शनिवार का दिन सड़कों पर थोडा सकूं का दिन होता है । ज्यादातर सरकारी कार्यालय इस दिन बंद होते हैं ।
लेकिन चौराहों पर इस दिन एक विशेष नज़ारा देखने को मिलता है । हर चौराहे पर दर्ज़नों बच्चे जय शनिदेव कहते हुए भीख मांगते नज़र आते हैं ।
इस फोटो में दिखाई दे रहा यह सवा छै फुट का नौज़वान अक्सर काले लिबास में भीख मांगता है । आज जाने क्यों अपना ट्रेड मार्क लिबास छोड़कर सफ़ेद पर उतर आया ।
कार में शीशे बंद कर बैठे हमारे जैसे संभ्रांत व्यक्तियों के लिए इसे हाथ के इशारे से निज़ात पाना आसान हो जाता है ।
लेकिन इसके डील डौल और कद काठी को देखकर ही दो पहियाँ सवारों की जेब में हाथ चला जाता है ।
दूसरे चौराहे पर तैनात यह नौज़वान भी पहले वाले का भाई लगता है ।
हाथ में डोंगा जिसमे एक त्रिशूल रखा रहता है । डोंगे में थोडा सा सरसों का तेल , कभी कभी फूल माला लटकती हुई , साथ में नींबू और हरी मिर्च की लड़ी बनाकर लटका लिया जाता है ।
ज्यादातर डोंगे में सिक्के डालने वाले साईकल , स्कूटर या मोटरसाईकल सवार ही होते हैं ।
कभी किसी कार वाले को सिक्का डालते हुए नहीं देखा ।
हम कभी चौराहे पर किसी को भीख नहीं देते , न ही कोई खरीदारी करते हैं । आखिर कोई तो हो जो कानून का पालन करे ।
लेकिन अक्सर सोचता हूँ कि ऐसा क्यों कि भीख देने वाले निम्न आय वाले लोग ही होते हैं । क्या उन्हें अपना स्तर ऊंचा उठाने के लिए दान करना पड़ता है ?
और शनि देव का क्या महत्त्व है ?
डोंगे में तेल , त्रिशूल , नीम्बू और हरी मिर्च के पीछे क्या धारणा है ?
ये लोग कौन हैं जो शनि के नाम पर भीख मांगते हैं ?
शायद ज्ञानी लोग इन सवालों के ज़वाब दे पायें !
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शनि खुश रहें, तो सब ठीक रहेगा।
ReplyDeleteअमीर और ग़रीब दोनों ही भगवानों और उनके दूतों से डरते हैं. अमीर ग़रीब नहीं होना चाहता, ग़रीब अमीर होना चाहता है. जबकि मध्यवर्गीय नंगा होता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता :)
ReplyDeleteदराल साहब, भीख मांगने से ज्यादा आसान धंधा कोई नहीं है भारतवर्ष में और देश में धर्मभीरुता अभिशाप .धर्म क्या है ? धर्म के ठेकेदारों के लिए डराने का साधन (जानते है ना स्वर्ग नरक का खेल )
ReplyDeleteशनि देव ऐसा कुछ नहीं चाहते ...
ReplyDeleteकुछ दिन पहले इंदौर शहर में एक गेंग पकड़ी गई थी ..जिनके पास १५० बच्चे थे जो हर शनिवार को सुबह ही अपने कटोरे ले ' काम' पर चल देते थे ...
ReplyDeleteसबसे आसान तरीका है न यह पैसा कमाने का.शनि के दिन शनि पर पैसे चढाओ शनि देव की कृपा रहेगी.
ReplyDeleteडा० साहब, यह भी हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन में प्रगति का ही एक हिस्सा है ! शनि देव तो महज बजट घाटे को संतुलित करने के उपाय के रूप में इस्तेमाल किये जाते है ;)
ReplyDeleteभय और भूख का भगवान से जन्म का नाता है। जिस दिन धरती से भय और भूख मिट जायेंगे उस दिन से नहीं दिखेंगे ऐसे दृश्य।
ReplyDeleteअगर शनि की कृपा रही तो स्विस-खाते भी 'सेफ'रहेंगे !
