दिल्ली का ट्रैफिक । साठ लाख वाहन । जिंदगी की भाग दौड़ । सुबह सुबह सब भागने में व्यस्त। ऐसे में क्या क्या दृश्य देखने को मिलते हैं । ज़रा आप भी देखिये ।
द्रश्य १ :
एक चौराहे पर एक गाड़ी वाले ने तीन स्कूटर्स , चार मोटर साईकल्स , दो साईकल रिक्शा और पांच पैदल आदमियों को टक्कर मार दी ।
गाड़ी वाला ग्रीन लाईट ( हरी बत्ती ) जम्प कर रहा था ।
दृश्य २ :
एक चौराहे पर एक युवक ने रैड लाईट जम्प की और ग्रीन लाईट पर दूसरी ओर से आती एक महिला की गाड़ी ठोक दी ।
पुलिस दोनों को पकड़ कर थाने ले गई । थाने में युवक के नेता पिता ने महिला को डांट पिलाई --मैडम आपको दिखता नहीं है । जब वो रैड लाईट जम्प कर रहा था , तो आप रुकी क्यों नहीं ।
दृश्य ३ :
अमेरिका , कनाडा जैसे देशों में लाइसेंस बड़ी मुश्किल से मिलता है । नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है ।
ऐसे देश का नियम पालक लाइसेंस धारी पूर्वी दिल्ली की सड़कों पर गाड़ी एक किलोमीटर भी नहीं चला सकता , यह मेरा दावा है ।
दृश्य ४ :
चौराहे पर एक स्कूटर वाले ने एक भिखारी को एक रुपया भीख में दिया । भिखारी बिगड़ कर बोला --बाबू इसे आप ही रखो । मेरा दिवालिया निकलवाओगे क्या ।
अंत में :
एक बूढ़े भिखारी से मैंने कहा , बाबा
आज दायाँ , कल तो बायाँ हाथ बढाया था ।
भिखारी बोला बेटा , बूढा हो गया हूँ
अब याद नहीं रहता , कल किस हाथ में पलस्तर चढ़ाया था ।
कहिये , कैसी रही ।
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निश्चय ही बहुत बढ़िया रही. पलस्तर वाले बाबा की तो बल्ले बल्ले.
ReplyDeleteक्या खूब हा हा
ReplyDeleteबहुत मस्त और सत्य भी.
ReplyDeleteआज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..
ReplyDeleteपैनी नजर का प्रस्तुतिकरण ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDelete--
विविधता में ही तो भारत के प्राण रचे-बसे हैं!
हा हा हा
ReplyDeleteये भी खूब रही
गज़ब -गज़ब दृश्य !
ReplyDeleteएक विदेशी पंजाब घूमने आया...वापसी में उसने दिल्ली के लिए टैक्सी ली...टैक्सी मक्खन चला रहा था...अब मक्खन तो मक्खन...जहां भी रेड सिग्नल आया...धड़धड़ाता हुआ तोड़ता हुआ आगे निकल जाए...ये देखकर विदेशी की हवा खराब...आखिर कह ही बैठा...ये आप क्या कर रहे हैं...मक्खन ने कहा...साब जी बेफ़िक्र होकर बैठो, सिंह कभी नहीं रुका करते...आगे एक जगह सिग्नल पर ग्रीन लाइट थी...मक्खन वहां गाड़ी रोक कर खड़ा हो गया...विदेशी बड़ा हैरान हुआ, फिर पूछा...लेकिन यहां ग्रीन सिग्नल पर क्यों गाड़ी रोक दी...मक्खन...ओ, साब जी, सामने से दूसरा सिंह आ गया तो...
ReplyDeleteजय हिंद...
डॉ. साहब आज तो हँसाने के मूड से ही आएँ है आप...मजेदार वाक़या...धन्यवाद
ReplyDeleteमजेदार
ReplyDeleteaaj ka sach
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बेहतरीन....... :-)
ReplyDeleteदिल्ली शहर का सत्य! ट्रेफिक लाइट होते हुए भी यहाँ पुलिस वाला खड़ा होना आवश्यक है ! 'मक्खन सिंह' वाला किस्सा मेरे साथ भी वर्षों पहले इंडिया गेट के एक चौराहे में हुआ जब में हरी बत्ती देख थोडा आगे बढ़ ही गया था किन्तु एक टैक्सी वाला धड धडाते हुए, लाल बत्ती होते हुए भी, सामने से निकल गया और सौभाग्यवश मैंने उसे देख लिया और गाडी रोक ली!
