सावन का महीना , यानि बरसात के दिन । चारों ओर पानी ही पानी । फिर भी पीने के पानी की किल्लत । क्योंकि पीने के लिए तो साफ पानी चाहिए ।
विश्व में बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है --सुरक्षित पीने के पानी की कमी , साफ़ सफाई की कमी और गंदगी का साम्राज्य ।
इन सबसे मुख्य तौर पर होने वाली बीमारी है --दस्त , आंत्रशोध या डायरिया ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में प्रति वर्ष १८ लाख लोग इस रोग के शिकार होकर अकाल ही काल के ग्रास बन जाते हैं । इस रोग का ८८ % कारण है --साफ़ पानी की कमी ।
बच्चों में आंत्रशोध विशेष रूप से घातक साबित होता है ।
आइये देखते हैं , असुरक्षित पानी के पीने से क्या क्या रोग हो सकते हैं ।
खाने पीने में खराबी से मुख्य रूप से चार तरह के संक्रमण हो सकते हैं । इस तरह होने वाले संक्रमण के माध्यम को ओरोफीकल रूट कहते हैं । यानि रोगों के कीटाणु मल में विसर्जित होते हैं , फिर खाने पीने में साफ़ सफाई न होने से मूंह के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
ये चार संक्रमण हैं : परोटोजोअल , पैरासिटिक , बैक्टीरियल और वाइरल इन्फेक्शन ।
परोटोजोअल इन्फेक्शन : अमिबायासिस , जीआरडिअसिस ( Amoebiasis, giardiasis)
पैरासिटिक इन्फेक्शन : पेट में कीड़े --राउंडवोर्म , हुकवोर्म , पिनवोर्म , tapeworm, hydatid cyst।
बैक्टीरियल इन्फेक्शन : कॉलरा (हैजा ) , डायरिया (दस्त ) , डायजेन्ट्री ( खूनी दस्त ) ।
टॉयफोय्ड फीवर ( मियादी बुखार ) , फ़ूड पॉयजनिंग ( बोटुलिज्म )
वाइरल इन्फेक्शन : दस्त , Hepatitis A , पोलिओ
ओरोफीकल रूट से होने वाली बीमारियों में सबसे कॉमन है --दस्त यानि लूज मोशंस ।
दस्त के मुख्य कारण --
बैक्टीरियल : मुख्य रूप से गर्मियों में होते हैं ।
वाइरल : सर्दियों में ज्यादा होते हैं । बच्चों में भीं वाइरल दस्त ज्यादा होते हैं ।
वाटरी डायरिया यानि पानी वाले दस्त -- ई-कोलाई इन्फेक्शन , कॉलरा , वाइरल इन्फेक्शन , जिआर्डिया इन्फेक्शन ।
डाईजेन्ट्री यानि खूनी दस्त ----शिगेला , सालमोनेला इन्फेक्शन , अमीबिक इन्फेक्शन ।
दस्त होने पर सबसे ज्यादा खतरा होता है , dehydration से , यानि शरीर में पानी की कमी होना । इसके साथ साल्ट की भी कमी हो सकती है ।
दस्त का उपचार :
आम तौर पर दस्त के लिए किसी दवा की ज़रुरत नहीं होती ।
लेकिन सबसे ज़रूरी है --पानी की कमी को पूरा करना ।
इसके लिए ज़रूरी है पानी पिलाना ।
जीवन रक्षक घोल या ओ आर एस :
यह दस्तों में रामबाण बनकर आया है । १९८० के बाद ओ आर एस की खोज और उपयोग से चिकित्सा जगत में जैसे एक क्रांति सी आ गई है । इसके सेवन से न सिर्फ दस्तों के इलाज़ में खर्च में भारी कमी आई है बल्कि इलाज़ आसान भी हो गया है ।
ओ आर एस के पैकेट कई नामों से उपलब्ध है जैसे --इलेक्ट्रौल , peditrol ---
इसे कैसे प्रयोग करें ?
