जब भी किसी ब्लॉग पर सामाजिक दृष्टिकोण से कोई सार्थक और उपयोगी लेख प्रकाशित होता है तो उसे समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में जगह मिल जाती है । इससे उस लेख की उपयोगिता लाखों लोगों की नज़र में आने से और भी बढ़ जाती है ।
इसी तरह यदि समाचार पत्रों में कोई लेख पसंद आए तो उसे क्यों न ब्लोगर्स के सन्मुख प्रस्तुत कर एक सार्थक चर्चा की जाए ताकि उसका प्रभाव अधिकाधिक हो सके ।
इसी विचार से आज प्रस्तुत है हिंदुस्तान टाइम्स के रविवारीय संस्करण में ( ११-१२-२०११) प्रकाशित सत्य प्रकाश जी के लेख पर एक चर्चा ।
लेख का विषय था - अवैध यौन संबंधों में कानून द्वारा लिंग भेद ।
Indian Adultery Law :
इस कानून के अनुसार एक विवाहित पुरुष और महिला के बीच , जो पति पत्नी नहीं हैं , अवैध यौन सम्बन्ध होने पर पुरुष को कानून के अंतर्गत अपराधी माना जायेगा लेकिन महिला को नहीं ।
इस सम्बन्ध को अपराध इसलिए माना गया है ताकि विवाह का पवित्र रिश्ता सुरक्षित रह सके ।
पुरुष के अपराधी होने का कारण है,क्योंकि कानून की नज़र में पत्नी को पति की ज़ागीर / संपत्ति माना जाता है । यदि कोई गैर पुरुष किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध बनाता है तो वह उसकी निजी संपत्ति में दखलअंदाजी करता है । इसलिए उस पर केस बनता है ।
इस तरह के अवैध सम्बन्ध में पति तो अपराधी है लेकिन पत्नी नहीं ।
एक हैरानी की बात यह है कि राष्ट्रीय महिला आयोग भी इसे सही मानता है । उनका यह भी कहना है कि इस तरह के अवैध सम्बन्ध को गैर कानूनी ही न माना जाये ।
उधर कुछ लोगों की यह राय है कि कानून में पति पत्नी दोनों बराबर होने चाहिए ।
भारतीय कानून क्या कहता है ?
भारतीय दंड संहिता की धारा ४९७ के अंतर्गत यदि एक विवाहित व्यक्ति किसी दूसरी विवाहित महिला के साथ बिना उसके पति की रज़ामंदी के यौन सम्बन्ध बनाता है तो वह दोषी माना जायेगा जिसके लिए उसे कैद की सजा हो सकती है । ऐसे में उस महिला पर कोई अभियोग नहीं लगेगा ।
साथ ही धारा १९८ के अंतर्गत एक पति दूसरे पति पर आरोप लगा सकता है लेकिन अपनी पत्नी पर नहीं ।
यानि पत्नी इस आरोप से फ्री है ।
दूसरे देशों में :
ज्यादातर यूरोपियन देशों में एडलट्री अपराध नहीं माना जाता । वहां इस मामले में लिंग भेद भी नहीं है । और कोई सजा भी नहीं । हालाँकि तलाक की नौबत आ सकती है ।
उधर इस्लामिक देशों में इसे घोर अपराध माना जाता है और महिला को पुरुष से ज्यादा दोषी समझा जाता है ।
धार्मिक पहलु :
सभी धर्मों में इसे पाप माना जाता है । इस्लाम में तो इसके लिए सख्त सज़ा का प्रावधान है ।
अब कुछ सवाल उठते हैं आम आदमी के लिए :
* क्या इस मामले में स्त्री पुरुष में भेद भाव करना चाहिए ?
* यदि पति की रज़ामंदी से उसकी पत्नी से रखे गए सम्बन्ध गैर कानूनी नहीं हैं तो क्या वाइफ स्वेपिंग जायज़ है ?
* क्या इस कानून में बदलाव की ज़रुरत है ?
पति पत्नी के सम्बन्ध आपसी विश्वास पर कायम रहते हैं । कानून भले ही ऐसे मामले में पत्नी को दोषी न मानता हो , लेकिन व्यक्तिगत , पारिवारिक , सामाजिक और नैतिक तौर पर ऐसे में दोनों को बराबर का गुनहगार माना जाना चाहिए ।
हमारा स्वस्थ नैतिक दृष्टिकोण ही हमारे समाज के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है ।
Monday, December 19, 2011
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लगता है कि पुरुष पर अधिक पाबंदी इसलिए लगाई गई है कि वह ही प्रायः ऐसे अवैध संबंधों की पहल का ज़िम्मेदार पाया जाता है। यह कहना गलत है कि स्त्री पुरुष की संपत्ति होती है। हां, यह स्वाभाविक है कि पुरुष अधिक पोज़ेसिव हो सकता है। अंत में यही कहा जा सकता है कि इस रिश्ते की डोर उस बारीक रेशमी डोर से बंधी रहती है जिसका नाम विश्वास है। विश्वासघात कोई भी कर सकते हैं- स्त्री हो या पुरुष!
ReplyDeleteआपने एक अच्छे मुद्दे पर चर्चा की है.
ReplyDeleteआपने कहा है कि
'इस्लामिक देशों में महिला को पुरुष तुलना में ज़्यादा दोषी माना जाता है .'
यह तथ्य नहीं है .
इस्लाम में दोनों का जुर्म एक है तो सज़ा भी दोनों के लिए एक ही है .
आपने धार्मिक पहलू की चर्चा तो की है लेकिन यह नहीं बताया कि हिंदू धर्म शास्त्र सज़ा के मामले लिंगभेद करते हैं या नहीं ?
------------
Please see :
http://www.testmanojiofs.com/2011/12/1.html
डा० साहब, सभ्य-सामाजिकता का जहां तक सवाल है, यह भोग-विलासिता का एक गैर-जरूरी और मूर्खतापूर्ण पक्ष है! लेकिन चूँकि यहाँ पर बात क़ानून के पुरुष के प्रति भेदभाव पूर्ण होने की की जा रही है अत: जहां तक मैं समझता हूँ ( और जिस तरह के समाज को हम रोजाना फेस करते है ) स्त्री को दोषमुक्त रखने का प्रावधान इसलिए किया गया क्योंकि यदि कोई कमीना किस्म का कामुक इंसान किसी गैर-स्त्री से जबरन सम्बन्ध बनाता है, उसके बाद वह उस स्त्री अथवा उसके पति को इसतरह से भी ब्लैकमेल कर सकता है कि अगर उन्होंने इसकी रिपोर्ट पुलिस में की तो वह यह कहकर की उसने अमुक स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध उसकी सहमती के बाद ही बनाए थे, उस स्त्री को भी सलाखों के पीछे करवा सकता है ( दुर्भाग्य्बश हमारे अनेक नेता और कुछ नौकरशाह ऐसे कामों में माहिर भी है )
ReplyDeleteAgar mahila ka pati mar chuka hai or wo sambandh nanati hai kisi or sadhi suda mard ke sath to kon doshi hoga?