ReplyDeleteबढ़िया...:):)
ReplyDelete:):) दिल्ली का ट्रैफिक और आपका अंदाज़े बयां दोनों ज़बरदस्त हैं
ReplyDeleteजहां तक अमेरिका / केनेडा में रह रहे व्यक्ति के दिल्ली की सडकों पर गाडी चलाने का प्रश्न है, कई वर्ष पूर्व मेरे नंबर एक दामाद को, जब वो परिवार वहीँ छोड़ आया हुआ था, मुख्यतः कठिनाई सड़क की सही तरफ चलाने की हुई जब हम दोनों को एक रात दूसरी बेटी के घर दक्षिण दिल्ली खाने पर आमंत्रित किया गया था - मैं उसे बार बार टोकता रहा...
ReplyDeleteऔर वहाँ के कानून के अनुसार वो अगली गाडी के बीच जो जगह छोड़ता था (अगली गाडी के पिछले पहिये दीखने चाहिए) उस में कोई और दुपहिया गाडी घुसा देता था!
आपकी लेखनी को सलाम .... इतना शानदार लिखते हैं आप की दिल छू लेते हैं.... बहुत ही अच्छी लगी यह पोस्ट.. आपका कीन औब्ज़र्वेशन बहुत शार्प है...
ReplyDeleteहा-हा-हा
ReplyDeleteये भी खूब रही
हा हा हा ………………बहुत ही बढिया रही।
ReplyDeleteहा हाहा हा.
ReplyDeleteपहले तो मुझे लगा आप दिल्ली की कोई समस्या पर ब्लॉग पोस्ट किये हैं. लेकिन बाद में पता चला आप तो हल्के-फुल्के, मज़ाक के मूड में ब्लॉग पोस्ट किये हैं.
अच्छी बात हैं, कभी-कभी ब्लॉग के पाठको के आगे सस्पेंस रखना भी चाहिए.
क्या हम ब्लोगर साथियों को कभी थ्रिलर (डरावना, भूतहा) भी आपके ब्लॉग पर मिलेगा????
हा हाहा हा.
बहुत बढ़िया.
थैंक्स.
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दराल जी, आपसे दो बातें करनी हैं =
ReplyDelete1. मुझे तो पता ही नहीं था की आपने मेरे सुझाव पर कोई पोस्ट (पिछली) भी लिखी हैं. मैंने कई बार आपकी पिछली पोस्ट पर विजिट भी की थी, लेकिन कल रात को मुझे मेरा नाम आपके पोस्ट पर लिखा मिला. तो एक बार तो मैं चौंक गया, फिर थोड़ी देर बाद माज़रा समझ में आया. आप भी ना.........मैंने तो आपको ऐसे ही सुझाव दे दिया था, और आपने सच में ही ना सिर्फ पोस्ट लिखी वरन मेरा नाम भी दे दिया. आप बहुत अच्छे हैं. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो दूसरो का नाम भी आगे रखते हैं. वरना आजकल तो लोग दूसरो के विचारों, दूसरो की सोच, और दूसरो के लिखे गानों-गीतों-और कहानियों तक को कॉपी करके अपने नाम से जारी कर देते हैं. आप बहुत अच्छे हैं.
2. मैंने आपकी पिछली पोस्ट पर बहुत पहले ही कमेन्ट कर दी थी. और बहुत बार ऐसे ही घुमते-फिरते आपके ब्लॉग पर मेरी कमेन्ट भी पढ़ी थी. लेकिन कल रात मेरी कमेन्ट आपके ब्लॉग पोस्ट पर नहीं थी. मुझे इसका कारण समझ में नहीं आया. क्या आपने मेरी कमेन्ट को डिलीट कर दी थी????
धन्यवाद.
