कहते हैं --एक मच्छर आदमी को क्या से क्या बना देता है । इसी तरह एक छोटी सी पिन कंप्यूटर का बेडा गर्क कर देती है । ये तो हमने अभी जाना । अब हुआ यूँ कि हम ज़नाब की सफाई करने बैठे और की बोर्ड का तार निकाल कर जब दोबारा डालने लगे तो ज़रा चक्कर खा गए। लगे अक्ल के बैल दोड़ाने । लेकिन अपनी तो बुद्धि चकरा गई और समझ ही नहीं आया कि ये कैसे डलेगा । कई दिन तक कोशिश करते रहे , कईयों से सलाह भी ली लेकिन वही ढाक के तीन पात। आखिर स्पेशलिस्ट के पास ले जाना पड़ा । और पता चला कि हमने अपनी होर्स पावर का प्रयोग करते हुए लीड की एक छोटी सी पिन तोड़ दी थी , जिसकी वज़ह से वो काम नहीं कर रहा था ।
अब हमें तो यही समझ आया कि भई अनजान रास्ते पर चलते समय लापरवाही नहीं, सावधानी बरतनी चाहिए । वर्ना एक गलत कदम बड़ी मुसीबत में डाल सकता है आपको । अब पिछले सप्ताह मैंने ब्लोगिंग कम करने की सलाह क्या दी , अपनी तो ब्लोगिंग ही बंद हो गई।
अभी कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा कि भीख दोगे तो सजा मिलेगी। रोड रेगुलेशंस १९८९, के नियम २२ (अ) के अंतर्गत आपको १०० रूपये जुर्माना हो सकता है। यानि एक रुपया भीख दोगे तो १०० रूपये की चपत लगेगी। अब मैंने तो ये ज्ञान सप्त.२००२ में ही पा लिया था तो मैंने तो डर कर भीख देना बंद कर दिया। पर लगता है कि दिल्ली वाले बहुत बहादुर लोग हैं। तभी तो रेड लाइट पर गाड़ी रोकते ही भिखारियों का एक सैलाब सा आ जाता है। और भिखारी भी ऐसे कि गलती से आपने एक बार उनकी तरफ़ देख लिया तो फ़िर बिना कुछ लिए पीछा नही छोड़ने वाले। इसका उपाय मैंने तो ये खोजा है कि बिना उनकी तरफ़ देखे हाथ हिला कर इशारा करो कि--- जा-जा। वो अपने आप समझ जाते हैं कि ये खडूस कुछ नही देने वाला। लेकिन आजकल भिखारी भी बड़े हाई -टेक्क हो गए हैं। कई बार तो पता ही नही चलता कि भिखारी कौन और दाता कौन है।
एक चौराहे पर जब मैं रुका और नजर घुमाई ,
फुटपाथ पर खड़े एक भिखारी ने
जेब से मोबाईल निकाला और कॉल लगाई।
और उधर से बौस पुकारा, दीनानाथ
आज तुम्हारी वी आई पी रूट पर ड्यूटी है।
भिखारी बिगड़ गया और बोला सौरी,
मेरी सी एल लगा देना , आज मेरी छुट्टी है।
नही बौस , वी आई पी ड्यूटी से मेरा लॉस हो जाएगा भारी,
अरे नेताओं से क्या मिलेगा , वो तो ख़ुद ही हैं भिखारी।
जब भी चुनाव होते हैं , ये हाथ जोड़ खड़े होते हैं,
और इस गठबंधन के ज़माने में चुनाव भी तो रोज होते हैं।
बौस बोला भैया ऐसा सोचना भी
तुम्हारी भारी गलती है।
अब नेता भी समझदार हो गए हैं ,
इसलिए गठबंधन की सरकारें ज्यादा चलती हैं।
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ReplyDeleteहर आदमी भिखारी हर आदमी दाता है
ReplyDeleteवेश बदल लेता है जब मौका पाता है
इस रोजगार में भी बहुत बरक्कत है.
