tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post3461009667984355636..comments2024-03-21T12:48:25.921+05:30Comments on अंतर्मंथन: अवैध यौन संबंधों में कानून द्वारा लिंग भेद - एक परिचर्चा !डॉ टी एस दरालhttp://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comBlogger68125tag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-31094645101026128882018-10-05T11:51:10.212+05:302018-10-05T11:51:10.212+05:30आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार। आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-53210740192640037712018-10-05T11:03:59.949+05:302018-10-05T11:03:59.949+05:30यहाँ अपराध तब माना गया था जब महिला का पति शिकायत क...यहाँ अपराध तब माना गया था जब महिला का पति शिकायत करे। पति ही नहीं तो शिकायत कैसी ! डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-43744045444447261632018-10-03T18:37:04.618+05:302018-10-03T18:37:04.618+05:30हाँ ! यौन सम्बंधों की सहमति को लेकर लैङ्गिक असमानत...हाँ ! यौन सम्बंधों की सहमति को लेकर लैङ्गिक असमानता नहीं होनी चाहिए किंतु यह बात यहीं तक नहीं रुकी, इसके निहितार्थ की गूँज यौन सम्बंधों के सामाजिक ढाँचे को भी प्रभावित करने वाली है । <br /><br />विवाहेतर यौनसम्बंधों की पारस्परिक सहमति और इसका सामाजिक मूल्य समय की धारा में बहता हुआ तृण है जो कभी डूबता सा लगता है तो कभी उतराता सा । दुनिया भर के विभिन्न देशों और समाजों में इसे लेकर विभिन्न मान्यताएं हैं और तदनुसार ही पाप-पुण्य की परिभाषाएं भी । आज मुझे वृन्दावनलाल वर्मा के उपन्यास "चित्रलेखा" की स्मृति हो आई है । कई बार कानून गुलेल की तरह काम करता है जिसे पेड़ पर बैठी चिड़िया कभी स्वीकार नहीं करती । भारतीय समाज में हो रहे पश्चिमी परिवर्तनों के सामाजिक अनुकरण से भारतीय मान्यताओं में परिवर्तन तो होने ही हैं, चाह कर भी इसे रोका नहीं जा सकेगा । <br />बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-60556305370413121152018-06-20T07:51:41.615+05:302018-06-20T07:51:41.615+05:30Agar mahila ka pati mar chuka hai or wo sambandh n...Agar mahila ka pati mar chuka hai or wo sambandh nanati hai kisi or sadhi suda mard ke sath to kon doshi hoga? rajhttps://www.blogger.com/profile/15631964698424772490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-88171012494421715342012-03-11T13:09:50.288+05:302012-03-11T13:09:50.288+05:30शुक्रिया अंकित जी । प्रयास जरी रहेगा ।शुक्रिया अंकित जी । प्रयास जरी रहेगा ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-34212901150618597982012-03-10T12:28:53.050+05:302012-03-10T12:28:53.050+05:30डॉ साहेब आपने बहुत अच्छा विषय उठाया है . आगे भी आप...डॉ साहेब आपने बहुत अच्छा विषय उठाया है . आगे भी आप इसी तरह के मुद्दों को उठाते रहेंगे ऐसी आशा हम करते हैं . धन्यवाद !Ankithttps://www.blogger.com/profile/13969041752665144745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-41426099875640879782012-03-10T12:20:53.238+05:302012-03-10T12:20:53.238+05:30आज जब महिलाएं हर कार्य मैं आगे हो रही है और नर नार...आज जब महिलाएं हर कार्य मैं आगे हो रही है और नर नारी को एक सामान अधिकार देने कि बात हो रही है तो बदलते ज़माने के हिसाब से या तो ज्यादातर यूरोपियन देशों की तरह इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए या फिर कानून की पेचीदगियों को दूर करते हुए इसमें पुरुष के साथ साथ महिला को भी बराबर की दोषी माना जाये.