ReplyDeleteशनि देव तो बहाना है ...असल मे पेट पालने का एक तरीका है
ReplyDeleteआज का जीवन बड़ी कुश्किलों से भरा है ..शायद कोई मुश्किल हल हो जाय इसी आश में लोग दान करते है
हमारे सौर-मंडल का महत्त्व इस लिए है कि हमारी पृथ्वी, वसुधा, भी इस की शायद सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है - सुन्दर और अद्भुद विविधता वाला पिंड... "सत्यम शिवम् सुन्दरम", और "सत्यमेव जयते", कह गए हमारे पूर्वज, जो वर्तमान वैज्ञानिकों की तुलना में कई गुणा बुद्धिमान थे, 'सिद्ध' कहलाये गए, और जिन्होंने संसार को 'शून्य' ('०') दिया, अर्थात अजन्मे और अनंत निराकार ब्रह्म की उपस्तिथि, जो शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है... और इसके अतिरिक्त मानव को नव ग्रह दिए, नंबर १, सूर्य, से नंबर ९ ठन्डे किन्तु अति सुन्दर शनि ग्रह तक (धातु लोहे और नीले रंग से सम्बन्धित) - और जिनके मिले-जुले सार से मानव शरीर को भी बना हुआ जाना, जिसमें से शनि के सार से मानव शरीर के नर्वस सिस्टम बनाने में...
ReplyDeleteऔर वर्तमान खगोलशास्त्री भी कहते हैं कि पृथ्वी जैसा अभी तक कोई भी ग्रह हमारी गैलेक्सी में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में, अभी तक उन्हें देखने को नहीं मिला है... सन '८२ में समाचार पत्रों में कैब्रिज विश्वविद्यालय के सर फ्रैड हौयल ने स्वीकारा कि पृथ्वी पर जीवन की क्लिष्ट रासायनिक बनावट इस के पीछे किसी अत्यधिक बुद्धिमान जीव का हाथ दर्शाता है, किन्तु इसे किसी एक ही परम बुद्धिमान जीव, परमात्मा, द्वारा रचा गया नहीं माना जा सकता... फिर इस सदी के आरम्भ में प्रसिद्द वैज्ञानिक कार्ल सेगन से, उनके भारत भ्रमण के दौरान, जब पुछा गया यदि वो भगवान् को मानते हैं? तो उन्होंने कहा वो उसके मन में प्रवेश पाना चाहेंगे! ...'सेटी' प्रोग्राम के अंतर्गत पश्चिम में खोज जारी है पता करने के लिए यदि किसी अन्य ग्रह आदि में किसी मानव से भी बुद्धिमान जीव की उपस्तिथि संभव है कि नहीं,,, हमारे पूर्वजों ने सौर-मंडल के सदस्यों को ही देवता मान उन्हें स्वतंत्र जीव समान माना... पृथ्वी को गंगाधर/ चंद्रशेखर शिव आदि सहस्त्र नामों से पुकार इसे सर्वगुण संपन्न जीव माना... गीता में भी कृष्ण ने सब गलतियों का कारण अज्ञान को कहा है...
डॉक्टर साहब आप यहां शनिदेव के चक्कर में उलझे हैं और हम सब आपका सांपला में बेसब्री से इंतज़ार करते रहे...
ReplyDeleteजय हिंद...
अंधविश्वास के नाम पर भयादोहन
ReplyDelete"आवश्यकता आविष्कार की जननी है" , वैसे ही "अज्ञान अंधविश्वास का बाप है"!