डाक्टर साहब ,
ReplyDeleteआपने तो मुहावरा ही नए रूप में लिख दिया....अभी तक तो अकाल के घोड़े ही दौड़ते थे...अब ये बैल भी.. :):)
लेख सटीक है..जिसका बन्दर वही नचाये तो बेहतर है...
और कविता तो बिलकुल सार्थक...अब तो भिखारियों की यूनियन भी बन गयी हैं...और आज कल दाता ज्यदा भिखारी नज़र आते हैं
माफ़ी चाहूंगी....अकाल की जगह अकल पढियेगा
ReplyDeleteदराल साहेब,
ReplyDeleteएक कहावत है जिसका बन्दर वही नचावे....
बहुत अच्छा लगा आपको देख कर..स्वागत है आपका...
...'अदा'
ब्लाग पर आना सार्थक हुआ
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ़ प्रस्तुति
आपको बधाई
सृजन चलता रहे
साधुवाद...पुनः साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com
बहुत सुंदर डां साहब मजा आ गया
ReplyDeleteडॉक्टर साब
ReplyDeleteआज तो नेताओं का मी्टर लाम्बा कर दिया।
बड़ा ही धांसू ब्यंग्य सुणाया।
राम राम
वाह सर देर से आये पर दूर की कौड़ी लाये है अच्छा लगा नए भिखारियों से मिलना
ReplyDeleteमजेदार
ReplyDeleteचकाचक है सर।
ReplyDeleteसर टिप्प्णी मांगना भीख है या नही ।
... कमाल-धमाल .... लाजवाब !!!!
ReplyDeleteडा. साहिब, कंप्यूटर कारण था आपकी गैर हाजिरी का उसका पर्दाफाश हुआ,,,और आपने याद दिला दिया कि हमारे पिताजी एक पुराना मुहावरा दोहराते थे, "जिसका काम उसी को साजे / और करे तो डंडा बाजे!"
ReplyDeleteआपने अच्छा किया जो बता दिया कि भिखारी को दान देना अपराध है...किन्तु फिर एक प्रश्न उठता है कि जो शनिवार के दिन 'शनि देवता' आते हैं तो क्या उन की बाल्टी में पैसा डालना मना तो नहीं है?
कौन दाता है और कौन भिखारी पर व्यंग बढ़िया लगा :) शायद सत्य ये है कि हर कोई कभी दाता है तो कभी भिखारी...
जे सी जी , बहुत दिनों से एक पोस्ट शनि देव ( मनी देव ) पर ही लिखने की सोच रहा हूँ । लेकिन लोगों की धार्मिक आस्थाओं को देखकर रह जाता हूँ ।
ReplyDeleteवैसे जल्दी सचित्र एक पोस्ट का वादा है।
वाह,सुंदर पोस्ट.
ReplyDeleteदेखा मैं न कहता था कि आप बेकार में परेशान हो रहे हैं सर । दबा के ब्लोग्गिंग करिए देखिएगा पिन पुन और बांकी सारे यंत्र भी एकदम धडाधड दौडते फ़िरेंगे , उन्हें पता हो गया होगा कि यार चलते रहो , कहीं खराब हुए तो ....ये ब्लोग्गर है भाई जाने कहां कहां से इंजिनियर्स को बुलवा कर ठोंक पीट करवाएगा , फ़िर उसके बाद फ़िर से शुरू हो जाएगा , इसलिए चले चलो बस चले चलो।
ReplyDeleteभिखारियों को नकद मत दिया करिए उनसे उनका अकाऊंट नंबर एसएमएस करने को बोल दीजीए ..और सीधा अकाऊंट में डाल दीजीए ..देखा कित्ता सिंपल है ?
आपकी कविता पढ़कर भिखारी कवि मेरा मतलब है कि एक कवि जिनका उपनाम ही भिखारी है की कविता याद आ गई---
ReplyDeleteयहाँ हर कोई भिखारी है
फर्क सिर्फ इतना है
किसी का कटोरा छोटा
किसी का भारी है।
--मेरा तो सबकुछ खराब चल रहा है.. कम्प्यूटर अचानक से बंद हो जाता है, बिजली अचानक से चली जाती है, नेट धीमे-धीमे नींद के आगोश में सुलाता है। मेरे ब्लाग में एक टिप्पणी युवा कवि की टिप्पणी आई कि ब्लागिंग प्रसव पीड़ा के समान है! मैं अभी तक अचरज में डूबा हूँ।
bahut badhiyaa likhaa hain aapne, lekin ek baat to aap bataanaa bhool hi gaye.......
