फोन करता है । बसकार्ड भिजवाकर अपने घर में शादी की सूचना दे देता है ।"

    ऐसी शादियों में नहीं जाना चाहिए ! मैं नहीं गया .......कहना तो था न ..इतना तो करना था भलमानस को !

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  20. जब कार्ड तो मिल जाता है लेकिन बुलाने वाला न खुद कार्ड देने आता है , न फोन करता है ।... कार्ड का जवाब थेंक्यू व मुबारकबाद कार्ड से ही काफी होगा :)

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  21. @ पांचवे पैरे की पहली लाइन ,
    महाराज सीताफल माने शरीफा जोकि मीठा फल है और काशीफल बोले तो कद्दू जोकि बैलगाड़ियों के भाव बारातियों की सेवा में सदा समर्पित ! अब आप बताइये पूड़ी के साथ सब्जी किसकी होती थी , शरीफे की या कद्दू की :)

    @ आपका सवाल बस निमंत्रण कार्ड मिला हो तो ,

    जबाबी कहावत ये है कि जैसे तेरा गाना वैसा मेरा बजाना :)

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    1. अली जी , हमारे यहाँ इसे पेठा कहा जाता है । शहर में सीताफल और पंजाबी में कद्दू कहते हैं ।

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    2. दराल साहब ,
      पेठा भूरे कुम्हड़े से बनता है जोकि कद्दू उर्फ काशीफल परिवार से है ! बारातों में कद्दू की सब्जियां बनती हैं ये सही है पर पंजाब और दिल्ली में उसे सीताफल कहते हैं ये मुझे नहीं पता ! हमारे यहां सीताफल उर्फ शरीफा एक छोटा चकत्तेदार फल है जोकि सफ़ेद गूदे और काले बीज वाला होता है ये आपने आप ही मीठा होता है ,इससे हलवा बनाया जा सकता है पर पेठा नहीं !
      शरीफे के लिए लिंक दे रहा हूं -http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AB%E0%A4%BE

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    3. अली सा , अलग अलग स्थानों पर अलग अलग नाम हो सकते हैं ॥ एक पेठा मिठाई वाला होता है जो हरा और कच्चा होता है । सब्जी वाला पीला और बड़ा होता है । अक्सर शादियों में इसी की सब्जी बनती है ।
      शरीफा बिलकुल अलग चीज है ।

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  22. असल बात तो यह है कि जब किसी बड़े आदमी का कार्ड मिलता है तो उसे पाकर ही धन्‍य हुआ जाता है लेकिन यदि किसी गरीब या साधारण का मिलता है तब सोचा जाता है कि वह खुद नहीं आया या फोन तक नहीं किया।

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    1. अजित जी , और बराबरी वाले का ?

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    2. बराबरी वालों से बराबरी का सम्‍बंध रहता है।

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  23. कई बात खुद निमंत्रण कार्ड देना संभव नहीं होता तो किसी के द्वारा भिजवाया जा सकता है पर फोन पर इस बात की क्षमा मांगी जा सकती है और आने का निमंत्रण दिया जा सकता है ... जो जरूर करना च्जाहिये अगर खुद कार्ड देना संभव न हो .... ऐसा मेरा मानना है ...

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  24. ये तो रिश्तो की गंभीरता पर निर्भर करता है वैसे जिसके पास फोन करने तक का वक्त नही वहाँ ना जाना ही बेहतर क्या पता सिर्फ़ दिखावे को ही कार्ड भेजा हो।

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    1. सही कहा वंदना जी .
      अभी हमारे एक डॉक्टर मित्र के बेटे की शादी का कार्ड मिला कुरियर से , बारात के लिए . लेकिन कोई फोन नहीं आया . बाद में पता चला ज़नाब ने रिसेप्शन भी रखा था जिसका कोई ज़िक्र नहीं था .
      ऐसी शादी में भला कोई कैसे जा सकता है .

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  25. आजकल तो कार्ड भेजने का ज़माना ही नहीं रहा और न चिट्ठी ! सभी या तो ईमेल करते हैं या फिर फोन ! दिल्ली में सर्दी का मौसम सबसे बढ़िया लगता है! सुन्दर पोस्ट!

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    1. हमें भी एक मित्र का इ कार्ड मिला लेकिन साथ ही तीन बार फोन कर निमंत्रण दिया . ऐसे में कार्ड का क्या करना है .

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  26. हमारे यहाँ लड़की शादी में कार्ड कैसे भी मिले,जायज मानाजाता है किन्तु लड़कों की शादी में दूर है तो डाक से बाद में फोन से इतला दी जाती है,पास वालों को परिवार का कोई व्यक्ति जाकर निमंत्रण देना पडता है,..


    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए......

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  27. दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मिला अपने में ही एक विशाल देश समान हो गया है, जहां तक विवाह आदि में शामिल हेतु आवागमन का प्रश्न है... हमने कुछेक विवाह में वर-वधु को देखा ही नहीं क्यूंकि बराती नाचने में अधिक व्यस्त थे, और वधु के सम्बन्धियों ने हमें खा कर घर वापिस लौट जाने की सलाह दी :)

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    1. हा हा हा ! जे सी जी आजकल ऐसा होना आम बात हो गई है .

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  28. This comment has been removed by the author.

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  29. जी हाँ!...सही फरमाया आपने..पहले की शादियाँ और आज की शादिओं के माहौल में बड़ा फर्क आ चुका है...लेकिन इसके लिए बहुत सी ईकाइयां जिम्मेदार है!..खैर !..यह आतंरिक आत्मीयता पर निर्भर करता है कि कौनसी शादी में जाना आपके लिए महत्त्व पूर्ण है!

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  30. अपवादों को छोड़कर, सरल रास्ता तो समानता का ही है - जो व्यक्तिगत रूप से बुलाने आये वहाँ स्वयं जाइये, जो डाक से बुलाये उसे शुभकामनायें/उपहार/नकदी डाक से भेजें, जो ईमेल करे उसे एलेक्ट्रॉनिक ट्रांस्फ़र कर दें। बाकी हम तो खाना-पीना, मिलना-जुलना पसन्द करते हैं इसलिये प्यार से किसी भी माध्यम से बुलाने पर साक्षात पहुँच जाते हैं।

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  31. अनुराग जी , बड़े शहरों में आजकल यह फैशन सा हो गया है . लोग सुन्दर सा कार्ड छपवाते हैं और जिनको नहीं बुलाना चाहते , उन्हें पोस्ट कर देते हैं . कोई बात नहीं करते . अब यह आपकी मर्ज़ी है , आप जाएँ या न जाएँ . यदि आप जाएँ तो खा पीकर आ जायेंगे . यदि नहीं जायेंगे तो कोई आपको मिस नहीं करेगा .
    परस्पर प्रेम भावना भौतिकवाद में ख़त्म सी हो गई है .

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  32. देखने से ताल्लुक रखती है बीटिंग दी री -ट्रीट .अच्छी छवियाँ उकेरीं हैं आपने .

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  33. आवत ही हरखे नहीं नैनं नहीं सनेह ,तुलसी तहां न जाइए चाहे कंचन बरसे मेह .कार्ड तो हवा में उड़के भी आ सकता है .वैसे आजकल के बच्चों को यह भी नहीं पता कन्या दान क्या होता है खा पीके पूछते हैं शादी में- पेमेंट कहाँ करनी हैं .

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    1. हा हा हा ! सही कहा वीरुभाई जी ।

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