मेडिकल कॉलिज का पहला दिन । गेट पर ही सीनियर्स ने पकड़ लिया । एक बोला --डॉक्टर क्यों बनना चाहता है ? जी , देश के मरीजों की सेवा करना चाहता हूँ । एक जोरदार ठहाका । इसे देखो ये मरीजों की सेवा करना चाहता है । हा हा हा !
आज सोचता हूँ कि बचपन या लड़कपन भी कितना नादान होता है । आज व्यवसायिकता और उपभोगता के इस दौर में , भला कौन देश की सेवा कर रहा है ।
डॉक्टर्स प्राइवेट सेक्टर में हों या सरकारी , या फिर निजी प्रैक्टिस ---जिसे देखो पैसा कमाने की होड़ में व्यस्त है ।
दिल्ली का मानसून । उमस भरे दिन । सुबह सुबह भी उमस इतनी कि हिलते ही पसीना आने लगता है । अस्पताल पहुँचते ही नज़र आता है ये कॉरिडोर ।
तूफ़ान से पहले और तूफ़ान के बाद की शांति ।
इस कॉरिडोर से होकर प्रतिदिन ६००० मरीज़ और उनके इतने ही रिश्तेदार , इलाज़ के लिए इधर से उधर होते हैं ।
कॉरिडोर मरीजों से खचा खच भरा हुआ । मरीजों के पसीने की दुर्गन्ध , अस्पताल की हवा में मिलकर एक अजीब सी गंध छोडती हुई-- खों खों करते रोगी ---- कोई थूक रहा है ---कोई बच्चे को कोने में बिठाकर सू सू करा रहा है । एक बुढिया को उसका बेटा हाथो में उठाकर हड्डी रोग विभाग ले जा रहा है । एक पढ़ा लिखा व्यक्ति स्ट्रेचर के लिए मारा मारा फिर रहा है ।
मैं भीड़ में से रास्ता बनाने की कोशिश करता हुआ -- एक हाथ सामने लोगों को हटाते हुए --दूसरा हाथ पीछे पेंट की पॉकेट पर --जेब कतरों से पर्स को बचाते हुए --किसी तरह सांस रोककर , इस गलियारे से निकल पाता हूँ । आखिर अपने कमरे में पहुँच कर ही साँस लेता हूँ ।
सेंट्रली एयर कंडीशंड रूम में आकर थोड़ी राहत मिलती है ।
फिर शुरू होता है मरीजों का सिलसिला --जितने मरीज़ अपनी स्पेशलिटी के देखता हूँ , उनसे ज्यादा दूसरों के देखे हुए देखता हूँ । ओ पी डी इंचाज हूँ न --किसी की कोई भी शिकायत हो , मेरे पास ही आता है , निवारण के लिए ।
कभी कभी सोचता हूँ ---क्या पाया डॉक्टर बनकर ।
किसी एम् एन सी में काम करने वाला एक ग्रेजुअट भी कितने साफ़ वातावरण में काम करता है।
सूटेड बूटेड -- सेंटेड -- लंच मीटिंग --डिनर मीटिंग --कभी फाइव स्टार होटल में --कभी विदेश में । बाहर के संसार में कितना ग्लैमर है --- चमक धमक है ---- ऐशो आराम है ।
यहाँ तो पढ़े लिखे साफ सुथरे व्यक्ति से मिले हुए मुद्दतें हो जाती हैं ।
यहाँ सरकारी अस्पताल में वही आते हैं , जो गरीबी रेखा के पड़ोसी हैं ।
उनका दुःख दर्द सुनकर किसी का भी कलेजा हिल सकता है ।
बाहर बारिस हो रही है । आज थोड़ी फुर्सत लगती है । यादों का एक कारवां सा उमड़ने लगता है , मन में ।
याद आता है वो बुजुर्ग जो रिक्शा चलाता था , एक दिन किसी ने रिक्शा ही चुरा लिया । मालिक ३००० मांग रहा था । दमे का रोगी , भला कहाँ से लाता । एस्थलिन इन्हेलर के लिए ही पैसे नहीं थे उसके पास । उसे मिल गया , अब हर महीने आता है , साइन कराने के लिए ।