ReplyDeleteतुलसीदास जी ने भी शक्तिशाली 'धनुर्धर' राम (सूर्य के प्रतिरूप) को लक्ष्मण जी से (जिससे चंद्रमा, जिसका प्रतिरूप सीता थी,,, और हिमालय, यानि विष्णु के मेरुदंड, की उत्पत्ति हुई, उस पृथ्वी के प्रतिरूप) सागर जल को सुखाने हेतु तीर मांगते हुए कहते दर्शाया, "भय बिन होऊ न प्रीत", जब सागर-जल के राजा वरुण देवता ने उनके कुछ दिन प्रार्थना करने पर सुग्रीव की बानर सेना के लंका जाने के लिए मार्ग प्रशस्त नहीं किया... (क्यूंकि वरुण देवता ज्ञानी थे, उनको मालूम था कि गहरे सागर के तले में उतर, नीचे चल, और फिर ऊपर लंका की भूमि पर चढ़ना फ़ौज के लिए असंभव होगा) वरुण देवता ने सुझाया कि उस से अच्छा नल-नील की सहायता से तैरते पत्थरों से सेतु निर्माण करा लिया जाए ,,, जैसे आज पौन्तून ब्रिज बनाए जाते हैं - किन्तु कलिकाल में, अज्ञानता वश, शनि के प्रतिरूप लोहे से! और क्यूंकि लोहे में जंग लग जाता है, उस पर हफ्ते हफ्ते तेल मालिश करनी पड़ती है (वैसे ही जैसे पुलिस को हफ्ता, अथवा 'हथेली में ग्रीज़' ('grease the palm'!)... and so on in praise of Ganesh'as mouse/ Vishnu's fir incarnatin turtle-like slowest of the slow moving planet Shani...:) "Slow and steady wins the race"!...
JC said...
ReplyDelete"आवश्यकता आविष्कार की जननी है" , वैसे ही "अज्ञान अंधविश्वास का बाप है"!
तुलसीदास जी ने भी शक्तिशाली 'धनुर्धर' राम (सूर्य के प्रतिरूप) को लक्ष्मण जी से (जिससे चंद्रमा, जिसका प्रतिरूप सीता थी,,, और हिमालय, यानि विष्णु के मेरुदंड, की उत्पत्ति हुई, उस पृथ्वी के प्रतिरूप) सागर जल को सुखाने हेतु तीर मांगते हुए कहते दर्शाया, "भय बिन होऊ न प्रीत", जब सागर-जल के राजा वरुण देवता ने उनके कुछ दिन प्रार्थना करने पर सुग्रीव की बानर सेना के लंका जाने के लिए मार्ग प्रशस्त नहीं किया... (क्यूंकि वरुण देवता ज्ञानी थे, उनको मालूम था कि गहरे सागर के तले में उतर, नीचे चल, और फिर ऊपर लंका की भूमि पर चढ़ना फ़ौज के लिए असंभव होगा) वरुण देवता ने सुझाया कि उस से अच्छा नल-नील की सहायता से तैरते पत्थरों से सेतु निर्माण करा लिया जाए ,,, जैसे आज पौन्तून ब्रिज बनाए जाते हैं - किन्तु कलिकाल में, अज्ञानता वश, शनि के प्रतिरूप लोहे से! और क्यूंकि लोहे में जंग लग जाता है, उस पर हफ्ते हफ्ते तेल मालिश करनी पड़ती है (वैसे ही जैसे पुलिस को हफ्ता, अथवा 'हथेली में ग्रीज़' ('grease the palm'!)... and so on in praise of Ganesha 's mouse/ Vishnu's first incarnation turtle-like slowest of the slow moving planet Shani...:)... "Slow and steady wins the race"!...
December 25, 2011 5:34 AM
@ दराल साहब ,
ReplyDelete(१)
तकरीबन सभी इंश्योरेंस कंपनियां भय के मनोविज्ञान पर आधारित व्यापार करती हैं ! मान लीजिए कि यह बंदा भी कमोबेश इंश्योरेंस कम्पनी की तर्ज़ का व्यापारी है :)
@ दराल साहब ,
ReplyDelete(२)
आपकी पोस्ट और जेसी साहब की टिप्पणियां बड़ा डेडली काम्बिनेशन है :)
काजल जी , कुश्वंश जी , दर्शन जी , शिखा जी -- भीख मांगना तो एक अलग समस्या है । लेकिन शनि के नाम पर भीख मांगना बेशक हमारी धर्मभीरुता को दर्शाती है ।
ReplyDeleteलेकिन अभी तक यह पता नहीं चला कि शनि के साथ तेल , निम्बू और हरी मिर्च का क्या महत्त्व है ।
खुशदीप भाई , थोडा सा इंतज़ार दिल्ली में भी कर लिया होता तो शायद हम भी संपला में बीन बजा रहे होते । :)
ReplyDeleteमन तो अपना भी बहुत था जाने का और कवि सम्मलेन में भाग लेने का ।
लेकिन वो कहते हैं ना --यहाँ बस ऊपर वाले की मर्ज़ी चलती है ।
अली भाई , जे सी जी की टिप्पणियां केक पर आइसिंग का काम करती हैं । :)
शनि के नाम का कई लोग ख़ा रहे हैं .शनि की ढैया से डराने वाले बहुत हैं डरने वाले भी .शनि और शनि देव के मंदिर नवग्रह अर्थ शास्त्र के पुर्जे बने हुएँ हैं मेरे भारत देश में .जबकि नव ग्रहों में से प्लूटो को अब ग्रह नहीं प्लेनेतोइड ही समझा जाता है .शनि यहाँ भिक्षाम देहि का साधन बना हुआ है आजीविका चला रहा है कितनों की दान नहीं दोगे तो लोहे के चने चबवा देगा शनि .ऐसी है अंधविश्वास की आंधी और उससे असर ग्रस्त लोग .