कानून में किसी प्रकार का लिंगभेद नहीं होना चाहिए .क्योंकि जिस प्रकार कुछ महिलाएं समाज के ड़र और पारिवारिक इज्ज़त के कारण अपने पति के हरकतों को बर्दाश्त करती हैं उसी प्रकार कुछ ऐसे पति भी होतें हैं जो समाज और इज्ज़त के कारण से अपनी पत्नी की हरकतें देखते हुए भी घुटते घुटते मर जाते हैं. ज़रूरत तो यह है की औरत और आदमियों के बारे मैं समाज की जो गलत सोच है उनको बदला जाये.ताकि कहीं पर नर और नारी के नाम पर भेद न हो अभी तक समाज ने औरतों के साथ जो ज्यादती की है वो अब २१वी सदी में न हो और न तो औरत और न ही आदमी एक दूसरे के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हों.Ankithttps://www.blogger.com/profile/13969041752665144745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-88964045292344279292011-12-22T11:11:42.619+05:302011-12-22T11:11:42.619+05:30डॉक्टर दराल जी, यहीं पर मूल प्रश्न उठ जाता है &quo...डॉक्टर दराल जी, यहीं पर मूल प्रश्न उठ जाता है "ऐसा क्यूँ हो रहा है?" और, हमारे पूर्वज प्रार्थना कर ऐसा कुछ क्यूँ कह गए (निराकार भगवान् से?), " सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे शन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । " <br />यानि सभी सुखी, स्वस्थ, और सभ्य हों तो दुःख का सवाल ही नहीं उठता (?)... <br />और इसका कारण? <br />प्रभु (प्र + भू|, अर्थात जो पृथ्वी के आने से पहले भी, वर्तमान पृथ्वी के केंद्र में, नादबिन्दू, अर्थात निराकार अनंत शक्ति रूप में अनादिकाल से परमानंद स्थिति में विद्यमान था, यह शरारत उसी नटखट नंदलाल की है :)JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-79047866574538909532011-12-21T20:00:56.937+05:302011-12-21T20:00:56.937+05:30जे सी जी , कानून में जब तक गुनाह साबित नहीं होता ,...जे सी जी , कानून में जब तक गुनाह साबित नहीं होता , तब तक मुल्ज़िम --मुज़रिम नहीं होता ।<br />लेकिन अफ़सोस , अक्सर गुनाह साबित ही नहीं होता ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-6188786249516093392011-12-21T19:41:54.604+05:302011-12-21T19:41:54.604+05:30JC said...
'भारतीय कानून' की बात करें तो, ...JC said...<br />'भारतीय कानून' की बात करें तो, सिनेमा में सब देखते आते हैं हर प्रत्यक्षदर्शी को गीता पर हाथ रख कहते "मैं जो भी कहूँगा, सच कहूँगा/ और सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा"... एक वकील को भी एक दिन टीवी पर कहते सूना कि वकील जब कोई केस लेता है तो वो सत्य को जानने के पश्चात ही केस लेता है... किन्तु यदि वो या उसका मुवक्किल सच बोले तो यह 'घोड़े की घास से दोस्ती' समान होगा :) और जो भी झूट-सच बोला जाता है उस के आधार पर जिस भी पूर्व निर्धारित सेक्शन आदि से कोर्ट को लगता है जज निर्णय लेते हैं...<br />९९% भारतीयों के लिए गीता में लिखे शब्द "काला अक्षर भैंस बराबर' कहावत को सार्थक करते हैं... गीता में तो शरीर को तो (अजन्मे और अनंत) आत्मा के वस्त्र समान माना गया है :) और हिन्दुओं के अनुसार सभी आत्माएं अमृत शिव, परमेश्वर, के ही प्रतिरूप हैं जो माया के कारण विभिन्न वस्त्र-रुपी शरीर के दृष्टि-दोष के कारण भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हैं... <br />गीता के हीरो कृष्ण किन्तु ख गए कि वो मानव रूप में बार-बार स्वयं आते रहते हैं... इस कारण विश्वास और इंतज़ार आवश्यक है, सब ठीक होने के लिए...