एक ८० वर्ष का बुजुर्ग -- उन्हें पता चला कि डॉक्टर साहब लाफ्टर शो में जीत कर आये हैं -- २० चुटकले लिख कर ले आये --पचास साल पुराने --साथ में एक पेन भी गिफ्ट---कार्डियोलोजिस्ट को दिखाना था । अभी दो वर्ष से नहीं आये हैं , कहीं --- ओह नो ।
एक बुजुर्ग , ६० -६५ के लेकिन हलके फुल्के --वज़न इंडियन रेफरेंस विमेन से भी कम । लेकिन बड़े फुर्तीले । साइन कराने के लिए आते --इतना आशीर्वाद देकर जाते कि दिल खुश हो जाता । कई महीने से दिखाई नहीं दिए तो चिंता सी हुई । लेकिन फिर एक दिन आये --अच्छा लगा , कुशल पाकर ।
एक रिटायर्ड सज्जन --हमेशा कोई न कोई , किसी न किसी की शिकायत लेकर आते । अक्सर झगडा कर के ही जाते । शायद घर से नाखुश थे । बच्चे परवाह नहीं करते --बीबी थी नहीं । प्रोब्लम तो समझ आती लेकिन क्या कर सकते थे । एक बार सचमुच डांटना ही पड़ा --तब से अब तक नहीं आये हैं । पहले दिख जाते थे , अब कई महीने से दिखाई भी नहीं दिए --- वक्त किसी के लिए कहाँ रुकता है ।
एक अधेड़ उम्र की महिला---विधवा -- डायबिटिक --उसका ४० साल का मेंटली रिटारडेड लड़का --वह भी डायबिटिक ---दवाएं सारी मिलती नहीं --- उन्हें देखकर धरती पर ही नर्क का अहसास होता ---मन मसोसकर रह जाना पड़ता ---भगवान ऐसी जिंदगी किसी को ने दे ---अभी डेढ़-दो साल से नज़र नहीं आई । शायद मुक्ति ---?
अक्सर एस्थमा के रोगी आते हैं --इन्हेलर लेने के लिए । नियमानुसार मिल नहीं सकता था । बड़ा दुःख होता था देखकर कि सांस नहीं आ रहा लेकिन हम होते हुए भी दे नहीं सकते ।
बड़ी कोशिशों के बाद , आखिर कामयाबी मिली ---अब सबको उपलब्ध है।
बड़ी संतुष्टि मिलती है चेहरे के भाव देखकर --जैसे कोई खज़ाना मिल गया हो ।
जी हाँ , सरकारी अस्पताल में रोगी को दवा मिल जाये तो खज़ाना ही मिल जाता है ।
उनके चेहरे पर संतोष और राहत के मिले जुले भाव देखकर, हमें भी सुकून का अनुभव होता है ।
कहते हैं पैसा तो हाथ का मैल है । निश्चित ही दो रोटी लायक तो सरकार हमें देती ही है ।
अब इस उम्र में और कितनी रोटियां चाहिए खाने को ।
परन्तु न जाने क्यों , यह बात सबको समझ नहीं आती ।
सामने घड़ी तीन का समय दिखा रही है । मीटिंग का समय हो गया है ।
दीवार पर हिप्पोक्रेटिक ओथ फ्रेम में ज़ड़ी लगी है ।
मैं एक नज़र उस पर डालता हूँ --और मीटिंग के लिए निकल पड़ता हूँ --अस्पताल की तीसरी मंजिल की ओर ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
happy birthday!!!!!
ReplyDeleteआज के युग में हर कोई अपने लिए जी रहा है ,वो चाह कर भी किसी को कुछ नही दे सकते!आप खुशनसीब है जो किसी को कुछ देने का हुनर रखते है!किसी को ख़ुशी देना बहुत बड़ी बात है ....अपने जन्म दिन पर इस ज़ज्बे को बनाये रखने की प्रार्थना करना...
ReplyDeleteअगर देश के सारे डॉक्टर आप जैसे हो जाएं तो भारत की सेहत न सुधर जाए...
