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Thursday, August 26, 2010

ठूठी वाला डॉक्टर --

वो सफ़ेद कुर्ता पहने ,
और धोती बांधे
पैरों में सेंडल ,
कांधे पर झोला टांगे
रोज ठंडे पानी से नहाकर
आता दस कोस साईकल चलाकर ।

खांसी नज़ला , दर्द बुखार ,
उलटी दस्त की दवा लेकर ,
टेटनस का टीका देकर
चोट पर बीटाडीन की पट्टी बाँध
दर्द से आराम दिलाता था ।
कहीं जन्म हो या मृत्यु ,
या शादी का जश्न
पहुँचता सबसे पहले
परिवारों के आपसी झगडे
बिना फीस निपटाता था ।

सब बुलाते उसे डागदर बाबु बुलाकर
पर एक दिन आकर
एंटी क्वेकरी स्क्वाड ने
उसे गिरफ्तार करा दिया ।
झोला छाप डॉक्टर का
उसे खिताब दिला दिया ।

अब गाँव के मरीज़ दस कोस दूर
शहर जाते हैं,
इलाज़ कराते हैं
ठूठी वाले डॉक्टर के नर्सिंग होम में,
जिसके रोम रोम में
बसा है पैसा,
कहते हैं उसके जैसा
नहीं कोई लुटेरा,
नकली दवा का डेरा
मृत शरीर को वेंटिलेटर लगाकर
आई सी यू में लिटाता है ,
यह ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।

डिग्री है पर नहीं लाइसेंस
अल्ट्रा साउंड मशीन का
पर इस मिस्टर हसीन का
हाथ नहीं कांपता,
जब वह जांचता
अजन्मे बच्चे का लिंग,
यह दुराचार का किंग
थैली लेकर हर सप्ताह
मंत्री के घर , भेंट चढ़ाता है
यह शहर में पढ़ा लिखा
ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।

यहाँ कोई डॉक्टर , इंजीनियर
बाबू या मिनिस्टर
नहीं टांगता थैला।
मन का मैला
यह सफेदपोश
रखता है बड़ा बक्सा,
उसको बोध नहीं इसका
कि जब दुनिया से खिसका
तो न चपरासी न मजदूर,
न कुली ही मिल पायेगा
फिर इतना भारी बक्सा
अरे मूर्ख क्या तू खुद उठा पायेगा ।

झोला छाप कौन है , वो ईमान की डिग्री वाला झोला धारी
या ठूठी वाला , बड़े बक्से का मालिक ,ये शहरी खद्दरधारी ?

45 comments:

  1. गरीब है तो झोला छाप ही तो कहलाएगा :)

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  2. बहुत गहरा कटाक्ष है एक तरह से.

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  3. यथार्थ है और व्यवस्था पर सवाल भी ।

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  4. .
    कुछ लोगों के पास डिग्री तो होती है लेकिन , इंसानियत नहीं ।
    .

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  5. दुनिया के इतने भी बुरे न है हाल,
    नजरों में कुछ तेरी ही कमी रह गयी 'मजाल'.

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  6. कहते हैं उसके जैसा
    नहीं कोई लुटेरा,
    नकली दवा का डेरा
    मृत शरीर को वेंटिलेटर लगाकर
    आई सी यू में लिटाता है ,
    यह ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।

    भाई साहब आज तो कुछ अलग ही रंग देखने मिला है।
    आभार

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  7. एक ने मुझे भी"माल पैक्टिस"में गांव का फ़ांसना चाहा था।
    लेकिन उसे बाद में चला कि पढाई के दौरान मेरा ज्यादा समय इनके हास्ट्ल में ही बीतता था।
    जब उसके सारे सीनियर पहुंचे तो बहुत शर्मिन्दा हुआ, आज तक शकल नहीं दिखाता।
    मेरे 3 दिन के बेटे को जबरन जांडिस बता दिया। तभी मैने तुरंत शहर के दो मशहूर डॉक्टरों को बुलाया फ़ोन करके,उन्होने उसे जांडिस नहीं होना बताया और बाकायदा लिख कर दिया। अब मेरे पास उसकी लिखी पर्ची भी थी और इनकी भी। बस फ़िर तो मत पूछो।

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  8. सच्चाई बयां करती बढिया रचना लगी, आभार आपका ।

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  9. एक डाक्टर की का;ऍम से ऐसी रचना ? ...बहुत गहरा कटाक्ष है ...ऐसे डाक्टर्स पर जो पैसे को ही सब कुछ समझ लेते हैं ..