Deleteयहाँ अपराध तब माना गया था जब महिला का पति शिकायत करे। पति ही नहीं तो शिकायत कैसी !
Deleteनैतिक दृष्टि से तो दोनो बराबर के गुनहगार हैं और इसमे लिंग भेद नही होना चाहिये यदि पत्नी की रजामंदी के बगैर गैर पुरुष संबंध बनाता है और उसमे उसका पति भी शामिल है तो उन दोनो पुरुषो के खिलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिये और यदि दोनो की मर्जी से संबंध बनाये जाते हैं तो स्त्री हो या पुरुष दोनो बराबर के दोषी हैं और इसके लिये सजा का प्रावधान एक समान होना चाहिये।
ReplyDeleteडॉ अनवर ज़माल साहब आपने कितने देशों में पुरुष पर कोड़े पड़ते देखे सुने हैं यौन शरारतों को लेकर .कृपया बतलाएं .सह पत्नी और बहु -पत्नीय समाज में जहां लिविंग टुगेदर भी जायज़ है पर पुरुष और परस्त्री के बीच यौन सम्बन्ध परपुरुष गमन या परस्त्री गमन को अपराध माना जाना ही अब हास्यास्पद लगता है .भारतीय धर्म व्यवस्था सहिष्णु रही है .द्रौपदी का प्रसंग साक्षी है कृष्ण कन्हैया की सह्पत्नियों सोलह हज़ार रानियों का ज़िक्र है पटरानियों के किस्से रहें हैं भारतीय समाजव्यवस्था में .
ReplyDeleteडॉ अनवर ज़माल जी , वैसे तो यह लेख उपरोक्त लेख की समीक्षा के रूप में है ।
ReplyDeleteलेकिन समाचार पत्रों में पढ़ा है कि बलात्कार की शिकार महिला को भी दोषी करार दिया जाता है ।
जहाँ तक मैं समझता हूँ , हिन्दू धर्म में इसे पाप समझा जाता है लेकिन सज़ा के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।
गोदियाल जी , इस कानून के तहत बलात्कार के केस को अलग रखा जाता है । यह रज़ामंदी से हुए संबंधों के बारे में ही है ।
कानून समाज के भले के लिए बनाये जाते हैं. परन्तु समय के साथ उनके साथ भी खिलवाड शुरू हो जाता है और उसका अनुपयोग भी होने लगता है.शायद ऐसा ही कुछ इस कानून के साथ भी है.
ReplyDeleteमेरा व्यक्तिगत विचार है कि कानून हो या सही -गलत की परिभाषा - सभी के लिये समान होनी चाहिए.
सही है कौन कहता है कि कानून की नजर में सब बराबर है। भेद-भाव हर जगह है।
ReplyDelete'हिन्दू' (अमृत, 'गंगाधर' / 'चंद्रशेखर'/ 'सोमेश्वर' आदि शिव के माथे में इंदु) मान्यतानुसार, आरम्भ में शिव जी अर्धनारीश्वर (शरीर और शक्ति / सती), के योग से बने अकेले थे और काशी में रहते थे...उनके प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब समान, माँ के गर्भ में लिंग-भेद तीन (३) माह पश्चात ही आरम्भ होता है (?)...
ReplyDeleteअर्थात पृथ्वी का, आरम्भिक आग के गोले के, हवा-पानी से ठण्ड हो ठोस बने बाहरी मिटटी-चट्टान आदि और उसके भीतर, ह्रदय में, लाल जिव्हा वाली 'माँ काली'/ सती आर्थात अग्नि यानि पिघली हुई चट्टानें आदि, जो ज्वालामुखी फटने पर बाहर धरातल में आ फिर से उपरी काल के प्रभाव से मरी मिटटी में जान दाल देती है...
फिर योगेश्वर विष्णु /शिव की नाभि से ब्रह्मा अर्थात सूर्य / (पृथ्वी के अन्दर से) चन्द्र की उत्पत्ति हुई (और हमारी गैलेक्सी के ही अन्दर असंख्य सितारों और अन्य ग्रहों की भी)... जिनमें से नवग्रहों के सार से पशु आदि से उत्पत्ति कर, आदमी/ किन्नर/ औरत भी 'ब्रह्मा' के प्रतिरूप प्रकृति में व्याप्त विवधता को दर्शाने हेतु बनाए गए... घोर कलियुग के प्रभाव से माती के पुतले/ कंप्यूटर आरम्भिक अवस्था को प्रतिलक्षित कर रहे हैं, क्यूंकि काल की चाल उलटी है - सतयुग से कलियुग अर्थात क्षीर-सागर मंथन के जुपिटर अर्थात गुरु बृहस्पति के देख रेख में विष से आरम्भ किये काल-चक्र में अमृत (शिव) को पाने हेतु...
ब्रह्मा के चार दिशाओं में चार विभिन्न मुंह (चार मुख्य धर्म) होने के कारण मतिभ्रम का अहसास हो रहा है निरंतर बदलाव वाले मानव जगत में...जबकि निराकार ब्रह्म ही अजन्मे और अनंत होने के कारण परमानन्द स्थिति में सदैव रह सकते हैं...:)
मानवीय-भूल या कृत्य के लिए दोनों बराबर के हकदार हैं !
ReplyDeleteकानून दोनों के लिए बराबर होने चाहिए ,....ये बात ठीक है ...पर हम लोगो के समाज में आज भी पुरुष की बड़ी से बड़ी गलती को माफ़ कर दिया जाता हैं ...पर औरत की छोटी सी बात भी पहाड़ का रूप ले लेती है ...और अगर बात अनैतिक संबंध से जुडी सामने आती है तो ...ता उम्र उसका जीना दूभर हो जाता है ....एक औरत आपने पति को माफ़ करके जीना सीख लेती है ...पर वही पति ता उम्र ऐसा नहीं कर सकता .......
