top hindi blogs

Monday, December 5, 2011

दिल्ली दर्शन में आज -क़ुतुब मीनार और खाना खज़ाना --

रविवार यानि छुट्टी का दिन , दिसंबर की नर्म धूप और सुहाना मौसम । बच्चे भी छुट्टियों में घर आए हुए थे । ऐसे में मूड बना कि घूम आया जाए ।

बन ठन कर तैयार हुए तो बेटी ने टोका --क्या किसी शादी में जा रहे हैं , या पार्टी में या फिर ऑफिस में कोई विशेष कार्यक्रम है । हमने भी महसूस किया कि पिकनिक पर जाने के लिए तो केजुअल कपडे ही होने चाहिए । आखिर बच्चों की जिद के आगे झुकना ही पड़ा और जींस , स्पोर्ट्स शूजमें आ गए और शर्ट भी ऐसे पहन ली जैसे टपोरी लोग पहनते हैं ।

अब क्या करें , हम ठहरे उस ज़माने के जब हिल स्टेशन पर भी थ्री पीस सूट पहनकर मॉल रोड पर घूमते थे

कुछ समय पहले नॉएडा में माया की मायानगरी का उद्घाटन देखकर मन बड़ा लालायित हो रहा था हाथी देखने का ।
लेकिन जाकर पता चला कि अभी तो काम ही चल रहा है और पब्लिक के लिए खुला ही नहीं है।
यानि
एक और पौलिटिकल स्टंट

खैर सोचा , चलो लोटस टेम्पल चलते हैं जहाँ गए हुए बहुत अरसा हो गया था । लेकिन भला हो अन्ना समर्थक कार रैली का जिसका दो किलोमीटर लम्बा जुलुस ट्रैफिक जाम किये खड़ा था ।

अब वहां फंसने से तो बेहतर था कि कहीं और खिसक लिया जाए ।
और हम पहुँच गए --क़ुतुब मीनार जहाँ गए तो कई बार थे लेकिन फोटो कभी नहीं खींचे थे ।


प्रवेश द्वार से घुसते ही हरी भरी दिल्ली की तरह यहाँ भी बहुत हरियाली दिखी


लाईट एंड शेड इफेक्ट


क़ुतुब मीनार का निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ में शुरू किया था । लेकिन अभी एक ही मंजिल बनी थी कि उनका देहांत हो गया । तद्पश्चात इसका शेष निर्माण इल्तुतमिस ने करवाया ।


मीनार के साथ है , कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद , जिसका निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ -११९७ में करवाया था । बाद में इल्तुत्मिस (१२११-१२३६) और अलाउद्दीन खिलज़ी ( १२९६-१३१६) ने इसमें परिवर्द्धन किया ।

इसके प्रांगण में बना है यह लौह स्तंभ जो ऐसे एलॉय से बना है जिसपर कभी जंग नहीं लगता ।


लेकिन पिछले कुछ सालों से लगता है इसमें जंग लगना शुरू हो गया जिसकी वज़ह से इसे पब्लिक के हाथों से दूर कर दिया गया है


एक एंगल ऐसा भी


और यहाँ पेड़ों के बीच से


क़ुतुब मीनार के साथ यह एक और अधूरी मीनार है जिसे इल्तुत्मिस ने डबल साइज़ में बनवाना शुरू किया था लेकिन बस इतना ही बना सका ।


इल्तुत्मिस की कब्र

अब तक भूख लगने लगी थी । दिल्ली में आजकल कई फेस्टिवल चल रहे हैं ।
वापसी में दिल्ली हाट में फ़ूड एंड क्राफ्ट फेस्टिवल लगा था ।

और कनौट प्लेस में यह फेस्टिवल :



यह फ़ूड फेस्टिवल बाबा खडग सिंह मार्ग पर , स्टेट एम्पोरिया के सामने आयोजित किया गया है


