बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह , यूँ तो दूसरी सदी से पहचान में है । लेकिन यहाँ रिहायस का प्रथम प्रयास किया अंग्रेजों ने १७८९ में , जिन्होंने वर्तमान के पोर्ट ब्लेयर की जगह अपनी छांवनी स्थापित की । तद्पश्चात , १८५८ में उन्होंने यहाँ कैदियों के लिए जेल की स्थापना की , वाइपर आईलेंड पर ।
वाइपर आईलेंड पर आज भी वह फांसी का फंदा लटकता नज़र आता है , जहाँ राजनीतिक कैदियों को फंसी दी जाती थी । यह पोर्ट ब्लेयर से १५ मिनट की दूरी पर है , बोट द्वारा ।
बाद में सन १८९६ में अंग्रेजों ने सेल्युलर जेल की नीव रखी , जो १९०६ में बनकर पूरी हुई ।
पोर्ट ब्लेयर चेन्नई से समुद्र के रास्ते ११९० किलोमीटर दूर है , जबकि हवाई ज़हाज़ से यही दूरी १३३० किलोमीटर है । कोलकता से भी जाया जा सकता है जिसकी दूरी क्रमश: १२५५ और १३०३ किलोमीटर है।
आइये आपको सैर कराते हैं यहाँ के कुछ द्वीपों की ।
रॉस आईलेंड :
इस द्वीप पर अंग्रेजों ने अपना शासन स्थापित कर पूरे द्वीप समूह की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी । लेकिन १९४२ में यहाँ जापानियों ने कब्ज़ा कर लिया । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे यहाँ साढ़े तीन साल तक रहे ।
रॉस आईलेंड अंडमान द्वीप समूह का सबसे छोटा द्वीप है जिसका क्षेत्रफल मात्र ०.८ किलोमीटर है ।
रॉस आईलेंड में पुरानी गिरिजाघर जो अब खँडहर बन चुकी है ।
रॉस आईलेंड का किनारा
द्वीप के पीछे का एक दृश्य--यहाँ समुद्र का पानी एकदम नीला और स्वच्छ नज़र आता है ।
नोर्थ बे आईलेंड : यह भी एक छोटा सा द्वीप है जो पोर्ट ब्लेयर के काफी नज़दीक है । यहाँ कोरल्स देखने के लिए स्नौरकलिंग कराई जाती है । --दूर दिखाई दे रहा है --लाईट हाउस ।
लाईट हाउस --आते जाते समुद्री ज़हाज़ों को दिशा निर्देशन करने के लिए बनाया गया था । काफी ऊंचे टावर पर रौशनी जलाकर इशारा किया जाता था ।
स्नौरकलिंग की तैयारी---
१९०६ में बन कर तैयार हुई सेल्युलर जेल में कैदी रखे जाते थे जिनमे राजनीतिक और सेनाओं के विरोधी सिपाही होते थे । इस जेल में गोलाई में बनी जेल की कोठरियों की कतारें हैं । ये तीन मंजिल की हैं ।
सेल्युलर ज़ेल का एक दृश्य----
दूसरी मंजिल की सबसे दायीं वाली कोठरी में वीर सावरकर को रखा गया था । इसके ठीक नीचे दायीं ओर फांसीघर था जहाँ कैदियों को फांसी लगाईं जाती थी । फांसी का तख्ता और फंदा आज भी वहां मौजूद है अपने भयानक भूतकाल का हाल बयाँ करते हुए ।
सेल्युलर ज़ेल की म्यूजियम में --एक भयानक दृश्य
पोर्ट ब्लेयर से करीब ३८ किलोमीटर दूर बड़ा ही खूबसूरत द्वीप है --हैवलॉक आईलेंड ।
हैवलॉक आईलेंड की ओर --काला पानी --सचमुच काला दिखता हुआ ।
हैवलॉक पर खेती बाड़ी होते हुए देखकर हैरानी हुई ।
हैवलॉक आईलेंड की राधानगर बीच --सचमुच बहुत खूबसूरत है ।
यहाँ एक और बीच है , जो प्राइवेट बीच है ।
विजय नगर बीच । यह एक रिजोर्ट की प्राइवेट बीच है । दूर तक फैला पानी जैसे आमंत्रित करता है , पानी में घुसने के लिए ।
पोर्ट ब्लेयर की सैर कर एक अजीब सा रोमांच महसूस होता है । कुछ इतिहास का दर्द , कुछ मुख्य भूमि से इतना दूर होने का अहसास । बीच समुद्र में बसा यह शहर अंडमान निकोबार की राजधानी है । आज यहाँ मुख्य रूप से पूर्वी पकिस्तान से आये बंगाली और सेना से सेवा निवृत सेनानियों को बसाया गया है ।
लेकिन यहाँ घूमते हुए आपको बिल्कुल भी अहसास नहीं होगा कि आप अपने घर से हजारों मील दूर पानी के बीच हैं । देश के हर कोने से आये लोग आपको यहाँ रहते हुए नज़र आयेंगे एक परिवार की तरह ।
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वाह! सुन्दर जानकारी और सुन्दर चित्र
ReplyDeleteखूबसूरत तश्वीरें और नपे तुले शब्दों में रोचक जानकारी.