ReplyDeleteभय ... शायद इंसान के मन में शनि की ऐसी धारणा जो बनी हुयी है ... अरे कही नाराज़ न हो जाएं ...
ReplyDeleteऔर बस चलती रहती है कईयों की दुकानें ...
शनि के प्रकोप से सभी डरते है,भय के कारण शनि के नाम पर भीख
ReplyDeleteज्यादा मिल जाती,इसी लिए भिखारियों ने नया तरीका इजाद किया है..नए विचारों की सुंदर प्रस्तुति,.....
नई पोस्ट--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
डॉक्टर दराल जी, कहते हैं कि स्नायु तंत्र, नर्वस सिस्टम का काम माथे में अवस्थित मांस-पेशी से बने केन्द्रीय पावर हॉउस, (और संगणक केंद्र में विश्लेषण आदि कर), मस्तिष्क से शक्ति को सारे शरीर में पहुंचाना है... और यदि एक्यूपंक्चर की किताब, और वर्तमान ज्ञान के आधार पर देखें, कि मानव शरीर पंचतत्व, और मुख्यतः लगभग जीवन-दाई ७०% भाग जल से बना है, तो पता चलता है कि किसी काल विशेष में मानव को एक इलेक्ट्रो कैमिकल तंत्र के समान, अंतरिक्ष में व्याप्त ऊर्जा, और प्रकृति में प्राप्त रसायन आदि को रक्त के माध्यम से, पूर्व निर्धारित १२ चैनल में, सम्पूर्ण शरीर में विभिन्न स्थान में उपस्थित, ह्रदय, गौल ब्लैडर, ब्लैडर, गुर्दे, लिवर, बड़ी आंत, छोटी आंत, फेफड़े, आदि, १२ मुख्य अंगों को लगभग १००+ वर्षों तक चलाये रखने का काम सुचारू रूप से चल रहा है... पीला निम्बू, सोने के रंग को इन्द्रधनुषी रंगों में गुरु (ज्ञान की देवी सरस्वती) माना गया है, जबकि मिर्ची तो हरी, अर्थात 'हरी विष्णु' की द्योतक है ही, और हर, अर्थात शिव भी...(हरा रंग पीले और 'आकाश' समान नीले रंग से बना है, जिसे नील कंठ शिव/ नीलाम्बर कृष्ण/ शिव के पुत्र कार्तिकेय के नीले रंग के वाहन, अर्थात 'भारत' के राष्ट्रीय पक्षी मोर द्वारा संकेत माना जा सकता है...)...
ReplyDeleteहिन्दुओं, योगियों, ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सूचना को मानव शरीर में ही उपलब्ध जाना, 'अष्ट चक्र' (आठ गैलेक्सी के सार, हर एक के केंद्र में अवस्थित विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण) द्वारा सांकेतिक भाषा में आठ बिन्दुओं में भंडारित सूचना को पढने का काम सर्वोच्च स्तर पर अवस्थित मस्तिष्क रुपी कंप्यूटर का और तुलनात्मक रूप से निम्न स्तर पर फेफड़ों में भरी हवा और जीव्हा की सहायता से कंठ द्वारा बोल, और 'स्कंध' (ज्येष्ठ पार्वती पुत्र) और हाथों के माध्यम से लिख/ टंकण कर प्रसारित करने का यंत्र जाना गया,,, और कहा गया कि जो कुछ बाहरी संसार में है वो शरीर के भीतर सार रूप में भंडारित है...