यहाँ दिल्ली के सभी क्षेत्रों के मशहूर खाने की स्टाल्स लगी हैं


ऐसा लग रहा था जैसे सारी दिल्ली खाने पर टूट पड़ी हैबेशक दिल्ली वाले खाने के बड़े शौक़ीन हैं


एक बहुत बड़े टी वी स्क्रीन पर दिल्ली के दर्शनीय स्थलों के चित्र दिखाए जा रहे थे


सजावट कुछ ऐसी थी


शाम होते ही सारा जहाँ रौशन हो उठा


तरह तरह की रौशनियों का खूबसूरत इंतजाम


खाते पीते कब दो घंटे गुजर गए , पता ही नहीं चलाअंत में यह फूलों की दुकान भी मन मोह रही थी

नोट : यह फेस्टिवल ११ दिसंबर तक चलेगायदि दिल्ली आना हो तो एक ही जगह दिल्ली के सब पकवान खाना भूलियेगा

क़ुतुब मीनार के कुछ और खूबसूरत चित्रों के लिए कृपया यहाँ पधारें ।


41 comments:

  1. वाह! यह बहुत अच्छा किया आपने। घूमने वाले लोग हमको बहुत अच्छे लगते हैं। फोटू खींच के वहां के बारे में बताने वाले तो और भी अच्छे।
    ..हमको भी घूमना है:-(

    ReplyDelete
  2. यात्रा-विवरण से बढ़िया तो चित्र लगे जो बोलते से लग रहे हैं !

    बुढ़ापे में कैजुअल कपडे ज्यदा फबते हैं :-)

    ReplyDelete
  3. चित्र बहुत ही सुंदर हैं. दिल्ली के पकवानों का स्वाद वाकई निराला है. हम तो जहा मौका लगता है स्वाद लेने में पीछे नहीं रहते.

    ReplyDelete
  4. आज तो पूरा दिल्ली घुमा दिया भाई जी !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  5. अब क्या करें , हम ठहरे उस ज़माने के जब हिल स्टेशन पर भी थ्री पीस सूट पहनकर मॉल रोड पर घूमते थे ।

    सचमुच ऐसा भी कभी होता था. ..:):)

    ReplyDelete
  6. मैं आज कुतुब मीनार के बाहर से घूमकर आया कार में बैठे बैठे ही। इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ लीवर एंड बायलरी साईंसेज में गया था चिकित्‍सा के लिए और गलत यानी कुतुब मीनार की ओर बढ़ गया था। फिर वापिस घूमकर गया। पर आप तो कल ही हो आए। खैर ...


    लौह स्‍तंभ में जंग लगने का पुख्‍ता कारण नेताओं का इसे छूना रहा है और दूर पब्लिक को कर दिया गया है। मजा किसी का सजा किसी को।

    जय हो आपके सैर कार्यक्रम की।

    ReplyDelete
  7. डॉक्टर साहब नोएडा आने से पहले नोएडा वालों से ही पूछ लिया होता तो मायाजाल में फंसने से बच जाते...

    महरौली में कुतुब मीनार के पास बहादुर शाह ज़फ़र का महल, बावली, दरगाह भी देखने लायक चीज़ है...शाहनवाज़ भाई से कहते, बहुत बढ़िया घूमने का इंतज़ाम करा देंगे...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. अच्छा लगा दिल्ली घूमकर...सराहनीय प्रयास.

    ReplyDelete
  9. ४० साल पहले देखी थी कुतुबमीनार ... आज आपकी पोस्ट से फिर दर्शन कर लिए .. आपकी फोटोग्राफी बहुत अच्छी हैं :):) बहुत खूबसूरत चित्र लिए हैं ..आभार

    ReplyDelete
  10. वाह... हर तस्वीर मन मोह रही है.दिल्ली आते हर साल हैं पर ऐसे घूमे अरसा हो गया.शुक्रिया इस सैर का.

    ReplyDelete
  11. आदरणीय डॉक्टर भाई साहब
    प्रणाम !