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  10. इसे प्राचीन ज्ञानी ने काल का प्रभाव कहा और vartmaan ko ghor kaliyug ki ore jaate bataaya - satyug se arambh kar - jab manav shat pratishat gyaan का bhandaar tha, amrit ishwar का pratiroop...Har काल mein yadyapi uski jhalak avasya dikhai padti hai - Jesus kaun se school se degree prapt kiya tha?

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  11. बहुत सही लिखा आपने....सच भी कुछ कुछ ऐसा ही है....

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  12. बहुत ही जबरदस्त और सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.

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  13. इस झोले के लिए जिम्मेदार कौन ?

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  14. कभी कभी मन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि 'डिग्री' बड़ी है या अनुभव. ऐसे झोलाधारी
    डॉक्टर्स के लिए एक प्रक्षिक्षण की योजना बनानी चाहिए.....जहाँ गाँव में डॉक्टर जाना नहीं चाहते ये झोलाधारी निस्वार्थ सेवा करते हैं....पर उन्हें भी हर बीमारी ठीक करने का दावा नहीं करना चाहिए...और हल्की-फुलकी बीमारी तक ही अपनी सेवाएँ सीमित रखनी चाहिएँ.

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  15. कविता बहुत ही सटीक है...

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  16. यहाँ कोई डॉक्टर , इंजीनियर
    बाबू या मिनिस्टर
    नहीं टांगता थैला।
    मन का मैला
    यह सफेदपोश
    रखता है बड़ा बक्सा,
    उसको बोध नहीं इसका
    कि जब दुनिया से खिसका
    तो न चपरासी न मजदूर,
    न कुली ही मिल पायेगा
    फिर इतना भारी बक्सा
    अरे मूर्ख क्या तू खुद उठा पायेगा ।

    बढ़िया रचना डा० सहाब , इतनी बात समझना इस ठूठी वाले शहरी खद्दरधारी की औकात कहा ? जिसदिन यह इतना समझ गया तो सतयुग आ जाएगा !

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  17. झोला छाप कौन है , वो ईमान की डिग्री वाला झोला धारी
    या ठूठी वाला , बड़े बक्से का मालिक ,ये शहरी खद्दरधारी ?

    वैसे तो उपरोक्त ये सभी झोलाछाप हैं सर ... गहरा कटाक्ष करती रचना .....आभार

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  18. बहुत ही करारा व्यंग्य है!
    --
    अमीरी और गरीबी का यही तो भेद होता है!

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  19. अपनी डिग्री और प्रशिक्षण को छुपाने की बजाय खुली किताब की तरह सबके सामने रखनी चाहिए.
    लोगो को (मरीजो को) उसकी असलियत का पता होना चाहिए.
    और
    सबसे बड़ी बात--बढ़चढ़कर दावा करने की बजाय जहां तक मामला हाथ में हो उन्ही मामलो को हाथ में लेना चाहिए. लालच या नाम बचाने के फेर में किसी की जान खतरे में नहीं पड़ने देनी चाहिए.
    अगर ऐसा कोई करेगा तो कदापि झोलाछाप नहीं कहलायेगा.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  20. भारत में ऐसे डाक्टर की कमी नहीं है ...शायद हर गाँव हर क़स्बे, हर शहर में ये मिल जायेंगे जो हर बीमारी का एक ही इलाज बताएँगे....
    लेकिन डाक्टर साहब उन पढ़े लिखे डाक्टर, जो मेरी नज़र में ज्यादा खतरनाक हैं, को क्या कहेंगे तो ओपरेशन टेबल पर मरीज का पेट खोले कर कहते हैं ..जब तक इतना पैसा नहीं दोगे ...ये पेट बंद नहीं होगा....राँची में एक ऐसे ही डाक्टर थे...नाम भी बता सकती हूँ...
    बहुत ही ...जानकारी भरी रचना...

