आज से दो सप्ताह के लिए अर्जित अवकाश शुरू हो गया है । इसलिए दो सप्ताह के लिए डॉक्टरी बंद । अब डॉक्टरी के सिवाय सारे काम किये जायेंगे । हालाँकि डॉक्टर डॉक्टरी छोड़ना भी चाहे तो लोग छोड़ने नहीं देते । किसी भी शादी या दावत में खाना खाते समय भी कोई आकर कहेगा --डॉ साहब आजकल बड़ी कब्ज़ रहती है । अरे भई , पहले कुछ खा तो लो ।
कभी कभी तो उदर व्यथा का ऐसा वर्णन सुनने को मिलता है कि खाना भी खाना मुश्किल हो जाता है ।
पिछली पोस्ट पर एक डॉक्टर की नज़र से सब को दूध के बारे में जानकारी बहुत काम की लगी । लेकिन उस पर अमल करने का वादा किया बस श्री खुशदीप सहगल जी ने । उन्होंने कहा कि आज से टोंड की जगह डबल टोंड दूध ही पीयेंगे ।
लेकिन अब तो हम यह बताना चाहते हैं कि सबसे बढ़िया दूध तो ट्रिपल टोंड दूध होता है । हालाँकि यह दूध मार्केट में नहीं मिलता ।
आइये आज आपको बताता हूँ कि दूध से आम के आम और गुठलियों के दाम कैसे निकाले जाएँ । एक डॉक्टर की नज़र से नहीं , बल्कि एक रसोइये / खानसामा/ हलवाई की नज़र से ।
आम के आम :
दूध तो आप डबल टोंड ही मंगवाइये । लेकिन इसे सुबह उबालकर ठंडा कर फ्रिज में रख दें और शाम को इसकी मलाई उतार लें । जी हाँ , यदि आपने सही से उबाल कर ठंडा कर दिया है तो डबल टोंड दूध में भी काफी मलाई आ जाती है । रोज मलाई को फ्रीज़र में स्टोर करते रहिये ।
इस तरह जो दूध बचेगा वह ट्रिपल टोंड होगा यानि उसने वसा न के बराबर होगी लेकिन बाकि सभी तत्त्व पूरे मौजूद रहेंगे ।
गुठलियों के दाम :
जब मलाई का एक डोंगा भर जाये जो इस बात पर निर्भर करेगा कि आप रोज कितना दूध लेते हैं, तब इसे मिक्स़र में डालकर घुमाइए जब तक कि मक्खन न निकल आए ।
अब मक्खन को अलग कर लीजिये । आप चाहें तो घर का बना शुद्ध सफ़ेद मक्खन खाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं , विशेष कर मक्की की रोटी के साथ । या फिर इससे घी भी निकाल सकते हैं ।
घी बनाने के लिए मक्खन को एक पतीले या सॉस पेन में डालकर धीमी आंच पर गर्म कीजिये और इसे चम्मच से चलाते रहिये ताकि नीचे न लगे ।
इस काम में पेशेंस की ज़रुरत होगी । लेकिन थोड़ी देर में घी अलग हो जायेगा और दूध की प्रोटीन का अवशेष बचा रह जायेगा ।
थोडा ठंडा करने के बाद इसे छलनी में छानते हुए एक बर्तन में स्टोर कर लीजिये ।
लीजिये तैयार हो गया घर का बना शुद्ध देसी घी ।
रोज दो किलो दूध से एक महीने में करीब आधा किलो घी निकल आता है ।
ज़ाहिर है दो व्यक्तियों के लिए दो किलो दूध और महीने में आधा किलो घी काफी रहता है ।
तो मिल गए न आपको गुठलियों के भी दाम ।
डंठल के भी दाम :
अभी तो और भी दाम मिलने वाले हैं । मक्खन निकालने के बाद मिक्सी में जो मट्ठा बचा रह जायेगा , उसमे नमक और भुना हुआ पिसा ज़ीरा मिलाकर लस्सी बनायें और पीयें , बहुत स्वादिष्ट लगेगा ।