    कुछ वर्ष पहले दिल्ली आया था , तब कुतुबमीनार सहित कई दर्शनीय स्थल देखे थे ।
    … और 'फलूदा' भी पहली बार दिल्ली में ही चखा था …
    और ईमानदारी से कहूं तो 'छोले-भटूरे' का स्वाद भी वहां हमने हमारे परिचित के मिलने वालों के यहां 'मान न मान मैं तेरा मेहमान' की तर्ज़ पर एक भजन-भोजन के आयोजन में शामिल हो'कर चखा :)

    तब से ही विश्वास है कि दिल्ली दिल वालों की है :)))


    सुंदर सुसज्जित पोस्ट के लिए आभार !

    लेकिन …
    क़ुतुब मीनार के कुछ और खूबसूरत चित्रों के लिए कृपया यहाँ पधारें ।
    लिंक खुल नहीं रहा … चैक करले …



    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  12. 1. अच्छा लगा आपके साथ दिल्ली घूम कर. शायद आज पहली बार याद आया कि हमने क्या पाप किया है कि हम ही अपना शहर नहीं घूम सकते. हो सकता है, कि यूं ही स्वीकार कर लिया हो कि घूमने तो दूसरे शहर में जाना होता है या फिर कि शायद अपना शहर तो दूसरों के घूमने के लिए होता है :)
    2. रीकन्फ़र्म हुआ कि हड़काने का काम केवल बेटियां ही कर सकती हैं. पत्नियां तो स्वीकार कर लेती हैं -'इनकी मर्ज़ी'. बेटे आमतौर से कुछ कहते नहीं. अच्छा लगा पढ़कर.
    3. आपके चित्र वास्तव में ही बहुत सुंदर हैं.

    ReplyDelete
  13. डॉक्टर दराल जी, क़ुतुब मीनार पहली बार, शायद चालीस के दशक के अंत में, तीसरी-चौथी कक्षा में स्कूल से जा कर देखा था,,, तो बहुत ऊंचा लगा था - यद्यपि मीनार को हजारों बार देखा होगा, किन्तु कुछ ही वर्ष बाद एक और बार देखा तो निराशा हुई,,, क्यूंकि अपना कद कुछ ही इंच बढ़ क़ुतुब मीनार छोटा लगा था :(
    बढ़िया कैमरे के साथ-साथ आपकी तस्वीरों का चुनाव दर्शाता है कि आपकी 'तीसरी आँख' काफी खुल चुकि है - धन्यवाद मेरी पुरानी यादें ताजा करने के लिए :)

    ReplyDelete
  14. JC said...
    डॉक्टर दराल जी, क़ुतुब मीनार पहली बार, शायद चालीस के दशक के अंत में, तीसरी-चौथी कक्षा में स्कूल से जा कर देखा था,,, तो बहुत ऊंचा लगा था - यद्यपि मीनार को हजारों बार देखा होगा, किन्तु कुछ ही वर्ष बाद एक और बार देखा तो निराशा हुई,,, क्यूंकि अपना कद कुछ ही इंच बढ़ क़ुतुब मीनार छोटा लगा था :(
    बढ़िया कैमरे के साथ-साथ आपकी तस्वीरों का चुनाव दर्शाता है कि आपकी 'तीसरी आँख' काफी खुल चुकि है - धन्यवाद मेरी पुरानी यादें ताजा करने के लिए :)

    December 6, 2011 8:22 AM

    ReplyDelete
  15. वाह अविस्मरनीय और सदाबहार चित्रों के लिए आभार !