ReplyDeleteआपने कहा है कि
ReplyDelete♥ 'जहाँ तक मैं समझता हूँ , हिन्दू धर्म में इसे पाप समझा जाता है लेकिन सज़ा के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।'
के बारे में
@ डा. टी. एस. दराल जी ! जिस बात को धर्मानुसार पाप कहा जाता है उसके लिए धार्मिक व्यवस्था में दण्ड का विधान भी होता है।
यह बात आपको जाननी चाहिए कि मनु स्मृति में बलात्कार और अवैध यौन संबंधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था है।
मनु स्मृति में अवैध यौन संबंध के लिए दंड
कन्यां भजन्तीमुत्कृष्टं न किंचिदपि दापयेत् ।
जघन्य सेवमानां तु संयतां वासयेद्गृहे ।।
-मनु स्मृति, 8, 365
अर्थात उच्चजाति के पुरूष की सकाम सेवा करने वाली कन्या दण्डनीय नहीं है किंतु हीन जाति के पास जाने वाली को प्रयत्नपूर्वक रोके।
भर्तारं लंघयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता ।
तां श्वभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते ।।
-मनु स्मृति, 8, 371
जो स्त्री अपने पैतृक धन और रूप के अहंकार से पर पुरूष सेवन और अपने पति का तिरस्कार करे उसे राजा कुत्तों से नुचवा दे। उस पापी जार पुरूष को भी तप्त लौह शय्या पर लिटाकर ऊपर से लकड़ी रखकर भस्म करा दे।
मनु स्मृति के इसी 8 वें अध्याय में जार कर्म और बलात्कार आदि के लिए दंड का पूरा विवरण मौजूद है।
http://deepakbapukahin.wordpress.com/2011/08/20/men-and-women-in-manu-smruti-hindi-lekh/
कानूनी पक्ष को सीधे शब्दों में जो समझ आ सके आपने रख दिया. मुझे तो मौजूदा प्रावधान ठीक ही लगता है.
ReplyDeleteआश्चर्य है आज भी ऐसे क़ानून लैंगिक भेदभाव रखते हैं ....कई पेंशन उत्तराधिकार में पुरुष पत्नी को उत्तराधिकारी बनाने को बाध्य है मगर पत्नी को ऐसी कोई बाधयता नहीं है ..इनके पीछे क्या सोच हो सकती है .....टेम्पटेशन तो फेयर सेक्स की ही और से पैदा किया जाता है :)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट और इस पर हुई टिप्पणियाँ विचारणीय हैं.
ReplyDeleteविवादस्पद मुद्दा उठाया है आपने.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
हनुमान जी से भी विचार विमर्श कर लीजियेगा जी.
डॉ अनवर ज़माल जी , वर्तमान परिवेश में इन पुरातन कथन या आलेखों का कोई महत्त्व नहीं । वर्तमान में सिर्फ और सिर्फ न्यायालय द्वारा लागु कानून का ही पालन करना आवश्यक है ।
ReplyDeleteवैसे भी यहाँ बात कानून के सन्दर्भ में हो रही है न कि धर्म के ।
भारतीय दंड संहिता की धारा ४९७ के अंतर्गत जो दंड का प्रावधान है , वह सही है या नहीं , कृपया इस पर अपने विचार व्यक्त करें तो बेहतर रहेगा ।
फ़िलहाल तो हमारा चिंतन इसी बारे में है ।
राकेश जी , आप तो वकील भी हैं । कोई राय तो देनी चाहिए ।
ReplyDeleteapki ray ki prateeksha me hoon .... akhir kya hona chahiye?
ReplyDeleteयह सही है कि अपराधिक कानून स्त्री और पुरुष में भेद करता है। हमारा संविधान लिंग के आधार पर असमानता बरतने से वर्जित करता है। लेकिन वह लक्ष्य है जिसे प्राप्त किया जाना है। वह वर्तमान स्थिति नहीं है।
ReplyDeleteअपराधिक और कुछ अन्य कानूनों में यह भेद तब तक बना रहेगा जब तक कि समाज में स्त्री-पुरुष के बीच वास्तविक समानता स्थापित नहीं हो जाती है। क्या वास्तव में हमारे समाज में स्त्री-पुरुष के बीच समानता स्थापित हो गयी है? क्या अभी भी कन्या भ्रूण हत्या का अभिशाप मिटा पाए हैं? क्या अभी हम दहेज को समाप्त कर पाए हैं? ऐसे अनेक प्रश्न हैं।
@ डा. टी. एस. दराल जी ! अगर आपने अपनी पोस्ट और टिप्पणी में धर्म का हवाला न दिया होता तो हम भी बलात्कार के विषय में धार्मिक व्यवस्था का ज़िक्र न करते।
ReplyDeleteनवीन जी , ज़वाब तो साफ है । भले ही कानून में पत्नी को सुरक्षा प्रदान हो , लेकिन शायद ही कोई पति हो जो पत्नी की बेवफाई को सहन कर पाए । कम से कम समाज तो महिलाओं को यह सुविधा प्रदान नहीं करता ।
ReplyDeleteकानून की दृष्टि में , जैसा कि द्विवेदी जी ने कहा , अभी समय लगेगा स्त्री पुरुष की समानता में ।
हालाँकि , आधुनिक विकास के चलते महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं रही ।
फिर भी , सामाजिक स्तर पर पूर्णतय: महिलाओं का उत्थान अभी बाकि है ।
डॉ अनवर ज़माल जी , आप को अभी भी विषय के बारे में कन्फ्यूजन चल रहा है ।
ReplyDeleteभाई यह विषय विवाहित स्त्री और विवाहित पुरुष के बीच रज़ामंदी से स्थापित किये गए यौन संबंधों के बारे में है ।
धारा ४९७ भी इसी बारे में है । इसका बलात्कार से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
बलात्कार की परिभाषा ही अलग होती है ।
सॉरी, आपकी टिप्पणी में बलात्कार शब्द आया तो हम भी अपनी टिप्पणी में जल्दी में बलात्कार लिख गए। बलात्कार की जगह ‘अवैध यौन संबंध‘ पढ़ा जाए।
ReplyDeleteजो श्लोक हमने उद्धृत किए हैं वे भी विवाहित स्त्री और विवाहित पुरुष के बीच रज़ामंदी से बनने वाले अवैध यौन संबंधों के बारे में ही हैं न कि बलात्कार के बारे में।
गंभीर लेख और टिप्पणिया ....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपको !
हमारे देश में बहुत से ऐसे नियम क़ानून हैं जो यहां की परम्पराओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
ReplyDeleteमुझे ऐसा लगा की आपने इस लेख के माध्यम से जो सवाल किया उसका जवाब भी आपने स्वयं ही दे दिया :-)"पति पत्नी के सम्बन्ध आपसी विश्वास पर कायम रहते हैं। कानून भले ही ऐसे मामले में पत्नी को दोषी न मानता हो ,लेकिन व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक और नैतिक तौर पर ऐसे में दोनों को बराबर का गुनहगार माना जाना चाहिए।
ReplyDeleteइस लेख के माध्यम से उठाये गए प्रश्न का मेरी समझ से एक मात्र सबसे सटीक उत्तर यही है जो आपने लिखा है मैं इस से पूर्णतः सहमत हूँ
हमारे देश में रीती-रिवाज,परंपरा और ऐसे कई चीज़ है जिसे ध्यान में रखकर ही नियम बनाये जाते हैं भले ही लोग उन नियमों को सही तरीके से नहीं मानते हैं! बहुत ही गंभीर विषय को लेकर आपने सुन्दरता से आलेख प्रस्तुत किया है!
ReplyDeleteजिस समाज में भ्रूण हत्या रोकने के लिए कानून का सहारा लेना पड़ता हो उस समाज में ऐसे कानून जरूरी हैं। महिला पुरूष बराबर हैं, कहने भर से बराबर नहीं हो जाते। सभी जानते हैं कि एक नारी को पुरूष की तुलना में खुद को स्थापित करने के लिए, अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कितना अधिक संघर्ष करना पड़ता है।
ReplyDeleteयौन विषयों खास कर विवाहेतर संबंधों , सन्नी लियोन वगैरह पर हो रही चर्चा के दौरान इस तरह के संबंधों के विधिक पक्षों में निहित लिंग भेद का कारण संभवतः दिनेश राय जी के कथनानुसार हो ? दिनेश जी कथन में स्त्री पुरुष के दरम्यान वास्तविक समानता की कल्पना की गई है ! समानता के इस स्तर पर पहुंचने में पता नहीं कितना वक़्त लगेगा ?
ReplyDeleteविषयान्तर ही सही पर दिनेश जी के अभिमत को सिद्ध करता एक और उदाहरण ...आयकर में स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में अधिक स्पेस भी कानून के इसी मर्म / मंतव्य को आगे बढाता है ! हमें भले ही लिंग भेद लगे !
पहली बात हमारे कानून जब बने थे तब से समय आगे चला गया हैं
ReplyDeleteAccording to Section 497 of Indian Penal Code a person is guilty of adultery is a crime.
Essentials of Adultery:- The prosecution must prove the following things for convincing an accused on a charge of adultery-
That the accused had sexual intercourse with the woman in question;
That she was the lawful married wife of another man;
That the accused knew or had reason to believe that she was the lawfully married wife of another man;
That the husband of the woman did not consent to or connive at such intercourse;
That the sexual intercourse so had did not amount to rape.
http://legalpoint-india.blogspot.com/2009/01/adultery-is-offence-under-indian-penal.html
आप जिस कानून की बात कर रहे हैं उसके बनते समय स्त्री किसी ना किसी की पत्नी ही होती थी और किसी की पत्नी के साथ सम्बन्ध रखना क़ानूनी अपराध था । इस में लिंग भेद की बात इस लिये नहीं थी उस समय क्युकी उस समय स्त्री का अस्तित्व ही नहीं था वो केवल किसी की पत्नी मात्र थी
समाज में स्त्री का अस्तित्व ही नहीं हैं वो केवल पत्नी हैं और इसलिये अस्तित्व ना होते हुए भी भी कानून ने उसके अधिकारों का प्रोटेक्शन किया हैं क्युकी समाज ने अधिकार दिये ही नहीं हैं ।
आज भी आप को ऐसे लोग मिल जाये गए जिनकी द्रष्टि में स्त्री केवल और केवल वासना पूर्ति का साधन मात्र हैं और वो इस सोच को गलत नहीं मानते ।
अगर समाज ने अपनी सोच सही रखी होती जैसा दिनेश जी ने कहा तो असमानता ही नहीं होती ।
लिंग भेद समाज की देन हैं कानून ने केवल उसके बचाव में अधिकार प्रदान किये हैं स्त्री को
अब क्या आप जानते हैं की अगर किसी की पत्नी का बैंक अकाउंट हैं केवल उनके नाम से तो पति उत्तराधिकारी नहीं हैं । बैंक पति को नहीं ये पैसा पत्नी के निधन के बाद उसके बच्चो को ही देगा । कारण बैंक मानता हैं की पत्नी का पैसा जरुरी नहीं हैं की आप का ही दिया हो वो उसके मायके , उसके बच्चो का भी दिया हो सकता हैं । जिन लोगो को इस बात पर विश्वास ना हो वो बैंक से पता कर सकते हैं
आप इसको भी लिंग भेद मान सकते हैं पर आज पुरुष वर्ग लिंग भेद की बात महज इस लिये करता हैं क्युकी नारी लिंग भेद को लेकर सजग हो गयी हैं ।
जानकारी हेतु ये पोस्ट भी देखे
ReplyDeletehttp://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.html
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/08/blog-post_19.html
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/05/blog-post_22.html
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/06/blog-post_21.html
नारी हमेशा दोयम रही हैं समाज में और इस लिये संविधान और कानून ने उसके अधिकारों को बढ़ा कर उसको सुरक्षित किया हैं । जैसे जैसे समय बदलेगा , समानता आयगी लिंग भेद का नज़रिया पुरुषो को रीवार्सल जैसा लगेगा ।
और यौन संबंधो में शुचिता की बात अगर सब मान ले तो सजा का प्रावधान ही ख़तम हो जाए । यहाँ भी बेशक कानून में स्त्री के लिये सजा का प्रावधान ना हो पर समाज ने स्त्री के लिये "दूसरी औरत " का नाम दे कर सजा का प्रावधान कर रखा हैं ।
आप ने कभी "दुसरा पुरुष " जैसी शब्दावली कहीं सुनी हो तो कहे ।
ये हैं लिंग भेद लिखना हो तो इस पर लिखे , लोगो को भ्रमित करने वाली पोस्ट हैं ये
@ रचना --
ReplyDeleteलोगो को भ्रमित करने वाली पोस्ट हैं ये--
रचना जी , भ्रमित न हों । यह पोस्ट एक लेख पर चर्चा है जिसमे आपसे कुछ सवालों के ज़वाब मांगे गए हैं , आपके विचार अनुसार ।
आपने एडल्ट्री को सही परिभाषित किया है जो कानून में लिखा है । साथ ही , यह भी सही है की ये कानून बहुत पहले बनाया गया होगा जब महिलाओं के अधिकारों का हनन होता था । लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि अब समय बदल गया है , इसलिए इस कानून को भी बदलना चाहिए ।
अब महिलाएं भी स्वावलंबी और स्वतंत्र हैं , अपना खाता रखने के लिए भी जिस पर सिर्फ उसी का अधिकार होता है । वो अब सिर्फ पत्नी भी नहीं है ।
एक बात और --That the husband of the woman did not consent तो-- what if the husband gives consent ?