हालाँकि यदि थोडा खट्टा लगे तो आप इससे कढ़ी भी बना सकते हैं ।
छिलके के दाम :
घी बनाने के बाद पतीले में जो अवशेष रह जायेगा , वह वास्तव में वसा युक्त प्रोटीन होता है । अब इससे आप एक बहुत स्वादिष्ट मिठाई बना सकते हैं ।
इसके लिए इसमें मिलाइये --बूरा ( हर किराने की दुकान पर मिल जाती है ), इसकी मात्रा कम से कम उतनी होनी चाहिए जितना माल पतीले में बचा है । साथ ही चाय के साथ खाए जाने वाले दो रस ( रस्क ) का चूरा बनाकर मिला दीजिये । अब धीमी आंच पर पकाइए । थोड़ी सी देर में आपके हाथ में होगी एक बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई , घर की बनी हुई ।
इसे आप जितना पकाएंगे , उतना ही स्वाद अलग होता जायेगा ।
तो मिल गए न डंठल के भी दाम ।
पत्तियों के भी दाम :
अभी भी एक और काम की चीज़ बची है । मिठाई बनाने के बाद पतीले को आप कितना भी खाली क्यों न कर लें , उसमे घी और मीठा युक्त पदार्थ बचा रहेगा । इसे खुरचन कह सकते हैं ।
अब इसमें आधा या एक कप दूध डालें और थोडा सा और गर्म करें ।
इसे पीकर देखिये -बिल्कुल रबड़ी जैसा स्वाद आएगा ।
तो इस तरह अपने देखा कि कैसे डबल टोंड दूध को ट्रिपल टोंड बनाकर पिया जाए और साथ में महीने भर का घी का स्टॉक बना लिया जाए , महीने में एक बार घर की बनी हुई मिठाई और रबड़ी वाला एक कप दूध - सब डबल टोंड दूध से ।
इस्तेमाल करके देखिये , कुछ ही महीने में इस तरह डबल टोंड दूध से बने ट्रिपल टोंड दूध के इस्तेमाल से आपकी डबल तोंद टोंड होकर आधी रह जाएगी ।
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इस पोस्ट को पिछली पोस्ट के सन्दर्भ में पढ़िए ।
ReplyDeleteकुछ हद तक श्री अरविन्द मिश्र जी की घुघुरी से प्रेरित है ।
चम्मच/उंगली से कढाई चाटने के काम में भी परम सुख मिलता है। बचपन में माताजी चिल्लाती रहती थी कि कोई देखेगा तो कहेगा कि खाने को नहीं मिलता लेकिन मुझपर और मेरी बडी बहन पर कोई असर नहीं पडता था। फ़िर माताजी दीदी को धमका देती थी कि जो कढाई चाटता है उसकी शादी में बरसात आती है। तुम्हारा तो कुछ नहीं तुम्हारी शादी में हमारा काम बढ जायेगा। और जाते जाते दीदी मेरे हाथ से कढाई छीनकर उसमें पानी डालकर सिंक में रख देती थी। :)
ReplyDeleteहमारे यहाँ यह प्रक्रिया हर सप्ताह होती है, अन्तर बस दूध का है हमारे यहाँ भैसं का दूध आता है जो काफ़ी हद तक ठीक रहता है। यानि पानी मिलने की कम सम्भावना होती है।
ReplyDeleteडंठल और पत्ती के कामों से भी क्या तोंद टोंड रहेगी ? मिठाई में तो कैलरीज़ होती ही हैं न ...
ReplyDeleteछिलके के दाम के रूप में नयी जानकारी मिली ..ट्राई किया जायेगा :)
वाह! जी वाह!
ReplyDeleteयह तो कम्माल कर दिया आपने.
आम,गुठली,छिलके,डंठल,पत्ती
कुछ भी तो नही छोड़ा.