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  21. बहुत सटीक, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  22. अति सुंदर रचना जी ,अब क्या कहे आप ने ही सब की पोल खोल दी, धन्यवाद

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  23. आपकी पोस्ट पर लिंक देते हुए चीप सा तो लग रहा है पर फिर भी कहते हुए मज़ा रहा है कि आपकी कविता के साथ मेरे दो कार्टून फ़्री :)

    आओ मेरे गाँव के डॉक्टर से मिलो
    क्या आप कभी इस डॉक्टर के हत्थे चढ़े हैं ?

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  24. आपकी कलम से इस पोस्ट को पढ़कर बेहद सकून मिला.
    बहुत से मध्यम वर्गीय लोग तो डा0 के पास जाने से भी घबड़ाते हैं...
    पढ़े-लिखे बेमौत मारे जाते हैं.
    इस पेशा में सेवा भाव ही असली मरहम है वह चाहे झोले से निकले या सरकारी अस्पताल से, निकलना जरूरी है.
    ..आभार.

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  25. दिल्ली जैसे शहर में जितने क्वालिफाइड डॉक्टर हैं , उनसे ज्यादा अनक्वालिफाइड लोग प्रेक्टिस करते हैं । बेशक ये नीम हकीम खतरा ए जान हैं । लेकिन हमारे गाँव में अभी भी पढ़े लिखे डॉक्टर नहीं जाते । सरकार ने एक नई स्कीम निकाली है जिसके तहत गाँव के ही युवकों को ४ साल में डिग्री दी जाएगी और वे रुरल एरिया में प्रेक्टिस करने के लिए एलिजिबल होंगे । लेकिन हमारे शहरी डॉक्टर भाई ही इसका विरोध कर रहे हैं । क्योंकि इससे इनके नर्सिंग होम्स पर असर पड़ सकता है ।
    यही वे लोग हैं जो भोली भाली जनता को लूट रहे हैं । फिर किसे कहें झोला छाप ?

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  26. दराल साहब से मैं सहमत हूँ और ऐसा कोर्स कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ में चलाया भी गया था । पहले एक कोर्स था एलएमपी या आरएमपी जिसमें एक प्रशिक्षित चिकित्सक के पास कुछ वर्ष काम करने के बाद व्यक्ति को एक सीमित इलाज करने की अनुमति मिल जाती थी पता नहीं इसे क्यों बंद कर दिया गया । इसीकी उपज है झोलछाप ।

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  27. सोचने को विवश करती सटीक रचना...

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  28. मृत शरीर को वेंटिलेटर लगाकर
    आई सी यू में लिटाता है ,
    यह ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।

    इस बात का तो मुझे भी अनुभव है ।और यह शहर के जाने माने प्रायवेट अस्पताल की कहानी है ।

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  29. बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को शब्दों में बखूबी पिरोया है ! ऐसे बहुत डॉक्टर हैं जो सिर्फ़ पैसे कमाने के बारे में ही सोचते हैं और मरीज़ जल्द से जल्द ठीक हो जाए इस बात की उन्हें कतई ही चिंता नहीं!

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  30. अच्छी प्रस्तुति .

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  31. बहुत ही सटीक करारा व्यंग

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  32. झोला उतारकर हल्का हो लेने का वक्त आ गया है।

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  33. दराल सर
    आपने अपने ही पेशे के गलीच सोच रखने वाले लोगो पर सही निशाना साधा है। हो सकता है आपको आपके ही मित्रों से सुनने को मिले। इसमें कोई शक नहीं की कैशलेस सुविधा और ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर बनी किसी योजना में ये डिग्रीधारी डॉक्टर टांग अड़ा रहे हैं, कमाई पर असर पड़ने की शंका को लेकर। पिछले महीने ही पिताजी को जहां भर्ती कराया था वहां कुल बिल का 70 फीसदी रुम रेंट था। किसी नस के खींचने की वजह से बिस्तर पर पड़े पिता की फिजियोथेरेपिस्ट करवाने को कहा तो नर्सिंग होम के स्वनामधन्य मालिक डॉक्टर ने कह दिया कि दिया कि इससे हड़्डी पर असर पड़ सकता है। जबकि दूसरे बाहर आने वाले डॉक्टर तुरंत डिस्चार्ज करना चाहते थे। तो ये बुरा हाल है इनका।