अगर दो बालिग रज़ामंदी के साथ यौन संबंध बनाते हैं तो ये नैतिक रूप से बेशक गलत हो लेकिन क़ानून के लिए उसमें ज़्यादा गुंजाइश नहीं होनी चाहिए....
ReplyDeleteआजकल टीवी पर एक एड आती हैं...शायद ऑफिसर्स च्वायस...जिसमें एक महिला को सिड्यूसिंग अंदाज़ में देखकर कुछ दोस्त अपने दोस्त से कहते हैं...चला जा, ऐश कर...वाइफ़ को पता नहीं चलेगा...इस पर दोस्त वहां से उठते हुए कहता है...वाइफ़ को पता न चले लेकिन मुझे तो पता रहेगा...
जय हिंद...
लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि अब समय बदल गया है , इसलिए इस कानून को भी बदलना चाहिए ।
ReplyDeletedr dral
maene jitni bhi post kaa link diyaa haen aap ko un mae sab mae yahii kehaa haen ki kanun / samvidhaan sab ko barabar adhikaar daetaa haen samaaj nahi daetaa
aaj bhi log mahila sashaktikarn kae virodh me haen
aaj bhi log pink chaddi aur slut walk to mahila ke virodh kaa prateek haen usko sahii nahin maantae aur
wahii naabalig ladkae kae sperm baechane ko sahii mantae haen
aap khud soch kar daekhae kyaa badalane ki jarurat haen yae kanun jis ki vajah sae hazaro lakho mahila surakshit haen yaa wo soch jiski vajah sae hazaro lakho mahila asuraskshit
bhramit karnae waali post is liyae kehaa kyuki ismae yae kanun kyun aesaa haen yaa banagyaa haen uski koi vivechna hi nahin hui haen
That the husband of the woman did not consent तो-- what if the husband gives consent ?
ReplyDeletesir with due respect
in so many homes in indian villages the woman are being sent by their husbands to the person from whom they took a loan
in so many elite homes the woman marries a nri and latter finds out that she is being taken to an arabian country for flesh trade
its still happening and that is why the court of law is bent towards woman
writing on reverse gender bias is not wrong but keep in mind the suppressed has been suppressed for centuries and the law and constitution is going to protect the suppressed
--anavar jamaal jee
ReplyDeleteभर्तारं लंघयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता ।
तां श्वभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते ।।..श्लोक में..
..संस्थाने बहुसंस्थिते ।। का अर्थ ..’उस पापी जार पुरूष को भी तप्त लौह शय्या पर लिटाकर ऊपर से लकड़ी रखकर भस्म करा दे”..कहां से आया ।
---वास्तव में यह आलेख भ्रामक तो नहीं है परन्तु निष्कर्ष हीन है, परन्तु यह विषय ही एसा है । हां विश्वास की बात एक निष्कर्ष तो है परन्तु प्रश्न तो विश्वास के टूटने के बाद का है ...
-- रचनाजी का भाव प्रायः अतिरेकता सम्पन्न होता है और जल्दबाजी में एक तरफ़ा...सम्न्वयवादी द्रष्टिकोण होना चाहिये ..
--- स्त्री-पुरुष भेद तो प्रक्रिति ने बनाया है सदा रहेगा ही , चाहे जितना उन्नत होजायं..चिल्लाते रहें...आग और पानी को किस प्रकार अभेद किया जा सकता है ...न कभी दोनों आग बन पायेंगे न पानी ....
"भेद रहा है सदा रहेगा,
भेद-भाव व्यवहार नहीं हो।’...यही सत्य है...
---स्त्री-पुरुष भेद के कारण ही हिन्दू धर्म ग्रन्थों व आज के कानून में भी पुरुष को अधिक दोषी माना गया है..जो जितना समर्थ होता है उसका उतना ही अधिक दोष होता है ...
---कानून भी सदा उस समाज की एतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक व प्रचलित विश्वासों के अनुसार ही बनते हैं कहीं ऊपर से बन कर नही आते.....
----समस्या का मूल तो मानव-मात्र के आचरण में है ।
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! मनु स्मृति का यह अनुवाद महान विद्वान डा. चमन लाल गौतम जी ने किया है . इस विषय में आप संस्कृति संस्थान बरेली से संपर्क करें .
ReplyDeletePlease see this post's link on
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/12/blog-post_5807.html
कानून का बारिकी से अध्ययन नहीं है अत: कोई टिप्पणी नहीं। वैसे दोषी दोनों हैं।
ReplyDeleteJC said...
ReplyDeleteसारी समस्या काल के प्रभाव की जानकारी न होने की है... प्राचीन हिन्दुओं के अनुसार, 'हम', अमृत शिव के घोर कलियुगी प्रतिरूप हैं, और इस युग में संभव ही नहीं है मानव में सम्पूर्ण ज्ञान होना, जैसा सत युग में संभव हो पाया होगा क्षीर-सागर मंथन के पश्चात - विष से आरम्भ कर देवताओं के अमृत होने के बाद... मानव मस्तिष्क में अरबों सेल होने के बावजूद, सबसे ग्यानी पुरुष भी आज केवल नगण्य सेल का उप्तोग ही कर पाता है, और हिन्दू मान्यता भी है कि कलियुग में कार्य क्षमता सत युग की तुलना में केवल २५ से ०% घट के रह जाती है कलियुग के दौरान... ("मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी"...:(
अज्ञानता वश, 'समुद्र-मंथन' के आरम्भ में 'विष' उत्पन्न होने के कारण, और विषैले शुक्र ग्रह द्वारा जनित प्रकृति में द्वैतवाद, सत्य-असत्य के भ्रम के कारण, हमारे लिए 'परम सत्य', अर्थात निराकार ब्रह्म को जान पाना लगभग असंभव है...