शनि देव के साथ उनके कोप भाजन बनने की जो बातें जुडी हुई हैं ,मेरे ख्याल से शनिदेव को दान वाले में वो ज्यादा प्रभावी है । वैसे भारत में चौराहे पर भीख मांगने का चलन कब कैसे शुरू हुआ ये जरूर सोचने की बात है
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, कहते हैं कि स्नायु तंत्र, नर्वस सिस्टम का काम माथे में अवस्थित मांस-पेशी से बने केन्द्रीय पावर हॉउस, (और संगणक केंद्र में विश्लेषण आदि कर), मस्तिष्क से शक्ति को सारे शरीर में पहुंचाना है... और यदि एक्यूपंक्चर की किताब, और वर्तमान ज्ञान के आधार पर देखें, कि मानव शरीर पंचतत्व, और मुख्यतः लगभग जीवन-दाई ७०% भाग जल से बना है, तो पता चलता है कि किसी काल विशेष में मानव को एक इलेक्ट्रो कैमिकल तंत्र के समान, अंतरिक्ष में व्याप्त ऊर्जा, और प्रकृति में प्राप्त रसायन आदि को रक्त के माध्यम से, पूर्व निर्धारित १२ चैनल में, सम्पूर्ण शरीर में विभिन्न स्थान में उपस्थित, ह्रदय, गौल ब्लैडर, ब्लैडर, गुर्दे, लिवर, बड़ी आंत, छोटी आंत, फेफड़े, आदि, १२ मुख्य अंगों को लगभग १००+ वर्षों तक चलाये रखने का काम सुचारू रूप से चल रहा है... पीला निम्बू, सोने के रंग को इन्द्रधनुषी रंगों में गुरु (ज्ञान की देवी सरस्वती) माना गया है, जबकि मिर्ची तो हरी, अर्थात 'हरी विष्णु' की द्योतक है ही, और हर, अर्थात शिव भी...(हरा रंग पीले और 'आकाश' समान नीले रंग से बना है, जिसे नील कंठ शिव/ नीलाम्बर कृष्ण/ शिव के पुत्र कार्तिकेय के नीले रंग के वाहन, अर्थात 'भारत' के राष्ट्रीय पक्षी मोर द्वारा संकेत माना जा सकता है...)...
ReplyDeleteहिन्दुओं, योगियों, ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सूचना को मानव शरीर में ही उपलब्ध जाना, 'अष्ट चक्र' (आठ गैलेक्सी के सार, हर एक के केंद्र में अवस्थित विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण) द्वारा सांकेतिक भाषा में आठ बिन्दुओं में भंडारित सूचना को पढने का काम सर्वोच्च स्तर पर अवस्थित मस्तिष्क रुपी कंप्यूटर का और तुलनात्मक रूप से निम्न स्तर पर फेफड़ों में भरी हवा और जीव्हा की सहायता से कंठ द्वारा बोल, और 'स्कंध' (ज्येष्ठ पार्वती पुत्र) और हाथों के माध्यम से लिख/ टंकण कर प्रसारित करने का यंत्र जाना गया,,, और कहा गया कि जो कुछ बाहरी संसार में है वो शरीर के भीतर सार रूप में भंडारित है...
December 25, 2011 7:20 PM
त्वरित टिपण्णी के लिए आभार .बड़ा दिन और नव वर्ष की पूर्व वेला भी मुबारक .
ReplyDeleteJC said...
ReplyDelete'भारत' की यही तो खासियत रही है - धर्म-वर्म-शर्म आदि ही नहीं, अपितु 'स्वयं' को जानने हेतु स्वयं (शरीर) को भूल, जब भी मौक़ा लगे, अकेले अथवा मिलजुल के जीवन का आनंद उठाओ - क्यूंकि मानव जीवन ८४ लाख निम्न स्तर की पशु योनियों से गुजर बड़ी कठिनाई से मिलता है...:)
सभी को क्रिसमस के शुभ अवसर पर अनेकानेक बधाई! और नव वर्ष २०१२ का सभी के जीवन में खुशियाँ ले कर आने की शुभ आकांक्षा!