एक पैकेट को एक लीटर पानी में घोल कर रख लें । आवश्यकतानुसार पिलाते रहें । एक बार बनाया गया घोल २४ घंटे तक रह सकता है ।
घर में भी ओ आर एस बनाया जा सकता है :
एक लीटर पानी में एक चाय की चम्मच नमक , आठ चम्मच चीनी और एक निम्बू मिलाएं । घोल तैयार है ।
दूसरा तरीका है --एक लीटर पानी में एक चुटकी नमक , एक मुट्ठी चीनी और निम्बू मिलाकर भी घोल तैयार किया जा सकता है ।
छोटे बच्चों को कटोरी चम्मच से पिलाना चाहिए ।
एक दस्त के बाद आधे कप से एक कप तक घोल पिलाना चाहिए ।
dehydration के लक्षण : अत्याधिक पानी की कमी होने पर आँखें धंस जाती हैं । मूंह सूख जाता है । त्वचा का लचीलापन ख़त्म हो जाता है । पेशाब भी कम हो जाता है । बी पी कम हो जाता है ।
इस हालत में डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना चाहिए ।
दस्तों में क्या एंटीबायटिक देना चाहिए ?
सिर्फ खूनी दस्तों में ही इस दवा की ज़रुरत है । वाटरी डायरिया सिर्फ ओ आर एस से ही ठीक हो जाता है ।
दस्तों में क्या खाना चाहिए ?
दही , चावल , केला , खिचड़ी यहाँ तक कि सब तरह का खाना खाया जा सकता है । ज्यादा मिर्च और मीठा नहीं खाना चाहिए । सब के तरह के तरल पदार्थ जैसे लस्सी , मट्ठा , निम्बू पानी , नारियल पानी आदि लेते रहने से पानी की कमी नहीं होगी । लेकिन कोल्ड ड्रिंक्स और ज्यादा मीठा शरबत नहीं लेना चाहिए ।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि स्वास्थ्य के लिए साफ सफाई और साफ खाना पानी की कितनी ज़रुरत है ।
नोट : यह संयोग की बात है या मेरा सौभाग्य कि ओ आर एस पर शोध कार्य करने पर १९८३ में मुझे गोल्ड मेडल मिला था ।
Monday, August 16, 2010
आंत्रशोध पर शोध का परिणाम ---ओ आर एस --दस्तों की रामबाण दवा --
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sorry for late
ReplyDeleteHappy independence day.
बेहद रोचक जानकारी है
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी!
ReplyDeleteजानकारी बहुत लाभदायक है! धन्यवाद!
ReplyDeleteदिल्ली में जब बिजली घंटों जाने लगी तो अधिकतर लोगों के लिए इन्वेर्टर खरीदना आवश्यक हो गया... फिर पानी में मल-मूत्र का पानी भी मिलने लगा तो अब पीने के पानी के लिए उपकरण लगाना आवश्यक हो गया,,,आदि आदि...
बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने.
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
आयुर्वेद नमक और चीनी का साथ-साथ उपभोग वर्जित करता है। यह हैरत की बात है कि ओआरएस इन्हीं दोनों के सम्मिश्रण से जीवनदायिनी बना है।
ReplyDeleteजानकारी से परिपूर्ण बढ़िया आलेख...
ReplyDeleteएक उपयुक समय पर पोस्ट किया गया आवश्यक जानकारी पूर्ण लेख है डा० साहब !
ReplyDeleteबहुत उपयुक्त जानकारी ..
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी.
ReplyDeleteजी बहुत बढ़िया नसीहत. और खुराक विधि के साथ बताया आपने.
ReplyDeleteओ.आर.एस. रामबाण है.
राधारमण जी , नमक के एब्जोर्प्शन के लिए ग्लूकोज का होना अनिवार्य है । इसलिए ओ आर एस में नमक और सुगर , दोनों का होना ज़रूरी है ।
ReplyDeleteइस मौसम में इसकी बहुत आवश्यकता थी हम सबको डॉ साहब ! मुफ्त सलाह का शुक्रिया ...दिल्ली के सारे डाक्टर आपसे नाराज हो जायेंगे :-)
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteबहुत उचित समय पर आपने उचित सलाह दी हैं.
ReplyDeleteआप ब्लॉग के माध्यम से आम लोगो को जागरूक कर रहे हैं, इसके लिए हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत उपयोगी जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteकल तीन बार आपकी टिपण्णी लिखी और हर बार बिजली की आँख मिचौनी .....