ReplyDeleteदराल सर, जो संतोष दिन भर के काम के बाद आपको मिलता होगा, मेरा दावा है एमएनसी या फाइव स्टार अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर्स को उसका रत्ती भर भी नहीं मिलता होगा...अगर मदर टेरेसा गरीबों के बीच जाकर उनके दुख-दर्द को अपना नहीं बनातीं तो उन्हें दुनिया भर की मां कौन कहता...देश की आज़ादी के इतिहास को पढ़े तो हम गांधी, नेहरू और उंगलियों पर गिना सकने वाले क्रांतिकारियों के नामों से आगे बढ़ नहीं सकते...लेकिन आज़ादी दिलाने में अनगिनत अनाम शहीद भी थे जिन्होंने चुपचाप बिना अपने नाम की चाहत में सब कुछ न्यौछावर कर दिया...हमारे देश में आज भी आप जैसे अनसंग हीरो हैं जिनके दम पर ये देश चल रहा है...गरीबों को इलाज और दवा मिल जाती है...वरना मनमोहनी अर्थव्यवस्था की चले तो गरीबों को दिखने ही न दे...ये सिस्टम गरीब की बात तो करता है लेकिन उसके सामने आने पर नाक-भौं सिकोड़ कर बचने की कोशिश करता है...
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई...एक सार्थक पोस्ट के लिए आभार...
आपकी शख्सीयत को ज़ोरदार सैल्यूट...
जय हिंद...
आपकी हिम्मत...जज्बे और इच्छाशक्ति को सलाम ....
ReplyDeleteआप जिएँ हज़ारों साल...साल के दिन हों पचास हज़ार...जन्मदिन मुबारक
डा. तारीफ सिंह दराल जी, अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर आपको अनेकानेक बधाइयां! और सुंदर विचारों के लिए धन्यवाद!
ReplyDelete११ अगस्त मेरी छोटी बेटी-दामाद के शुभ विवाह की पांचवी वर्षगाँठ होने के कारण आपकी जन्मतिथि अब याद रहेगी! (मैं कुछ समय से उनके और उनके तीन-वर्षीय पुत्र के साथ मुंबई में रह रहा हूँ और यहाँ की वर्षा का आनंद ले रहा हूँ - दिल्ली की उमस से दूर!
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं...!!
ReplyDelete--
शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं. - + 91 9451020135
ईमेल-
ppsingh81@gmail.com
ppsingh07@hotmail.com
ppsingh07@yahoo.com
prabalpratapsingh@boxbe.com
ब्लॉग - कृपया यहाँ भी पधारें...
http://prabalpratapsingh81.blogspot.com
http://prabalpratapsingh81kavitagazal.blogspot.com
http://www.google.com/profiles/ppsingh81
http://en.netlog.com/prabalpratap
http://hi-in.facebook.com/people/prabala-pratapa-sinha/1673345610
http://picasaweb.google.com/ppsingh81
मैं यहाँ पर भी उपलब्ध हूँ.
http://twitter.com/ppsingh81
http://www.linkedin.com/in/prabalpratapsingh
डा० साहब को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteयह सोचने पर मजबूर हुआ और अच्छा भी लगा कि आप हर चीज को बारीकी से ओब्जर्ब करते हो ,क्योंकि आपके दिल के किसी कोने में एक अनुभवी साहित्यकार जो छुपा बैठा है !
दराल साहब, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई एवं शुभ-कामनाएं
ReplyDeleteएक सार्थक पोस्ट के लिए आभार...
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
डॉ. दराल जी आपको जन्मदिन की बहुत - बहुत बधाईयां ।
ReplyDeleteआप सरकारी अस्पताल में रहकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं । यह तो बहुत ही नेक काम है , वरना आज बहुत कम ही डॉक्टर ऎसे होते हैं जो कि सरकारी अस्पतालों में टिकते हैं । आपकी यह नि:स्वार्थ भाव से की जा रही मानव सेवा व्यर्थ नहीं जाएगी ।
.aapke kaushal se kisi ke chehre pr jo sukun psrta hai vhi sbse bda khjana hai .prmatma aapki tijori me ye khjana bhrpoor bhre .ameen .aapko our aapke pure priwar ko aapke jnmdin ki bhut bhut bdhai .
ReplyDeleteमैंने पाया कि अनादिकाल से चली आ रही मानव जीवन की अनिश्चितता को देख आम आदमी पहले किसी समय तीन बेटे चाहता था... उनमें से एक को डॉक्टर, एक को वकील और एक को इंजिनियर बनाना चाहता था जिससे जीवनपर्यंत सांसारिक सुख भोग सके...किसी एक परिवार विशेष का अंश होने के कारण आपके माता-पिता ही (एवें अन्य पारिवारिक सदस्य एवं मित्र भी!) शायद बता सकें कि आपका चिकित्सक बनना कितना सार्थक रहा! कम से कम हम कुछेक ब्लोगवासी आपके सतयुगी विचार पढ़ ही कलियुग में संतोष कर लेते हैं!