ReplyDeleteaapne ye to bataa diyaa ki bhikhaari ko bheekh dene par 100 rs jurmaanaa hain.
par ye nahi bataayaa ki--"har baar chunaav main jo bhikhaari (neta) log aate hain unhe bheekh (vote) dene par kya or kitnaa jurmaanaa hain???
bahut badhiyaa. thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
हर आदमी भिखारी हर आदमी दाता है
ReplyDeleteवेश बदल लेता है जब मौका पाता है
इस रोजगार में भी बहुत बरक्कत है.
ब्लॉगर है कि मानता नहीं...
ReplyDeleteटिप्पणी दान...महादान...
जय हिंद...
भीख मांगना और देना दोनों अपराध हैं।
ReplyDeleteडा० साहब चाहे अक्ल के बैल दौडाएं या घोड़े ! हमारे देशसे जाने वाली नहीं है ये भिक्षा वृत्ति! किये कराए पर पानी फेर देती है ! सराहनीय पोस्ट ! आभार !
ReplyDeleteदाता एक राम भिखारी सारी दुनिया!
ReplyDeleteखतरनाक लेखन क्या होता है,उसी का नजारा आज यहाँ देखा!मस्त भी और जबस्दस्त भी!
ReplyDeleteकम्प्यूटर से नेता वाया भिखारी!
कुंवर जी,
भीख लेना देना दोनों अपराध हैं. हां ताऊ को चाहे जितना दे सकते हैं उसमें कोई धारा नही लगेगी चाहे तो नोटों की माला भी ताऊ पहनने को तैयार है. कोई कार्यवाही नही होगी बे फ़िक्र रहें.
ReplyDeleteरामराम
शानदार व्यंग्य
ReplyDeleteप्रणाम
धारदार व्यंग्य है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
jai ho..............sahi likha hai .
ReplyDeleteहालंकि हम सड़कों पर भिखारियों को भीख देने से दूर रहते हैं, लेकिन अक्सर किसी मांगने वाले की दारुण स्थिति देखते हैं उसकी आँखों में सचाई देखते हैं तो जो दिल कहता है उतना दे देते हैं.
ReplyDeleteआपकी बात सही है, कहीं पर लोग दाता होते हैं तो कहीं पर भिकाड़ी.
डा साहिब, भीख मांगने की प्रथा कहाँ से आरंभ हुई होगी प्राचीनतम देश भारत में?
ReplyDeleteसंभव है मानव जीवन के मूल, गुफा, के कारण ही,,,जहां से मानव जीवन की उत्पत्ति संभवतः आरंभ हुई होगी, वैसे ही जैसे बच्चा माँ के गर्भ में लगभग ९ माह व्यतीत करता है - (और मंदिर के गर्भ-गृह में 'हिन्दू' भगवान् की मूर्ति भी परंपरागत रखता आ रहा है, अजन्मे को भगवान् का प्रतिरूप मान) - और उत्पन्न होने के बाद 'बिगड़ता' ही चला जाता है, यानी द्वैतवाद, दुःख-सुख, सही-गलत आदि के फेर में पड़ जाता है...