पत्तियों के बाद जड़ भी काम आएगी, पतीली को चाटने से भी विटामिन मिल जाएगी। बस किसी को बताना नहीं। हा हा हा
ReplyDeleteये भी खूब रही।
मैंने इस पर टिप्पणी दी थी अभी पर दिख नहीं रही ... स्पैम में देखिएगा
ReplyDeleteआप भी डॉक्टर भाई साहब ,
ReplyDeleteभाभीजी के कितने काम करते रहते हैं :)}
तभी आपके मुहल्ले के मरीज लोग इलाज के लिए इधर-उधर यह कहते हुए कुड़कुड़ाते मिलते हैं कि -" डॉक्टर दराल जी को तो घर के कामों से ही फ़ुरसत नहीं मिलती " :)))
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ReplyDelete…लेकिन , घी निकालने के बाद एक महीने पुरानी मलाई , चाहे फ्रिज़ में ही क्यों न रखी हो ▬ का कूचा बूरा मिला कर खाने लायक होगा ? घी निकलते वक़्त की (बद) बू से तो वैसे ही जी घबराने लगता है …
…और इसके भी बाद चैंटी हुई खुरचन में दूध मिला कर रबड़ी बना कर पीने की कल्पना … … …
डॉक्टर भाईजी , इस बचत में गैस भी बहुत जल जाएगी ,समय भी बहुत लगेगा , फिर ,कै-उबकी की भी संभावना बढ़ सकती है………
घी निकालने तक ही ठीक नहीं क्या ?
ऐसा करते हैं पहले आपसे सीखेंगे … :)
डॉक्टर दराल जी, मैं जैसे जैसे आपका लेख पढ़ रहा था तो मुझे गुरु बृहस्पति ('कृष्ण') की देख रेख में तथाकथित 'क्षीर-सागर मंथन' की कथा की झलक सी दिखाई दे रही थी... और किसी एक उपनिषद में पढ़ा था की आरम्भ में सुन के ही तृप्ति हो जाती थी :)
ReplyDelete[पहले विष निकला/ फिर मणि-माणिक्य// फिर अप्सराएं/// और अंत में अमृत //// और अमृत को बांटने के लिए विष्णु जी मोहिनी रूप धारण कर (यानि पृथ्वी के गर्भ से निकले हिमालय समान चन्द्रमा की उत्पत्ति ?) राक्षसों को छल देवताओं को अमृत बाँट दिए... और आज भी सौर-मंडल के सदस्य यानि देवता आज भी साढ़े चार अरब वर्षों से अंतरिक्ष के शून्य में नाच रहे हैं और हमें भी नचा रहे हैं]...
हा! हा! जैसा शक था, लम्बी टिप्पणी गायब!
ReplyDeleteअब देखें यह प्रकाशित होती है कि नहीं (?!)
बहुत बढ़िया जानकारी!
ReplyDeleteहम तो पहले ही इस ट्रिपल टोंड विधि का इस्तेमाल कर रहे है जी :)
Gyan Darpan
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आपकी पोस्ट पढ़कर लगता है अब तो कहावत भी ऑफिशियली बदलनी पड़ेगी... :-) आज़मा कर देखते हैं..
ReplyDeleteहा-हा.. मंदी के इस दौर में बहुत काम के नुस्के बताये हैं आपने डा० साहब !
ReplyDeleteज़रूरी ट्राई करूंगी ..... सभी आइडियाज़ काम के हैं.....
ReplyDeleteनीराजी जी , रोहिल्ला जी , यह चाटने वाली आदत तो हम हिन्दुस्तानियों के खून में है । अजी डोंगा , पटोला , चमचा , अद्छा आदि की बट कर रहा हूँ । साथ ही जब तक उंगलियाँ न चाट लें तब तक खाने का मज़ा ही कहाँ आता है ।
ReplyDeleteसंगीता जी , मिठाई तो बोनस के रूप में महीने में एक ही बार मिलेगी । इसलिए कोई चिंता नहीं । फिर आप अकेले ही मत खाइए ना , मिल बाँट कर खायेंगे पल्ले ही कितनी पड़ेगी ! :)
और इस स्पैम ने तो तंग करके रख दिया है । लगता है सबसे पहले इसे ही देखना पड़ेगा ।
हा हा हा ! राजेन्द्र जी , ९ से ४ के बीच तो श्रीमती जी भी हमें नहीं खोज सकती क्योंकि वह सारा समय मरीजों के लिए ही होता है । लेकिन बाकि बचे १७ घंटों में से कुछ समय तो उनका भी बनता है ना ।
ReplyDeleteवैसे आपने सही याद दिलाया । इस हलवाईगिरी के बाद यह सुनिश्चित कर लें कि अगले दिन कामवाली बाई तो आ रही हैं ना वर्ना जो रगड़ाई करनी पड़ेगी , फिर कभी नाम न लेंगे मिठाई बनाने का ।:)
अब सीरियसली --ज़रा गौर से पढ़िए । आपको मलाई को फ्रिज में नहीं फ्रीज़र में रखना है वर्ना इतने दिन नहीं चलेगी । लेकिन फ्रीज़र में जमकर स्वाद बिलकुल भी नहीं बदलेगा , यह निश्चित समझें ।
एक और , राजेन्द्र जी , खुरचन से बनी मिठाई दिल्ली में सदर और चांदनी चौक में भी मिलती है और काफी महँगी होती है ।
शाहनवाज़ जी , जब दफ्तर से छुट्टी लें तो अवश्य नए प्रयोग करिए ।
ReplyDeleteगोदियाल जी , मंदी के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी इस तरह के यंत्र तंत्र मन्त्र बड़े उपयोगी हैं ।
डॉ मोनिका जी , इस तरह के आइडिया हम देते रहेंगे ।
शुक्रिया जे सी जी --पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों से जोड़कर आपने बात की गरिमा को और भी बढ़ा दिया है ।
कमेंट बाक्स टिप्पणी स्वीकार नहीं कर रहा है, सो यहां-
ReplyDeleteबहुत बढि़या इंतजाम बना है दूध का.