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डॉ टी एस दराल जी आप की सभी बातो से सहमत है, लेकिन यह दृश्य ३ वाली बात पर तो सॊ प्रतिशत सहमत है जी, मैने एक बार ट्राई कि थी.... बस कान पकड लिये
ReplyDeleteबेहद उम्दा व्यंग्य !
ReplyDeleteबिलकुल सही चोट की डा० साहब आपने, कल टीवी पर ऐंड्र्युज में कुछ अमीरजादों और जादियों का रात को शराब पीकर गाडी को ट्रक के पीछे से ठोकने और फिर पुलिस की उपस्थिति में वहाँ बीच सड़क पर उनकी दादागिरी देख लग रहा था, कि इस देश को अभी एक और आजादी की सख्त जरुरत आन पडी है ! आखिरी जोक भी बहुत सटीक है !
ReplyDeleteखुशदीप जी , जे सी जी , दिल्ली के ट्रैफिक की ऐसी हालत है कि हम जैसा सात्विक होने का प्रयास करने वाला राजसी व्यक्ति भी कभी कभी तामसी पर उतर आता है ।
ReplyDeleteचौराहे पर ग्रीन लाईट होने पर आपका एकाधिकार नहीं होता । रेड लाईट जम्प करने वालों को सम्मान देना ही पड़ता है ।
विशेष नोट : स्कूटर या मोटरसाईकल , हमेशा हेलमेट पहन कर ही चलायें । इससे आपकी जान और माल --दोनों की रक्षा होती है ।
चन्द्र सोनी जी , इस पोस्ट में दिल्ली की समस्याएँ , हंसी मज़ाक और भयानक /डरावना सच --तीनों छुपे हैं । बस पहचानने की कोशिश कीजिये ।
ReplyDeleteआपकी फरमाइश पर --यह तो ट्रेलर है । असली पोस्ट को स्थगित किया है ताकि एक ही विषय होने की नीरसता न रहे ।
टिप्पणी डिलीट करने का सवाल ही नहीं उठता । मोडरेशन न होने पर डिलीट की गई टिपण्णी में भी नाम तो नज़र आता है ।
आप निश्चिन्त रहें , आपकी टिप्पणी हमारे लिए आपका स्नेह है , और सम्मानीय है ।
कमो-बेश यही स्थिति भारत के हर शहर की है। दिल्ली हमसे आगे नहीं है , कम से कम इस दौड़ में।
ReplyDeleteमुझे तो बहुत पसंद आई आपकी ये पोस्ट, पर मैं तो गाड़ी चलते समय भी हेलमेट लगा कर ही रखती हूँ क्या पता कब चालान कट जाए. मैं तो कहती हूँ की दुपहिये चालकों को भीं बेल्ट लगा लेनी चाहिए. ट्रेफिक पुलिसवाले को दिखाने को कुछ तो रहेगा. क्योंकि ट्रेफिक पुलिस वाले तो सिर्फ हेलमेट और बेल्ट ही देखते हैं फिर सवारी आप किसकी कर रहे है ये नहीं देखते
ReplyDeleteये हँसगुल्ले अच्छे लगे.. कुछ मूड ठंडा हुआ..
ReplyDeleteहाहा , बहुत बढ़िया - मजा आ गया !!!
ReplyDeleteएक बूढ़े भिखारी से मैंने कहा , बाबा
ReplyDeleteआज दायाँ , कल तो बायाँ हाथ बढाया था ।
भिखारी बोला बेटा , बूढा हो गया हूँ
अब याद नहीं रहता , कल किस हाथ में पलस्तर चढ़ाया था ।
...यह खूब रही.
बहुत ही बढ़िया, मज़ेदार और सही लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
छोटी छोटी गहरे घाव करती बातें...एक दम सच्ची...बेहतरीन पोस्ट लगी है मुझे ये आपकी...वाह...
ReplyDeleteनीरज
ReplyDeleteडाक्टर साहब बेचारे के बुढापे को दृष्टिगत रखते हुए उसकी गल्ती को माफ किया जाना चाहिए।
इस शानदार किस्से को सुनाने का शुक्रिया। सचमुच मजा आ गया।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्य… ।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..