    ReplyDelete
  16. दिल्‍ली दर्शन का अवसर दिया। शुक्रिया।

    ReplyDelete
  17. अविनाश जी , लौह स्तंभ की दास्ताँ सुनिए --पहले लोग वहां जाकर पीठ के बल खड़े हो जाते थे स्तंभ के साथ और दोनों हाथों को पीछे की ओर ले जाकर उंगलियाँ मिलाने की कोशिश करते थे । जिसकी मिल जाती उसे भाग्यशाली कहा जाता था । जिसकी नहीं मिलती तो कोई दूसरा पकड़कर खींचकर मिला देता और कहता लो तेरा भी हो गया ।

    गंगा मैया की तरह लगता है लौह स्तंभ भी लोगों का भाग्य बनाते बनाते जंग खा गया ।

    ReplyDelete
  18. खुशदीप भाई , काजल कुमार जी , वास्तव में दिल्ली में देखने को तो बहुत है । बस थोडा वक्त और ज़ज़्बा चाहिए ।
    राजेन्द्र जी , इस समय आइये , हम आपको बुला रहे हैं । या फिर हम ही आ जाएँ बीकानेर ?

    लिंक पता नहीं क्यों नहीं खुल रहा लेकिन यह दुसरे ब्लॉग --चित्रकथा पर है । यकीन मानिये वहां और भी ज्यादा खूबसूरत चित्र देखने को मिलेंगे ।

    ReplyDelete
  19. काजल जी , अपना तो बेटा भी इस मामले में पूरा उस्ताद है । उस दिन हमें उसी की शर्ट पहन कर जाना पड़ा । :)
    वैसे कपडे पहनने का सलीका नई पीढ़ी को बेहतर आता है ।
    केजुअल , फ़ॉर्मल, ऑफिस वियर या पार्टी वियर --हमारे पास तो स्कूल में बस एक पेंट होती थी ।

    ReplyDelete
  20. छुट्टी के दिन अपने ही शहर का भ्रमण आनन्‍ददायक है। अधिकतर लोग नहीं सोचते हैं कि पुरानी जगहों पर घूमना, बस जब भी कोई मेहमान आते हैं उनके साथ ही जाना होता है। हमारी भी बड़ी इच्‍छा है कि एक बार दिल्‍ली दर्शन पुन: किया जाये।

    ReplyDelete
  21. जे सी जी , हमने भी पहली बार स्कूल से जाकर देखा था जब पांचवीं कक्षा में थे । तब हमें भी बहुत ऊंची लगी थी । उस समय पहली मंजिल तक जाने की अनुमति होती थी । लेकिन १९८१ में जब हम नए नए डॉक्टर बने थे , तब वहां एक दुघटना में सैंकड़ों बच्चों की जान चली गई थी , भगदड़ में । तब से इसे पब्लिक के बंद कर दिया गया । अब बस बाहर से ही देख सकते हैं ।

    उस समय मैं दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में था । तब पहली और आखिरी बार हमने श्रीमती इंदिरा गाँधी को देखा , साथ में राजीव जी भी थे । हालाँकि उनसे तो फिर एक बार मुलाकात हुई जब वो हमारे वर्तमान अस्पताल में आए थे दौरा करने ।

    क़ुतुब मीनार पर पहले दो मंजिल और होती थी लेकिन वे लाइटनिंग की वज़ह से क्षतिग्रस्त हो गई , इसलिए उतार दिया गया ।

    ReplyDelete
  22. अजित जी , अब तो दिल्ली दर्शन और भी आसान हो गया है । हो हो बस का टिकेट लेकर पूरी दिल्ली घूमी जा सकती है । यह कनाट प्लेस से चलती है और ३०० रूपये का टिकेट दो दिन तक मान्य होता है जिसमे आप सारी दिल्ली घूम सकते हैं ।

    ReplyDelete
  23. कुतुब मीनार के बहाने 'मध्य-युगीन'इतिहास का अनुपम वर्णन किया है परंतु 'लौह-स्तम्भ'को चंद्र गुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया था यह न लिख कर विवादों से खूब बच लिए।

    ReplyDelete
  24. माथुर जी , कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद--जिस मोनुमेंट में यह स्तंभ बना है , उस जगह को परिवर्तित करने में कई मंदिरों आदि को तोड़ कर बनाया गया था । यह वर्णन कहीं पढ़ा था ।आश्चर्य रूप से चंद्र गुप्त विक्रमादित्य का नाम कहीं नहीं पढ़ा । लेकिन सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता ।