--
राहुल कुमार सिंह
छत्तीसगढ
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकमाल है .....
ReplyDeleteभाभी जी के जरूर ऐश होंगे ...ऐसा खाना बनाने वाला पति मिला है :-))
बहुत खूब...बहुत पसंद आई आपकी रचना और उसे प्रस्तुत करने का तरीका और सबसे बड़ी बात इसकी उपयोगिता..आभार
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
आपका धर्य और कौशल कमाल का है .फ्रीज़र में मलाई रखने की बात गांठ बाँधने लायक है .हम तो मसाले दालें और मेवें भी वहीँ टिकातें हैं .बिस्किट नमकीन फ्रिज में रहतें हैं .अच्छा पकवान प्रस्तुत किया है आपने पोस्ट में .
ReplyDeleteलस्सी भले नमकीन भी बनती-मिलती हो,मगर जहां तक मेरी जानकारी है,आयुर्वेद में दूध अथवा किसी भी दुग्ध उत्पाद के साथ नमक मिलाने की मनाही है क्योंकि त्वचा संबंधी रोग पैदा होने की संभावना होती है। मैंने स्वामी रामदेव को भी दुग्ध उत्पाद का नमक के साथ प्रयोग निषेध होने की बात कहते सुना है।
ReplyDeleteये बात तो सही है सतीश जी । अपनी तीन पीढ़ियों को खाना बनाकर खिला चुके हैं हम । :)
ReplyDeleteवीरू जी , विदेशों में तो लोग महीने भर की रोटियां बनाकर फ्रीज़र में रख लेते हैं और गर्म कर खाते रहते हैं ।
वैसे बिलों फ्रीजिंग पॉइंट कोई भी खाद्य पदार्थ या जीवांश ख़राब नहीं होता ।
राधारमण जी , समझा करो भाई , डॉक्टर अभी छुट्टी पर है । :)
वैसे लस्सी या छाछ में नमक मिलाने से उसका स्वाद और भी बढ़ जाता है । और जीरा डालकर तो स्वाद के क्या कहने !
छुट्टियों का सार्थक उपयोग हो रहा है ...साथ ही पाठकों का भला भी !
ReplyDeleteरोचक, काम की और स्वादिष्ट पोस्ट है...:)
ReplyDeleteसादर आभार....
आज तो गजब की जानकारी दी है सर!
ReplyDeleteवैसे इकट्ठा कर के रखी गयी मलाई से घी हम लोग भी निकालते हैं यह मैं बचपन से अपने घर देखता आ रहा हूँ।
सादर
ढेर सारे आइडियाज़ मिल रहे हैं....जारी रखें ये अवकाश लेखन
ReplyDeleteवाह! कमाल है एक डबल टोंड दूध से इतनी चीजें मिल गयीं...बहुत उपयोगी आलेख
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो गाय का देसी दूध आता है और हम उसी में से मलाई निकालकर घी बना लेते हैं। छुट्टियों में अब खाने-पीने का जायका सभी को मिलेगा क्या?