(नेपथ्य में ef एम् रेडियो में गाना आ रहा है, "है ये माया..."!)...<br /><br />December 21, 2011 7:39 PMJChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-50016138477017110042011-12-21T14:17:26.771+05:302011-12-21T14:17:26.771+05:30जब आपसी सम्बन्ध बिना किसी दबाव के बन्ने ही हैं और ...जब आपसी सम्बन्ध बिना किसी दबाव के बन्ने ही हैं और बन रहे हैं तो कोई तो वजह होगी ... और जब वो वजह सही है तो फिर किसी एक या किसी को भी दोष देना कहाँ तक उचित ... परिपक्व होने के बाद ऐसी किसी भी बात को क़ानून की बजाय आपसी रिश्तों की तरह से देखा जाना चहिये ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-16798811568721997372011-12-21T14:11:01.759+05:302011-12-21T14:11:01.759+05:30अब समय आ गया है कि स्त्रियाँ इस कानून के बिना भी स...अब समय आ गया है कि स्त्रियाँ इस कानून के बिना भी सुरक्षित रहें और महसूस करें । <br /><br /><br />abhi kam sae kam 50 varsh kaa samay lagegaaरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-14161519958923496582011-12-21T13:34:25.035+05:302011-12-21T13:34:25.035+05:30'सूर्यास्त' लिखना था सूर्योदय टंकण कर बैठ...'सूर्यास्त' लिखना था सूर्योदय टंकण कर बैठा :(JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-23430538457518933622011-12-21T13:07:01.322+05:302011-12-21T13:07:01.322+05:30ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती .और फिर यह तो दिल लगे...ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती .और फिर यह तो दिल लगे का सौदा है दिल्लगी का नहीं .नैतिकता के मानदंड बदल रहें हैं कोई माने या न माने बेगार ढोए ढ़ोता रहे ...virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-20220628340251195982011-12-21T10:56:42.758+05:302011-12-21T10:56:42.758+05:30रचना जी , यह पोस्ट मैंने भी पढ़ी । इसके आखिरी पैरा ...रचना जी , यह पोस्ट मैंने भी पढ़ी । इसके आखिरी पैरा में न्यायालय द्वारा दिया गया सुझाव ही असली समाधान लगता है ।<br />हमारा भी यही विचार है । <br />अब समय आ गया है कि स्त्रियाँ इस कानून के बिना भी सुरक्षित रहें और महसूस करें ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-13111933851234659912011-12-21T08:53:34.244+05:302011-12-21T08:53:34.244+05:30नैतिकता के मापदंडों के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनो...नैतिकता के मापदंडों के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से दोषी माना जाना चाहिए ....<br />वही यह भी सत्य है कि हमारी सामाजिक व्यवस्थाओ के अनुसार स्त्रियाँ कमजोर रही हैं , उन पर दबाव की सम्भावना अधिक होती है , इस लिए कानून की दृष्टि से स्त्रियों को सुरक्षित रखने के लिए इस प्रकार के कानूनी प्रावधानों को रखा जाना उचित समझा गया हो !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-25941662914913501882011-12-21T08:50:46.745+05:302011-12-21T08:50:46.745+05:30http://hindi-vishwa.blogspot.com/2011/12/blog-post...http://hindi-vishwa.blogspot.com/2011/12/blog-post_21.htmlरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-86926769504690405212011-12-21T08:14:16.346+05:302011-12-21T08:14:16.346+05:30niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-58753993942869696732011-12-21T08:11:41.958+05:302011-12-21T08:11:41.958+05:30JC said...