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  34. रोहित जी , मेडिकल प्रोफेशन में फैले भृष्टाचार को देखकर हमें भी बड़ी कोफ़्त होती है ।
    कभी इसे नोबल प्रोफेशन कहते थे । लेकिन अब वैल्यूज घटती जा रही हैं ।

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  35. @Dr Daral
    इस समस्या के दो कारण हैं पहला सामाजिक मूल्यों का ह्रास जिससे सब प्रभावित होते हैं।
    दूसरा हमारी सरकारी व्यवस्था जो बहुत सारे उपयुक्त लोगों को इस विधा में आने से रोकती है ।

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  36. बिल्कुल ठीक कह रहे हैं डॉ सिन्हा ।
    डॉक्टर्स भी समाज का ही हिस्सा हैं ।
    इसलिए अछूते नहीं रह सकते ।
    लेकिन फिर भी एक प्रयास तो करना चाहिए ।

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  37. आजकल वक़्त की कमी है.... इसी वजह से मैं नहीं आ पाया.... आपकी हर रचना बहुत अच्छी लगी.... देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ....

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  38. बहुत ही गहरा वार किया है ... तीखा व्यंग है ... आपसे बेहतर इस बात को कोई नही जान सकता था ....

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  39. क्वैक नही होने चाहिये लेकिन सरकार गाँवो मे चिकित्सा की व्यवस्था तो करे ?

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  40. झोला छाप कौन है , वो ईमान की डिग्री वाला झोला धारी
    या ठूठी वाला , बड़े बक्से का मालिक ,ये शहरी खद्दरधारी ?

    ....बड़ा वाजिब सवाल उठाया है...शानदार व्यंग्य.
    ________________
    'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

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  41. ठुठी वाला डाक्टर ......?
    वाह... वाह.....दराल जी ग़ज़ल के बाद अब नज़्म ......?
    बहुत खूब....!!

    मृत शरीर को वेंटिलेटर लगाकर
    आई सी यू में लिटाता है ,
    यह ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।

    सही कहा और इस मृत्य शरीर से ही वाह लाखों कमा लेता है .....!!

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  42. `कहते हैं उसके जैसा
    नहीं कोई लुटेरा,
    नकली दवा का डेरा
    मृत शरीर को वेंटिलेटर लगाकर
    आई सी यू में लिटाता है ,
    यह ठूठी वाला डॉक्टर कहलाता है ।'
    बहुत ही सारगर्भित रचना.......कई बार सही गलत लगता है और गलत सही.......
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं....

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  43. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  44. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!

    आधुनिक वैज्ञानिक भी कुछ सदियों के अनुभव के बाद ही जान पाए हैं कि यद्यपि प्रकृति में उपलब्ध हर वास्तु के विशेष गुण होते हैं,,, और वो सदैव किसी भी काल में कुछ विशेष क़ानून का पालन करते हैं… फिर भी कुछेक विशेष परिस्थिति(यों) में संभव है कि वो कानून उन पर लागू न हो…



    प्राचीन हिन्दुस्तानी कहानियों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि प्रकृति और पृथ्वी को भली भाँती जान और मानव शरीर को अदृश्य शक्ति से जुडी ‘मिटटी’ का ही बना जान, योगियों ने पानी के सतह पर चलने, एक जगह से लुप्त हो दुसरे किसी स्थान पर तुरंत प्रगट होने कि विद्या आदि प्राप्त कि – अथक प्रयास यानी तपस्या के बाद…इस कारण यद्यपि कुछेक व्यक्ति आज ‘ शरीफ’तो हो सकते हैं किन्तु शायद सम्पूर्ण ज्ञान के अभाव , निराशा, और अविश्वास के कारण (और तथाकथित काल के प्रभाव से?) उनमें उतनी लगन नहीं है आज (कहते हैं हनुमान को भी अपनी शक्ति का पता नहीं था – गुरु कि आवश्यकता थी उन्हें भी!)…

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