ReplyDelete1959 मे दिल्ली गए थे तब 'खुरचन'की मिठाई खाई थी अब भूल चुके थे ,आपने याद करा दी।
ReplyDeleteसिर्फ 'दूध'के साथ नमक का निषेद्ध है। 'दही' से रायता,कढ़ी इत्यादि बंता है जिसमे नमक प्रयोग होता है। रामदेव का कथन गलत होगा उनके इलाज से परेशान लोगों ने मुझसे उपचार पूछा है।
आपके आने वाले उपयोगी लेखों हेतु भी अग्रिम धन्यवाद।
डॉक्टर सह्हिब आपने कहा था, ""दूध का सफ़ेद रंग इसमें पाई जाने वाली प्रोटीन --केसीन और कैल्सियम फोस्फेट के मिश्रण की वज़ह से होता है ... गाय के दूध में हल्का पीलापन इसमें मौजूद कैरोटीन की वज़ह से होता है"...
ReplyDeleteसरस्वती को सफ़ेद साडी में वीणा हाथ में लिए लाल कमल पर बोथा दर्शाया जाता है, और सरस्वती पूजा बसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है जब पीले रंग के वस्त्रादि पहने जाते हैं...
विष्णु द्वारा राक्षस राहू का गला काटा जाना सूर्य और चंद्र की पहचान पर किया गया कहा जाता है...जो वास्तव में सफ़ेद सूर्यकिरणों के सात रंगों में (शिव के माथे में दर्शाए जाने वाले रात के राजा / रानी चंद्रमा के?) पीले आदि रंगों के अतिरिक्त अल्ट्रा वायोलेट और इन्फ्रारेड ऊर्जा का भी कुछ मात्रा में पृथ्वी के बातावरण में प्रवेश को दर्शाता है... और सूर्य के सार को मानव पेट में (सोलर प्लेक्सस में) माना जाता है, इसलिए नाभि में इन्फ्रारेड और छाती में अल्ट्रा वायोलेट ऊर्जा का सार माना जाना संभव है (अर्थात सूर्यवंशी राजा धनुर्धर राम/ अर्जुन के दो गुरु - वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्र / विदुर और द्रोणाचार्य, क्रमशः)... आदि, आदि...
माथुर जी , आप सही कह रहे हैं , रामदेव न तो डॉक्टर है न भगवान । बस कुछ लोगों पर उसका जादू चला हुआ है ।
ReplyDeleteसही है कि दूध में नमक नहीं डाला जाता ।
हालाँकि हम डॉक्टर्स गला ख़राब होने पर हलके गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करने की सलाह देते हैं जिससे गला ठीक हो जाता है । यही असर चाय में नमक डालकर पीने से भी आता है ।
चाहें तो आज़मा कर देख सकते हैं ।
वह डाक्टर साहब वाह आपतो चिकित्सकीय ज्ञान के साथ खाने पीने के भी शौक़ीन हैं :)
ReplyDeleteखुरचन और बुरे और रस्क के साथ प्रयोग देखते हैं बाकी तो घर में एक्जैक्टली आपका बताया हो रहा है -
कढी भी ,मट्ठा भी !
वाह!जी!वाह! हमें तो पढ़ कर आनन्द और स्वाद दोनों आ गए !
ReplyDeleteकाश: नई पीढ़ी इसका भी स्वाद ले |
आभार !
आइडिया तो अच्छा है पर सबकुछ पहले अलग-अलग करके फिर अगर पेट में ही डालना है तो फिर इनता कष्ट उठाने के बजाय दूध यूं ही क्यों न पी लिया जाए. देखी जाएगी. :-)
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक।
ReplyDeleteहा हा हा ! काजल जी , कभी कभी खाना खाते समय मैं भी सोचता हूँ कि जब सारा खाना पेट में जाकर मिक्स ही होना है तो चबाकर अलग अलग पकवान खाने की क्या ज़रुरत है । बस मिक्सी में डालो , घुमाओ और पी जाओ । :)
ReplyDeleteवाकई दराल सर, वाकई पार्टी में आप रिलैक्स मूड में हों और कोई आकर इस तरह का सवाल करें तो गोली (टेबलेट) की जगह दूसरी गोली का ख्याल ही जेहन में आना चाहिए...