अपन 'इतिहासकार' नहीं हैं... किन...JC said...<br />अपन 'इतिहासकार' नहीं हैं... किन्तु जैसे छोटी सी वस्तु भी नुछ न कुछ लाभदायक कार्य करती है, झूट-सच इतिहास भी कुछ न कुछ लाभदायक काम करता ही होगा... <br />यदि मन में प्राचीन भारत को देखें तो अंग्रेजों का आगमन तब हुआ जब देश का राज पश्चिम दिशा से (जिसका राजा शनि देवता को नाबा जाता है, और धातु लोहे और 'आकाश' समान नीले रंग से सम्बंधित), मैदानी रास्तों से, (कांसे से बनी कमजोर तलवार की तुलना में लोहे की तलवार लिए आये अधिक शक्तिशाली) गुलाम वंश के राजाओं से आरम्भ कर मुग़ल राजाओं के पास था... और तत्कालीन हिन्दुओं को उसके पतन के आसार दिख रहे होंगे (औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर तथाकथित अत्याचार के कारण इच्छा?) ... वे इस लिए पश्चिम देशों से जल-मार्ग से लोहे की अधिक शक्तिशाली तोप लिए आये, विशेषकर अंग्रेजों के आगमन पर, संभवतः प्रसन्न हुवे होंगे... और कुछ हिन्दू राजाओं ने उनकी सहायाता भी की होगी अपना-अपना राज्य स्थापित करने हेतु... और यह भी सभी को पता हैं कि अंग्रेजों ने अपने सख्त कानूनी तंत्र पर धीरे धीरे 'भारत' में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार में से लगभग ५०% भाग में कॉलोनियां बना लीं... और यह प्रसिद्द हो गया कि उनके राज में (राम-राज्य समान?) सूर्योदय ही नहीं होता!<br />किन्तु अफ़सोस कोई भी मानवी व्यवस्था अभी तक १००% सही नहीं पायीं गयीं हैं - हर राज का उत्थान होता है तो पतन भी निश्चित है :(<br /><br />December 21, 2011 7:29 AMJChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-73065135194454565602011-12-21T00:01:24.234+05:302011-12-21T00:01:24.234+05:30.
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Indian Adultery Law :
इस कानून के अनुसार एक....<br />.<br />.<br /><i>Indian Adultery Law :<br /><br />इस कानून के अनुसार एक विवाहित पुरुष और महिला के बीच , जो पति पत्नी नहीं हैं , अवैध यौन सम्बन्ध होने पर पुरुष को कानून के अंतर्गत अपराधी माना जायेगा लेकिन महिला को नहीं ।<br /><br />इस सम्बन्ध को अपराध इसलिए माना गया है ताकि विवाह का पवित्र रिश्ता सुरक्षित रह सके ।<br /><br />पुरुष के अपराधी होने का कारण है,क्योंकि कानून की नज़र में पत्नी को पति की ज़ागीर / संपत्ति माना जाता है । यदि कोई गैर पुरुष किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध बनाता है तो वह उसकी निजी संपत्ति में दखलअंदाजी करता है । इसलिए उस पर केस बनता है ।<br /><br />इस तरह के अवैध सम्बन्ध में पति तो अपराधी है लेकिन पत्नी नहीं ।<br /><br />एक हैरानी की बात यह है कि राष्ट्रीय महिला आयोग भी इसे सही मानता है ।<b> उनका यह भी कहना है कि इस तरह के अवैध सम्बन्ध को गैर कानूनी ही न माना जाये ।</b></i> <br /><br />मेरी राय में राष्ट्रीय महिला आयोग की सिफारिश सही है, विवाहेतर दूसरे किसी विवाहित से शारीरिक संबंध सामाजिक व नैतिक रूप से गलत हैं तथा अपने जोड़ीदार के प्रति विश्वासघात हैं पर इन्हें गैरकानूनी कह किसी को अपराधी मानना चीजों को जरूरत से ज्यादा आगे ले जाना है... इस तरह के संबंध अपराध तो निश्चित ही नहीं हैं और न ही माने जाने चाहिये किसी भी सभ्य, लोकतांत्रिक समाज में...