ReplyDeleteऔर ये क्या ....हर रोज़ एक पोस्ट ....आज़ादी भी ढंग से मनाने न दी ......और आप ओ आर एस का घोल .....
अब इतने लड्डू भी नहीं खाए थे हमने ......
आज जाना पानी की कमी से कितनी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं .....
और ये गोल्ड मैडल .......वाह .....!!
तब की मिठाई अब ......!!
एक जरूरी औऱ आवश्यक औऱ रोज की जिंदगी से जुड़ी बात बताई आपने। सर इस बात को हर जगह बताना जरुरी है। इतना आगे बढ़ने के बाबजूद सिर्फ इतनी सी जानकारी के अभाव में कई लोग दम तोड़ देते हैं। इसका प्रयास अपने आसपास भी करना चाहिए हमें। जरूरी है।
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी....सबसे अच्छी बात आपने यह बतायी कि ,इसमें दवा कि जरूरत नहीं...मैं भी जहाँ तक हो बच्चों को दवा देना avoid करती हूँ .पर लोगों को देखा है....जरा जरा सी बात पर दवा ले लेते हैं.
ReplyDeleteगोल्ड मेडल मिलने की बात सुन बहुत ही हर्ष हुआ...बहुत बहुत बहुत देर से ही सही...बधाई !!
डा. साहब .... आपके ब्लॉग पर वैसे तो बहुत सी जानकारियों का खजाना मिलता है ... पर आज तो आपने रोज़मर्रा से जुड़ी बीमारियों और उनसे बचने की जानकारी से कर दिल जीत लिया .... आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस महत्वपूर्ण जानकारी का .... और आपको बहुत देरी से ही सही पर बधाई गोल्ड मेडल के लिए ....
ReplyDeleteडा. साहिब, क्षमाप्रार्थी हूँ कहते हुए कि १८८३ की जगह १९८३ होना चाहिए था...
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी. धन्यवाद!!
ReplyDeleteहा हा हा ! जे सी जी , हो सकता है पिछले जन्म के अच्छे कर्मों का ही फल हो । खैर शुक्रिया , त्रुटि सुधार कर दिया है ।
ReplyDeleteहर घर को इस जानकारी की आवश्यकता है , यह एक उपयोगी लेख है आभार आपका !
ReplyDeleteअच्छी ज्ञान वर्धक जानकारी है।
ReplyDeleteआभार
सही कहा!? हिन्दू मान्यतानुसार असली कर्ता आत्मा है - जो अमर है...पहली बार कोई एक मानव रूप धारण करने से पहले यह ८४ लाख अन्य रूप में आ चुकी होती है,,, और अच्छे या बुरे कर्मानुसार अन्य ऊंचे अथवा निम्न रूप धारण करती चली जाती है...
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट.
ReplyDeleteहमारा ब्लॉग जगत बहुत धनी है. आप जैसे डा0 की मुफ्त सलाह हर मौसम में उपलब्ध है. अमल न करें तो यह अपनी ही गलती है.
..आभार.
जानकारी से परिपूर्ण, उपयोगी लेख ...
ReplyDeleteगोल्ड मेडल मिलने की बात सुन बहुत ही हर्ष हुआ...
आभार ..!
मौसम के अनुकूल जानकारीवर्धक पोस्ट ...
ReplyDeleteआभार ..!
'लूज़ मोशन' जैसे विषय पर केवल बच्चे ही शायद जोक कर सकते हैं,,, मेरे भतीजे से कई वर्ष पूर्व एक सुना था कि कैसे एक सज्जन ने सड़क पर दूसरे सज्जन से रिवोली सिनेमा का रास्ता पूछा तो उसने कहा कि बस ये पीली लाइन पकड़ लो,,, मैं वहीं से फिल्म अधूरी छोड़ आ रहा हूँ!
ReplyDeleteजानकारी से परिपूर्ण, उपयोगी लेख ...आपकी इस उपलब्धि[गोल्ड मेडल] पर हार्दिक बधाई!!!
ReplyDeleteडाक्टर साहब देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. इस बरसात के मौसम के बिलकुल अनुरूप पोस्ट है .इस ओ आर एस की जाकारी के लिए आभार
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