ReplyDeleteआपने तो वाकई टोंड दूध से इतना कुछ निकाल दिया कि वो बेचारा अगली बार भैंस या गाय के थन से बाहर निकलने से पहले सौ बार सोचेगा...
ये वही हुआ जैसे एक लेडी (आम भाषा में लेडीज़) चाट वाले की दुकान पर पहुंची और बोली...चाट वालेज़ एक पापड़ी का पत्ताज़ बनाओ, उसमें आलूज़ डालो, पापड़ीज़ डालो, दहीज़ डालो, सोंठज़ डालो, हरी चटनीज़ डालो, छोलेज़ डालो, किशमिशज डालो, काजूज़ डालो...
इतना सुनना था तो चाट वाला बोला...बीबी, कहे तो पत्ते पर थोड़ी सी जगह बनाकर मैं भी बैठ जाऊं...
जय हिंद...
वाह डाक्टर साहब वाकई में गुठलियों के साथ साथ गुठलियों को फोड़कर उसके अन्दर से भी कुछ निकालना सिखा दिया आपने बधाई आपके अर्जित अवकास केलिए भी बधाई अब ज्यादा ब्लोगिंग होगी शायद .
ReplyDeleteगुठलियों के दाम तो हैं, मगर डबल टोंड लेने के पीछे आइडिया तो इस मलाई-मक्खन से बचने का था न?
ReplyDelete'सूर्यवंशी' राजकुमार राम चन्द्र जी बनवास के लिए गए तो साथ में पत्नी सीता और छोटा भाई लक्ष्मन भी गए (जो संकेत है 'हिन्दू' मान्यतानुसार, ध्वनि ऊर्जा 'ॐ' द्वारा दर्शाए संख्या '३', अर्थात साकार रूप में कम से कम तीन सदस्यों द्वारा, ब्रह्मा-विष्णु-महेश समान कर्ता-पालक-संहारकर्ता के, अर्थात सौर-मंडल में अमृत सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा का मुख्यतः उपस्थिति) ...
ReplyDeleteऔर, यद्यपि सूर्य के प्रतिरूप 'धनुर्धर' राम त्रेता युग में 'पुरुषोत्तम' थे, किन्तु वो भी क्रिकेट के खेल में जैसे टीम का होना आवश्यक होता है वैसे ही उन्हें भी सौर-मंडल के कप्तान समान देखा जा सकता है, जैसे सूर्य शक्ति और प्रकाश का मुख्य स्रोत है, और उस से शक्ति और प्रकाश पा सारे अन्य ग्रह आदि अनादि काल से घूमते/ घुमाते चले आ रहे हैं, जो कि प्रतिरूप समान किसी भी विभिन्न क्षेत्रों के ज्ञानी सदस्यों के मिले जुले टीम के नेता से कप्तान से भी अपेक्षित है... आदि आदि...
जैसे ज्ञानी हिन्दू ने गहराई में जा माना, उपरोक्त सांकेतिक भाषा में दर्शाते हैं कि कैसे प्रत्येक मानव शरीर नवग्रह के सार से ही बना है किन्तु प्रत्येक की प्रकृति भिन्न भिन्न है, काल अर्थात युगानुसार और स्थानानुसार... वैसे मानव में मुख्य दोष जीभ (जीव्हा अथवा रसना) का माना जाता है, क्यूंकि बोलने और जो भी भोजन अथवा पेय हम ग्रहण करते हैं उस का स्वाद जानने के लिए इसकी रचना हुई है (और माँ काली की जीभ को लाल खून के रंग द्वारा संहारकर्ता का प्रतीक समान दर्शाया जाता है, और ब्रह्मा जी/ माँ सरस्वती आदि को भी लाल कमल के फूल पर बैठे दिखाते हैं, जैसे सूर्य उगते और डूबते समय भी दिखाई पड़ता है)... आदि आदि... ...