ReplyDelete..उम्दा पोस्ट.
उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी पोस्ट वार्ता पर भी है
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
एक उम्दा प्रस्तुति डा 0 सहांब, घर बैठे काला पानी की सैर करा दी आपने ! वैसे अपनी भी दिली तमन्ना थी यहाँ घूमने की मगर अभी तक ख्वाइश ही पाल रहा हूँ !
ReplyDeletemain gaya hun....yaha...yaaden taazaa ho gayeen
ReplyDeleteआनन्द आ गया।
ReplyDeleteअण्डमान निकोबार की सैर कर ली है।
बहुत बढ़िया वृतांत ...चित्रों से सुसज्जित ....
ReplyDeleteकाश!ये नज़ारे हमेशा अक्षुण्ण रह सकें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कई बार प्रोग्राम बना, यहां जाने का, लेकिन किसी ना किसी बहाने टलता रहा,ओर आज आप ने इन सुंदर चित्र ओर सुंदर विवरण से हमारे दिल की इच्छा को ओर भी हवा दे दी, बहुत अच्छा लगा , याद गार, यह जरुर लिखे कि कोन से मोसम मै वहा जाना चहिये. धन्यवाद
ReplyDeleteवाह दराल जी वाह,
ReplyDeleteमज़ा आ गया. आपने तो घर बैठे-बैठे ही हमें सूदूर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की यात्रा ही करवा दी. जिस यात्रा में हमें चालीस-पचास हज़ार का खर्चा आ जाता वो यात्रा तो आपने मुफ्त में ही करवा दी. हा हा हा.
मैं भी पिछले कुछ समय से इस ओर-तरफ यात्रा करने का प्लान बना रहा था, अब आपने इसकी झलक दिखाकर मुझे और भी ज्यादा उत्सुकता से भर दिया हैं. अब मैं भी कोशिश करूंगा जल्द-से-जल्द इस तरफ निकल पड़ने की.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
भाटिया जी , यहाँ जाने के लिए सर्दियों का मौसम सबसे उपयुक्त रहता है । वैसे भी इण्डिया आने के लिए सर्दियाँ ही ठीक हैं ।
ReplyDeleteसोनी जी , एक बार ज़रूर होकर आना चाहिए ।
सुन्दर चित्र...आपके साथ हम भी घूम लिए. कब हो आये आप?
ReplyDeleteमैंने पहली बार किसी नानिकोय द्वीप का नाम सुना था अंदमान में (जो शायद २००५ की सुनामी में गायब हो गया ?) जब पत्नी का भांजा वहां नौकरी के चक्कर में पहुँच गया था (शायद शादी से बचने के लिए! पर अब अमरीका में है - दो बच्चों का बाप!)... कई वर्ष पहले उससे पत्र व्यवहार हुआ था तब (अब ईमेल से लगभग प्रतिदिन 'कृष्ण', 'इसकोन' पर पत्र पाता हूँ!)... ...
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लोग पर आई हूँ ......देखते ही रूह खुश हो गई........बहुत सुन्दर चित्र.............