December 25, 2011 8:44 PM
mujhe yaad hai bachapan me har shanivar ek brahman jee louta lekar oil lene aate the aur shani ke kop se bachane ke liye sabhee vadhy the .
ReplyDeletedharm ke naam par koi bahas nahee karna chahta ......
Nice question .
ReplyDeletePlease have a look on
Bloggers Meet Weekly 23
सबसे पहले ‘ईसा मसीह‘ के दिन की मुबारकबाद !
महापुरूष किसी एक इलाक़े या किसी एक नस्ल के लिए ही नहीं होते।
जो सच्चा है वह सबका है।
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/merry-christmas.html
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete'Superstition' ke siva kuch bhi nahin! Log Andhvishvash ke karan hi aisa karte hain!
ReplyDeleteThanks for a meaningful post!
JC said...
ReplyDelete@ वीरुभई जी, जो मेरी समझ आया उसे शब्दों में समझाने का प्रयास करता हूँ...सुदर्शन-चक्र समान घूमती गैलेक्सी के केंद्र में सुपर गुरुत्वाकर्षण 'ब्लैक होल' अर्थात 'कृष्ण' हैं,,, और इस चक्र की बाहरी ओर हमारा सौर-मंडल वैसे ही अवस्थित है जैसे एक बड़े पात्र में दूध से बने दही को केंद्र में अवस्थित मंथनी से बिलोया जाता है,,, और मक्खन बाहरी ओर चला जाता है... 'नवां ग्रह' शनि को जाना गया जिसका सार हमारे नर्वस सितम बनाने में लगा दिया गया है,,, और आकार को गौण जाना गया है, १२ नंबर से बनी टीम में तीन पिंड, युरेनस, नेप्चून, प्लूटो, हम जैसे अवकाश प्राप्त 'व्यक्ति' हैं...)
'नवग्रह', अर्थात नौ 'ग्रहों' से प्राचीन ज्ञानी, सिद्ध हिन्दुओं का तात्पर्य सौर-मंडल के पहले और नवें नंबर (१/ ९) गर्म, कृष्ण से सूर्योदय अर्थात जन्म के समय, और सूर्यास्त के समय भी लाल (ब्रह्मा के कमल समान), किन्तु दिन के १२ बजे (ब्रह्मा की अर्धांगिनी सारस्वत समान) श्वेत प्रतीत होते सूर्य/ सूर्य का ठंडा, आरम्भ में अर्थात रात्रिकाल में कृष्ण से सूर्योदय से सूर्यास्त तक नीला प्रतीत होता 'आकाश', सूर्य-पुय्र शनि का प्रतिरूप/ पृष्ठभूमि,,, 'आधुनिक वैज्ञानिक' की दृष्टि से, सूर्य 'एक साधारण सितारा'/ प्राचीन हिन्दुओं की दृष्टि से नौवां शनि, अर्थात सूर्य-पुत्र}, {(२) बुद्ध, (३) वीनस अर्थात शुक्र}; ((४) पृथ्वी; (५) चन्द्रमा)}; {(६) ऐस्तेरोयद (एक छोटे छोटे ग्रहों के मिलेजुले, 'हनुमान की वनार सेना'/ गणेश के मूषक वाहन) समान संस्था; (७) मंगल (हनुमान/ गणेश)}; {(८) जुपिटर अर्थात देवताओं के गुरु बृहस्पति, सुन्दरतम शनि समान छल्लेदार, किन्तु तुलना में तनिक मैला (कृष्ण), अर्थात रिंग-प्लैनेट... (९) सूर्य / शनि}
उपरोक्त चार जोड़ों (योग) द्वारा, मंगल के सार को मूलाधार में स्थान दे और नाभि में बृहस्पति के (ऐस्तेरोयद का सार इन दोनों के बीच); पेट में सूर्य के सार; गले में शुक्र का सार और पेट और गले के बीच ह्रदय में बुध का सार... इस प्रकार छह ग्रहों का सार धड में जाना गया... जबकि शिव के 'तीसरे नेत्र' के स्थान पर पृथ्वी (गंगाधर शिव) का और मस्तक में सर्वोच्च स्थान चंद्रमा (पीताम्बर कृष्ण/ हिमालय पुत्री पार्वती, शैलपुत्री दुर्गा) का... :)
पुनश्च - त्रुटी सुधार के लिए खेद - कृपया कार्ल सेगन के स्थान पर स्टेफन हॉकिंग पढ़ें... स्वर्गीय सेगन तो पुस्तक कॉसमॉस के लेखक थे...