    ReplyDelete
  25. यहां "चीनी कम" की शूटिंग हो चुकी है। "फना" का चांद सिफारिश जो करता हमारी गीत यहीं फिल्माया गया है। सुना है,"ग्यारह चालीस की लास्ट मेट्रो" के लिए भी कुतुब मीनार में शूटिंग की इजाज़त मांगी गई है।

    ReplyDelete
  26. वाह! डॉ.साहब ,घर बैठे दिल्ली के दर्शन करा रहें आप आजकल |
    बचपन की यादें ताज़ा हो गई .....
    आभार !

    ReplyDelete
  27. प्रशंसनीय चित्रण दिल्ली का डा० साहब, बहुत खूब !

    ReplyDelete
  28. दराल जी, आभार। बस एक साथी ढूंढती हूँ, नहीं तो ब्‍लाग जगत में ही एक विज्ञापन देती हूँ कि है कोई जो मुझे दिल्‍ली दिखा दे? हा हा हा हा।

    ReplyDelete
  29. सुन्दर फोटोग्राफ्स ,बेहतरीन वृत्तांत !

    ReplyDelete
  30. दिल्ली भी तभी दिल्ली लगती है जब आप जैसा कोई दिलदार साथ हो या फिर ऐसे ही किसी का दीदार हो .कभी India Habitat centre (IHC)aur India International centre (IIC)का भी शाम को रुख कीजिए ,.डेल्ही टाइम्स में कार्यक्रम के बारे में इत्तला होती है .

    ReplyDelete
  31. आपके दिल्ली दर्शन ने तो हामरी दिल्ली की यादों को एक दम तारो ताज़ा कर दिया आभार ...सुंदर चित्रों से सुसजित बहुत ही सुंदर दिल्ली दर्शन

    ReplyDelete
  32. वाह क्या बात है सर ,कमाल की फ़ोटो खींची है आपने । और खींचते समय ई पोस्टवा का ध्यान किए होंगे तो आऊरो गुदगुदी टाईप फ़ील हुआ होगा । खाना पीना देख के तो भूख लगने लगी है । बढिया पोस्ट ... सर ..एकदम ठां

    ReplyDelete
  33. लगता है दिल्ली के लोग काफ़ी भूखे हैं :)

    ReplyDelete
  34. राधारमण जी , बेशक फ़िल्में भी देश की एतिहासिक धरोहर को दिखाने में अपना योगदान देती हैं ।
    अजित जी , एक विज्ञापन तो हमारे ब्लॉग पर डाल ही दीजिये ।
    वीरुभाई जी , कभी बनाते हैं प्रोग्राम ।
    अजय झा जी , अब फोटो खींचते हैं तो पोस्ट का ध्यान भी आता ही है ।

    ReplyDelete
  35. वाह ...वाह.... 'फलूदा' और 'छोले-भटूरे'....?????


    तस्वीरों में आपकी तस्वीर तो कहीं दिखाई नहीं दे रही .....:))

    ReplyDelete
  36. सभी चित्र बहुत अच्छे है।

    ReplyDelete
  37. हीर जी , दूसरे ब्लॉग --चित्रकथा पर देखिये .

    ReplyDelete
  38. आभार, आपके सहारे हमारा भी दिल्ली दर्शन हो गया एक बार फिर से।

    ReplyDelete
  39. सलामत रहे आपका ज़िन्दगी को जीने का ज़ज्बा .दयानतदारी .दोस्ती दोस्तों की .खूबसूरती अन्दर बाहर की केमरे की खूबसूरत नजर की .

    ReplyDelete
  40. दिल्ली के पकवान कल तक और ।
    जल्दी कीजिये । :)

    ReplyDelete
  41. apne to hame khr pe bethe bethe itani achi jankari di ki je se ham apni akho se dekh rahe ho.................

    ReplyDelete