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रों सहित सैर करवाई आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
समीर जी , हम २००६ में पोर्ट ब्लेयर गए थे , एल टी सी लेकर ।
ReplyDeleteजे सी जी , सुनामी से थोडा नुकसान तो हुआ था , फिर भी बच ही गए थे सब ।
सुमन जी , आपका स्वागत है । कृपया पुरानी पोस्ट भी देखिये , आपको अच्छा लगेगा ।
इतनी विस्तृत और बढ़िया जानकारी....और चित्रों ने तो मन मोह लिया...बहुत ही ख़ूबसूरत पोस्ट
ReplyDeleteअच्छी सचित्र प्रस्तुति
ReplyDeleteBlog ki jitni tareef ki jay kam hai. sundar post le liye Badhai!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति..!
ReplyDeletevartmaan अंडमान dweepon के astitv se sambandhit दंतकथानुसार, हनुमान (aadivasiyon के 'handuman') जी पूरा पर्वत - praandayini संजीवनी booti' के साथ - himalaya se उठा लाये तो vish के kaaran maranaasanna lakshman ko jilaane के baad प्रश्न उठा कि पहाड़ का क्या किया जाए? aur nirnay liya gaya कि use samudra mein daal diya जाए jahaan aaj andmaan dweep sthit hai!!!
ReplyDeletepata naheen ab bhi usmein संजीवनी booti lagti hai ya naheen? yadi lagti bhi hogi (samudri moonga के roop mein? kyunki हनुमान ko mangal vaar/ grah aur sindoori rang se joda jaata raha hai anaadikaal se) तो vaise 'pahunche hue chikitsak' ab kahaan se paayenge?
हम तो अभी अंडमान में ही हैं, अक्सर इन दृश्यों को देखते हैं...लाजवाब पोस्ट.
ReplyDeleteआपने तो अंडमान के बारे में बहुत सुन्दर लिखा...
ReplyDelete_____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
जे सी जी , ये तो हमने कभी सोचा ही नहीं ।
ReplyDeleteअच्छी जानकर दी आपने ।
अब यह तो श्री के के यादव जी ही बता सकते हैं कि अभी भी वहां संजीवनी बूटी कहीं मिलती है या नहीं ।
अंडमान की सैर का मजा निराला है, चित्र देख एस लगा अभी घूम रहे हैं.
ReplyDeleteडा. साहिब, साधारणतया भूगोल शास्त्र से सम्बंधित व्यक्ति शायद जान पाते हैं कि हिमालयी पर्वत श्रंखला कि उत्पत्ति भारत भूमि के गर्भ से हुई (भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप की भूतकाल में प्लेटों के टकराने के कारण)... यानि ये पर्वत कभी पानी के नीचे डूबी मिटटी और चट्टानें ही थे...
ReplyDeleteजब हमारे जैसे 'सिविल इंजिनियर' कभी पहाड़ में सड़क आदि बनाने के लिए खुदाई कराते हैं तो कई स्थान पर (समुद्री) रेत और छोटे-छोटे पानी द्वारा घर्षण से बने पत्थर के अंडाकार गिट्टियां इत्यादि देखने को मिलती हैं...इसी प्रकार ज्वालामुखी आदि से पिघली चट्टानों के, अथवा अन्य प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं द्वारा कालांतर में कई स्थानों पर रत्नादी प्राप्त होते हैं और मानव द्वारा सजावट, अथवा अन्य लाभदायक कार्यों में उपयोग में लाये जाते आ रहे हैं - जिसमें चिकित्सा का क्षेत्र भी शामिल है: स्वर्ण भस्म आदि आयुवेद में, रत्नादि अंगूठियों में अथवा माला में, इत्यादि इत्यादि...
इतने सुन्दर फोटो देख कर मन अंडमान जाने को मचल उठा है...शुक्रिया आपका...
ReplyDeleteनीरज
काला पानी सुन देखकर मिक्स्ड अनुभूति होती है -चित्र तो जोरदार हैं ,शुक्रिया !
ReplyDeleteविस्तृत और बढ़िया सचित्र जानकारी.
ReplyDeleteजानकारी भरी बढ़िया चित्रमयी पोस्ट
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ लाजवाब जानकारी ....
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