हम
हम
वो हैं,
जो
खेल
करवा सकते हैं,
खेल
कर सकते हैं,
पर
खेल सकते नहीं।
दे सकते हैं
पर
मेडल,
ले सकते नहीं।
बन सकते हैं
किरायेदार,
पर
खरीदार
हो सकते नहीं।
हम
वो हैं,
जो
हम हैं नहीं,
और
हो सकते नहीं।
Friday, August 6, 2010
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हम वो जिन्होने त्यागना सीखा है।
ReplyDeleteइसलिए वीतराग है सभी एषणाओं से दूर
जय पराजय हमें प्रभावित नही करती।
बहुत बढिया कविता है
आभार
हम
ReplyDeleteवो हैं,
जो
हम हैं नहीं,
और
हो सकते नहीं !!
बहुत सुंदर !!
डाक्टर साहेब, हम खेल करबाते है मेडल नहीं ......पाने के लिए . सार्थक रचना बहुत बहुत बधाई
ReplyDelete................
ReplyDeleteक्योंकि -
हम
हम हैं!
..............
हम
ReplyDeleteहमारे
हमारे अपने
हमारे सपने
बस और कुछ नहीं ..
सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद.... आढ़े वक़्त पर मदद करने के लिए आपका शुक्रिया.... अब आराम है....
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी... दिल को छू गयी....
थैंक्स वंस अगेन..... आई ऍम हाईली ओबलाइजड टू यू....
Noble Prize winner ज्यां पाल सार्त्र ki paribhasha yaad aa gayi.
ReplyDelete"आदमी वह है जो वह नहीं है और
जो वह नहीं है वही वह है"
Thanks for new analysis
हम आग लगा दे पानी में,
ReplyDeleteपत्थर पर फूल खिला दें,
हम वो हैं जो दो और दो पांच बना दे...
जय हिंद...
bahut badhiya rachana..abhaar
ReplyDeleteबहुत बढ़िया डा० साहब,
ReplyDeleteमुझे तो कभी कभी यह भी संदेह होता है कि "हम" है भी या नहीं ?
वाह ..बहुत बढ़िया व्यंग ....
ReplyDeleteशरद जोशी की एक व्यंग रचना याद आ गयी....
शब्द तो नहीं दे सकती पर अर्थ कुछ ऐसा था ....हम भारतीय सभ्यता याद रखते हैं ,रेस में भी कहते हैं पहले आप - पहले आप ...
और हाँ मिट्ठी का अर्थ सुलह करना , मनाना या दोस्ती करना है....
हम वो है जो दुनिया के सब उलटे काम तो कर सकते है, सही काम नही कर सकते
ReplyDeleteare itana nirashavadee ravaiya pahlee vaar dekha .........mana ki hum pachde desho kee ginatee me aate hai.........khel kood ke kshetr me bhee peeche hai .........par hum salo partantr rahe pichale sath salo me humne aoanee ek jagah bana hee lee hai vishv me........thodee aarthik sthitee theek ho jae fir definitely sports ke liye bhee shartiya kuch hoga...............
ReplyDeleteummeed par duniya kayam hai.........
:)
anytha nale........
kavita aur vyng dono hee asardar rahe...... nateeja aapne dekh hee liya.....
सटीक विचार है डाक्टर साहब ! आभार !
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में बड़ी गहरी बात कह दी...
ReplyDeleteहम एक नहीं, दो हैं: आत्मा और शरीर - जैसे ड्राईवर और गाडी दोनों!
ReplyDeleteतभी कहा गया हैः"हम कौन हैं क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी"
ReplyDeleteसरिता जी , मांफी चाहता हूँ । लेकिन यह निराशावादी नहीं यथार्थवादी रचना है ।
ReplyDeleteहम खेल कराते हुए तरह तरह के खेल कर रहे है और खिलाडियों की ट्रेनिंग के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं । फिर भला २७८ गोल्ड मेडल्स में से कितने हम जीत पाएंगे । खरीद से ज्यादा किराया देकर हम क्या साबित करना चाहते हैं । भले ही हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं लेकिन क्या विकसित हैं या होने की सम्भावना है ?
आप काहे हमारी पोल खोल रहे हैं? हम तो ऐसे ही काम करेंगे. जो मजा खेल करवाने में है वो खेलने मे कहां?
ReplyDeleteरामराम
sateek vyangye
ReplyDeleteअरे वा डॉक्टर साहब आपने तो अपने देश का हाल बयाँ कर दिया ।
ReplyDeleteहम क्या हैं
ReplyDeleteहम क्या जाने
बहुत ही बढ़िया कविता.......
"हम
ReplyDeleteवो हैं,
जो
हम हैं नहीं,
और
हो सकते नहीं। "
और हम कुछ होना भी नहीं चाहते
हा हाहा हा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जी बहुत बढ़िया.
आपका तो अंदाज़ ही निराला हैं.
दराल जी,
आप दिल्ली रहते हैं तो कृपया अपने नज़दीक ही स्थित नोएडा एक बार अवश्य जाइए.
वहाँ स्टार न्यूज़ का मुख्य कार्यालय-दफ्तर हैं.
आप वहाँ जाकर "पोलखोल" नामक कार्यक्रम के लिए एप्लीकेशन (रिज्यूम) अवश्य दीजिएगा.
देखना, स्टार न्यूज़ वाले शेखर सुमन को बाहर निकाल फेंकेंगे और आपको चार-गुना तनख्वाह पर रख लेंगे.
तो कब जा रहे हैं नोएडा, स्टार न्यूज़ के मुख्य कार्यालय.????
हा हा हाहा हा.
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
हा हा हा.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
हम वो हैं जो हैं ही नहीं ...
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात ...!
आपने बहुत ही बढ़िया पोस्ट लिखी है!
ReplyDelete--
इसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/238.html
हम मजबूर हैं , क्या करें ।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर और सठिक रचना लिखा है आपने! कम शब्दों में बहुत गहराई है!
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर रचना है”हम वो हैं जो हम है नही”ये शब्द इतने गहरे है की आँखे वही ठहर गई आज यही सब से बडा सच है जो हम भोग रहे है ओर( हो सकते नही)ये लाइने तो हमारे विकास को.....
ReplyDeleteकम शब्दो मे बहुत मिला !आभर!
अति सुन्दर.........
ReplyDeleteआपकी रचना को पढ़ कर दिल ये गदगद हो गया।
भाव-नगरी की सुहानी वादियों में खो गया॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
आप तो हर क्षेत्र के डॉक्टर है दराल सर......कितनी सही बात कही है जो हम हैं नहीं वो ही दिखाते हैं....लाख टके की बात
ReplyDeleteअलग अंदाज़ अलग जुगाड़ ! शुभकामनायें सर !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया कटाक्ष
ReplyDeleteहम
ReplyDeleteवो हैं,
जो
हम हैं नहीं,
और
हो सकते नहीं !!
बहुत सुंदर !!
बहुत सही कहा...
ReplyDeleteकम शब्द...बढ़िया कटाक्ष
ReplyDelete