December 26, 2011 7:18 AM
द ग्रेट शनी, नीड्स मनी? नो वे हनी!
ReplyDeleteSaturn, 'Satan', the serpent (Vishdhar? Yes, represented by the 'question mark'! the inverted i, doing 'sheershaasan' :), who gave the forbidden fruit to Adam (through his better half Eve), is giver of wealth... and also forcibly taker of riches given on recommendation of Bholanath Shiv to undeserving beggars of boons, be it Kamdev or Bhasmasur :) The nervous system carries energy from mooladhar, the basic seat, to sahasrara in the brain, while also collecting surplus energy from intermediate chakras; or downwards from the brain to mooladhar, meeting the requirements of other intermediate chakras... till the drama lasts...
ReplyDeleteJai Maharaj Shani! the ruler of the direction 'west', the materialistic one half of the globe, unlike the generally spiritualistic one half in the 'east'...:)
जय शनि देव
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको भाई जी !
तुला,मकर और कुंभ राशि में शनि अत्यन्त शुभ फल देते हैं। मेष राशि में शनि के जबरदस्त दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं। कुल मिलाकर,शनि की श्रेणी निम्न मानी गई है। अधिकतर मामलों में,वे कष्टदायी हैं। इसलिए,ऐसे देवता को तेल मालिश से ही प्रसन्न रखने का प्रयास किया जा सकता है!
ReplyDeleteसबके विचार पढ़कर यह तो विदित है कि लोग शनि के दुष्प्रभाव से डरते हैं । इसलिए उसे खुश रखने के लिए ये सब करते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन देश से बाहर दूसरे देशों के लोग जो इस बात में विश्वास नहीं रखते , उनके साथ क्या शनि का प्रकोप अपना असर नहीं दिखाता !
सचमुच लोग बहुत डरते हैं , अन्जाने भय से ।
ईश्वर एक ही है । ईश्वर और खुद में विश्वास हो तो डरने की ज़रुरत नहीं होती ।
JC said...
ReplyDeleteयह तथ्य तो आज लगभग सभी जान सकते हैं कि अपने अनंत शून्य रुपी अंधकारमयी ब्रह्माण्ड के भीतर समाई असंक्य गैलेक्सियों में से, हम अपनी एक तस्तारिनुमा गैलेक्सी के भीतर, उसके बाहरी किनारे के निकट समाये हुए, सौर-मंडल के निवासी हैं.. और हम जिस सौर-मंडल के एक सदस्य के ऊपर रहते हैं - अर्थात अन्य शब्दों में, जिसने हमें धरा हुआ है - वो धरा/ वसुधा/ पृथ्वी आदि कहलाती है,,, और वो एक गेंद समान गोलाकार पिंड है जो सौर-मंडल के अन्य पिंडों समान अपनी अपनी कक्षा में साढ़े चार अरब से निरंतर घूमते आ रहे हैं...