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteइंदुजी ने केक सजा रखा है आपके लिए http://www.google.com/buzz/puri.indu4/EUK8tGB2frP/%E0%A4%A1-%E0%A4%A6%E0%A4%B0-%E0%A4%B2-%E0%A4%86%E0%A4%9C-%E0%A4%B9%E0%A4%AE-%E0%A4%B0-%E0%A4%A1-%E0%A4%95
सही तस्वीर प्रस्तुत की है आपने , मरीज सरकारी अस्पताल इस उम्मीद से आता है की कम से कम दवा तो उसे मिल जाएगी। लेकिन एक अनार सौ बीमार की दशा में कोई चमत्कार ही कुछ कर सकता है.
डॉ. टी. एस.दराल साहब
ReplyDeleteआपको जन्मदिन पर बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
आप सभी मित्रों के स्नेह और शुभकामनाओं के लिए दिल से आभार ।
ReplyDeleteये लो जी लगा दी है हाजरी जनमदिन की
ReplyDeleteराम राम
सचमुच हमलोगों से चूक हो गयी थी .. इतनी अच्छी पोस्ट पर नजर जो नहीं पडी .. कभी जब हम बीमार होते हैं और अपने कष्ट के लिए दुखी होते हैं .. अस्पताल में अपने से अधिक कष्ट में रह रहे लोगों को देखकर संतोष हो जाता है .. वैसे आपके पास शरिरीक समस्या लेकर आते हैं .. और मेरे पास दूसरी परिस्थितियों की समस्या लेकर .. लेकि समस्याओं से तो हमारा सामना भी होता रहता है .. बहुत रंगों से भीरी है ये दुनिया .. देर से ही सही जन्मदिन की शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteयहाँ सरकारी अस्पताल में वही आते हैं , जो गरीबी रेखा के पड़ोसी हैं ।
ReplyDeleteउनका दुःख दर्द सुनकर किसी का भी कलेजा हिल सकता है ।
कोई आप जैसा संवेदनशील डाक्टर हो तब न ......?
यहाँ सरकारी अस्पताल में वही आते हैं , जो गरीबी रेखा के पड़ोसी हैं ।
उनका दुःख दर्द सुनकर किसी का भी कलेजा हिल सकता है ।
अक्सर एस्थमा के रोगी आते हैं --इन्हेलर लेने के लिए । नियमानुसार मिल नहीं सकता था । बड़ा दुःख होता था देखकर कि सांस नहीं आ रहा लेकिन हम होते हुए भी दे नहीं सकते ।
बड़ी कोशिशों के बाद , आखिर कामयाबी मिली ---अब सबको उपलब्ध है।
बड़ी संतुष्टि मिलती है चेहरे के भाव देखकर --जैसे कोई खज़ाना मिल गया हो ।
जी हाँ , सरकारी अस्पताल में रोगी को दवा मिल जाये तो खज़ाना ही मिल जाता है ।
क्या कहूँ .......गरीबों का मसीहा ......?
और हमारे ब्लॉग जगत का भी .......!!
दुआएं हैं .....आप जैसे डाक्टर सदा यूँ ही अपना जन्मदिन मनाते रहे .....
>>>>>>>HAPPY BIRTH DAY >>>>>>
जन्म दिन के दिन इतनी संवेदलशीलता कवि ह्रदय में ही पल सकती है.
ReplyDelete..मार्मिक पोस्ट.
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ! वेसे हम ने पाबला जी के ब्लांग के बाद आप के यहां बःई बधाई दी थी, चलिये दोवारा से
ReplyDeleteअपने लिये तो सभी जीते है... आज आप का दिल भी देख लिया, आप को पहचान तो पहली ही नजर मै गये थे, बहुत सुंदर पोस्ट हाथ से निकल गई थी, लेकिन अब पढी तो पता चला कि डा० के भी दिल होता है, ओर उस मै दर्द भी, सहनुभुति भी. धन्यवाद
ReplyDeleteपरमपिता आपको शतायु बनाएँ।
ReplyDeleteडाक्टर के साथ साथ आप एक संवेदनशील इंसान भी हैं .... आप की पोस्ट इस बात को इंगित करती है .... दिल में जज़्बा रख कर कर ही ऐसा किया जा सकता है ...
ReplyDeleteHAPPY BIRTHDAY.
ReplyDeleteWWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
आप डाक्टर बनना चाहते थे क्या ?
ReplyDelete