आम आदमी अपने को असमर्थ पा रहे हैं 'योग माया' को तोड़ पाने में... और समस्या बढ़ती ही जा रही है समय के बीतने के साथ साथ... अन्ना हजारे की टीम और सांसदों के बीच महाभारत का वाक् युद्ध नाद ही पैदा कर रहा है जैसा कि आरम्भ में ब्रह्मनाद रहा होगा - सृष्टि से पहले...:(
December 20, 2011 12:23 PM
खुशदीप सेहगलजी से सहमत
ReplyDeleteजी विश्वनाथ
पत्नी पति की जागीर न मानी जाए,तो भी,केवल पति-पत्नी के बीच यौन-संबंध जायज है। इससे इतर,सहमति से हो कि अन्यथा,ग़लत है और यह कानून-सम्मत हो तो भी निषिद्ध ही रहना चाहिए।
ReplyDeleteअगर सर्वेक्षण किया जाए तो आप पाएंगे कि जिन कारणों से कानून को महिलाओं के पक्ष में बनाया गया था,वैसे मामलों की संख्या लगातार घटी है जबकि कानून का दुरूपयोग कर पुरूषों को फंसाने के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। तुर्रा यह कि महिला अगर रज़ामंदी से भी कुछ करे,तो भी उसे पुरूषों द्वारा "फंसाया गया" बताया जाता है। इसलिए पुरूष को तो हर हाल में लपेटो। वो करें तो लीला,आप करें तो कैरेक्टर ढीला! मनोचिकित्सक सहकर्मी आपको बता सकते हैं कि नारीवादी कानूनों के कारण,कितने ही पुरूष मेंटल हो गए हैं और कई अन्य बस होने ही वाले हैं!
उपरोक्त टिपण्णी पर सहमती और असहमति से उठे सवाल और उस पर कुछ अपने पहलु रखने से पहले एक बात मन में आई है जिसे रखने से शायद मेरे मन की दुविधा जरुर कम होगी ...सवाल है विवाहित पुरुष और स्त्री में अवैध- यौन सम्बन्ध उचित या अनुचित , उस पर कठोर दंड व्यवस्था ........हर देश के अलग अलग कानून हैं पर भारत में धार्मिक तौर पर इसे सभी धर्मों पर पाप माना गया है क्यों ?? ये मनु स्मृति भी तो किसी पुरुष का ही लिखा है और भी जितने धार्मिक ग्रन्थ हैं उसे लिखनेवाले भी पुरुष हैं . पर ऐसे किसी भी सम्बन्धों पर नारी को समाज में ज्यादा जलालत मिलती है पुरुषों को कम ,समाज में विवाह का बंधन बना रहे, नैतिकता के तौर पर समाज स्वच्छ बना रहे इसीलिए ऐसे धार्मिक विधान बने ,फिर भी ऐसे कई उदहारण हैं जिसमे कठोर दंड न्यायिक हो या सामाजिक उसका डर और भुगतान नारी को ही मिलता है , सहमती हो तब भी असहमति हो तब भी . पर ऐसे सम्बन्ध क्यों पनप जाते हैं ये ना तो हम सोंचते हैं ना समाज ,जब दो लोगों से बनी जीवन की गाड़ी में कुछ खराबी आ जाये जिससे एक से दूरी किसी और से नजदीकी का कारण बन जाती है , जब समाज ये विधान तय करता है पति-पत्नी में ही सम्बन्ध हो ,तो फिर ये तय क्यों नहीं करता कि आपस में बंधने के बाद अपने व्यवहार से,अधिकार से सामनेवाले पक्ष को आहट ना करें ,उसे अपने समान ही मने तभी ये गाड़ी ठीक से आगे चलेगी, क्योंकि आज सचमे समाज बदल रहा पुरुषों कि तरह स्त्रियाँ भी अपने आप को सम्मानित और प्यार से पोषित देखना चाहती हैं, कभी समय था जब उसे पाठ पढ़ाया जाता था वो पुरुष कि जरखरीद गुलाम है और वैवाहिक जीवन में आये उतार चढ़ाव, तनाव को अकेले हँस कर झेल जाती थी, पर जहाँ भी ऐसे सम्बन्ध बनते सुने गए हैं वहा सबसे पहली कमी विवाहित जीवन में एक दुसरे के ओर से आई संवेदनाओं कि कमी है ,और जब ऐसे रिश्ते फिसल जाते हैं तो धार्मिक न्याय, दंड कानून और समाज अपने तर्कों पर तौलने लगते हैं ............
ReplyDeleteविवाहित व्यक्ति के विवाहेतर सम्बन्ध केवल नैतिकता के कटघरे में आ सकते हैं न कि कानून के। वे तलाक का आधार हो सकते हैं किन्तु कैद का नहीं। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। कानून बदलना चाहिए। सब जानते हें कि जो कानून है वह तब का है जब स्त्री सम्पत्ति मानी जाती थी। मुझे नहीं लगता कि यह स्त्री के पक्ष में बनाया गया था।
ReplyDeleteयदि विवाहित पुरुष अविवाहित स्त्री से सम्बन्ध सथापित करता है तो उसे क्या कहेंगे?
घुघूती बासूती
बढ़िया बहस चल रही है..और चले..मैं अपने मत पर कायम हूँ।
ReplyDeleteगंभीर विषय पर अच्छी चर्चा,क़ानून सबके लिए समान है दोषी दोनों है
ReplyDeleteसमय के मांग के अनुसार कानून में परिवर्तन होना चाहिए,..
नये पोस्ट की चंद लाइनें पेश है.....
पूजा में मंत्र का, साधुओं में संत का,
आज के जनतंत्र का, कहानी में अन्त का,
शिक्षा में संस्थान का, कलयुग में विज्ञानं का
बनावटी शान का, मेड इन जापान का,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
कानून सारे अंग्रेजों के समय से चले आ रहे हैं और आज ऐसा मकडजाल बन गया है कि 'आधुनिक भारत' के लिए प्रसिद्द है, "You show me the man, I will show you the rule"!