m gonna make my mom read this post :P
ReplyDeleteहा हा हा ! खुशदीप जी , गाय भैंस से तो दूध और घी ही मिलता है । बाकि तो जैसे सब्जी वाले से रूंगा लेते हैं ना धनिया और हरी मिर्च का ( हमारी श्रीमती जी ये कभी नहीं छोडती ) , उसी तरह ये रूंगे में हैं । :)
ReplyDeleteसही कहा कुश्वंश जी , अब सेवा निवृत लोगों की तरह पूरा समय मिलेगा ब्लोगिंग के लिए । इसलिए सारे आइडियाज जो मचल रहे हैं , उन्हें दिन का प्रकाश दिखा डालें ।
अनुराग जी , हमारे यहाँ रोटी कभी सूखी नहीं खाई जाती । यानि उस पर घी लगाकर ही खाते हैं । दूध में से घी निकाल कर उसी से काम चल जाता है , खरीदना नहीं पड़ता । इस तरह अतिरिक्त घी खाने से बच जाते हैं ।
ReplyDeleteआखिर में टोटल केल्रिज और फैट कंजम्शन का हिसाब सही रहनां चाहिए ।
ज्योति पुत्र , ज़रूर पढाना और पिछली वाली भी । क्योंकि मां को भी दूध पीना उतना ज़रूरी है जितना बेटी को । इससे हड्डियाँ मज़बूत रहती हैं और बढती उम्र में ओस्टियोपोरोसिस नहीं होता ।
जे सी जी , आप एक दिन में कितना दूध पीते हैं ?
JC said...
ReplyDeleteहा! हा! हा! डॉक्टर तारीफ सिंह जी, जैसा मैंने पहले भी कहा था सफ़ेद रंग वाला दूध शारीरिक शक्ति के लिए है (पीला रंग, 'पीताम्बर कृष्ण', बुद्धि के लिए बेहतर)... आत्मा के लिए काला (कृष्ण/ काली) रंग है... इस लिए अब तो कई वर्षों से काली चाय पीता हूँ (दवाई समान!)... बचपन में माता-पिता के प्रभाव से कम से कम बीस वर्ष तो निरंतर दूध अधिक पीया और दूध-चीनी डाली चाय भी दिन में २-३ बार... अब तो मेहमानों की चाय के लिए ही दूध रखता हूँ, जो यदि उपयोग में न आया तो एक-दो दिन स्वयं पी जाता हूँ... वैसे पावडर दूध भी इमरजेंसी के लिए रखता हूँ...
जबसे गीता में पढ़ लिया, 'कृष्ण' को कहते, कि हर गलती अज्ञानता वश होती है, ज्ञान पढ़ाने हेतु विभिन्न क्षेत्रों से, भले ही आभासी दुनिया से ही, अधिक ज्ञान पाने का प्रयास करता हूँ... इस कारण, सौभाग्यवश, आप से भी मुलाकात हो गयी... और किसी पंडित जी ने मेरे जन्म के बाद मेरी जन्म-कुंडली में लिखा पाया था कि बालक की रूचि स्वास्थ्य के क्षेत्र में रहेगी!... आदि आदि...
December 16, 2011 11:04 AM
लेकिन जे सी जी , हड्डियों की मजबूती के लिए स्वेत दूध पीना अत्यंत आवश्यक है । विशेष कर आपकी उम्र में ।
ReplyDeleteआप तो इंजीनियर हैं , जानते हैं कि समय के साथ भवन के पिलर्स में लगी सीमेंट की पकड़ कम हो जाती hai । इसलिए रीइन्फोर्समेंट की ज़रुरत होती hai। :)
JC said...
ReplyDeleteआप बिलकुल सही कह रहे हैं... दूध आज रात से ही पीना आरम्भ कर दुंगा... धन्यवाद!
वैसे सफ़ेद रंग को 'जी आई' से सम्बंधित माना जाता है और लाल को हड्डी से , जो सूर्योदय के समय सूर्य का रंग लाल होता है... और वो १२ बजे दिन में सफ़ेद दिखाई पड़ता है... और यह सूर्य की चार चरणों में, काले से आरम्भ कर, उत्पत्ति का द्योतक है, अर्थात लाल (मैजेंटा), पीला (येलो), नीला (सायन), और सफ़ेद... जो, फिर घट के, सूर्यास्त के समय, फिर से लाल दिखता है, और वातावरण थोड़ा ठंडा हो जाता है]...
December 16, 2011 1:49 PM
.दुग्ध उत्पादों पर अनुसंधान परक अच्छी पोस्ट ,फरवरी का पहला पखवाड़ा दिल्ली में ही बीतेगा दूसरे में फिर मुंबई वापसी .
ReplyDelete