<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-61600842496360660412011-12-20T20:09:15.536+05:302011-12-20T20:09:15.536+05:30yeh ek gambheer mudda hai sabhi ke tarq vitarq pad...yeh ek gambheer mudda hai sabhi ke tarq vitarq padhe bahas achchi hui hai jab ki baat bilkul saaf hai ki avaidh sambandh natikta,samajikta aachar sanhita sabhi roop se nindneeya hai agar dono married vyakti isme lipt hain to dono hi barabar ke doshi hain dono hi to vivaah jaisi pavitra sanstha/bandhan ka majaak bana rahe hai atah kaanoon barabar hone chahiye.Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-17399053463292322702011-12-20T19:36:53.199+05:302011-12-20T19:36:53.199+05:30रजनी जी , सविता जी , मुझे भी यही लगता है कि बदलते ...रजनी जी , सविता जी , मुझे भी यही लगता है कि बदलते वक्त को कोई रोक नहीं सकता । समय के साथ हमें भी बदलना पड़ेगा । और नई पीढ़ी बदल भी रही है । तभी तो लिव इन रिलेशनशिप , सिंगल मदर और एल जी बी टी जैसे शब्द यहाँ भी स्वीकार्य होने लगे हैं ।<br />ऐसे में इन संबंधों को भले ही सामाजिक और धार्मिक स्तर पर अनैतिक और पाप समझा जाये , कानूनी तौर पर अपराध नहीं माना जाना चाहिए , वेस्ट की तरह ।<br />जब अपराध ही नहीं होगा तो भेद भाव की बात अपने आप ही ख़त्म हो जाएगी ।<br />इन सम्बन्धों को अनैतिक और विवाह के पवित्र बंधन के विरुद्ध तो पश्चिमी देशों में भी माना जाता है । तभी तो यह तलाक का वैध कारण बनता है ।<br />समाज में नैतिकता और स्त्री को सम्मान कानून द्वारा नहीं , बल्कि समाज के आचरण द्वारा ही दी जा सकती है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-73477154279817181062011-12-20T19:33:20.102+05:302011-12-20T19:33:20.102+05:30कानून सारे अंग्रेजों के समय से चले आ रहे हैं और आज...कानून सारे अंग्रेजों के समय से चले आ रहे हैं और आज ऐसा मकडजाल बन गया है कि 'आधुनिक भारत' के लिए प्रसिद्द है, "You show me the man, I will show you the rule"!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-2538147198430797652011-12-20T19:05:41.099+05:302011-12-20T19:05:41.099+05:30गंभीर विषय पर अच्छी चर्चा,क़ानून सबके लिए समान है द...गंभीर विषय पर अच्छी चर्चा,क़ानून सबके लिए समान है दोषी दोनों है <br />समय के मांग के अनुसार कानून में परिवर्तन होना चाहिए,..<br /><br />नये पोस्ट की चंद लाइनें पेश है.....<br /><br />पूजा में मंत्र का, साधुओं में संत का,<br />आज के जनतंत्र का, कहानी में अन्त का,<br />शिक्षा में संस्थान का, कलयुग में विज्ञानं का<br />बनावटी शान का, मेड इन जापान का,<br /><br />पूरी रचना पढ़ने के लिए <a href="http://dheerendra11.blogspot.com" rel="nofollow"> काव्यान्जलि </a> मे click करेधीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5777774725152282226.post-49449170376088337582011-12-20T18:59:18.298+05:302011-12-20T18:59:18.298+05:30बढ़िया बहस चल रही है..और चले..मैं अपने मत पर कायम ...बढ़िया बहस चल रही है..और चले..मैं अपने मत पर कायम हूँ।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com