ReplyDeleteरजनी जी , सविता जी , मुझे भी यही लगता है कि बदलते वक्त को कोई रोक नहीं सकता । समय के साथ हमें भी बदलना पड़ेगा । और नई पीढ़ी बदल भी रही है । तभी तो लिव इन रिलेशनशिप , सिंगल मदर और एल जी बी टी जैसे शब्द यहाँ भी स्वीकार्य होने लगे हैं ।
ReplyDeleteऐसे में इन संबंधों को भले ही सामाजिक और धार्मिक स्तर पर अनैतिक और पाप समझा जाये , कानूनी तौर पर अपराध नहीं माना जाना चाहिए , वेस्ट की तरह ।
जब अपराध ही नहीं होगा तो भेद भाव की बात अपने आप ही ख़त्म हो जाएगी ।
इन सम्बन्धों को अनैतिक और विवाह के पवित्र बंधन के विरुद्ध तो पश्चिमी देशों में भी माना जाता है । तभी तो यह तलाक का वैध कारण बनता है ।
समाज में नैतिकता और स्त्री को सम्मान कानून द्वारा नहीं , बल्कि समाज के आचरण द्वारा ही दी जा सकती है ।
yeh ek gambheer mudda hai sabhi ke tarq vitarq padhe bahas achchi hui hai jab ki baat bilkul saaf hai ki avaidh sambandh natikta,samajikta aachar sanhita sabhi roop se nindneeya hai agar dono married vyakti isme lipt hain to dono hi barabar ke doshi hain dono hi to vivaah jaisi pavitra sanstha/bandhan ka majaak bana rahe hai atah kaanoon barabar hone chahiye.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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Indian Adultery Law :
इस कानून के अनुसार एक विवाहित पुरुष और महिला के बीच , जो पति पत्नी नहीं हैं , अवैध यौन सम्बन्ध होने पर पुरुष को कानून के अंतर्गत अपराधी माना जायेगा लेकिन महिला को नहीं ।
इस सम्बन्ध को अपराध इसलिए माना गया है ताकि विवाह का पवित्र रिश्ता सुरक्षित रह सके ।
पुरुष के अपराधी होने का कारण है,क्योंकि कानून की नज़र में पत्नी को पति की ज़ागीर / संपत्ति माना जाता है । यदि कोई गैर पुरुष किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध बनाता है तो वह उसकी निजी संपत्ति में दखलअंदाजी करता है । इसलिए उस पर केस बनता है ।
इस तरह के अवैध सम्बन्ध में पति तो अपराधी है लेकिन पत्नी नहीं ।
एक हैरानी की बात यह है कि राष्ट्रीय महिला आयोग भी इसे सही मानता है । उनका यह भी कहना है कि इस तरह के अवैध सम्बन्ध को गैर कानूनी ही न माना जाये ।
मेरी राय में राष्ट्रीय महिला आयोग की सिफारिश सही है, विवाहेतर दूसरे किसी विवाहित से शारीरिक संबंध सामाजिक व नैतिक रूप से गलत हैं तथा अपने जोड़ीदार के प्रति विश्वासघात हैं पर इन्हें गैरकानूनी कह किसी को अपराधी मानना चीजों को जरूरत से ज्यादा आगे ले जाना है... इस तरह के संबंध अपराध तो निश्चित ही नहीं हैं और न ही माने जाने चाहिये किसी भी सभ्य, लोकतांत्रिक समाज में...
...
JC said...
ReplyDeleteअपन 'इतिहासकार' नहीं हैं... किन्तु जैसे छोटी सी वस्तु भी नुछ न कुछ लाभदायक कार्य करती है, झूट-सच इतिहास भी कुछ न कुछ लाभदायक काम करता ही होगा...
यदि मन में प्राचीन भारत को देखें तो अंग्रेजों का आगमन तब हुआ जब देश का राज पश्चिम दिशा से (जिसका राजा शनि देवता को नाबा जाता है, और धातु लोहे और 'आकाश' समान नीले रंग से सम्बंधित), मैदानी रास्तों से, (कांसे से बनी कमजोर तलवार की तुलना में लोहे की तलवार लिए आये अधिक शक्तिशाली) गुलाम वंश के राजाओं से आरम्भ कर मुग़ल राजाओं के पास था... और तत्कालीन हिन्दुओं को उसके पतन के आसार दिख रहे होंगे (औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर तथाकथित अत्याचार के कारण इच्छा?) ... वे इस लिए पश्चिम देशों से जल-मार्ग से लोहे की अधिक शक्तिशाली तोप लिए आये, विशेषकर अंग्रेजों के आगमन पर, संभवतः प्रसन्न हुवे होंगे... और कुछ हिन्दू राजाओं ने उनकी सहायाता भी की होगी अपना-अपना राज्य स्थापित करने हेतु... और यह भी सभी को पता हैं कि अंग्रेजों ने अपने सख्त कानूनी तंत्र पर धीरे धीरे 'भारत' में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार में से लगभग ५०% भाग में कॉलोनियां बना लीं... और यह प्रसिद्द हो गया कि उनके राज में (राम-राज्य समान?) सूर्योदय ही नहीं होता!
किन्तु अफ़सोस कोई भी मानवी व्यवस्था अभी तक १००% सही नहीं पायीं गयीं हैं - हर राज का उत्थान होता है तो पतन भी निश्चित है :(
December 21, 2011 7:29 AM
nice
ReplyDeletehttp://hindi-vishwa.blogspot.com/2011/12/blog-post_21.html
ReplyDeleteनैतिकता के मापदंडों के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से दोषी माना जाना चाहिए ....
ReplyDeleteवही यह भी सत्य है कि हमारी सामाजिक व्यवस्थाओ के अनुसार स्त्रियाँ कमजोर रही हैं , उन पर दबाव की सम्भावना अधिक होती है , इस लिए कानून की दृष्टि से स्त्रियों को सुरक्षित रखने के लिए इस प्रकार के कानूनी प्रावधानों को रखा जाना उचित समझा गया हो !
रचना जी , यह पोस्ट मैंने भी पढ़ी । इसके आखिरी पैरा में न्यायालय द्वारा दिया गया सुझाव ही असली समाधान लगता है ।
ReplyDeleteहमारा भी यही विचार है ।
अब समय आ गया है कि स्त्रियाँ इस कानून के बिना भी सुरक्षित रहें और महसूस करें ।
ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती .और फिर यह तो दिल लगे का सौदा है दिल्लगी का नहीं .नैतिकता के मानदंड बदल रहें हैं कोई माने या न माने बेगार ढोए ढ़ोता रहे ...