और, हम सभी अस्थायी प्राणियों के अतिरिक्त - पृथ्वी के अपने गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के भीतर ही - उसने एक अन्य छोटे से किन्तु अत्यंत शक्तिशाली पिंड चंद्रमा को भी धरा हुआ है,,, जिसका प्रभाव हमारे सौर-मंडल के शक्तिशाली ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत सूर्य के साथ मिल कर विशेषकर सागर-जल पर ज्वार-भाटा के रूप में सभी समुद्रतट के निकट रहने वाले अनादिकाल से देखते आ रहे हैं, जिसका ज्ञान, कि वो कब कब सर्वाधिक होगा, चन्द्रमा के पूर्व निर्धारित चक्र के ज्ञान के साथ पता चल जाता है, यद्यपि उस से मॉनसून के समय तटीय क्षेत्र में संभावित बाढ़ आदि से हानि का पूर्वानुमान संभव न हो पाए... पृथ्वी-चन्द्र, दोनों अपनी अपनी धुरी पर, अलग अलग घूमते हुए, एक दूसरे के चारों ओर भी घूमते हैं, अर्थात हमारे ऊपर इन दोनों का सर्वाधिक असर पड़ता होगा - अन्य सदस्यों के अतिरिक्त, जिसमें बुद्ध सूर्य के सबसे निकटतम पिंड है और शनि सूर्य से दूर होने के कारण ठंडा है, जिस कारन उस की ऊर्जा को अपने भीतर रोक लेने, अर्थात हर लेने की क्षमता सबसे अधिक होगी... और हिन्दुओं के अनुसार मानव शरीर सूर्या से शनि तक के सार से बना होने के कारण, शनि यदि किसी का कमजोर हो तो उस के शरीर पर दुष्प्रभाव अवश्य अधिक होगा... पूर्वोत्तर क्षेत्र में मैंने एक आतंकवादी की गोली से घायल सिपाही को अस्पताल में दर्द से अन्य, इंजिनियर आदि के साथ घायल, रोते-तड़पते देखा है, और पत्थर पीठ में २-३ मजदूरों के पीठ पर स्नायु-तंत्र पर गिरने से भी - उनकी मृत्यु से पहले :(
December 26, 2011 6:05 PM
आपका पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा । हमेशा आते रहूँगा । मेरे नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपका बेसब्री से इंतजार करता रहूँगा ।.धन्यवाद ।
ReplyDeleteJC said...
ReplyDeleteएक दूर के रिश्तेदात, फ़ौज में अस्सी के दशक में जर्नल, ने अनेक घटनाओं के अतिरिक्त मुझे बताया था कि कैसे उनका एक आरंभिक काल से ही मित्र फौजी था... '६५ की लड़ाई के दौरान वे उसके साथ एक जीप में लौट उसे उसके मेस के निकट छोड़ आगे बढे ही थे कि दुश्मन का एक हवाई जहाज मेस के ऊपर बम फेंक गया और वे स्वयं तो बच गए किन्तु प्रिय मित्र मारा गया :(
इस प्रकार, कह सकते हैं कि मौत तो हरेक की आनी है, कैसे और कब आएगी यह सदैव से रहस्य बना हुआ है,,, यद्यपि वर्तमान में हर क्षेत्र के विशेषज्ञं सभी अज्ञानी, अर्थात अपूर्ण ज्ञानी हैं, फिर भी मानव जीवन का पूर्वानुमान हेतु अनादिकाल से कुछ व्यक्ति, परम्परानुसार, लगे हुए हैं जिन्हें ज्योतिषी, हस्तरेखा शास्त्री, समुद्र शास्त्र के ज्ञानी, 'तैरत कार्ड रीडर', आदि आदि कहा जाता है...
काल के प्रभाव से हर कोई एक दूसरे को मूर्ख, अथवा अनावश्यक, दिखाई पड़ता है... किन्तु, जैसा 'मैंने' पहले भी कहा था,अंग्रेजी में कहावत है, "He also serves who just stands and stares", say like a 'painter'...
सभी 'निर्जीव', 'जीव', कुछ आवश्यक कार्य कर रहे हैं, जिसे जानने के लिए अर्जुन समान कृष्ण द्वारा दिए गए दिव्य-चक्षु पाना अनिवार्य समझा गया है...:)
Jai Shri Krishn!
December 27, 2011 7:50 AM
if want to more about shanidev plz visit www.shannidham.in
ReplyDeleteशनि के प्रकोप की बात सोच कर लोग दान देते हैं ... यह लोगों का अंधविश्वास ही है ..और ऐसे धर्मभीरू लोगों से दूसरे लोग फायदा उठाते हैं .
ReplyDeleteअशिक्षा और पैसे कमाने के तरीके यही कारण होगा...बस और क्या...
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