और ऐसे ही काल चक्र में पहला आदमी भीड़ और दुखदायी दिनचर्या से परेशान हो शायद हिमालय की ठंडी गुफा में जा, मनन करने पर, केवल कन्द, मूल, फल आदि खा,,, झरने का शीतल और निर्मल जल पी, अपने अंतर्मन में कुछ न कुछ ज्ञान तो प्राप्त किया ही होगा जिससे आम जनता को भी लाभ हुआ होगा (और कुछ नहीं तो जड़ी बूटियों द्वारा ही),,,और शायद किसी समय जनता में से औरों को भी प्रेरित किया होगा उसने, 'तपस्या' करने के लिए, जनता से भिक्षा प्राप्त कर,,,अथवा हर व्यक्ति को भी अपनी दिनचर्या में कुछ समय 'साधना' के लिए निकालने के लिए,,, यानी मन को अपने नियंत्रण में करने के लिए, जो वर्ना तथाकथित 'लक्ष्मी' के समान चंचल है और इस कारण भटकता रहता है...किन्तु शायद काल के प्रभाव से आज घंटी तो हम राम के लिए बजाते हैं पांच मिनट, किंतु उसके बाद रावण समान सोने के चक्कर में ८ घंटे गुजार देते हैं, और शेष समय भी 'सोने' में :)
डाक्टर साहब , नमस्कार !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आज पहली बार आना हुआ | माफ़ी चाहुगा कि अब तक आपसे touch में नहीं था ! आगे बना रहूगा !
शुभकामनाएं !
वैसे नेता अब भिखारी कहाँ रहे साहब ............... पूरा देश तो नोच नोच कर खा गए !
ReplyDeleteभिखारी तंत्र बड़ा संगठित व्यवसाय है , शायद ही कोई व्यवसाय इससे मुकाबला कर पायेगा ! एक प्लेन भिखारी रोज २०० रुपया , लूला लंगड़ा बना बहरूपिया ५०० से १००० रुपया रोज कमाता है ! फ्लेक्सिबिल डयूटी आवर, खाना पीना, रहना, बिजली , पानी ट्रांसपोर्टेशन सब कुछ फ्री !
ReplyDeleteडॉ साहब यह विषय रिसर्च का है ...पता नहीं इस पर पी एच डी हुई या नहीं ?
:-)
डा. साहिब, आम तौर पर मैं अपने आप पूजा आदि के लिए, या कुछ अपने लिए, 'भिखारी समान', मांगने मंदिर नहीं गया, हांलांकि हम अपनी कालोनी के बच्चे खेलने मंदिर जरूर जाते थे, और पिताजी के साथ काली मंदिर कई बार गया हूँगा...बाद में बीमार पत्नी के साथ एक बार और बाद में अकेले भी उनके कारण गुवाहाटी में कामख्या मंदिर अवश्य गया, पर मौन ही खड़ा रहा, कुछ भीख में मांगा नहीं...
ReplyDeleteबचपन में एक देर से सुबह कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अपनी माँ के साथ मंदिर मार्ग पर स्तिथ लक्ष्मी-नारायण मंदिर ('बिरला मंदिर') तक गया,,,क्यूंकि उनकी अन्य साथी, हमारी कालोनी की अन्य स्त्रियाँ पहले चली गयीं थीं,,, और वहां पहुँच उनके सुझाव पर मंदिर के पीछे कृष्ण के जीवन काल से सम्बंधित कथाओं के आधार पर बनी झांकियां देखने के इरादे से मंदिर के बगल में स्तिथ सीढ़ी की ओर बढ़ गया...और, भीड़ में शामिल हो, जब सीढ़ी तक पहुंचा तो मैंने अपने को भीड़ के बीच में दबा पाया! मैंने अपने बाल सुलभ दिमाग से सोचा मैं मर गया था! क्यूंकि मुझे कुछ अँधेरे के कारण दिखाई नहीं दे रहा था, मैं सांस भी ठीक से नहीं ले पा रहा था और मेरे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे! वो तो जब सब के ऊपर पहुँच भीड़ के छिटक जाने से मेरे पैर फिर से जमीन पर थे, और सांस ठीक आ-जा रही था तो मुझे यकीन हुआ कि मैं जिन्दा था!...