ReplyDelete'सूर्यास्त' लिखना था सूर्योदय टंकण कर बैठा :(
ReplyDeleteअब समय आ गया है कि स्त्रियाँ इस कानून के बिना भी सुरक्षित रहें और महसूस करें ।
ReplyDeleteabhi kam sae kam 50 varsh kaa samay lagegaa
जब आपसी सम्बन्ध बिना किसी दबाव के बन्ने ही हैं और बन रहे हैं तो कोई तो वजह होगी ... और जब वो वजह सही है तो फिर किसी एक या किसी को भी दोष देना कहाँ तक उचित ... परिपक्व होने के बाद ऐसी किसी भी बात को क़ानून की बजाय आपसी रिश्तों की तरह से देखा जाना चहिये ...
ReplyDeleteJC said...
ReplyDelete'भारतीय कानून' की बात करें तो, सिनेमा में सब देखते आते हैं हर प्रत्यक्षदर्शी को गीता पर हाथ रख कहते "मैं जो भी कहूँगा, सच कहूँगा/ और सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा"... एक वकील को भी एक दिन टीवी पर कहते सूना कि वकील जब कोई केस लेता है तो वो सत्य को जानने के पश्चात ही केस लेता है... किन्तु यदि वो या उसका मुवक्किल सच बोले तो यह 'घोड़े की घास से दोस्ती' समान होगा :) और जो भी झूट-सच बोला जाता है उस के आधार पर जिस भी पूर्व निर्धारित सेक्शन आदि से कोर्ट को लगता है जज निर्णय लेते हैं...
९९% भारतीयों के लिए गीता में लिखे शब्द "काला अक्षर भैंस बराबर' कहावत को सार्थक करते हैं... गीता में तो शरीर को तो (अजन्मे और अनंत) आत्मा के वस्त्र समान माना गया है :) और हिन्दुओं के अनुसार सभी आत्माएं अमृत शिव, परमेश्वर, के ही प्रतिरूप हैं जो माया के कारण विभिन्न वस्त्र-रुपी शरीर के दृष्टि-दोष के कारण भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं...
गीता के हीरो कृष्ण किन्तु ख गए कि वो मानव रूप में बार-बार स्वयं आते रहते हैं... इस कारण विश्वास और इंतज़ार आवश्यक है, सब ठीक होने के लिए...(नेपथ्य में ef एम् रेडियो में गाना आ रहा है, "है ये माया..."!)...
December 21, 2011 7:39 PM
जे सी जी , कानून में जब तक गुनाह साबित नहीं होता , तब तक मुल्ज़िम --मुज़रिम नहीं होता ।
ReplyDeleteलेकिन अफ़सोस , अक्सर गुनाह साबित ही नहीं होता ।
डॉक्टर दराल जी, यहीं पर मूल प्रश्न उठ जाता है "ऐसा क्यूँ हो रहा है?" और, हमारे पूर्वज प्रार्थना कर ऐसा कुछ क्यूँ कह गए (निराकार भगवान् से?), " सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे शन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । "
ReplyDeleteयानि सभी सुखी, स्वस्थ, और सभ्य हों तो दुःख का सवाल ही नहीं उठता (?)...
और इसका कारण?
प्रभु (प्र + भू|, अर्थात जो पृथ्वी के आने से पहले भी, वर्तमान पृथ्वी के केंद्र में, नादबिन्दू, अर्थात निराकार अनंत शक्ति रूप में अनादिकाल से परमानंद स्थिति में विद्यमान था, यह शरारत उसी नटखट नंदलाल की है :)
आज जब महिलाएं हर कार्य मैं आगे हो रही है और नर नारी को एक सामान अधिकार देने कि बात हो रही है तो बदलते ज़माने के हिसाब से या तो ज्यादातर यूरोपियन देशों की तरह इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए या फिर कानून की पेचीदगियों को दूर करते हुए इसमें पुरुष के साथ साथ महिला को भी बराबर की दोषी माना जाये.कानून में किसी प्रकार का लिंगभेद नहीं होना चाहिए .क्योंकि जिस प्रकार कुछ महिलाएं समाज के ड़र और पारिवारिक इज्ज़त के कारण अपने पति के हरकतों को बर्दाश्त करती हैं उसी प्रकार कुछ ऐसे पति भी होतें हैं जो समाज और इज्ज़त के कारण से अपनी पत्नी की हरकतें देखते हुए भी घुटते घुटते मर जाते हैं. ज़रूरत तो यह है की औरत और आदमियों के बारे मैं समाज की जो गलत सोच है उनको बदला जाये.ताकि कहीं पर नर और नारी के नाम पर भेद न हो अभी तक समाज ने औरतों के साथ जो ज्यादती की है वो अब २१वी सदी में न हो और न तो औरत और न ही आदमी एक दूसरे के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हों.
ReplyDeleteडॉ साहेब आपने बहुत अच्छा विषय उठाया है . आगे भी आप इसी तरह के मुद्दों को उठाते रहेंगे ऐसी आशा हम करते हैं . धन्यवाद !
ReplyDeleteशुक्रिया अंकित जी । प्रयास जरी रहेगा ।
Deleteहाँ ! यौन सम्बंधों की सहमति को लेकर लैङ्गिक असमानता नहीं होनी चाहिए किंतु यह बात यहीं तक नहीं रुकी, इसके निहितार्थ की गूँज यौन सम्बंधों के सामाजिक ढाँचे को भी प्रभावित करने वाली है ।
ReplyDeleteविवाहेतर यौनसम्बंधों की पारस्परिक सहमति और इसका सामाजिक मूल्य समय की धारा में बहता हुआ तृण है जो कभी डूबता सा लगता है तो कभी उतराता सा । दुनिया भर के विभिन्न देशों और समाजों में इसे लेकर विभिन्न मान्यताएं हैं और तदनुसार ही पाप-पुण्य की परिभाषाएं भी । आज मुझे वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास "चित्रलेखा" की स्मृति हो आई है । कई बार कानून गुलेल की तरह काम करता है जिसे पेड़ पर बैठी चिड़िया कभी स्वीकार नहीं करती । भारतीय समाज में हो रहे पश्चिमी परिवर्तनों के सामाजिक अनुकरण से भारतीय मान्यताओं में परिवर्तन तो होने ही हैं, चाह कर भी इसे रोका नहीं जा सकेगा ।
आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार।
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