अब याद नहीं रहता , कल किस हाथ में पलस्तर चढ़ाया था।
ReplyDeleteलेटेस्ट जोक के लिये धन्यवाद।
हा हा हा ! बहुत बढ़िया रचना जी ।
ReplyDeleteआपका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी बाहर आने लगा है , धीरे धीरे ।
जी हम भी यही कहते हैं कि भाई हेलमेट लगा लो । अपनी जान की नहीं तो माल की रक्षा के लिए ही सही ।
आनंद आ गया ...खूब इकट्ठे किये हैं !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब ....दराल जी ....आपकी फुलझड़ियाँ महज फुलझड़ियाँ नहीं हैं ...हर कथ्य के पीछे इक सन्देश छिपा है ....सच आप एक जिंदादिल इंसान हैं ...हम जैसे मुर्दादिल क्या खाक जियेगें .....!!
ReplyDeleteकैसी बात करती हैं , हरकीरत जी । आपकी कला को तो हम नमन करते हैं ।
ReplyDeleteदिल्ली में ट्रैफिक पुलिस वाले जिस तरह घात लगाकर खड़े रहते हैं,उससे साफ है कि ज़ोर कमाई पर है,व्यवस्था सुधारने पर नहीं।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब. भिखारियों प इसीलिये तो विश्वास नहीं रहा अब...
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ReplyDeleteNazar nazar ki baat hai .kavi lekhak ki nazar hai. bahut achchha laga. badhai!!
ReplyDeleteसब राम-राज है डाक्टर साहब....
ReplyDeleteकभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य....कुछ व्यस्तताओं के चलते...इतनी देर से पढ़ पायी इतनी रोचक पोस्ट
ReplyDeleteडाक्टर साहब आपकी सोहबत का असर है
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरचना जी , हम तो घर में भी हेलमेट पहन कर रहते है ।हा हा हा !
ReplyDeleteये तो बहुत अच्छी बात है । किसी पर तो असर हुआ ।
वैसे जिंदगी स्वयं ही इतनी गंभीर समस्याओं से भरी होती है कि थोडा बोझ हल्का करने के लिए हास्य का होना अति आवश्यक है ।
बेहद उम्दा व्यंग्य !
ReplyDeleteचोरी और फिर सीनाजोरी...ये तो यहाँ की आम बात है...
ReplyDeleteडा. साहिब,
ReplyDeleteमैं ना तो साहित्यकार और ना ही मुझे शब्दों से खेलना आता। पर जिला जींद के निडाना गावं में कीड़ों से माथा मारते-मारते इस ब्लागिंग के जरिये तीन मानव स्वास्थ के रखवालों से वास्ता पड़ा है। 1. डा. रनबीर दहिया रोहतक में, 2 एक डा. गोहाना में व एक डा. आप। तीनों गजब के धुरंधर। अगर तीनों तालमेल बैठाकर मानव-स्वास्थ को केन्द्र में रख रचनाएँ रचे तो बहुत बेहतर होगा।
दलाल साहब, एक अरसे बाद ब्लॉग पर आने का शुक्रिया । बेशक हम डॉक्टरों का मरीजों के प्रति फ़र्ज़ है । और वो हम पूरा कर भी रहे हैं । कृपया मेरी लेटेस्ट पोस्ट पढ़िए --११ अगस्त की । इसे पढ़कर आपको अहसास होगा कि कितनी विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है ।
ReplyDeleteलेकिन ब्लोगिंग एक जरिया है अपनी क्रेअटिविटी को एक्सप्रेस करने का ।
मैं मुख्यतय: चार विषयों पर लिखता हूँ --मेडिकल ( रोगों की जानकारी ), फोटोग्राफी --जिसका मुझे शौक है , हास्य कवितायेँ और लेख --हरियाणवी खून में हास्य विनोद होता ही है , और सामाजिक मुद्दे जैसे सजातीय विवाह , दहेज़ प्रथा आदि ।
कल ही एक मित्र ने बताया कि उन्होंने एक ही दिन में मेरे सारे लेख पढ़े हैं । जिसका सबूत भी है , उनकी टिप्पणियां । कभी वक्त मिले तो आप भी कोशिश करियेगा , आपको अच्छा लगेगा ।
all work and no play makes jack a dull boy .