किन्तु उस दिन के बाद मैं भीड़ से डरने लग पड़ा,,,यद्यपि दो अन्य बार भी, एक बार एवेरेस्ट की चोटी पर पहुंची टीम के स्वागत पर मंदिर मार्ग पर ही काली-बाड़ी में पिचका और एक बार उससे पहले उसी सड़क पर महात्मा गांधी को देखने पिताजी आदि के साथ जा भीड़ को देख कार्यक्रम समाप्त होते ही उनको बिना बताये ही घर भाग के आ गया था,,,और डांट भी खायी थी :)
वो तो कई दशक बाद जब भारी सितारे के 'ब्लैक होल' (सीधे रूपान्तर में, 'कृष्ण छिद्र') में परिवर्तन के बारे पढ़ा तो समझ आया कि मेरा पिचकना उसी की एक झलक थी, सांकेतिक भाषा में - जो न मालूम मुझे क्यूँ दिखाई गयी थी उस कच्ची उम्र में जिसने मुझे भयभीत करके रखा और मेरे भाई-बहन द्वारा मजाक का एक विषय भी बना :)
सतीश जी , पी अच् डी का तो पता नहीं , लेकिन हमने रिसर्च ज़रूर की है । कभी फुर्सत में बैठे तो सुनाऊंगा।
ReplyDeleteजे सी जी , भीड़ भाड़ से तो हम भी डरते हैं।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ! शानदार और लाजवाब!
ReplyDeleteभिखारी ही भिखारी को भेख दे तो भी ज़ुर्माना होता है क्या ।
ReplyDeleteडा. साहिब, यह तो अपने दृष्टिकोण का दोष है कि हर व्यक्ति अपने-अपने मन के झुकाव के, यानि 'पसंद' के (या अज्ञान से उपजी 'माया' के), कारण भिखारी और दाता में अंतर भिन्न रूप से देख रहा है...
ReplyDeleteजैसे गणित के प्रश्न में मान लेते हैं, कुछ देर के लिए यदि कोई मान ले - (जैसा प्राचीन योगियों ने सत्य जान 'शिवोहम' कहा) - कि हर व्यक्ति शिव यानी अनंत निराकार परमात्मा के अनंत जीवन का एक छोटा सा हिस्सा प्रतिबिंबित करता है अपने लघु जीवन काल में,,, तो दाता यदि मैं हूँ, यानी शिव का एक प्रतिरूप या प्रतिबिम्ब, तो भिखारी भी शिव का एक प्रतिबिम्ब होने के कारण मेरा ही एक प्रतिबिम्ब है :)
उपरोक्त कठिन अवश्य है किन्तु मुझे भी अपने संन्यास आश्रम में, कंक्रीट की गुफा में एकांत में रह, संभव लगा, विशेषकर 'गीता' पढने के बाद और उस पर मनन कर :)
बहुत ही बढ़िया लेख है ... तीखा व्यंग्य और हास्य रस से भरपूर ... हमारे देश के तथाकथित 'नेता' चुनाव से पहले तो भिखारी ही होते हैं पर चुनाव के बाद चोर, डाकू, लुटेरा, खुनी, बलात्कारी, तस्कर, देशद्रोही और न जाने क्या क्या बन जाते हैं ... वो दाता तो कभी थे ही नहीं ...
ReplyDeleteachhi bat achha vyang.....
ReplyDeleteडॉ. साब हमारे साथ भी ऐसा ही हो चुका है. मेरे श्रीमान जी ने भी कुछ इसी प्रकार पिन के साथ कुश्ती लड़ी थी. नतीजा वही, जो आपके साथ हुआ.
ReplyDeleteएक बात बतलाऊं
ReplyDeleteकॉमनवेल्थ गेम्स पर भिखारियों के कियोस्क खुलेंगे और वहां पर सिर्फ विदेशी मुद्रा में ही भीख स्वीकार की जाएगी। मतलब इंडियन्स को तो वहां पर हाई टेक भिखारी भी नहीं पूछेंगे।
सटीक व्यंग है ... तभी नेता लोग वोटिंग को कर्तव्य बनाने में जुटे हैं ... कम से कम नेताओं को भीख तो नही माँगनी पड़ेगी वोट की ....
ReplyDeleteइस पोस्ट में लगता है कि आपने अपनी पुरानी पोस्ट का मिश्रण कर दिया...दोबारा पढकर भी अच्छा लगा :-)
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