बचपन की दो सहेली , अब पचपन की देहलीज़ पर , जी भर कर शॉपिंग कर शौफर ड्रिवन कार में बैठी अपनी खरीदारी पर मन ही मन खुश होती हुई अठखेलियाँ कियेजा रही थी । तभी गाड़ी एक रेड लाईट पर रुकी । शीशे पर ठक ठक की आवाज़ से दोनों का ध्यान उधर गया तो एक सेल्समेन को हाथ पर लेडिज सूट लादे खड़ा पाया ।
"मैडम सूट ले लो । बहुत अच्छे हैं और सस्ते भी ।"
---नहीं भाई , नहीं चाहिए । सेठानियाँ शॉपिंग कर थक चुकी थी ।
"मेडम एक बार देख तो लो । इतने अच्छे सूट इतने सस्ते कहीं नहीं मिलेंगे ।"
एक सहेली ने कहा --भई ज़रा देख तो लें । बेचारा कितनी गर्मी में पसीने पसीने होकर बेच रहा है ।
--अच्छा कितने का है ।
"मेडम बस १५० का ।"
--अरे इतने में तो कटरे में ही मिल जायेगा ।
"मेडम इतने सुन्दर सूट नहीं मिलेंगे । हाथ लगाकर तो देखो ।"
--नहीं भई --बहुत महंगे हैं ।
सेल्समेन ने देखा , बत्ती हरी होने में ३० सेकंड्स बचे थे ।
बोला --मेडम १५० में सारे ले जाइये । उसके हाथ में चार सूट देखकर सेठानी के मूंह में पानी आ गया ।
दूसरी बोली --देख लो, दीवाली पर नौकरों को देने के काम आ जायेंगे ।
--लेकिन ऐसे नहीं चलेगा , थोडा तो कम करो । हम तो बस १०० रूपये देंगे ।
सेल्समेन ने देखा , अब बस दस सेकण्ड बचे थे । बोला अच्छा चलिए --१०० में सारे ले जाइये ।
अपनी सूट की लूट पर दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी । गाड़ी चलने पर एक ने कहा --ज़रा खोल कर तो दिखाओ भई । कैसे सूट हैं ?
सूट बहुत सुन्दर पैकिंग में पैक किये गए थे ।
पैकिंग खोल कर देखा तो सेठानी को कुछ शक हुआ ।
--भई ये तो पुराने से लगते हैं ।
सहेली -- तो क्या हुआ , नौकरानियों को ही तो देने हैं । अब २५ रूपये में भला कहीं सूट आते हैं ।
अब सहेली ने जैसे ही सूट उठाकर देखे , वह चीखी --अरे ये तो वही सूट हैं जो मैंने कुछ दिन पहले एक फटे हाल भिखारिन पर तरस खाकर उसे दान में दिए थे ।
विशेष :
सेठ जी --भाग्यवान , कुछ समझी ?
सेठानी --हाँ जी, दान पुण्य भी सोच समझ कर ही करना चाहिए ।
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नहले पर दहला !
ReplyDeleteअब तो शायद ही दान के सही पात्र कहीं मिलें !
दान में दी गई बछिया के दांत जैसे ही होते हैं, 25 रूपए के सूट.
ReplyDeleteये तो होना ही था....
ReplyDelete@ अरविन्द मिश्र जी ने सही कहा ये तो वाही हुआ
ReplyDeleteनहले पर दहला !
ठीक इसी तरह हमारे यहाँ दिन में जो बच्चों के बीमार होने की दुहाई देकर भीख मांगते है वे ही शाम को किसी ठेके पर शराब पीते दिखते है ,इसीलिए नगद पैसे ऐसे लोगों को देने ही नही चाहिए ...ये तो पुण्य की जगह पाप है....!
ReplyDeleteजितना आसान दान करना है उतना ही मुश्किल है सही दान पात्र को चुनना| धन्यवाद|
ReplyDeleteसेठानी की सीख काम की है...
ReplyDeleteदान पुण्य भी सोच समझ कर ही करना चाहिए ।
कहा गया है,
ReplyDeleteसुपात्र को दान करना चाहिए
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteहा-हा... जरुर आश्रम चौक की घटना रही होगी ! :)
ReplyDeleteधंधा करना सब जानते हैं .....! शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteइस देश मे सब चलता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteअब बेचारी भिखारन अच्छे कपडे पहन अपना गेटअप बदल लेगी तो उसे गरीब दिन हीन समझ कर भीख कौन देगा सूत बीस रु में बेच दिया तो दो दिन का खाना मिल गया होगा |
ReplyDeleteहहहहः बढ़िया किया आगाह कर दिया आपने .
ReplyDeleteहहहहः बढ़िया किया आगाह कर दिया आपने .
ReplyDeleteयूपी खबर
न्यूज़ व्यूज और भारतीय लेखकों का मंच
अब तो हर जगह हर दान लेने वाले ऐसे ही मिलते हैं ।
ReplyDeleteकंजूस सेठ ने अंधे भिखारी के पात्र में खोटा सिक्का डाला तो उसने टोक दिया, "सेठ, रूपया खोटा है"!
ReplyDeleteसेठ, "अरे! तुम तो अंधे नहीं हो!" तुम अँधा बन कर ठग रहे हो!"
भिखारी, "तुम भी तो ठग ही हो - खोटा सिक्का चलाने वाले"!
धंधे में सब जायज़ है :)
ReplyDeleteमजे दार...बहुत सुंदर, धन्यवाद
ReplyDeleteदान देना सरल किन्तु दान योग्य व्यक्ति मिलाना कठिन है.अच्छा ही है, सब इतने सक्षम हो जाएँ की दान देना ही न पड़े.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सही कहा सबने । दान के लिए सुपात्र ढूंढना बड़ा मुश्किल काम है ।
ReplyDeleteबाकि तो जे सी जी ने बता ही दिया कि दूध का धुला भी कौन है ।
वस्तुतः जिस व्यक्ति के जो गृह उच्च के अथवा स्व-ग्रही होते हैं उनसे सम्बंधित पदार्थों का दान करने से दाताको नुक्सान उठाना पड़ता है.मैं अपने विश्लेषण में स्पष्ट रूप से निषेधात्मक पदार्थों का उल्लेख करता हूँ.बाकी पोंगा-पंथी लोग दान की महिमा अनावश्यक बाधा-चढ़ा कर करते हैं.दान करना जरूरी हो तो सोच-समझ कर ही करना चाहिए;न करना ज्यादा बेहतर है.
ReplyDeleteअच्छी लगी ये पोस्ट. सब गडबड झाला है.वैसे भिखारियों का धंधा है जोर दार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगी पोस्ट.
ReplyDeleteसूट तो फिर से दान किये जा सकते हैं.
सलाम
सही है-जैसे को तैसा.
ReplyDeleteSach hai ... Daan ke nam par ye bhi hot hai ...
ReplyDeletePar jab daan de hi diya to fir kyon sochna ... ye to lene wali par nirbhar karta hai vo kya karna chahta hai daan ka ...
सर्दियों में यह नजारा आम होता है ...रैन बसेरों में बांटे जाने वाले कम्बल दूसरे दिन बिक जाते हैं , कोई इनकी सहायता करे भी तो कैसे !
ReplyDeleteकहावत ऐसे ही नहीं बनी...
ReplyDeleteस्याना कौआ हमेशा ...पर ही गिरता है...
जय हिंद...
लौट के कपड़े घर को आये----
ReplyDeleteबात गांठ बांधने की है.
ReplyDeleteभई वाह! नौकरानी का कनेक्शन तो बडी दूर तक था :)
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